Friday, 28 September 2018

Gujrat Yatra : Dwarkadhish Temple - Dwarka

गुजरात यात्रा – द्वारिकाधीश मंदिर, द्वारका

मेघश्यामं पीतकौशेयवासं श्रीवत्साङ्कं कौस्तुभोद्भासिताङ्गम् ।
पुण्योपेतं पुण्डरीकायताक्षं विष्णुं वन्दे सर्वलोकैकनाथम् ॥
मेघ समान रंग वाले, पीले रेशमी पीताम्बर धारण किए, श्रीवत्स के चिह्नवाले, कौस्तुभमणि से सुशोभित अंग वाले, पुण्य करने वाले, कमल समान लंबी आंख वाले सर्वलोक के एकमात्र स्वामी भगवान श्रीद्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण को मैं नमस्कार करता हूँ ।

Dwarkadhish Temple

वैसे तो द्वारका हिन्दुओं के चार धामों में से एक और सात प्रमुख हिंदू तीर्थस्थलों (सप्त पुरी) में से एक होने के कारण काफी प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है लेकिन कनेक्टिविटी के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है । हमारे यहाँ (हरियाणा –पंजाब ) से कोई भी सीधी ट्रेन नहीं है ,देश की राजधानी ,दिल्ली जैसे बड़े मेट्रो शहर से भी एक ही ट्रेन है और वो भी साप्ताहिक । अब जब ट्रेन एक ही है तो इसमें सीटों के लिए भी काफी मारामारी रहती है । रिजर्वेशन खुलने के दो –चार दिन के भीतर ही सभी सीटें बुक हो जाती हैं । दो साल पहले जब मैंने सपरिवार गुजरात यात्रा का प्रोग्राम बनाया तो मेरे साथ भी ऐसे ही हुआ, रिजर्वेशन खुलने के दो दिन बाद बुकिंग करवाई तो एक सीट कन्फर्म और दो RAC मिली जो आखिर तक RAC ही रही । मेरा प्रोग्राम कुछ इस तरह से था।

पहला दिन : अम्बाला से दिल्ली और दिल्ली से ट्रेन (19566) द्वारा द्वारका प्रस्थान
दूसरा दिन : द्वारका पहुंचना और द्वारकाधीश मंदिर दर्शन। रात्रि विश्राम द्वारका।
तीसरा दिन : द्वारका के आस-पास मंदिरों और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन ।रात को ट्रेन (19252) द्वारा सोमनाथ के लिए प्रस्थान।
चौथा दिन : सोमनाथ ज्योतिर्लिंग और आस-पास के मंदिरों में दर्शन । रात को वेरावल से ट्रेन (22958) द्वारा अहमदाबाद के लिए प्रस्थान।
पाँचवा दिन : अहमदाबाद भ्रमण और शाम को ट्रेन (22451) द्वारा अम्बाला के लिए वापसी

 मेरे प्रोग्राम के अनुसार हमें सिर्फ एक रात ही द्वारका में होटल/गेस्ट हाउस में रुकना था बाकि सभी रातें सफ़र करते हुए ट्रेन में ही बीतनी थी। द्वारका में भी मैंने रुकने के लिए अपनी कम्पनी के गेस्ट हाउस में पहले से बुकिंग करवा ली थी। तय दिन सुबह अम्बाला से निकल जनशताब्दी ट्रेन द्वारा नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गए । नयी दिल्ली से ही दोपहर ढेड़ बजे हमारी द्वारका के लिए ट्रेन थी। ट्रेन देहरादून से आती है और ट्रेन के प्लेटफ़ॉर्म पर आने से काफी पहले ही हम वहाँ पहुँच चुके थे। समय पर ट्रेन आई और साथ ही एक भीड़ का रेला भी । मिनटों में ही पूरी ट्रेन भर गयी । हमारे कोच में फरीदाबाद शहर के पास पलवल से आये 50 से अधिक लोगों का एक ग्रुप था जिसमे अधिकतर लोग अधेड़ उम्र के ही थे । ये सभी लोग भी द्वारका जा रहे थे। ट्रेन चलने के बाद एक घंटा तो इस ग्रुप को सेटल होने में लग गया। कौन ,कहाँ, किस बर्थ पर जायेगा इसको लेकर काफी माथा खप्पी होती रही और हम लोगों का मनोरंजन होता रहा । फिर इनका खाने-पीने का दौर चला। भोजन से निपटने के बाद, शाम को इस ग्रुप की महिलाओं ने भजन कीर्तन शुरू कर दिया, जो छोटे -२ अन्तराल और रात्रि विश्राम को छोड़कर अगले दिन दोपहर द्वारका पहुँचने तक चलता रहा । हम भी इन लोगों से काफी घुल-मिल चुके थे और इनके साथ 26 घंटे का सफ़र कैसे बिता ,पता ही नहीं चला ।

अगले दिन दोपहर बाद, 3:30 बजे गाड़ी समय से द्वारका पहुँच गयी । द्वारका एक छोटा सा रेलवे स्टेशन है जहाँ पूरे दिन में मात्र 10 -12 गाड़ियाँ ही आती- जाती हैं । इससे अगला रेलवे स्टेशन ओखा इस लाइन का आखिरी रेलवे स्टेशन है । स्टेशन से बाहर आकर हमने एक ऑटो लिया और 10 मिनट में आपने गेस्ट हाउस पर पहुँच गए । कुछ देर आराम करने के बाद ,शाम 5 बजे तक हम सब द्वारकाधीश मंदिर जाने के लिए तैयार हो गए। मंदिर यहाँ से लगभग 2 किलोमीटर दूर था, इसलिए गेस्ट हाउस के केयर टेकर ने ऑटो वहीँ बुला लिया था। लगभग 10 मिनट में हम मंदिर पहुँच गए ।

मंदिर के बाहर बहुत से फूल और प्रसाद बेचने वाले खड़े थे l हमने भी चढाने के लिये प्रसाद और  तुलसी के पत्तों की माला ले ली l मंदिर परिसर में मोबाइल/ कैमरा ,सामान  तथा चप्पल-जूते आदि जमा कराने के लिये अलग-अलग काउंटर बने हुए हैं l हमने भी वहाँ अपना सारा सामान जमा करा दिया और चेकिंग के बाद मंदिर में प्रवेश कर गए l मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं थी, 15-20 मिनट लाइन में लगने के बाद भगवान द्वारकाधीश के गर्भ गृह के सामने पहुँच गए l सामने ही कृष्ण भगवान की चार फुट ऊंची मूर्ति है। यह चांदी के सिंहासन पर विराजमान है, मूर्ति काले पत्थर की बनी है। हीरे-मोती इसमें चमचमाते है। सोने की ग्यारह मालाएं गले में पड़ी है। कीमती पीले वस्त्र पहने है। भगवान के चार हाथ है। एक में शंख है, एक में सुदर्शन चक्र है। एक में गदा और एक में कमल का फूल। सिर पर सोने का मुकुट है। चौखटों पर चांदी के पत्तर मढ़े है। मन्दिर की छत में बढ़िया-बढ़िया कीमती झाड़-फानूस लटक रहे हैं। भगवान द्वारकाधीश के विग्रह वाले मुख्य  मन्दिर के अलावा परिसर में बलराम जी , अनिरुद्धजी और प्रद्युमन जी के मंदिर हैं .इसके अलावा राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जाम्बवती के और कुछ अन्य छोटे-छोटे मन्दिर भी है। l आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक शारदा पीठ उसी परिसर में ही स्थित है l परंपरागत रूप से आज भी शंकराचार्य मठ के अधिपति है। सभी मन्दिरों में दर्शन करके वापसी में एक बार फिर द्वारकाधीश के दर्शन कर लिए। इस बार मात्र 2-4 मिनट ही लगे।

मंदिर परिसर में लगभग ढेड़-दो घंटे बिताने के बाद हम गोमती घाट की तरफ चल दिए, जहाँ गोमती नदी अरब सागर से मिलती है । इस संगम पर संगम-नारायणजी का मन्दिर है। संगम घाट से दायें तरफ अरब सागर के किनारे काफी देर टहलने के बाद वापसी का रुख किया । हमें कल सुबह द्वारका के आस पास में तीर्थ स्थानों पर घुमने जाना था । जिसमे रुक्मणी मंदिर ,गोपी तालाब ,नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और बेट द्वारका मुख्य थे। द्वारकाधीश मन्दिर से थोड़ी दूर पर भद्रकाली चौक है जहाँ से इन स्थानों पर घुमाने के लिये बसे चलती है । बसें  दो शिफ्ट में चलती हैं ; पहली बस सुबह 8 बजे निकलती है और दोपहर तक घुमाकर वापस ले आती है और दूसरी 2 बजे जाकर शाम 7 बजे तक वापस आती है l वापसी में मैंने भी सुबह के लिए अपनी सीटें बुक करवा ली और फिर एक भोजनालय से गुजराती भोजन कर ऑटो द्वारा रात 9 बजे तक वापिस रेस्ट हाउस पहुँच गए।

अब कुछ जानकारी द्वारका और द्वारकाधीश मंदिर के बारे में- (Information about Dwarka & Dwarkadish Temple )             
द्वारका  पश्चिम-मध्य भारत का प्रसिद्ध नगर है। । द्वारका कई द्वारों का शहर (संस्कृत में द्वारका या द्वारवती) के रूप में भी जाना जाता है। वस्तुत: द्वारका दो हैं-  गोमती द्वारका और बेट द्वारका. गोमती द्वारका धाम है, बेट द्वारका पुरी है। बेट द्वारका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।

द्वारका भगवान कृष्ण की पौराणिक राजधानी थी, जिन्होंने मथुरा से पलायन के बाद इसकी स्थापना की और मथुरा से यदुवंशियों को लाकर इस संपन्न नगर को उनकी राजधानी बनाया था । कहते हैं, यहाँ जो राज्य स्थापित किया गया उसका राज्यकाल मुख्य भूमि में स्थित द्वारका अर्थात् गोमती द्वारका से चलता था। बेट द्वारका रहने का स्थान था। । राज्य कार्य चलाने के लिए बने महल की जगह ही आज का प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है। इसे जगद मंदिर के नाम से भी जाना जाता है । कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान् तीर्थ है। द्वारका का प्राचीन नाम कुशस्थली था । पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था।   
द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चार धामों में से एक है। यही नहीं द्वारका नगरी सात प्रमुख हिंदू तीर्थस्थलों -पवित्र सप्तपुरियों -में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का विस्तार एवं जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था। सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात् उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बड़े उत्साह पूर्वक लाया गया। आज भी द्वारका की बड़ी महिमा है। इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती। समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों।

यह मंदिर एक परकोटे से घिरा है जिसमें चारों ओर एक द्वार है। इनमें उत्तर दिशा में स्थित मोक्ष द्वार तथा दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार प्रमुख हैं। सात मंज़िले मंदिर का शिखर 235 मीटर ऊँचा है। इसकी निर्माण शैली बड़ी आकर्षक है। शिखर पर एक लम्बी बहुरंगी धर्मध्वजा फहराती रहती है। द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है। यहाँ इन्हें 'रणछोड़ जी' भी कहा जाता है। भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हैं। बहुमूल्य अलंकरणों तथा सुंदर वेशभूषा से सजी प्रतिमा हर किसी का मन मोह लेती है। द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है। उससे कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहाँ समुद्रनारायण मंदिर स्थित है। इसके समीप ही पंचतीर्थ है। वहाँ पाँच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा है। बहुत से भक्त गोमती में स्नान करके मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यहाँ से 56 सीढ़ियाँ चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के पूर्व दिशा में शंकराचार्य द्वार स्थापित शारदा पीठ स्थित है। इस मंदिर में ध्वजा पूजन का विशेष महत्व है.

द्वारकाधीश मंदिर की ध्‍वजा के बारे में :
द्वारकाधीशजी के मंदिर पर लगे ध्वज को कई किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है। यह ध्वज 52 गज का होता है। 52 गज के ध्वज को लेकर यह यह कथा है कि द्वारका पर 56 प्रकार के यादवों ने शासन किया। इन सभी के अपने भवन थे। इनमें चार भगवान भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, अनिरुद्धजी और प्रद्युमनजी देवरूप होने से इनके मंदिर बने हुए हैं और इनके मंदिर के शिखर पर अपने ध्वज लहराते हैं। बाकी 52 प्रकार के यादवों के प्रतीक के रूप में यह 52 गज का ध्वज द्वारकाधीशजी के मंदिर पर लहराता है। मंदिर में प्रवेश के लिए गोमती माता मंदिर के सामने से 56 सीढियां भी इसी का का प्रतीक हैं। मंदिर के ऊपर लगी ध्‍वजा पर सूर्य और चंद्रमा का प्रती‍क चिह्न बना होता है। यह चिह्न इस बात का सूचक माना जाता है कि पृथ्‍वी पर सूर्य और चंद्रमा के मौजूद होने तक द्वारकाधीश का नाम रहेगा। द्वारकाधीशजी के मंदिर पर लगा ध्वज दिन में 3 बार सुबह, दोपहर और शाम को बदला जाता है। हर बार अलग-अलग रंग का ध्वज मंदिर के ऊपर लगाया जाता है। यह ध्वज धर्म और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना गया है। श्रीजी की ध्वजा का वर्ण मेघधनुष के समान सतरंगी जिनमें लाल, हरा, पीला, नीला, सफेद, भगवा और गुलाबी शामिल है। यह सभी रंग शुभ सूचक और विशिष्ट गुण बताते हैं।
मंदिर खुलने का समय : सुबह 7:00 बजे से दोपहर 12:30 तक और शाम 5:00 से 9:30 तक
कहाँ ठहरे : द्वारका में ठहरने के लिए मंदिर परिसर के आस पास गेस्ट हाउस, होटल और धर्मशाला बहुतायत में उपलब्ध है। यहाँ लोगों के रहने के लिए हर बजट में कमरे उपलब्ध हैं।
अगलीपोस्ट में आपको द्वारका के आस पास रुक्मणी मंदिर ,गोपी तालाब और बेट द्वारका आदि अनेक मंदिरों में लेकर चलेंगे, तब तक आप यहाँ की कुछ तस्वीरें देखिये ।



front view


Lord Dwarkadhish

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Lord Dwarkadhish -Picture from Gallery





Another View next day

Gomti River

Gomti Ghat


tanmay






नारायण मंदिर 


अरब सागर 

लाइट हाउस 






view from guest house

Kirtan in Train Coach









37 comments:

  1. शानदार तस्वीरें ..जानदार वर्णन .जय द्वारकादीश ..

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    1. धन्यवाद अजय भाई जी ।

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  2. सुंदर फोटोज़ से सुसज्जित उम्दा पोस्ट । आपने श्री द्वारिकानाथ जी अर्थात भगवान श्री कृष्ण जी के रुप का बहुत सुंदर शब्दों में निरूपण किया है । ठाकुर जी की असीम कृपा से अपने पूरे परिवार के साथ प्रथम धाम के दर्शन का सौभाग्य और शानदार घुमक्कडी की यादें ताजा हो गई । ।।जय श्री द्वारिकाधीश जी ।।

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    1. धन्यवाद ।।जय श्री द्वारिकाधीश जी ।।

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  3. सुन्दर चित्र और वर्णन

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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  4. Nice informative post. Jai Krishna.

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    1. धन्यवाद राकेश गुप्ता जी ।

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  5. रोमांचक यात्रा आपकी मजा आ गया,,,,,बहुत खूब,

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    1. धन्यवाद संगीता जी ।

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  6. जय श्री कृष्णा....

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    1. ध्न्यवाद । जय श्री कृष्णा....

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  7. Hi Naresh, We see so many places because of you.You are Our DoorDarshan.Thanks.

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    1. धन्यवाद अनिल मिश्रा जी .

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  8. आभार शास्त्री जी ।

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  9. Rajkumari ThakurOctober 01, 2018 5:33 pm

    बहुत सुंदर तस्वीर है ।क्या यह समुद्र के अन्दर का द्वारिका है? मेरा भी दिसम्बर में जाने का प्रोग्राम है । देखती हूँ ईश्वर इच्छा ।

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    1. धन्यवाद राजकुमारी जी .समुद्र के अन्दर का द्वारिका को बेत द्वारका बोलते हैं यह गोमती द्वारका है .

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  10. अगले अंक की प्रतीक्षा में....

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    1. धन्यवाद अरविन्द जी . अगला अंक जल्दी ही ..

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  11. भाई अगले साल मुझे भी जाना है

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    1. जरूर जाएँ . जाट द्वारकादिश

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  12. खूबसूरत तस्वीरें और विस्तृत वर्णन .

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  13. बहुत सुंदर जगह ह ,म भी पिछले महीने जा करः आया हु लेकिन यहाँ से सोमनाथ मंदिर में मैनेजमेंट अच्छा ह,

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    1. धन्यवाद अशोक कुमार जी . आपने सही कहा सोमनाथ का मैनेजमेंट यहाँ से काफी बेहतर है .

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  14. सुन्दर तस्वीरें और वर्णन । जय द्वारिकाधीश जी

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    1. धन्यवाद .जय द्वारिकाधीश जी

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  16. बहुत ही सुन्दर लेखन और भरपूर जानकारी ...द्वारका तक जाने और वहां रुकने की पूरी जानकारी ..अच्छा लिखा सहगल साब

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    1. धन्यवाद योगी सारस्वत जी. संवाद बनाये रखिये .

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  19. आज दोबारा से पूरा पढ़ लिया मन नहीँ भरता, ऐसे लगता है जैसे मैं मंदिर के आस पास ही भटक रही हूं जय हो

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    1. धन्यवाद दीदी फिर से ..

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