शिकारी माता और कमरुनाग यात्रा- हिमाचल
शिकारी माता यात्रा :
पिछले वर्ष (2018)
नवम्बर में हिमाचल घुमने का प्रोग्राम बना । इच्छा तो शुरू से चुडधार जाने की थी
लेकिन नवम्बर के शुरू में ही वहाँ बर्फ़बारी हो जाने से वहाँ की यात्रा इस समय मुमकिन
नहीं थी । चुडधार में ऊपर मंदिर में और रास्ते में रुकने और खाने-पीने की सब व्यवस्था
बंद हो चुकी थी और अब हम ठहरे देसी घुमक्कड़ ! हमारे पास न तो रुकने के लिए अपने
टेंट हैं , न ही स्लीपिंग बैग। इसलिए वहाँ जाना स्थगित कर हिमाचल के ही मंडी जिला
में स्तिथ शिकारी देवी और कमरूनाग जाने का फाइनल कर लिया। यात्रा के लिए दो साथी
भी तैयार हो गए ,एक तो मेरी यात्राओं के लगभग स्थायी साथी ,मेरे सहकर्मी सुखविंदर
सिंह और दुसरे हरीश गुप्ता । 21 नवम्बर सुबह 8 बजे निकलना निश्चित हो गया ।
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SHIKARI DEVI Temple |
तय दिन, सुबह निकलने
से लगभग आधा घंटे पहले हरीश गुप्ता का फोन आया । फ़ोन कॉल देखकर मेरी छटी इंद्री ने
कहा , अब ये पक्का जाने से मना करेगा । वही हुआ , कोई जरूरी कारण बता गुप्ता जी ने
मना कर दिया । मूड ख़राब हुआ । अब जाने से एकदम पहले कोई मना कर दे ,चाहे कारण
कितना भी जायज हो , मूड तो ख़राब होता ही है, गुस्सा भी आता है । उसकी 30 सेकंड्स
की इस काल से हमारा आने -जाने का खर्चा भी 50% बढ़ गया । गाड़ी का जो खर्च तीन लोगों
में बँटना था वो अब सिर्फ दो के हिस्से आयेगा। खैर !! क्या कर सकते थे। हम दोनों
ने ही जाने का फाइनल रखा और लगभग सुबह साढ़े आठ बजे अम्बाला से निकल लिए ।
अम्बाला से खरड
,कुराली, रोपड़ होते हुए कीरतपुर तक सड़क शानदार बनी है । पहला ब्रेक रोपड़ क्रॉस
करने के बाद लिया । सड़क किनारे किन्नू बेचने वाले किन्नू के बड़े -२ ढेर लगा कर
बैठे थे। ऐसी ही एक जगह पर हमने भी गाड़ी रोक ली । एक-एक गिलास जूस
पिया और दो किलो किन्नू खरीद कर गाड़ी में रख कर आगे के सफ़र में चल दिए । कीरतपुर
तक का 110 किमी का सफ़र दो घंटे में आराम से कट गया । कीरतपुर से हमने अपनी गाड़ी
दायें हाथ मनाली वाली सड़क पर मोड़ ली । यहाँ से थोड़ा आगे चलने पर पहाड़ियाँ शुरू हो
जाती हैं और स्वारघाट तक लगातार चढ़ाई है ।
कीरतपुर से स्वारघाट तक सड़क काफी खराब है । पिछले दो तीन साल से यहाँ फोर लेन का
काम चल रहा है ,पता नहीं कब खत्म होगा ? जहाँ तक फोर लेन बन चुकी है वहाँ भी सड़क
के बीच बहुत बड़े- बड़े खड्डे हैं और यहाँ सड़क पर ट्रकों की भरमार है। किसी तरह
स्वारघाट पहुँचे ,यहाँ पिन्जोर- नालागढ़ से आने वाली सड़क भी इसमें मिल जाती है ।
आगे सारा पहाड़ी इलाका ही है ,कभी उतराई तो कभी चढ़ाई । बिलासपुर के पास पहला टी-ब्रेक
लिया गया ।
हिमाचल में सुंदरनगर
के रहने वाले तरुण गोएल मेरे फेसबुक मित्र हैं । फेसबुक के माध्यम से ही मैं उनके
बारे में थोड़ा बहुत जानता हूँ लेकिन शायद वे मेरे बारे में नहीं जानते । तरुण गोएल
बढ़िया घुमक्कड़ हैं और हिमाचल के अच्छे जानकार भी । हिमाचल के बहुत से कठिन पर्वतीय
दर्रों और झीलों की यात्रा कर चुके हैं । इन्होने पिछले दिनों अपनी इन्ही यात्राओं
पर “सबसे ऊँचा पहाड़ “ नाम से एक किताब लिखी है। चूँकि हमें सुन्दरनगर से ही जाना
था तो मेरी इच्छा थी कि उनसे मिलकर किताब ली जाये , मिलना भी हो जायेगा और किताब
भी खरीद लेंगे । जाने से एक दिन
पहले उनके लिए मेसेज छोड़ा था । आज यहाँ चाय पीते हुए उनसे
बात करने की असफल कोशिश भी की। थोड़ी देर बाद उनका जबाब आ गया कि वे हमें सुंदरनगर मिल
जायेंगे । अपनी लाइव लोकेशन शेयर कर हम सुंदरनगर की तरफ चलते रहे । नेर चौक से
पहले ही तरुण जी हमें मिल गए । मिलना जुलना हुआ और हम सब एक साथ बग्गी की तरफ चल
दिए । बग्गी में पहाड़ के बीच से सुरंग के जरिये एक नहर निकाली गयी है। काफी अच्छा
दृश्य है । वहाँ पहुँचकर हमने तरुण जी से शिकारी देवी और कमरू नाग के बारे में कुछ
जानकारी ली । उन्होंने झंझेली में हमारे रुकने के लिए एक होटल में हमारी बात भी
करवा दी । थोड़ी देर की बातचीत के बाद हम बुक लेकर झंझेली की तरफ चल दिए और तरुण जी
वापिस सुन्दर नगर की ओर ।
तरुण जी से विदा
होकर, थोड़ा आगे चलते ही एक चाय की दुकान पर गाड़ी रोक ली और चाय का आर्डर कर दिया ।
जब तक चाय बन कर आती तब तक घर से लाये हुए परांठो से पेट पूजा की। खाने और चाय से
निपट कर झंझेली की तरफ चल दिए। यहाँ आगे एक चैल-चौक नाम से एक बड़ा सा कस्बा है ।
यहाँ से बाएं तरफ सड़क झंझेली जा रही है और दायें हाथ वाली रोहांडा । अब तक हम काफी
ऊँचाई पर आ चुके थे । मौसम साफ़ होने से सामने बर्फ से लदी चोटियाँ चमक रही थी
लेकिन पहाड़ी रास्तों पर गाड़ी चलाते हुए आस-पास देखने की बजाय सड़क पर ज्यादा ध्यान
देना पड़ता है । चैल-चौक से झंझेली लगभग 60 किमी दूर है और हम लगभग अढ़ाई घंटे में वहाँ
पहुँच गए । जिस होटल में हमें रुकना था वो झंझेली से दो किलोमीटर आगे था । हम लगभग
6:30 बजे होटल में पहुँच गए । शाम होने पर ठण्ड काफी बढ़ चुकी थी और होटल वाला बाहर
अलाव सेकते हुए हमारा ही इंतजार कर रहा था । होटल नया बना हुआ था ,साफ सुथरा और
सुन्दर कमरे । कमरा देखकर पसंद आ गया । इन दिनों ऑफ सीजन होने के कारण लोगों की आवाजाही बहुत कम थी । आज होटल में बस
हम ही रुके थे । होटल में ही भोजनालय की
सुविधा भी थी । हमने पहले चाय आर्डर की । चाय आई तो रूम अटेंडेंट को अपने साथ लाया
हुआ सलाद काटने को दे दिया ।। थोड़ी देर में सलाद की भरी हुई दो प्लेटें आ गयी । खाना
9 बजे लाने को कहकर हम अपनी आज की थकावट उतारने में मशगुल हो गए । ठीक 9 बजे कमरे
में ही खाना आ गया तब तक हमारी थकावट और ठण्ड काफी हद्द तक दूर हो चुकी थी । खाना
खा कर अच्छे बच्चों की तरह चुपचाप सो गए ।
अगले दिन सुबह 6 बजे
उठ गए । रात को रूम अटेंडेंट ने बता दिया था कि सुबह चाय 7 बजे के बाद ही मिलेगी ।तब
तक हम गर्म पानी से नहा कर तैयार हो चुके थे। चाय पीकर मैं नीचे गाड़ी साफ़ करने चला
गया । गाड़ी के आगे वाले शीशे को साफ करने के लिए जैसे ही मैंने गाड़ी में पड़ी हुई
पानी की बोतल उठाकर शीशे पर पानी डाला तो पूरा पानी एकदम से बर्फ़ बन गया । मैंने
हाथ से उतारने की कोशिश की तो बेहद ठंडी लगी । असल में बोतल रात को बाहर गाड़ी में
ही थी और रात को तापमान काफी कम हो जाने से पानी आधा जम चूका था। शीशे पर डालते ही
वो पूरा जम गया । होटल वाले से दो जग गर्म पानी मँगवाकर शीशे पर डाला तो पूरा शीशा
साफ हो गया। इस दौरान होटल वाले से आगे
के रास्ते की जानकारी भी ले ली। उसने बताया कि दो-चार दिन पहले ही आगे काफ़ी बर्फ
पड़ी है इसलिए आखिर तक गाड़ी शायद न जा पाये ,आप को कुछ किलोमीटर पैदल चलना पड़ सकता है । असल स्तिथि वहीं
जाकर मालूम होगी । गाड़ी तैयार हो गयी तो होटल में नाश्ते के बारे में पूछा तो
मालूम हुआ कि कम से कम अभी एक घण्टा और लगेगा । हम इतना इंतजार करते तो लेट हो
जाते । इसलिये बिना नाश्ता किये सुबह 7:30 बजे शिकारी माता के लिए निकल लिए । झँझेलि से 10 किलोमीटर
आगे शिकारी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है वहाँ तक ठीक सड़क बनी है । इससे दो किलोमीटर आगे
रायगड़ है जहाँ तक टूटी-फूटी सड़क है बीच-२ में ,काफी जगह पत्थर जोड़कर रखे हुए हैं । यहाँ से आगे शिकारी माता का ट्रैक शुरू होता
है, 6 किलोमीटर का कच्चा रास्ता बना हुआ है जिस पर छोटी गाड़ियां जा सकती हैं ।
होटल से निकलते ही हमें सड़क के आस पास कहीं-कहीं बर्फ़ दिखनी शुरू हो गयी थी और
जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, बर्फ भी बढ़ती जा रही थी। पूरा रास्ता और आसपास का
पूरा इलाका बेहद ही खूबसूरत है। रायगढ़ से आगे तो रास्ते में ही बर्फ मिलनी शुरू हो
गयी । कच्चा रास्ता होने के कारण , बर्फ़ का पानी पिघल कर कीचड़ बना हुआ था जिस कारण
गाड़ी बड़ी धीरे और सावधानी से चलानी पड़ रही थी । आगे एक जगह ,एक तीखा मोड़ आया और
साथ में चढ़ाई भी । कच्चे रास्ते में पक्की बर्फ की लेयर जमी थी। कार के चारों
पहिये भी गीली मिटटी से भरकर पुरे फ्लैट हो चुके थे, इसलिये गाड़ी आगे जाने की बजाय
पीछे स्लिप होने लगी । दोनों ने अलग-अलग कोशिश की लेकिन नाकाम रहने पर गाड़ी को
पीछे लाकर एक साइड में लगा दिया और पैदल चल पड़े । यहाँ से 2 किलोमीटर का कच्चा
रास्ता बाकि था । बर्फ की वजह से हम भी सावधानी से चल रहे थे । थोड़ा आगे जाकर
रास्ता ठीक हो चूका था । थोड़ी ही देर बाद हम इस कच्चे रास्ते के आखिरी छोर पर
पहुँच चुके थे । यहाँ से शिकारी माता के मंदिर जाने के लिए सीड़ियाँ से चढ़ाई शुरू
होती है । नीचे एक दुकान थी जिसका मालिक, सीजन ऑफ जाने के कारण आज दुकान का सारा
सामान पैक करके बोलेरो में डाल रहा था । उसने बताया कि यहाँ से 450 सीड़ियाँ है,
उसके बाद 250-300 मीटर का रैंप वाला रास्ता । मेरा फ़ोन इस जगह की ऊंचाई 3165 मीटर
बता रहा था ।
सुबह के 9:50 हो चुके थे ,हमने सीड़ियाँ चढ़नी शुरू कर दी । 50 सीड़ियाँ गिन कर
चढ़ते ,फिर 2 मिनट खड़े-खड़े आराम करते और फिर अगली 50 की गिनती शुरू कर देते । यहाँ
सीड़ियों पर भी पक्की बर्फ जमा थी इसलिए सावधानी से चल रहे थे । थोड़ा ऊपर जाने से
कुछ दुकाने दिखनी शुरू हो गयी ,बायीं तरफ यहाँ रुकने के लिए कुछ सराय भी बनी हुई
है । उससे लगभग 50 मीटर ऊपर और पहाड़ की एकदम छोटी पर शिकारी माता का मंदिर । हमें
यहाँ तक पहुँचने में 30 मिनट लगे । ऊपर जाकर शानदार बुग्याल में पहले विश्राम किया
फिर मंदिर में चले गए । यहाँ पहुँचने वाले आज हम पहले यात्री थे । मेरा फ़ोन शिकारी
माता मंदिर की ऊंचाई 3340 मीटर बता रहा था । मंदिर की परिक्रमा में भी पूरी बर्फ
जमा थी । यहाँ से 360 डिग्री व्यू दीखता है । चारों तरफ बर्फ से लदी सुन्दर
चोटियाँ !!! एकदम मन्त्र मुघ्ध कर देने वाला दृश्य । ऐसा एक दृश्य ही पुरे सफ़र की
थकान मिटाने वाला और पैसा वसूल करने वाला होता है । यहाँ तो चारों तरफ ही ऐसे
दृश्य थे , बीच में कोई बाधा नहीं । यहाँ से आप पुरे धौलाधार ,त्रियुंड ,शंकरपाल
,इन्द्रासन ,देवतिब्बा ,रोहतांग की चोटियों और भी बहुत सी अन्य चोटियों को आराम से
देख सकते हैं । काफी देर तक बेसुध से हम दोनों चारों तरफ फैले इन नजारों को अपने
में आत्मसात करते रहे । हमें मंदिर में देखकर मंदिर के पुजारी आ गए । उनसे कुछ देर
बातचीत हुई । उन्होंने बताया कि यहाँ से एक रास्ता कमरुनाग के लिए जाता है । उन्होंने
दक्षिण दिशा की तरफ इशारा कर हमें कमरुनाग मंदिर की लोकेशन बताई । उनका गाँव भी
इसी रास्ते में कहीं पड़ता था । अगर हम गाड़ी से न आते और हमारी गाड़ी नीचे न खड़ी
होती तो हम अवश्य ही यहाँ से कमरुनाग ट्रेक के लिए निकल जाते । अगली बार ऐसा ही
प्लान करके आयेंगे । लगभग एक घंटा यहाँ बिताने के बाद हम थोड़ा नीचे की तरफ आये और
एक दुकान में आकर आलू के परांठे और चाय का आर्डर दे दिया । नाश्ते से निपटने के
बाद हम तेजी से नीचे उतर गए ,मुश्किल से 15 मिनट लगे । फिर 2 किलोमीटर चल कर अपनी
गाड़ी के पास पहुँचे और फिर अपनी गाड़ी से आज की अगली मंजिल रोहांडा की तरफ चल दिए ।
शिकारी माता मंदिर :
शिकारी माता मंदिर मंडी जिले में, चौहार घाटी में एक ऊँचे शिखर पर 10,768 फुट पर स्थित है । शिकारी माता के नाम से ही, इस शिखर को लोग अब शिकारी पर्वत के नाम से भी
जानने लगे है । यहाँ पहुँचने के लिए बस या कार का उपयोग किया
जा सकता है । बसें सिर्फ जन्जैहली तक जाती है, वहाँ से आगे अक्सर लोग जीप किराए पर लेकर ही जाते हैं,
क्योंकि भूलह से आगे बड़ी गाड़ी नहीं जा सकती। अगर सुंदर नगर की ओर से जाना हो तो चैल चौक, कांडा, बगस्याड, थुनाग और
जन्जैहली होते हुए 94 किलोमीटर , की दुरी तय करनी
होती है । इस सुंदर स्थान पर
महर्षि मार्कंडेय ने बहुत वर्षों तक माँ भगवती की तपस्या की थी । माता ने प्रसन्न हो कर दुर्गा रूप में दर्शन दिए और इसी
स्थान पर स्थापित हो गयी। बाद में जब कई हजारों वर्षों बाद यहाँ पाण्डवों का आगमन
हुआ तो उन्होंने यहाँ माता का स्थान देख कर, माता का भवन बनाने का
निश्चय किया, मगर समयाभाव के कारण मंदिर का निर्माण पूरा
नहीं हो सका, अभी दीवारें ही बनी थी, कि पाण्डवों को यहाँ से प्रस्थान करना पड़ा, और मंदिर की छत नहीं डल
सकी थी । आज भी यह मन्दिर बिना छत का ही है । बाद के वर्षों में बहुत से लोगों ने यहाँ छत डालने का
प्रयास किया, मगर काम पूरा होने से पहले ही निर्माण ढह जाता
है ।
जिस जगह पर यह मंदिर है, वह बहुत घने जंगल के मध्य ने स्थित है लेकिन जहाँ माता शिकारी का निवास है उसके आस-पास दो- तीन सौ मीटर तक कोई पेड़-पोधा नहीं है । अत्यधिक जंगल होने के कारण यहाँ जंगली जीव-जन्तु भी बहुतयात में हैं । पुराने जमाने में लोग शिकार करने के लिए इस घने जंगल में आया करते थे और पहाड़ की चोटी पर जहाँ माता का मंदिर है, वहीँ से जंगल में शिकार का जायजा लेते थे । कभी-२ मन्दिर में जाकर माँ को प्रणाम करते और आग्रह करते कि आज कोई अच्छा शिकार हाथ लगे, कई बार शिकारियों की मुराद भी पूरी हो जाती थी, तब तक यहाँ का नाम शिकारी नहीं था, लोग अक्सर शिकार की तलाश में आते रहते थे, तो यह स्थान शिकारगाह में ही तब्दील हो गया, शिकार वाला जंगल होने के कारण, लोगों ने इसे शिकारी कहना शुरू कर दिया। धीरे-2 यहाँ स्थापित दुर्गा माँ भी शिकारी माता के नाम से जानी जाने लगी और प्रसिद्ध हो गई ।
अगली पोस्ट में आपको कमरुनाग मंदिर ले चलेंगे ,तब तक आप यहाँ की तस्वीरें देखो ।
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पहला ब्रेक -जूस के लिए |
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सुखविंदर ,तरुण जी के साथ |
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चैल चौक से आगे दिख रहा दृश्य |
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चैल चौक से आगे दिख रहा दृश्य |
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यहाँ से सीड़ियाँ शुरू होती है |
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चलते रहो |
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सीडियों पर जमी बर्फ ..पैर फिसलने का खतरा |
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आस पास घना जंगल |
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दूर दिख रही हिमालय की चोटियाँ |
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मंदिर से कमरुनाग जाने का रास्ता |
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मंदिर परिक्रमा में पड़ी बर्फ |
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शिकारी माता का बिना छत का मंदिर |
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जय माता की |
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रास्ते में घटी में पड़ी बर्फ |
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गाड़ी फंस गयी तो पैदल मार्च शुरू |
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दूर दिख रही हिमालय की चोटियाँ |
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खुबसूरत रास्ते |
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खुबसूरत रास्ते |
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खुबसूरत रास्ते |
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खुबसूरत रास्ते |
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दूर दिख रही हिमालय की चोटियाँ |
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बर्फ से भरा रास्ता .इस पर गाड़ी चलाना तो दूर चलना भी मुश्किल था |
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सामने दिख रही गाड़ी पार्किंग और इस पर्वत की छोटी पर ही मंदिर है |
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दूर दिख रही हिमालय की चोटियाँ |
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दूर दिख रही हिमालय की चोटियाँ |
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मंदिर का बाहर का दृश्य |
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मंदिर का इतिहास |
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ये शायद इन्द्रासन छोटी है या देव टिब्बा |
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दूर तक फैली खुबसूरत घाटी |
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दूर तक फैली खुबसूरत घाटी |
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Add caption |
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खुबसूरत रास्ते
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दूर तक फैली खुबसूरत घाटी
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दूर तक फैली खुबसूरत घाटी
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मंदिर के पास रुकने के लिए बनी सराय |
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मंदिर में सुखविंदर |
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दूर तक फैली खुबसूरत घाटी
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दूर तक फैली खुबसूरत घाटी
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दूर तक फैली खुबसूरत घाटी
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दूर दिख रही हिमालय की चोटियाँ
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दूर दिख रही हिमालय की चोटियाँ
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दूर दिख रही हिमालय की चोटियाँ
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हमें वापसी में ये लड़के जाते हुए मिले |
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खुबसूरत रास्ते
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खुबसूरत रास्ते
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बर्फ में मस्ती तो बनती ही है |
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २३०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteछुटती नहीं है मुँह से ये काफ़िर लगी हुई - 2300 वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आभार सलिल जी ।💐💐
Deleteशानदार तस्वीरें एवं बेहद बढ़िया वर्णन . जय शिकारी माता ..
ReplyDeleteधन्यवाद जी 💐💐
Deleteगजब नजारे..
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी 💐💐
Deleteवाह नरेश सहगल जी! हम जैसे बुजुर्गों के लिए तो आपका रोचक वृतांत और ऐसे मनोरम दृश्यों के चित्र देखना ही काफ़ी है. मुझे सबसे सुन्दर चित्र उस शांत और पवित्र नदी का लगा.
ReplyDeleteजीवन में सफल वही होते हैं जो कठिन से कठिन चुनौतियों को स्वीकार करते हैं. अगली बार हमको ऐसे ही किसी और रमणीक स्थल की सैर कराइयेगा.
धन्यवाद गोपेश जसवाल जी 💐💐। ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
Deleteबेहतरीन यात्रा वर्णन व फ़ोटो भी।
ReplyDeleteकाफी अच्छा लगा पढ़कर।
धन्यवाद सचिन त्यागी जी 💐💐
Deleteबहुत सुंदर,
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी 💐💐
Deleteबढ़िया यात्रा वृतांत सहगल साहब और हमेशा की तरह चित्रों के माध्यम से सजीव चित्रण ।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय कौशिक जी 💐💐
Deleteधन्यवाद शास्त्री जी 💐💐
ReplyDeleteबेहतरीन यात्रा वर्णन . सभी तस्वीरें भी एक से बड़कर एक . साँझा करने के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ साहब💐
Deleteजाने से पहले आधे घंटे पहले आये फोन ने आपको बता दिया.... तरुण गोयल से मुलाकात अच्छी लगी...जंजैहली बहुत अच्छी जगह लगी और नजारे एक से एक...बढ़िया जानकारी से भरी पोस्ट....
ReplyDeleteशुक्रिया प्रतीक जी 💐💐
DeleteBahut Khoobsurat.....Excellent Outstanding Clicks
ReplyDeleteThanks Romy jee 💐
Deleteखूबसूरत दृश्य और सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteआभार रेखा पन्त जी ।💐
Deleteसर्दियों के मौसम में अगर ज्यादा दूर नहीं जाना हो तो शिकारी देवी मुझे परफेक्ट जगह लगी। बर्फ और प्रकृति के अद्भुत नज़ारे मिल जाते हैं !! बहुत बढ़िया सहगल साब
ReplyDeleteधन्यवाद योगी सारस्वत जी । 💐💐
Deleteशानदार प्रस्तुति भाई जी। एक जानकारी ओर देने का कष्ट करें। शिकारी माता पर जाने के लिए किसी परमिट वगैरह की आवश्यकता तो नहीं होगी
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील मित्तल जी । यहाँ जाने के लिए किसी परमिट की कोई जरूरत नही है ।
Deleteजबरदस्त बेहतरीन यात्रा वर्णन...सहगल साहब
ReplyDeleteधन्यवाद संजय भास्कर जी ।💐💐
Deleteमनोरंजक लेखन व सुन्दर फोटोग्राफी है
ReplyDeleteधन्यवाद जी . ब्लॉग पर आपका स्वागत है
Deleteएक और शानदार यात्रा की शुरुआत सहगल जी, बर्फ से लदी चोटियों की बात ही अलग है ! आपने बढ़िया जानकारी दी है !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप चौहान जी. संवाद बनाये रखिये .
Deleteशानदार वर्णन और तस्वीरें...
ReplyDeleteधन्यवाद विजया दीदी ...
Deleteएकदम जबर पोस्ट फ़ोटो ने तो महफ़िल लूट ली सहगल साहब
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई ।बड़े समय बाद आये हो । अब आते रहना 👍💐💐
Deleteवाह वाह। बढ़िया वृत्तांत। फ़ोटो तो वॉलपेपर बनाने लायक है। अंतिम समय मे मना करने का दुःख हमे भी पता है। फ़ोन में ऊँचाई कैसे देखते है।
ReplyDeleteThanks ANit kumar. You can use Altimetr app in phone to check altitude.
Deleteबढ़िया विवरण...चित्र सारे लाजवाब
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ReplyDeleteकाफी अच्छा लगा पढ़कर।
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