माता बगलामुखी (Mata Baglamukhi Temple)
माता चामुण्डा देवी के मंदिर में दर्शन के बाद हम लोग बैजनाथ चले गए । मंदिर में दर्शनों के बाद रात्रि विश्राम वहीँ एक
होटल में किया । सुबह उठकर दोबारा मंदिर में दर्शन के लिए चले गए और फिर वहां से
दोबारा चामुंडा होते हुए सीधा धर्मशाला और फिर मैकडोनल्ड गंज पहुँच गए । वहाँ पर
प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर गए। बाबा बैजनाथ और मैकडोनल्ड गंज पर बाद में लिखूंगा , अभी
नवरात्रे में आपको माता के अलग अलग सिद्ध स्थानों पर लेकर चलूँगा ।
धर्मशाला से वापसी में सीधा माता चिंतपूर्णी वाली सड़क पर चल दिए । ज्वाला जी
मंदिर से कुछ किलोमीटर पहले रानीताल के पास से एक तिराहा है । इस तिराहे से एक सड़क
दायीं और जा रही है जो सीधा माता चिंतपूर्णी को चली जाती है, इस जगह से कुछ
किलोमीटर आगे मुख्य सड़क पर ही माँ बगलामुखी का बड़ा प्रसिद्ध मंदिर है। पहाड़ी इलाका
होने के कारण मंदिर सड़क से नीचे है । सड़क पर मुख्य द्वार है यहाँ से नीचे सीडियां
उतर कर ही मंदिर में जाया जाता है ।
माता बगलामुखी के सम्पूर्ण भारत में केवल दो सिद्ध शक्तिपीठ विद्यमान हैं, जिसमें से
बनखण्डी एक है और दूसरा मध्य प्रदेश में है । इन दोनों मंदिरों का अपना अपना महत्व
है । यहां पर लोग अपने कष्टों के निवारण के लिये हवन एवं पूजा करवाते हैं। लोगों
का अटूट विश्वास है कि माता अपने दरबार से किसी को निराश नहीं भेजती। केवल सच्ची
श्रद्धा एवं सद्विचार की आवश्यक्ता है। हिमाचल में माँ श्री बगलामुखी का सिद्ध
शक्तिपीठ कांगड़ा जनपद के कोटला क़स्बे में स्थित है। वर्ष भर यहाँ श्रद्धालु
मन्नत माँगने व मनोरथ पूर्ण होने पर आते-जाते रहते हैं। माँ बगलामुखी का मंदिर
ज्वालामुखी से 22 किलोमीटर दूर 'वनखंडी' नामक स्थान पर स्थित है। मंदिर का नाम 'श्री 1008 बगलामुखी वनखंडी
मंदिर' है। राष्ट्रीय
राजमार्ग पर कांगड़ा हवाईअड्डे से पठानकोट की ओर 25 किलोमीटर दूर कोटला क़स्बे में पहाड़ी पर
स्थित इस मंदिर के चारों ओर घना जंगल व दरिया है। यह मंदिर प्राचीन कोटला क़िले के
अंदर स्थित है।
पुरातन काल से ही देवी बगलामुखी को अति श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। राम-रावण
युद्ध में जब रावण के बड़े-बड़े योद्धा राक्षस मारे जा चुके थे, तब रावण के पुत्र मेघनाद ने स्वयं रणभूमि में जाने का फैसला
किया। रणभूमि में जाने से पहले उसने शत्रु के शमन के लिए और अपने पिता दशानन रावण
की जीत सुनिश्चित करने के लिए इस शक्तिस्वरूपा देवी माता श्री बगलामुखी का आवाहन
और अनुष्ठान निर्जन एकांत स्थान में शुरू किया इस अनुष्ठान की निर्विघ्न समाप्ति
के लिए सभी प्रमुख दानवों को तैनात कर दिया गया था। उन्हें आदेश था कि जो इस यज्ञ
को हानि पहुंचाने की चेष्टा करे, उसका वध कर दिया जाए।
इसके साथ ही मेघनाद ने पूरे आत्मविश्वास, उत्साह और पूरी श्रद्धा
के साथ अनुष्ठान आरंभ कर दिया। परंतु विष्णु अवतार श्री रामचंद्र जी को इसका आभास
हो गया कि अगर माता बगलामुखी इस यज्ञ के बाद जागृत हो उठीं तो वह काली का रूप धारण
करके वानर सेना का विनाश कर देगी । इसीलिए उन्होंने लक्ष्मण को हनुमान जी के साथ
भेज कर अनुष्ठान भंग करवा दिया ।
यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा
अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की गई थी, जिसमें सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम द्वारा युद्ध
में शक्ति प्राप्त करने तथा माता बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की गई
थी। कालांतर से ही यह मंदिर लोगों की आस्था व श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। वर्ष
भर असंख्य श्रद्धालु, जो ज्वालामुखी, चिंतापूर्णी, नगरकोट इत्यादि के दर्शन के लिए आते हैं, वे सभी इस मंदिर
में आकर माता का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के साथ
प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहाँ लोग माता के दर्शन के उपरांत शिवलिंग पर
अभिषेक करते हैं। पांडुलिपियों में माँ के जिस स्वरूप का वर्णन है, माँ उसी स्वरूप में यहाँ विराजमान हैं। ये पीतवर्ण के
वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला
धारण करती हैं। 'बगलामुखी जयंती' पर यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है। 'बगलामुखी जयंती'
पर हर वर्ष हिमाचल प्रदेश
के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से लोग आकर अपने कष्टों के निवारण के लिए हवन, पूजा-पाठ करवाकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। 1 काली 2 तारा 3 षोड़षी 4 भुवनेश्वरी 5 छिन्नमस्ता 6 त्रिपुर भैरवी 7 धूमावती 8 बगलामुखी 9 मातंगी 10 कमला। माँ भगवती
श्री बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। माता बगलामुखी दस
महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं। इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। ये
स्तम्भन की देवी हैं। सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर
सकती। शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का
स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता किसी छोटे कार्य के लिए 10000
तथा असाध्य से लगाने वाले कार्य के लिए एक लाख मंत्र का जाप करना चाहिए। बगलामुखी
मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए।
हवन महत्व
बगलामुखी जयंती पर मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है, जिससे कष्टों का
निवारण होने के साथ-साथ शत्रु भय से भी मुक्ति मिलती है। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि
सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए। नगरकोट
के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना
किया करते थे, जिनके आशीर्वाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी। तभी से इस मंदिर में
अपने कष्टों के निवारण के लिए श्रद्धालुओं का निरंतर आना आरंभ हुआ और श्रद्धालु
नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते
हैं। 1977 की करारी हार के बाद इंदिरा गाँधी ने यहाँ आकर अपनी विजय के लिए अनुष्ठान
करवाया था , यहाँ राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी मार्च 2015 में आकर पूजा अर्चना की थी .
प्रबंधन समिति
मंदिर की प्रबंधन समिति द्वारा श्रद्धालुओं के लिए व्यापक स्तर पर समस्त
सुविधाएँ उपलब्ध करवाई गई हैं। लंगर के अतिरिक्त मंदिर परिसर में पेयजल, शौचालय, ठहरने की
व्यवस्था तथा हवन इत्यादि करवाने का विशेष प्रबंध है।
वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है जिस कारण इसे माँ
बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है । साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा
अर्चना एवं व्रत करना चाहिए। माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात
यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।
माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है।
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बहुत बढ़िया दर्शन करवाये जी आपने नरेश जी।
ReplyDeleteमैं आज तक यहाँ कभी गया नही हूँ। आशा है जब कभी धर्मशाला किसी ट्रेक प जाऊ तो यहाँ जरूर होकर आऊँगा।
धन्यवाद अक्षय .जय माता दी .
Deleteनवरात्रे में हर रोज माँ के एक नए मंदिर के दर्शन करवा रहे हो . आपको बहुत साधुवाद . जय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद राज जी ।जय माता दी ।
Deleteबहुत सुंदर दर्शन कराए आपने बगलामुखी माता के,,, रानीताल चौराहे पर बने ढाबे पर खाना भी खाया लेकिन इस मन्दिर के बारे में पता ही नही चला। अब कभी उधर गया तब अवश्य जाऊंगा।
ReplyDeleteजय माता दी
धन्यवाद सचिन भाई ।मंदिर सड़क से नीचे की तरफ है ।सड़क पर सर्फ गेट और बोर्ड ही दिखता है ।
DeleteJai Mata Di.Ghr betthe -betthe hi Mata ji ke Darshan or unki Mahima ke baare mein Jaan liya. Mata ji bulawa bhejh de, to mein b Apne pure pariwar ke saath deviyow ke darshan krne ka sobhagya phir se prapt kroo.
ReplyDeleteजय माता दी ।माँ का बुलावा आया तो जरूर जाएँगे ।
Deleteआप चारों का याराना तो लगता है पूरे भारत भर में भ्रमण कर लेगा साथ साथ :) ! जय हो माँ बगुलामुखी की !! बढ़िया यात्रा वृतांत नरेश जी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .जय माता की .
Deleteदोबारा पढ़ा , क्योंकि जल्दी ही यहाँ जाना है
Deleteजय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी ।जय माता दी ।
ReplyDeleteजय माँ बगलामुखी बहुत सुंदर
ReplyDeletedhanyvad Didi..
Deleteजय माता बगुलामुखी .
ReplyDeleteजय माता की।
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