मद्महेश्वर यात्रा –चौथा भाग –
मद्महेश्वर से वापसी (Return from Madmaheshwar)
मंदिर में दर्शनों और आरती से निपट कर एक बार पुजारी जी से
मिलने गए और फिर आगे का विचार किया गया । एक विचार ये था की अभी चलकर रात 9
बजे तक खटरा चट्टी रुका
जाये । दूसरा ये की यहाँ रुक कर सुबह जल्दी निकला जाये । पहले के लिए अधिक मत थे
लेकिन डाक्टर साहिब की तबियत ठीक नहीं थी । अपने डाक्टर साहिब यानि त्यागी जी बहुत
मधुर बोलतें हैं,
यक़ीनन इनके कई मरीज तो इनकी आवाज सुन कर ही ठीक हो जाते होंगे और ये भी हो
सकता है की बहुत से तो इनकी आवाज सुनने के लिए ही 'मरीज' बन कर इनके पास आते होंगे.
यहाँ जब उन्होंने अपनी दर्द भरी मीठी आवाज में कहा की देखो भैया ,अब मैं बिलकुल भी
चलने की स्थिति में नहीं हूँ ,मैं तो नहीं जा पाऊँगा तो तुरंत सर्वसम्मति से वहीँ
रुकने का निर्णय ले लिया गया.
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मंदिर के बाहर ग्रुप की फ़ोटो |
जब हम यहाँ आये तो हमसे दुकानदार ने पूछा था की यहाँ रुकना
है या वापिस जाओगे तो हमने कह दिया था की वापिस जायेंगे तो उसे थोड़ी मायूसी हुई थी
. अब हमारे रुकने के फैसले से वो खुश था लेकिन बोला यदि आपने पहले ही रुकने को
बोला होता तो अब तक खाना भी तैयार मिलता . हमने बोला कोई बात नहीं आप खाना आराम से
बनाओ . वो हमें एक 6 बेड वाले कमरे में ले गया और उसे पहले चाय फिर रात के लिए खाना बनाने के लिए
बोल कर हम सब बिस्तर में घुस गए ।
यहाँ रुकने के लिए स्थानीय लोगों ने एक नियम बनाया हुआ है
जिसके अनुसार सभी का एक क्रम से नंबर आता है । यदि हम 3 नंबर वाले में रुके हैं तो अगले यात्री 4 नंबर में ही रुक सकते हैं ।
बढ़िया सिस्टम है । मिलजुल कर कमाओ । सहकारी समिति टाइप ।
सभी बिस्तर में बैठे बैठे ही सबने चाय पी । फिर डाक्टर
साहेब ने खुद भी दवाई ली बाकि सब को भी थकावट दूर करने के लिए एक एक टेबलेट दे दी
। कौशिक जी पिछले दो दिनों से गति के चौथे नियम से पीड़ित थे ( जिसे न्यूटन कहना
भूल गए थे ) उनको भी डाक्टर जी ने लाल झंडी वाली दवाई दी .कौशिक जी ,डाक्टर जी ,अनिल जी और आर्य जी तो दवाई
लेकर सो गए .मैं और एकलव्य भाई जग रहे थे . आपस में गपशप चलती रही । बैक राउंड में
मद्धम संगीत बजता रहा । 8 बजे खाना आ गया -दाल चावल सब्जी रोटी । सोते हुए साथियों को उठाया गया और
सबने गरमा गर्म खाना खाया . खाना खाकर एक-एक कप चाय फिर ली । अरे हाँ हमारे साथ कालू और शेरू
भी थे उनको भी खाना खिलाया गया । खाना पीना करने के बाद ,सुबह 4 बजे का अलार्म लगाकर सभी सो गए । रात काफी ठण्ड थी तापमान
पक्का माइनस में ही होगा लेकिन मोटी मोटी रजाई में अच्छी नींद आई ।
सुबह 4 बजे अलार्म बजने पर सब उठ गए । दुकानवाले को भी आवाज लगाकर उठा दिया और चाय
बनाने को बोल दिया । तब तक सभी नित्य कर्म से निपट लिए .चूल्हे के पास बैठकर ही
चाय पी और फिर दुकानदार का सारा हिसाब चुकता कर ठीक 5 बजे हम वहां से चल दिए . अभी बाहर काफी अँधेरा था
.हमारे पास तीन टॉर्च थी ,इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई .एक टॉर्च वाला आगे हो गया दूसरा बीच में और
तीसरा सबसे पीछे . मद्महेश्वर से निकलते ही जंगल शुरू हो जाता है .इसलिए हम सब
इकठ्ठे चल रहे थे .शुरू के एक- ढेड़ घंटे की दिक्कत थी उसके बाद तो दिन की रौशनी हो
ही जानी थी. शेरू और कालू रास्ते को सूंघते हुए हमसे आगे आगे चल रहे थे . उनके
कारण भी हम सुरक्षित महसूस कर रहे थे. जब तक हम जंगल से बाहर निकले तक तक अँधेरा
काफी छंट चूका था और धीरे धीरे रोशनी बढ़ रही थी . इससे हमारे उतरने की स्पीड भी बढ़
गयी थी .
सुबह 8 बजे हम खटरा चट्टी पहुँच चुके थे .वहाँ रूककर पहला ब्रेक लिया गया . पहुँचते
ही चाय का आर्डर कर दिया .चाय के साथ बैग में रखे बिस्कुट निपटाए गए .चाय पीकर और
थोड़ा विश्राम कर फिर से यात्रा शुरू कर दी .यहाँ से बंतोली चट्टी ज्यादा दूर नहीं
है थोड़ी ही देर में हम वहाँ पहुँच गए . सुबह 9:15 तक हम गोंडार पहुँच गए .यहाँ जाकर कैलाश लॉज में
गए और वहाँ रखा अपना सामान लिया , उसका हिसाब चुकता किया और रांसी की तरफ चल दिए . अनिल और एकलव्य हमसे पहले ही
निकल चुके थे. वापसी करते हुए रास्ते में हमें गाँव की कई औरतें मिली जो सुखी घास
की गठरियाँ उठाये जा रही थी इसे शायद सर्दियों के मौसम के लिए इकठठा किया जा रहा
था.
गोंडार से लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद रांसी के लिए चढ़ाई
शुरू हो जाती है .वापसी में यह चढ़ाई बड़ी दुखदायी लगती है. लगातार तीन किलोमीटर
चढ़ाई है .बार बार साँस फूल रहा था ,चलते -थोड़ा रुकते फिर चल पड़ते . आगे एकलव्य भाई भी बैठे हुए मिल गए .उन्हें
पानी चाहिए था और बोतलें हमारे पास थी .पानी पीकर वो भी हमारे साथ हो लिए . लगभग
साढ़े बारह बजे हम लोग रांसी पहुँच गए .अनिल हमसे काफी पहले पहुँच तब तक गाड़ी धो
चूका था . रांसी पहुँच कर चाय पी और मैगी का आर्डर भी कर दिया .सुबह से कुछ खाया
नहीं था . हल्का फुल्का नाश्ता करने के बाद हम लोग दोपहर 1:15 पर वहाँ से निकल लिए . थोड़ा
आगे चलते ही हमें सामने से बाइक पर आते हुए रविंदर भट्ट मिल गए . गाड़ी रोक कर
गर्मजोशी से उनसे मिले और दोबारा मिलेंगे कह कर उनसे विदा ली और वापसी यात्रा फिर
से जारी कर दी .
वापसी की यात्रा लगभग नॉनस्टॉप ही की . उखीमठ –कुंड –अगस्तमुनि –रुद्रप्रयाग –श्रीनगर –देवप्रयाग होते हुए शाम सात बजे तक ऋषिकेश पहुँच गए .मुझे हरिद्वार उतरना था
और बाकि सब को दिल्ली जाना था . पहले तो सबकी हरिद्वार पहुंचकर गंगा स्नान की
इच्छा थी लेकिन देरी होते देख कर कैंसिल कर दिया गया . मैंने तो हरिद्वार ही उतरना
था , सोचा उतर कर आराम से
नहा लूँगा .चूँकि आज कार्तिक पूर्णिमा थी इसलिए गंगा जी में स्नान तो बनता ही था .
कौशिक जी और आर्य जी को गंगा जल चाहिए था इसलिए अनिल ने हरिद्वार में सड़क के साथ
ही एक घाट पर गाड़ी रोक ली .जब तक साथियों ने गंगा जल भरा तब तक मैंने जल्दी से
गंगा जी में डुबकियाँ लगा ली . यहाँ से आगे चलकर मुझे बस स्टैंड के पास बाईपास पर
उतार कर बाकि साथी दिल्ली निकल गए . मैंने बस स्टैंड जाकर पहले एक भोजनालय में
खाना खाया फ़िर रात दस बजे अम्बाला की बस ले ली और रात दो बजे तक घर पहुँच गया .
यात्रा का समय :
मद्महेश्वर की यात्रा मई से नवम्बर तक खुली रहती है .इसके
खुलने और बंद होने की तिथि बद्रीनाथ केदारनाथ समिति ही तय करती है . यदि आप बर्फ़
देखने के इच्छूक है तो एकदम शुरू में जाएँ ,मंदिर के आस पास बर्फ मिलने की पूरी सम्भावना है
.जुलाई अगस्त में बारिश के दौरान न जाना ही बेहतर है .सितम्बर से नवम्बर तक
हरियाली से भरपूर शानदार मौसम रहता है .
इस यात्रा पर हुए खर्च का कुछ विवरण :
इन्नोवा का खर्चा :दिल्ली से दिल्ली ( मेरे लिए हरिद्वार से
हरिद्वार) -1500 रूपये
यात्रा में रुकने खाने पीने का प्रति व्यक्ति खर्च 670 रूपये रहा . जिसमे गोंडार में खाना 70 रूपये थाली था और
मद्महेश्वर में खाना 90 रूपये थाली. रात रुकने का
-गोंडार में 400 में सब रुके और मद्महेश्वर में 100 रूपये प्रति व्यक्ति. चाय 10 की एक- दोनों जगह .
मेरा अम्बाला – हरिद्वार- अम्बाला लगभग 700 रूपये लगे .जिसमे जाते हुए हरिद्वार में 300 में एक कमरा लिया
था बाकि किराया और खाने का .
जहाँ दिल्ली वालों का प्रति व्यक्ति खर्च 2170 रहा वहीँ मेरा कुल खर्चा 2900 रहा .
मद्महेश्वर की यात्रा कई मायनो में यादगार रही . अलग अलग
शहरों में रहने वाले ,भिन्न कार्य क्षेत्र वाले ,घुमने के एक सांझे शौक के चलते सोशल मीडिया के माध्यम से इकठ्ठे हुए और यात्रा
पर निकल पड़े . पूरी यात्रा में कभी भी, किसी भी बात पर, किसी का किसी से मतभेद नहीं हुआ .सबने हंसी मजाक करते हुए कुशलता से यात्रा
पूरी की .इसके लिए मैं अपने सभी साथियों का धन्यवाद करता हूँ .
एक बड़े वाला धन्यवाद भगवान भोले नाथ का जिसने हमारे मन में
इस यात्रा की अलख जगाई और जिनके आशीर्वाद से हम यह यात्रा शकुशल कर सके .
चढ़दे सूरज ढलदे देखे, बुझदे दीवे बलदे देखे ।
हीरे दा कोइ मुल ना जाणे, खोटे सिक्के चलदे देखे ।
जिना दा न जग ते कोई, ओ वी पुत्तर पलदे देखे ।
उसदी रहमत दे नाल बंदे, पाणी उत्ते चलदे देखे ।
लोकी कैंदे दाल नइ गलदी, मैं ते पत्थर गलदे देखे ।
जिन्हा ने कदर ना कीती रब दी, हथ खाली ओ मलदे देखे ।
कई पैरां तो नंगे फिरदे, सिर ते लभदे छावा...
बहुत बढ़िया नरेश जी! चाँद का फोटो बहुत सुन्दर आया है, मैं सोचता था की सिर्फ सेटेलाइट से ही ऐसे फोटो आते होंगे! और ये माल्टा कौन से फल हैं?
ReplyDeleteधन्यवाद RD भाई . माल्टा कीनू की तरफ ही होता है -मौसमी और संतरे के खानदान का .
Deleteबढ़िया लिखा है नरेश जी। शेरू कालू का सात बढ़िया रहा।
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई.
Deleteहर हर महादेव
ReplyDeleteहर हर महादेव .
Deleteसहकारी समिति वाला फंडा सबसे ज्यादा पसंद आया मुझे तो।
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी .
Deleteबढ़िया यात्रा विवरण ! बेहतरीन फोटो
ReplyDeleteजय भोले नाथ
धन्यवाद मुकेश जी . जय भोले नाथ
Deleteबढ़िया यात्रा विवरण ! बेहतरीन फोटो
ReplyDeleteजय भोले नाथ
बढ़िया पोस्ट .शानदार चित्र .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी .
Deleteअसली घुमक्कडी तो यही है जो आप लोग करते हो। परिवार के साथ ऐश करते हुए घूमने को घुमक्कडी नहीं कह सकते। मैं ऐसी घुमक्कडी अकेले ही करता रहा हूँ अब तक। भविष्य में कितना कुछ घूम पाउँगा, यह तो भगवान ही जानें।
ReplyDeleteआपकी इस पूरी यात्रा से बहुत कुछ सीखने को मिला है। बुल्ले शाह के गीत से संपन्न हुए इस यात्रा वृत्तांत के लिए बहुत धन्यवाद और बधाई नरेश जी।
धन्यवाद सुशांत जी . जैसा मौका मिलता है वैसे ही घूम लेते हैं -पारिवारिक भी और दोस्तों के साथ भी . इसे घुमक्कड़ी कह लो या पर्यटन मकसद तो घूमना ही है .
Deleteसच में एक यादगार यात्रा रही ये आप सब दोस्तों के साथ.....ब्लॉग पढ़कर पुनः सब जैसे सजीव हो गया....धन्यवाद आपका ।
ReplyDeleteवैसे जी आपने मेरी बातचीत करने के बारे में लिखा है वैसा कोई गुण मुझे तो नही लगता स्वयं में परन्तु हाँ एक बात अवश्य और लोग भी कहते हैं के डॉ.साहब के पास आकर मर्ज आधा तो उनकी बातों से ही हो जाता है...😊😊
धन्यवाद त्यागी जी । मुझे तो आपमें ये गुण सच में लगा । आप सच में काफी मधुर बोलते है ।आपकी बातें सुनने के लिए फिर से किसी यात्रा पर चलेंगे ।
Deleteबहुत बढ़िया,सहगल साहब। सुन्दर वर्णन किया आप ने। आप सभी मित्रों को एक जगह देख के बहुत बढ़िया लगा।
ReplyDeleteधन्यवाद बबलू भाई । आपका साथ बना रहे ।
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ReplyDeleteAs usual, very well written post with beautiful pictures specially natural sceneries. I also like the Quote of Bulle Shah. It is already in my knowledge that you writes, BT you writes in such good way. you have given fully description which helps to the people so they can easily reach at their destination after reading your post. It comes to know
Deleteme after joining FB. Congrats after all, u have completed this post. Tell me one thing ? where are Sheru n Kalu ? Even they have given full security n company during tracking.😁😂
Thanks my dear. Sheru and kalu stopped at the Gondar village where they belongs to.
Deleteबहुत ही अछि यात्रा..खास कर इस वाले भाग में इसलिए और मजा आया की कई बार चाय का ज़िक्र हुआ और कई बार चाय पी गयी..बधाई हो दिल से .. फिर इंतज़ार में अगली यात्रा और पोस्ट का....
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई । आप तो चाय के काफी शौक़ीन लगते हो ।
Deleteबढ़िया यात्रा विवरण , शानदार फ़ोटो .अच्छी यात्रा रही .
ReplyDeleteधन्यवाद राज साहेब
Deleteबहुत अच्छा लिखा है सहगल साहब जय भोले की
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई ।जय भोले की ।
Deleteबहुत अच्छा लिखा है सहगल साहब जय भोले की
ReplyDeleteबहुत बढ़िया । सही कहा मरीज डॉ साब की आवाज सुन के ही ठीक होते होंगे ।
ReplyDeleteधन्यवाद हरेंद्र भाई ।💐💐
Deleteनरेश जी आपकी यात्रा बहुत बढिया रही। एक साथ जाना सुगम भी होता है और किफायती भी।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई । सही फ़रमाया ग्रुप में फायदा तो रहता ही है ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteAa usual very well written post !
ReplyDeleteThanks Mahesh ji.
Deleteसुंदर यात्रा आखिर खत्म हुई.. रोचक विवरण... नदियों के चित्र बहुत अच्छे आये है..
ReplyDeleteये न्यूटन का चौथा नियम क्या है
धन्यवाद तिवारी जी . Newtons fourth Law - Loose motion can not be done in slow motion.
Deleteएक बहुत शानदार यात्रा का शानदार समापन ! मंधानी सिस्टर्स गज़ब का फोटो लिया है आपने !! ये श्रृंखला बहुत उत्साहित करने वाली और ज्ञानवर्धक रही ! लिखते रहिये नरेश सहगल जी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .आप हमारा उत्साह बनाये रखिये .हम लिखते रहेंगे .
ReplyDeleteमजा आ गया सहगल साहब, एक बार फिर यात्रा कर ली आपके साथ आज...
ReplyDeleteधन्यवाद कौशिक जी .
Deleteबहुत ही सुंदर यात्रा विवरण मजा आ गया
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी .स्नेह बनाये रखें .
Deleteऊँ भाई नरेश सहगल जी आपको जितना धन्यवाद दू उतना कम है आप कलम के जादुगर हो जी।ऊं
ReplyDeleteधन्यवाद आर्य जी .ऊँ.
Deleteबहुत ही सुंदर श्रृंखला रही ओर शानदार यात्रा.
ReplyDeleteअपने संग हमे भी यात्रा करवाने का हृदय से आभार सर
धन्यवाद महेश पालीवाल जी .
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