मणि महेश कैलाश
यात्रा-5 ( मणिमहेश-हडसर- भरमौर- पठानकोट )
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पथरीला
रास्ता और घना जंगल; ऊपर से कृष्ण पक्ष की काली रात। डर लगना स्वाभाविक था लेकिन मुझे अपने
से आगे और पीछे ,दोनों जगह से, किसी के चलने और बोलने की आवाज आ रही थी- मतलब और
यात्री भी आगे पीछे हैं। इसी बात का होंसला था। मैंने तेजी से चलकर आगे वाले ग्रुप
के साथ होना चाहता था लेकिन वो भी तेज चल रहे थे । फिर भी थोड़ी देर में मैंने उनको
पकड़ लिया और उनके साथ ही हो लिया । उनका साथ मिल जाने से भय निकल गया । वे तीन लड़के
थे और तीनो पंजाब से बाइक पर आये थे । कल रात वे जाते हुए धन्छो में रुके थे और आज
दर्शन के बाद वापिस लौट रहे थे । वे भी मेरी तरह बुरी तरह थके हुए थे।
हडसर
से तीन किलोमीटर पहले एक लंगर लगा था जहाँ मैंने सुबह जाते हुए चाय भी पी थी। वो
लड़के वहां चाय पीने के लिये रुक गए ,मैं भी रूक गया। उन लड़को ने वहां ठहरने के
लिये पूछा , लेकिन जगह न होने के कारण मना कर दिया गया । जगह भी काफी छोटी थी उसमे
भी ढेर सारा खाने का राशन रखा था ,बाकि बची हुई जगह में मुश्किल से सेवादार ही सो
पाते होंगे । लंगर के साथ ही एक बड़ा सा टेंट लगा था जहाँ रात रुकने के लिये जगह
किराये पर उपलब्ध थी । सुबह जाते हुए तो भीडभाड के कारण इस पर ध्यान ही नहीं गया
था। पंजाब वाले तीनों लड़के उसी टेंट में रुक गए । मेरी इच्छा तो हडसर जाने की थी लेकिन उनको वहां
रुकते देखकर मैं सोच में पड़ गया अब आगे जाऊं या ना जाऊं ? मेरी असमंजस को टेंट
वाले ने दूर कर दिया, बोला साहेब -हडसर में आपको रुकने की जगह नहीं मिलेगी ,रात
में कहाँ रुकोगे ? अब तो भरमौर भी नहीं जा पाओगे औरयहाँ सिर्फ़ 100 रूपये में आपको सोने के लिये जगह मिल रही है । उसकी बात सुनकर मुझे कल रात की
परेशानी याद आ गयी; सोचा , जहाँ कल रात रूका था वहां कोई और आ गया होगा और यदि
वहां जगह न मिली तो बहुत दिक्कत हो जाएगी , ऐसा सोच मैंने भी वहीँ रुकने का फ़ैसला
ले लिया ।
बड़े
से टेंट में बीच से जाने का रास्ता था और दोनों तरफ़ सोने की जगह। उसमे भी चद्दर
टांग कर दोनों तरफ छोटे -2 केबिन टाइप बना रखे थे । सबसे पीछे दोनों तरफ एक छोटा सा
केबिन था ; मुश्किल से 1 मीटर चौड़ा । एक तरफ़ वो तीनों लड़के सेट हो चुके थे उनके
सामने मुझे जगह मिल गयी । साथ ही टेंट वाले ने कह दिया की अभी इसमें दो लोग और
आयेंगे ,इसलिये पहले ही बता रहा हूँ । मैंने कहा कि इसमें जगह तो सिर्फ़ दो लोगों के
सोने की है तीन लोग कैसे सो पायेंगे? जबाब मिला- देखो सामने भी तो तीन आ गए हैं
यहाँ भी आ जायेंगे । एक रात काटनी है ,कट जाएगी । मेरे पास कोई दूसरा विकल्प न था । टेंट
में भी और कहीं जगह नहीं थी ,सारा इसी तरह से भरा पड़ा था । मैंने सोचा जब कोई आएगा
तब देखते हैं ,तब तो आराम से खुले होकर लेटो ।
टेंट
कोने में नीचे से थोड़ा फटा हुआ था और थोड़ा जमीं से ऊंचा भी था, जिस कारण वहां से ठंडी
हवा आ रही थी । मैंने फटे हुए हिस्से के आगे अपना बैग रख दिया और अन्दर टेंट की तरफ होकर
लेट गया । अभी मैं सोया नहीं था की टेंट वाला दो लोगों को लेकर आ गया और मुझे बोला
-वहां से अपना बैग उठा लो और केबिन से बाहर रख दो , तभी ये लोग यहाँ लेट पायेंगे।
मैंने बैग उसे पकड़ा दिया और टेंट वाले ने उसे बाहर रख दिया और उन दोनों को बुलाया और
कहा कि आपकी जगह इधर है । दोनों सामने आये,देखकर ही मालूम हो गया कि वे नव विवाहित
पति- पत्नी थे । कम
जगह देखकर एक बार तो उन्होंने मना कर दिया ,लेकिन जब टेंट में और कहीं जगह नहीं
मिली तो वापिस आ गए । मैं उस छोटे से केबिन में अन्दर की तरफ़ सोया था ,पति मेरे
साथ लेट गया और बाहर की तरफ कोने में उसकी पत्नी लेट गयी । जगह कम होने के कारण सभी
बिलकुल साथ सटे हुए थे।
कोने
से टेंट फटा होने के कारण, लड़की को वहां से ठंडी हवा लग रही थी और नीचे से भी जगह समतल
न होने के वो काफ़ी परेशां हो रही थी । अपने पति से बोली – आप उसे (मुझे) कहो ,यहाँ
आ जायेगा, मैं उसकी जगह पर आ जाऊंगी । मतलब मैं और वो लड़की जगह आपस में बदल लें । पति
ने मुझसे कहा ,भाई साहब आप इधर आ जाओ । मैंने साफ मना कर दिया,और कहा भाई मुझे भी
ठण्ड लगती है। ऐसा करो आप वहां हो जाओ और मैडम को इधर कर दो । वो तो तैयार था लेकिन
मैडम दोनों के बीच लेटने को तैयार नहीं थी । मैंने उसे एक और आप्शन दिया । मैंने कहा
ऐसा करो आपकी पत्नी मेरी जगह पर आ जाये ,आप उसकी जगह पर चले जाओ और मैं
तुम्हारी जगह पर आ जाता हूँ । इससे आपकी पत्नी को भी ठण्ड नहीं लगेगी और मैं भी
कोने पर नहीं आऊँगा । पति बोला ये ठीक है । लड़की एक बार तो उठने लगी लेकिन फ़िर कुछ
सोचते हुए बोली नहीं ,मैं यहीं ठीक हूँ ( अगर नहीं समझ आया तो दोबारा पढ़ो )।
आख़िरकार कुछ देर बाद उस जोड़े ने अपने कम्बल जोड़े और दोनों उसमे इकठ्ठे घुस गए । मैं
भी अपना कम्बल ओड़ कर सो गया । सारी रात पति की पूरी कोशिश रही की पत्नी को ठण्ड न
लगे और गर्मी पर्याप्त रूप से मिलती रहे ।
सुबह
उठते-उठते साढ़े छह बज गए । मैं उठकर पहले अपने “केबिन” से बाहर आया और फिर टेंट से
बाहर निकल आया । साफ़ मौसम था और ठंडी हवा चल रही थी । चाय की तलाश में ,मैं साथ वाले
लंगर में गया, वहां अभी चाय बन रही थी ।चाय बनने तक कुल्ला करके हाथ मुंह धोया और एक
कप चाय पीकर वापिस टेंट में अपना बैग लेने आया। तब तक वो जोड़ी भी उठ चुकी थी ।
मैंने अपना बैग लिया और लगभग 7 बजे वहां से हडसर के लिये निकल पड़ा । यहाँ से हडसर
मात्र तीन किलोमीटर दूर था । चूँकि अब सारी उतराई थी तो मुझे यह दुरी तय करने में
मुश्किल से एक घंटा लगा । वापसी में मुझे पूरे रास्ते में मणिमहेश जाने वाले यात्री मिलते रहे ।
ठीक
आठ बजे मैं हडसर में उस घर पर पहुँच गया जहाँ मैं जाते हुए ठहरा था और मेरा एक बैग
यहीं रखा हुआ था । सीडियाँ चढ़कर ऊपर पहुंचा था तो सामने वोही छोटी मालकिन खड़ी थी
,साथ में सासु माँ और देवरानी भी । मुझे देखकर हैरानी से बोली –अरे आप आ भी गए !
मैं हंसकर बोला क्यूँ आपने क्या समझा था ? ऊपर रुककर समाधी लगाने गया हूँ । वो
हँसते हुए बोली –अरे नहीं, मेरा मतलब था आप इतनी जल्दी सुबह सुबह आ गए। यहाँ जो
यात्री कमरों में रुके हैं ना , वो तो अभी जाने के लिये तैयार भी नहीं हुए । वैसे
आपने बहुत हिम्मत की ,हमें भी आने जाने में दो दिन लगते हैं । मैंने भी थोड़ी फैंक
दी -अरे अगर बारिश न होती तो कल शाम को ही आ जाता।
मेरे
ट्रैकिंग वाले बैग में कुछ बिस्कुट और टाफी रखी हुई थी मैंने वो सब उसके छोटे से
बेटे को दे दी । वो झिझकते हुए मेरे पास आया और फ़िर पैकेट लेकर अपनी दादी के पास
भाग गया ।तब तक वो मैडम ऊपर जाकर अपने
कमरे से मेरा बैग ले आई । कल ट्रेक करने के कारण अब मेरी नहाने की काफी इच्छा हो
रही थी। यहाँ शौचालय और स्नानघर की सुविधा होने का लाभ उठाते हुए मैं दैनिक
क्रियाओं से निपट कर नहा लिया और फिर लगभग 9 बजे वहां से निकल लिया ।
नीचे
आकर एक जगह नाश्ता किया और भरमौर के लिये कोई गाड़ी देखने लगा । काफी देर तक ऐसे ही खड़ा
रहा लेकिन कोई वाहन नहीं मिल रहा था । मुझे बताया गया कि भयंकर जाम होने के कारण
गाड़ी यहाँ नहीं पहुँच रही। आप पैदल ही आगे जाओ और जहाँ भी गाड़ी मिले वहीँ से ले
लेना । यह सुनकर मेरा बड़ा मूड खराब हुआ, अब चलने की हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन
और कोई विकल्प न होने के कारण पैदल ही चल पड़ा । सड़क पर बुरी तरह जाम लगा हुआ था ।
हजारों मोटर साइकल सड़क के दोनों और खड़े थे । पुलिस भी पहुंची हुई थी लेकिन भीड़ को
देखते हुए नाकाफी थी । लगभग तीन किलोमीटर चलने के बाद मुझे एक जीप मिली । उसको भी
भरमौर आने में आधा घंटा लग गया और यहाँ आते आते 11 बज गए ।
भरमौर में भी भीड़
ऐसी ही थी ,किसी तरह बस मिली और मैं तीन बजे चंबा पहुंचा । हडसर से चम्बा की 75
किलोमीटर की दुरी तय करने में मुझे 6 घंटे लग गए । इसी से आप भीड़ और जाम का अंदाजा
लगा सकते हैं । चम्बा से पठानकोट की बस ली और मुश्किल से पठानकोट से रात 8:30 पर
चलने वाली हेमकुंड एक्सप्रेस पकड़ पाया । सुबह 4 बजे अपने घर पहुँच गया।
इसी के साथ मणिमहेश यात्रा संस्मरण को विराम देता हूँ । चूँकि पोस्ट काफी लम्बी हो गयी है इसलिए मणिमहेश
महात्म्य ,कमल कुंड और यात्रा से सम्बधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी अगली पोस्ट में शीघ्र ही ..
Add caption |
भरमौर से चंबा के बीच का एक दृश्य |
अति सुन्दर 👌
ReplyDeleteधन्यवाद ओम भाई .
Deleteहंस हंस के पेट दुखने लगा है......शानदार पोस्ट.
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई . मेहनत सफल हुई .
Deleteनरेश भाई आप तो छुपे रुस्तम निकले
ReplyDeleteभाई भला मानुष हूँ .तकलीफ देखि नहीं गयी. धन्यवाद
Deleteआखिर इंसान ही इंसान के काम आता है।वहाँ भी आपकी इंसानियत कायम थी सहगल साहब�� पर फिर भी समापन बहुत मजेदार रहा।
ReplyDeleteबड़े दिनों बाद आना हुआ फिर भी इतने बिजी समय से टाइम निकाला उसके लिये आपका बहुत धन्यवाद.
Deletebahut khoob sir.
ReplyDeleteadvises achhi suggest krte h aap..pr log sunte nhi..
nice!!
simmi
धन्यवाद सिम्मी जी .सलाह तो भारत में हर कोई दे देता है .फ्री जी है .
Deleteशानदार रही यात्रा ,लगे हाथो उस तंबू के केबिन का भी फ़ोटू जड देते जिससे मालूम होता की केसी व्यवस्था थी।
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी .टेंट की व्यवस्था तो जैसी ट्रैक पर होती है वैसी ही थी .फ़ोटो नहीं ले पाया .
Deleteबहुत बढिया नरेश जी। टेंट वाले केबीन में आपको नींद तो आ गई पूरी तरह से, या फिर अदला बदली के बारे में ही सोचते रहे। हाहाहाहा
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई ।
DeleteNice entertaining post.Thanks for sharing
ReplyDeleteThanks Ajay bhai.
Delete😁I am also agree with Simmi Ji. So innocent couple .....but after all, later they understood . So Funny you are !! Did you sleep then ?😊
ReplyDeleteEnjoyable post & btfl Greenery pictures.
Thanks. So innocent I am .
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमस्त.....मनोरंजक पोस्ट....☺☺
ReplyDeleteधन्यवाद डॉक्टर साहब ।।
DeleteNaresh ji, mja aa gya post pdhkar.apko bahut bahut badhai ki aapne Itna mushkil treak pura kiya...apki post mujhe bahut pasnd ati hai.vastav me yhi apki khubi h ki mushkil baat Ko bahut hi aasani se saal aur majakiya andaj me Kah jate h..agli post ka intzar rhega.��
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिमा जी ।बहुत दिनों बाद दर्शन हुए ब्लॉग पर ।
Deleteवाह ..नरेश जी... | आपने अपनी बातो में जोड़े को उलझा तो लिया ही था .. पर तब सक शायद वो समझ गये होगे.. |
ReplyDeleteबहुत शानदार पोस्ट...और चित्र...
जय मणि महेश की
धन्यवाद रीतेश जी ।जय मणिमहेश की ।।💐💐
Deleteगजब की सलाह दे डाली आपने तो, वो तो बेचारे समझ गए आपकी बात को।
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी । सलाह तो मैंने अच्छई ही थी।😊
Deletenice post.....specially sleeping arrangement confusion
ReplyDeleteThanks Pratik ji..😊
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteBahut badhiya yatra rahi..
ReplyDeleteapki sharafat aur innocence aur helpful nature ka mein pucca kayal ho gaya... next meeting mein iss bare mein detail mein baat karenge :p
धन्यवाद तिवारी जी ।क्या करूँ दूसरों की तकलीफ देखी नहीं जाती ।😊
Deleteसहगल साहब मुझे भी शब्दों की जादूगरी सिखा दो।
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई . गुरु मन्त्र लेना पड़ेगा जादूगरी सिखने के लिये . ;)
DeleteShaandar post and series Sehgal saab.
ReplyDeleteAgli series mein kaha leja rahe ho?
धन्यवाद स्टोन जी .आप अपना नाम तो बता दो .
Deleteॐ आप शिव भगत है और आपको डर लगना दिल मानने को तैयार नही है सहगल जी। ॐ
ReplyDeleteधन्यवाद कृष्ण जी । डर के आगे जीत है ।।
Deleteआपकी शराफत और भलमनसाहत के तो हम हमेशा से ही कायल रहे हैं और अब तो आप ISI Mark भले पुरुष सिद्ध हो चुके है नरेश जी। आपकी पूरी सीरीज़ बहुत अच्छी रही। पुराना मैटर भी ढूंढ ढूंढ कर पढ़ना है।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशान्त जी ।आप जैसे गुरुओं से सीख रहा हूँ ।💐💐😊
Deleteधन्यवाद सुशान्त जी ।आप जैसे गुरुओं से सीख रहा हूँ ।💐💐😊
Deleteबढ़िया समापन रहा पूरी सीरीज का ! टेंट वाले विवरण पर सभी ने कुछ न कुछ कह ही दिया है इसलिए मैं कुछ नही कहूँगा सिवाय इसके कि उस जोड़े को मालूम नही था कि नरेश जी जिस डिपार्टमेंट में काम करते हैं वहाँ के मुलाजिम अपनी कुर्सी को भी बाँध कर रखते हैं, और फिर यहाँ तो सवाल रात भर की सर्दी का था 😊
ReplyDeleteधन्यवाद पाहवा जी . वैसे कुर्सी वाली बात आप को कैसे पता ??
DeleteRead all your posts of Manimahesh yatra. Apni Manimahesh yatra ki yaadein taaza ho gayeen, aur saare dard bhi naye sire se yaad aa gaye.
ReplyDeleteThanks a lot Ragini ji.
DeleteNice ,interesting Post. Keep it up.
ReplyDeleteThanks Raj ji
Deleteशानदार पोस्ट 👌
ReplyDeleteधन्यवाद नटवर भाई .
Deleteटेंट में नींद तो आई थी न ?
ReplyDeleteपूरी यात्रा बेहद रोचक अंदाज में लिखी ।
मजा आया
हा हा हा . नींद तो आ गयी थी लेकिन बीच बीच में कुछ उह आ आउच की आवजें भी आती रही . ;)
Deleteपोस्ट पढ़ कर टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद .
बहुत ही रोमांचक अंदाज में आपकी यह यात्राा संपन्न हुई और आपके इस रोमांचक यात्राा ने मुझे बहुत ही बड़ी संजीवनी दिया है। मेरा होमवर्क भी हो गया।
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा जी .
DeleteWow! these pictures are really amazing. Your pictures tell a wonderful story. Your photos are absolutely stunning! I really like this awesome post.
ReplyDeleteThanks Ankita Singh.
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