Friday, 28 June 2019

Kashi Vishwanath Temple - Varanasi


काशी विश्वनाथ मंदिर- वाराणसी

दिसम्बर 2014 का आख़िरी सप्ताह, रात के 11-12 बजे का समय । कड़ाके की ठण्ड के बीच सर्द कोहरे  और शीत लहर में ठिठुरते मैं और मेरा दोस्त सुशील मल्होत्रा , अम्बाला रेलवे स्टेशन पर, बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी जाने के लिए बेगमपुरा एक्सप्रेस का इन्तजार कर रहे थे । साथी तो हमारे साथ एक और भी था लेकिन वो मजे से खराटे मारते हुए सो रहा था। वो समझदार ,घर से ही ठण्ड से बचने और अच्छी नींद के लिए बूढ़े साधू की “दो-तीन खुराक” लेकर आया था । अपने साथी को दीन-दुनिया से बेख़बर, छोटे-बड़े ,ऊँचे-नीचे बैगों के बिस्तर पर निश्चिन्तता से सोते देखकर उसकी ली हुई “खुराक” के प्रति मेरे मन में श्रद्धा का भाव जागृत हो रहा था। इस खुराक को आज तक हेय दृष्टि से देखने वाला मन आज केजरीवाल बन रहा था ,मतलब यू टर्न ले रहा था । मन ही मन सोच रहा था कि बूढ़े साधू की कृपा से मुझे भी आज एक खुराक मिल जाये तो अच्छी नींद आ जाये लेकिन हमारे भाग्य में आज सिर्फ़ चाय की खुराक ही लिखी थी ।
 



जब घर से चले थे तो ये गाड़ी सही समय पर चल रही थी लेकिन हमारे स्टेशन पर पहुँचते -2 गाड़ी लापता हो चुकी थी । तय समय निकलने के बाद भी गाड़ी की स्टेशन पर कोई घोषणा न हुई । पूछताछ केंद्र पर भी इस ट्रेन की जानकारी अपडेट नहीं थी । आख़िरकार लापता ट्रेन की FIR दर्ज़ करवाने हम स्टेशन मास्टर के कमरे में पहूँच गए। उसने चारों तरफ घोड़े दौड़ाकर हमें बताया कि बेगमपुरा ट्रेन के आगे –आगे आ रही किसी दूसरी एक्सप्रेस गाड़ी की पॉवर फ़ैल हो गयी है, चूँकि दोनों गाड़ियाँ आगे- पीछे ही हैं तो जब तक आगे वाली गाड़ी नहीं चलेगी तक तक बेगमपुरा नहीं आ सकती । ट्रेन आने में लगभग 2-3 घंटे लग जायेंगे। हमें बेगमपुरा के ड्राईवर पर बड़ा गुस्सा आया ‘ अबे इतना साथ चिपक कर चलने की क्या आवश्कता थी ? थोड़ा गैप रखा होता तो ये नौबत न आती !!! खैर अब हम इंतजार के अलावा और कर भी क्या सकते थे।

रात 9 बजे आने वाली ट्रेन आधी रात 2 बजे आई । अपने सो रहे साथी तो लात मारकर उठाया और कहा अबे उठ !!! ट्रेन के लेट आने का गुस्सा तो था ही ,साथ ही उसके चैन की नींद से बैचैन हमारे मन में जलन भी थी, सो दो तीन लातें और टिका दी । कई लातें खाने के बाद वो आखें मलता हुआ मुश्किल से उठा और अंगड़ाई लेते हुए पूछा कहाँ पहुँच गए । हमने कहा- अबे जल्दी बैग उठा , बनारस आ गया है , गाड़ी से नीचे उतरना है, नहीं तो गाड़ी चल पड़ेगी J J । चन्द ही मिनटों में हम अपने अपने बैग लेकर अपने कोच की तरफ चल दिए और जल्दी से ट्रेन में सवार होकर अपनी-अपनी सीट पर पहुँच गए । हमें नींद आने में ज्यादा देर नहीं लगी ।

अगले दिन सुबह 9 बजे के बाद ही आँख खुली । हमारी बेगमपुरा ट्रेन भारतीय रेलवे के रीति -रिवाज़ों का पालन करते हुए और भी लेट हो चुकी थी। कहाँ दोपहर 12 बजे बनारस पहुंचना था ,अब शाम के साढ़े सात बजे पहुंची । हमें पहले के तय प्रोग्राम के अनुसार आज दोपहर को यहाँ पहुंचकर शाम को बाबा विश्व नाथ के दर्शन करने थे और गंगा घाट पर शाम की आरती देखनी थी । अगले दिन बनारस के अन्य मंदिरों में घूमना था और तीसरे दिन सारनाथ जाकर शाम को वापसी की ट्रेन पकड़नी थी लेकिन ट्रेन के लेट हो जाने से अब पहले दिन का प्रोग्राम तो पूरी तरह चौपट हो चूका था । स्टेशन से बाहर आये तो काफी अँधेरा हो चुका था । बनारस में दो रात रुकने के लिये हमारी पहले से ही सिगरा चौक के पास गेस्ट हाउस में बुकिंग थी । स्टेशन से बाहर आकर गेस्ट हाउस का सीधा auto बुक किया, रास्ते में एक ढाबे से रात का खाना पैक करवाकर अपने गेस्ट हाउस पहुँच गए । कमरे पर जाकर पहले फ्रेश हुए और फिर आराम से खाना खाकर सो गए ।

अगले दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गए और लगभग सुबह सात बजे गेस्ट हाउस से निकल लिए । एक रेहड़ी वाले से चाय ली तो उसने छोटे से मिट्टी के कसोरे में चाय पकड़ा दी । एक घूंट मारा तो चाय साफ़ । अरे इतनी चाय तो हम “चाय कैसी बनी है” देखने के लिए पी जाते हैं; इससे हमारा क्या बनना था ? और अभी तो गर्माहट पेट तक भी नहीं पहुंची थी इअलिये उससे दोबारा बड़े कसोरे में चाय मांगी। चाय के सेवन के बाद गोधोलिया की तरफ जाने वाले एक auto में सवार हो गए । घूमते-फिरते विश्वनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार वाली गली तक पहुँच गए । वहाँ कई पंडे हमें जल्दी दर्शन करवाने के लिए कहने लगे लेकिन मैने हाथ जोड़कर मना कर दिया। अपने साथियों से भी कह दिया कि तुम मेरे पीछे आते रहो ,स्वयं दर्शन कर लेंगे लेकिन हमारे तीसरे साथी स्वर्ण –जिसे हम सभी सीटी कहते हैं – ने एक पण्डे को हाँ बोल दी। मैंने उसे गुस्सा भी किया लेकिन अब तक पंडे जी फेविकोल के जोड़ की तरह चिपक चुके थे । अब आगे का सारा मामला उन्होंने अपने कण्ट्रोल में ले लिया । जुते इस दुकान पर उतारो ,प्रसाद यहाँ से लो। दूध ले लो ,जल ले लो और हमें मंदिर के द्वार से दूर लम्बी लाइन के पास लाकर छोड़ दिया और बोले आप लाइन से अन्दर पहुँचो हम आपको आगे मिलते हैं । हम लाइन में लग गए लगभग एक घंटा लाइन में लगने के बाद बाबा विश्वनाथ के आराम से दर्शन किये । पूजा-अर्चना की और गर्भ गृह से बाहर आ गये । वहां पंडे जी हमारा इंतजार कर रहे थे और भोले बाबा के चमत्कार से वो एक से दो हो चुके थे। अब वे दोनों हमें परिसर में मौजूद अन्य मंदिरों में ले जाने लगे । फिर वही कहानी ।। एक समय का भोजन ; एक दिन की सेवा !!! दान पूण्य । सीटी को झंड करने की लगातार शिश हो रही थी, कुछ सफल भी हुए लेकिन हम दोनों सुरक्षित दुरी पर ही रहे । फिर ज्ञानव्यापी कुआँ ,उसकी कहानी ; बड़ा नंदी और उसके मुँह की तरफ सामने पुराना विश्वनाथ जहाँ अब ज्ञानव्यापी मस्जिद खड़ी है ।

सारा घूम-घुमाकर बाहर निकले । बाहर निकलते हुए फिर चमत्कार हुआ । अब पंडे दो से तीन हो गए । सभी एक जैसी वेशभूषा में । अब दक्षिणा पर मोलभाव शुरू हो गया । हमारी तरफ से पहला ऑफर 51 रूपये का था । बो बोले हम तीन लोगों का इसमें क्या होगा। मैंने सीटी से पूछा- अरे तुमने कितने लोगों से बात की थी , वो बोला मैंने तो एक ही पंडित से कहा था ,भाई अब दक्षिणा के समय तुम तीन कैसे हो गए ? खैर आख़िरकार 201 रूपये में मामला निपट गया । पंडित जी हमें आशीर्वाद देते हुए चले गए । मैंने सीटी पर बम छोड़ा । देख ये खर्चा तेरा पर्सनल हैं , सांझे में नहीं लिखा जायेगा क्यूंकि तूने मना करने के बाद भी इन्हें अपने साथ लिया!!!   वैसे बाद में बम फोड़ा नहीं, सिर्फ उसे डराया था J

दर्शन के बाद घर से लाई देसी घी की पिन्नियों के साथ नाश्ते का काम निपटाया और फिर दशाश्वमेघ घाट की तरफ जाकर सभी घाटों को देखने के लिए एक नाव बुक कर ली । एक- ढेड़ घंटे की सवारी में नाव वाले में हमें आस पास मौजूद कई घाट दिखलाये।

अब थोड़ी जानकारी वाराणसी और बाबा विश्वनाथ मंदिर के बारे में :
गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित वाराणसी नगर विश्व के प्राचीनतम शहरों में से एक माना जाता है। यह नगरी मोक्षदायिका और तीनों लोकों से विलक्षण है तथा यह भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में सुशोभित है। इस दिव्य नगर के हृदय में बसा है भगवान काशी विश्वनाथ का मंदिर जो प्रभु शिव या विश्वनाथ के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसा मानते हैं कि यहाँ पर आने वाला हर श्रद्धालु भगवान विश्वनाथ को अपनी ईष्ट इच्छा समर्पित करता है। वाराणसी संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। इसे बनारसऔर काशीभी कहते हैं। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों “सप्त पूरी” में से एक माना जाता है । वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी, श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। कहते हैं काशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है।

धार्मिक महत्व- ऐसा माना जाता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था तब प्रकाश की पहली किरण काशी की धरती पर पड़ी थी। तभी से काशी ज्ञान तथा आध्यात्म का केंद्र माना जाता है। यह भी माना जाता है कि निर्वासन में कई साल बिताने के पश्चात भगवान शिव इस स्थान पर आए थे और कुछ समय तक काशी में निवास किया था। ब्रह्माजी ने उनका स्वागत दस घोड़ों के रथ को दशाश्वमेघ घाट पर भेजकर किया था।

काशी विश्वनाथ मंदिर- गंगा तट पर सँकरी विश्वनाथ गली में स्थित विश्वनाथ मंदिर कई मंदिरों और पीठों से घिरा हुआ है। यहाँ पर एक कुआँ भी है, जिसे 'ज्ञानवापी' की संज्ञा दी जाती है, जो मंदिर के उत्तर में स्थित है। विश्वनाथ मंदिर के अंदर एक मंडप व गर्भगृह विद्यमान है। गर्भगृह के भीतर चाँदी से मढ़ा भगवान विश्वनाथ का 60 सेंटीमीटर ऊँचा शिवलिंग विद्यमान है। यह शिवलिंग काले पत्थर से निर्मित है। हालाँकि मंदिर का भीतरी परिसर इतना व्यापक नहीं है, परंतु वातावरण पूरी तरह से शिवमय है। स्कन्द पुराण के आख्यान से स्पष्ट होता है कि श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या आदि से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहाँ निराकार परब्रह्म परमेश्वर महेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए। माँ अन्नापूर्णा (पार्वती) के साथ भगवान शिव अपने त्रिशूल पर काशी को धारण करते हैं और कल्प के प्रारम्भ में अर्थात सृष्टि रचना के प्रारम्भ में उसे त्रिशूल से पुन: भूतल पर उतार देते हैं। हिंदू धर्म में काशी विश्वनाथ का अत्यधिक महत्व है। मान्यता है कि जिस जगह ज्योतिर्लिग स्थापित है वह जगह लोप नहीं होती और जस का तस बना रहती है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस नगरी में आकर भगवान शिव का पूजन और दर्शन करता है उसको समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

ऐतिहासिक महत्व :
इस मंदिर का 3,500 वर्षो का लिखित इतिहास है। इस मंदिर का निर्माण कब किया गया था इसकी जानकारी तो नहीं है लेकिन इसके इतिहास से पता चलता है कि इस पर कई बार हमले किए गए लेकिन उतनी ही बार इसका निर्माण भी किया गया। बार-बार के हमलों और पुन: निर्मित किये जाने के बाद मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था। यह भी माना जाता है कि लाहौर के महाराजा रंजीतसिंह ने इस मंदिर के शिखर के पुनर्निमाण के लिए एक हजार किलो सोने का दान किया था। 1983 में उत्तरप्रदेश सरकार ने इसका प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया और पूर्व काशी नरेश विभूति सिंह को इसके ट्रस्टी के रूप में नियुक्त किया।

पौराणिक कथा:
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग के संबंध में भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत रहने लगे तब पार्वती जी इस बात से नाराज रहने लगीं। उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रख दी। अपनी प्रिया की यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत को छोड़ कर देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह से काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिग के रूप में स्थापित हो गए। तभी से काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिग ही भगवान शिव का निवास स्थान बन गया। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए।

काशी विश्वनाथ की भव्य आरती:
काशी विश्वनाथ में की जाने वाली आरती विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां दिन में पांच बार आरती आयोजित की जाती है। मंदिर रोजाना 230 बजे खुल जाता है। बाबा विश्वनाथ के मंदिर में तड़के सुबह की मंगला आरती के साथ पूरे दिन में चार बार आरती होती है। भक्तों के लिए मंदिर को सुबह 4 से 11 बजे तक के लिए खोल दिया जाता है फिर आरती होने के पश्चात दोपहर 12 से सायं 7 बजे तक दोबारा भक्तजन मंदिर में पूजा कर सकते हैं। सायं सात बजे सप्त ऋषि आरती का वक्त होता है। उसके बाद 9 बजे तक श्रद्धालु मंदिर में आ जा सकते हैं। 9 बजे भोग आरती शुरू की जाती है इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में प्रवेश वर्जित है। रात 1030 बजे शयन आरती का आयोजन किया जाता है। मंदिर रात 11 बजे बंद कर दिया जाता है। चढ़ावे में चढ़ा प्रसाद, दूध, कपड़े व अन्य वस्तुएँ गरीबों व जरूरतमंदों में बाँट दी जाती हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। काशी विश्‍वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यहिपर सन्त एकनाथजीने वारकरी सम्प्रदायका महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पुरा किया और काशिनरेश तथा विद्वतजनोद्वारा उस ग्रन्थ कि हाथी पर से शोभायात्रा खुब धुमधामसे निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।

आज की पोस्ट में इतना ही अगली पोस्ट में आपको वाराणसी के अन्य प्रमुख मंदिरों – संकट मोचन, तुलसी मानस, काल भैरव , BHU के विश्वनाथ आदि अन्य मंदिरों के दर्शन करवाते हैं ।
काशी विश्‍वनाथ मंदिर- साभार गूगल  

ऐसी गलियों से होकर ही रास्ता जाता है 

दर्शन के बाद पिन्नी का नाश्ता 

गंगा घाट 



घाट के किनारे सीवेरेज ट्रीटमेंट प्लांट 

सीगल 

चलो एक बोट चुनते है घुमने के लिए 

दशाश्वमेघ घाट 




अहिल्या बाई घाट 


दरभंगा घाट 

दरभंगा घाट 

राणा घाट 

सुशील स्टाइल मारते हुए 











नारद घाट 





विजया घाट एवं केदार घाट 


मल्लाह बाबा 

बाबा थक गए होंगे .थोड़ा जोर हम लगाते  हैं 







मणिकर्णिका घाट 

मणिकर्णिका घाट


झुका हुआ मंदिर -इसकी भी एक कहानी है 


दम मारो दम 




29 comments:

  1. 201 में बहुत सस्ते में छूट गए आप। बढ़िया पोस्ट, फोटोज बहुत अच्छी है सारी ही लेकिन इनपे पड़ी ये तारीख मुझे कभी पसंद नहीं आती।

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    1. धन्यवाद ओम भाई .अब मेरे द्वारा ली हुई फोटो पर तारीख नहीं होती . ऑफ कर दिया है .

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -06-2019) को "जग के झंझावातों में" (चर्चा अंक- 3381) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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    1. धन्यवाद एवं आभार अनीता सैनी जी .

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  3. रोचक यात्रा विवरण

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    1. धन्यवाद अनीता जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है .

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  4. Pardeep AggarwalJune 29, 2019 12:40 pm

    जय हो बाबा विश्वनाथ की .

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    1. धन्यवाद प्रदीप जी.

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  5. beautiful pictures of Ghats with interesting write up.

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  6. आनन्द आगया बाबा विश्वनाथ एवं पावन गंगा घाटों के दर्शन करके . हम भी वाराणसी गए थे लेकिन यह सब नही देख पाए थे .

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    1. धन्यवाद गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है .

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  7. सुंदर चित्रों के साथ सुंदर यात्रा वृतांत।

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    1. धन्यवाद जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है .

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  8. Lot of beautiful pics with good description. Once again , it is in my wish list. Om Hr Hr Mahadev....

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    1. धन्यवाद जी .अवश्य आपकी इच्छा पूर्ण होगी .

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  9. सुन्दर चित्रों से सजी एक बेहतरीन पोस्ट . जय बाबा विश्वनाथ .

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    1. धन्यवाद राज़ साहब

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  10. बढ़िया और खूबसूरत वृतांत ! काशी विश्वनाथ की कहानी रोचक और उत्साहित करने वाली है। इतने घाट तो मैंने खुद काशी की यात्रा में नहीं देखे जितने आज आपकी पोस्ट में देख लिए। शायद सभी घाट की फोटो लगाईं हैं आपने या कोई रह गया ?

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    1. धन्यवाद योगी भाई जी .

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  11. सुंदर चित्रों के साथ सुंदर यात्रा वृतांत।

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    1. धन्यवाद संजय Bhaskar जी

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  12. बहुत ही सुंदर शब्दो मे आपने कांशी जी का वर्णन किया है।
    विश्व्नाथ जी की कहानी बताने के लिए आभार।

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  14. क्या काशी विश्वनाथ मंदिर सच में औरंगजेब द्वारा तोडा गया था ?

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