पराशर झील ( Prashar Lake )
पिछले सप्ताह अपने
मित्रों अमित तिवारी , बीनू कुकरेती और अन्य साथियों के साथ उधमपुर में कैलाश कुंड जाने का मेरा प्रोग्राम बनते बनते रह गया । जिसकी भरपाई 4 दिन बाद ही हिमाचल
में पराशर झील और बिजली महादेव की यात्रा से की गयी ।
इस यात्रा में मेरे
साथ मेरे सहकर्मी एवम् दोस्त सुखविंदर सिंह भी तैयार हो गए । चूँकि ये दोनों स्थान
मुख्य सड़क से हटकर हैं , इन तक जाने के लिए लोकल बस या जीप लेनी पड़ती । उससे बचने
के लिए हमने बाइक से ही चलने का निर्णय ले लिया । मेरे पास 2004 मोडल TVS विक्टर है
और सुखविंदर के पास दो महीने पहले ही नयी खरीदी हुई सुपर स्पेलंडर थी । मेरी ये
दूसरी लम्बी बाइक यात्रा थी । पिछले साल अक्टूबर के पहले सप्ताह हम दोनों ने चोपता
, तुंगनाथ ,देवरिया ताल की यात्रा बाइक से की थी ।
पराशर झील |
पहले हमारा
प्रोग्राम शनिवार सुबह निकलने का था लेकिन उस दिन सुखविंदर को कोई जरूरी काम पड़ने से
इसे रविवार सुबह कर दिया गया । रविवार सुबह हम सात बजे अम्बाला बस स्टैंड पर अपनी
अपनी बाइक से पहुँच गए । जहाँ से आगे का सफ़र इकठ्ठे शुरू किया । अम्बाला से ही
अपनी अपनी बाइक की टंकी फुल करवा ली क्योंकि पंजाब और हिमाचल में पेट्रोल हरयाणा
के मुकाबले महंगा है । हम शंभू बॉर्डर से बानूड़ ,खरड , कुराली ,रोपड़ होते हुए
कीरतपुर तक गए । जहाँ हमने पहला टी ब्रेक लिया । अब तक लगभग तीन घंटे में हम 125
किलोमीटर चल चुके थे ।
कीरतपुर से सीधी रोड
आनंदपुर साहिब होती हुई नंगल ऊना चली जाती है और एक रोड दायीं तरफ स्वारघाट ,
बिलासपुर मंडी होते हुए मनाली को जाती है । हमने मनाली वाली रोड पकड़ ली । कीरतपुर
के बाद पहाड़ी इलाका शुरू हो जाता है । यहाँ से स्वारघाट 22 किलोमीटर है । सड़क को फोर लेन किया जा रहा है
इसलिए रास्ता काफ़ी ख़राब और धुल भरा था । स्वारघाट तक लगातार चढ़ाई है । स्वारघाट से
आगे सड़क लगभग ठीक है । पहले लगातार काफ़ी उतराई है और फिर पहाड़ी इलाके के हिसाब चढ़ाई
उतराई चलती रहती है । स्वारघाट से बिलासपुर 40 किलोमीटर है। लगभग 2 बजे हम बिलासपुर पहुँच चुके
थे । वहां खाना खाने के किये एक ढाबे पर अपनी बाइक रोक ली । मैंने अपनी आदत अनुसार
अपना हेलमेट बाइक के शीशे पर ही टांग दिया । आधा घंटे के बाद जब खाना खाकर जाने
लगे तो बाइक से हेलमेट गायब था ।बड़ी ही अजीबोगरीब स्तिथि पैदा हो गयी । वहां आस
पास मार्किट भी नहीं थी । सन्डे के कारण आगे बाज़ार भी बंद था । अब बिना हेलमेट के
कैसे जाएँ ? मूड अलग से ख़राब हो गया । कभी सुना नहीं था हिमाचल में ऐसे चोरी हो
जाती होगी । ढाबे वाला भी परेशान था की उसके यहाँ से कोई हेलमेट उठा के ले गया ।
ढाबे वाले के पास एक पुराना लोकल हेलमेट पड़ा था जिसे वो यूज़ नहीं करता था ,उसने वो
मुझे दिखाया और बोला ये ले जाओ यदि काम चलता हो तो । मेरे पास कोई दूसरा चारा भी
नहीं था । इस हेलमेट का आगे शीशा भी नहीं था । चेहरे पर रूमाल बांधकर और आँखों पर
चश्मा लगाकर बाकी की यात्रा करी ।
बिलासपुर से आगे रोड
पर सुंदरनगर आता है जो लगभग 44 किलोमीटर दूर है । इसमें भी 10 किलोमीटर सड़क
(सुन्दर नगर की तरफ ) बेहद ख़राब है ,यहाँ भी सड़क पर काम चल रहा है । सुंदरनगर से
24 किलोमीटर आगे मंडी है । हम शाम 4:30 बजे मंडी पहुँच गए । मंडी हिमाचल का एक
काफ़ी बड़ा शहर है । मंडी से ही पराशर झील जाने का रास्ता अलग हो जाता है । यहाँ से पराशर
झील 51 किलोमीटर दूर है। मंडी से जोगेंद्रनगर की सड़क पर लगभग डेढ किमी दूर एक सडक
दांई ओर चढ़ती है। यह सडक कटौला व कांढी होकर बागी पहुंचती है। यहां से पैदल ट्रैक
द्वारा झील मात्र आठ किलोमीटर दूर रह जाती है। बागी से आगे गाडी से भी जाया जा
सकता है, सड़क मार्ग 18 किलोमीटर है । बागी से आगे आठ किलोमीटर तक तो अच्छी सड़क है
लेकिन उससे आगे 10 किलोमीटर सड़क नहीं है सिर्फ रास्ता है जिस पर पत्थर पड़े हुए हैं
और तीखी चढाई भी । इस आखिरी दस किलोमीटर में हमें एक घंटे से भी ज्यादा समय लग गया
इससे भी आप रास्ते की कठिनाई समझ सकते हो ।
हम लगभग 7:30 वहां
पहुंचे । वहां दो गेस्ट हाउस हैं एक फारेस्ट वालों का दूसरा PWD का । फारेस्ट
वालों से तो मैंने पहले ही फ़ोन पर बुकिंग करवाने की कोशिश की थे लेकिन ख़ाली नहीं
मिला। PWD का वहीँ जाकर पता किया वहां से भी जबाब मिल गया । मुझे मालूम था यहाँ मन्दिर की धर्मशाला भी है
जहाँ फ्री में रूक सकते हैं सिर्फ कम्बल का किराया देना पड़ता है 20 रूपये प्रति
कम्बल । लेकिन सुखविंदर इसके लिए तैयार नहीं था । वहां रुकने की लिए टेंट भी मिल
जाते हैं । हमने भी 500 रूपये में एक टेंट बुक कर लिया । खाने पीने का सामान के लिए
ऊपर एक दो दुकान भी हैं । टेंट में जाकर थोडा आराम किया फिर खा पीकर स्लीपिंग बैग
में सो गए । रात भर वहां बारिश होती रही .
सुबह पाँच बजे मैं
उठ गया लेकिन बाहर अभी काफ़ी अँधेरा था । जैसे ही बाहर हलकी रौशनी शुरू हुई मैं
टेंट से बाहर आ गया और कैमरा लेकर घुमने लगा और तस्वीरें लेता रहा । हमारे टेंट से
मंदिर दूर था मैं वहां का चक्कर भी लगा आया ।आस पास सारा घूम लिया जब सात बजे
वापिस आया तो सुखविंदर को उठाया । अब तक वहां से कुछ लोग वापिस जाने भी शुरू हो गए थे ।
दैनिक कार्य से निपट कर फिर से मंदिर गए । पंडित से काफ़ी देर बातचीत करते रहे ,
फोटो ली फिर वापिस टेंट पर आकर अपने बैग लिए , चाय की दुकान पर आये । वो अभी भी
बंद थी । उसे उठाकर चाय बनवाई और लगभग पौने नौ बजे वहां से अपनी अगली मंजिल बिजली
महादेव की ओर चल दिए ।
अब थोड़ी जानकारी
पराशर लेक और वहाँ तक जाने की :
पराशर झील हिमाचल प्रदेश के मंडी नगर से 51
किलोमीटर दूर उत्तर–पूर्व में नौ हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित है। दूर
से देखने पर इस झील का आकार
एक तालाब की तरह लगता है,
लेकिन इस झील की वास्तविक परिधि आधा किलोमीटर से अधिक
ही है। झील के चारों ओर ऊंची–ऊंची पहाड़ियाँ देखने में ऐसी प्रतीत होती हैं, मानो प्रकृति ने इस झील की सुरक्षा के लिए इन
पहाड़ियों की गोलाकार दीवार खड़ी कर दी है। पराशर झील जनबस्तियों से काफ़ी दूर
एकांत में हैं। इसके किनारे 'पैगोडा शैली' में निर्मित ऋषि पराशर का तीन
मंजिला मंदिर भी है।
आकर्षण
पराशर झील एक
छोटी-सी खूबसूरत झील है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। इस झील की
एक ख़ास बात है कि इसमें एक 'टहला' रहता है। 'टहला' एक छोटा-सा द्वीप है, जिसकी विशेषता यह है
कि यह झील में ही टहलता रहता है, इसीलिये इसे 'टहला' कहते हैं। पराशर झील
के आसपास कोई वृक्ष नहीं है। इसके चारों ओर बस हरी-हरी घास ही है, जो नवम्बर
-दिसम्बर के महीने में पीले रंग की हो जाती है।
पराशर मंदिर
झील के निकट ही पराशर ऋषि का मंदिर है। पराशर ऋषि – सभी वेदों के और महाभारत के रचयिता ऋषि वेदव्यास के पिता थे . एक अनुमान के
अनुसार इस मंदिर का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में तत्कालीन मंडी नरेश बाणसेन द्वारा करवाया गया
था। मंदिर में की गयी काष्ठ कला इतनी बेजोड़ है कि कला प्रेमी वाह–वाह किये बिना नहीं रहता। मंदिर में महर्षि पराशर
की भव्य पाषाण प्रतिमा के अतिरिक्त भगवान विष्णु,
महिषासुरमर्दिनी, शिव व लक्ष्मी की कलात्मक प्रस्तर मूर्तियाँ भी स्थित हैं। झील
का सौंदर्यावलोकन करने आये पर्यटक स्वयंमेव ही इस मंदिर में आकर नतमस्तक हो जाते
हैं।
निर्माण
शैली
कहा जाता है कि जिस
स्थान पर मन्दिर है, वहाँ ऋषि पराशर ( ऋषि वेदव्यास के पिता ) ने तपस्या की थी। पिरामिडाकार
पैगोडा शैली के गिने-चुने मन्दिरों में से यह एक है और काठ निर्मित है। तिमंजिले
मन्दिर की भव्यता अपने आप में एक मिसाल है। पारम्परिक निर्माण शैली में दीवारें
चिनने में पत्थरों के साथ लकड़ी की कड़ियों के प्रयोग ने पूरे प्रांगण को अनूठी व
नायाब कलात्मकता प्रदान की है। मन्दिर के बाहरी तरफ़ व स्तम्भों पर की गई नक्काशी
अदभुत है। इनमें उकेरे गए देवी-देवता, सांप,
पेड़-पौधे, फूल, बेल-पत्ते, बर्तन व
पशु-पक्षियों के चित्र क्षेत्रीय कारीगरी के सुन्दर नमूने हैं।
जाने का मार्ग:
मंडी से जोगेंद्रनगर की सड़क पर लगभग डेढ किमी
दूर एक सडक दांई ओर चढ़ती है। यह सडक कटौला होकर बागी पहुंचती है। कटौला से चार
किलोमीटर आगे निकलने पर एक सडक दाहिने नीचे की ओर जाती दिखाई देती है। इस नीचे की
ओर जाती सडक पर चार किलोमीटर चलने पर बागी गांव आता है। यहां से पैदल ट्रैक
द्वारा झील मात्र आठ किलोमीटर दूर रह जाती है। बागी से आगे गाडी से भी जाया जा
सकता है। सड़क मार्ग 18 किलोमीटर है। आजकल मंडी से सुबह 7 बजे पराशर लेक के लिए सीधी बस मिलती है जो 11 बजे पराशर पहुँच जाती है और यही बस 1:30 बजे
वापिस मंडी जाती है। सर्दियों में बर्फ़बारी के दौरान यह बस सर्विस बंद रहती है ।
दूसरा रास्ता
राष्ट्रीय राजमार्ग पर मंडी से आगे बसे सुंदर पनीले स्थल पंडोह से शिवाबधार
/ नोरबदार होकर पहुंचता है।
तीसरा रास्ता माता
हणोगी मंदिर से बान्हदी होकर भी जाता है ।
चौथा रास्ता कुल्लू
से लौटते समय बजौरा नामक स्थान से होते हुए सैगली से बागी होकर है। (वापसी में इसी रास्ते से होते हुए हम कुल्लू गए थे )
मंडी से द्रंग होकर
भी कटौला कांढी बागी जाया जा सकता है। पराशर पहुंचने के सभी रास्ते हरे-भरे जंगली
पेड-पौधों फलफूल व जडी बूटियों से भरपूर हैं और ज्यों-ज्यों पराशर के निकट पहुंचते
हैं प्रकृति का रंग-ढंग भी बदलता जाता है।
रूकने के लिए :
झील से 400 -500
मीटर की दुरी पर दो रेस्ट हाउस हैं एक फारेस्ट वालों का दूसरा PWD का। इनकी बुकिंग
पहले से ही करवानी पड़ती है । फारेस्ट हाउस का गेस्ट हाउस इन नम्बरों पर बुक कर
सकते हैं
फारेस्ट ऑफिस मंडी 01905 – 235360, फारेस्ट ऑफिस
कटौला Tel : 01905 – 269469
PWD गेस्ट हाउस बुक करने के लिए नंबर है Tel: 01905-222151
यहाँ मन्दिर की
धर्मशाला भी है जिसमे 10-12 कमरे हैं .यहाँ आप फ्री में रूक सकते हैं सिर्फ 20 रूपये प्रति कम्बल का किराया देना पड़ता है ।
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ReplyDeleteबहुत अच्छा नरेश जी। बहुत सुना है इस पराशर झील के बारे में। आपने इतना सुन्दर वर्णन किया हैं कि मेरा भी जाने का मन कर रहा हैं।अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिमा जी . आप भी जरूर जाएँ .
Deleteसुंदर वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद जावेद भाई .
Deleteसुंदर वर्णन
ReplyDeleteनरेश जी के यात्रा वृत्तांत की सबसे बड़ी खूबी होती है कि यह अपने पाठक को भी यात्रा में अपने साथ साथ ही लिए चलता है। वर्तमान के साथं साथ स्थान विशेष का अतीत के साथ सम्बन्ध बहुत खूबसूरती के साथ पिरोते हैं, जिससे कि वह भी उस आलेख का एक हिस्सा हो जाता है तथा कहीं से ठोपा हुआ नही लगता।
ReplyDeleteविस्तृत जानकारी से परिपूर्ण एक सुंदर पोस्ट!
फोटोज बहुत सुंदर हैं सभी, पर मुझे उगते सूरज का सबसे बेहतरीन लगा।
एक अच्छी पोस्ट लिखने की बधाई और अगले भाग की प्रतीक्षा....
Thanks for sharing 💐
धन्यवाद अवतार जी .आपके द्वारा सुन्दर शब्दों में की गयी होंसला अफज़ाई ही अच्छा लिखने को प्रेर्रित करती है
Deleteकाफी सुन्दर जगह है और बहुत अच्छी जानकारी दे रखी है जिसका काफी उपयोग रहेगा मेरे लिए। काफी वक़्त से जाने का विचार है पर जा नहीं पा रहा हूँ यहाँ।अगले भाग का इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद संदीप जी . जरूर जाना बहुत अच्छी जगह है .
Deleteइतनी जल्द पोस्ट आ जायेगी सोचा नहीं था । जानकारी से भरपूर पोस्ट ।हिमाचल में चोरी होना वो भी हेलमेट का आश्चर्यजनक बात है ।
ReplyDeleteफ़ोटो भी सदा की तरह खूबसूरत
पराशर जी की एक फ़ोटो तो बनती है
धन्यवाद किशन जी . पराशर जी की फोटो मंदिर के गर्भगृह में थी जहाँ काफ़ी अँधेरा होने के कारण फोटो लेना मुश्किल था .
Deleteविस्तृत जानकारी से युक्त एक सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteफोटोज बहुत सुंदर हैं सभी
वैसे जगह बहुत सुन्दर है। दूर से नज़र आने वाली पीर पंजाल व धौलाधार की बर्फ से आच्छादित पहाड़ियां इस जगह की सुंदरता में चार चांद लगाती है।
इस जगह कम से कम 24 घंटे रुका जाना चाहिये।
हाँ, यहां 1-2 दुकान है वहां खाना अच्छा नहीं मिलता है।
धन्यवाद कोठारी जी .अगली बार गया तो एक दो दिन रूक कर आऊँगा .
Deleteशानदार...हेलमेट, चश्मा और मुहँ पे बांधे रुमाल की फ़ोटो तो बनती है नरेश जी।
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई . भागदौड़ में ये फोटो तो रह ही गयी
Deleteनरेश जी बहुत सुंदर व जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट थी। पढ़ कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई .
Deleteनरेश जी बहुत सुंदर व जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट थी। पढ़ कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteइतना अच्छा लिखते हो नरेश हिंदी में की एक बार जो शुरू किया तो आखरी तक पढ़ती रही । और सारा डिटेल भी सम्पूर्ण तरीके से लिखा हुआ टेलीफोन नम्बर के साथ :) बहुत खूब , बीनू ने सच बोला एक फोटू तो बनता था भाई ....
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी
Deleteमंडी के बारे पढ़ अपनी लद्दाख यात्रा की याद आ गयी, क्योंकि इसी रास्ते मनाली होते हुए हम गए थे। और वापसी में आपके साथ एक दिन बिताना हमेशा यादगार ही रहेगा।
ReplyDeleteमंडी के आस पास भी इतना कुछ है, जानकार अच्छा लगा, लेकिन हेलमेट चोरी की घटना अजीब लगी।
बहुत अच्छी पोस्ट नरेश जी।
धन्यवाद राम भाई .हेलमेट चोरी की घटना हमें भी अजीब लगी।
Deleteबहुत ही सुन्दर यात्रा वर्णन साथ ही आवश्यक जानकारी के साथ।फोटो सभी बहुत सुंदर लगे।यहाँ का एक सीन किसी फिल्म में देखा था तो लगता था कि ये जगह भी भारत में ही है।जब आप सबसे पता चला तो जिज्ञासा और बढ़ गयी।जल्द ही यहाँ का प्रोग्राम बनाया जायेगा।बहुत खूब सहगल साहब।
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश भाई .जर्रोर जाओ .मस्त जगह है .
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ReplyDeleteWonerful post presented in an appropriate & simple manner. Natural beauty of Prasher lake appears as a collective appeal to a bigger group of people. All pic. r too good.
ReplyDeleteThanks .Next time with you.
Deleteनमस्कार,मै आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ,आपकी लेखनी काबिले तारीफ है,बहुत ही अच्छी पोस्ट है आपकी,पढ़कर अच्छा लगा ,अब तो नियमित पाठक बनाना पड़ेगा,सहगल जी,
ReplyDeleteनमस्कार,मै आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ,आपकी लेखनी काबिले तारीफ है,बहुत ही अच्छी पोस्ट है आपकी,पढ़कर अच्छा लगा ,अब तो नियमित पाठक बनाना पड़ेगा,सहगल जी,
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील पाण्डेय जी .आपका स्वागत है ब्लॉग पर .
Delete2004 मॉडल की विक्टर...
ReplyDeleteअब तो स्पेयर पार्ट्स भी मुश्किल से मिलते होंगे।
2004 मॉडल की विक्टर...
ReplyDeleteअब तो स्पेयर पार्ट्स भी मुश्किल से मिलते होंगे।
धन्यवाद सुमित जी .
Delete2004 माॅडेल की बाइक पे सफर बढिया रहा। वैसे टीवीएस की बाइक दमदार होती है।
ReplyDelete2004 माॅडेल की बाइक पे सफर बढिया रहा। वैसे टीवीएस की बाइक दमदार होती है।
ReplyDeleteधन्यवाद ललित जी. उत्साह वर्धन के लिए ...
Deleteनरेश जी .....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और विस्तृत जानकारी युक्त लेख ....हिंदी में पढकर बहुत अच्छा लगा, आपने पूर्ण धारा में लिखा है |
पराशर के बारे में आपके द्वारा दी गयी जानकारी उल्लेखनीय है ..|
फोटो अच्छे लगे..
धन्यवाद
धन्यवाद रितेश जी . ब्लॉग पर आने पढ़ने और टिप्पणी देकर उत्साह वर्धन के लिए .
Deleteपराशर लेक तक पहुँचने की जानकारी बहुत सटीक और सरल शब्दों में लिखी है आपने ! फोटो एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .
Deleteबहुत धारा प्रवाह लिखा है,हिमाचल में हेलमेट चोरी होना थोड़ा आश्चर्यजनक है। लेक के फ़ोटो बहुत सुन्दर हैं
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी .
Deleteपहली बार आपको पढ़ा काफी सुन्दर जगह है और बहुत अच्छी जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteसंजय भास्कर
हिसार हरियाणा
ब्लॉग - शब्दों की मुस्कराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
धन्यवाद संजय भास्कर जी
Deleteनरेश जी के यात्रा वृत्तांत की सबसे बड़ी खूबी होती है कि यह अपने पाठक को भी यात्रा में अपने साथ साथ ही लिए चलता है। वर्तमान के साथं साथ स्थान विशेष का अतीत के साथ सम्बन्ध बहुत खूबसूरती के साथ पिरोते हैं, जिससे कि वह भी उस आलेख का एक हिस्सा हो जाता है तथा कहीं से ठोपा हुआ नही लगता।
ReplyDeleteविस्तृत जानकारी से परिपूर्ण एक सुंदर पोस्ट! bahut hi sundar................ dhanyawad...
धन्यवाद किशोर जी. ब्लॉग पर आते रहें .
ReplyDeleteजबरदस्त फोटू हैं..
ReplyDeleteधन्यवाद तिवारी जी .
Deleteइस झील के कई फ़ोटो देखे पर आज पहली बार पढ़ा बहुत अच्छा लिखा आपने।
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर शायद ये आपका पहला कमेन्ट है .स्वागत के साथ साथ धन्यवाद कविता जी .
Deleteवाह 2004 मॉडल tvs विक्टर और उधार क्व हेलमेट की बढ़िया घुमक्कड़ी...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई .
Deleteसबसे पहले आपके इस साहसिक यात्रा केलिए बहुत बहुत धन्यवाद ।आपने यात्रा वृतांत बहुत सुंदर लिखा जैसा किताबों में पढ़ते थे ।तस्वीर का दृश्यावलोन अति मनमोहक ।
ReplyDeleteधन्यवाद राजकुमारी ठाकुर जी .
Deleteबहुत ही मनोरम जगह है। छोटी मोटी घटनाये तो होती ही रहती है। TVS विक्टर ज़िंदाबाद।
ReplyDeleteधन्यवाद अनित जी .
Deleteये भी बहुत़ बडी़ दुविधा है कि यात्रा के दौरान ऐसे हादसा हो जाए। चलो ये भी ठीक रहा कि कोई काम चलाऊं हैल्मेट ही मिल गया
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील मित्तल जी
Deleteकिया ही अच्छा होता की आपने उसे लॉक कर दिया होता। यह तो सभी जगह हो जाता है, पर अपने संभाल रखना बेहतर है।
ReplyDeleteधन्यवाद शिव कुमार नड्डा जी .
DeleteGreat information, Now even balck mushrooms are visible on peaks. Do read Journey to the floating Island.
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