मीनाक्षी मंदिर
,मदुरै – Meenakshi Temple ,Madurai
रामेश्वरम में दर्शन करने के बाद हम लोग वापिस रामेश्वरम रेलवे स्टेशन आ गए और
वहाँ से मदुरै जाने वाली ट्रेन पकड़ ली । मदुरै यहाँ से 160 किमी दूर है और लगभग चार
घण्टे में हम मदुरै पहुँच गए । मदुरै रेलवे स्टेशन पहुंच कर हमने अपना सामान क्लॉक
रूम जमा करवा दिया और एक छोटा सा बैग लेकर मंदिर की तरफ चल दिए । मंदिर रेलवे
स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं है मुश्किल से 1 किलोमीटर दूर होगा । रेलवे स्टेशन से बाहर
निकल कर थोड़ा दायीं तरफ़ चलना है और पहले चौराहे से बायीं तरफ मुड़ कर बिलकुल सीधा
जाना है । रेलवे स्टेशन से लेकर मंदिर तक का रास्ता व्यस्त मार्किट से होकर है, इस
रास्ते से जाने पर आपको मंदिर का पश्चिमी गोपुरम
दिखाई देता है ।
मंदिर में बैग और कैमरा ले जाना मना है लेकिन आप मोबाइल ले जा सकते हैं । यदि
आपके पास जमा करवाने को कुछ नहीं है तो आप पश्चिमी द्वार से भी मंदिर में प्रवेश
कर सकते हैं। हमारे पास एक छोटा बैग और कैमरा था जिसे जमा करवाना था तो हमें उतरी
द्वार पर भेजा गया । वहाँ सामान रखने के लिए क्लॉक रूम की सुविधा है । अपना सामान
यहाँ जमा करवा कर हम लोग मंदिर में प्रवेश कर गए। प्रवेश द्वार के साथ ही पूजा
सामग्री और मंदिर से जुड़े साहित्य ,इतिहास की किताबों की कुछ दुकाने भी हैं ।
“बचपन में स्कूल की किताबों में दक्षिण भारत के मशहूर मंदिरों के बारे में काफ़ी
पढ़ने को मिला । इनमे मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर ,रामेश्वरम
और चिदंबरम मंदिर आदि मुख्य थे । इनमे भी मीनाक्षी मंदिर की सुन्दरता के किस्से
बहुत थे । बचपन में कभी सोचा नहीं था कि एक दिन इन्हें सच में देखने का मौका
मिलेगा । दक्षिण भारत यात्रा का प्रोग्राम बनाते हुए ये ध्यान रखा कि बिना कोई और
दिन शामिल किये मदुरै का भी फाइनल हो जाये । इसीलिए मैंने रामेश्वरम शहर के लोकल
जगहों और छोटे मंदिरों को देखने से ज्यादा तरजीह मीनाक्षी मंदिर देखने को दी ।
यहाँ आकर निराश भी नहीं हुआ । यह भारत के सबसे सुन्दर और विशाल मंदिरों में से एक
है। यही आप दक्षिण भारत में यात्रा कर चुके हैं और आपने यह मंदिर नहीं देखा तो
समझो आपकी यात्रा पूर्ण नहीं है । मीनाक्षी देवी का यह मंदिर दुनिया के 30 अजूबों में भी
शुमार है। तमिलनाडु के मदुरै शहर में स्थिति मीनाक्षी मंदिर को दक्षिण भारत में
विजयनगर की मंदिर स्थापत्य कला का सर्वोत्कृष्ट नमूना माना गया है। इस मंदिर के
बारे में ऐसी जानकारी है कि जब दुनिया सात अजूबों के चयन के लिए 30 ऐतिहासिक
स्थानों को चुना गया तो उसमें से एक मीनाक्षी मंदिर भी था। इसलिए इसे दुनिया के 30
अजूबों में से एक माना जाता है।”
हम उत्तरी द्वार ( 160 फीट ) से मंदिर में प्रवेश हुए । उत्तरी द्वार भी
पश्चिमी द्वार (163 फीट ) की तरफ बहुत ऊँचा था। इन ऊँचे द्वारों को गोपुरम बोलते
हैं । सबसे ऊँचा गोपुरम(170 फीट) दक्षिण दिशा में है । मंदिर में कुल 14 गोपुरम हैं। मंदिर के
चारों दिशाओं में चार मुख्य गोपुरम हैं बाकि दस गोपुरम मंदिर के अन्दर हैं और सभी गोपुरम के ऊपर अलग- अलग मूर्तियाँ बनी हुई
हैं और उन्हें विभिन्न रंगों से सजाया हुआ हैं । उत्तरी गोपुरम के सामने एक छोटा
सा गलियारा है; जब हम वहाँ पहुँचे तो उसके पास एक स्थानीय संत लोकल भाषा में कुछ
प्रवचन कर रहे थे । कुछ लोग उनके सामने बैठे उन्हें ध्यान से सुन भी रहे थे । यहाँ
से हम पूर्वी गोपुरम की तरफ़ चल दिए । यहाँ भी मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व
की और ही है । पूर्वी गोपुरम की तरफ मंदिर के गलियारे में ही एक बड़ी सी मार्किट है
जहाँ पूजा सामग्री, मीनाक्षी देवी की मूर्तियों , माता के वस्त्र ,श्रृंगार के सामान और मंदिर की जानकारी देने वाली किताबों
की कई दुकाने हैं । हमारे यहाँ उत्तर भारत में जिस तरह बहुत से लोग घर में भगवान
किशन जी के बाल रूप यानि ठाकुर जी की मूर्ति रखते हैं और उन्हें रोज श्रृंगार से सजाते
हैं वैसे ही दक्षिण भारत में लोग घर पर मीनाक्षी देवी की प्रतिमा को रखते हैं और
उनका प्रतिदिन श्रृंगार कर उनकी पूजा करते हैं ।
मंदिर में दो गर्भ गृह हैं । पूर्वी गोपुरम के सामने भगवान भोले नाथ का मंदिर
है और दक्षिण की तरफ माँ मीनाक्षी देवी का । हमें यह बात पहले मालूम नहीं थी कि
यहाँ दो मंदिर हैं । जब हम पूर्वी द्वार
के सामने पहुँचे तो सभी लोग सामने की तरफ़ मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे थे ,हम भी
उनके साथ हो लिए । दर्शन के लिए लम्बी लाइन लगी थी । लाइन में लगे- लगे आसपास बनी
मूर्तियों की मोबाइल से तस्वीरें लेता रहा लेकिन रौशनी कम होने और मोबाइल की फ़्लैश
की सिमित रेंज होने से तस्वीरें ज्यादा अच्छी नहीं आ पाई । यहाँ की दीवारों पर ,पिलर
पर ,हर जगह शानदार मूर्तियाँ बनी हुई हैं । लगभग आधा घंटा लाइन में लगने के बाद हम
गर्भ गृह के सामने पहुँच गए । दक्षिण भारत में लगभग सभी मंदिरों में गर्भ गृह के दूर
से ही दर्शन करवाए जाते हैं और अधिकतर गर्भ गृह में रौशनी भी नाममात्र ही होती है।
जब मैंने दर्शन किये तो मुझे लगा की ये भोले नाथ की मूर्ति है लेकिन मूर्ति काफी
दूर थी सोचा शायद देवी की होगी । मन ही मन प्रणाम किया और बाहर आ गये । मेरी पत्नी
को शंशय नहीं था वो बोली ये तो भोले नाथ का मंदिर है माता का नहीं ! मैंने कहा
तुझे गलती लगी होगी जब मंदिर मीनाक्षी देवी का है तो गर्भ गृह में भी वो ही होंगी ।
चल छोड़ ,आओ मंदिर का बाकि हिस्सा घूमते हैं । थोड़ा आगे गए तो वहाँ शिव मंदिर का
साइन बोर्ड लगा था और तीर का निशान पीछे की तरफ था यानि जिस मंदिर से हम आ रहे हैं
वो शिव मंदिर ही था । आगे जाकर मीनाक्षी देवी मंदिर का साइन बोर्ड भी मिल गया और
मंदिर में दर्शन के लिये लगी लाइन भी दिख गयी । ये लाइन पहले से भी ज्यादा लम्बी
थी । तत्काल दर्शन के लिए 50 रूपये वाले दो टिकेट लिए और लाइन में लग गए । यहाँ भी
लगभग आधा घंटे बाद हम मंदिर के गर्भ गृह के सामने पहुँच गए । तभी लाइन रोक दी गयी
और सभी को बैठने को कहा गया । सांध्य आरती का समय हो चूका था और तैयारी भी सब हो
चुकी थी । हम सब लोग अपनी अपनी जगह पर बैठ गए और आरती की विधियाँ देखने लगे । 15
-20 मिनट बाद आरती सम्पन्न हुई और सभी को माता के दर्शन करवाए गए ।
मीनाक्षी देवी मंदिर में दर्शन के बाद हम लोग सहस्र
स्तंभ मण्डप हाल में चले गए और काफी
देर वहाँ फोटो खींचने के बाद मंदिर से बाहर आकर क्लॉक रूम से अपना सामान ले रेलवे स्टेशन
की तरफ चल दिए । यहाँ से रात को कन्याकुमारी के लिए ट्रेन में हमारी रिजर्वेशन थी ।
कुछ जानकारी मीनाक्षी मन्दिर के बारे में ( साभार - मंदिर से
खरीदी पुस्तक एवं विकिपीडिया )
मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर या मीनाक्षी अम्मां मन्दिर या मीनाक्षी मन्दिर भारत के तमिल नाडु राज्य के मदुरई नगर, में स्थित एक ऐतिहासिक मन्दिर है। यह भगवान शिव
और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित है। यह मन्दिर तमिल भाषा के गृहस्थान 2500 वर्ष पुराने मदुरई नगर की जीवनरेखा है। वैगई नदी के दक्षिण किनारे पर बने इस
मन्दिर को देवी पार्वती के सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। अन्य
स्थानों में कांचीपुरम का कामाक्षी मन्दिर, तिरुवनैकवल का
अकिलन्देश्वरी मन्दिर एवं वाराणसी का विशालाक्षी मन्दिर प्रमुख हैं।
इस इमारत समूह में 14 भव्य गोपुरम हैं, जो अतीव विस्तृत रूप से शिल्पित हैं। इन पर
बडी़ महीनता एवं कुशलतापूर्वक रंग एवं चित्रकारी की गई है, जो देखते ही बनती है। यह मन्दिर तमिल लोगों का
एक अति महत्वपूर्ण द्योतक है, एवं इसका वर्णन
तमिल साहित्य में पुरातन काल से ही होता रहा है। हालांकि वर्तमान निर्माण आरम्भिक
सत्रहवीं शताब्दी का बताया जाता है। मीनाक्षी मंदिर की स्थापना की बात करें तो यह
सातवीं शताब्दी से 10वीं शताब्दी के मध्य में
बनवाया गया है। यानी यह भारत के सबसे पुराने मंदिरों में एक है। देश - दुनिया से
दक्षिण भारत में भ्रमण को आने वाले लोगों में कोई भी मीनाक्षी मंदिर के दर्शन किए
बेगैर नहीं लौटता। मंदिर की भव्यता दूर दूर से लोगों को यहां आने के लिए प्रेरित
करती है।
पौराणिक कथा
हिन्दू
आलेखों के अनुसार, भगवान शिव पृथ्वी पर सुन्दरेश्वरर रूप में मीनाक्षी से, जो स्वयं देवी पार्वती का अवतार थीं; उनसे विवाह रचाने आये (अवतरित हुए)। देवी पार्वती ने पूर्व
में पाँड्य राजा मलयध्वज, मदुरई के राजा की घोर तपस्या के फलस्वरूप उनके घर में एक पुत्री के रूप में
अवतार लिया था। वयस्क होने पर
उसने नगर का शासन संभाला। तब भगवान आये और उनसे विवाह प्रस्ताव रखा, जो उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस विवाह
को विश्व की सबसे बडी़ घटना माना गया, जिसमें लगभग पूरी पृथ्वी के लोग मदुरई में एकत्रित हुए थे। भगवान विष्णु स्वयं, अपने निवास बैकुण्ठ से इस विवाह का संचालन करने आये।
ईश्वरीय लीला अनुसार इन्द्र के कारण उनको रास्ते में विलम्ब हो गया। इस बीच विवाह कार्य स्थानीय
देवता कूडल अझघ्अर द्वारा संचालित किया गया। बाद में
क्रोधित भगवान विष्णु आये और उन्होंने मदुरई शहर में कदापि ना
आने की प्रतिज्ञा की। और वे नगर की सीम से लगे एक सुन्दर पर्वत अलगार कोइल में
बस गये। बाद में उन्हें अन्य देवताओं द्वारा मनाया गया, एवं उन्होंने मीनाक्षी-सुन्दरेश्वरर का पाणिग्रहण कराया।
यह
विवाह एवं भगवान विष्णु को शांत कर मनाना, दोनों को ही मदुरई के सबसे बडे़
त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, जिसे चितिरई तिरुविझा या अझकर तिरुविझा, यानि सुन्दर ईश्वर का त्यौहार कहा जाता
है। इस दिव्य युगल द्वारा नगर पर बहुत समय तक शासन किया गया। यह वर्णित नहीं है, कि उस स्थान का उनके जाने के बाद्, क्या हुआ? यह भी मना जाता है, कि इन्द्र को भगवान शिव की मूर्ति शिवलिंग रूप में मिली और उन्होंने मूल मन्दिर बनवाया। इस प्रथा को आज भी मन्दिर में पालन किया जाता है ― त्यौहार की शोभायात्रा में इन्द्र के वाहन को भी
स्थान मिलता है।
मन्दिर : मंदिर
परिसर में मुख्यता दो मंदिर हैं- शिव मन्दिर और मीनाक्षी देवी मंदिर . शिव मन्दिर परिसर के
मध्य में स्थित है । इस मन्दिर में शिव की नटराज मुद्रा भी स्थापित है। शिव की यह
मुद्रा सामान्यतः नृत्य करते हुए अपना बांया पैर उठाए हुए होती है, परन्तु यहां उनका बांया पैर उठा है। मीनाक्षी देवी का गर्भ गृह शिव के दायीं
तरफ स्थित है। इसके साथ ही यहां एक वृहत गणेश मन्दिर भी है, जिसे मुकुरुनय विनायगर् कहते हैं। इस मूर्ति को मन्दिर के
सरोवर की खुदाई के समय निकाला गया था। इसके अलावा कई छोटे -2 अन्य मंदिर भी हैं
.परिसर में ही एक सरोवर है यह पवित्र सरोवर 165 फ़ीट लम्बा एवं 120 फ़ीट चौड़ा है। इसे स्थानीय भाषा में पोत्रमरै कूलम कहते हैं जिसका
शाब्दिक अर्थ है "स्वर्ण कमल वाला सरोवर" और अक्षरशः इसमें
होने वाले कमलों का वर्ण भी सुवर्ण ही है।
सहस्र
स्तंभ मण्डप : आयिराम काल मण्डप या सहस्र स्तंभ मण्डप में 985 भव्य तराशे हुए स्तम्भ हैं। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरक्षण में है। ऐसी धारणा
है, कि इसका निर्माण आर्य नाथ मुदलियार ने कराया था। मुदलियार की अश्वारोही मूर्ति मण्डप को जाती सीड़ियों
के बगल में स्थित है। प्रत्येक स्तंभ पर शिल्पकारी की
हुई है, जो द्रविड़ शिल्पकारी का बेहतरीन नमूना है। इस
मण्डप में मन्दिर का कला संग्रहालय भी स्थित है। इस मण्डप के बाहर ही पश्चिम की ओर संगीतमय स्तंभ स्थित हैं। इनमें प्रत्येक स्तंभ थाप देने पर
भिन्न स्वर निकालता है। स्तंभ मण्डप के दक्षिण में
कल्याण मण्डप स्थित है, जहां प्रतिवर्ष मध्य अप्रैल में चैत्र मास में चितिरइ उत्सव मनाया जाता
है। इसमें शिव - पार्वती विवाह का आयोजन होता है।
उत्सव एवं त्यौहार : मंदिर से जुड़ा हुआ सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार “मिनाक्षी थिरुकल्याणम (मिनाक्षी का दिव्य विवाह)” है, जिसे स्थानिक लोग
हर साल अप्रैल के महीने में मनाते है। दिव्य जोड़ो के इस विवाह प्रथा को अक्सर
दक्षिण भारतीय लोग अपनाते है और इस विवाह प्रथा को “मदुराई विवाह” का नाम भी दिया गया है। पुरुष प्रधान विवाह को “चिदंबरम विवाह” कहा जाता है, जो भगवान शिव के चिदंबरम के प्रसिद्ध मंदिर के
प्रभुत्व,
अनुष्ठान और कल्पित कथा
को दर्शाता है। इस विवाह के दौरान ग्रामीण और शहरी, देवता और मनुष्य, शिवास (जो भगवान शिव को पूजते है) और वैष्णव
(जो भगवान विष्णु को पूजते है) वे सभी मिनाक्षी उत्सव मनाने के लिये एकसाथ आते है।
इस एक महीने की कालावधि में, बहुत सारे पर्व
होते है जैसे की “थेर थिरुविजहः” और “ठेप्पा थिरुविजहः” । महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार जैसे की नवरात्री
और शिवरात्रि का आयोजन भी बड़ी धूम-धाम से मंदिर में किया जाता है। तमिलनाडु के
बहुत से शक्ति मंदिरों की तरह ही, तमिल आदी
(जुलाई-अगस्त) और थाई (जनवरी-फरवरी) महीने के शुक्रवार को यहाँ श्रद्धालुओ की भारी
मात्रा में भीड़ उमड़ी होती है।
दर्शन
समय : मंदिर में सुबह 5:00 से 12:30 और
शाम को 4:00 बजे से रात 9:30
तक दर्शन के लिए खुला रहता होता है।
अगली पोस्ट में आपको कन्याकुमारी लेकर चलेंगे, तब तक आप यहाँ की कुछ तस्वीरें देखिये । मंदिर के अन्दर की सभी तस्वीरें मोबाइल से लेने के कारण ज्यादा अच्छी नहीं आई . इसके लिए अग्रिम क्षमा .
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए लिंक नीचे उपलब्ध हैं ।
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पश्चिमी द्वार (गोपुरम ) |
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पश्चिमी द्वार के सबसे ऊपर |
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उत्तरी द्वार |
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मंदिर की जानकारी |
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मंदिर की जानकारी |
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सहस्र
स्तंभ मण्डप |
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स्वर्ण शिखर -SOURCE विकी कॉमन्स |
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मंदिर तालाब -SOURCE विकी कॉमन्स |
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दक्षिण गोपुरम -SOURCE विकी कॉमन्स |
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उत्तरी गोपुरम के सामने छोटा गोपुरम |
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शिव मंदिर के सामने स्वर्ण स्तम्भ |
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स्वर्ण स्तम्भ |
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दीवारों पर मूर्तिकारी |
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दीवारों पर मूर्तिकारी |
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दीवारों पर मूर्तिकारी |
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भगवान शंकर की कांस्य प्रतिमा |
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मीनाक्षी की शादी |
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छत पर पेंटिंग्स |
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मंदिर गलियारे में मार्किट |
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मंदिर का प्रतिरूप |
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मंदिर का प्रतिरूप |
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मीनाक्षी देवी |
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विनायक जी |
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श्री मीनाक्षी की शादी (भगवान विष्णु कन्यादान करते हुए ) |
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ReplyDeleteनरेश जी, मंदिर की छटा देखते ही बनती है, लेकिन कुछ मंदिरों का रवैया समझ नहीं आता कैमरा ले जाने नहीं देते और मोबाइल कैमरा पर कोई पाबन्दी नहीं है ! ऐसा ही बीकानेर में चूहों वाले मंदिर में हुआ था जहाँ मंदिर परिसर में फोटो खींचने की एवज में मंदिर के लोग पैसे ले रहे थे ! मिनाक्षी मंदिर के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद, लेकिन उत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत में भी तत्काल दर्शन करके कमाई का धंधा जोरो पर है ! वाराणसी के विशालाक्षी मंदिर के बारे में लिखा है आपने, इसके बारे में थोडा प्रकाश डालिए !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप जी . आपकी चिंता जायज है कुछ मन्दिरों में फोटोग्राफी बिलकुल Allowed नहीं है ,वैसे इसके लिए कुछ हद तक लोग ही जिम्मेवारी हैं . वे हर जगह खड़े होकर अपनी फोटो ही ख्न्चने लगते हैं .
Deleteआभार शास्त्री जी .
ReplyDeleteहर बार की तरह बेहतरीन सहगल साब ।
ReplyDeleteधन्यवाद हरेंदर भाई ..
DeleteVery well narrated post about Minakshi temple , its great mythological and historical significance, astonishing architecture, which I liked most. Thanks for reminding my journey which has unforgettable memory.💐💐
ReplyDeleteThanks Dear..
Deleteइस पोस्ट को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। सटीक जानकारी मिली। व बहुत सारे फोटो भी देखने को मिले।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई .संवाद बनाये रखना .
Deleteबहुत सुंदर जानकारी
ReplyDeleteउत्तम तस्वीरें
धन्यवाद ज्योति जी .
DeleteSahagal ji Ham bhi is yatra par aa chuke hai aapki yatra kafi Madadgar sabit hui.
ReplyDeleteधन्यवाद जितेंदर मिश्रा जी .
Deleteबहुत सिद्ध मंदिर है ..मुझे भी दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
ReplyDeleteआभार मिश्रा जी .
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सपने हैं ... सपनो का क्या - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार शिवम् मिश्रा जी ..
Delete2010 मे दक्षिण भारत की यात्रा मे मुदरै के इस मंदिर मे गया था।बहुत ही बडा और सुंदर है।
ReplyDeleteधन्यवाद माथुर साहब .सच में मंदिर बहुत ही बडा और सुंदर है।
Deleteशानदार चित्रों से सजा मीनाक्षी मन्दिर का सुंदर विवरण..
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता जी । संवाद बनाये रखिये ।
Deleteयह भारत के सबसे सुन्दर और विशाल मंदिरों में से एक है। यही आप दक्षिण भारत में यात्रा कर चुके हैं और आपने यह मंदिर नहीं देखा तो समझो आपकी यात्रा पूर्ण नहीं है । बहुत बढ़िया ! सम्पूर्ण जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद सारस्वत जी ।
Deleteबिना चिंता और। तकलीफ के आप रामेश्वरम से मदुरै पहुच गए और बहुत अच्छे से आपने दर्शन कर लिए बढ़िया....अब कन्याकुमारी चलेंगे....
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई💐💐
DeleteKya badhiya chitran kiya hai naresh ji .mai minakshi mandir ja chuki hu pa apki post se lag rha hai ki kich cheejen meri bhi bina dekhi rah gyi...jaldi janugi phir se..badhai sunder post ke liye .
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिमा जी । यहां जाने से पहले हमने इस मंदिर पर आपका लिखा लेख भी पढ़ा था ।
Deleteवाह क्या सजीव चित्रण किया है आपने मीनाक्षी मन्दिर का ..बहुत खूब .काफी तारीफ सुनी थी आज आपके माध्यम से देख भी लिया .
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी ।
DeleteMai is Mandir may 1982 may gai thi . Bahut hi sunder or bada hai ye Minakshi Devi Temple��
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा कुकरेती जी ।
Deleteसुन्दर तस्वीरों,सजीव चित्रण और जानकारी से भरी एक सम्पूर्ण पोस्ट .
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ साहब 💐💐
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ReplyDeletemandir ka darshan karke man pavitra ho gyaa nice jankari dia aapne
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेखनी है आपकी साथ ही पोस्ट भी ।
ReplyDeleteThanks for the blog.Nice meenakshi temple madurai information.You can also check.
ReplyDeletemeenakshi temple madurai