Thursday 31 August 2017

Simhastha Kumbh Ujjain

उज्जैन कुम्भ यात्रा
पिछले वर्ष मेरा अपने बचपन के दो दोस्तों -सुशील और स्वर्ण , के साथ उज्जैन कुम्भ जाने का प्रोग्राम बना । प्रोग्राम कुछ इस तरह बनाया ताकि संक्रांति के मुख्य स्नान पर हम वहीँ हों ।उसी के अनुसार आने जाने की टिकेट बुक करवा दी गयी । हमारा प्रोग्राम कुछ इस तरह से था ।
13 मई की रात को अम्बाला से चलकर 14 दोपहर तक उज्जैन पहुँचना ।
14 मई शाम को कुम्भ स्नान और महाकाल दर्शन उपरांत उज्जैन भ्रमण और रात्रि विश्राम ।
15 मई सुबह संक्रांति के मुख्य स्नान के बाद इंदौर होते हुए ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिये जाना और रात्रि विश्राम इंदौर में करना ।
16 मई दोपहर को इंदौर से अम्बाला के लिये वापसी ।



चूँकि प्रोग्राम के अनुसार हम कुम्भ के मुख्य स्नान में जा रहे थे तो बेहद भीड़ मिलने की संभावना थी ,इसके मद्देनज़र रुकने की पहले से व्यवस्था कर ली गयी थी । मैंने उज्जैन और इंदौर में बीएसएनएल के गेस्ट हाउस पहले ही बुक कर लिये थे ।
तय तिथि 13 मई की रात को हम अम्बाला से उज्जैन जाने के लिये स्टेशन पहुँच गए।अम्बाला स्टेशन पर ही हमें कुछ अन्य मित्र भी मिल गए जो हमारे साथ उसी गाड़ी ( चंडीगढ़ –इंदौर एक्सप्रेस) से उज्जैन कुम्भ जा रहे थे । ट्रेन समय पर चल रही थी और 8:15 पर अम्बाला से रवाना हो गयी । ट्रेन में अधिकतर यात्री कुम्भ वाले ही थे । हम कुछ देर तो बैठ कर सह- यात्रियों से गपशप करते रहे ,फिर खाना खाकर रात्रि 10 बजे तक सो गए।

सुबह 5 बजे आँख खुली तो मालूम हुआ गाड़ी ग्वालियर स्टेशन पर खड़ी है । अभी बाकि साथी सो रहे थे तो मैं भी अपने बर्थ पर लेटा रहा । थोड़ी देर तक सब उठ चुके थे और किसी चाय वाले का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । कई स्टेशन आये और गए लेकिन कोई चाय वाला नहीं मिला । गाड़ी में भी पैंट्री नहीं थी ,करीब 9:30 बजे ट्रेन गुना पहुँची तो चाय मिली लेकिन वो भी बेस्वाद । इस रूट पर खाने पीने की काफी दिक्कत है ।


दोपहर लगभग 3:15 बजे गाड़ी उज्जैन पहुँच गयी ।वैसे तो मैंने यहाँ पर गेस्ट हाउस में बुकिंग करवा रखी थी लेकिन वो शहर से काफी बाहर था इसलिए मेरे साथी स्वर्ण ने  किसी जानकार के माध्यम से शहर के बीच ही , नरसिंह घाट के सामने सोऽहं आश्रम में बात कर ली थी। रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर एक ऑटो बुक किया और सीधा आश्रम पहुँच गए । वहाँ जाकर अपना परिचय दिया ,जिनके माध्यम से आये थे, उनका कार्ड दिया और हमें वहां रहने की स्वीकृति मिल गयी । लेकिन ये सुविधा नि:शुल्क नहीं थी; शायद 100 रूपये प्रति व्यक्ति ,प्रति दिन के हिसाब से देय था । आश्रम के अन्दर कुम्भ यात्रियों के ठहरने के लिये घास-फूस की झोपड़ियाँ बनायीं हुई थी जिसमे एक छत का पंखा और रोशनी के लिये एक बल्ब लगा था । सोने के लिये मिटटी के फ़र्श पर दरी बिछी थी। गद्दे-तकिये बाहर से सिक्योरिटी जमा करवा कर मिल सकते थे। सब कुछ बढ़िया था केवल बारिश के हिसाब से जगह बिलकुल सुरक्षित नहीं थी।

जो कुटिया हमें मिली उसमे पंजाब के दो लोग और भी थे जो यहाँ कई दिन रुकने वाले थे । हमने यहाँ सिर्फ़ एक रात रुकना था कल सुबह हमें इंदौर चले जाना था । जिस समय हम वहां पहुंचे उस समय काफी गर्मी थी । मई का महीना होने के कारण काफी लू भी चल रही थी इसलिए हमने दोपहर को वहीँ आराम करने का फ़ैसला किया । शाम 5:30 बजे हम कुम्भ स्नान के लिये निकल गए । आश्रम के गेट पर खड़े सेवादारों ने हमें बता दिया कि आश्रम रात 10 बजे तक खुला है, आप इससे पहले ही वापसी कर लेना ।

 आश्रम मुख्य मार्ग पर ही है ,यहां से निकल कर सीधा राम घाट की ओर चल दिए। वैसे तो यहाँ से राम घाट की दुरी लगभग 1 किमी ही है लेकिन बेहद भीड़ होने से हमें वहां पहुँचने में काफी समय लग गया । राम घाट पहुँच कर पुल से शिप्रा नदी को पार कर दुसरे मुहाने पर पहुँच गए और सबसे पहले मुख्य काम यानि कुम्भ स्नान किया गया ,जिसके लिये हम इतनी दूर यहाँ आये थे। स्नान करके हटे ही थे की आरती की उद्घोषणा हो गयी और जो लोग नहा रहे थे उन सबको पानी से बाहर निकाला गया । आरती के समय नदी में स्नान वर्जित होता है। ऐसा ही हरिद्वार और काशी में गंगा जी की आरती के समय भी होता है, किसी को नदी में स्नान नहीं करने दिया जाता ।

कुम्भ में नागा साधू सभी के आकर्षण का मुख्य केंद्र होते हैं . जहाँ हम स्नान कर रहे थे वहाँ  भी कई नागा साधू बैठे थे और सभी की फोटोग्राफी का मुख्य आकर्षण थे . शिप्रा जी की आरती के बाद हम लोग वहां से सीधा महाकाल के मंदिर की और चल दिए । भारी भीड़ को देखते हुए मंदिर में अच्छी व्यवस्था की हुई थी ,तीन लाइन एक साथ चल रही थी । आशा के विपरीत सिर्फ़ आधे घंटे में हम महाकाल के दर्शन करके बाहर आ चुके थे । महाकाल में शिवलिंग का आकर बहुत विशाल है और आप दूर से भी अच्छी तरह दर्शन कर सकते हैं । महाकाल परिसर में ही स्तिथ अन्य मंदिरों के दर्शन के उपरांत हम बाहर आ गए । महाकाल मंदिर परिसर में भी बहुत से नागा साधू मिले ।

 महाकाल मंदिर से सीधा हरसिधि माता के मंदिर गए । यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. उज्जैन एकमात्र ऐसी कुम्भ नगरी है जहाँ ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक साथ है तथा यह सप्त पुरियों में से एक पुरी भी है . हरसिधि माता के दर्शन कर अपने आश्रम की और चल दिए । इस दौरान बीच –बीच में खाने पीने का दौर लगातार चलता रहा । आश्रम पहुँचते -2 रात के दस बज चुके थे । वहां जाकर खाना खाया और गद्दे और तकिये लेकर अपनी कुटिया में सोने को चले गए ।          
कुम्भ महत्व
कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।

इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।

जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है।

सिंहस्थ उज्जैन का महान स्नान पर्व है। बारह वर्षों के अंतराल से यह पर्व तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियां चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होती हैं और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन के महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्वपूर्ण माने गए हैं।

उज्जयिन्यां कूर्परं  मांगल्य कपिलाम्बरः।
भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।

कुम्भ के दौरान स्टेशन पर ठन्डे पानी का इंतजाम 

उज्जैन पहुँच गए 

क्षिप्रा नदी ,राम घाट 

क्षिप्रा नदी ,राम घाट 

क्षिप्रा नदी ,राम घाट 

क्षिप्रा नदी ,राम घाट 




सुशील ,मैं और स्वर्ण 

क्षिप्रा नदी ,राम घाट 

बीएसएनएल है तो अपना पन है 















महाकाल मंदिर परिसर 

महाकाल मंदिर परिसर 

महाकाल मंदिर परिसर 
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16 comments:

  1. पुरानी यादें ताजा हो गई । नागा साधु नही मिले

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    1. धन्यवाद मुकेश जी .

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  2. Hi नरेश जी

    हमेशा की तरह आपका यह आलेख भी अपनी यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी देता है। उज्जैन मेरे भी द्वारा देखे गए महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है, हालाँकि यहाँ साफ सफाई और प्रतिदिन आने वाले यात्रियों के लिए सुविधाओं के लिहाज से बेहद कमीयाँ है। खैर, आपका लेख कुम्भ के स्नान और उसके महत्व पर है, जिस पर यह खरा उतरता है। चित्र बढ़िया है और लेखन प्रवाहमय। शेयर करने के लिए धन्यवाद ��

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    1. धन्यवाद पाहवा जी ,पिछले साल सफाई के बहुत बढ़िया इंतजाम थे .उज्जैन में भी और इंदौर में भी . शायद इसलिए इंदौर सबसे साक शहरों में चुना गया है

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  3. स्वर्ण गौरीAugust 31, 2017 4:50 pm

    Sehgal ji bot vadlya likhya hai.

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  4. अगले भाग का इंतज़ार रहेग...बढ़िया वर्णन.... बढ़िया पोस्ट..

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    1. धन्यवाद प्रतीक भाई .

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  5. महाकुंभ स्नान के बारे मे विस्तार से पढ़ना रोचक रहा. भीड़ की सोचकर कभी हिम्मत नही जुटी कि जा पाए. आपका लेख पढ़कर लगा कि भीड़ तो होती है, किंतु नियंत्रित रहती है.

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    1. धन्यवाद जयश्री जी . आपने सही कहा भीड़ तो होती है, किंतु नियंत्रित रहती है.

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  6. वाह बहुत ही अच्छा हम भी महाकाल के दर्शन किये पिछले महीने जी, वैसे एक बात और है आपकी यात्रा और मेरी यात्रा में कुछ समानता है , जैसे महीना और साल तो अलग अलग है पर यात्रा की तिथि बिलकुल एक है जी, एक बार और साधुवाद जी

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    1. धन्यवाद सिन्हा जी .

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  7. सिंहस्थ उज्जैन का महान स्नान पर्व है। बारह वर्षों के अंतराल से यह पर्व तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियां चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होती हैं और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन के महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्वपूर्ण माने गए हैं। बहुत ही सार्थक लेखन ! अलग अलग रंग में डूबे कुम्भ के खूबसूरत चित्रों ने मन मोह लिया !!

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    1. धन्यवाद योगी भाई .

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