Saturday 23 September 2017

Maan Jwala ji Temple

ज्वालामुखी देवी (Jwala Devi Temple )

नैना देवी मंदिर में दर्शन के बाद बाहर आकर पार्किंग की तरफ चल दिए और वहीँ एक भोजनालय में अमृतसर के मशहूर छोले कुलचे खाए और फिर चाय पीकर आगे के सफ़र के लिये निकल लिये । यहीं से एक सड़क सीधे भाखड़ा बांध होते हुए नंगल-उना की तरफ चली जाती है । जब यहाँ से चलने लगे तब  स्वर्ण ने कहा कि मुझे बाबा बालक नाथ के मंदिर जाना है वो इधर कहीं पास ही है , गूगल पर चेक किया तब मालूम हुआ की वो स्थान यहाँ से लगभग 100 किमी दूर है लेकिन जिस रास्ते से हमें जाना है उससे केवल 16 किमी हटकर है । हमने सर्वमत से सबसे पहले वहीँ चलने का फ़ैसला किया । वैसे तो इन दोनों स्थानों में एरियल दुरी 20 किमी ही होगी लेकिन बीच में गोविंग सागर झील पड़ने से इसके किनारे –किनारे घूम कर आने से बहुत दूर पड़ता है । यहाँ से हमने अपनी गाड़ी नंगल-उना वाली सड़क पर दौड़ा दी और भाखड़ा बांध के आगे से होते हुए उना-हमीरपुर रोड पर पहुँच गए । इसी मार्ग पर बडसर नमक जगह से बाबा बालक नाथ के मंदिर का रास्ता अलग हो जाता है। इस जगह से मंदिर 16 किमी दूर है। इस यात्रा का जिक्र कभी बाद में करेंगे आज सिर्फ़ ज्वाला माता के मंदिर ही चलते हैं ।

माँ ज्वाला जी मंदिर
बाबा बालक नाथ के मंदिर से बडसर वापिस आने तक रात के 8:30 बज चुके थे। वहीँ एक दूकानदार से रात रुकने का ठिकाना पूछा था तो उसने कहा कि यहाँ तो कोई होटल नहीं मिलेगा आप थोड़ा सा आगे जाओ , सरकारी गेस्ट हाउस भी है और उससे थोड़ा आगे रोड पर होटल भी मिल जायेंगे। आगे जाकर गेस्ट हाउस में मालूम किया तो 500 रूपये में एक बड़ा सा हाल कमरा मिल गया। वहाँ के केयर टेकर ने एक एक्स्ट्रा बिस्तर भी अलग से दे दिया। कमरे पर कब्ज़ा करने के बाद स्वर्ण और सुशील गाड़ी लेकर बाज़ार जाकर एक ढाबे से खाना पैक करवा लाये । हमें काफी तेज़ भूख लगी हुई थी इसलिये खाना आते ही सबने पहले कमरे पर बैठकर खाना खाया. खाना काफी स्वादिष्ट था । खाना खाकर थोड़ा बाहर टहलने गए और फिर कमरे पर आकर ,सुबह ज्वाला जी के दर्शनों का मन में सोच, सब सो गए ।

सुबह उठकर नित्य किर्या से निपट ,नहा धोकर सब तैयार हो गए और लगभग 8:30 बजे हमीरपुर की तरफ चल दिए । सड़क शानदार बनी है । बीच में एक जगह ढाबे पर गाड़ी रोककर नाश्ता किया गया फिर हमीरपुर होते हुए लगभग 11:30 बजे ज्वाला जी पहुँच गए । मंदिर के बाहरी गेट के साथ ही पार्किंग है । यहाँ भी गाड़ी पार्क करने के 50 रूपये ले रहे थे चाहे आपने सिर्फ़ एक घंटे के लिये ही पार्क करनी हो । गेट के सामने ही बस स्टैंड है और आसपास रुकने के लिये ढेर सारे होटल । गाड़ी पार्किंग में लगा कर हम गेट से अन्दर की तरफ चल दिए । मालूम हुआ की ये तो बाहर का गेट हैं मुख्य गेट अन्दर मंदिर के पास है । बाहरी गेट से मुख्य गेट तक रास्ते के दोनों तरफ सभी प्रशाद की दुकाने हैं। इन्ही में से एक दुकान से हमने भी प्रशाद ले लिया और अपने जुते वहीँ उतार कर मंदिर में चले गए । मंदिर में पहुंचकर मालूम हुआ की अभी दोपहर की आरती चल रही है इसलिए अभी दर्शन बंद हैं । दर्शन बंद होने से मंदिर में लम्बी लाइन लग चुकी थी । हम भी बिना समय गवाएं लाइन में लग गए और दर्शन शुरू होने की प्रतीक्षा करने लगे । लगभग आधे घंटे बाद आरती पूर्ण हुई और दर्शन फिर से शुरू हो गए और थोड़ी ही देर में हम भी गर्भ गृह से दर्शन कर बाहर आ गए ।

यहाँ मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाई थी। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। थोडा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। कहते है की यहाँ गुरु गोरखनाथ जी पधारे थे और कई चमत्कार दिखाए थे।
अब अपनी राम कहानी को यहीं विश्राम देकर ज्वाला जी मंदिर के बारे में जानकारी लेते हैं ।

ज्वालामुखी मंदिर का इतिहास एवं महिमा : 
हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर से 40 किलो मीटर दूर और कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर स्तिथ है ज्वालामुखी देवी। ज्वालामुखी मंदिर को जोतां वाली माता का मंदिर भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। मान्यता है यहाँ देवी सती की जीभ गिरी थी। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहाँ पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं।  इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।

इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुडी है। जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था,उन्हीं दिनों की यह घटना है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानू भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया। बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानू ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं। अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं।

अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई। ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।

बादशाह से विदा होकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। चमत्कार प्रकट करना , अपने सेवक को कृतार्थ करना। यदि आप मेरी प्राथना स्वीकार नहीं करेगी तो मैं भी अपना सर काटकर आपके चरणो में अर्पित कर दूंगा, क्योकि लज्जित होकर जीने से मर जाना अधिक अच्छा है। यह मेरी प्रतिज्ञा है ,आप उत्तर दें |"
कुछ समय तक मौन रहा ,कोई उत्तर न मिला ।
इसके पश्चात ध्यानू भक्त ने तलवार से अपना शीश काट कर देवी को भेंट कर दिया ।

उसी समय साक्षात ज्वाला माई प्रकट हुई और ध्यानू भक्त का सर धार से जुड़ गया, भक्त जीवित हो गया । माता ने भक्त से कहा , "दिल्ली में घोड़े का सर भी धार से जुड़ गया है । चिंता छोड़कर कर दिल्ली पहुँचो । लज्जित होने का कारण निवारण हो गया और जो कुछ इच्छा हो वर माँगो ।

ध्यानू भक्त ने माता के चरणों में शीश झुकाकर प्रणाम कर निवेदन किया, "हे जगदम्बे ! आप सर्व शक्तिमान है, हम मनुष्य अज्ञानी है, भक्ति कीविधि भी नहीं जानते ।फिर भी विनती करता हुकी जगदमाता ! आप अपने भक्तो की इतनी कठिन परीक्षा न लिया करें । प्रत्येक संसारी -भक्त आपको शीश भेंट नही दे सकता । कृपा करके, हे मातेश्वरी ! किसी साधारण भेंट से ही अपने भक्तो की मनोकामनाएं पूर्ण किया करो |"
"तथास्तु ! अब से मैं शीश की स्थान पर केवल नारियल की भेंट व् सच्चे ह्रदय से की गयी प्रार्थना द्वारा मनोकामना पूर्ण करुँगी |" यह कहकर माता अंतर्ध्यान हो गयी ।

उधर दिल्ली में घोड़े का सर जुड़ा देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया । उसने अपनी सेना बुलाई और खुद  मंदिर की तरफ चल पड़ा । वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई । उसने अपनी सेना से पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं । तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन (पचास किलो) सोने  का छतर चढ़ाया । लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया ।

चमत्कारिक है ज्वाला :
पृत्वी के गर्भ से इस तरह की ज्वाला निकला वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है। लेकिन यहाँ पर ज्वाला प्राकर्तिक न होकर चमत्कारिक है क्योंकि अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती ऊर्जाका इस्तेमाल किया जाए। लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस ऊर्जाको नहीं ढूंढ पाए। वही अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा न पाए। यह दोनों बाते यह सिद्ध करती है की यहां ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता।

ज्वालाजी में नवरात्रि के समय में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। साल के दोनों नवरात्रि यहां पर बडे़ धूमधाम से मनाये जाते है। नवरात्रि में यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती है। इन दिनों में यहां पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अखंड देवी पाठ रखे जाते हैं और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन इत्यादि की जाती है। नवरात्रि में पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालु यहां पर आकर देवी की कृपा प्राप्त करते है। कुछ लोग देवी के लिए लाल रंग के ध्वज भी लाते है।

मुख्य आकर्षण: मंदिर में आरती के समय अद्भूत नजारा होता है। मंदिर में पांच बार आरती होती है। एक मंदिर के कपाट खुलते ही सूर्योदय के साथ में की जाती है। दूसरी दोपहर को की जाती है। आरती के साथ-साथ माता को भोग भी लगाया जाता है। फिर संध्या आरती होती है। इसके पश्चात रात्रि आरती होती है। इसके बाद देवी की शयन शय्या को तैयार किया जाता है। उसे फूलो और सुगंधित सामग्रियों से सजाया जाता है। इसके पश्चात देवी की शयन आरती की जाती है जिसमें भारी संख्या में आये श्रद्धालु भाग लेते है।

प्रमुख शहरो से ज्वालामुखी मंदिर की दूरी :
चंडीगढ़ : 225 कि॰मी॰ दिल्ली: 473 कि॰मी॰ कांगडा: 30 कि॰मी॰ शिमला: 212 कि॰मी॰ अंबाला: 273 कि॰मी॰ धर्मशाला: 55 कि॰मी॰
ठहरना: ज्वालाजी में रहने के लिए काफी संख्या में धर्मशालाए व होटल है जिनमें रहने व खाने का उचित प्रबंध है। जो कि उचित मूल्यो पर उपलब्ध है। यहाँ हिमाचल पर्यटन विभाग का होटल भी है .ज्वालामुखी मंदिर के पास के नजदीकी शहर पालमपुर व कांगडा है जहां पर काफी सारे डिलक्स होटल है। यात्री यहां पर भी ठहर सकते है यहा से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा मुहैया है।

“ फुलां दा बनाया तेरा हार शेराँ वालिये, गोदी जी बैठा के देदे प्यार शेराँ वालिये ।
ध्यानू भक्त ने माँ ध्यान तेरा लाया सी ,कटे होए घोड़े दा माँ सीस लगाया सी ।
शहंशाह दा तोड़या अहंकार जोताँ वालिये, गोदी जी बैठा के देदे प्यार शेराँ वालिये ।। ”

।। जय माता दी ।।


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ज्वाला जी की जोत -चित्र नेट से 


बड़सर का गेस्ट हाउस 


यहीं नाश्ता किया था 

मंदिर का बाह्य गेट 

मंदिर की ओर जाता रास्ता .दोनों तरफ प्रशाद की दुकाने हैं 

तारा देवी मंदिर 




माता का शयन कक्ष 

मंदिर परिसर 

मंदिर परिसर 


मंदिर परिसर 


मंदिर परिसर 


इस बड़े से घंटे की भी एक कहानी है .....जो कभी चड़ाया न जा सका 


अकबर का चड़ाया छत्र 



26 comments:

  1. सुन्दर वर्णन .जय माता दी .

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  2. Good description with btfl pictures. Jai Maa Jwala Ji 🙏

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  3. जय माता दी सहगल साहब. बढ़िया पोस्ट बढ़िया फोटो सहित....

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    1. धन्यवाद कौशिक जी .

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  4. जय माता दी...वो उतना हिस्सा पंजाब हिमाचल बॉर्डर वाला बहुत खूबसूरत है

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    1. धन्यवाद प्रतीक जी .जय माता दी .

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  5. जय माता दी।बहुत बढिया पोस्ट सहगल साहब

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    1. धन्यवाद अनिल भाई . जय माता दी।

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  6. सुन्दर विवरण और जानकारी से भरा लेख।

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    1. धन्यवाद विकास जी . जय माता दी।

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  7. एक और सम्पूर्ण पोस्ट
    जय माता दी🙏

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    1. धन्यवाद अजय भाई । जय माता दी ।

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  8. वाह . सुन्दर तस्वीरें और विस्तृत जानकारी .जय माता दी .

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    1. धन्यवाद राज भाई । जय माता दी ।

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  9. जय माता दी,,, बहुत सुंदर पोस्ट व तस्वीरें ।

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    1. धन्यवाद सचिन भाई । जय माता दी ।

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  10. bahut hi umda yatra ka varnan kiya hai aapne or mandir se li gai photos bhi parstut ki hai.

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    1. धन्यवाद अश्वनी जी

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  11. वाह शानदार यात्रा जय माता दी 52 शक्ति पीठ में से एक शक्ति पीठ🙏🙏

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    1. धन्यवाद संगीता दीदी

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  12. Sudha Kukreti BahukhandiOctober 16, 2018 12:32 pm

    Jai Maa Jwalamukhi Devi.

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    1. धन्यवाद सुधा कुकरेती जी .

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