अमरनाथ यात्रा ( Amarnath Yatra )
भाग 5 : पंचतरणी से पवित्र गुफा
पिछले भाग से आगे :
अगली सुबह सभी जल्दी ही उठ गए और दैनिक दिनचर्या से निर्वित
हो आगे के सफर के लिये निकल गए । आज भी देवेंदर और शान्तनु दादा ने शुरू से ही
घोड़े कर लिये । चन्दन को भी उन्ही के साथ घोड़े पर भेज दिया।पंचतरणी से पवित्र गुफा की दुरी 6 किमी है । शुरू में एक-
ढेड़ किलोमीटर रास्ता तो पंचतरणी नदी के साथ-साथ ही है, उसके बाद लगभग ढेड़ किलोमीटर
ख़डी चढ़ाई है । 3660 मीटर से 3950 मीटर तक । ये चढ़ाई संगम पर जाकर ख़त्म होती है,
जहाँ संगम घाटी से होते हुए, बालताल से आने वाला मार्ग इसमें मिल जाता है । संगम
से आगे लगातार बेहद हलकी उतराई है जिसमे से अधिकतर रास्ता ग्लेशियर के ऊपर से है
जिसके नीचे से अमरावती नदी बहती रहती है ।
पवित्र गुफा |
यहाँ से
एक किलोमीटर और चलने के बाद स्थानीय मार्किट शुरू हो जाती है जहाँ प्रशाद और पूजा का सारा सामान मिल जाता है। यहाँ करनाल वालों का एक लंगर भी है जो सूचना केन्द्र का काम भी करता
है। थोड़ा और आगे चलने पर मार्किट ख़त्म हो जाती है और फिर से
बर्फीला रास्ता शुरू । गुफा से आधा किलोमीटर पहले फिर से मार्किट शुरू हो जाती है और आखिर में प्रवेश द्वार
तक मार्किट है। गुका के पास भी कई लंगर है। यहाँ पर सभी
दुकाने और लंगर बर्फ के ऊपर ही लगे हैं। प्रवेश द्वार से आगे कैमरा , मोबाइल
आदि ले जाना मना है। यहाँ एक
बार फिर आपके पंजीकरण चेक किये
जाते हैं। प्रवेश द्वार के बाद ,गुफा तक जाने के लिए 400 से अधिक सीढ़ियां हैं।
प्रवेश द्वार पर भी सुरक्षा जांच केंद्र है।
यहाँ से आगे प्रशाद के अलावा कुछ भी ले जाने की अनुमति नहीं है। इसलिए सभी लोग
अपना सारा सामान , कैमरा , फ़ोन आदि पहले ही दुकानो पर जमा करवा देते हैं। यहाँ सामान जमा करवाने लिए लॉकर की सुविधा
उपलबध नहीं है , सभी कुछ यहाँ मौजूद प्रशाद की दुकानो पर ही
रखना पड़ता है। इसके लिए वो आपसे कोई पैसे नहीं लेते लेकिन आपको उनसे प्रशाद लेना पड़ता है। आप अपनी मर्जी से 51
से शुरु कर 501 तक का प्रशाद ले सकते हैं।
गुफा से लगभग एक किलोमीटर पहले ही घोड़े वाले उतार देते हैं
.उससे आगे उन्हें ले जाना मना है । यहीं मुझे अपने तीनों साथी मिल गए जो घोड़े पर
आये थे ,बाकि चारों साथी अभी मुझ से पीछे ही थे । हमने पहले नहाने का निश्चय किया लेकिन चन्दन
की तबियत ख़राब होने के कारण उसने नहाने से मना कर दिया । यहाँ नहाने के लिये गर्म
पानी की एक बाल्टी 50 रूपये में मिल जाती है लेकिन हमने अमरावती के बर्फ़ीले पानी
में ही स्नान किया और फ़िर तैयार होकर गुफ़ा की और चल दिए। आगे जाकर हमने एक दुकान से
प्रशाद लिया और अपना सारा सामान वहीँ जमा करवा दिया । थोड़ी ही देर बाद हम जांच
केंद्र के सामने पहुँच गए ।
जांच केंद्र पर एक बार फिर पंजीकरण चेक किया गया और पंजीकरण
चेक करने के बाद दो तीन बार मेरी अच्छी तरह से तलाशी ली गयी और अंदर जाने दिया। आज
यहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी। कई बार मैंने यहाँ बहुत लम्बी लम्बी लाइने देखी हैं।
यहाँ आकर सीढ़ियां देखकर एक बार तो चढ़ने में तक़लीफ़ होती है लेकिन अपने इष्ट देव के दर्शनों के
अभिलाषा इस तक़लीफ़ पर भारी पड़ती है। मैं भी तेजी से सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर गुफा की
तरफ जाने लगा। गुफा से थोड़ा सा पहले नन्दी की एक चांदी से बनी हुई विशाल प्रतिमा
है जिसका मुख हर शिवालय की तरह गुफा की तरफ है। अब इसके चारो तरफ रेलिंग लगा दी
गयी है जो पहले नहीं थी।
भीड़ को
नियंत्रित करने के लिए गुफा से पहले एक गेट
बना हुआ है और चारों तरफ रेलिंग लगी हुई है कोई भी बिना गेट से गुजरे अंदर नहीं जा सकता। गुफा के अंदर एक दो पुजारी को
छोड़ कर सारी व्यवस्था फौजियों के हाथों में है। जैसे ही मैं
गेट पर पहुंचा तो वहां तैनात फौजी ने गेट बंद कर गया और बोला अंदर काफी भीड़ हो गयी है , खाली होने दो। लगभग पांच मिनट के बाद जब अंदर से भीड़ छंट गयी
तो उसने गेट खोल दिया और मेरे साथ गेट के बाहर खड़े कई
यात्री एकदम से बम बम भोले के जयकारे लगते हुए भवन में प्रवेश कर गए।
जिस जगह पर हिमलिंग बनता है वो जगह 5-6 फ़ीट ऊँची है और उसके
समानांतर पहुँचाने के लिए 7-8 सीडियां बनी हुई है। इस वर्ष
हिमलिंग का आकर लगभग 10 फ़ीट था और हम नीचे खड़े हुए भी आराम
से दर्शन कर रहे थे। धीरे -धीरे लाइन में चलते हुए मैं बाबा अमरनाथ के एकदम सामने जा पहुंचा। जी भर कर दर्शन किये और प्रशाद अर्पण
किया और वहां बैठे पुजारी से प्रशाद लिया। फौजी यहाँ रुकने नहीं देते और सारे काम
चलते -चलते ही करने पड़ते है। मैं चलते -चलते प्लेटफॉर्म के दूसरे सिरे से नीचे उतर
गया। और यहाँ भी फौजियों ने किसी को रुकने नहीं दिया और गुफा के दूसरे गेट से सबको
बाहर करते रहे। यह जरुरी भी है जब तक लोग जल्दी से बाहर नहीं आएंगे तो बाकि लोग
अंदर प्रवेश कैसे करेंगे।
गुफा पर पहुंचने पर असीम शांति का अनुभव होता है। सब कुछ
इतना सम्मोहित करने वाला है यहाँ तक कि प्रार्थना
करना भी याद नहीं रहता। नजरें टकटकी लगाये कुदरत के इस नज़ारे को देखने में ही लगी रहती हैं। भोले नाथ के दर्शनों से शरीर का रोम रोम पुलकित हो जाता है और पल भर के लिए सब कुछ भूल जाता है।
लगता है भोले के दरबार में मोह माया का प्रवेश निषिद है। यहाँ आप अपनी सारी थकावट ,दुःख दर्द भूल जाते हैं और सिर्फ भोले नाथ को ही देखने का जी चाहता है। हिमलिंग के पास
में ही माँ पार्वती , गणेश व नंदी की पिण्डी, बर्फ से
स्वयम्भू बनती हैं। पवित्र गुफा में होने वाली अनुभूति को शब्दों में वर्णन करना मेरे लिए संभव नहीं है।
श्री अमरनाथ गुफा की खोज से जुड़े रहस्य
इस पवित्र गुफा की खोज एक नेक और दयालु मुसलमान गडरिए बूटा
मलिक ने की थी। वह एक दिन अपनी भेड़ों को
चराते-चराते बहुत दूर निकल गया। एक जंगल में पहुंच कर उसकी एक साधु से भेंट हो गई।
साधु ने उसे कोयले से भरी एक कांगड़ी दी। घर पहुंच कर बूटा मलिक ने कोयले की जगह
सोना पाया तो वह बहुत हैरान हुआ। उसी समय वह साधु का धन्यवाद करने के लिए वहीँ
वापिस लौटा परंतु वहां साधु की बजाय एक विशाल गुफा देखी। गुफा में जाने पर उसे
बर्फ से निर्मित एक विशाल शिवलिंग दिखायी दिया । उसी दिन से यह स्थान एक तीर्थ बन
गया। आज भी यात्रा पर आने वाले शिव भक्तों द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे का एक निश्चित
हिस्सा मलिक परिवार के वंशजों को जाता है।
एक दंत कथा के अनुसार रक्षाबंधन की पूर्णिमा के दिन भगवान
शंकर स्वयं श्री अमरनाथ गुफा में पधारते हैं। ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास की
प्रतिपदा को हिम के लिंग का निर्माण स्वयं आरंभ होता है और धीरे-धीरे लिंग का आकार
धारण कर लेता है तथा पूर्णिमा के दिन पूर्ण हो जाता है व अगले दिन से घटने लगता
है। अमावस्या या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को यह लिंग पूर्णत: अदृश्य हो जाता है और
इस प्रकार यह क्रम निरंतर चलता रहता है। यह हिम शिवलिंग कभी भी पूर्णत: लुप्त नहीं
होता, आकार अवश्य ही छोटा-बड़ा हो जाता है। भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल
श्रावण की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को श्री अमरनाथ की यात्रा को विशेष
महत्व मिला। रक्षाबंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने ‘हिमशिवलिंग’ के पास स्थापित कर दी जाती है।
इस गुफा का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यहां हिम शिवलिंग
का निर्माण होता है। इस गुफा का महत्व इसलिए भी है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने
अपनी पत्नी देवी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया था। ऐसी मान्यता है कि भगवान
शिव साक्षात श्री अमरनाथ गुफा में विराजमान रहते हैं।
यह गुफा लगभग 160 फुट लम्बी, 100 फुट
चौड़ी और काफी ऊंची है। कश्मीर में वैसे तो 45 शिव धाम,
60 विष्णु धाम, 3 ब्रह्मा धाम, 22 शक्ति धाम, 700 नाग धाम तथा असंख्य तीर्थ हैं पर
अमरनाथ धाम का सबसे अधिक महत्व है। काशी में लिंग दर्शन एवं पूजन से दस गुणा,
प्रयाग से सौ गुणा, नैमिषारण्य तथा
कुरुक्षेत्र से हजार गुणा फल देने वाला अमरनाथ स्वामी का पूजन है।
हिमशिवलिंग पक्की बर्फ का बनता है जबकि गुफा के बाहर मीलों
तक सर्वत्र कच्ची बर्फ ही देखने को मिलती है। किंवदंती के अनुसार रक्षा बंधन की
पूर्णिमा के दिन भगवान शंकर स्वयं श्री अमरनाथ गुफा में पधारते हैं। रक्षा बंधन की
पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिम शिवलिंग के पास स्थापित कर दी
जाती है।
आज की यात्रा के कुछ महत्व पूर्ण पड़ाव
पंचतरणी -3660 मीटर
संगम - 3950 मीटर- पंचतरणी से 3 किलोमीटर आगे (समय ढेड़ से 2
घंटे)
अमरनाथ गुफा -3888 मीटर –संगम से 3 किलोमीटर आगे ( समय एक
से ढेड़ घंटे)
इस पोस्ट में इतना ही । जल्द मिलते हैं अगली पोस्ट में पवित्र
गुफा से बालताल तक की यात्रा में.
संगम से नीचे दिखायी दे रही संगम घाटी |
दूर से दिखायी दे रही गुफा ..बीच में सारा ग्लेशियर |
पहाड़ी जीव |
देवेंदर |
गुफा से पीछे की और देखते हुए |
घोड़ा स्टैंड |
अमरावती नदी |
सीधी बर्फ़ से निकलती हुई |
नहाते हुए |
गुफ़ा |
संगम से दिखायी से रहा बालताल मार्ग |
पंच तरणी चोटी |
गुफा में बनने वाले हिमलिंग के दर्शन - ये चित्र मैंने इन्टरनेट पर विकी कॉमन्स से लिया है |
अमरावती के बर्फीले पानी से नहाने की हिम्मत सच्चे भक्त की हि हो सकती है। आप की भक्ति को प्रणाम।
ReplyDeleteशशि नेगी
धन्यवाद शशि नेगी जी ।
Deleteबहुत बढ़िया नरेश भाई दर्शन के साथ इतिहास से रुबरु होना बेहद सुखद अहसास देता है 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद अजय भाई ।
Deleteजय बाबा बर्फानी।सहगल साहब बहुत बढिया दर्शन कराये आपने बाबा को बोल दो मुझे भी बुला लेंगे।
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई । बुलाया तो आपको इस साल भी था आपने ऑफर लपका नही ।
DeleteAisa lg rha h mano m bhi yaatra me hu..bahut hi sunder vartant naresh ji...apka bahut bahut dhnywad itni sunder post likhne k liye. Jai baba barfani��
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिमा जी ।
Deleteसहगल साहब सचमुच बाबा बर्फानी के दरबार के साक्षात दर्शन करवा दिए आपने ।
ReplyDeleteजय हो भोले जी और उनके भक्तों की 💐
धन्यवाद संजय भाई ।💐
Deleteबहुत सुन्दर..... जय हो...
ReplyDeleteहर हर महादेव..
धन्यवाद डॉ0 साहेब ।💐💐
Deleteबहुत सुन्दर..... जय हो...
ReplyDeleteहर हर महादेव..
हर हर महादेव 🙏🏻
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश भाई । हर हर महादेव ।।
Deleteआपकी वजह से हमे भी दर्शन हो गए बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी ।
Deleteजय हो बाबा बर्फानी
ReplyDeleteधन्यवाद वसंत पाटिल भाई ।
DeleteI have travelled with u so live . Excellent narration of beautiful post & thanks for sharing . Jai ho Gauri Shankar Ji ki.
ReplyDeleteThanks dear.💐💐
Deleteसफर में रहने का कारण आपका पोस्ट मैं देर से पढ़ रहा हूँ, आपने साथ साथ हम भी आभासी यात्रा कर रहे हैं , पता नहीं मैं बर्फानी बाबा के यात्रा कब करूंगा, आपने लिखा कि :सीढ़ियां देखकर एक बार तो चढ़ने में तक़लीफ़ होती है लेकिन अपने इष्ट देव के दर्शनों के अभिलाषा इस तक़लीफ़ पर भारी पड़ती है" बहुत ही सही कहा आपने, इष्ट देव के दर्शन के बाद सीढिया चलने और पैदल चलने का दर्द तो अपने आप गायब हो जाता है।
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा जी ।💐💐
Deleteबहुत कुछ नया जानने को मिला इस यात्रा के बारे में जैसे 400 सीडी वगैरह वगैरह....,,इतने ठन्डे पानी में नहाने का अनुभव भी अच्छा ही होगा
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई ।💐
Deleteजय हो बाबा अमरनाथ की !! बढ़िया दर्शन करा दिए आपने ! गुफा के आसपास का क्षेत्र बहुत सुन्दर लग रहा है !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .जय बाबा अमरनाथ.
Delete