Harsidhi Temple Ujjain
भाग 1 : अम्बाला से ओंकारेश्वर
भाग 2 : ओंकारेश्वर दर्शन
भाग 3 :ममलेश्वर दर्शन
इंदौर उज्जैन मार्ग पर महामृत्युंजय द्वार |
अब तक….. ममलेश्वर व ओंकारेश्वर दर्शन के बाद हम शाम को इंदौर चले गए थे। वहां रात्रि विश्राम के बाद सुबह उठ कर उज्जैन की और चल दिए। और अब आगे…..
महाकाल की नगरी में पहुंचते ही,बस से उतारकर ऑटोरिक्शा लिया और सीधा महाकाल के मंदिर की ओर चल दिए। जब हम महाकाल के मंदिर के आगे से गुजरे तो वहां काफ़ी लम्बी लाइन लगी हुई थी लेकिन हम सीधा उस काउंटर की तरफ गए जहाँ भष्म आरती में हिस्सा लेने के लिए आवेदन किया जाता है लेकिन वहां पहुँच कर हमें काफ़ी निराश होना पड़ा क्योंकि आज का कोटा ख़तम हो चुका था। हमने वहां मौजूद मंदिर के पंडों से पूछा की क्या कुछ दूसरा रास्ता है लेकिन निराशा ही हाथ लगी। सोचा, चलो कोई बात नहीं ,भष्म आरती अगली बार सही। पहले कोई कमरा लेते हैं ,सामान वहां रखकर फिर उज्जैन के मंदिरों के दर्शन कर के आयेंगे।
उज्जैन में , महाकालेश्वर मंदिर के आस-पास ही सब की जरुरत के अनुसार कमरे मिल जाते हैं जिनका किराया 300 रूपये से आरम्भ हो जाता है। थोड़ी सी खोजबीन और मोलभाव के बाद हमें एक लॉज में 550 रूपये में एक तीन बिस्तर वाला कमरा मिल गया।
कमरे में सामान रखकर हम वापिस महाकाल मंदिर के पास आये और वहां मौजूद कई भोजनालयों में से एक में खाना खाने चले गए। खाना बिलकुल भी स्वाद नहीं था, लेकिन पेट पूजा करना भी जरुरी था इसलिए थोडा बहुत खाकर काम चलाया। खाना खाने के बाद ,बाहर आकर उज्जैन के सभी मंदिरों में घुमने के लिए 250 रुपये में एक ऑटो ले लिया। वैसे महाकाल मंदिर के पास से मंदिरों में घुमने के लिए ऑटो,वैन व बस भी उपलब्ध होती हैं लेकिन वैन के लिए ज्यादा लोग चाहिए और बस का समय निर्धारित है। ऑटो हर समय मिलते हैं और उनका सब का रेट एक ही होता है। हमारे ऑटो ड्राईवर का नाम नंदू था और वो गाइड का काम भी कर रहा था। लगभग तीन घंटे में वो हमें बड़ा गणेश , शिप्रा घाट ,राम मंदिर ,चार धाम, सिधवट ,कालभैरव ,हरसिधी माता , गढ़कालिका, संदीपनी आश्रम , भर्तृहरि गुफा और मंगलनाथ में घुमा लाया। इस पोस्ट में हम सिर्फ हरसिद्धि शक्तिपीठ व उसमे होने वाली भव्य आरती की की चर्चा करेंगे।
हरसिद्धि शक्तिपीठ
हरसिद्धि शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
महाकालेश्वर की क्रीड़ा-स्थली अवंतिका (उज्जैन), पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है। पार्वती हरसिद्धि देवी का मंदिर- शक्तिपीठ, रुद्रसागर या रुद्र सरोवर नाम के तालाब के निकट है, शिव पुराण के मान्यता के अनुसार जब सती बिन बुलाए अपने पिता के घर गई और वहां पर राजा दक्ष के द्वारा अपने पति का अपमान सह न सकने पर उन्होंने अपनी काया को अपने ही तेज से भस्म कर दिया। भगवान शंकर यह शोक सह नहीं पाए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। जिससे तबाही मच गई। भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और जब शिव अपनी पत्नी सती की जलती पार्थिव देह को दक्ष प्रजापति की यज्ञ वेदी से उठाकर ले जा रहे थे श्री विष्णु ने सती के अंगों को बावन भागों में बांट दिया । यहाँ सती की कोहनी का पतन हुआ था। अतः वहाँ कोहनी की पूजा होती है। यहाँ की शक्ति 'मंगल चण्डिका' तथा भैरव 'मांगल्य कपिलांबर हैं-
उज्जयिन्यां कूर्परं व मांगल्य कपिलाम्बरः। भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।
कहते हैं- प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव कमलपुष्पों से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि का तथा पूर्वी तट पर 'महाकालेश्वर का मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चारदीवारी से घिरा है। मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर 'श्रीयंत्र' है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी के प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत् 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। शिवपुराण के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें विक्रमादित्य की आराध्या माना जाता है। स्कंद पुराण में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों नवरात्रों में यहाँ उनकी महापूजा होती है-
नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्धि हरप्रिया
मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं। मंदिर के सामने दो बड़े दीपस्तंभ हैं। इनमे से एक शिव हैं जिसमे 501 दीपमालाएँ हैं , दूसरा पार्वती है जिसमे 500 दीपमालाएँ हैं तथा दोनों दीपस्तंभों पर दीप जलाए जाते हैं।हमने वहां मंदिर के एक कर्मचारी से पूछा की क्या इन पर दीप जलाते भी हैं तो उसने कहा शाम को 6 बजे आरती में आ जाना और खुद देख लेना
मुख्य मंदिर में गर्भ गृह की छत पर काफ़ी अच्छी चित्रकारी की हुई है। मंदिर में अच्छी तरह घुमने के बाद हम बाकि मंदिरों में दर्शन के लिए चले गए लेकिन यह तय कर लिया की शाम को आकर आरती में शामिल होंगे और यह देखेंगे की इतनी ऊँची जगह पर दीपक कैसे जलाते हैं।
शाम को ठीक 6 बजे हम फिर से हरसिद्धि मंदिर पहुँच गए और आरती की तैयारियों को देखने लगे। हरसिद्धि मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पीछे की और लगभग 500 मीटर की दुरी पर है।
हमारे मंदिर में पहुँचने के बाद वहाँ तीन लोग, जो शायद एक ही परिवार से थे , आये और सिर्फ निकर और बनियान में इन दीपस्तंभों पर चढ़ गये। सबसे पहले उन्होंने इन दीपस्तंभों पर मौजूद सभी दीपकों की सफाई की और फिर एक एक कर सभी दीपकों में तेल डाला। यह सब काम वे बड़ी तेजी और सावधानी से कर रहे थे। जब सब दीपकों में तेल डल गया तो फिर उन सब में रुई से बनी बतियाँ डाली गयी। ऊपर चड़ने के लिए वे दीपकों का ही इस्तेमाल कर रहे थे यानी की उन्ही को पकड़ कर व उन्ही पर पैर रख कर।
बतियाँ डालने के बाद सबसे मुश्किल काम था दीपक जलाने का और स्वयं को अग्नि से सुरक्षित रखने का। यह काम भी उन्होंने बखूबी किया। सभी ने छोटी -छोटी मशालें ले रखी थी और लगभग 5 मिनट में 1001 दीपकों में जोत जला दी, जबकि पूरा काम करने में उन्हें लगभग एक घंटा लग गया ।
बाकि सब आप तस्वीरों से देख सकते हैं।
जब वे सारा काम कर चुके तो हमने उनसे बातचीत की तो उन्होंने हमें बताया की एक समय में तीन टिन रिफाइंड तेल यानी की कुल 45 लीटर तेल लग जाता है और सब मिलाकर इस काम पर एक समय का खर्च 7000 रुपये का है जिसमे उनकी लेबर भी शामिल है, और यह सब कुछ दानी सज्जनों द्वारा प्रायोजित होता है। लोग पहले से ही इसकी बुकिंग करवा देते हैं और लगभग तीन महीने की अग्रिम बुकिंग हो चुकी है।
सभी दीपक जलते ही मंदिर में नगाड़े बजने लगे व आरती शुरू हो गयी। आरती समाप्त होने के बाद हम लोग परशाद लेकर महाकाल के दर्शनों की अभिलाषा लिए महाकालेश्वर मंदिर की ओर चल दिए।
हरसिद्धि शक्तिपीठ |
हरसिद्धि माता |
छत पर चित्रकारी |
दीवार पर मूर्ति |
दीपस्तंभ |
मैं दोनों दीपस्तंभों के मध्य |
शिलालेख |
पुराना मंदिर |
हरसिद्धि मंदिर साइड से |
आरती की तैयारी शुरू |
दीपक जलाते हुए |
सारे दीपक जलते हुए |
सारे दीपक जलते हुए |
दोनों दीपस्तंभों के मध्य हरसिद्धि मंदिर |
नरेश जी बहुत सुंदर यात्रा वर्णन। मैं भी माता हर सिद्धी मन्दिर गया था पर आरती नही देख पाया था, आपके माध्यम से यह कार्य भी पूर्ण हुआ।
ReplyDeleteसचिन जी पोस्ट पढ़ने व हौसला अफजाई के लिए बहुत धन्यवाद!
Deleteबहुत सुंदर नरेश जी आपका वर्णन और आपके चित्र भी....
ReplyDeleteहम भी गए थे लेकिन एक तो ये दिए जलते हुए नहीं देख पाए थे दुसरे हमें ये पता ही नहीं था कि महाकार मंदिर से इस मंदिर की दूरी सिर्फ ५०० मीटर ही है वर्ना शायद अवश्य प्रयास करते, लेकिन अब चलो पता चल गया है तो अगली बार सही....
जय माँ हरसिध्धि
धन्यवाद kaushik जी। यह मंदिर महाकाल के पीछे की तरफ मुश्किल से आधा किलोमीटर है
DeleteNaresh Ji dhanyawaad ....Bahut hi sunder varnan or darshan karwaaya Maa Har Siddhi ke mandir ka.
ReplyDelete1001 deep deepmaalye .....bahut vi adbhut drishya hai ...
Thanks Pankaj ji for your encouraging words
Deleteनरेश जी बहुत सुंदर यात्रा वर्णन। मैं भी माता हर सिद्धी मन्दिर गया था पर आरती नही देख पाया था, आपके माध्यम से यह कार्य भी पूर्ण हुआ।
ReplyDeleteसचिन जी पोस्ट पढ़ने व हौसला अफजाई के लिए बहुत धन्यवाद!
Deleteचुकी ये मंदिर महाकाल मंदिर के करीब है इसलिए ज्यादातर दर्शनार्थी सुबह महाकाल के दर्शन करके सबसे पहले हरसिद्धि माता के मंदिर आता है ।
ReplyDeleteमैंने भी यही किया था।
पर आप सुबह और शाम दोनों समय यहाँ दर्शन को आये थे इसी बजह से आपको और आपके इस पोस्ट के द्वारा हमे भी इस दीपमाला का दर्शन हो गया । 5 मिनट में 1000 दीपक जलना अपने आप में आश्चर्य की बात है ।इस कार्य को करते हुए देखना भी सोभाग्य की बात है जो हरकिसी को नहीं मिलता ।सब भाग - दौड़ में इससे बंचित रह जाते है ।
हरसिद्धि माता के बारे में भी आपने यहाँ विस्तृत जानकारी दी ।
धन्यवाद
धन्यवाद किशन जी। सचमुच यह 5 मिनट में 1000 दीपक जलना अपने आप में अद्धभुत करने वाला था
Deleteयात्रा वर्णन अच्छा है।मैं भी यहाँ गया था परंतु जलते हुए दीपक मैंने भी नहीं देखे।पहली बार तो समझ में नहीं अाया की ये कया हैं।बाद मे पता चला कि ये दीप सतमंभ हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन जी। हैं। हमने भी वहां मंदिर के एक कर्मचारी से पूछा की क्या इन पर दीप जलाते भी हैं तो उसने कहा शाम को 6 बजे आरती में आ जाना और खुद देख लेना
Deleteदीप स्तंभों के फोटो अच्छे लगे।
ReplyDeleteधन्यवाद कोठारी जी
Deleteपांच मिनट में हजार दीपक जलते देखना अभूतपूर्व अनुभव रहा होगा।इतने बड़े तीर्थ स्थलों के दर्शन कराने के लिए धन्यवाद।फ़ोटो बहुत अच्छे हैं।
ReplyDeleteThanks Harshita ji for your encouraging words. Indeed it was a special moment.
Deleteअदभुत।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteमैंने ये दिप जलते हुए देखे है।ये काल भैरव मन्दिर और मंगला मन्दिर में भी जलते है।ये मराठा शासको का शोक है जो आपको इंदौर के मन्दिरो में और पुणे के मन्दिरो में भी मिलेगे । इंदौर और उज्जैन मेरी जन्मस्थली होंने के कारण मैंने अनेक मन्दिरो में देखे है।
ReplyDeleteजी सही कहा आपने ।उज्जैन के कई मंदिरों में हमने ये सतम्भ देखे । धन्यवाद
DeleteNice post.thanks for sharing.
ReplyDeleteThanks
Deleteअगर ये कहा जाये कि इस पोस्ट की सबसे बेहतरीन जानकारी ये दीप स्तंभ हैं तो गलत न होगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteयोगी जी आपने बिलकुल सही कहा । दीप सतम्भ ही इस पोस्ट की जान है
Deleteधन्यवाद
Deleteबेहद सुन्दर भव्य मनमोहक दृश्य।
ReplyDeleteयात्रा वर्णन में तो आप कुशल हैं।
शशि नेगी
धन्यवाद शशि जी .
DeleteThank you so much for this information ….I liked your blog very much it is very interesting and I learned many things from this blog which is helping me a lot.
ReplyDeleteVisit our website: Escape to the vibrant Mexico City