मद्महेश्वर(मध्यमेश्वर)
यात्रा: पार्ट 2 :
रांसी से मद्महेश्वर ( Ransi to Madmaheshwar)
रांसी से मद्महेश्वर (
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पिछली
पोस्ट में आपने पढ़ा की कैसे हम अलग अलग जगह से हरिद्वार में इकठ्ठे हुए और वहाँ से
चलकर दोपहर रांसी गाँव पहुँच गए .रांसी गाँव काफी बड़ा है और मोटर मार्ग यहीं तक
बना है । सांस्कृतिक रूप से भी रांसी काफ़ी समृद्ध है। यहां राकेश्वरी देवी का एक मन्दिर है।
शीतकाल में जब मद्महेश्वर मंदिर के कपाट बंद होते हैं तो उनकी डोली ऊखीमठ जाती है।
रास्ते में एक रात्रि के लिए विश्राम रांसी में भी होता है।
L-R(Krishan Arya. Naresh Sehgal,Pardeep Taygi (behind), Eklavay,Sanjay Kaushik,Ravindar Bhatt, Anil |
हमारे एक whatsapp मित्र रविन्द्र भट्ट इसी गाँव
में रहते हैं । वे गाँव के पास ही एक सरकारी स्कूल में अध्यापक है और जबरदस्त
ट्रेकर भी । हमने अपने आने की उन्हें पहले से ही सुचना दे दी थी । हममें से उन्हें
पहले कोई भी नहीं मिला था । जहाँ हमने गाड़ी रोकी वहीँ पर एक दुकान से उनके बारे
में पूछा । वो भवन रविन्द्र भट्ट का ही था जहाँ मद्महेश्वर जाने वाले यात्रीयों के
लिए रुकने की व्यवस्था है । हमें बताया गया की भट्ट साहेब आने ही वाले हैं तब तक
हमने चाय का आर्डर दिया और चढ़ाई के लिए अपने बैग तैयार करने लगे। इतने में
रविन्द्र भट्ट वहाँ पहुँच गए और पुरे ग्रुप से बड़ी गरमजोशी से मिले । उनसे कुछ
रास्ते की जानकारी ली । उन्होंने बताया की आप आज गौंडार तक ही जा पाओगे । यदि आगे
ख़टरा चट्टी या उससे आगे जाना हो तो पहले गौंडार से पता कर लेना कि वो खुली है या
नहीं । यात्रा समाप्ति बिलकुल नजदीक होने के कारण यात्री बहुत कम आ रहे हैं जिस
कारण रास्ते में चट्टी बंद होने से शायद रुकने को जगह न मिले।
यात्रा
आगे बढ़ाने से पहले एक छोटा सा परिचय मेरे साथ इस यात्रा पर आये साथियों का।
संजय
कौशिक : सोनीपत –हरियाणा के निवासी । गुरुग्राम में प्राइवेट जॉब करते हैं । लगभग
पूरा भारत भ्रमण कर रखा है । धार्मिक स्वभाव ,हंसमुख और हाज़िर जबाब । इनके साथ
मेरी यह तीसरी यात्रा थी। इस यात्रा से एक सप्ताह पहले ही हम वैष्णो देवी और शिव खोरी की
यात्रा इकठ्ठे कर के आये थे ।
डा०
प्रदीप त्यागी : संभल –उत्तर प्रदेश के निवासी । पेशे से डाक्टर ,सरकारी सेवा में
कार्यरत । मृदु-भाषी एवम मिलनसार । धीरे धीरे बोलने
वाले और धीरे चलने वाले । इनके साथ मेरी यह पहली यात्रा थी।
एकलव्य
भार्गव : मूलत: ग्वालियर के निवासी । सरकारी सेवा में कार्यरत । नौकरी के कारण
आजकल नॉएडा ही रह रहे हैं । फोटोग्राफी और ट्रैकिंग के शौक़ीन । पहले भी कई ट्रैक किये
हैं । इनके साथ भी मेरी यह पहली यात्रा थी।
अनिल
दीक्षित : मूलत: अलीगढ़ के निवासी । दिल्ली में किसी MNC में अपनी गाड़ी चलाते हैं
और दिल्ली ही रहते हैं । एकदम डाउन टू अर्थ । इनके साथ भी मेरी यह पहली यात्रा ही
थी। इनके साथ ही इस यात्रा की बातचीत की शुरुआत हुई ।
कृष्ण
आर्य : ये संजय कौशिक जी के मित्र हैं। दिल्ली के पास,नरेला ,हरियाणा के निवासी।
कौशिक जी के अलावा सभी उन्हें इसी यात्रा में पहली बार ही मिले । इन्हें छोड़कर
बाकि सभी सदस्य आपस में पहले भी मिल चुके थे ।
चलो
अब यात्रा पर लौटते हैं ।
दोपहर
लगभग तीन बजे हम लोग रांसी से निकल पड़े । यहाँ से गौंडार गाँव 6 किलोमीटर दूर है ।शुरू
के दो किलोमीटर तक तो रास्ता काफी चौड़ा और पथरीला है लेकिन बिना उतराई चढ़ाई वाला
है । बताते हैं सरकार ने गौंडार तक सड़क बनाने के लिए काम शुरू किया था लेकिन वन
विभाग की आपत्ति के कारण काम बंद करना पड़ा । जहाँ तक पहाड़ की कटाई हो गयी थी वहाँ
तक रास्ता काफी चौड़ा और पथरीला है। उससे आगे रास्ता चार पांच फ़िट ही चौड़ा है लेकिन
ठीक बना है । जहाँ एक तरफ रांसी पहाड़ के ऊपर बसा हुआ है वही दूसरी तरफ़ गौंडार एकदम
नदी की तलहटी पर यानि तीखी उतराई है । शुरू के दो किलोमीटर बाद ही जंगल शुरू हो जाता
है और उतराई भी ।
उतराई शुरू होते ही एकलव्य सबसे आगे निकल गए और
उनके पीछे पीछे अनिल और कृष्ण आर्य भी । वे हमें दिखाई देने भी बंद हो गए लेकिन हम
सीटियाँ बजाकर एक दुसरे से संबंध बनाये हुए थे । मैं, कौशिक जी और त्यागी जी पीछे
चल रहे थे । जंगल घना होने के कारण झींगुर की तीखी आवाज आ रही थी और इस आवाज को
घाटी में बह रही मध्महेश गंगा की आवाज ही भेद रही थी । जैसे जैसे हम तेजी से नीचे
उतर रहे थे वैसे वैसे मध्महेश गंगा की संगीतमयी आवाज भी बढ़ रही थी । शहरों में
गाड़ियों और अन्य ध्वनि प्रदूषण से पक चुके कानों के लिए ये आवाज किसी दवा से कम न
थी । मानों किसी दिव्य शक्ति ने आपके कानो में शहद घोल दिया हो।
जंगल अधिकतर चीड़ के पेड़ो से भरा है और रास्ते
में छोटे बड़े कई झरने हैं। हम तेजी से उतरते हुए नदी की तलहटी के काफी पास तक आ गए
। एक बड़े झरने के पास बने पुल को पार करने के बाद हलकी चढ़ाई शुरू हो जाती है । इस
पुल तक काफी तीखी उतराई है ,मेरे मन में ये ख्याल आ रहा था की वापसी में ये चढ़ाई
काफी तंग करेगी क्योंकि उस समय तक सभी काफी थके होंगे । थोड़ा आगे चलने पर ही
गौंडार गाँव में स्वागत का एक बोर्ड लगा हुआ है लेकिन गाँव यहाँ से भी एक किलोमीटर
आगे है । यहाँ आने पर हमें अपने साथी आगे जाते हुए दिख गए । त्यागी जी अब तक काफी
थक चुके थे । यहाँ रुक कर थोड़ी देर आराम किया गया और फिर से गौंडार गाँव की और चल
दिए ।
रांसी
समुंदर तट से 2120 मीटर की ऊंचाई पर है और गौंडार गाँव 1670 मीटर पर । कुल 6
किलोमीटर की दुरी में से दो किलोमीटर रांसी की तरफ और एक किलोमीटर गौंडार की तरफ
उतराई चढ़ाई न के बराबर है बाकि के तीन किलोमीटर में सीधे 450 मीटर नीचे यानि कि
150 मीटर प्रति किलोमीटर । ट्रैकिंग के हिसाब से तीखी चढ़ाई/उतराई है।
शाम
5 बजे गौंडार पहुँच गए । रास्ते में शुरू में ही कैलाश लॉज के नाम से एक दुकान है
जहाँ खाने पीने और रुकने की व्यवस्था है । हमारे तीनो साथी वहीँ बैठे थे । हमारे
वहाँ पहुँचने से पहले ही चाय का आर्डर दे दिया गया था । हमने दुकान के मालिक से
आगे जाने के बारे में बात की ,वो बोला आज रात यहीं रुको आगे सब चट्टी बंद है ।
चूँकि अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था और दिन बाकि था हम तीन चार किलोमीटर आराम से चल
सकते थे । लेकिन दुकानदार के बार बार कहने पर की आगे सब बंद है हम वहीँ रूक गए । दुकानदार
को खाना तैयार करने के लिए बोल हम सब कमरे पर आ गये। कौशिक जी की तबियत ठीक नहीं
थी वो कमरे पर आते ही सो गए । कृष्ण आर्य भी लेटते ही सो गए । हम चारो बैठ कर गपशप
करते रहे साथ में घर से लाया खाना पीना चलता रहा । बैकग्राउंड में इंस्ट्रुमेंटल
म्यूजिक चलता रहा । एक घंटे बाद भोजन भी आ गया । खाना खाने के बाद दुकानदार
को सुबह के लिए 6 बजे से पहले नाश्ता तैयार करने के लिए कह कर सभी सो गए ।
सुबह
5 बजे सब उठ गए । सभी फ़्रेश होकर तैयार हो गए । तब तक चाय आ गयी ,चाय के साथ बिस्कुट खाकर और रास्ते के
लिए 14 परांठे पैक करवाकर सुबह के सवा 6 बजे हम लोग गौंडार से निकल लिए । यहाँ से मद्महेश्वर की दुरी 12 किलोमीटर है । गौंडार से एक किलोमीटर आगे बंतोली
चट्टी है । बढ़िया रास्ता बना है कोई चढ़ाई/उतराई नहीं है। बंतोली से पहले ही विश्व के सुन्दरतम हिमालयों में से एक चौखम्भा
से निकली मोरखण्डा नदी की धारा का संगम मध्यमेश्वर से निकली मधु गंगा से इसी
क्षेत्र में होता है। बंतोली
चट्टी के बाद ही असली चढ़ाई
शुरू होती है । इस बाकि के 11 किलोमीटर में आपको लगभग 1600 मीटर ऊपर चढ़ना है ,काफी
कठिन और लगातार चढ़ाई।
बंतोली
चट्टी से निकलने के थोड़ी देर
बाद ही आपको दायीं ओर मंदानी सिस्टर्स चोटियों के दर्शन होते है । इसके बाद रास्ते
में ये दिखाई नहीं देती । सारा रास्ता पक्का बना है और भटकने का कोई खतरा नहीं, चलता
रास्ता है । दो किलोमीटर बाद ही ख़टरा चट्टी है । कल के विपरीत आज एकलव्य धीरे चल
रहे थे और त्यागी जी के साथ काफी पीछे रह
गए थे । हम चारों आगे चल रहे थे । हम ख़टरा चट्टी पर पहुँच कर उनकी इंतजार करने लगे;
हमारी उम्मीद के विपरीत ये खुली थी । कल दुकानदार ने हमसे झूट बोल दिया नहीं तो
यहाँ तक आराम से आ सकते थे । इसके मालिक का नाम फ़तेह सिंह है और वो यहाँ अपने
परिवार के साथ रहता है । वे सब यहीं रहते हैं इसलिए जब तक मंदिर के कपाट बंद न हों
इनके बंद होने का सवाल नहीं। इसके पीछे ही फारेस्ट वालों की चौकी है जो आजकल बंद
थी । यात्रा बंद होने के बाद वो यहाँ रहते हैं ताकि कोई बिना परमिशन के आगे न जाये
।
थोड़ी देर में एकलव्य और त्यागी जी पहुँच गए । चाय का आर्डर दे दिया और साथ में
एक एक परांठा भी खा लिया । एक बात और जब हम गौंडार
से निकले तो दो झबरी कुत्ते
हमारे साथ चल पढ़े । ये सारे रास्ते हमारे साथ ही रहे और साथ ही वापिस आये । हमने
भी उन्हें अपने साथ सब कुछ खिलाया । जो हम खाते उनके साथ जरूर शेयर करते ,यहाँ तक
कि दोनों ने मूंगफली और गज़क भी बड़े चाव के साथ खायी । उनका बाकयदा नाम भी रख दिया
जो तगड़ा था उसका शेरू ; और जो पतला था उसका कालू । जब हमने नाश्ता किया तो इनको भी
साथ कराया । नाश्ता करने के बाद फिर से चल पढ़े ,आज बहुत चलना था ।
ग्रुप में सबकी स्पीड अलग अलग थी । इसलिए हम जब भी आगे निकल जाते तो पीछे आ
रहे साथियों के लिए रूक जाते । हम एक दुसरे की आखों से ओझल नहीं हो रहे थे चाहे
लेट हो जाएँ । मेरे हिसाब से आज हम ब्रेक भी ज्यादा ले रहे थे और ब्रेक भी लम्बे
लम्बे ,लेकिन कोई शिकायत नहीं , ग्रुप में ये चलता है। जैसे जैसे हम ऊपर उठ रहे थे
आस पास की सुन्दरता निखर कर सामने आ रही थी । सामने के पहाड़ों पर घना जंगल है और
नीचे घाटी में मधु गंगा बहुत शोर करते हुए बह रही है। चप्पे चप्पे पर ख़ूबसूरती
बिखरी हुई थे । बाकि आप अंदाजा तस्वीरों से लगा लेना ।
ख़टरा चट्टी से लगभग 3 किलोमीटर आगे
नानू चट्टी है और उससे इतना ही आगे कून चट्टी । दोनों बंद थी । आगे चलने पर एक जगह
रास्ते में काफी लंगूर बैठे थे । हमारे शेरू और कालू दोनों उन पर तेजी से झपटे ,सारे
लंगूर भाग कर पेड़ पर चले गए और रास्ता साफ हो गया । शेरू और कालू के होने से हम
जंगली जानवर के भय से मुक्त थे । ये दोनों हम से आगे रास्ता सूंघते हुए चल रहे थे जब
हम रूकते तो भाग कर हमारे पास आ जाते।
मद्महेश्वर से तीन किलोमीटर पहले घना जंगल शुरू हो जाता है और बीच में काफी
दूर तक रास्ता भी ख़राब है। यहाँ हम सब इकठ्ठा होकर चल रहे थे क्योंकि वापिस तो एक
साथ ही आना है इसलिए पहले जल्दी पहुँच कर करना भी क्या है। जंगल के समाप्त होते ही
सामने मंदिर दिखाई दे जाता है । रुकते चलते आराम करते हम लगभग दो बजे मद्महेश्वर
पहुँच गए ।
आज के लिए इतना ही .पोस्ट काफी लम्बी हो गयी है । अगली पोस्ट में मद्महेश्वर
और बूढ़ा मद्महेश्वर के दर्शन और वापसी । तक तक ..जय मद्महेश्वर
संजय कौशिक और मैं |
रांसी |
रांसी |
रांसी से गौंडार की तरफ़ |
रांसी से गौंडार की तरफ़ रास्ता |
दायीं तरफ वाली पहली चोटी पर ही जाना है |
गौंडार गाँव से चाँद के दर्शन |
साथियों के लिए पत्थर को रास्ते पर गिरने से रोकते हुए |
मंदानी सिस्टर्स |
थोड़ा ज़ूम करके |
संजय कौशिक एवं त्यागी जी |
साथी हाथ बढ़ाना |
लंगूर |
ख़टरा चट्टी पीछे वन विभाग की चेक पोस्ट दिख रही है |
वो दिख गए आते हुए |
बेहद ख़ूबसूरत चित्रों के साथ लाज़वाब पोस्ट, बहुत बढ़िया सहगल साब
ReplyDeleteधन्यवाद ओम भाई जी ।
Deleteबढ़िया पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद त्यागी जी ।
DeleteBeautifully written with beautiful pictures. Thx for sharing. Om hr hr Mahadev.
ReplyDeleteThanks for continue support.
Deleteबहुत रोचक शैली ......खूबसूरत चित्र... बढ़िया पोस्ट सहगल साहब..👍
ReplyDeleteधन्यवाद डाक्टर साहिब .
DeleteEnjoyed each and every word , thanks for sharing !
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी .
DeleteNice post .keep it up.
ReplyDeleteNice post. keep it up.
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी .
Deleteबहुत सुन्दर पोस्ट तथा बेजोड़ चित्र। मज़ा आ गया पढ़कर। वैसे कुत्ते ने मूंगफली खुद छीली थी या आप लोगों ने छीलकर खिलाई ? सचमुच मज़ा आ रहा है ये सीरीज़ पढ़कर।
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी .शेरू और कालू ने मूंगफली बिना छीली ही खा ली थी . :)
Deleteआभार , पिछली पोस्ट पर किये गए अनुरोध को मानने के लिए । बेहतरीन पोस्ट । शानदार चित्र । एक बात समझ में नही आती है, अक्सर हिमालय के ट्रेक पर न जाने कहाँ से कुत्ते मिल जाते है ? पाण्डव काल से ये परंपरा चली आ रही ?!
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी . शेरू और कालू हमें गाँव से ही मिले थे और वापसी में वहीँ रूक गए .
Deleteशानदार यात्रा ,चल रही है,खूब मूंगफली खाई जा रही है कही गज़क खाई जा रही है अरे,कोई हमको भी गुड़ की मीठी गजक खिला दो
ReplyDeleteकोई
धन्यवाद बुआ जी .मूंगफली और गज़क आपके लिए ओरछा में .
Deleteशानदार पोस्ट 👌🙏
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी .
DeleteBeautiful log.... waiting for next part
ReplyDeletebtw what is the snowy peak in second last foto ??
Thanks Tewari jee. Snowy peak in second last foto is of Chaukhamba.
Deleteबहुत खूबसूरत यात्रा वर्णन किया है सहगल साब आपने ! खूब सारे फोटो और खूब सारा वृतांत ! रविंदर भट्ट जी से हमारी मुलाकात सतोपंथ के ताल पर अनायास ही हुई थी ! हम सब इधर उधर घूम रहे थे और वो एकदम पीछे से आये और सबको पहिचान लिया ! लेकिन उस दिन उनके पास समय कम था ! सभी सह यात्रियों का बढ़िया परिचय कराया आपने !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई ।
ReplyDeleteप्रिय नरेश सहगल, इस यात्रा पर वृत्तान्त पढ़ते हुए भी ऐसा लगने लगा है कि मैं भी आप सब के साथ ही चल रहा हूं। यही यात्रा वृत्तान्त की खूबी होनी भी चाहिये। शेरू और कालू का साथ बढ़िया रहा। लगता है पांडवों को भी ऐसे ही कुत्ता साथ मिल गया होगा। अब रही बात चित्रों की तो इस बार का पुरस्कार है - मंदानी सिस्टर्स को ! अगले एपिसोड का इंतज़ार है।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशांत जी । स्नेह बनाये रखिये ।
Deleteexcellent aur pics to wakai lajawab hai
ReplyDeleteThanks Amit ji.
Deletebahut achha laga post padgkar.....
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी ।💐
Deleteवाह....नरेश जी...
ReplyDeleteये वाली पोस्ट रोमांचक रही..... लगा की साथ साथ ही चल रहे है...|
चित्र लाजबाब रहे
धन्यवाद रितेश जी ।
Deletebahut khoosurat photographs or saath mei nicely explained natural beauty spots and paths...
ReplyDelete.very nice
..simmi
Thankyou Shashi Negi Ji. Welcome on Blog.
Deleteजय भोलेनाथ...🙏🙏🙏
ReplyDeleteजय भोलेनाथ अनिल भाई .
Deleteजय बाबा मधेश.....🙏🙏
ReplyDeleteजय भोलेनाथ त्यागी जी . अगली यात्रा विंटर ट्रेक .तैयार रहो
DeleteThank you. Read and saw the pictures too. We are planning a trek there. Is Shri Ravindra Bhatt available? Can we talk with him to arrange accommodation and trek? I cannot get his number.
ReplyDeleteThanks Kunal. I read your message late. If you are still interested in trek ,I can aarnge talk with Mr. Bhatt.
Deleteऊँ सहगल जी आपकी कलम में एक दिव्य अनुभूति के साथ मुझे फिर से ये यात्रा कराई है उसके लिये आपका बहुत बहुत आभार जी जीवन में यदि ईश्वर ने फिर से मौका दिया तो आपके साथ ट्रक जरूर करूंगा जी।। कृष्ण कुमार आर्य
ReplyDeleteधन्यवाद आर्य जी . इश्वर ने चाहा तो जरूर साथ ट्रेक करेंगे .
Deleteधन्यवाद गौर साहब .
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