काशी विश्वनाथ मंदिर- वाराणसी
दिसम्बर 2014 का आख़िरी सप्ताह, रात के 11-12 बजे का समय । कड़ाके की ठण्ड के
बीच सर्द कोहरे और शीत लहर में ठिठुरते
मैं और मेरा दोस्त सुशील मल्होत्रा , अम्बाला रेलवे स्टेशन पर, बाबा विश्वनाथ की
नगरी काशी जाने के लिए बेगमपुरा एक्सप्रेस का इन्तजार कर रहे थे । साथी तो हमारे
साथ एक और भी था लेकिन वो मजे से खराटे मारते हुए सो रहा था। वो समझदार ,घर से ही
ठण्ड से बचने और अच्छी नींद के लिए बूढ़े साधू की “दो-तीन खुराक” लेकर आया था ।
अपने साथी को दीन-दुनिया से बेख़बर, छोटे-बड़े ,ऊँचे-नीचे बैगों के बिस्तर पर
निश्चिन्तता से सोते देखकर उसकी ली हुई “खुराक” के प्रति मेरे मन में श्रद्धा का
भाव जागृत हो रहा था। इस खुराक को आज तक हेय दृष्टि से देखने वाला मन आज केजरीवाल बन
रहा था ,मतलब यू टर्न ले रहा था । मन ही मन सोच रहा था कि बूढ़े साधू की कृपा से मुझे
भी आज एक खुराक मिल जाये तो अच्छी नींद आ जाये लेकिन हमारे भाग्य में आज सिर्फ़ चाय
की खुराक ही लिखी थी ।