Wednesday, 6 January 2016

गढ़कालिका मंदिर और श्रीकाल भैरव मन्दिर ( उज्जैन यात्रा )

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राम घाट और श्री राम मंदिर में घुमाने के बाद नंदू हमें गढ़कालिका मंदिर ले गया। मंदिर के सामने काफी खुली जगह है जहाँ गाड़ी वगैरह आराम से पार्क की जा सकती है। मंदिर के बाहर, पूजा के सामान की कुछ दुकाने हैं।दोपहर का समय होने के कारण मंदिर में भीड़ नगण्य थी,सिर्फ हम जैसे कुछ श्रद्धालु ही वहाँ थे।
 
गढ़कालिका मंदिर


 गढ़कालिका मंदिर 

गढ़कालिका मंदिर, मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। कालजयी कवि कालिदास गढ़ कालिका देवी के उपासक थे। कालिदास के संबंध में मान्यता है कि जब से वे इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा। कालिदास रचित 'श्यामला दंडक' महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है। ऐसा कहा जाता है कि महाकवि के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था। यहाँ प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व माँ कालिका की आराधना की जाती है।गढ़ कालिका के मंदिर में माँ कालिका के दर्शन के लिए रोज हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है। 
 
तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता, फिर भी माना जाता है कि इसकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया। वैसे तो गढ़ कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में शामिल नहीं है, किंतु उज्जैन क्षेत्र में माँ हरसिद्धिशक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है।यहाँ पर नवरात्रि में लगने वाले मेले के अलावा भिन्न-भिन्न मौकों पर उत्सवों और यज्ञों का आयोजन होता रहता है। माँ कालिका के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
 
माँ कालिका के आराम से दर्शनों के बाद हम अगले स्थल भैरों मंदिर की ओर चल दिए।  
  
भैरों मंदिर की ओर चलते हुए रास्ते में हमें हमारे ड्राईवर /गाइड नंदू ने  इस मन्दिर की विशेष महिमा बतायी  कि इस मन्दिर की मूर्ति को जितना चाहे उतनी शराब पिला दो, मूर्ति को  शराब का  पात्र   मुँह से लगाते ही शराब कम होनी शुरु हो जाती है। वैसे यह बात मुझे मेरे एक मित्र ने भी बताई थी  जो अभी कुछ दिन पहले ही उज्जैन होकर गया था।  इसलिए हम मंदिर जाकर यह सब अपनी आँखों से देखने को उत्सुक थे। नंदू ने हमें यह भी बताया कि इस मूर्ति के बारे में जब अंग्रेजों ने सुना तो वे अपने वैज्ञानिकों को लेकर यहाँ पहुँचे, इस मूर्ति के चारों ओर से गहराई तक खोदकर देखा लेकिन उन्हे यह पता नहीं चला कि आखिर मूर्ति जिस दारु को पीती है वह कहाँ जाती है? सबसे बड़ा   कमाल तो यह मिला था कि मूर्ति के चारों की मिट्टी खुदाई के दौरान एकदम शुष्क मिली थी। इस घटना के बाद अंग्रेजों ने कभी दुबारा इस मन्दिर को हाथ तक नहीं लगाया था।
 

काल भैरव

महाकाल के इस नगर को मंदिरों का नगर कहा जाता है। यहां एक विशेष मंदिर - काल भैरव मंदिर है। यह मंदिर महाकाल से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर है। वाम मार्गी संप्रदाय के इस मंदिर में काल भैरव की मूर्ति को न सिर्फ मदिरा चढ़ाई जाती है, बल्कि बाबा भी मदिरापान करते हैं । बाबा के दर पर आने वाला हर भक्त उनको मदिरा (देशी मदिरा) जरूर चढ़ाता है। बाबा के मुँह से मदिरा का कटोरा लगाने के बाद मदिरा धीरे-धीरे गायब हो जाती है।मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्तओं के हाथ में प्रसाद की टोकरी में फूल औऱ श्रीफल के साथ-साथ मदिरा की एक छोटी बोतल भी जरूर नजर आ जाती है।"
 
यह मंदिर भी श्री शीप्राजी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान कालभैरव का है जो कि अत्यंत प्राचीन एवं चमत्कारिक है।   यहाँ पर श्री कालभैरवजी की मूर्ति जो कि मदिरा पान करती है एवं सभी को आश्चर्यचकित कर देती है। मदिरा का पात्र पुजारी द्वारा भगवान के मुंह पर लगा दिया जाता है एवं मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, देखते ही देखते मूर्ति सारी मदिरा पी जाती है। मूर्ति के सामने झूलें में बटुक भैरव की मूर्ति भी विराजमान है। बाहरी दिवरों पर अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित है। सभागृह के उत्तर की ओर एक पाताल भैरवी नाम की एक छोटी सी गुफा भी है।
 
उज्जैन के मंदिरों के शहर में स्थित काल भैरव मंदिर प्राचीन हिंदू संस्कृति का बेहतरीन उदाहरण है। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर तंत्र के पंथ से जुड़ा है। स्कन्द पूरण में इन्ही काल भैरव का अवन्ती खंड में वर्णन मिलता है इनके नाम से ही यह क्षेत्र भैरवगढ़ कहलाता है। काल भैरव को भगवान शिव की भयंकर अभिव्यक्तियों में से एक माना जाता है। अतः शिव की नगरी में उन्ही के रुद्रावतार, काल भैरव का यह स्थान बड़े महत्व का है राजा भद्रसेन द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा जय सिंह द्वारा करवाया गया है। सैकड़ों भक्त इस मंदिर में हर रोज़ आते हैं और आसानी से मंदिर परिसर के चारों ओर राख लिप्त शरीर वाले साधु देखें जा सकते हैं। इस मंदिर में एक  सुंदर दीपशिला हैं। मंदिर परिसर में एक बरगद का पेड़ है और इस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग है। यह शिवलिंग नंदी बैल की मूर्ति के एकदम सामने स्थित है। इस मंदिर के साथ अनेक मिथक जुड़े हैं। भक्तों का ऐसा विश्वास हैं कि दिल से कुछ भी इच्छा करने पर हमेशा पूरी होती है। महाशिवरात्रि के शुभ दिन पर इस मंदिर में एक विशाल मेला लगता है।
 
उज्जैन की केन्द्रीय जेल के सामने से होते हुए हम लोग श्रीकाल भैरव मन्दिर जा पहुँचे। मंदिर के बाहर सजी दुकानों पर हमें फूल, प्रसाद के साथ-साथ मदिरा की छोटी-छोटी बोतलें भी सजी नजर आईं। यहाँ कुछ श्रद्धालु प्रसाद के साथ-साथ मदिरा की बोतलें भी खरीदते हैं। ऐसी ही एक दुकान पर हम परसाद लेने के लिए रुके तो दुकानदार हमसे मंदिर में भैरों बाबा को पिलाने के लिए मदिरा लेने की जिद्द करने लगा। यहाँ पर लगभग हर ब्रांड की शराब उपलब्ध थी लेकिन  शराब का रेट काफी तेज था, लगभग दुगना। दुकानदार ने हमें बताया की यहाँ ड्राई डे को भी शराब मिलती है , उसने हमें यह भी बताया की यहाँ भैरों बाबा को देसी  मदिरा ही ज्यादा चड़ाई जाती है। उसकी बातें सुनकर  हमने  भी एक देसी मदिरा की छोटी बोतल ली ओर  भैरों मंदिर की ओर  चल दिए।
 
मंदिर में पहुंचकर कुछ सीड़ियाँ चड़ने के बाद  श्री कालभैरवजी की मूर्ति दिखाई दी। उनके साथ ही पुजारी बैठे हुए थे। हमने सारा पूजा का सामान उन्हें दे दिया। उन्होंने परशाद मूर्ति को भोग लगाया फिर शराब की बोतल खोलकर लगभग आधी बोतल एक पात्र में डाली और उस पात्र को मूर्ति के मुहँ से लगा दिया।  हमारे देखते ही देखते पात्र खाली हो गया और पुजारी जी ने बाकि की आधी भरी बोतल हमें वापिस कर दी। मंदिर से जैसे ही हम निचे उतरे तो हमारे आश्चर्य की कोई सीमा न रही जब कुछ स्थानीय लोग हमसे शराब का परशाद माँगने लगे जिसमे औरतें भी शामिल थी। हमने भी लिंग भेद की निति अपनाते हुए परशाद  किसी महिला को देने की बजाय एक पुरुष को बची हुई बोतल दे दी और मंदिर से बाहर आकर अपने ऑटो की ओर चल दिए। 
 


 
गढ़कालिका मंदिर


गढ़कालिका


गढ़कालिका मंदिर

 


 श्रीकाल भैरव मन्दिर प्रवेश द्वार 


 श्रीकाल भैरव मन्दिर


श्रीकाल भैरव


 श्रीकाल भैरव मन्दिर


मन्दिर परिसर में एक सुंदर दीपशिला


एक अन्य मंदिर




12 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया यात्रा नरेश जी।मेरी भी यादे ताज़ा हो गई।मैने भी कालभैरव बाबा को पववा का भोग लगाया था।

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    1. Thanks Sachin ji for sparing your time to read the post.Thanks again.

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  2. वाह जबरदस्त। दिल्ली में भी भैरों मंदिर में कुछ ऐसा ही भोग चढ़ाया जाता है। बढ़िया यात्रा नरेश जी।

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  3. बहुत बढ़िया, सहगल साब। तस्वीर्रे भी बहुत सुन्दर है। और हाँ ये लिंग भेद करना अच्छी बात नहीं, हा हा हा

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  4. बहुत बढ़िया नरेश भाई, अपनी यात्रा के वे पल ताजा हो गए, जो हमने यहां पर बिताए।

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    1. Thanks Tyagi ji. Happy to know it reminds you your journey.

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  5. बढ़िया मंदिरों के दर्शन करा रहे हैं आप।

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    1. धन्यवाद हर्षिता जी

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  6. आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन बहुत ही सुन्दर रहा ! फोटो ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रहे हैं !!

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    1. धन्यवाद योगी जी।

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