Thursday 9 February 2017

Manimahesh Yatra -Part 3 (Hadsar-Dhanchho-Gaurikund-Manimahesh

                                                            Manimahesh Yatra 

मणि महेश कैलाश यात्रा-3 (हडसर-धन्छो-गौरीकुंड-मणिमहेश) 
   
सुबह 5 बजे अलार्म की आवाज सुनकर उठा । अच्छी नींद के साथ ही सारी थकावट दूर हो चुकी थी । नहाने का काम तो रात को ही निपटा दिया था, बाकि काम 10 मिनट में निपटा कर मुंह हाथ धोया और तैयार हो गया । एक छोटा पिठू बैग ट्रैकिंग के लिए तैयार किया , जिसमे एक रेन कोट , एक टोर्च और हल्का खाने पीने  का सामान । इस समय यहाँ काफ़ी ठंड थी इसलिए गर्म कपड़े मैंने पहन ही लिए थे । बाकी जो भी सामान बचा था उसे एक बैग में रखकर बैग उसी कमरे में रख दिया और सुबह 5:30 से पहले ही मैंने रूम छोड़ दिया और नीचे मुख्य सड़क पर आ गया ।



 हडसर में यात्रा के लिए कई लंगर लगे हुए थे लेकिन अधिकतर अभी बंद थे, जो एक दो खुल चुके थे , वहाँ अभी चाय तैयार नहीं हुई थी। मैं चलता रहा, आगे जाकर एक जगह एक लंगर में चाय बंटनी शुरू हो चुकी थी , वहीँ चाय के साथ बिस्कुट खाए और भोले नाथ का जयकारा लगा चढ़ाई शुरू कर दी । मैं सोच रहा था कि मैं ही जल्दी निकला हूँ लेकिन बहुत से लोग मुझसे भी पहले निकल चुके थे । कुछ लोग तो सीधा भरमौर से यहाँ पहुँच चुके थे । फिर भी कुल मिलाकर अभी ज्यादा भीड-भाड़ नहीं थी ।

      शुरू का सारा रास्ता चीड़ के घने जंगल से ही था। रास्ते के साथ साथ कल-कल बहती मणिमहेश गंगा की निर्मल जल धारा , इतनी नजदीक की चाहे तो आप उसके साथ अठखेलियाँ भी कर लो। नदिया किनारे छोटी –छोटी झाड़ियों पर खिले रंग-बिरंगे फूल । मंद –मंद बहती शीतल हवा और उस पर सुबह के समय की चिड़ियों की चहचहाहट। दूर दिखती बर्फ से लदी मनभावन विशाल चोटियाँ  और सूर्य के आगमन की पूर्व सुचना देती गगन में बिखरी लालिमा।  कुदरत ने स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ रखी  थी । एक प्रकृति प्रेमी को इससे ज्यादा चाहिए भी क्या ?

      शुरू में तो चढ़ाई हलकी थी लेकिन बीच में कहीं-2  कठिन भी आ जाती थी । सुबह का समय होने और ज्यादा भीड़ न होने से यात्रा बढ़िया चल रही थी । थोड़ी देर बाद ही चढ़ाई के कारण पसीना आने लगा और मैंने स्वेटर उतार कर बैग में डाल लिया । लगभग 3 किलोमीटर चलने के बाद एक लंगर मिला। वहां चाय के साथ हलवा मिल रहा था वहां मैं रूक गया । अब तक भूख भी लग गयी थी और आराम की इच्छा भी हो रही थी । वहां रूक कर हलवा खाया, चाय पी और  थोड़ा आराम किया । लंगर के प्रबंधक से बातचीत की और आगे के रास्ते की जानकारी ली । उसने बताया की धन्छो के बाद चढ़ाईथोड़ी कठिन है और यदि आप कहीं ज्यादा देर न रुको तो दोपहर एक बजे तक मणिमहेश पहुँच सकते हो । उनसे यात्रा की जानकारी लेने के बाद , उन्हें जय भोले की बोल कर इजाज़त ली और फिर से चढ़ाई शुरू कर दी।

यदि पहले के तय प्रोग्राम के अनुसार मैं कल रात धन्छो में रुका होता तो आज केवल 22 किलोमीटर ही चलना पड़ता जिसमे मात्र 8 किलोमीटर की चढ़ाई थी बाकि सब उतराई लेकिन ये हुआ नहीं । अब मुझे शाम तक नीचे वापिस आने के लिए 28 किलोमीटर चलना था यानि 14 किलोमीटर जाना और 14 ही आना । मेरी कोशिश थी की दोपहर 1 बजे तक ऊपर मणिमहेश झील पर पहुँच जाऊँ । एक घंटा वहां लगने का अनुमान था और यदि दो बजे भी वापसी शुरू करूँ तो आराम से सात बजे तक हडसर पहुँच सकता था ।

अब तक दिन पूरी तरह निकल आया था ,सूर्य भगवान भी दल-बल सहित अपने काम पर आ गए थे ।  पुरे रास्ते में स्थानीय लोग भी खाने पीने की चीजें बेचने आ चुके थे। फ्रूट चाट ,कोल्ड ड्रिंक्स ,जलजीरा , निम्बू पानी, उबले हुए मसालेदार काले चने, स्थानीय बूटियों से तैयार मसालेदार चटनी लगे हुए खीरे – इन्हें बेचने वाले, जहाँ जगह मिली वहीँ अपना स्टाल लगाकर बिक्री कर रहे थे। ये सब खाने में काफ़ी स्वादिष्ट  थे । मैं भी इन खाने पीने वाली चीजों का सेवन करते हुए ही चल रहा था । थोड़ी देर चलने के बाद कुछ नया खाने को ले लेता । रास्ते में ठंडाई बेचने वाले भी काफी लोग थे लेकिन इसमें भांग मिली थी इसलिए मैंने चाहते हुए भी इससे परहेज किया । सोचा कही पीकर चढ़ गयी तो आज वापिस आना तो दूर, ऊपर पहुंचना भी मुश्किल हो जायेगा। वैसे इस यात्रा के दौरान  स्थानीय लोगों को भी काफ़ी रोजगार मिल जाता है ।

पुरे रास्ते के साथ साथ एक छोटी नदी बहती है जिसे मणिमहेश गंगा के नाम से जानते हैं। यह मणिमहेश झील से ही निकलती है । शुरू में तो यह बायीं तरफ है लेकिन धणछो से लगभग 2 किलोमीटर पहले इसे एक पुल से पार करना पड़ता है उसके बाद यह नदी दायीं तरफ हो जाती है । पुल पार करने के बाद खड़ी चढ़ाईशुरू हो जाती है जो धणछो तक चलती है । यहाँ रास्ता भी काफ़ी पथरीला है । कई जगह तो रास्ता भी मार्क नहीं था ,पत्थरों के बीच से ही लोग निकल रहे थे । लोग थोड़ा सा चलते , रुक कर आराम करते फिर चल देते । पुल से लेकर धन्छो तक रास्ता इसी तरह काफी कठिन और पथरीला है।

 इस यात्रा का पहला पड़ाव धणछो में है जो हडसर से लगभग 6 किलोमीटर की दुरी पर है । यहाँ काफ़ी बड़ा खुला चौड़ा मैदान सा है यहाँ एक साथ कई लंगर लगे हुए हैं । धणछो लगभग एक किलोमीटर लम्बा होगा ।  यहीं पर स्थानीय लोग ट्रैकिंग पथ पर यात्रियों के  ठहरने के लिए बहुत से टेंटो की व्यवस्था करते हैं जहाँ कुछ वाजिब राशी देकर आप इन में रात को ठहर सकते हैं। यहाँ यात्रा से इतर भी ठहरने और खाने के लिए सुविधा मिल जाती है लेकिन सिर्फ मई से सितम्बर तक ।

मैं 8:30 बजे धणछो पहुँच गया । यहाँ तक आने में मुझे लगभग पौने तीन घंटे लगे । हडसर जहाँ समुंदर तल से 2320 मीटर की ऊंचाई पर है वहीँ धणछो 3000 मीटर पर । यानी प्रति किलोमीटर पर 110 मीटर की ऊंचाई । धणछो पहुंचकर हल्का नाश्ता किया , चाय पी  और थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर से यात्रा शुरू कर दी । धणछो से गौरी कुंड तक जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक खड़ी चढ़ाईवाला जिसे बन्दर घाटी के नाम से जाना जाता है- इस रास्ते से जाने से झरना रास्ते में नहीं पड़ता सिर्फ दूर से ही दिखायी देता है। इस रास्ते से चढ़ाई कठिन है लेकिन रास्ता अच्छा बना है । इस रास्ते से नदी को पार नहीं करना पड़ता । दूसरा रास्ता झरने के एकदम आगे से होता हुआ जाता है ।यह रास्ता बन्दर घाटी वाले रास्ते के मुकाबले थोड़ा ज्यादा कठिन और लम्बा है । इसके लिए नदी को दो बार पार करना पड़ता है । पहले पुल पार करके नदी के दायीं तरफ जाओ फिर झरने के बाद दोबारा बायीं तरफ आ जाओ। घुमावदार, पहाड़ी पर पथरीला रास्ता। यह रास्ता पहले के मुकाबले नया है । दोनों ही रास्ते काफ़ी सांस फुलाने वाले हैं ,दोनों पर रुक रुक कर आराम करना पड़ता है । झरने को देखने के लालच में अधिक लोग दुसरे रास्ते से ही जा रहे थे । मैं भी वहीँ से गया ।

झरने के सामने से निकलना भी बड़ा ही सुखद अनुभव था । बड़ा विशाल झरना है और यहाँ पानी का बहाव बहुत तेज है और आवाज़ भी । झरने के छींटे उड़कर बहुत दूर तक जा रहे थे । ज्यादा नजदीक जाकर फोटो खिंचवाने वालों के कपडे भी गिले हो रहे थे । झरने की कुछ फोटो लेने के लिए थोड़ी देर रुककर लेकर मैं आगे निकल गया ।

 धन्छो के बाद, ऊँचाई बढने से, पेड़ धीरे –धीरे ख़तम होने लगे। उनकी जगह छोटी छोटी झाड़ियों ने ले ली थी । इन झाड़ियों पर छोटे –छोटे रंग बिरंगे फूल खिले थे। आगे का रास्ता और भी मुश्किल भरा होता जा रहा था । थोड़ा आगे जा कर एक  स्थान पर एक भीमकाय पहाड़ के अंदर से एक आवाज आती रहती है, शायद पहाड़ी के दूसरी तरफ कोई बड़ा झरना है । इस जगह को शिव का घराट कहते हैं । थोडा और आगे चलने पर सुन्दरासी नामक पड़ाव है वहां भी दो लंगर लगे हुए थे । सुन्दरासी के बाद फिर से कड़ी चढ़ाई शुरू होती है जो गलेशियर तक जाती है । जैसे –जैसे ऊंचाई बढ़ रही थी वैसे –वैसे साँस फूलने की समस्या भी । थोड़ा चलने के बाद ही विश्राम करना पड़ रहा था । गलेशियर पर पहुँचते ही सामने गौरी कुंड दिखना शुरू हो जाता है। लगभग 1 बजे मैं गौरीकुंड पहुँच गया ।

गौरीकुंड में एक छोटा सा तालाब है । कहते है यहाँ माँ गौरी स्नान किया करती थी इसलिए इसका नाम गौरी कुंड पड़ा । अब यहाँ महिलाओं के स्नान के लिए जगह बनी हुई है । गौरीकुंड से ही कैलाश पर्वत दिखना शुरू हो जाता है यहाँ पहुँच कर मैंने एक दुकान वाले से पूछा की कैलाश पर्वत किधर है तो उसने पूर्व की तरफ इशारा करके कहा वो देखो पीछे दिख रहा है । इस समय कैलाश पर्वत का शिखर बादलों से ढका था । मेरे देखते ही देखते बादलों ने तेजी से पुरे पर्वत को ढक लिया । पीछे ग्लेशियर की तरफ भी बादलों ने पूरी घाटी को घेर लिया था । मैं समझ गया की अब किसी भी समय बारिश आ सकती है। मैं यहाँ और ज्यादा देर न रुककर आगे की और निकल गया ।
  
गौरीकुंड से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मणिमहेश झील। लेकिन ऊंचाई अधिक हो जाने पर ऑक्सीजन की कमी के चलते ये डेढ़ किलोमीटर की दुरी भी बड़ी मुश्किल से तय होती है । मुझे इसमें भी एक घंटे से ज्यादा लग गया । मेरे मणिमहेश झील पहुँचने से थोड़ी देर पहले ही हलकी बर्फ़बारी शुरू हो गयी । मेरे लिए यह बर्फ़बारी का दूसरा अनुभव था । इससे पहले एक बार अमरनाथ गुफा के पास बर्फ़बारी का अनुभव ले चूका हूँ । 10-15 मिनट के बाद बर्फ़बारी तेज बारिश में तब्दील हो गयी । मैं भागकर झील से थोड़ा पहले बने एक कंक्रीट के निर्माण के नीचे सुरक्षित स्थान पर चला गया । यहाँ से मणिमहेश झील मुश्किल से 50 मीटर दूर होगी लेकिन यहाँ काफी भीड़ होने से मैं देख नहीं पा रहा था । सोचा था दोपहर 1 बजे तक पहुँच जाऊँगा लेकिन पहुँचते -2 ढाई बज चुके थे और घुले हुए बादलों को देखकर नहीं लगता था झमाझम बारिश जल्दी रुक जाएगी ।

पिछले 9 घंटे से लगभग चल ही रहा था और अब तक काफी थक गया था. ज्यादा भीड़ होने से यहाँ बैठने की बिलकुल जगह नहीं थी इसलिए खड़े खड़े ही बारिश रुकने का इंतजार करता रहा ।

चलकर देखा है मैंने अक्सर, अपनी चाल से तेज ,
पर वक़्त और तक़दीर से आगे कभी निकल न पाया ।।

अगला भाग जल्दी ही ..बने रहिये .

 
     
इन सीडियों को चढ़ कर ही यात्रा शुरू होती है 

यात्रा मार्ग  और नीचे सड़क पर खड़ी गाड़ियाँ 

मनमोहक घाटी 
दूर नज़र आती बर्फीली चोटियाँ 

मणिमहेश गंगा 



नदी पर पुल पार करके रास्ता दायीं तरफ हो जाता है 





दूर दिखायी देता झरना 

ये पास से ..विशाल झरना 


बन्दर घाटी 


ऊंचाई से नीचे दिखती धन्छो 

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बलि का बकरा अरे नहीं भेड़ 



पूरी घाटी बादलों से ढक गयी है 

घाटी के दूसरी तरफ़ बना मार्ग 

घाटी के दूसरी तरफ़ बना मार्ग 

ग्लेशियर 

ग्लेशियर 

घाटी का सुन्दर दृश्य 

घाटी का सुन्दर दृश्य 



गौरी कुंड 

मणिमहेश कैलाश 

मणिमहेश कैलाश 

मणिमहेश कैलाश 

गौरी कुंड से मणिमहेश के लिए जाता मार्ग .

64 comments:

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    1. धन्यवाद राजेश जी . जय भोले की .

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  2. बढ़िया सहगल साहब....👍
    अत्यंत रोमांचक और साहसी यात्रा रही ये आपकी , दृश्यावली बेहद खूबसूरत दिखाई पड़ रही है कैमरा की नजर से ही तो साक्षात् तो कहना ही क्या......👌

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    1. धन्यवाद त्यागी जी . सच में ये ट्रेक काफी कठिन था लेकिन उतना ही खूबसूरत भी था जय भोले की .

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  3. बढ़िया यात्रा विवरण नरेश जी 💐

    ट्रेकिंग की शुरुआत में ही सुबह का वर्णन बहुत खूब किया है, मज़ा आया पढ़कर 💐
    50 मीटर की दूरी बाकी और अब इंतज़ार की घड़ियाँ ! यकीनन यह समय काटना मुश्किल रहा होगा और साथ में वापिसी की चिंता भी !

    अगला अंक निश्चित ही रोचक रहने वाला है 👍

    फोटो सभी अच्छे भी हैं और काफी सारे भी 😊 🙏

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    1. धन्यवाद अवतार जी .सही कहा, इतनी पास होके भी काफी देर तक दूर रहा .

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  4. वाह कमाल का लेख तस्वीर का क्या कहना

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    1. धन्यवादविनोद जी . जय भोले की

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  5. रोमांचक यात्रा का सुन्दर वर्णन किया है आपने, सहगल साहब

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    1. धन्यवाद ओम भाई . जय भोले की.

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  6. तय समय से पीछे होने की वजह से वापसी का रोमांच बन गया है मणिमहेश रमणीय जगह है...ग़ज़ब की ऊर्जाशक्ति इतना ट्रैक करने की....

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    1. धन्यवाद प्रतिक जी . सही में लेट होने के कारण रोमांच तो हो ही रहा था .

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  7. अब देखना ये है कि आप किस तरह ऊपर तक पहुंचे और किस तरह समय से वापस आये होंगें। मुझे प्रतीक्षा रहेगी इस पार्ट की।फोटो तो बढ़िया हैं ही और जगह जगह लंगर की वजह से खाने की तो बढ़िया पार्टी हो गयी आपकी।

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    1. धन्यवाद हर्षिता जी . लंगर रहने से निस्संदेह सुविधा तो रहती ही है लेकिन मैंने वहाँ बिक रहे स्थानीय व्यंजनों को खाने पीने पर ज्यादा जोर दिया . लंगर से केवल चाय और हलवा लिया था .

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  8. Well developed n enjoyable post.
    All pictures are btfl & u r looking handsome BT weak n tired also. Thx for sharing. eagerly waiting for next post. Go Ahead. जब साथ हों "भोलेनाथ औऱ भवानी, फिर काहे की परेशानी"

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    1. धन्यवाद जी . जय भोले की

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    1. धन्यवाद स्टोन जी .

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  10. बढ़िया । बारिश कब रूकी ? कब आप पहुँचे । अगले अंक के इंतजार में ।

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    1. धन्यवाद हरेंदर भाई .अगले अंक मे जल्दी ही ...

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  12. Shaandaar varnan Sehgal ji, lekin ek duvidha hai barfbaari baarish mein kaise tabdeel ho gai. Mera matlab agar barfbaari hai to tej barfbaari hui hogi ! Ya phir mere samajhne ka fark hai ?

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    1. धन्यवाद प्रदीप जी . पहले 10 मिनट बर्फ़बारी हुई फिर पानी बरसने लगा .इसमें कुछ भी असामान्य नही है . कम ठण्ड में बर्फ़बारी बारिश में तब्दील हो जाती है .

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  13. शानदार पोस्ट 👌 फ़ोटो तो गज़ब के है 🙏

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    1. धन्यवाद चौधरी साहेब . जय भोले की

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  14. बढ़िया चित्रों के साथ शानदार लेख.....

    बड़ा कठीन ट्रेक लग रहा है ये तो....

    जय भोले की

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    1. धन्यवाद रीतेश जी. निस-संदेह ट्रेक तो काफी कठिन ही है.

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  15. Great yatra experience narration by great naresh

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  16. very beautiful fotos.. lage raho

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  17. छान्छौ के विषय में और जानकारी चाहूंगा क्योंकि मुझे ऐसा आभास हो रहा है कि ये जगह स्थायी तो नहीं है , जब यात्रा शुरू होती होगी तब यहाँ कुछ टेंट लग जाते होंगे ? एक से एक खूबसूरत जगह है , दूधिया रंग का पानी बहुत ही आकर्षित कर रहा !!

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    1. धन्यवाद योगी जी .आपका अंदाजा सही है .धन्छो में सभी निमं अस्थायी है जो सिर्फ यात्रा के दौरान लगाये जाते हैं . यात्रा के बाद से सितम्बर आखिर तक सिर्फ एक या दो दुकान खाने पीने के लिए रहती हैं .

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  18. बहुत सुन्दर विवरण और साथ में मनमोहक चित्र। अति दिलकश नज़रों से भरपूर।

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    1. धन्यवाद शिव कुमार जी .

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  19. अति सुंदर लेख। लेखन शैली रोचक लगी। अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी।

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    1. धन्यवाद नितिन मिश्रा जी . सम्पर्क में बने रहें .

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  20. नरेश जी बहुत बढ़िया यात्रा चल रही है , अगले भाग का बेसब्री से इंतजार रहेगा।

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    1. धन्यवाद सुशील जी. अगला भाग जल्दी ही .

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    1. धन्यवाद अनिल जी .जय भोले नाथ

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    1. धन्यवाद जोगी जी .जय भोले नाथ

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  23. एक कठीन ट्रेक यात्रा का बहुत ही सटीक और रोमांचक के पल पल को महसूस कराता यह लेख है । चित्र तो हमेशा की तरह मनमोहक है ।

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    1. धन्यवाद कपिल जी ।जय भोले की ।।

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  24. ये तो महान यात्रा हो गई आपकी नरेश । वो कहते है ना जहां चाह वहां राह !जोरदार दृश्य !!और फ़ोटू भी बहुत अच्छे है ।

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    1. धन्यवाद बुआ जी । भोले नाथ की कृपा है 💐

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  25. कठीन ट्रेक पर शानदार लेख.....बढ़िया चित्रों के साथ
    जय भोले नाथ की ...

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    1. धन्यवाद अजय जी ।💐

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  26. धन्यवाद सहगल साहब। तीसरा भाग भी पढ़ लिया, बहुत ही रोमांचय यात्राा रही आपके महादेव तक पहुंचने की। आपके इस पोस्ट ने मेरी बहुत सी मुश्किलों को हल कर दिया।

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    1. धन्यवाद सिन्हा साहेब .

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  27. Very detailed review
    Enjoyed every line
    Thanks

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  28. बढ़िया लेख और सुन्दर तस्वीरें भी ।क्या बात है, बहुत खूब

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    1. धन्यवाद राजेश कुमार जी .

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  29. yatra ki photos bahut hi sundar h. dil moh lene wali

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    1. धन्यवाद अनित जी .

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  30. बढ़िया और जानकारी से भरा लेख ! नज़ारे बहुत सुन्दर हैं ! वाह! ये तस्वीरें वास्तव में अद्भुत हैं। आपकी तस्वीरें एक अद्भुत कहानी बताती हैं। आपकी तस्वीरें बिल्कुल आश्चर्यजनक हैं!

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    1. धन्यवाद अंकिता सिंह जी

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  31. वाह! ये तस्वीरें वास्तव में अद्भुत हैं। बहुत विस्तृत समीक्षा हर पंक्ति का आनंद लिया धन्यवाद!

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  32. Amazing blog. Keep it up and thanks a lot for sharing

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