Tuesday, 31 January 2017

Manimahesh Kailash Yatra- Part 1

मणि महेश कैलाश यात्रा-1 ( Manimahesh Yatra )

यात्रा तिथि -14 अगस्त 2014  से 17 अगस्त 2014

 बहुत वर्षों से मणिमहेश जाने की इच्छा थी लेकिन संयोग ही नहीं बन रहा था । मणिमहेश की यात्रा अमरनाथ यात्रा के समाप्त होने के बाद शुरू होती है अब चूँकि मैं पिछले कुछ सालों से हर साल अमरनाथ यात्रा पर जाता हूँ तो वहां से आने के तुरंत बाद दूसरी नयी ट्रैकिंग पर जाने की हिम्मत ही नहीं होती थी । इसके अलावा छुट्टी की भी समस्या रहती थी , और सच कहूँ तो कभी जाने के गंभीर प्रयास भी नहीं किये । आधिकारिक रूप से मणिमहेश यात्रा जन्म अष्टमी से शुरू होकर राधा अष्टमी तक 15 दिनों के लिए चलती है । वैसे कुछ लोग यात्रा से पहले या बाद में भी जाते हैं लेकिन उन दिनों उन्हें अपने खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था खुद ही करनी पड़ती है।

   

Friday, 27 January 2017

Madhyamaheshwar Yatra-Part 4 :Return journey from Madhyamaheshwar



मद्महेश्वर  यात्रा –चौथा भाग – मद्महेश्वर से वापसी  (Return from Madmaheshwar)

मंदिर में दर्शनों और आरती से निपट कर एक बार पुजारी जी से मिलने गए और फिर आगे का विचार किया गया । एक विचार ये था की अभी चलकर रात 9 बजे तक खटरा चट्टी रुका जाये । दूसरा ये की यहाँ रुक कर सुबह जल्दी निकला जाये । पहले के लिए अधिक मत थे लेकिन डाक्टर साहिब की तबियत ठीक नहीं थी । अपने डाक्टर साहिब यानि त्यागी जी बहुत मधुर बोलतें हैं, यक़ीनन इनके कई मरीज तो इनकी आवाज सुन कर ही ठीक हो जाते होंगे और ये भी हो सकता है की बहुत से तो इनकी आवाज सुनने के लिए ही 'मरीज' बन कर इनके पास आते होंगे. यहाँ जब उन्होंने अपनी दर्द भरी मीठी आवाज में कहा की देखो भैया ,अब मैं बिलकुल भी चलने की स्थिति में नहीं हूँ ,मैं तो नहीं जा पाऊँगा तो तुरंत सर्वसम्मति से वहीँ रुकने का निर्णय ले लिया गया.  
मंदिर के बाहर ग्रुप की फ़ोटो

Wednesday, 18 January 2017

Madhyamaheshwar Yatra-Part 3 : Madhyamaheshwar,Burha Madhyamaheshwar and Chaukhamba

मद्महेश्वर(मध्यमेश्वर) यात्रा: पार्ट 3 : 

(Madmaheshwar, Burha Madmaheshwar and Chaukhamba)

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पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की हम दोपहर के लगभग दो बजे मद्महेश्वर पहुँच गए थे । मंदिर से पहले रुकने ,खाने-पीने के लिए 4-5 दुकाने हैं। मंदिर के आस पास काफी खुला मैदान है । आज अच्छी धुप निकली हुई थी इसलिए कुछ देर तो सबने आराम किया । उस समय मंदिर के कपाट बंद थे। इतने में मंदिर के पुजारी भी अपने कमरे से बाहर आ गए और बोले यदि आपको अभी वापिस जाना हो तो मंदिर खुलवा देते हैं आप दर्शन कर लो । हमने उन्हें बताया की पहले हम बूढ़ा मद्महेश्वर जायेंगे वहाँ से आने के बाद मंदिर में दर्शन करेंगे । इसी बीच कृष्ण आर्य जी बड़ी हिम्मत वाले निकले और बर्फ़ीले पानी से नहाने लग गए, उन्हें लगा की हम पहले यहाँ दर्शन करेंगे । पानी बहुत ठंडा था , हाथ धोने मात्र से ही सुन्न हो रहे थे लेकिन आर्य जी बाल्टी भर पानी से नहा लिए । नहाने के बाद उन्होंने सिर्फ़ धोती कुरता पहना जिससे उन्हें ठण्ड लग  गयी और उन्होंने कहा की वो अब ऊपर बूढ़ा मद्महेश्वर नहीं जायेंगे बल्कि नीचे मंदिर के पास पुजारी जी के साथ ही रुकेंगे ।