Sunday, 14 May 2017

वो सुबह कभी न आएगी


अभी तक मैंने यात्रा वृतांत ही लिखे हैं लेकिन आज कुछ हटकर लिख रहा हूँ । अपनी माँ के साथ बिताये पलों और ख़ासकर माँ के साथ बिताये अंतिम क्षणों को लेखनी की सहायता से कहना चाह रहा हूँ।

माँ भगवान से भी बढ़कर है क्यूंकि भगवान तो हमारे नसीब में सुख और दुख दोनो देकर भेजते हैं, लेकिन  हमारी माँ हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ सुख ही देना चाहती है। माँ त्याग, बलिदान, क्षमा, धैर्य, ममता की प्रतिमूर्ति होती है । वैसे तो नारी के कई रूप हैं जैसे माँ, बहन, बेटी, बहु एवं सास लेकिन माँ का रूप ही सबसे बड़ा माना जाता है । ये बातें तो सभी जानते हैं और बहुत से मानते भी हैं तो मैं सीधा अपनी बात पर आता हूँ ।

मई 2010: माँ पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रही थी । हार्ट की प्रॉब्लम थी । डाक्टरों के अनुसार दिल के एक वाल्व में जन्म से ही छेद था । पहले समस्या कम थी ,कभी कभी परेशानी होती थी , दवाई लेने से ठीक हो जाती थी लेकिन जैसे जैसे उम्र बढ़ती गयी बीमारी भी बढती गयी । दवाई और परहेज दिनचर्या का हिस्सा बन गये । एक बार हार्ट अटैक भी आया ,तबियत ज्यादा ख़राब हुई तो माँ एक सप्ताह हस्पताल में दाखिल भी रही। अब डाक्टर ऑपरेशन के लिये कहने लगे लेकिन माँ ऑपरेशन के नाम से ही डरती थी । एकदम मना कर देती। हमारे कहने-समझाने पर भी न मानती ।