प्रयागराज कुम्भ
यात्रा-2019
आस्था, विश्वास, सौहार्द
एवं संस्कृतियों के मिलन का पर्व है “कुम्भ”। ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन कुम्भ मेले का
वो आयाम है जो आदि काल से ही हिन्दू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी
आमन्त्रण के खींच कर ले आता है। कुम्भ पर्व किसी इतिहास निर्माण के दृष्टिकोण से
नहीं शुरू हुआ था अपितु इसका इतिहास समय द्वारा स्वयं ही बना दिया गया। वैसे भी
धार्मिक परम्पराएं हमेशा आस्था एवं विश्वास के आधार पर टिकती हैं न कि इतिहास पर।
यह कहा जा सकता है कि कुम्भ जैसा विशालतम् मेला संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधे
रखने के लिए ही आयोजित होता है। किसी उत्सव के आयोजन में भारी जनसम्पर्क अभियान,
प्रोन्नयन गतिविधियां और अतिथियों को आमंत्रण प्रेषित किये जाने की
आवश्यकता होती है, जबकि कुंभ विश्व में एक ऐसा पर्व है जहाँ
कोई आमंत्रण अपेक्षित नहीं होता है तथापि करोड़ों तीर्थयात्री इस पवित्र पर्व को
मनाने के लिये एकत्र होते हैं।
कुछ सप्ताह पहले फरवरी में मेरा भी अपने दो
दोस्तों -सुशील और सुखविंदर के साथ प्रयागराज
कुम्भ जाने का प्रोग्राम बना । प्रोग्राम कुछ इस तरह बनाया ताकि 10 फरवरी को बसंत
पंचमी के शाही स्नान पर हम वहीँ हों । वैसे तो शाही स्नान पर भारी भीड़ रहती है
लेकिन उस दिन सज़-धज कर शाही स्नान को जाते हजारों संतो- महात्माओं , सजी हुई
पालकियों पर बैठे महामंडलेश्वर के एक साथ दर्शन का लाभ भी मिल जाता है । शाही स्नान
की तिथि के अनुसार ही आने-जाने की टिकेट बुक करवा दी गयी । हमारा प्रोग्राम कुछ इस
तरह से था ।
8 फरवरी की रात को अम्बाला से चलकर 9 दोपहर तक प्रयागराज पहुँचना ।
10 फरवरी सुबह प्रयाग में कुम्भ स्नान और कुम्भ नगरी भ्रमण और रात्रि विश्राम ।
10 फरवरी सुबह प्रयाग में कुम्भ स्नान और कुम्भ नगरी भ्रमण और रात्रि विश्राम ।
11 फरवरी सुबह प्रयागराज से अयोध्या के लिए
प्रस्थान । राम लल्ला के दर्शन , अयोध्या भ्रमण और रात्रि विश्राम अयोध्या में
करना ।
12 फरवरी सुबह अयोध्या से अम्बाला के लिये वापसी
।
अगला प्रबंध हमें कुम्भ नगरी में रुकने का करना
था । मैंने सबसे पहले अपनी कंपनी के गेस्ट हाउस में बुकिंग के लिए प्रयास किया
लेकिन उसका कन्फर्म तय तिथि से केवल एक दो दिन पहले ही होता है । दूसरा, हमारे
यहाँ से एक महात्मा में कुम्भ नगरी में ही शिविर लगाया हुआ था ,वहाँ रुकने का
विचार था । उनसे रुकने की बात पहले ही हो चुकी थी। हमारे 4-5 मित्र हमसे कुछ दिन
पहले ही उनके पास रुक कर आये थे ,उन्होंने वहाँ की लोकेशन समझा दी थी । फाइनली
ये तय था की यदि गेस्ट हाउस में रूम न मिले तो बाबा जी के पास ही डेरा डाला जायेगा
लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था । मेरे एक मित्र है डाक्टर प्रदीप त्यागी जी । उत्तर
प्रदेश के रहने वाले हैं और वहीँ सरकारी सेवा में हैं। योगी सरकार ने उनकी ड्यूटी
कुम्भ में लगा दी। जब उन्हें मालूम हुआ कि मैं अपने दो मित्रों के साथ कुम्भ में आ
रहा हूँ तो उन्होंने अपने पास रुकने का प्रस्ताव दिया और साथ ही कह दिया कि किसी प्रकार
की सुख-सुविधाओं से रहित सिर्फ रुकने की सीमित व्यवस्था है । हमें भला क्या आपति
थी, हमारे लिए मित्र के पास रुकना ही एक बड़ी सुख-सुविधा थी ।
जाने से एक दिन पहले सुशील ने बताया कि उनका एक
जानकार साथ जाने को कह रहा है , मैंने सुशील को कहा कि अब किसी अन्य को साथ नहीं
ले जा सकते । न तो उनकी आने-जाने की सीट बुक थी , न ही तत्काल में कोई सीट मिल रही
थी । मैंने डाक्टर साहब को भी तीन लोगों के रुकने के लिए कहा हुआ था, उसी हिसाब से
वो प्रबंध कर रहे थे । यदि अब हम चार लोग पहुँच जाते हैं तो वो क्या सोचेंगे ? यही
सोचकर किसी को अचानक यूँ साथ ले जाने में मुझे संकोच हो रहा था और इस कारण से ही मैं
सुशील को मना कर रहा था । हाँ, यदि हमें अपने रुकने की व्यवस्था वहीँ जाकर खुद
करनी होती तब बात अलग थी , कोई भी साथ जाता कोई दिक्कत नहीं थी ।
खैर तय दिन शाम को हम स्टेशन पहुँच गए । सुशील ने
हमें अनजान साथी प्रदीप अग्रवाल जी से मिलवाया । प्रदीप जी उम्र में हमसे काफी बड़े
थे । उनके लिए स्लीपर टिकेट लेकर गाड़ी में सवार हो गए और प्रयाग राज़ के लिए निकल
लिए । हम प्रदीप जी से जल्दी ही घुल मिल गए। आशा के विपरीत हमारी ट्रेन उन्चाहर
एक्सप्रेस ठीक टाइम से चलती रही लेकिन जब सफ़र आधे घंटे का रह गया तो गाड़ी “फाफा मऊ”
स्टेशन पर काफी देर खड़ी रही । कुल मिलाकर सफ़र बढ़िया रहा। प्रयागराज पहुंचकर पहले
खाने पीने का काम निपटाया और फिर एक ऑटो से कुम्भ नगरी की तरफ चल दिए । डाक्टर
साहब ने हमें “कहाँ पहुँचना है और कैसे पहुँचना है” पहले ही समझा दिया था। शाम 4
बजे के लगभग हम कुम्भ नगरी के सेक्टर-11 में डाक्टर साहब के ठिकाने पर पहुँच गए ।
गर्मजोशी से मिलने के बाद चाय-पानी का दौर चला फिर डाक्टर साहब अपनी ड्यूटी पर डिस्पेंसरी
चले गए और हम लोग मेले में घूमने । यहीं सेक्टर-11 में बनारस के पास भदोही के रहने
वाले एक अन्य मित्र सूरज मिश्रा ने भी टेंट लगाये हुए थे जहाँ यात्रियों के रुकने
और खाने की सशुल्क व्यवस्था थी । वे भी फोन पर मेला क्षेत्र में हमारी लोकेशन
पूछकर हमसे मिलने आ गए और फिर काफी देर मिश्रा जी हमें मेला क्षेत्र में घूमाते
रहे। कुछ देर बाद डाक्टर त्यागी जी भी हमसे आ मिले और फिर सबने एक साथ खाना खाया
,काफी देर गपशप की और फिर डाक्टर साहब के साथ उनके टेंट में आकर सब सो गए ।
अगले दिन बसंत पंचमी का शाही स्नान था । हम लोग
जल्दी से उठकर संगम की तरफ चल दिए जो यहाँ से लगभग 2 किलोमीटर दूर था । आज भारी
भीड़ आने का अनुमान था इसलिए हम बिना देर किये सीधा संगम पर चले गए । शहर की तरफ से
भारी भीड़ लगातार आ रही थी । हमने भी धक्का मुक्की के कारण दो –दो के ग्रुप बना कर
नहाने का फैसला किया ।पहले सुखविंदर और प्रदीप जी अपना सारा सामान हमें पकड़ा के
नहाने चले गए। बेशुमार भीड़ होने के कारण हमें खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था । जब
साथी वापिस आये तो हम नहाने चले गए । चूँकि संगम के पास काफी भीड़ थी तो हमने अपने
साथियों को थोड़ा पीछे मीडिया केंद्र के पास खुली जगह में हमारा इंतजार करने को कहा
। जब हम नहा कर वापिस आये तो हमारे दोनो साथी लापता हो चुके थे । लगभग 15-20 मिन्ट
उन्हें खोजते रहे लेकिन सफल नहीं हुए । चूँकि हम दोनो सिर्फ अंडरवियर ही पहने हुए
थे तो जल्दी ही ठण्ड भी लगनी शुरू हो गयी ।हमारे फोन भी उनके पास थे ,सम्पर्क कैसे
करते ? मैंने सुशील से मजाक में कहा कि यहाँ नागा साधू बेशुमार हैं क्यूँ न हम भी
शरीर पर रेत मलकर वापिस चलते हैं । लोग हमें भी नागा साधू समझ लेंगे। उसने हँसते
हुए जबाब दिया कि , ढूढने की थोड़ी कोशिश और करते हैं नहीं तो नागा साधू ही बनना
पड़ेगा। एक अनजान यात्री से फोन लेकर उन्हें फोन लगाया लेकिन उन्होंने फोन नहीं
उठाया । सुचना केंद्र से भी लगातार अनाउंसमेंट हो रही थी ,शायद इसी शोर के कारण
उन्हें फोन की रिंग न सुनी हो । यात्री अपना फोन लेकर निकल गया । फिर एक दूसरे यात्री
से एक कॉल करने की रिक्वेस्ट की और इस बार साथियों से बात हो गयी और हमारे नागा
बनने की नौबत नहीं आई। वे दोनो आराम से
दूसरी तरफ बैठकर शाही सवारियाँ देख रहे थे । हमने जल्दी से कपडे पहने और जल्दी से
उस भीड़ वाले क्षेत्र से बाहर निकलने का फैसला किया ।
इधर संतो- महंतो के बड़े-बड़े समूह सज़-धज कर ,गाजे
बाजे के साथ स्नान के लिए आ रहे थे । इनके
लिए एक अलग मार्ग निश्चित होता है उस पर समान्य लोगों को जाने की अनुमति नहीं होती।
इस तरह संतो के समूह में स्नान करने जाने को पेशवाई कहा जाता है । कुम्भ के आयोजनों
में पेशवाई का महत्वपूर्ण स्थान है। ‘‘पेशवाई’’ प्रवेशाई
का देशज शब्द है जिसका अर्थ है शोभायात्रा जो विश्व भर से आने वाले लोगों का
स्वागत कर कुम्भ मेले के आयोजन को सूचित करने के निमित्त निकाली जाती है। पेशवाई
में साधु-सन्त अपनी टोलियों के साथ बड़े धूम-धाम से प्रदर्शन करते हुए कुम्भ में
पहुँचते हैं। हाथी, घोड़ों, बग्घी,
बैण्ड आदि के साथ निकलने वाली पेशवाई के स्वागत एवं दर्शन हेतु
पेशवाई मार्ग के दोनों ओर भारी संख्या में श्रद्धालु एवं सेवादार खडे़ रहते हैं जो
शोभायात्रा के ऊपर पुष्प वर्षा एवं नियत स्थलों पर माल्यापर्ण कर अखाड़ों का स्वागत
करते हैं। अखाड़ों की पेशवाई एवं उनके स्वागत व दर्शन को खड़ी अपार भीड़ पूरे माहौल
को रोमांच से भर देती है। पेशवाई का मार्ग, तिथि, समय एवं दल में सदस्यों की अनुमानित संख्या पूर्व निर्धारित होती है,
जिससे मेला प्रशासन एवं अन्य सेवा दल आवश्यक व्यवस्थाओं को
सुनिश्चित कर सके। पेशवाई वाले स्नान के दिन को ही शाही स्नान कहा जाता है ।
काफी देर तक पेशवाई देखने के बाद हम डाक्टर साहब
के आशियाने पर लौट आये । आकर थोड़ी देर आराम करने के बाद खाना खाने चले गए । खाना खाकर
वापिस आये तो दोपहर हो चुकी थी और हम सब काफी थक भी चुके थे इसलिए सभी टेंट में
आकर सो गए ।
मेला क्षेत्र में सभी निर्माण अस्थायी बने होते
हैं । हॉस्पिटल ,डिस्पेंसरी, पंडाल ,महात्माओं के शिविर इत्यादि सब कुछ अस्थायी । मेले के ख़तम होते ही सब कुछ
हट जाता है । इस बार कुम्भ में सफाई की व्यवस्था भी बड़ी जबरदस्त थी । हमें गंदगी कहीं
नहीं दिखी । जगह-जगह बड़े-बड़े डस्टबिन रखे हुए थे । शौचालयों में भी नियमित सफाई हो रही थी । सभी सफाई कर्मचारी अपना काम अच्छी तरह से कर रहे थे। इतने बड़े और
लम्बे आयोजन में बढ़िया सफाई व्यवस्था रख पाना सरकार के एक अच्छे प्रबंधन को
दर्शाता है। इसके लिए सभी संबधित लोगों को साधुवाद ।
दोपहर के आराम के बाद सभी रिफ्रेश हो चुके थे . सभी शाम की चाय पीकर दोबारा कुम्भ क्षेत्र में
घूमने निकल गए। काफी देर विभिन्न पंडालों में घूमते रहे और जब घूमते-फिरते काफी थक
गए तो वापिस लौट आये और फिर त्यागी जी के साथ जाकर खाने का काम निपटाया । खाना खाने
के बाद सभी काफी देर तक गपशप करते रहे ,कब आधी रात हो गयी पता ही नहीं चला । कल
सुबह हमें अयोध्या के लिए निकलना था इसलिये और ज्यादा देरी न किये हम सब सो गए। अगले
दिन सुबह जल्दी से उठकर तैयार हो गए और एक कप चाय पीकर, डाक्टर साहब से विदा ली और
जल्दी दोबारा मिलने का वादा कर सुबह-सुबह ही बस स्टैंड के लिए रवाना हो गए ।
कुम्भ पौराणिक महत्व : कुंभ पर्व के आयोजन को
लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों
द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा
के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो
दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान
विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों
के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के
ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग
गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र 'जयंत'
अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य
के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर
परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर
अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।
इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार
स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण
होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु
ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत
करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस
प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।
जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की
वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस
राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है,
उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व
होता है। गंगा, यमुना व सरस्वती नदियों के संगम और स्वार्गिक
अमृत से पवित्र भू-भाग प्रयागराज लोकप्रिय कुम्भ मेला के चार स्थानों में से एक
है।
ये भी एक शिविर ही था |
फोटो साभार -नरेंदर चौहान |
फोटो साभार -नरेंदर चौहान |
सजधज कर पेशवाई को आते संत- महंत |
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/04/2019 की बुलेटिन, " १०० वीं जयंती पर भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह जी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार शिवम् मिश्रा जी .
Deleteनरेश जी ... कुंभ के बारे में बहुत अच्छे से वर्णन किया आपने ....त्यागी जी की साहयता से आपको रुकने की जगह भी मिल गयी...... कुल मिलाकर अच्छा लेख ....
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश गुप्ता जी .
DeleteNice post with detail description and beautiful pictures of Kumbh Mela
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ साहब .
Deleteबेहद खूबसूरत पोस्ट .पढ़कर आनंद आ गया . अच्छा हुआ नागा साधु बनने की नोबत न आई.
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी . यूँ ही उत्साहवर्धन करते रहो .
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजय हो भारत के दिव्य कुम्भ भूमि की
धन्यवाद डाक्टर साहब . ब्लॉग पर आपका स्वागत है .
Deleteमैंने तो आज तक अर्द्ध कुम्भ भी नहीं देखा क्योंकि बचपन से ही ऐसी फिल्में देखीं जिनमें दो भाई या भाई बहन कुम्भ के मेले में बिछड़ जाते हैं सो डर बैठ गया था। पर चलो शुक्र की बात है कि आपकी आंखों से कुम्भ स्नान का पुण्य मिल गया!
ReplyDeleteअच्छा तो आप लिखते ही हो सो ज्यादा तारीफ न करते हुए प्रणाम करता हूँ।
उत्साहवर्धन के लिए बहुत धन्यवाद सुशांत सर जी .
Deleteवाह ! बढ़िया वर्णन किया है नरेश जी आपने
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप धौंचक जी .
Deleteमहत्वपूर्ण जानकारी..बढ़िया वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद धीरज पन्त जी
Deleteजय जय......हमेशा की भाँति शानदार पोस्ट.......��
ReplyDeleteमुझ अकिंचन का आतिथ्य स्वीकार करने का शुक्रिया.......बेहतरीन समय गुजरा आप मित्रों के साथ......लगा बनवास में बहार आ गयी थी....��
धन्यवाद डाक्टर साहेब .सच में आपका साथ बहुत बढ़िया रहा .
Deleteधन्यवाद बीनू भाई .
ReplyDeleteवो साथी के फोन न उठाने पर असमंजस की स्थिति अलग ही थी....डॉक्टर साहब के साथ जितना भी घूमो रहो बाते करो उसका मजा ही अलग है....इस बार वाकई बहुत अद्भुत कुम्भ रहा और सफाई बहुत अच्छी रही ...हमेशा की तरह बढ़िया लेख...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई . सच में एक बार तो हम परेशान हो गए थे .
DeleteLajwab ! �� yadein taza ho gai.. bt sehgal sahab aapne iss baar ek baar bhi slaad ka jikr nhi kiya ...
ReplyDeleteधन्यवाद . सलाद तुम लेकर ही नहीं गए . कैसे खाते ? हा हा हा ..
Deletesehgal ji bahut sunder varnan likha hai
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप अग्रवाल जी .आपका ब्लॉग पर स्वागत है .
Deleteवाह बहुत बढ़िया .घर बैठे कुम्भ मेले के दर्शन करवा दिये . जय हो .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय कुमार जी .
Deleteजय भोलेनाथ.... काश आप नागा साधु बन गये होते
ReplyDeleteजय भोलेनाथ अनिल . यदि हम नागा साधू बनते तो तुम्हे भी चेला बनना पड़ता .
Deleteये भी एक महान आयोजन होता है कुम्भ का ...न कोई छोटा न कोई बड़ा ...क्या पर्व है और क्या महान संस्कृति का प्रणेता है कुम्भ ...अद्भुत संगम है परम्पराओं और संस्कृति का ...बेहतरीन अंदाज में लिखा है सहगल साब ...साधुवाद
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .जय हो भारत के दिव्य कुम्भ भूमि की.
DeleteWe are offering you cheapest Amarnath Yatra by Helicopter at reasonable prices and our packages suit your unique expectations from the holy pilgrimage. Amarnath Yatra by Helicopter from Baltal and Pahalgam routes, Amarnath Yatra Package specially designed for the like minded Indian tourists, Amarnath Tour Package, Amarnath Yatra Tour Packages by Pushpa Travels
ReplyDeleteVisit - http://www.pushpatravels.com/pilgrimage-tour-package.php?cat_id=27
or
Call Us - 9990684399
This blog is very interesting as it gives a lot of information
ReplyDeletefor the travelers who are planning to travel and I loved reading your post.
Luxury Hotel Mussoorie
Top 5 Attractions of Uttar Pradesh
Bollywood movie review
search engine optimization services in bangalore
ReplyDeleteSearch engine optimization Services & why we need SEO Services
SEO is one of the important marketing methods any business would
require to get strong visibility on Search Engines. If you want
your website to get displayed on the first few results pages, this
is where you exactly required SEO.
If you looking for an expert in SEO services In Bangalore, Connect
with us and we guarantee to provide you with the right plans and strategies
that would meet your business requirements.
SEO might be a long-term process but success is certainly guarante
ed. You just have to apply the right strategies for the good yield.SEO is
successful when both searchers and the search engine are
provided with the relevant information.
So, if you want to boost your brand's online presence with our
Professional Search engine optimization Services, please look
for these benefits to have some more clarity:
search engine optimization in bangalore
?SEO increases Organic Traffic
SEO works wonder when you have to offer the same services what
your customer are exactly looking for. They are a great tool for
targeting and re-targeting strategies. If your traffic is increased,
visibility of your pages increases automatically and you don't have to
pay to get the messages to them.
Thanks for sharing amazing blog. It is really interesting article. Waiting for more information to update soon. To Know More details about our Travel services: Winmaxi Holidays & Travels is one of the best travel services in Coimbatore.
ReplyDeleteThis blog is very interesting as it gives a lot of information
ReplyDeletefor the travelers who are planning to travel and I loved reading your post. the triveni sangam - prayagraj
Thank you so much for this information ….I liked your blog very much it is very interesting and I learned many things from this blog which is helping me a lot.
ReplyDeleteVisit our website: Escape to the vibrant Mexico City
Southwest Airlines Companion Pass is a game-changer! It’s not just a pass; it’s a ticket to endless adventures with my favorite travel buddy. Thank you, Southwest, for making travel memorable!
ReplyDeleteSecuring Southwest flight delay compensation is crucial. Delays can be frustrating, but knowing your rights matters. Reach out for expert assistance and ensure you receive the compensation you deserve.
ReplyDeleteSouthwest Airlines Group Travel is a game-changer! Their dedicated service and seamless planning made our recent group trip a breeze. Highly recommend for stress-free travel experiences!
ReplyDelete