मणि महेश कैलाश यात्रा-1 ( Manimahesh Yatra )
यात्रा तिथि -14 अगस्त 2014 से
17 अगस्त 2014
बहुत वर्षों से मणिमहेश जाने की इच्छा थी लेकिन
संयोग ही नहीं बन रहा था । मणिमहेश की यात्रा अमरनाथ यात्रा के समाप्त होने के बाद
शुरू होती है अब चूँकि मैं पिछले कुछ सालों से हर साल अमरनाथ यात्रा पर जाता हूँ
तो वहां से आने के तुरंत बाद दूसरी नयी ट्रैकिंग पर जाने की हिम्मत ही नहीं होती
थी । इसके अलावा छुट्टी की भी समस्या रहती थी , और सच कहूँ तो कभी जाने के गंभीर
प्रयास भी नहीं किये । आधिकारिक रूप से मणिमहेश यात्रा जन्म अष्टमी से शुरू होकर
राधा अष्टमी तक 15 दिनों के लिए चलती है । वैसे कुछ लोग यात्रा से पहले या बाद में
भी जाते हैं लेकिन उन दिनों उन्हें अपने खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था खुद
ही करनी पड़ती है।
2014 में अमरनाथ यात्रा से आने के कुछ दिन बाद तीन
छुटियाँ एक साथ आ रही थी जिसमे एक 15 अगस्त , एक जन्म अष्टमी और एक रविवार की ।
मैंने अनुमान लगाया की यदि मैं एक अवकाश ले लूँ तो चार दिन में आराम से मणि महेश
जाया जा सकता है । एक छुट्टी मिलना कोई समस्या नहीं । अब बात आई कि साथ किसके जाऊं
। मेरे जो यार दोस्त थे वो मेरे साथ अभी 15-20 दिन पहले ही अमरनाथ यात्रा होकर आये
थे और कोई भी चलने को तैयार नहीं था तो
अकेले ही चलने का निश्चय किया । अब समस्या आई वहां की जानकारी इकठ्ठा करने की । कई
यात्रा ब्लॉग सर्च किये यह जानकर बड़ी हैरानी हुई की मणिमहेश यात्रा पर बहुत कम
लिखा गया है । संदीप पंवार ने इस पर लिखा है , उसे पढ़ा , कुछ सीमित जानकारी मिली ।
उनका लेख काफी पहले का है ।
यात्रा पर जाने के
लिए हेमकुंट एक्सप्रेस गाड़ी में अम्बाला से पठानकोट के लिए एक सीट बुक करवा दी ।
समय कम होने के कारण RAC ही मिल पाई और अंत तक वो RAC ही रही । तय दिन 14 अगस्त रात को 9 बजे इस
ट्रेन से यात्रा की शुरुआत कर दी । यह गाड़ी रात को 2 बजे के आसपास पठानकोट पहुँचती
है तो आराम से सोने का तो सवाल ही नहीं था , दूसरा सीट भी शेयरिंग में थी और तीसरा
हमारे साथ वाली सीटों पर कुछ लड़के थे जो बहुत शोर कर रहे थे , शायद कॉल सेन्टर में
काम करने वाले “ उल्लू “ थे उनको रात को नींद कहाँ से आये ? पठानकोट से थोड़ी देर
पहले किसी स्टेशन के बाहर ट्रेन रूक गयी और लगभग एक घंटा से ज्यादा वहाँ रुकी रही
। कई गाड़ियाँ आई और क्रॉस करके चली गयी लेकिन यह गाड़ी टस से मस न हुई । अभी तक
मैंने एक भी झपकी नहीं ली थी और मेरी नींद के कारण हालत ख़राब हो रही थी । मैं
थकावट तो बर्दाशत कर लेता हूँ लेकिन नींद बर्दाशत नहीं होती ,इस पर सोने पे सुहागा
यह की जब तक अनुकूल माहौल न हो तो नींद आती भी नहीं। मुझे इतना तो अंदाजा लग गया
था कि दिन में हालत ख़राब होने वाली हैं ।
आख़िरकार बहुत देर
बाद इसका भी नंबर आया और अपने तय समय से काफ़ी लेट लगभग साढ़े तीन बजे ट्रेन पठानकोट
कैंट रेलवे स्टेशन पहुंची । पठानकोट कैंट रेलवे स्टेशन का नाम पहले चक्की बैंक था
जिसे अब बदल दिया गया है और यह मुख्य शहर से चार पांच किलोमीटर दूर बना है । जब हम
पठानकोट कैंट रेलवे स्टेशन पर पहुंचे वहां काफी तेज बारिश हो रही थी । प्लेटफ़ॉर्म
से बाहर आकर सिटी बस स्टैंड के लिए एक ऑटो लिया जहाँ से मुझे चम्बा की बस पकड़नी थी
।15-20 मिनट में लगभग चार बजे मैं बस स्टैंड पहुँच गया ।
बस
स्टैंड पर मणिमहेश जाने वाले बहुत यात्री थे और बस एक भी नहीं । मुझे नींद की
झपकियाँ आ रही थी लेकिन सोने के लिए समय न था । बस अड्डे पर मौजूद टी स्टाल से चाय
पीकर नींद को भगाने का असफल प्रयास किया । काफ़ी समय बीत गया लेकिन चंबा की कोई बस
नहीं मिली । बस अड्डे पर पूरी तरह अव्यवस्था फैली हुई थी । अब तक मणिमहेश जाने
वाले सैकड़ों यात्री जमा हो चुके थे । एक बस आई और कहा गया की काउंटर से टिकेट लेने
वाले को ही सीट मिलेगी । अब सारा धक्का मुक्का काउंटर पर हो गया । सिर्फ 2-3 लोगों ने टिकेट ली और बताया की बस भर गयी ।
काफ़ी हो हल्ला हुआ तो मालूम हुआ की एक ने 30 टिकेट ली हैं, दुसरे ने 15
और तीसरे ने 6-7 । उनके बड़े बड़े ग्रुप थे और मेरे जैसे तो सोचते
ही रह गए । बहुत से लोग बस में खड़े हो गए और बस पूरी तरह से भर कर चल पड़ी । लगभग आधे घंटे बाद दूसरी बस आई लेकिन वो पहले से ही भरी हुई थी फिर भी
उसमे कई लोग सवार हो गए और बस चली गयी । मैंने यह बस भी छोड़ दि क्योंकि मैं पहाड़ी
इलाके में बस में खड़े होकर सफ़र नहीं करना चाहता था ।
हरियाणा के यमुनानगर जिले में कपालमोचन जगह पर कार्तिक
पूर्णिमा को तीन दिन का मेला लगता है . हरियाणा
–पंजाब से बाहर के लोग इस मेले के बारे में ज्यादा नहीं जानते .इस मेले के लिए भी अम्बाला
से स्पेशल बसे चलाई जाती है .हर आधे घंटे में मेले के लिए बस मिलती है जो सीधा
नॉनस्टॉप मेले में जाती हैं और यहाँ
मणिमहेश यात्रा इतनी प्रसिद्ध होने के बावजूद सरकार
द्वारा यात्रा के लिए कोई भी स्पेशल बसें नहीं चलाई गयी थी जबकि यहाँ 15 दिन के
दौरान ही लाखों लोग यात्रा पर आतें हैं .
बस अड्डे पर भीड़ अभी भी ऐसी ही थी जितने लोग गए
उससे ज्यादा नए आ गए । दो घंटे से बस अड्डे पर खड़ा था और बस नहीं मिल रही थी ।
पिछले दो घंटे में सिर्फ दो बस ही चंबा के लिए गयी थी .अब तक मुझे थकावट और नींद
के कारण काफ़ी बैचनी होने लगी । इसी दौरान तेज बारिश लगातार चलती रही । कुछ लड़कों
ने बाहर जाकर एक टैक्सी वाले से बात की वो 500 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से जाने को तैयार हो गया । कुल 10 सवारी चाहिए थी मैं भी उनके साथ शामिल हो गया सभी
इकठ्ठे होकर बाहर गए लेकिन तब तक उसका विचार बदल चूका था बोला भारी बारिश है
रास्ते में भूस्खलन से दिक्कत हो सकती है इसलिये मैं नहीं जाऊँगा । निराश होकर हम वहाँ
से तेज बारिश में भीगते हुए फिर से बस अड्डे में आ गए।
काफ़ी
निराशमय माहौल बन चूका था और मैं अपने आप को कोस रहा था की क्यों मैं यहाँ मुंह
उठाकर चला आया और वो भी अकेले । ज्यादा ही हीरो बनने का शौक हो रहा था । अब तक
यहाँ आये तीन घंटे हो चुके थे । चम्बा की बस न मिलते देख मैंने निर्णय लिया की अब
मैं घर वापिस जाऊँगा और जो भी बस अम्बाला की तरफ जाएगी उस पर सवार होकर चला जाऊँगा
। इतना सोचते ही एक दिल्ली जाने वाली बस आ गयी लेकिन वो भी पहले से पूरी भरी थी और
यह बस भी बस स्टैंड का तेजी से चक्कर लगाकर चली गयी, रुकी नहीं - मन और निराश हुआ
। पता नहीं भोले नाथ क्या चाहते हैं ?
थोड़ी
देर बाद एक चम्बा जाने वाली बस और आई , पीछे से बन कर आई थी उसमे सवारी पहले से ही
भरी थी फिर भी उसमे बहुत से लोग सवार हो गए और बस पूरी तरह भर चुकी थी । पता नहीं
मेरे मन मैं क्या आया मैं भी बस मैं चढ़ गया । आगे वाले दरवाजे के पास ही खड़ा था ।
दो चार लोग मेरे बाद भी धक्के से बस में दाखिल हुए और मैं आगे की और खिसक गया । मैं
ड्राईवर के पीछे पहली तीन सीट वाली सीट के पास खड़ा था । जैसे ही बस चलने लगी सीट
पर बैठा हुआ आदमी अचानक खड़ा हो गया हुआ और मुझसे बोला कि आप यहाँ बैठ जाओ . मैंने पूछा भाई साहेब आपको जाना नहीं है क्या ? उसने मना किया और बस से नीचे उतर गया । इसे मैं क्या समझूं ? इतनी भीड़ में जहाँ अब तक मैं एक पाँव पर ही मुश्किल से खड़ा हुआ था , अचानक बस चलने से पहले ही मुझे सीट मिल गयी । मैंने मन ही मन भगवान को धन्यवाद
किया और आराम से बैठ गया। बस चली और आख़िरकार चम्बा के लिए यात्रा शुरू हो गयी।
चूँकि
आज के वृतांत में सिर्फ ट्रेन या बस से यात्रा हुई इस वृतांत की कोई तस्वीर नहीं
है लेकिन सांत्वना के लिए मणिमहेश ट्रैक की
कुछ तस्वीरें डाल रहा हूँ ...
अगला भाग : मणि महेश कैलाश यात्रा-2 ( पठानकोट-चम्बा-भरमौर–हडसर )
अगला भाग : मणि महेश कैलाश यात्रा-2 ( पठानकोट-चम्बा-भरमौर–हडसर )
मणिमहेश कैलाश पर्वत |
बम बम भोले,
ReplyDeleteबढ़िया शुरुवात,
आप वाली समश्या हमें नहीं आएगी अब, हमें जाने से पहले पूरी जानकारी मिल रही है, जय भोले की
धन्यवाद कौशिक जी . कोशिश रहेगी की अधिक से अधिक जानकारी शेयर कर सकूं .
Deleteजय भोले की ललचा के रख डियस अगले भाग के इन्तजार में
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद जी ।💐
ReplyDeleteNice post. Thanks for sharing. Waiting eagerly for next post. Om Hr Hr Mahadev.
ReplyDeleteThanks
Deleteबढ़िया शुरुआत नरेश जी। अगले भाग क़ी इन्तज़ारी.....
ReplyDeleteअच्छा किया जो कुछ फ़ोटो डाल दी।
धन्यवाद बीनू भाई . बिन फ़ोटो ब्लाग सुना लगता है .
Deleteवाह शानदार वर्णन और बेहद शानदार फोटो...
ReplyDeleteमजा आ गया।।।
अगले भाग का इंतजार रहेगा।
धन्यवाद सुमित जी .बने रहिये, अगला भाग जल्दी ही .
Deleteपठानकोट का नया नाम पढ़ के अच्छा लगा, महाभारत काल में 3 प्रमुख कोट (किले का प्रवेशद्वार) थे जिसमें से एक पठानकोट दूसरा इल्लाहाबाद में झूंसी के आसपास का क्षेत्र और तीसरा मैं भूल गया। कांगड़ा में बना किला अब तक भारत में बना सबसे पुराना किला है। होता है वही जो भोलेनाथ चाहते है । जारी रखिये ��
ReplyDeleteधन्यवाद मिश्रा जी .महाभारत काल में 3 प्रमुख कोट की जानकारी के लिए भी धन्यवाद .
DeleteNice Post with beautiful pictures. Waiting for next one.
ReplyDeleteजैसे ही बस चलने लगी सीट पर बैठा हुआ आदमी अचानक खड़ा हो गया हुआ और नीचे उतरने लगा मैंने पूछा भाई साहेब जाना नहीं है क्या ? वो बोला नहीं आप बैठो । इसे मैं क्या समझूं ? इतनी भीड़ में मुझे सीट मिल गयी वो भी बस चलने से पहले ही । मैंने मन ही मन भगवान को धन्यवाद किया और आराम से बैठ गया। बस चली और आख़िरकार चम्बा के लिए यात्रा शुरू हो गयी। निराशा जहां आशा में बदल जाए वो विश्वास है और जो माध्यम बन जाए इस बदलाव का वो ही "शिव " है ! अंततः आपकी यात्रा शुरू हुई ! जय भोलेनाथ ! चित्र कह रहे हैं कि आगे बहुत कुछ आने वाला है -अनकहा , अनसुना , अनदेखा सा !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी. आपने सही फरमाया निराशा जहां आशा में बदल जाए वो विश्वास है और जो माध्यम बन जाए इस बदलाव का वो ही "शिव " है !
DeleteAp to kamal kar hi rahe hain. La jawab
ReplyDeleteधन्यवाद शान्तनु जी
Deleteनरेश जी भोले बाबा का आशिर्वाद आप पर है, फिर वो आपको वापिस कैसे जाने देते इसलिए चढा दिए बस में भी और सीट भी दिला दी। बढिया आगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद त्यागी जी . भोलेनाथ का आशीर्वाद तो है ही .तभी वहाँ जा सके .
Deleteधन्यवाद त्यागी जी . भोलेनाथ का आशीर्वाद तो है ही .तभी वहाँ जा सके .
ReplyDeletehmm... yes it was a miracle..that u got seat. Jai bhole
ReplyDeletewaiting for real journey
धन्यवाद तिवारी जी . सब भोले की माया है .
Deleteइतनी भीड़ में आपको सीट मिल गयी वो भी बस चलने से पहले इसे और कुछ नहीं भोले भंडारी की कृपा दृष्टि कह सकते हैं .बाकि फोटो तो एक बहुत सुन्दर कहानी कह रहे हैं .
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी . बिलकुल सही फ़रमाया इतनी भीड़ में एकदम से सीट मिल जाना ...भोले भंडारी की कृपा तो है ही .
Deleteशुरुआत तो वाकई हैरान परेशान करने वाली रही। पर आशा है कि सीट मिलने के बाद से आपकी निराशा आशा में बदलने का समय शुरू हो गया है 😀
ReplyDeleteमिलते हैं अगली कड़ी में 💐
जी पाहवा जी सही फ़रमाया .पहला दिन तो परेशानी से भरा ही रहा .
Deleteसमय निकल कर पोस्ट पढ़ने और कमेंट करने के लिए धन्यवाद ....
बम बम भोले
ReplyDeleteसहगल साहब मुझे भी मणिमहेश जाना है क्या तीन दिन मे हो जायेगा।
धन्यवाद अनिल जी .जय भोलेनाथ. दिल्ली से दिल्ली तीन दिन में हो सकता है यदि भीड़ भाड न हो लेकिन भागम भाग रहेगी .
ReplyDeleteबढ़िया शुरुआत सहगल साहब....👍
ReplyDeleteसीट मिलना आप पर भोले नाथ की कृपा है..
धन्यवाद त्यागी जी । निस्संदेह भोले नाथ की कृपा तो है ही ।
Deleteजय भोले की....नरेश जी...
ReplyDeleteअच्छी शुरुआत रही आपकी यात्रा की....इतनी अडचन आने के बाद आखिरकार आपको चंबा के लिए बस में सीट मिल ही गयी.... जो होता है सब भोले की मर्जी से होता है ....
अच्छा लेख और बढ़िया चित्र..
धन्यवाद रीतेश जी ।जय भोले की ।💐
Deleteभोले का बुलावा था तो दूत को भेज दिया...जय हो भोले भंडारी
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी ।जय भोले भंडारी की।👍
DeleteYou can go for private tour companies. Comfort My Travel is a leading name in the travel industry and is offering Kailash Mansarovar Yatra Lucknow Helicopter Tour Via Nepalgunj 2018
ReplyDeleteThe tour is from Lucknow via Nepalgunj. From 25th April 2018 To 30th September 2018. The Package Cost is inclusive of meals, guide, hotels. Experience Kailash Mansarovar trekking, lake, Pashupatinath Temple and a transformative journey to Kailash Mansarovar Yatra Lucknow Helicopter Tour Via Nepalgunj.
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Duration: 9 Days.
Day 01 : Lucknow to Nepalgunj drive by Luxury Vehicle. (180 kms; about 5 hours)
Day 02 : Fly From Nepalgunj to Simikot (4025m) – Airlift to Hilsa by Helicopter, walk uphill to Sher and drive to Taklakot (3700m; 40 kms; about 2 hrs.)
Day 03: Relax and enjoy your stay at Taklakot (Burang)
Day 04: Drive to Chui Gompa, Mansarovar (4590 m; 110 km; about 4 - 5 hrs.)
Day 05: Drive from Mansarovar to Tarboche (35 Kms). Trek to Dirapuk (16 kms; 5-7 hrs.)
Day 06: Trek to Zuthulphuk (5600 m; 22 kms; about 9-10 hrs.)
Day 07: Trek from Zuthulphuk to Darchen (10 km; about 4 - 5 hrs.). Drive to Taklakot (110 km; about 4-5 hrs.)
Day 08: Gradual trek to Darchen (10 kms; about 3 to 4 hours). Drive to Taklakot (about 3 to 4 hours)
Day 09: From Taklakot to Nepalgunj via Simikot and then drive to Lucknow (Drive + Helicopter + Flights)
For more details regarding your stay and conveyance vehicles in the tour, please visit Kailash Mansarovar Yatra Lucknow Helicopter Tour Via Nepalgunj 2018
समझ लीजिए कि भोलेनाथ ने मदद स्वरूप उस आदमी को भेजा था, आप जैसा भोले का भक्त क्या समझेगा ये तो अच्छी तरह पता है, मैं तो समझता हूं कि साक्षात महादेव थे।
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा जी .महादेव की कृपा तो मुझ पर है ही .
Deletepadh k aisa laga jaise ki main hi safar kar rha hu. bahut achi lekhni hain aapki aur aapke irade bhi bahut mazboot hai. itni visam paristhiti me bahut kam log hi jo haar nahi maante hian
ReplyDeleteThanks Dear Anit
DeleteYah Bholenath ka entrance exam tha jo ki aapne pass kar liya.
ReplyDeleteधन्यवाद पाण्डेय जी ..
DeleteVery nice sir good explain
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव चानना जी
Delete