Wednesday 26 August 2015

ओंकारेश्वर , महाकालेश्वर एवं उज्जैन दर्शन रिपोर्ट

भाग 1: अम्बाला से ओंकारेश्वर

सौराष्ट्रे सोमनाथं श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं डाकिन्यां भीमशङ्करम्।सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।हिमालये तु केदारं घुश्मेशं शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥

ऐसी कहावत है कि भगवान के बुलावे के बिना कोई तीर्थ यात्रा पर नहीं जा सकता और उसकी इच्छा के बिना कोई तीर्थ यात्रा पूरी नहीं कर सकता। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
काफ़ी समय से उज्जैन जाकर महाकाल के दर्शन करने कि इच्छा थी लेकिन कुछ फ़ाइनल नहीं हो पा रहा था। आखिरकार पिछ्ले वर्ष (2012) दिसम्बर में जाने का कार्यक्रम बन ही गया। मैंने अपने दोस्त शुशील मल्होत्रा को अपने साथ जाने के लिये तैयार किया और 20 दिसम्बर 2012 को अम्बाला से जाने के लिये और 23 दिसम्बर 2012 को उज्जैन से वापसी के लिये मालवा एक्सप्रेस में दो- दो बर्थ बुक करवा दी और नियत समय की प्रतीक्षा करने लगे।

माँ नर्मदा


जाने से एक दिन पहले, शाम को मैने शुशील को फोन किया और उससे चलने की तैयारी के बारे में पूछा तो उसने जबाब दिया कि तैयारी पूरी हो चुकी है बस बैग पैक करना बाकी है और फ़िलहाल वो अपनी मम्मी जी को डाक्टर के पास लेकर जा रहा है, क्योंकि उनकी तबीयत रात से ठीक नहीं है। मैंने कहा ठीक है, तुम पहले आंटी को दवाई दिला लाओ मैं बाद में फ़ोन करता हूँ । मैंने फ़ोन काट दिया लेकिन मेरा मन आशंकित हो गया। मैंने अपनी पत्नी से कहा कि मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है, ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है कि हम लोग जा नहीं पायेंगे । मेरी तैयारी तो पूरी थी लेकिन आशंका के चलते मैंने बैग पैक नहीं किया और प्रतीक्षा करने लगा। हमारी गाड़ी का समय दिन में 3 बजे था और दोपहर 12 बजे के करीब मेरे पास मेरे भाई का फोन आया और उसने बताया कि शुशील की मम्मी जी का देहांत हो गया है ,तुम जल्दी उसके घर पहुँचो और मैं भी वहाँ पहुँच रहा हूँ । मेरी आशंका सच निकली। मैं तुरन्त शुशील के घर चला गया और फ़ोन पर ही एक दुसरे मित्र को कहकर रेलवे कि टिकटें निरस्त करवा दी।  इस प्रकार अपने प्रिय मित्र और घुमक्कडी के लगभग स्थाई साथी की माता जी के आक्स्मिक देहान्त के कारण मेरा महाकाल के दर्शन करने का प्रथम प्रयास विफ़ल हो गया या शायद अभी भोले नाथ का बुलावा नहीं आया था।
जनवरी 2013 , लोहडी की रात जब हम एकठ्ठा बैठे थे तो मेरे भाई ने मुझे बताया कि वर्मा जी (हमारे एक जानकार) कुछ ज्योतिर्लिगों की यात्रा पर फरवरी में जा रहें हैं , तुमने जाना हो तो उनसे बात कर लेना। मैने सुबह उनसे बात की और उन्होनें मुझे बताया कि वो रेलवे टूरिज़्म के माध्यम से 26 फरवरी को 7 ज्योतिर्लिगों की यात्रा पर जा रहें है, प्रोग्राम 13-14 दिन का है और अगर मैने जाना हो तो उनको  बता दूँ ताकि वो सीटें इकट्ठी बुक करवा लें । मैं तो जाने के लिये एकदम तैयार था लेकिन कुछ समस्यायें थी। एक तो कार्यलय से इतनी लम्बी छुट़्टी मिलनी आसान नहीं थी और दूसरा घर से सहमति  (अनुमति) लेना भी जरुरी था। मुझे पहला काम ज्यादा मुश्किल लगा और शुरुआत वहीं से की। बॉस  ने कुछ ना नुकर के बाद कहा, ठीक है , अवकाश के लिये आवेदन कर दो देख लेंगे ।
जब शाम को घर पर गया तो मौका देखकर पत्नी से बात  की  और  काफी ठण्डी प्रतिक्रिया मिली।
“ फरवरी के आखिरी सप्ताह में बच्चों के पेपर शुरू हो रहें हैं और तुम 15 दिन के लिए घूमने जा रहे हो , जाओ, मेरे कहने से तुम रोकोगे थोड़ा । मेरी तुम सुनते ही कब हो ? और मैं तुम्हे तीर्थ यात्रा से रोककर पाप की भागी क्यों बंनू।“

इस अदा पर कौन न मर जाए ए ख़ुदा ,
लड़ते हैं और हाथ में हथियार भी नहीं ।

मतलब तो आप भी समझ गए होंगे। जब आपसे आपका कोई अपना इस तरह से शिकवा करे तो आपको तुरंत हथियार डालने पड़ते हैं। मैंने भी कह दिया ठीक है नहीं जाऊँगा लेकिन मन में मैं सोचने लगा कि पिछली बार तो बिलकुल आखिर में कार्यक्रम रद्द हुआ था और इस बार शुरू में ही।
 हे भोले नाथ ! मेरा नंबर कब आएगा ?  
लगातार दूसरा कार्यक्रम रद्द होने से, मेरा इस यात्रा पर जाने का निश्चय और दृड हो गया और मैंने बच्चों की परीक्षा के बाद ,मार्च के आखिर में जाने का निश्चित कर लिया।  जब मैं इंटरनेट पर इंदौर के लिए रेलगाड़ी देख रहा था तो मेरे दो सहकर्मी  भी मेरे साथ चलने को तैयार हो गए।  इनमे से नरेश सरोहा तो मेरे साथ पहले भी कई बार घुम चुक़े हैं लेकिन , दुसरे साथी, सुखविंदर जी हमारे साथ पहली बार जा रहे थे, थोड़े नास्तिक किस्म के हैं इसलिए हमने उन्हें पहले ही बता दिया था की हम लोग तो तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं और हमने मंदिरों में ही घूमना है ,तुम बोर मत हो जाना। लेकिन उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं थी।
इस तरह हम तीनो लोग ओमकारेश्वर तथा महाकालेश्वर के दर्शन के लिए तैयार हो गए और मैंने तीनों  की  जाने के लिए  अमृतसर  इंदौर एक्सप्रेस , 19326, में 28 मार्च की और वापसी के लिए मालवा एक्सप्रेस में 2 अप्रैल की  सीटें बुक करवा दी।     
निर्धारित दिन हम तीनो सुबह 8 बजे रेलवे स्टेशन पहुँच गए और गाड़ी भी अपने निर्धारित समय से 10 मिनट पहले ही पहुँच गयी।  हम जल्दी से अपनी आरक्षित सीटों पर पहुँच गए तथा गाड़ी भी अपने समय पर अम्बाला से चल दी लेकिन सहारनपुर से निकलने के बाद इसके इंजन में कुछ दिक्कत हो गयी , मुश्किल से देवबंद तक पहुंची और वहां जाते ही प्लेटफार्म पर घोषणा कर दी गयी की गाड़ी का इंजन खराब हो गया है और नया इंजन आने के बाद ही  गाड़ी आगे जायेगी और इसमें लगभग दो घंटे लग जायेंगे। हमारे पास इंतजार के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। पुरे तीन घंटे विश्राम के बाद गाड़ी आगे चली। अगले दिन सुबह इंदौर पहुँचते -2 चार घंटे लेट हो गयी और हम ठीक 9 बजे इंदौर पहुँच गए ।


इंदौर रेलवे स्टेशन के दोनों और से बाहर आने का मार्ग है , पूछताछ  करने पर मालूम हुआ कि    ओंकारेश्वर जाने के लिए हमें बांये तरफ से बाहर निकलना होगा। स्टेशन से बाहर  आकर सबसे  पहले नाश्ता करने का निश्चय किया

रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर दाएँ तरफ़ थोड़ी दूर ही बस स्टैंड है, लेकिन हम लोग नाश्ते की तलाश में बायें तरफ़ चल दिये। स्टेशन के बाहर ,सड़क पर दोनों तरफ कई दुकानों पर तथा कई रेहड़ी पर चावल से बनी खाने की एक ही चीज बिक रही थी जो हम लोगो के लिए बिलकुल नयी थी क्योंकि हम तीनो पहली बार ही मध्य भारत में आये थे। हम किसी ऐसी दुकान की खोज में थे जहाँ से हमें खाने के लिए परांठे मिल जाते, लेकिन ऐसी कोई दुकान मिल नहीं रही थी।  थोड़ा और आगे चलकर एक चौराहे पर एक दुकानदार ने कहा ,बैठो मिल जायेंगे पर थोड़ा समय लगेगा।
हम वहाँ बैठ कर नाश्ते की प्रतीक्षा करने लगे और जब काफ़ी देर बाद परांठे आये तो तेज नमक व मिरचों के कारण एक – एक परांठा भी खाना मुश्किल हो गया। तीनों ने मिल कर बडी मुश्किल से दो परांठे खाये लेकिन पैसे चार परांठे के दिये क्योंकि चार परांठे हमारे आर्डर पर बन चुके थे। यहाँ चाय के गिलास भी छोटे -2 थे, दो घूंट में शर्तिया चाय खतम । हमने उत्सुकतावश दुकानदार से पूछा कि इस चीज का नाम क्या है जो चावलों से बनी हुई है और हर जगह बिक रही है। दुकानदार ने बताया कि यह यहाँ कि मशहूर डिश पोहा है। हम तीनो के लिये यह नई चीज थी। मैने अपने साथियों से पूछा “ पोहा लूँ क्या ? खाओगे ? लेकिन दोनो ने मना कर दिया। वहाँ से निकल कर हम बस स्टैंड की तरफ़ चल दिये। ओंकारेश्वर के लिये बस स्टैंड रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर बायीं तरफ़ लगभग आधा किलोमीटर की दुरी पर है। शायद इन्दौर में दो बस स्टैंड हैं ,इस बस स्टैंड से ओंकारेश्वर, उज्जैन ,भोपाल, भरवाह आदि के लिये बसें उपलब्ध हैं और इसका नाम सरवटे बस स्टैंड है। यहाँ से चलने वाली सभी बसें प्राइवेट आप्रेटरों की ही थी और एक भी बस राज्य परिवहन की नहीं थी। हमने ओंकारेश्वर के लिये बस पूछी तो एक बस मिल गयी लेकिन वो अभी बिल्कुल खाली थी और हमें इतना तो मालूम ही था कि प्राइवेट बस पुरी भरे बिना नहीं जायेगी, हम किसी दूसरी बस को तलाशने लगे । एक अन्य जाती हुई बस वाले ने बताया कि वो हमें मोरटक्का में उतार देगा वहाँ से दूसरी बस पकड़ लेना लेकिन हमने मना कर दिया, क्योंकि हम ओंकारेश्वर के लिये सीधी बस लेना चाहते थे। कोई अन्य उपाय ना देख हम उसी बस में आकर बैठ गये और उसके भर जाने की प्रतीक्षा करने लगे। लगभग 40 मिनट बाद बस चल दी और इन्दौर के हर चौराहे पर रुकती हुई, धीरे -2 चलने लगी। हम सोच रहे थे कि शायद इन्दौर शहर से बाहर निकल कर बस गति पकड़ लेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं । बस ने 40 की स्पीड को कभी नहीं छूआ। काफ़ी समय खराब हो रहा था लेकिन शायद अभी और समय खराब होना बाकी था। हमें बस में बैठी हुई अन्य सवारियों ने बताया कि यह बस सीधा ओंकारेश्वर नही जायेगी और आगे जाकर तुम्हें दूसरी बस में बिठा देगें।

                    इन्दौर शहर से ओंकारेश्वर जाने के लिये इन्दौर – भरवाह- खंडवा राजमार्ग से जाना पड़ता है और मोरटक्का स्थान से मुख्य राजमार्ग से ओंकारेश्वर जाने के लिये रास्ता कट जाता है। इसी स्थान के पास ‘ओंकारेश्वर मोड़’ नाम का रेलवे स्टेशन भी है। मोरटक्का से ओंकारेश्वर कि दुरी लगभग 20 किलोमीटर है। हमारी बस मोरटक्का स्थान से ओंकारेश्वर की ओर नहीं मुडी बल्कि सीधा आगे चली गयी। क्योंकि हम पहली बार यहाँ आ रहे थे इसलिये हमें इस बात का पता नही चला। लगभग 10-12 किलोमीटर आगे जाने के बाद बस एक जगह जाकर रुकी और बस वाले ने कहा कि ओंकारेश्वर जाने वाले सभी लोग दूसरी बस में जाकर बैठ जायें,हमने वैसा ही किया । नयी बस उसी मार्ग पर चल दी जहाँ से हम आये थे तब जाकर हमें यह घपला मालुम हुआ । बस मोरटक्का जाकर अन्य सवारियों को लेने के लिये रुक गयी और थोड़ी देर बाद ओंकारेश्वर की ओर चल दी। कुछ ही देर बाद हम ओंकारेश्वर पहुन्च गये। इस प्रसंग का अभिप्राय इतना ही है कि यदि कोई इन्दौर से ओंकारेश्वर बस द्वारा जाना चाहे तो कोई भी बस, जो मोरटक्का होकर जा रही हो, पकड़ ले और मोरटक्का उतरकर वहाँ से ओंकारेश्वर के लिये दूसरी बस ले ले।

ट्रैन का एक मोड़ पर चित्र
माँ नर्मदा
  
माँ नर्मदा

माँ नर्मदा

मोरटक्का



ओंकारेश्वर में सुखविंदर व नरेश सरोहा

ओंकारेश्वर तथा नर्मदा

ओंकारेश्वर

ओंकारेश्वर



ओंकारेश्वर के रास्ते में शनि  नव गृह मंदिर


माँ नर्मदा 

11 comments:

  1. ओंकारेश्वर सचमुच बहुत ही सुंदर तथा सुकूनदायक स्थान है. पतित पावन माँ नर्मदा के किनारे स्थित ये स्वयंभू ज्योतिर्लिंग मंदिर हमेशा से मेरे दिल के बहुत करीब रहा है और बचपन से ही हम यहाँ की यात्रा करते रहे हैं क्योंकि मेरे घर से बहुत नज़दीक है और ओंकारेश्वर से मात्र 15 किलोमीटर दूर वो स्थान है जहाँ से मैनें अभियांत्रिकी की शिक्षा हासिल की है और जहाँ मेरे जीवन का सबसे सुनहरा समय व्यतीत हुआ है..

    नरेश जी बहुत सुंदर विवरण तथा चित्रण के साथ आपकी ये पोस्ट बहुत ही रोचक है.

    धन्यवाद ...

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    1. धन्यवाद मुकेश जी .

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  2. अति सूंदर नरेश भाई ।
    मैं भी 2 -3 बार हो आया हूँ और फिर इच्छा है जाने की ।
    बाकी जैसी हरि इच्छा ।।

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  3. आप इंदौर शहर की एक नायाब चीज "पोहे" से वंचित रह गए जनाब।मैँ तो कभी बस से ओंकारेश्वर गई नहीं इसलिए पता नहीं , वैसे इंदौर में एक बस अड्डा सरवटे पर है और दूसरा गंगवाल है।वैसे हमारा शहर इंदौर बहुत दिल अजीज है और वहां के रहने वाले भी:)

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    1. Thanks Darshan Ji. We tasted the Poha but at last point of Journey.

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  4. माँ नर्मदा के दर्शन करके मन तृप्त हो गया ! वृतांत भी रोचक लिखते हैं आप

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  5. Keep it up Sehgal Sahib.Nermada river darshan and
    Omkareshaver dershan ke leeye thanks. App describe bahut acha karte hai. Bhole Nathji ki kirpa hui to may be i will go there. I hope so.

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    1. Thanks. Sure baba Bhole nath will call you soon.

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