भाग 1: अम्बाला से ओंकारेश्वर
सौराष्ट्रे सोमनाथं
च
श्रीशैले
मल्लिकार्जुनम्।उज्जयिन्यां
महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं
च
डाकिन्यां
भीमशङ्करम्।सेतुबन्धे
तु
रामेशं
नागेशं
दारुकावने॥
वाराणस्यां तु
विश्वेशं
त्र्यम्बकं
गौतमीतटे।हिमालये
तु
केदारं
घुश्मेशं
च
शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि
सायं
प्रातः
पठेन्नरः।सप्तजन्मकृतं
पापं
स्मरणेन
विनश्यति॥
एतेशां दर्शनादेव
पातकं
नैव
तिष्ठति।कर्मक्षयो
भवेत्तस्य
यस्य
तुष्टो
महेश्वराः॥
ऐसी
कहावत है कि भगवान के बुलावे के बिना कोई तीर्थ यात्रा पर नहीं जा सकता और उसकी
इच्छा के बिना कोई तीर्थ यात्रा पूरी नहीं कर सकता। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
काफ़ी
समय से उज्जैन जाकर महाकाल के दर्शन करने कि इच्छा थी लेकिन कुछ फ़ाइनल नहीं हो पा
रहा था। आखिरकार पिछ्ले वर्ष (2012) दिसम्बर में जाने का कार्यक्रम बन ही गया।
मैंने अपने दोस्त शुशील मल्होत्रा को अपने साथ जाने के लिये तैयार किया और 20
दिसम्बर 2012 को अम्बाला से जाने के लिये और 23 दिसम्बर 2012 को उज्जैन से वापसी
के लिये मालवा एक्सप्रेस में दो- दो बर्थ बुक करवा दी और नियत समय की प्रतीक्षा
करने लगे।
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माँ नर्मदा |