Thursday, 16 February 2017

Manimahesh Yatra- Part 4 :Darshan of Holy Lake ,Kailash and Return Journey

                                                     Manimahesh Yatra 
मणि महेश कैलाश यात्रा-1
मणि महेश कैलाश यात्रा-4 (मणिमहेश से वापसी )

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की मैं लगभग 2:30 बजे मणिमहेश पहुँच गया था लेकिन भारी बारिश शुरू हो जाने से मैं झील से थोड़ा पहले बने एक कंक्रीट के निर्माण के नीचे सुरक्षित स्थान पर चला गया और वहाँ बैठने की जगह न होने के कारण खड़े खड़े ही बारिश रुकने का इंतजार करने लगा । एक ही जगह काफी देर स्थिर खड़े रहने से मुझे ठण्ड लगने लगी और हाथ सुन्न होने लगे।




 थोड़ी देर बाद समय देखने के लिये जब मैंने अपनी शर्ट की जेब से मोबाइल निकालने का प्रयास किया तभी मुझे अहसास हुआ की मेरी जेब में पैसे नहीं है। मेरे अनुसार मेरी शर्ट की जेब में 2000 रूपये होने चाहिए थे जो मैंने अलग से रखे थे । पैंट की जेब में भी अलग से कुछ रूपये रखे थे, उन्ही मे से मैंने आज ट्रैक पर खाने पीने में खर्च किया था, वहां अब लगभग 350 रूपये ही बचे थे । सभी जेबों को दो तीन बार अच्छे से देखा लेकिन वो 2000 रूपये नहीं मिले ।

अक्सर मैं यात्रा पर जाने से पहले उस यात्रा पर होने वाले खर्च का अनुमान लगाता हूँ और फिर उस अनुमानित खर्च से लगभग डेढ़ गुना राशि नकदी में अपने साथ ले लेता हूँ । मैं यात्रा पर एटीएम कार्ड तो साथ रखता हूँ पर उस पर निर्भर नहीं रहता । मेरे कई दोस्त मेरे साथ यात्रा पर जाते है तो रास्ते में एटीएम मशीन ही ढूढ़ंते रहते है । इस यात्रा का मेरा अनुमानित खर्च 2000 रूपये था तो मैंने 3000 रूपये यात्रा के लिए अपने साथ ले लिए। इनमे से 2000 अलग रखे बाकि 1000 पहले दिन खर्च के लिए अलग , इनमे से सिर्फ 350 रूपये अब मेरे पास थे ।

पैसे खो जाने से मेरा मूड काफी ख़राब हुआ । कल रात की घटनाएँ याद करता रहा- कहीं रात को नींद की खुमारी में दूसरे बैग में तो नहीं रख दिए लेकिन फिर याद आया कि सुबह आते हुए दुसरे बैग (जिसे नीचे कमरे पर छोड़कर आया था ) में एक-एक चीज देख कर रखी थी। दिमाग में सुबह से लेकर अब तक सारी यात्रा का रीप्ले कई बार चला और धीरे-धीरे इस बात पर विश्वाश हो गया कि रास्ते में दो तीन बार जब समय देखने के लिये शर्ट की जेब से मोबाइल निकाला था, ये रूपये पक्का तभी गिरे होंगे। मन काफी परेशान हुआ लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था लेकिन अब मेरे ख्यालों में सिर्फ पैसे घूम रहे थे।

बाहर भी झमाझम बारिश हो रही थी और मन में भी अवरित विचारों की बारिश । दोनों ही रुकने का नाम नहीं ले रही थी ।  कैसी विडम्बना है की विश्व के सबसे बड़े त्यागी - शिव शंकर ओगड़ धानि जिन्होंने पल भर में सोने की लंका त्याग दी थी – के दरबार पर आकर मैं माया की माया में फंसा हुआ था । कहते हैं जब दर्द हद से गुजर जाये तो खुद ही दवा बन जाता है –ऐसा ही मेरे साथ हुआ । अन्दर से एक सकरात्मक सोच से संतोष की अनुभूति हुई । मेरी जेब में अभी भी 350 रूपये थे मतलब आराम से भरमौर पहुँच जाऊँगा और वहां एटीएम से पैसे निकाल लूँगा याने चिंता की कोई बात नहीं ।मन को समझाने के अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं था ।
                
काफ़ी देर तक तेज बारिश होती रही और लगभग एक घंटे बाद बारिश रुकी। बादल अभी भी पूरी तरह छंटे नहीं थे यानि अभी और बारिश की आशंका थी । बारिश बंद होने के बाद मैं शीघ्रता से पवित्र मणिमहेश झील की तरफ गया । बारिश और बर्फ़बारी होने से काफ़ी ठण्ड बढ़ गयी थी, समय भी काफी निकल चूका था जिससे मैंने झील में नहाने का विचार त्याग दिया । झील का जल अंजुली में भर कर खुद पर छीटें मारे । पूरी झील की एक परिकर्मा की और अपने इष्ट देव भोले नाथ को प्रणाम किया । यहाँ से कैलाश शिखर एकदम सामने दिखायी दे रहा था लेकिन वहां अभी भी बादल थे ,पूर्ण दर्शन अभी भी नहीं हुए थे।

 आम यात्रियों व श्रद्धालुओं के लिए यही अंतिम स्थान है। यहां पर आकर श्रद्धालु झील के ठंडे जल में स्नान करते हैं। झील की परिकर्मा कर फिर झील के किनारे पर स्थापित सफेद पत्थर की शिवलिंग रूपी मूर्ति की पूजा-अर्चना करते हैं। मणिमहेश झील से पूर्व दिशा में स्थित बर्फ से ढके कैलाश पर्वत के सुन्दर दर्शन होते हैं ।

  झील की परिकर्मा और दर्शन के बाद एक लंगर पर जाकर चाय पी .अभी खाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी । चाय पीकर तेजी से गौरी कुंड की तरफ चल पड़ा । जहाँ एक तरफ मुझे गौरी कुंड से यहाँ आने में एक घंटा लगा था, वहीँ उतरने में 15 मिनट भी नहीं लगे। मुझे आज ही नीचे पहुंचना था और अब सारी उतराई ही थी इसलिए अब कोई ज्यादा समस्या भी नहीं थी । गौरीकुंड से ही उतराई के लिए एक अलग रास्ता कटता है जो घाटी दूसरी तरफ से है । इस नए रास्ते से उतरने के फायदे भी थे और नुकसान भी ।

पहला फायदा यह था की यह रास्ता आम प्रचलित रास्ते से छोटा है क्योंकि इसमें सीधी खड़ी उतराई है, दूसरा फायदा ये की इस रास्ते पर भीड़ बिलकुल नहीं है। एकदम खड़ी चढ़ाई होने से इस रास्ते से ऊपर कोई नहीं आता सिर्फ़ इस पर उतरने वाले यात्री होते हैं । अब नुकसान की बात करते हैं ।पहला नुकसान यह की इसमें धणछो तक पुरे रास्ते में रुकने के लिए या खाने पीने के लिए कोई दुकान नहीं है। दूसरा इसमें कुछ हिस्से में भूस्खलन होता रहता है और पत्थर लगातार गिरते रहते हैं इसलिए हलकी सी भी बारिश में ख़तरा बढ़ जाता है । चूँकि मेरा काफी समय बारिश के कारण ख़राब हो चूका था तो मैंने धणछो तक उतराई के लिए बाएं हाथ वाला नया रास्ता चुना जो हैलीपैड की तरफ़ से आता है ।

गौरीकुंड से मैं अभी 100 मीटर ही गया था फिर से बारिश शुरू हो गयी । आगे जाने का कोई फायदा न देख मैं भाग कर वापिस आ गया और एक टेंट वाले से पूछकर उसके टेंट में बैठ गया ।यह टेंट यात्रीयों के रात्रि रुकने के लिये लगाया हुआ था । बारिश फिर से तेज हो गयी । मेरी तरह ही बारिश से बचने के लिये वहां दो यात्री और आ गए। उनके साथ एक पालतू कुत्ता भी था। जिज्ञासावश मैंने उनसे पूछ लिया की आप इसे भी अपने साथ लाये हो । उन्होंने बताया की वो लोग मणिमहेश परिक्रमा से आ रहे हैं ये उनके साथ ही था । उन्होंने बताया की यह कुत्ता उनके साथ कई पर्वतीय और धार्मिक यात्रा कर चूका है। वे लोग इसे हमेशा अपने साथ ही लेकर घुमने जाते हैं। 
        
बारिश हलकी हो चुकी थी लेकिन बंद नहीं हुई थी ,मैंने सोचा अब अधिक देर रुकने से फायदा नहीं । न मालूम ये बारिश कब तक यूँ ही चलती रहे ? मुझे रेन कोट पहन कर निकल जाना चाहिए । रेन कोट निकालने के लिये बैग खोला तो मुझे बैग में नीचे की तरफ खोये हुए पैसे पड़े हुए मिले ।मन एकदम से प्रसन्न हो गया । ऐसा महसूस हो रहा था जैसे सारी थकावट, बैचेनी और लेट होने की परेशानी एक ही झटके में दूर हो गयी हो। माया की माया भी अपरम्पार है ! वैसे ये कोई चमत्कार नहीं था ,मात्र मेरी बेवकूफ़ी ही थी, कल रात नींद की खुमारी में मैंने पैसे जेब से निकाल कर बैग में रख दिए होंगे और सुबह होने पर भूल गया।

   सामने कैलाश पर्वत से बादल हट चुके थे और पर्वत शिखर साफ़ दिखाई दे रहा था । सामने से बादल छंटते देखकर टेंट वाले ने बताया अब यहाँ भी जल्दी ही बारिश बंद हो जाएगी और फिर मौसम साफ़ रहेगा । उसके अनुसार यहाँ हर रोज दोपहर को जमकर बारिश होती है । जल्दी ही बारिश बिलकुल रुक गयी। मैंने भी साफ़ मौसम का फायदा उठाते हुए कैमरा निकल कर कैलाश की कुछ तस्वीरें ली और फिर चलने के लिये बैग टांग लिया । शाम के पौने पाँच बज चुके थे और बारिश की वजह से कुल ढेड़ घंटे से भी ज्यादा का समय बेकार हो गया था । अब और समय न गंवाते हुए जल्दी से नए रास्ते की और चल पड़ा  । मेरे साथ कुछ और लोग भी इसी रास्ते से जा रहे थे , उनके साथ -2 मैं भी तेजी से लेकिन सावधानी से उतरता गया।

चूँकि इस रास्ते में ढलान तीखी है तो उतराइ में थोडा अकड कर चलना  पड़ता है यानि सर को थोड़ा पीछे की और रखते हुए । इसके विपरीत चढाई करते हुए थोड़ा झुक कर चलना पड़ता है। इसका कारण वैज्ञानिक है –गुरुत्वाकर्षण से जुड़ा हुआ ताकि शरीर का बैलेंस बना रहे । वैसे यह बात सबके जीवन में भी लागू होती है । जो अकड़ कर रहते हैं वो लोग अपने जीवन में निश्चित ही पतन की ओर ही अग्रसर हैं और जो लोग विन्रमता से रहते हैं वो निस्संदेह जीवन में उत्थान पर हैं ।

गौरीकुंड से धन्छो पहुँचने में मुझे सिर्फ ढेड़ घंटा लगा । यहाँ तक लगभग 6 किलोमीटर नान स्टॉप आया और दिन ढ़लने से पहले ही धन्छो पहुँच गया । यहाँ पहुंचकर थोड़ा ब्रेक लिया और एक कप चाय पी। धन्छो में इस समय खूब रौनक थी आने -जाने वाले लोग यहीं रुक रहे थे। यहाँ कई टेंट लगे थे जिनमे रात रुकने के लिये ,किराये पर बिस्तर उपलब्ध थे । किराया 100 से 200 प्रति व्यक्ति । जहाँ धरती पर बिस्तर लगा था वहां किराया कम था और बेड वाले बिस्तर का किराया ज्यादा था । एक बार तो मन में आया की यही रूक जाऊं लेकिन फिर सोचा अभी समय है ,चलने में ही फायदा है । मेरे पास टोर्च थी इसलिए अँधेरे की ज्यादा चिंता नहीं थी ।

  जब धन्छो से आगे हडसर की ओर चलने लगा तो हल्का अँधेरा शुरू हो चूका था और लोगों की आवाजाही भी काफी कम हो गयी थी। धन्छो से निकलते ही शुरू में सीधी उतराई है ,रास्ता काफी पथरीला है और घना जंगल शुरू हो जाता है। कई जगह तो रास्ता भी बहुत खराब था। जंगल में प्रवेश करते ही रोशनी एकदम से काफी कम हो गयी और इन सब विपरीत परिस्तिथियों में मेरे चलने की गति भी काफी धीमी हो गयी थी । ज्यादा दिक्क़त नदी पर बने पुल तक थी, नदी पार का रास्ता इसके मुकाबले काफी ठीक था। यहाँ पहुंचकर मुझे अहसास हुआ कि मैंने धन्छो से आगे आकर ठीक नहीं किया ,मुझे वहीँ रुक जाना चाहिये था लेकिन अब यहाँ से पीछे जाने का कोई फ़ायदा नहीं था इसलिए टोर्च की रोशनी में आगे ही चलता गया ।
  
इस पोस्ट में इतना ही . अगली पोस्ट में एक चुलबुली घटना के साथ यात्रा समाप्ति ,मणिमहेश महामात्य और यात्रा की महत्वपूर्ण जानकारी ..........जल्दी ही । संपर्क में बने रहिये ...

 माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर.
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए दास कबीर .




मणिमहेश कैलाश 

मणिमहेश झील -कैलाश कुंड 

मणिमहेश झील -कैलाश कुंड

कैलाश कुंड

ताजी गिरी बर्फ़ 

पूजा स्थल 

मणिमहेश कैलाश 

मणिमहेश कैलाश 

कैलाश कुंड


ताजी बर्फ़ से बनाया शिवलिंग 

कैलाश कुंड

कैलाश कुंड व कैलाश एक साथ 

ऊपर की तरफ कमल कुंड को रास्ता जाता है 

मणिमहेश कैलाश 

मणिमहेश कैलाश 
सुन्दरासी से गौरीकुंड के बीच का मार्ग 

घाटी के दूसरी तरफ से दिखयी देते यात्री  


दूसरी तरफ से दिख रहा ग्लेशियर 



दूसरी तरफ से दिख रही सुन्दरासी 

भूस्खलन वाला एरिया 

59 comments:

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    1. रुक्क्या नहीं जा था दो मिनट, मैं सोचूँ था कि कहीं तो मैं भी फर्स्ट आ गया ;)

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  2. बहुत बढ़िया सहगल साहब, बिना ठण्ड और बारिश में भीगे आपने साक्षात भोले और कैलाश पर्वत के दर्शन करवा दिए कोटि कोटि धन्यवाद.
    As usual एक से बढ़कर एक फोटो, हो ही आये समझो आपके साथ. पुनः धन्यवाद

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    1. धन्यवाद कौशिक जी ।💐

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  3. शानदार पोस्ट, बेहतरीन तसवीरें। मज़ा आ गया सहगल साहब

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    1. धन्यवाद ओम भाई ।💐

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  4. बहुत बढ़िया नरेश जी. चुलबुली घटना जल्दी सुनाने की कृपा करें.

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    1. धन्यवाद बीनू भाई ।अगली पोस्ट जल्दी ही ।💐

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  5. Nice post. All pictures r beautiful but the pictures of Lake Manimahesh & kailash mountain are most beautiful. Thx for sharing. Eagerly waiting. Hr Hr Mahadev.

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  6. जय भोले नाथ

    सहगल साहब अगली पोस्ट मे कमल कुंड की भी जानकारी देना।

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    1. धन्यवाद अनिल जी .कमल कुंड की जितनी भी जानकारी मिल सकी शेयर करूंगा .जय भोले नाथ

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  7. बढ़िया सहगल साहब पैसे मिल गए जय भोले की

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    1. धन्यवाद विनोद जी .सब भोले नाथ की माया है .

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  8. बहुत कठिन यात्रा का बहुत सुन्दर वर्णन । चित्र तो अपनी साहसिकता को बखूबी बखान कर रहे है ।

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    1. धन्यवाद कपिल जी .जय भोले की.

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  9. नरेश जी आप की यात्रा सच में बहुत ही खूबसूरत है लेकिन माफ़ी चाहूंगा आप को यात्रा का कोई फायदा नहीं हुआ। शायद आप समझ गए होंगे मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ।

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    1. धन्यवाद शुशील जी, शायद आप इस लिये कह रहे हैं क्योंकि मैं रात वहां नहीं रुका .हो सकता है कोई कारण हो तो फिर आप बता ही दो .भोले का बुलावा आया तो फिर चल देंगे. जय भोले की

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    2. नरेश जी मणिमहेश जा कर मणि के दर्शन ना करना समझो आप ने यात्रा ही नहीं की। माफ़ी चाहूँगा ये मेरे खुद के विचार हैं।

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    3. पहली बार मुझे भी मणि के दर्शन नहीं हुए थे, लेकिन दूसरी बार जा कर मुझे मणि के दर्शन हुए थे।

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    4. अरे शुशील जी माफ़ी वाली कोई बात नहीं । भोले नाथ ने बुलाया तो अगली बार मणि के दर्शन कर लेंगे ।

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  10. बहुत अच्छा वर्णन...कैलाश पर्वत बहुत अच्छा लग रहा हाउ..यात्रा समाप्ति की चुलबुली घटना का इंतज़ार

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    1. धन्यवाद प्रतीक जी.जय भोले की

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  11. प्रभावशाली लेखन मानो हम भी आपके साथ सफर पे है । awesome photographs.

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    1. धन्यवाद शशि जी.जय भोले की

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  12. सुन्दर विवरण। मन की बातें सुन्दर और सोचने की थी - mind teaser- अपनी भाषा में लिखना और शेयर करना अच्छा लगता है।

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    1. धन्यवाद शिव कुमार नड्डा जी.जय भोले की

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  13. माया ही माया चलो माया मिल ही गयी अपनी गलती से या महादेव के कृपा से

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    1. धन्यवाद योगेंदर जी .सब भोले नाथ की माया है .

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  14. बहुत सुंदर चित्रों के साथ उतने ही खूबसूरत शब्दों से बुना शानदार यात्रा वर्णन......कमल कुंड की भी जो जानकारी हो वो भी कृपया साझा करें अगले लेख में.....हर हर महादेव..

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    1. धन्यवाद त्यागी जी .कमल कुंड की जितनी भी जानकारी मिल सकी शेयर करूंगा .जय भोले नाथ

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  15. शानदार यात्रा और कठिन भी , घर में बैठे बैठे आपने भोला बाबा के दर्शन करवा दिए। लिखा भी बहुत अच्छा है ,क्या इतनी बड़ी झील का परिक्रमा सब करते है । कैलाश पर्वत के विहंगम दृश्य ।

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    1. धन्यवाद बुआ जी । झील बहुत बडी नहीं है ।10 मिनट में आराम से परिक्रमा हो जाती है ।

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  16. जय भोले नाथ।
    आपके 2000 जरूर मिल गए होगे। ऐसा मुझे विश्वास है। बाकी सुंदर फोटो से संजी पोस्ट है.धन्यवाद शेयर करने के लिए

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    1. धन्यवाद त्यागी जी ।आपके कमेंट से जाहिर है कि आपने पोस्ट पूरी नहीं पढ़ी ।

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  17. Hi Naresh ji

    कबीर’ माया पापणी, फंध ले बैठी हाटि !
    सब जग तौ फंधै पड्या, गया कबीरा काटि !

    बाबा कबीर पहले ही कह गए हैं कि माया अपना फंदा लिए बैठी है, वही खेल आपके साथ भी हुआ। पर जैसे ही आप इसके मोह से विरक्त हुए, कबीर की तरह आप भी इसका फ़ंदा काट मनवांछित प्राप्त करने में सफल भी हुए और खो चुके पैसे भी पा लिए 😊
    शानदार लेखन, बेहतरीन यात्रा और फिर इतनी सुंदर तस्वीरे तो जैसे सोने पर सुहागा 🙏👍

    एक अच्छे यात्रा संस्मरण की सारी खूबियों को एक पोस्ट में उतार देने की कला ही आपकी लेखनी की सबसे बड़ी ताकत है 🙏

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    1. धन्यवाद पाहवा जी ।इस जगत में माया के मोहपाश से कौन बच पाया है ।
      माया महाठगिनी हम जानी।.....
      त्रिगुण फास लिए कंधो पे बोले मधुरी वाणी ।।

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  18. जय भोले की !
    माया के जितने करीब जाने की कोशिश वो उतना ही दूर भागेगी और जितना दूर जायेंगे वो और करीब आएगी ।
    बाबा की कृपा से सब ठीक रहा ।
    बढ़िया यात्रा वृतांत ! शानदार तसवीरें

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    1. धन्यवाद पांडेय जी ।आपसे सहमत यात्रा में बाबा की कृपा तो बानी रही । जय भोले की ।

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  19. जय भोले की !
    माया के जितने करीब जाने की कोशिश वो उतना ही दूर भागेगी और जितना दूर जायेंगे वो और करीब आएगी ।
    बाबा की कृपा से सब ठीक रहा ।
    बढ़िया यात्रा वृतांत ! शानदार तसवीरें

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  20. Aum namah shavaye.... beautiful yatra and fotos

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    1. Thanks Tewari Sir. ॐ नम: शिवाय ।

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  21. Paise khaone se Milne tak ki katha rochka lagi,baki Maya ki mahima to aprampar hai hi isme koi shak nahi hai

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    1. धन्यवाद हर्षिता जी ।💐

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  22. बेहतरीन पोस्ट नरेश जी ! भोले बाबा मेहरबान हो गए ! शानदार नज़ारे

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    1. धन्यवाद योगी जी ।💐

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  23. जय भोले की.... नरेश जी...बेहतरीन और रोचक पोस्ट |
    आजकल बिना पैसे के काम ही नही चलता , जब माया जेब में है तक पूर्ण संतुष्टि रहती है | atm कार्ड रखना मुझे भी अच्छा नही लगता ....

    चित्र बहुत शानदार लगे

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    1. धन्यवाद रीतेश जी . जी सही कहा आपने जब तक माया जेब में है तब तक यात्रा पूर्ण संतुष्टि रहती है.

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  24. Amazing post thank you for sharing keep visiting

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    1. धन्यवाद सर्वेश जी .

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  25. बहुत सुंदर विवरण .

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    1. धन्यवाद गुंजन जी ।

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  26. जय भोले की .

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    1. धन्यवाद। जय भोले की ।

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  27. Bahut mast.

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  28. वैसे आपने बहुत हिम्मत की पर आपको रात में अकेले नहीं उतरना चाहिए था। खैर महादेव साथ तो सब कुछ अच्छा ही रहता है।

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  29. जैसी भोले की इच्छा थी . वैसे आगे भी बेहतर ही हुआ .धन्यवाद

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