अभी तक मैंने यात्रा
वृतांत ही लिखे हैं लेकिन आज कुछ हटकर लिख रहा हूँ । अपनी माँ के साथ बिताये पलों
और ख़ासकर माँ के साथ बिताये अंतिम क्षणों को लेखनी की सहायता से
कहना चाह रहा हूँ।
माँ भगवान से भी बढ़कर है क्यूंकि भगवान तो हमारे नसीब में सुख और दुख दोनो
देकर भेजते हैं, लेकिन हमारी माँ हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ सुख ही देना चाहती है। माँ त्याग, बलिदान, क्षमा, धैर्य, ममता की प्रतिमूर्ति होती है । वैसे तो नारी के कई रूप हैं
जैसे माँ, बहन, बेटी, बहु एवं सास लेकिन माँ का रूप ही सबसे बड़ा माना जाता है । ये बातें तो सभी
जानते हैं और बहुत से मानते भी हैं तो मैं सीधा अपनी बात पर आता हूँ ।
मई 2010: माँ पिछले कुछ दिनों से
अस्वस्थ चल रही थी । हार्ट की प्रॉब्लम थी । डाक्टरों के अनुसार दिल के एक वाल्व
में जन्म से ही छेद था । पहले समस्या कम थी ,कभी कभी परेशानी होती थी , दवाई लेने
से ठीक हो जाती थी लेकिन जैसे जैसे उम्र बढ़ती गयी बीमारी भी बढती गयी । दवाई और
परहेज दिनचर्या का हिस्सा बन गये । एक बार हार्ट अटैक भी आया ,तबियत ज्यादा ख़राब
हुई तो माँ एक सप्ताह हस्पताल में दाखिल भी रही। अब डाक्टर ऑपरेशन के लिये कहने
लगे लेकिन माँ ऑपरेशन के नाम से ही डरती थी । एकदम मना कर देती। हमारे कहने-समझाने
पर भी न मानती ।
पिछले चार पाँच दिन
से तबियत ज्यादा ख़राब हो गयी थी । एकदम से सांस फूल जाता । चलना फिरना काफी कम हो
गया । लेटने से भी सांस फूल जाता ,घबराहट और बैचनी एकदम से बढ़ जाती । हर दुसरे दिन हार्ट
स्पेशलिस्ट डाक्टर के पास ले जाते । उस दिन तो डाक्टर ने माँ को झाड़ ही दिया बोले
ऑपरेशन क्यूँ नहीं कराना । आजकल तो ये ऑपरेशन आम बात हो गए हैं। यदि ऑपरेशन नहीं
करवाओगे तो ज्यादा देर जी नहीं पाओगे ! आख़िरकार माँ ऑपरेशन के लिये मान गयी ।
जीने की इच्छा किसे नहीं होती ।
अगले ही दिन मोहाली
के फोर्टिस हॉस्पिटल में बात की गयी । बड़े भाई ने ,जो चंडीगढ़ ही जॉब करते हैं
,वहां से मालूम कर एक अच्छे हार्ट स्पेशलिस्ट डाक्टर से अपॉइंटमेंट ले ली । पूरी मेडिकल
हिस्ट्री देखने के बाद डाक्टर ने 12 मई को माँ को लाने को बोला और कहा कि कुछ
जरूरी टेस्ट करने के बाद शाम तक ऑपरेशन कर देंगे । तब तक के लिये जो दवाई चल रही
थी उसे ही जारी रखने को कहा ।
हम तो थोड़े से
निश्चिंत हुए लेकिन माँ घबराई हुई थी । शायद उनकी इच्छा थी की बिना ऑपरेशन के ही
वो ठीक हो जाएँ । मां कहती नहीं थी , लेकिन मैं महसूस करता था । मां की तकलीफ मेरे जीवन
का अंतहीन दुख था।
जब भी माँ की तबियत
ख़राब होती थी तो मैं या मेरी पत्नी माँ के पास ही सोते थे ताकि रात को यदि जरूरत
पड़े तो माँ को आवाज न लगानी पड़े। चूँकि घर के एक ही कमरे में AC लगा था तो
गर्मियों में हम सब एक ही कमरे में सो जाया करते थे । माँ मना करती थी ,ठंडी हवा
का बहाना भी करती थी लेकिन मैं जिद्द से माँ को अपने साथ कमरे में ही सुलाता था ।मुझे
ये डर रहता था कि कहीं माँ दुसरे कमरे से जरूरत पडने पर मुझे बुलाती रहे और मैं
बंद कमरे में AC की ठंडी हवा में खराटे लगाता रहूँ और कुछ अनहोनी हो जाये । इसी
अपराधबोध से बचने के लिये माँ को अपने पास ही सुलाता था ।
8 मई की रात माँ
काफी बैचैन रही । सोने के लिये लेटती तो थोड़ी देर बाद ही साँस फूलने लगता ,उठ कर
बैठ जाती और बैठने से सांस नार्मल हो जाता। मैं भी पत्नी और दोनों बेटियों के साथ
उसी कमरे में था । ऐसी बैचनी पहले कभी न हुई थी यह देख मैंने माँ को सोफ़े पर इस
तरह बैठा दिया की वो बिना लेटे भी आराम से सो सकें । माँ की आँख लग गयी तो हम भी
सो गए ।
अगले दिन (9 मई ) माँ
काफी ठीक थी । एक दो रिश्तेदार माँ का हालचाल पता करने आये। गली से भी कुछ औरते आई।
माँ उनसे बातें करती रही । शाम को मैं जब ऑफिस से घर आया तो माँ बरामदे में ही
बैठी थी । हमने चाय इकठ्ठे पी (माँ शाम की
चाय मेरे ऑफिस से आने के बाद हमारे साथ ही पीती थी) । थोड़ी देर माँ से बात करता
रहा । फिर माँ ने मुझे कुर्सी बाहर आंगन में ले जाने को कहा । काफी देर मेरे साथ
बाहर आंगन में बैठी रही । दिन ढलने पर हम अन्दर कमरे में आ गए । रात को भैया- भाभी
भी मिलने आये। माँ की तबियत ज्यादा ठीक न देख सुबह फ़िर डाक्टर के पास ले जाने का
निर्णय किया।
रात को हम फिर सब एक
साथ ही सो रहे थे । पहले तो माँ सो गयी लेकिन जल्दी ही उठ गयी । माँ को जगा देख कर
मेरी पत्नी भी उठ गयी और काफ़ी देर माँ के पास बैठी रही । माँ ने उसे बार बार सोने
को कहती रही लेकिन वो सोई नहीं । फिर मैं
जग गया और कुछ देर बाद जब माँ और पत्नी दोनों सो गए तो मैं भी सो गया । माँ आज कुछ
बैचैन लग रही थी । बार बार समय पूछ रही थी ।
10 मई 2010, रविवार
सुबह चार बजे माँ
फिर जग गयी। थोड़ी देर बैठी रही मुझसे बात करी फिर नहाने चली गयी । नहा कर आई तो
मैंने पूछा ,माँ चाय पिओगे ,बनवा दूं । माँ के हाँ कहने पर मेरी पत्नी चाय बनाने
चली गयी । लेकिन चाय बनने से पहले ही माँ सो गयी । लगभग एक घंटे बाद माँ जग गयी और
मुझसे पूछा ,नरेश अभी तक चाय नहीं बनी । मैंने बताया की माँ चाय तो कब की बन चुकी
है ,आप सो गए थे । मैंने दोबारा ताजी चाय बनाने को कह दिया ,जब चाय बन कर
आयी तो माँ ने सिर्फ दो घूंट ही चाय पी फिर लेट गयी। मुझे कुछ अजीब सा लगा फिर सोचा शायद माँ रात को सोयी नहीं
इसलिए नींद आ रही होगी ।
थोड़ी देर बाद मंझला
भाई आया उसे मैंने सारी बात बताई ।पता नहीं भाई के मन में क्या आया बोला गंगा जल
लाओ । माँ को उठाया ,थोड़ा गंगा जल पिलाया ।माँ फिर सो गयी । मैंने अपने बड़े भाई को
,जो घर से थोड़ा दूर रहते हैं, फोन कर दिया और कहा कि मुझे माँ की तबियत ठीक नहीं
लग रही । जल्दी से नाश्ता करके गाड़ी ले आओं । सुबह आठ बजे तक भैया भाभी आ गए ।माँ
को उठाया , माँ नहीं उठी, सोये- सोये माँ बेहोशी की हालत में पहुँच गयी थी । ऊपर
नीचे के दांत आपस में भिचे हुए थे लेकिन सांस सामन्य थी । हम जल्दी से माँ को गाड़ी
में डालकर हॉस्पिटल ले गए ।
डाक्टर को इमरजेंसी में बुलाया गया । काफी समय
से माँ की इलाज़ इन्ही डाक्टर से चल रहा था । सारी मेडिकल हिस्ट्री जानती थी ।
जल्दी से उन्होंने चेकअप किया । पल्स चेक के लिये एक मीटर लगा दिया । धीरे धीरे
पल्स बैठने लगी । डाक्टर ने अपनी पूरी कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । कमरे
में हम तीनों भाई ,बड़ी भाभी ,डाक्टर और एक नर्स थी । डाक्टर ने बताया की हार्ट फ़ैल
हुआ है । अब कोई चांस नहीं है कहीं और ले जाने का भी कोई फायदा नहीं । सिर्फ़ कुछ
पल बचे हैं । हम सबकी आखें भर आई । माँ की ममता हमारी आँखों से तरल बन कर बहने लगी
। तभी अचानक माँ ने आँखे खोल ली । माँ ने अपनी ममता भरी आखों से हमें देखा । शायद
कुछ कहना चाह रही थी लेकिन बोली नहीं सिर्फ़ देखती रही । फिर माँ की आखें धीरे –धीरे
फैलने लगी उधर मीटर पर पल्स तेजी से बैठ रही थी। कुछ ही क्षणों में हमारे देखते
देखते माँ हमें छोड़ कर हमेशा के लिये जा चुकी थी । तन और मन से बेबस हम सिर्फ़ देखते रहे ।
पिता जी दस वर्ष
पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे अब माँ का यूँ
अचानक चले जाना मेरे लिये एक बड़ा झटका था । मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था की अब माँ
मेरे साथ नहीं रही ।
आज के बाद मैं माँ
से कभी बात नहीं कर पाऊँगा । न देख पाऊँगा , न मन की कह पाऊँगा, न माँ की आवाज सुन
पाऊँगा। न ही कभी माँ की गोद में सर रखकर माँ से बातें कर सकूँगा ।
आज की सुबह मैंने
आखिरी बार माँ से बात की । आख़िरी बार माँ का स्पर्श मिला, सुबह ही तो माँ ने
आशीर्वाद दिया था ।
अब के बाद सुबह तो
रोज होगी लेकिन माँ कभी नहीं होगी ।
ये सुबह अब कभी न
आएगी ।
मन के एक कोने में
अँधेरा हमेशा के लिये पसर गया था ।
बचपन से ही मैंने
खुद को माँ के ज्यादा करीब पाया । सबसे छोटा था तो माँ से लाड़ भी खूब लड़ाता था ।
कई बार झगड़ भी पड़ता लेकिन फिर मेरा मन दुखता, खुद पर ग्लानी होती तो झट से माँ की
गोद में घुस जाता ।
माँ को मनाना दुनिया
में सबसे आसान है । बस आप निश्छल ,निस्वार्थ भाव से माँ की गोद में सर रख दो । माँ
गुस्सा होगी लेकिन धीरे धीरे स्वचालित तरीके से माँ के ममता भरे हाथ आपके सर पर आ
जायेंगे । मुझे भी माँ की गोद में बड़ा सकून मिलता था । शादी हो गयी थी ,पिता भी बन
गया था तब भी माँ की गोद में सर रख कर लेट जाता था । अब सब सिर्फ़ यादें हैं ।
हॉस्पिटल से जब
वापिस घर जा रहे थे तो मैं बेसुध सा हो रहा था । जोर का झटका अचानक लगा था । मेरे
फ़ोन पर कुछ-2 अन्तराल के बाद मेसेज आ रहे थे ,पहले तो ऐसा कभी भी नहीं हुआ था । आज
कोई दिवाली,क्रिसमिस या नया साल भी न था । पता नहीं क्यूँ ये मेसेज आ रहे थे ?
एक दो बार देखने की
कोशिश की लेकिन तभी कोई कॉल आ जाती । नहीं देख पाया ।
सभी अपने मित्रों
रिश्तेदारों को खबर कर दी गयी और माँ के अंतिम संस्कार की तैयारी के लिये अपने
दोस्तों को ज़िम्मेवारी बाँट कर जब बैठा हुआ माँ के बारे में सोच रहा था तभी फिर एक
मेसेज आया । गुस्सा भी आया लेकिन फ़िर सोचा कौन बार बार मेसेज भेज रहा हैं देखता हूँ ।
8-9 मेसेज थे । सभी
अलग अलग जानकारों के ।
लेकिन सन्देश सभी में एक
ही था ।
“ Happy Mother’s
Day “
लगा जैसे दुःख कई गुना बढ़ गया हो ।
उस दिन से पहले कभी
मालूम नहीं था ये mothers डे कब होता है ।
उस दिन के बाद कभी
भुला नहीं ।
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
भाई क्या टिप्पणी करूं आपकी इस पोस्ट पर। मां शब्द ही ब्रह्मांड है। मां ही सबकुछ अपने में संजोए रखती, है। मां जिते जी अपनी औलाद को बैचेन परेशान नही देख सकती। मां रातभर जाग कर अपने बिमार संतान के सर पर अपना आशिष रखती रहती है..... भाई आपकी पोस्ट पढकर बस थोडी आंखे नम हो गई। बस अपने पापा का अंतिम समय याद आ गया।
ReplyDeleteअब क्या कहूँ सचिन भाई । जो याद आता गया लिखता गया ।
Deleteमाता पिता जैसा कोई नहीं ।।💐💐
🙏🙏🙏 पढ़ कर आँखे भर आईं
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी ।लिखते लिखते मेरी आँखें कई बार भर आयी । 😢😢
Deleteमाँ तो माँ है। माँ है तो सब तो सब कुछ माँ नहीं तो कुछ भी नहीं। पोस्ट पढ़कर, आँखों में नहीं आ गयी और दिल ग़मज़दा हो गया, आपने कितने हिम्मत करके ये पोस्ट लिखी होगी,
ReplyDeleteधन्यवाद अभ्यानंद जी ।कुछ यादें अमर होती हैं ।💐
Delete🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद राम भाई ।💐
Delete
ReplyDeleteबिल्कुल सही और बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है।
बिल्कुल ऐसे लगा कि सब कुछ आखो के सामने घटित हुआ हो।।
😓😓😓😓😓😓😓
ऐसी सुबह कभी ना आए
आप ने ये सब लिख कैसे लिया😢😢😢😢😢
धन्यवाद जांगड़ा भाई ।💐💐
Delete🙏🙏💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद ॐ भाई💐💐
Deleteनरेश जी,इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरे पास शब्द नही कुछ लिखने के बाद ।
ReplyDeleteअपनी आखिरी सांस में भी माँ ने आँखे खोलकर अपने बच्चों को देखा , आशीष दिया और चल दी किसी दूसरे लोक ....
जब पढ़ते समय मेरी आँखें नम है, तो सिर्फ कल्पना ही कर सकता हूँ , कि लिखते वक़्त आपने कितनी बार आंसू पोंछे होंगे ।
माँ तुझे सलाम
धन्यवाद पाण्डेय जी । बहुत दिनों से इसे लिखने की सोच रहा था ।आखिर अब हिम्मत जुटा ही पाया ।💐💐
Deleteनरेश जी,इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरे पास शब्द नही कुछ लिखने के बाद ।
ReplyDeleteअपनी आखिरी सांस में भी माँ ने आँखे खोलकर अपने बच्चों को देखा , आशीष दिया और चल दी किसी दूसरे लोक ....
जब पढ़ते समय मेरी आँखें नम है, तो सिर्फ कल्पना ही कर सकता हूँ , कि लिखते वक़्त आपने कितनी बार आंसू पोंछे होंगे ।
माँ तुझे सलाम
नरेश जी,इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरे पास शब्द नही कुछ लिखने के बाद ।
ReplyDeleteअपनी आखिरी सांस में भी माँ ने आँखे खोलकर अपने बच्चों को देखा , आशीष दिया और चल दी किसी दूसरे लोक ....
जब पढ़ते समय मेरी आँखें नम है, तो सिर्फ कल्पना ही कर सकता हूँ , कि लिखते वक़्त आपने कितनी बार आंसू पोंछे होंगे ।
माँ तुझे सलाम
सहगल साहब कोई शब्द् नही है मेरेपास आप की तरह मैंने भी अपने पिता जी को अचानक खोया है आज भी याद जब दूकान से घर आया तो वो दूसरे घर में थे समान रख कर उनको देखा सो रहे थे और मैं अपने कमरे में चला गया फिर पता नही क्या सुझा मुझे मैं वापस उनके कमरे में और मेरे देखते ही देखते एक हिचकी ली और हमे छोड़ गए
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई । माँ बाप का इस तरह से अचानक चले जाना बेहद दुखद होता है ।,💐💐
Deleteमेरे पास शब्द नहीं है इसे पढ़ने के बाद..हमने सिर्फ पढ़ा है आपने तो जिया है इसको लिखते वक़्त...बहुत ही करुण भावना आपने लिखी है की इमोशनल हो गया में भी आज
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई । जहाँ माँ हो वहां भावुकता तो होती ही है ।💐
Deleteमाँ ...
ReplyDeleteधन्यवाद श्याम भाई ।
Deleteलेती नहीं दवाई अम्मा,
ReplyDeleteजोड़े पाई पाई अम्मा।
दुःख थे परबत, राई अम्मा,
हारी नहीं लड़ाई अम्मा।
नरेश भाई, आपके दिल की आवाज़ पूरी शिद्दत से कलम के माध्यम से कागज़ पर उतर आई है और हम सब के दिलों को झकझोर गयी है। आज के दिन बस इससे अधिक कुछ नहीं कह पारहा हूँ। प्रणाम।
धन्यवाद सुशान्त जी । आप ने तो दोहे के माध्यम से सब कुछ कह दिया ।💐
Deleteसहगल साहब माँ बस माँ होती है और माँ की जगह कोई नहीं ले सकता । बड़ी मुश्किल से कई बार आँखें पोंछ कर पोस्ट पूरी कर पाया । एक तरफ आँखों के सामने आपकी पोस्ट चल रही थी दूसरी तरफ दिमाग में अपनी माँ के आखरी पल चल रहे थे ।
ReplyDeleteमदर्स डे का ये दर्द तो सहगल साहब माँ आपको सदा सदा के लिए दे गई ।
ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दे और उनका आशीर्वाद हम सब पर सदा बना रहे ।
धन्यवाद कौशिक जी .
Deleteआपने बिलकुल सही कहा- माँ बस माँ होती है और माँ की जगह कोई नहीं ले सकता ।
रुला दिया नरेश भाई आपने आज....
ReplyDeleteमाँ.......ब्रह्माण्ड छुपा है इस अकेले शब्द में दुनिया की कोई भी चीज कोई भी रिश्ता इस ख़लिश को ना भर सकता है जो माँ के ना होने से होती है..
प्रणाम आपको जो आप अपने भावों को शब्दों में पिरो सके..
धन्यवाद डाक्टर साहिब .
Deleteआप जैसे मित्रों के होंसले से ही ये सब लिख पाया वर्ना काफी मुश्किल था .
उफ ! तुमने मुझे 48 साल पीछे धकेल दिया नरेश !जब एक सुबह मेरी आँखों के सामने मेरी माँ का मरा शरीर लोग ले जा रहे थे और मैं भावशून्य अंतरिक्ष को ताक रही थी मेरे सामने मेरी गोद में दो छोटे भाई टुकुर टुकुर मुझे देख रहे थे 21मई 1970 का वो मनहूस दिन आज बरबस याद आ गया ,दिखावे के लिए हम मदर डे बोल तो देते है पर मदर का क्या महत्व है ये कोई उनसे पूछो जिनकी माँ नही होती ।
ReplyDeleteनरेश, आपकी माँ भक्ति ने मेरी आँखे खोल दी ,बहुत ही मार्मिक शब्दो को पिरोया गया है जिन्हें मैं पिरोने का साहस आज तक नही कर सकी । नम आंखों से आपकी माताजी को श्रद्धांजलि -^-
धन्यवाद बुआ जी .
Deleteआपका दुःख दर्द जानकार तो मुझे अपना दुःख कितना छोटा लग रहा है .कितनी कठिनाई झेली होगी आपने .
Sir you bring tear in my eyes
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ने के लिये धन्यवाद जितेंदर जी .
Deleteजब भी कोई अपना मरता है तो वो अकेला नही मरता, उसके साथ कुछ न कुछ हम भी मर जाते हैं। ज़िन्दगी भले ही एक सपना हो पर मृत्यु शास्वत है। हर एक की अपनी यादें हैं अपने किसी न किसी परिजन की मृत्यु की !
ReplyDeleteआपने हिम्मत की जो लिख दिया, हम जैसे तो साहस ही नही कर पाते। जीवन मरण इन्सान के वश में नही, है तो केवल उस मिले हुए समय का समुचित उपयोग करना। आप भाग्यशाली हो कि आपको अपनी माताजी का भरपूर प्यार भी मिला और सेवा का मौका भी, वो भी उनके अंत समय तक। आजकल जिस तरह की मशीनी ज़िन्दगी होती जा रही है और परिवार दरक रहे हैं, उसमे देखभाल और सेवा तो बहुत दूर अक्सर लोग अंतिम दर्शन तक नही कर पाते !वृद्धाश्रमों में पल पल प्रतिपल किसी अपने को देखने की चाहत रखते हुए प्रतिक्षण मौत का इंतज़ार करते हुए बुजर्ग भी आखिर इसी समाज के हैं और उनको इन जगहों पर छोड़ देने वाले उनके बच्चे भी !
आपकी माता जी ने आप सभी की परवरिश में भले ही कितनी दुख तकलीफें झेली हों, पर मुझे इस बात का पूर्ण विश्वास है कि अपनी जीवन यात्रा के अंतिम क्षणों में उन्हें अवश्य ही इस बात की सन्तुष्टि रही होगी कि उनकी मेहनत निष्फल नही गई। उनके बच्चे, अपने जीवन में यश और सफलता प्राप्त कर रहें हैं ! यह भावना ही इंसान को सभी सांसारिक इच्छाओं से मुक्त कर मोक्ष की तरफ ले जाती है।
माता जी की स्मृति को बहुत बहुत प्रणाम और सादर श्रद्धाजंलि ����
धन्यवाद पाहवा जी .
Deleteपा जी अपने शुरू की पंक्ति में ही कितना कुछ कह दिया कि जब भी कोई अपना मरता है तो वो अकेला नही मरता, उसके साथ कुछ न कुछ हम भी मर जाते हैं , कितना कटु सत्य है .
बहुत ही मार्मिक
ReplyDeleteबस यही लिख पाया
आंख नम है
पोस्ट पढ़ने के लिये धन्यवाद अजय जी .
Deleteनिःशब्द हूँ।
ReplyDeleteधन्यवाद जोगी भाई .
Deleteनिःशब्द
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ने के लिये धन्यवाद डाक्टर साहेब .
DeleteAapki shardha purn bhavnao ko mera pranaam.��������
ReplyDeleteAapne purn samarpit bhav se apni mata ki sewa ki. Bhagyashali weh mata. ������������
पोस्ट पढ़ने के लिये धन्यवाद शशि जी .
Deleteमाँ तो बस माँ होती है
ReplyDeleteसब की एक सी होती है... .
आँख भर आयी यह पढ़ कर सहगल साब!
धन्यवाद स्टोन साहब .
DeleteYour words made me weep reminded my father's last meeting with him .When ever i called him he asked kaisa hai mera beta i will never listen these words again before leaving he also looked at the family members who were there at that time but i was not really its so painful we don't want to with out our parents i can understand your pain very well. My tribute to her. Their memories will be cherished in the soul for the lifetime.
ReplyDeleteधन्यवाद निरुपमा जी .माता पिता से जुडी यादें अमिट होती हैं .
Deleteरूलाने के लिए धन्यवाद सहगल साहब।बहुत दिन से रोने की सोच रहा था पर दिल इतना मजबूत हो गया है कि जल्दी से रो भी नही पाता।
ReplyDeleteमां के जाने का दर्द मुझसे बेहतर शायद ही कोई जानता हो।
सयाने लोग कह गए हैं की दर्द बटने से बढता है ...आप भी लिख डालो अपना दर्द .
Deleteक्या कहू समझ ही नही आ रहा है | माँ आखिर माँ होती है उसी में सारा ब्रह्माण्ड छुपा होता है . उसका इस तरह से जाना हमेशा के लिए जीवन में एक खालीपन आ जाता है | आपकी आप बीती सच में अश्रुपूरित थी आत्मचिंतन थी...
ReplyDeleteसच में अब कुछ नही कहा जा रहा .... धन्यवाद आपका आपने आपनी आपबीती से रुबुरु करवाया....
धन्यवाद रीतेश जी .
Deleteकितनी खूबी से भावनाओं को शब्दों में पिरोया है आपने .बेहतरीन .
ReplyDeleteमाँ की ममता का कोई सानी नहीं .
नमन ..
सहगल साहब,आज आपकी पोस्ट पढ़ी ,आँसू थम नहीं रहे।मुझे तो माँ बचपन से ही नहीं मिली।पर कमी मन के कोने में हमेशा बनी रही।आप बहुत भाग्यशाली हो जो आपको माँ मिली।अगर माँ ऐसी होती है तो सबको माँ मिले कोई बिना माँ का ना हो।
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश भाई.
Deleteदुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है ..औरों का गम देखा तो मैं अपना गम भूल गया .
इस दुनिया में हर किसी को जाना है , ये दार्शनिक पहलू है जीवन का लेकिन जिसका प्रिय जाता है तो दुःख को व्यक्त करना असम्भव हो जाता है ! माँ , एक पूरा संसार है , पूरी दुनिया है , उसका चला जाना मतलब एक तरह का जीवन में निर्वात का हो जाना होता है !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई. बड़ी सारगर्भित बात कह दी आपने .
Deleteशब्द शब्द ही नहीं है कुछ कहना को
ReplyDeleteधन्यवाद जावेद भाई.
Deleteबहुत मार्मिक वर्णन, माँ को अब हम सपनों में जीते हैं। बहुत सी बातें माँ से अबभी होती हैं।
ReplyDelete