रहस्यों से भरा
उत्तराखंड का खैट पर्वत
परियों की कहानियां बचपन में तो आपने जरूरी पढ़ी और सुनी होगी। इंसानों से
इनके प्रेम के किस्से भी पहाड़ों पर खूब सुनाए जाते हैं। किस्सों की दुनिया से आगे
निकलते हुए एक ऐसी जगह की ओर चलते हैं जहां आज भी लोग परियों और वनदेवियों को
देखने का दावा करते हैं।मैं बात कर रहा हूँ टिहरी जिले में स्थित खैट पर्वत के
शिखर पर मौजूद खैटखाल नाम के मंदिर की । इसकी जानकारी मुझे लगभग एक साल पहले एक
टीवी प्रोग्राम से हुई । न्यूज़ 18 चैनल के एक प्रोग्राम “आधी हकीकत आधा फ़साना”
में भी इसके बारे विस्तार से दिखाया गया था ,जिसे आप इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं ।
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खैटखाल मंदिर |
बाहरी शक्तियों की बातें अक्सर सुनी-सुनाई ही रहती हैं, कभी सिद्ध नहीं हो
पाती लेकिन इस स्थान पर पैरा नार्मल सोसाइटी भी अपने वैज्ञानिक उपकरणों के
माध्यम और अपने खुद के अनुभव से इस बात को मान चुकी हैं की यहाँ कोई बाहरी पॉजिटिव
एनर्जी है। टीवी पर प्रोग्राम देखकर यहाँ जाने की काफ़ी उत्सुकता हुई लेकिन यहाँ के
बारे में जब कोई विस्तृत जानकारी नहीं मिली तो बात आई- गयी हो गयी । यहाँ स्थानीय
लोगों के अलावा बहुत कम लोग जाते हैं शायद इसीलिए अभी तक किसी भी ब्लॉगर ने इसके
बारे में नहीं लिखा है।
मेरे एक मित्र है बीनू कुकरेती । वैसे तो बीनू भाई उत्तराखंड के पौड़ी जिले में
द्वारीखाल के पास हिमालय की सुदूर वादियों में बसे एक खूबसूरत से गाँव ‘बरसुड़ी’ के
रहने वाले हैं लेकिन रोज़ी –रोटी के चक्कर में पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली रहते हैं
। उनके मन में अपने गाँव के लिए कुछ अच्छा करने की सोच के चलते ही पिछले तीन सालों
से अपने घुमक्कड़ मित्रों के सहयोग से अपने गाँव बरसुड़ी में एजुकेशनल एवं मेडिकल
कैंप लगाते रहे हैं । इससे पलायन से पीड़ित इस गाँव में रहने वाले लोगों और बच्चों
का उत्साहवर्धन तो होता ही है , घुमक्कड़ मित्रों का आपस में एक मिलन भी हो जाता है
। इस साल भी कैंप होना था लेकिन इस बार उसका स्थान बरसुड़ी से बदल कर श्रीनगर के
पास जयालगढ़ गाँव में निश्चित किया गया । बीनू कुकरेती ने देवप्रयाग –श्रीनगर
राजमार्ग पर जयालगढ़ गाँव के पास ही अलकनंदा के किनारे “ जयालगढ़ रिसॉर्ट् ” के नाम से एक बढ़िया
कैंप-साईट तैयार की है। इस बार का एजुकेशनल एवं मेडिकल कैंप इसी साईट पर
होना था । मेरी भी इस कैंप में जाने और यार दोस्तों से मिलने की काफी इच्छा थी।
मैंने अपना प्रोग्राम कुछ इस तरह प्लान किया कि मात्र एक दिन और ऐड करके खैट पर्वत
भी जाया जा सके ।
अपने मित्रों अनुराग पंत और अंशुल डोभाल जी से खैट पर्वत पहुँचने की जानकारी
लेने के बाद तय दिन 20.09.2019 को मैं और मेरा मित्र सुखविंदर अपनी कार से सुबह आठ बजे अम्बाला से निकल पड़े ।
काला अम्ब, नाहन होते हुए पौंटा साहिब पहुंचे । पौंटा साहिब से आगे यमुना नहर के
किनारे पहला टी-ब्रेक लिया। यहाँ थोड़ी देर आराम करने के बाद देहरादून होते हुए
,क्लॉक टावर चौक से बायीं तरफ टर्न लेकर मसूरी रोड पर आ गए। थोड़ी देर बाद मसूरी को
बाहर से ही टाटा – बाय बाय करके धनोल्टी रोड पर पहुँच गए। मसूरी से धनोल्टी लगभग
32 किलोमीटर दूर है और लगभग पूरा रास्ता हमें घने कोहरे में ही मिला । दोपहर तीन
बजे तक हम धनोल्टी पहुँच गए । दूसरा ब्रेक यहाँ लिया गया , खाना खाने के साथ थोड़ा धनोल्टी
ईको पार्क के पास घूमे और फिर आगे अपनी मंजिल खैट पर्वत की तरफ़ चल दिए। थोड़ी देर
बाद चंबा और फिर टिहरी डैम होते हुए घनसाली मार्ग पर आ गए । हमारा आज का लक्ष्य थात
गाँव पहुंचना था जहाँ से खैट पर्वत के लिए ट्रेक शुरू होता है । टिहरी डैम से थात
गाँव की दुरी लगभग 45 किलोमीटर है । टिहरी डैम के बाद घनसाली मार्ग भिलंगना नदी के
साथ-साथ ही है । यहाँ से 15 किलोमीटर आगे पीपलडाली के पास से बायीं तरफ एक रास्ता
मुख्य मार्ग को छोड़ कर नीचे नदी की तरफ उतरकर भिलंगना नदी पर बने पुल से नदी पार
करके हम नदी के दूसरी तरफ पहुँच गए । यहाँ
से थात गाँव की दुरी लगभग 30 किलोमीटर है।
इस तरफ सड़क काफी संकरी है और कई छोटे -2 गाँवो से होकर गुजरती है। सड़क पर कोई
ट्रैफिक नहीं था । इक्का दुक्का वाहन ही आते- जाते मिल रहे थे। यही सडक आगे लंबगांव, नौघर, चौरंगी खाल होते हुए उत्तरकाशी भी निकल जाती है । पुल से लगभग 9-10 किमी बाद
मुख्य सड़क से दाई तरफ ऊपर की ओर थात गाँव के लिए रास्ता कटता है जो रजाखेत गाँव
होते हुए मुलानी और सुनहरी गाड की तरफ निकल जाता है । रजाखेत बड़ा गाँव है और यहाँ आसपास
के गाँवों के लिए बैंक और मार्किट भी है । इस गाँव से आगे रास्ता बिलकुल सुनसान है
। रास्ते में एक-आध गाँव ही है । यही पास से भी चौंड-भटवाडा होते हुए भी एक रास्ता खैट
पर्वत के लिए जाता है। चौंड-भटवाडा के रास्ते यह 6 किमी का ट्रेक है लेकिन इसकी
जानकारी हमे बाद में मिली । रजाखेत से आगे सड़क की हालत और उस पर बिखरे पेड़ों के
पत्तों और टहनियों से ये साफ़ जाहिर था कि इस सड़क पर शायद ही कोई आता-जाता हो ।
जगह- जगह सड़क पर पहाड़ों से आने वाले छोटे-2 पत्थर भी बिखरे पड़े थे । इस रास्ते के
सुनसान होने का कारण हमें बाद में समझ आया । 8-10 किमी आगे पड़ने वाले मुलानी ,थात
और सुनहरी गाड जैसे गाँवो को घनसाली मार्ग पर जाने के लिए घोंटी पुल वाला रास्ता
काफी नजदीक पड़ता है जबकि रजाखेत और आस पास के गाँवों को पीपलडाली पुल से । इसलिए
बीच के आठ दस किलोमीटर का रास्ता सुनसान ही रहता है । इसी सुनसान रास्ते पर हमारी
तेंदुए से मुलाकात हो गयी ।
जैसा की मैंने बताया कि सड़क पर छोटे-2 पत्थर और पेड़ो के सूखे पत्ते गिरे हुए
थे । सड़क भी कई जगहों से टूटी हुई थी और आवाजाही कम होने के कारण सड़क के बीच में
ही छोटे -2 कई झाड़ीनुमा पौधे भी लगे हुए थे। इसलिए मैं कार काफी धीमी गति से चला
रहा था ,शायद 10-15 की स्पीड ही रही हुई होगी । दिन ढलने के कारण अब तक हल्का
अँधेरा भी हो चूका था । सड़क के किनारे खाई की तरफ सुरक्षा के लिये छोटी -2 स्लैब्स
( दीवार ) बनी हुई थी। इसी एक दीवार पर तेंदुआ बैठा हुआ था । तेंदुआ मेरी साइड ही
था लेकिन अँधेरा और घुमावदार सड़क के कारण ये दूर से दिखाई नहीं दिया । जब कार इसके
पास से निकली तो ये दीवार से छलांग लगाने की मुद्रा में था ,शायद गाड़ी देखकर रुक
गया । काफी सेहतमंद तेंदुआ था । इसे देखकर एक बार तो मेरी हवा टाइट हो गयी थी ।
मेरी साइड की खिड़की का शीशा भी पूरा खुला हुआ था ,यदि तेंदुआ छलांग लगा देता तो सीधा गाड़ी
में ड्राईवर सीट पर आ जाता लेकिन उसने हमें इग्नोर किया । मैंने जल्दी से खिड़की का शीशा बंद किया और हम आगे गाँव की तरफ बढ़ गये।
आगे एक छोटा सा गाँव मिला । सड़क पर एक छोटी से करियाने की दुकान मिली ,उससे थात
गाँव का पूछा तो उसने बताया बस एक किलोमीटर आगे मलानी गाँव है वहीँ से थात गाँव का
रास्ता कटेगा। मलानी गाँव पहुँचते -2 लगभग साढ़े सात बज चुके थे और पूरा अँधेरा हो
चूका था गए। यहाँ भी एक करियाने की दुकान
पर पूछा तो उसने बताया की यहीं से रास्ता जायेगा । हमने रुकने की जगह पूछी तो उसने
टालते हुए मना कर दिया कि यहाँ कोई होटल या गेस्ट हाउस नहीं है, आगे सुनहरी गाड
जाओ, शायद वहाँ जगह मिल जाये नहीं तो घनशाली जाना पड़ेगा । दुकान में दो लोग थे और पहाड़ों
की एक मशहूर कहावत “ सूर्य अस्त ,पहाड़ी मस्त “ को चरितार्थ करने की पूरी तैयारी
में थे । उनकी तैयारी देखकर मुझे लगा कि भले लोग है और यहाँ थोड़ी सी कोशिश की जाये
तो काम बन सकता है । हमने अपना परिचय दिया , आने का कारण बताया और दो –चार मिनट
गुफ्तगू की। दुकानदार ने किसी से फोन पर बात की और हमारे रुकने का प्रबंध हो गया ।
मेरे मित्र अनुराग पंत जी टिहरी के रहने वाले हैं , इस यात्रा के दौरान हम उनसे
लगातार सम्पर्क में थे । उनसे भी दुकानदार- रोशन लाल की फोन पर बात करवा दी । जो
थोड़ा बहुत संकोच बचा था वो भी दूर हो गया । थोड़ी देर बाद हम वहां के पंचायत समिति
के मेम्बर परमवीर के भाई के घर पर थे । पहले चाय पी फिर काफी देर बैठकर गपशप चलती
रही। जब हमने उन्हें तेंदुए वाली बात बताई तो उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ ,उनके
लिए ये सामान्य बात थी । उन्होंने बताया कि यहाँ कई तेंदुए हैं और गाँव में शायद
की कोई हो जिसको यहाँ आते-जाते तेंदुआ ना मिला हो लेकिन तेंदुए ने आजतक किसी भी गाँव
वाले पर हमला नहीं किया वो हमेशा भेड़-बकरी जैसे छोटे जानवरों को ही अपना शिकार
बनाता है ।
जहाँ हमने रात का खाना खाया, उस घर में ऊपर दो कमरे खाली थे लेकिन उनमे आज ही
फर्श डाला गया था जो अभी सुखा नहीं था तो खाना खाने के बाद रात लगभग 11 बजे हम
रोशन लाल के साथ, पास ही स्तिथ उसके घर सोने के लिए चले गए । सुबह समय से उठ कर नित्यकर्म
से निवृत होकर तैयार हो गए । तब तक घर पर नाश्ता तैयार हो चूका था । नाश्ता करने
के बाद हमने रोशन लाल से रुकने/खाने का खर्च पूछा तो उसने कुछ भी लेने से मना कर
दिया। तब हमने पास ही खेल रही उसकी छोटी सी बेटी को यथा-उचित पैसे पकड़ा दिए। ट्रैक
पर हमारे साथ जाने के लिए रोशन लाल ने गाँव के ही एक लड़के को बोल दिया था ताकि हम
कहीं रास्ता न भटके । वो लड़का अपने साथ अपने एक दोस्त को भी ले आया और हम चारों थात
गाँव की तरफ चल दिए । थोड़ी ही देर में हम सुबह 8:30 बजे थात गाँव पहुँच गए । थात
गाँव से खैट पर्वत के शिखर पर बने मंदिर की दूरी लगभग तीन किलोमीटर है और लगभग ढेड़
घंटे में हम मंदिर में पहुंच चुके थे । मंदिर में हमारे अलावा और कोई भी नहीं था ।
शायद कई दिन से यहाँ कोई आया भी नहीं था लेकिन यहाँ बंदर बहुत थे । आसपास दूर-दर तक कोई दूसरा पर्वत शिखर न होने से इस इकलौते शिखर पर पहुंचकर ऐसा आभास होता है मानों हम
वसुंधरा की छत पर पहुंच गए हैं। यहाँ से एक तरफ हिमालय की चोटियों का शानदार व्यू
दीखता है तो दूसरी तरफ टिहरी डैम से बनी विशाल टिहरी झील । काफी देर यहाँ समय
गुजारने के बाद हमने वापिसी शुरू कर दी । थात गाँव पहुंचकर दोनों गाइड अपना-2
शुल्क लेकर विदा हो गए और हम अपनी कार से घोंटी पुल होते हुए घनशाली रोड पर आ गए
और आगे श्रीनगर वाली सड़क पकड़ अपनी आज की मंजिल जयालगढ़ चले गए।
अब कुछ जानकारी यहाँ के बारे में :
खैट पर्वत उत्तराखण्ड के ऋषिकेश –उत्तरकाशी मार्ग पर स्तिथ चम्बा से 70 किलोमीटर और
टिहरी डैम से लगभग 45 किलोमीटर दूर किलोमीटर टिहरी जिले में थात गांव के पास ही एक
गुंबदाकार का पर्वत है जिसे खैट पर्वत कहते हैं।
समुद्रतल से करीब 7200 फीट की ऊचाई पर स्तिथ यह पर्वत गुंबद आकार की एक मनमोहक चोटी है। विशाल घाटी में
स्थित ये अकेला पर्वत दूर से अद्भुत दिखाई देता है। खैट पर्वत के चरण स्पर्श
करती भिलंगना नदी का दृश्य भी देखते ही बनता है। कहा जाता है कि खैट पर्वत की नौ
श्रृंखलाओं में नौ परियों का वास है। ये नौ देवियां नौ बहनें हैं। जो आज भी यहां
अदृश्य शक्तियों के रूप में यहां निवास करती हैं और यहाँ लोगों को अचानक ही कहीं
परियों के दर्शन हो जाते हैं। । इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अनाज
कूटने के लिए जमीन पर बनाई जाने वाले ओखलियाँ यहां दीवारों पर बनी है। अद्धभुत बात यह है कि इस वीराने में स्वत ही अखरोट और लहसुन की खेती भी होती
है। अखरोट के बागान लुकी पीड़ी पर्वत पर मां भराड़ी का मंदिर है जो एक गुफा की तरह
है । भूलभुलैय्या जैसी गुफा जहां नाग आकृतियां उकेरी हुई हैं।
थात गॉव से करीब 5-6 किलोमीटर की दूरी पर खैटखाल नामका एक मंदिर है जिसे यहाँ के
रहस्यों का केन्द्र माना जाता है। मान्यता है यहाँ माता के मंदिर में रात को
परियां पूजा करने आती है ।उनकी पायल और चूड़ियाँ के छनकने की और संगीत की आवाज यहाँ
के लोगों को अक्सर सुनाई देती है यहां मंदिर में हर साल जून के महीने में मेला
लगता है। जो भी है यहां रहस्य और रोमांच का अद्भुत संगम है। अगर रोमांच चाहते हैं
तो एक बार जरूर यहां की सैर कर आएं। परियां मिले ना मिले लेकिन आपका अनुभव किसी
परिलोक की यात्रा से कम नहीं होगा।
कैसे पहुँचे : खैट पर्वत जाने के लिए आपको थात गाँव होकर जाना पड़ेगा लेकिन ये गाँव सड़क पर
नहीं है इस गाँव तक पहुँचने के लिए चौन्दाना और मुलानी गाँव से रास्ता जाता है जो
2-3 किमी लम्बा है । चौन्दाना और मुलानी- ये
दोनों गाँव सड़क पर हैं । मुलानी गाँव से थात गाँव तक पक्की सड़क बनाने के लिए पहाड़
की कटाई हो चुकी है लेकिन अभी सड़क बनी नहीं है । सारा रास्ता उबड़-खाबड़ और पथरीला है।
यदि आपके पास अपनी गाड़ी या बाइक है तो थात गाँव तक ले जा सकते हैं लेकिन ध्यान रहे
अभी रास्ता बहुत ख़राब है । मार्च तक सड़क बन जाने की संभावना गाँव वाले बता रहे थे ।
टिहरी डैम से थात गाँव की दुरी लगभग 45 किलोमीटर है । टिहरी डैम के बाद घनसाली
मार्ग भिलंगना नदी के साथ-साथ ही है । यहाँ से 15 किलोमीटर आगे पीपलडाली के पास से
बायीं तरफ एक रास्ता मुख्य मार्ग को छोड़ कर नीचे नदी की तरफ उतरता है । भिलंगना
नदी पर बने लोहे के पुल से नदी पार करके नदी के दूसरी तरफ पहुँचना है । पुल से थात
गाँव की दुरी लगभग 30 किलोमीटर है। रास्ते में पड़ने वाले गाँव चौड-भटवाडा होते हुए
भी एक रास्ता खैट पर्वत के लिए जाता है। चौड-भटवाडा के रास्ते यह 6 किमी का ट्रेक
है। थात गाँव जाने के लिए दूसरा रास्ता भी है जो इस रास्ते से छोटा और अधिक
सुविधाजनक है । इसी रास्ते से हम वापिस आये थे । पीपलडाली से आगे घनसाली की तरफ
चलते हुए भिलंगना नदी पर बने घोंटी पुल को पार करके मुलानी गाँव की तरफ़ जाना है जो
पुल से लगभग 10 किलोमीटर की दुरी पर पड़ेगा ।
रुकने और खाने-पीने की व्यवस्था : इस ट्रैक पर रुकने और खाने-पीने
की कोई व्यवस्था नहीं है । बेहतर है की आप रात को चम्बा, टिहरी या घनसाली रुकें । सुबह
जाकर शाम तक वापिस कमरे पर आराम से आ सकते हैं । यदि आपके पास अपना टेंट और
स्लीपिंग बैग तो फिर आप कहीं भी रुक सकते हैं । मंदिर में रुकने के लिए एक दो कमरे
बने हैं और वहाँ रात को रुकने की कोई मनाही नहीं है लेकिन बंदरों से सावधान रहें । कम
आवाजाही होने के कारण मंदिर के आस-पास बंदरों का साम्रज्य है। अपना खाना और पीने
के लिए पानी जरूर साथ ले जाएँ । सड़क पर स्थित मुलानी गाँव से आगे मंदिर तक रास्ते में खाने का और थात गाँव से आगे पानी
का कोई स्त्रोत नहीं है ।
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पौंटा
साहिब से आगे |
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धनोल्टी
रोड |
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धनोल्टी |
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धनोल्टी |
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खैट
पर्वत की ओर |
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टिहरी लेक |
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टिहरी लेक |
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टिहरी लेक |
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धनोल्टी
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थात गाँव का स्कूल |
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थात गाँव का मंदिर |
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थात गाँव का दूसरा मंदिर |
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थात गाँव |
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थात गाँव |
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थात गाँव |
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खैट
पर्वत की तरफ़ |
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खैट
पर्वत की तरफ़ |
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खैट
पर्वत से दिख रहा दृश्य |
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खैट
पर्वत का छोटा मंदिर |
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मुख्य मंदिर से |
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मुख्य मंदिर |
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मुख्य मंदिर में मैं |
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मुख्य मंदिर |
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भिलंगना नदी पर बना घोंटी पुल |
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भिलंगना नदी पर बना घोंटी पुल |
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श्रीनगर मार्ग से दिख रहा खैट
पर्वत शिखर |
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खैट
पर्वत से दिख रही हिमालयन चोटियाँ |
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खैट
पर्वत से दिख रही हिमालयन चोटियाँ |
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खैट
पर्वत से दिख रही हिमालयन चोटियाँ |
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खैट
पर्वत से दिख रही हिमालयन चोटियाँ |
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खैट
पर्वत से दिख रही हिमालयन चोटियाँ |
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खैट
पर्वत से दिख रही भिलंगना
नदी और पीपल डाली वाला पुल |
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भिलंगना वैली |
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टिहरी लेक |
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खैटखाल मंदिर में देवी प्रतिमा |
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खैटखाल मंदिर |
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सुखविंदर |
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रात रुकने के लिए खुला कमरा |
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हमारे दो गाइड |
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ट्रेक पर मिलने वाले फूल |
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ट्रेक पर मिलने वाले फूल |
बहुत अच्छी यात्रा रही। साथ में काफी सारी फ़ोटो देखने को भी मिली। आपका आभार
ReplyDeleteSachin3304.blogspot.in
धन्यवाद सचिन भाई जी .
Deleteनरेश भाई,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख है।
आपको बहुत साधुवाद।
दो तीन शब्द ठीक करने हैं, उत्तरकाशी वाले मार्ग पर, लंबगांव-नौघर(नौगड नहीं)-चौरंगी खाल है।
और बराडी देवी नहीं, भराड़ी देवी हैं।
धन्यवाद डोभाल साहब . आप के बताई गयी त्रुटियों को ठीक कर दिया है .धन्यवाद.
Deleteचौड- भटवाड़ा को भी चौंड-भटवाड़ा लिखें प्लीज
ReplyDeleteये भी ठीक कर दिया है .धन्यवाद डोभाल साहब.
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी नरेश भाई, वैसे तो ऐसे सुनसान रास्तो पर जंगली जानवरों का मिलना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन आगे जाने वाले घुमक्कड़ों के लिए उपयुक्त जानकारी है ! पर्वत से शानदार दृश्य दिखाई दे रहे है, भिलंगना नदी और पीपल डाली वाले पुल पर जाने के लिए कोई परमिशन लेनी होती है क्या ? वहां से तो शानदार दृश्य दिखाई देता होगा
ReplyDeleteधन्यवाद चौहान साहब. यहाँ जाने के लिए किसी भी प्रकार की परमिशन नहीं लेनी होती. आराम से जा सकते हैं .
Deleteबहुत बढ़िया लेख। खैंट पर्वत के बारे में तो सुना था लेकिन लेख पढ़ने को नही मिला। धन्यवाद लेख के लिये।
ReplyDeleteवैसे मुझे याद आ रहा है उस समय बीनू जी (या कोई दूसरा) फेसबुक पर लाइव भी आया था गाड़ी चलाते समय।
धन्यवाद उमेश पाण्डेय जी . बीनू भाई हमारे बाद में गए थे जब फेसबुक पर लाइव आया था.
Deleteआभार शास्त्री जी .
ReplyDeleteशानदार व रोमांचक जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteधन्यवाद राजन जी.
Deleteसुन्दर तस्वीर, बढिया यात्रा वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद प्रकाश मिश्रा जी .
Deleteकई बार इसे टीवी पर देखा है। आज आपका ब्लॉग पढ़कर बहुत ही सुन्दर और उपयोगी जानकारी मिली ! बेहतरीन दृश्य दिख रहे हैं खैन्ट से।
ReplyDeleteधन्यवाद योगी सारस्वत जी .
Deleteबढ़िया जानकारी नरेश भाई
ReplyDeleteधन्यवाद संजय भास्कर जी .
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ReplyDeleteहमारा नाम शिवम पांडे है उत्तर प्रदेश
हमारा कुछ समय के बाद आने वाला जीवन वही होगा और भी इससे दैवीय कोई जगह हो जंगलों या पहाड़ों में तो हमे बताए जहा इंसान न जाते हो जिसमे हमे साधना करने में कोई त्रुटि न हो
ReplyDeleteहम एकांत साधना वास के लिए जगह चुनाव कर रहे हैं आप हमारी मदद करें भगवान के रास्ते पे जाने का विचार है जिंदा रहे तो मुलाकात होगी
ReplyDeleteइतनी बहुमूल्य जानकारी साझा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। अच्छा काम कर रहें। taxi services
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