मध्महेश्वर यात्रा -1 (Madmaheswar Yatra -Part 1)
इस
साल के शुरू से ही अक्टूबर महीने में रुद्रनाथ कल्पेश्वर जाने का सोच रखा था। मेरी
अपने दिल्ली में रहने वाले मित्र अनिल दीक्षित से इस बारे में बातचीत भी हुई ।
अनिल दीक्षित के साथ दो अन्य मित्र भी थे लेकिन समस्या ये थी की जिन दिनों में
उनका प्रोग्राम बना उन्ही दिनों मेरे एक बचपन से घनिष्ट मित्र की छोटी बहन की शादी
थी ।मेरे मित्र ने मुझे लगभग दो महीने
पहले ही बोल दिया था की शादी के आस पास कहीं घुमने मत निकल जाना जिस कारण मैं अनिल
दीक्षित और साथियों के साथ कल्पेश्वर रुद्रनाथ न जा सका । उनके साथ न जाने के कारण
मैंने द्वितीय केदार मध्महेश्वर में जाने का मन बनाया । संजय कौशिक व अनिल दीक्षित
भी तैयार थे साथ ही उनकी तीन चार लोगों से और बात चल रही थी ।उम्मीद थी आखिर में
6-7 लोग फाइनल हो ही जायेंगे ।11 नवम्बर की रात को निकल कर 14 नवम्बर की वापसी का
प्रोग्राम था।
मधु गंगा |
समय
तेजी से नजदीक आ रहा था । 6 लोग फाइनल हो चुके थे । प्रोग्राम कुछ इस प्रकार था।
11 नवम्बर की रात अनिल दीक्षित अपनी इन्नोवा गाड़ी में संजय कौशिक व उनके मित्र
कृष्ण आर्य को लेकर दिल्ली से चलेंगे, नॉएडा से एकलव्य भार्गव को लेंगे और 12 नवम्बर
सुबह 5 बजे तक हरिद्वार पहुँच जायेंगे । हरिद्वार से मुझे व एक अन्य साथी डा०
प्रदीप त्यागी को लेना था । मुझे अम्बाला से हरिद्वार पहुंचना था और डा० प्रदीप
त्यागी को संभल (उत्तर प्रदेश) से । अनिल दीक्षित के अनुसार हरिद्वार से सुबह 5
बजे चलकर दोपहर 11 बजे तक रांसी ( मध्महेश्वर में जाने के लिए गाड़ी यहीं तक जाती
है ) पहुँच जायेंगे । वहाँ से 18 किमी की चढ़ाई शुरू कर रात होने तक मध्महेश्वर
पहुँच जायेंगे । 13 नवम्बर को काचनी ताल आना जाना करेंगे। 14 नवम्बर को उतराई कर
दोपहर तक रांसी और रात 10 बजे तक दिल्ली । मुझे ये प्रोग्राम बड़ा मुश्किल और दौड़
भाग वाला लगा । मेरा अनुमान था की हम जाते हुए किसी भी हाल में 2 बजे से पहले
रांसी नहीं पहुँच पाएंगे और पहले ही दिन मध्महेश्वर पहुंचना तो कतई मुश्किल है । हरिद्वार
से रांसी की दुरी लगभग 250 किलोमीटर है और सारा पहाड़ी रास्ता । अनिल से बात हुई तो
ये फाइनल हुआ की गाड़ी में सही समय से निकलते हैं । ट्रैकिंग का जहाँ जैसा समय होगा वैसे ही फैसला लिया जायेगा ।
तय
दिन 11 नवम्बर की शाम को मैं अम्बाला से हरिद्वार के लिए निकल पड़ा । मैंने अम्बाला
से रूड़की तक चंडीगढ़ लखनऊ एक्सप्रेस-15012 से चला गया । ये गाड़ी शाम को 6 बजे
अम्बाला से चलती है और 8:30 तक रूड़की पहुँच जाती है । मैं रूड़की पहुँच कर ऑटो
रिक्शा से बस स्टैंड चला गया जहाँ से मुझे हरिद्वार की बस मिल गयी । रात 10 बजे तक
मैं हरिद्वार पहुँच गया । स्टेशन के सामने ही गुजराती भवन वाली गली में एक होटल
300 रूपये में मिल गया । होटल वाले को पहले ही बोल दिया की रात को मेरा एक और साथी
यहाँ पर आएगा । अपने कमरे में जाकर खाना खाया । रात का खाना घर से ही पैक करवा कर
लाया था । यात्रा के साथियों को अपने हरिद्वार पहुँचने और होटल के बारे में सारी
जानकारी देकर लगभग 11 बजे मैं सो गया ।
रात
3 बजे के क़रीब डा० साहेब ,गूगल मैप की मदद से होटल खोजते हुए मेरे कमरे पर पहुँच
गए और सो गए। सबह 5 बजे कौशिक जी का फ़ोन आ गया की वो बाकि साथियों के साथ गाड़ी में
हरिद्वार पहुँच चुके है । मैंने उन्हें
शिव मूर्ति चौक के पास रुकने को कहा । कमरे से हम दोनों अपना अपना बैग लेकर 5 मिनट
में ही वहीँ पहुँच गए । सुबह सुबह मौसम में काफी ठंडक थी और गिने चुने लोग ही
सड़कों पर मौजूद थे । मिलने जुलने के बाद एक एक कप चाय का दौर चला । चाय पीने के
बाद हम ऋषिकेश की और निकल पड़े । ऋषिकेश से एक अन्य मित्र ऋषभ ने भी हमारे साथ
रुद्रनाथ तक जाना था । उन्हें मेन रोड पर गुरूद्वारे के पास पहुँच जाने को कह दिया
। आधे घंटे में ही हम ऋषिकेश में गुरूद्वारे के पास पहुँच गए । वहीँ हमें ऋषभ भी
मिल गया । वहीँ हम सब गुरूद्वारे में जाकर रिफ्रेश हो लिए । वहाँ शौचालय काफी साफ़
सुधरे बने हुए हैं । सबह की दैनिक किर्या से निवृत होकर आगे की यात्रा के लिए सभी
फिर से गाड़ी में सवार हो गए । यहीं से अनिल ने एक पेट्रोल पंप में डीजल से गाड़ी की
टंकी भी फूल करवा ली और अगले स्टॉप देवप्रयाग के लिए निकल पड़े ।
ऋषिकेश
से आगे रास्ता बढ़िया बना है ,सड़क पर वाहन भी कम थे और हम तेजी से देवप्रयाग की चले
जा रहे थे । सुबह साढ़े आठ बजे हम देवप्रयाग पहुँच गए थे । यहाँ पहला विश्राम लिया ।
गाड़ी एक साइड में लगा कर सभी संगम की तस्वीरें लेने चले गए । यहीं पर बद्रीनाथ से
आ रही अलकनंदा और गंगोत्री से आने वाली भगीरथी का संगम होता है और यहीं से गंगा
शुरू होती है । सर्दी के मौसम में दोनों धाराओं का जल काफी स्वच्छ नज़र आ रहा था।
अक्सर अलकनंदा का पानी काफी मिट्मैला होता है । 15-20 मिनट की फोटोग्राफी के बाद
एक ढाबे में सबने नाश्ता किया और चाय पी । इस तरह हमें देवप्रयाग में लगभग एक घंटा
लग गया । 9:30 बजे हम देवप्रयाग से श्रीनगर की और चल दिए । श्रीनगर में सड़क पर
काफ़ी भीडभाड थी । कोई मेला लगा हुआ था जिस कारण ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी हुई थी ।
श्रीनगर से निकलने में ही आधा घंटा लग गया । उससे आगे रुद्रप्रयाग तक फिर तेजी से
चले । रुद्रप्रयाग में ऋषभ उतर गया , उसे आगे जोशीमठ तक जाना था । रुद्रप्रयाग से
हम मुख्य मार्ग छोड़ केदारनाथ वाले रास्ते पर मुड़ गए । रुद्रप्रयाग से तिलवाड़ा ,
अगस्तमुनि होते हुए कुंड पहुंचे । इस पुरे रास्ते में मंदाकिनी नदी सड़क के बायीं ओर बह
रही है । कहीं कहीं इसका फैलाव काफी बड़ा है लेकिन अधिकतर जगह पर यह छोटी सी घाटी
बनाकर ही बहती है । कुण्ड से बायीं तरफ मंदाकिनी पर पुल पार कर एक रास्ता गुप्तकाशी
होते हुए गौरीकुंड जाता है जहाँ से केदारनाथ की चढाई शुरू होती है ; सीधा रास्ता
उखीमठ की तरफ चला जाता है ।
यहीं
सड़क से सामने की ओर बीच बीच में केदार पर्वत श्रृंखला नज़र आती रहती है । उखीमठ से
पहले ही एक चौक से सीधा रास्ता चोपता होते हुए चमोली की तरफ चला जाता है ; बायीं
तरफ वाला रास्ता उखीमठ होते हुए उनियाना और रांसी गाँव की तरफ़ चला जाता है । उखीमठ
से भी केदार पर्वत श्रृंखला नज़र आती है । थोड़ा सा आगे बढ़ते ही चौखम्बा के दर्शन हो
जाते हैं जो अंत तक चलते हैं । उखीमठ के बाद मध्य महेश गंगा घाटी (कुछ लोग मधु
गंगा भी बोलते हैं ) तक काफी उतराई है । सड़क बिलकुल नदी के पास तक पहुँच जाती है और
फिर एक पुल से नदी पार करने के बाद लगातार चढ़ाई है । पहले उनियाना गाँव आया हमें
लगा की रांसी आ गया वहाँ गाँव वालों से पूछा तो उन्होंने बताया की यहाँ से चार
किलोमीटर आगे है । उनियाना से एक महिला ने हमसे लिफ्ट मांगी । उसने रांसी गाँव ही
जाना था ,शायद स्कूल टीचर थी अब छुट्टी के बाद घर वापिस जा रही थी । उन्हें भी
गाड़ी में बिठा लिया और आखिरकार लंबी यात्रा के बाद दोपहर 2:15 बजे हम लोग रांसी
गाँव पहुँच गए ।
रोचक वर्णन । थोड़ा सा अपने मित्रों का परिचय भी दीजिये ताकि अगली पोस्टों में और मजा आये ।
ReplyDeleteधन्यवाद पाण्डेय जी । अगली पोस्ट में परिचय भी दूंगा ।
Deleteधन्य हो गए सहगल साहब आपके साथ यात्रा करके ।
ReplyDeleteवहाँ लग रहा था जो सुंदरता दिखाई दे रही है वो कैमरे में नहीं आ सकती अब आपके फोटो देख कर लग रहा है जो सुंदरता कैमरे में आ गई वो तो देख ही नहीं पाए ;)
बढ़िया वर्णन और गज़ब फोटो ।।
संजय कौशिक
धन्यवाद कौशिक जी ।
Deleteधन्यवाद त्यागी जी ।
Deleteबहुत सुंदर वृतान्त.....सारे लम्हे सजीव हो गए....बेहतरीन फोटो..👍
ReplyDeleteधन्यवाद त्यागी जी।
Deleteनरेश भाई आपने बहुत अच्छी तरह से यात्रा वर्णन लिखा है, हर रास्ते को बताया है। अब रांसी पहुँच गये है आपकी व् साथ गये दोस्तों की ट्रैकिंग यात्रा पढ़नी है। अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई
Deleteजय मदमहेश्वर
ReplyDeleteबहुत बढिया फोटो हैं एक मेरा भी लगा देते😊
धन्यवाद अनिल ।अरे आप की फोटो ऊपर है तो सर पर पगड़ी बांधे कंधे पर कम्बल रखे हुए । देखो दोबारा ।
DeleteAs usual, Well written post in every aspect. Pictures of Cho-khambha, Alaknanda & Sangam at Dev prayag are specially appreciable. Thx for sharing . Eagerly waiting for next post. Om Hr Hr Mahadev
ReplyDeleteबहुत बढ़िया वर्णन नरेश जी ������
ReplyDeleteख़ास तौर पर रुद्रप्रयाग से लेकर रांसी तक के सड़क मार्ग का आपने बहुत ही उम्दा शब्द चित्र खींचा है। मुकेश जी की बात से मैं भी सहमत हूँ कि आगे की कड़ियों में कुछ साथियों का वर्णन भी आना चाहिए, जिससे रोचकता बनी रहे।
पर मुझे पता है कि आपने पहले ही इस पूरे यात्रा वृतांत का एक खाका अपने मन में बना लिया होगा और पाठकों को समय समय पर चौंकाते रहेंगे।
चित्र सभी बहुत सुंदर हैं। ऋषभ का, और सबसे आखिर वाला आपका चित्र बहुत सुंदर है। हिमालय तो खैर अपने आप में ही बेजोड़ है, इसलिए उन फोटोज की अभी तारीफ़ नही कर रहा ��
धन्यवाद पाहवा जी ।अगले भाग में सबका परिचय दे दिया है । उत्साहवर्धन के लिए फिर से धन्यवाद
DeleteGood write up. A unknown place for me till now. Pictures are very beautiful. Waiting for next posts. Keep it up.
ReplyDeleteधन्यवाद अजय भाई ।
Deleteबढ़िया वर्णन नरेश जी .बहुत बढिया फोटो हैं .जय मदमहेश्वर
ReplyDeleteधन्यवाद राज जी ।
Deleteबहुत बढ़िया लगा पढ़कर,रोचक यात्रा वर्णन,आगामी पोस्ट का इंतज़ार रहेगा नरेश भाई
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील पाण्डेय जी ।
Deleteबहुत ही रोचक यात्रा विवरण,सभी फ़ोटो भी बहुत सुंदर सहगल साहब। हर चीज़ की बारीक़ और उम्दा जानकारी जो सभी के काम आने वाली है।
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश भाई ।
DeletePadte hue Aise lgta jaise hum b wahin h...vry gud description. feeling awesome...superlike...all pics r vry beautiful...Jai mere bhole nath.
ReplyDeleteधन्यवाद सिम्मी जी . जय भोले नाथ .
Deleteवाह नरेश जी, जीवंत वर्णन तथा मोहक तस्वीरें। देवप्रयाग का बस स्टॉप बड़ा साफ़ सुथरा दिखाई दे रहा है।
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी .देवप्रयाग का बस स्टॉप सड़क पर ही है .अलग से नहीं शायद इसलिए साफ़ सुथरा दिखाई दे रहा है।
Deleteबधाई हो नरेश आज नेट को मुझ पर दया आ गई ,आखिर खुल ही गया :) यहाँ तक तो मैंने भी सफर किया है इसलिए दृश्य आँखों के सामने घूमने लगे।पहाड़ो पर घूमना अपने आप में एक अजीब अनुभव है।रुको, हम भी साथ चलते है।
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी. आप रुद्रप्रयाग तक तो इसी रास्ते से गए होंगे . हेमकुंड के लिए यही रास्ता है .
DeleteAti sundar. Part 2 ka intizar rahega. Jis apne Kedar srankhla likha hai vo Mandani va Janhukut parbat hai. Bahut sunder likha hai apne. Badhai
ReplyDeleteधन्यवाद खोसला जी । जानकारी के लिए भी धन्यवाद ।
Deleteदेव प्रयाग के संगम के ज्यादातर जो फोटो देखे हैं , आपकी फोटो उससे कुछ अलग है ! अलकनंदा को बेहतरीन तरीके से कैमरे में उतारा है ! रास्ते का सही वर्णन ! अब रांसी से आगे चलते हैं !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी । अलकनंदा है ही इतनी खूबसूरत ।
Deleteप्रिय नरेश सहगल, अभी तक तीन बार कमेंट लिख कर पोस्ट कर चुका हूं पर दिखाई नहीं दे रहे। इस बार इतना ही लिख कर ट्राई करता हूं।
ReplyDeleteभगवान का लाख लाख शुक्र कि मेरा कमेंट अंततः स्वीकार हो गया। तो अब मैं भी यहां कमेंट कर सकता हूं।
ReplyDeleteआपका विशेष आभारी हूं कि इस अत्यन्त रोमांचकारी होने जा रही इस यात्रा पर, भावनात्मक रूप से ही सही, मैं आप लोगों के साथ - साथ हूं। कहने को तो देहरादून का मूल निवासी हूं पर आज तक पौड़ी से आगे कभी जाना नहीं हुआ। आप जैसे युवा मित्रों का साथ मिला तो शायद कभी यह भी संभव हो जाये।
आपका यात्रा वृत्तान्त तो रोचक है ही, चित्र भी आकर्षक बन पड़े हैं। विशेष तौर पर मुझे अलकनन्दा, केदार शिखर और चौखंबा के चित्र बहुत नयनाभिराम लगे। अब चलता हूं भाग २ की ओर...
धन्यवाद सुशांत जी .आपकी मेरे ब्लॉग पर यह पहली टिप्पणी है .आते रहें और उत्साह वर्धन करते रहें . धन्यवाद दिल से .
DeleteAwesome Clicks
ReplyDeleteधन्यवाद अमित जी ।
Deletebahut hi sunder varnan....Rishabh kyo apke saath nahi aaya yeh nahi bataya...? padhkar achha laga yatra vratant
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई । ऋषभ को कहीं और जाना था इसलिए वो रुद्रप्रयाग से अलग हो गया था ।
Deleteबहुत बढ़िया लेख और चित्र...नरेश जी...
ReplyDeleteरितेश जी धन्यवाद दिल से ।💐💐
ReplyDeleteSehgal saab, behtreen shruwaat iss series ki.
ReplyDeleteAap sab ko itna padha hai ke lagta hai ke saab ko personally jaanta hoon :-)
Hope to meet you and others one day.
Thanks
Thanks Stone ji.💐💐
Deleteसहगल साहब,मैं श्रीनगर तक की यात्रा कई बार कर चुका हूँ,और अप्रैल 2014 से लेकर जनवरी 2015 तक HNB G University में एक शोध छात्र के रूप में रह चुका हूँ,उन 9 महीनों की बहुत सी सुंदर यादें हैं, 21 मई को फिर निकल रहा हूँ उत्तराखंड के लिए,अभी कहाँ घूमना है यह निर्धारित नही हुआ है लगभग 5 दिन का टूर है, कहाँ जाना चाहिए मई 2017 में जो UP की गर्मी से कुछ राहत मिल सके, आप सलाह दें।
ReplyDeleteधन्यवाद स्येद अली रिज़वी साहब .आपका सन्देश लेट पढ़ पाया .
Deleteबहुत बढ़िया सर , सुन्दर चित्रों ने यात्रा को जैसे सजीव कर दिया , आगामी कड़ी का ईनतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज भाई .
Deleteबहुत खूब, मैं रहने वाला ही मध्यमेश्वर घाटी का हूं।
ReplyDeleteधन्यवाद सेमवाल जी .आप मध्यमेश्वर घाटी के हैं जानकर ख़ुशी हुई .मेरे मित्र भी रांसी में रहते हैं .
Deleteअत्यंत सुंदर वर्णन नरेश जी।
ReplyDeleteधन्यवाद करुनाकर पथिक जी .
Delete