कन्याकुमारी और सुचिन्द्रम मंदिर :
अगले दिन सुबह साढ़े 4 बजे ट्रैन
नागरकोइल स्टेशन पहुँच गयी। यह स्टेशन कन्याकुमारी से 20 किमी पहले एक जंक्शन है। अधिक्तर गाड़िया यहीं से होकर गुजरती हैं और कन्याकुमारी तक
तो कुछ ही गाड़ियाँ जाती हैं । ट्रैन से उतर कर
हम प्लेटफार्म एक पर बने रिटायरिंग रूम चले गए जहां शौचालय और स्नानघर की सुविधा
थी । इस सुविधा का हमने भी लाभ उठाया और नहा धोकर तैयार हो गए । हल्का फुल्का
नाश्ता करने के बाद हमने अपना सामान स्टेशन पर ही बने क्लॉक रूम में जमा करवा दिया
और एक छोटा पिठ्ठू बैग लेकर स्टेशन से बाहर आ गए । नागरकोइल स्टेशन ,कन्याकुमारी जाने वाले मुख्य राजमार्ग से लगभग आधा किलोमीटर अन्दर है । स्टेशन के बाहर हमने एक ऑटो वाले से
कन्याकुमारी जाने के लिए पूछा , उसने बताया कि वो
हमें मुख्य मार्ग पर छोड़ देगा जहाँ से हमें कन्याकुमारी के लिए आराम से बस मिल
जाएगी ऑटो से कन्याकुमारी जाना काफी महंगा
पड़ेगा । हमने उसकी बात मान ली और उसने हमें 30/40रुपये में मुख्य मार्ग पे बने बस स्टॉप
पर छोड़ दिया । कुछ ही मिनट के अंतराल के बाद हमे कन्याकुमारी के लिए बस मिल गयी।
नागरकोइल से कन्याकुमारी की तरफ, 7 किमी दूर सडक के दायीं
तरफ एक शानदार और भव्य मंदिर बना हुआ है जो सुचिन्द्रम के नाम से विख्यात
है । हमारा आज यहाँ भी जाने का प्रोग्राम था लेकिन कन्याकुमारी के सूर्योदय देखने
के लालच में इसे वापसी में देखने का तय किया था । लगभग आधे घण्टे की यात्रा
के बाद बस कन्याकुमारी पहुँच गयी। बस ने हमे एक तिराहे पर उतार दिया । जहाँ से
दायीं तरफ बीच पर जाने का रास्ता था । सामने सीधा जाकर थोड़ी दूरी पर सड़क खत्म हो
रही थी और सामने विशाल हिन्द महासागर था । बायीं तरफ और मुख्य सड़क पर बाजार है । विवेकानंद
मेमोरियल पर नाव से जाने के लिए टिकट वितरण केन्द्र भी बायीं तरफ जाने वाली सड़क पर
थोड़ा आगे जाकर है । मुख्य सड़क पर आगे जाकर बायीं तरफ एक और संकरा सा रास्ता जा
रहा है जो देवी कन्याकुमारी मंदिर जाता है । बायीं तरफ वाली पिछली सड़क से भी मंदिर
को रास्ता आ जाता है ।
इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा
जाता है कि भगवान शिव ने असुर बाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा
किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा
भरत की आठवीं पुत्री कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने
दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी इच्छा थी कि वह शिव से
विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और
विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बाणासुर का कुमारी
के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच
बाणासुर को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष
शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे
विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बाणासुर को मृत्यु की प्राप्ति हुई। तब देवताओं ने
समुद्र तट पर पराशक्ति के कन्याकुमारी स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर
यह स्थान भी कन्याकुमारी कहलाया तथा मंदिर को कुमारी अम्मन यानी कुमारी देवी का
मंदिर कहा जाने लगा।
जब हम कन्याकुमारी पहुँचे तो सूर्योदय होने को था । बहुत से लोग सागर तट पर
सूर्य देव के आने का इंतजार कर रहे थे। हम भी सीधा वहीं चल दिये । सामने की तरफ
काफी बादल थे ,ऐसा लग रहा था
शायद बादलों के कारण सूर्योदय के दृश्य कैमरे में कैद नही हो पायेंगे लेकिन कुछ देर
बाद जैसे जैसे सूर्य देव के दर्शन होने लगे बादलों के समूह भी हट गए। कुछ देर तक
फ़ोटो लेते रहे और फिर वापिस तिराहे पर आकर एक कॉर्नर की दुकान से चाय
नाश्ता किया । इस दुकान पर चाय काफी के लिए बड़ी भीड़ थी जिसमे स्थानीय लोग भी काफी
थे। लोकल लोगों की भीड़ का मतलब ये काफी फेमस दुकान थी । यहाँ चाय नाश्ता करने के
बाद विवेकानंद मेमोरियल जाने जा पता किया तो मालूम हुआ कि टिकट पौने 7 बजे मिलने
शुरू होंगे । अभी आधा घण्टा बाकी था तो हम दायीं तरफ बीच पर चले गए। तट पर
कांचीपुरम की श्री कांची कामकोटि पीठम का एक द्वार और शंकराचार्य का एक छोटा-सा
मंदिर है। यहीं पर गाँधी मेमोरियल भी है। बीच पर लगभग एक घण्टा बिताने के बाद हम
वापिस आ गए और मन्दिर चले गए । वहाँ से दर्शन के बाद जब जाने के लिए नाव की टिकट
लेने पहुंचे तो बहुत लम्बी लाइन लग चुकी थी । अब तक धूप भी काफी तेज हो चुकी थी।
आज नव वर्ष 2018 का पहला दिन था । इस मौषम में जहां उत्तर भारत मे कड़ाके दार ठंड
पड़ती है वहीं यहाँ पूरी गर्मी पड़ रही थी । गर्मी के कारण लोग लाइन में बेहाल हो
रहे थे । जाने के लिए नाव का किराया सामान्य लाइन में 34 रुपये और VIP लाइन में 159 रुपये था । सामान्य लाइन में जहाँ 250-300 लोग लाइन में थे उधर VIP लाइन लगभग खाली थी । अगर सामान्य लाइन में लगता तो ढेड़- दो घन्टे तो लाइन में
लगते ही ,तेज़ धूप में भी ऐसी तैसी हो जाती । येही सोच कर बिना
पुर्नविचार किये VIP लाइन से दो टिकट लेकर स्टीमर में बैठ गए और 5 मिनट में ही उस पार पहुँच गए ।
वहाँ जाकर भी विवेकानंद मेमोरियल जाने के लिए 20 रुपये प्रति व्यक्ति का टिकट लगा।
विवेकानंद मेमोरियल चारों तरफ से समुंदर से घिरा होने के कारण काफी रमणीक है ।
यहाँ काफी ठंडी हवा चल रही थी । यहां से आपको तीनो सागर साफ दिखाई देते है । एक
तरफ बंगाल की खाड़ी तो दूसरी तरफ अरब सागर और बीच मे हिन्द महासागर । तीनो के पानी
का रंग अलग अलग दिखता है । कन्याकुमारी में तीन समुद्रों का मिलन होता है। इसलिए
इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है।
तिरुवल्लुवर प्रतिमा :
विवेकानंद मेमोरियल से कुछ दूरी पर
मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक
चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध
तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत
से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा
रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।
काफी देर तक विवेकानंद मेमोरियल पर रुकने के बाद हम वापिस आ गए और थोड़ी पूछताछ
के बाद यहाँ के प्रसिद्ध वैक्स म्यूजियम पहुँच गए । यह म्यूजियम कन्याकुमारी रेलवे
स्टेशन के नज़दीक है यहां भी एंट्री की काफी फीस है शायद इसी कारण यहां काफी कम लोग
आते हैं । जब हम यहाँ गए तो सिर्फ एक couple और था । यहाँ के
कर्मचारी भी आराम से बैठे थे । यहाँ घूमने के बाद हमने नागरकोइल की बस ले ली और
वापसी में सुचिन्द्रम मंदिर में उतर गए । यहां आज बड़ा मेला लगा हुआ था ,बहुत भीड़
थी जैसी हमारे यहाँ दशहरे पर होती है । मालूम करने पर पता चला कि भगवान शिव का
जन्मोत्सव मनाया जा रहा है और ये उत्सव तीन दिन चलता है । सभी तीन दिन यहाँ मेला
लगता है ।
सुचिन्द्रम मंदिर : ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश
को समर्पित अनेकों मंदिर हमारे देश में है। इनमें से कुछ मंदिर ऐसे है, जहां यह ईश-त्रिमूर्ति एकसाथ विद्यमान है। दक्षिण भारत में
कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां इस त्रिमूर्ति की लिंग रूप में पूजा की
जाती है।
एक कथा के अनुसार गौतम ऋषि के अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए देवराज इंद्र ने
यहीं तपस्या की और उष्ण घृत से स्नान कर उन्होंने स्वयं को पापमुक्त किया और अर्द्धरात्रि
को पूजा आरंभ की और पूजा संपन्न कर वे पवित्र हुए और देवलोक को प्रस्थान किया। तब
से इस स्थान का नाम सुचिन्द्रम पड़ गया। सुचिन्द्रम का स्थानुमलयन मंदिर आज त्रिमूर्ति
के प्रति आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। मंदिर में दो ह़जार वर्ष पुराना एक
वृक्ष है, जिसे तमिल भाषा में कोनायडी वृक्ष कहा जाता है।
चमकदार पत्तियों वाले इस वृक्ष का तना खोखला है। इस खोखले भाग में ही त्रिमूर्ति
स्थापित है। इस स्थान पर पहली बार मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था। उस
काल के शिलालेख आज भी यहां मौजूद हैं।
अलंगर मंडप में चार संगीतमय स्तंभ हैं। ये अनोखे स्तंभ एक ही चट्टान से बने
हैं, लेकिन इनसे मृदंग, सितार, जलतरंग तथा
तंबूरे की अलग-अलग ध्वनि गुंजित होती है। पहले पूजा-अर्चना के समय इन्हीं स्तंभों
से संगीत उत्पन्न किया जाता था। मंदिर में नटराज मंडप भी है। मंदिर में 800 वर्ष
पुरानी नंदी की विशाल प्रतिमा भी दर्शनीय है। द्वार पर दो द्वारपाल प्रतिमाएं है।
मंदिर का गोपुरम 134 फुट ऊंचा है। यह सप्तसोपान गोपुरम मंदिर को अद्भुत भव्यता
प्रदान करता है। इस पर बहुत-सी आकर्षक मूर्तियां उकेरी हुई है। मंदिर के निकट ही
एक सुंदर सरोवर है। इसके मध्य में एक छोटा-सा मंडप बना है। 17वीं शताब्दी में
मंदिर को एक नया रूप प्रदान किया गया। मंदिर में ़करीब तीस पूजा स्थल है। इनमें से
एक स्थान पर भगवान विष्णु की अष्टधातु प्रतिमा विराजमान है। मंदिर प्रवेश के दाई
ओर सीता-राम की प्रतिमा स्थापित है। पास ही पवन पुत्र हनुमान की एक 18 फुट ऊंची
प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि इसी विशाल रूप में हनुमान अशोक वाटिका में सीता जी
के सामने प्रकट हुए और उन्हे श्रीराम की मुद्रिका दिखाई थी। पास ही गणेश मंदिर है, जिसके सामने
नवग्रह मंडप है। इस मंडप में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण की हुई हैं। सुचिन्द्रम
कन्याकुमारी से 12 किमी. और नागरकोइल से 7 किमी दूर है।
दर्शन समय : मंदिर सुबह 5:00 से 12:00 और शाम
को 4:00 बजे से रात 9:30 तक दर्शन के लिए खुला रहता होता है।
अगली पोस्ट में आपको त्रिवेंद्रम के कोवलम बीच और पद्मनाभस्वामी मंदिर लेकर
चलेंगे, तब तक आप यहाँ की कुछ
तस्वीरें देखिये ।
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए लिंक नीचे उपलब्ध हैं ।
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कन्याकुमारी देवी मंदिर शिखर |
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चर्च और मस्जिद |
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गाँधी मेमोरियल |
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तिरुवल्लुवर प्रतिमा |
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तिरुवल्लुवर प्रतिमा |
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चर्च |
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विवेकानंद मेमोरियल |
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तिरुवल्लुवर प्रतिमा |
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विवेकानंद मेमोरियल |
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विवेकानंद मेमोरियल |
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सुचिन्द्रम मंदिर |
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सुचिन्द्रम मंदिर |
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सुचिन्द्रम मंदिर |
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सुचिन्द्रम मंदिर |
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सुचिन्द्रम मंदिर |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-06-2018) को "हम लेखनी से अपनी मशहूर हो रहे हैं" (चर्चा अंक-3016) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी ..आभार
Deleteखूबसूरत तस्वीरें और बढ़िया जानकारी .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी.
Deleteबेहतरीन जानकारी .शानदार तस्वीरें सभी एक से बढकर एक
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ साहब
Deleteबढ़िया जानकारी.सुचिन्द्रम मंदिर के बारे में आज पहली बार जाना .
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी
Deletevery informative blog, beautifully described
ReplyDeleteThanks Fred.
DeleteGreat writing with lot of beautiful pictures.
ReplyDeleteThanks Dear.
Deleteसितम्बर में यही टूर जाना है , सारी जानकारी यात्रा में सहायता देंगी।
ReplyDeleteधन्यवाद सर्वेश नारायण वशिष्ठ जी .
Deleteशानदार फोटोज से सुसज्जित पठनीय पोस्ट जिसे पढ़ कर एक बार फिर हूक सी उठी कि अभी तक बंगलौर से नीचे दक्षिण भारत मेरे लिये अछूता ही है। जाने कब जाना हो!
ReplyDeleteधन्यवाद सुशांत जी .आपको दक्षिण भारत कम से कम एक बार तो जरूर जाना चाइये .
Deleteबहुत ही बढ़िया तरीके से आपने कन्याकुमारी की सैर कराई । सभी फ़ोटो भी सुंदर है ।
ReplyDeleteधन्यवाद पाण्डेय जी .
Deleteसूर्योदय के दृश्य बहुत सुंदर..कन्याकुमारी के लिए सीधी ट्रैन नही की सर ?
ReplyDeleteThanks Pratik. There was no direct train as per our schedule.
Deleteशानदार पोस्ट
ReplyDeleteThanks Anurag jee.
Deleteसुंदर वर्णन व फ़ोटो ।
ReplyDeleteThnaks Sachin tyagi ji
Deleteसुचिन्द्रम मंदिर पहली बार सुना और अच्छा लगा ! तिरुवल्लुवर की मूर्ति के पास लोग नहीं दिख रहे फोटो में लेकिन जाने -आने का रास्ता दिख रहा है , लोगों को वहां जाने पर रोक है क्या ?
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .तिरुवल्लुवर की मूर्ति के पास लोगों को जाने पर रोक है. वहां कोई किश्ती नहीं जाती .पर ये नहि मालूम कि क्यूँ ??
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