मणि महेश कैलाश
यात्रा-6 ( मणिमहेश महात्म्य कथा एवम अन्य जानकारी )
मणिमहेश पौराणिक महत्व :
देवभूमि हिमाचल
का चंबा जिला शिवभूमि के नाम से विख्यात है। इस जिले में मणिमहेश़ ऐसा तीर्थ स्थल है जिसकी सदियों से जन-जन में मान्यता रही है। जम्मू के डोडा, भद्रवाह व किश्तवाड़ क्षेत्रों के लोग तो सैंकड़ो मीलों का यह सफर नंगे पैर तय कर पवित्र झील में डुबकी लगाकर अपना जीवन धन्य मानते है । हिमाचल प्रदेश मे चम्बा जिले के भरमौर के एक
पर्वत शिखर पर ब्रह्माणी देवी का तत्कालीन मंदिर है और यह मंदिर बुद्धिल घाटी में
स्थित है। चम्बा जिले मे ही स्थित मणिमहेश- कैलाश भी बुद्धिल घाटी का ही एक भाग है।
मणिमहेश धौलाधार, पांगी व जांस्कर
पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। मणिमहेश को कैलाश पर्वत के नाम से भी जाना जाता
है, प्राचीन काल से श्रद्धालु इस कैलाश की
तीर्थ यात्रा करते आ रहे हैं। यहाँ पर एक झील है जो मणिमहेश झील या कैलाश कुंड के
नाम से जाना जाता है। इस झील की उँचाई समुद्र तल से लगभग 13,500 फुट यानि 4110 मीटर की है, इस झील की पूर्व की दिशा बर्फ से ढका मणिमहेश पर्वत है इसकी चोटी समुद्र
तल से लगभग 18,564 फुट ऊंचाई पर है।
मणिमहेश झील पर स्तिथ पूजा स्थल |
मणिमहेश-कैलाश
यात्रा हडसर नामक स्थान से शुरू होती है। यहाँ तक यात्री गाड़ियों के द्वारा आ
सकते हैं, लेकिन यहां से आगे की यात्रा के लिए
पहाड़ी रास्ता ही एकमात्र ज़रिया है। इस यात्रा को पैदल चलकर या फिर घोड़े-खच्चरों
की सवारी द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। पुराने समय मे यह यात्रा चम्बा से ही
पैदल आरम्भ की जाती थी। लेकिन अब सड़क मार्ग हडसर तक होने से यात्रा हडसर से आरंभ
होती है। लेकिन यहां के स्थानीय ब्राह्मणों-साधुओं द्वारा आयोजित की जाने वाली
पारंपरिक छड़ी यात्रा तो आज भी प्राचीन परम्परा के अनुसार चम्बा के ऐतिहासिक
लक्ष्मीनारायण मंदिर से ही शुरू होती है।
हडसर
से मणिमहेश-कैलाश की दूरी लगभग 14 किलोमीटर है और इस रास्ते के बीच में, हडसर
से 6 किलोमीटर की दुरी पर धन्छो नामक स्थान पड़ता है। यहाँ एक बहुत ऊंचा जल प्रपात है ,इसी स्थान पर घोड़ी, कार्तिकेय स्थान व चरपट गुफा भी मौजूद है। इस स्थान पर रात्रि भोजन व ठहरने की सुविधा भी उपलब्ध है। धन्छो से आगे
और मणिमहेश झील से लगभग डेढ़ किलोमीटर पहले गौरीकुंड आता है। गौरीकुंड के बारे में कहा जाता है यह माता गौरी का स्नान-स्थल था, यहां पर महिला तीर्थयात्री स्नान कर
पवित्रता का एहसास करती
हैं। गौरीकुंड से लगभग डेढ़ किलोमीटर की
दूरी पर स्थित है मणिमहेश झील। इसे कैलाश कुंड भी कहते हैं । पौराणिक कथाओं में इस
झील को भगवान शिव की क्रीड़ा स्थली माना जाता है कहा जाता है की भगवान शिव ने देवी
पार्वती के साथ विवाह पश्चात इसका निर्माण किया था। आम यात्रियों व श्रद्धालुओं के
लिए यही अंतिम स्थान है। यहां पर आकर श्रद्धालुओं झील के ठंडे जल में स्नान करते
हैं। फिर झील के किनारे पर स्थापित सफेद पत्थर की शिवलिंग रूपी मूर्ति की
पूजा-अर्चना करते हैं।
मणिमहेश
कैलाश पर्वत को ”टरकोइज माउंटेन”
भी कहा जाता है। टरकोइज का अर्थ है नीलमणि। वैसे
तो सूर्योदय के समय क्षितिज में लाल किरण छा जाती है और इसके साथ प्रकाश की सुनहरी
किरणें भी निकलती हैं। लेकिन जब मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे से सूर्य उदय
होता है तो सारे आसमान मे नीलापन छा जाता है। और सूर्य के प्रकाश की किरणें नीले
रंग में निकलती हैं ।
इस
स्थान से ठीक नीचे शिखर पर एक पिंड है, जो
बर्फ पड़ने पर भी दिखाई देती है, माना जाता है की यह
पिंड शिव का रूप है श्रद्धालु इस पिंड को नमंन करते है। कहा जाता है की बसंत ऋतु
से लेकर वर्षा ऋतु के अंत तक यानी की छः महीने तक भगवान शिव अपने परिवार के साथ
कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। और उसके बाद यानी कि शरद् ऋतु से लेकर वसंत ऋतु के
अंत तक छ: महीने कैलाश से नीचे उतर कर पतालपुर (पयालपुर) में रहते हैं ।
कमल कुंड :
गौरीकुंड से दो
रास्ते कटते हैं । दायीं तरफ वाला रास्ता मणिमहेश झील (कैलाश कुंड ) की तरफ जाता
है और बायीं तरफ वाला कमल कुंड की तरफ । गौरीकुंड से एक किलोमीटर आगे शिव कलोत्री नामक
एक झरना है ।ऐसा माना जाता है कि इसका उद्गम भगवान शिव के चरणों से है ।इसी झरने
का जल यहाँ से दो किलोमीटर आगे की दुरी पर स्थित कमल कुंड में जाता है। यह कुंड मणिमहेश
परिक्रमा के रास्ते में पड़ता है और यही मार्ग आगे कुज़ा ग्लेशियर ,जोतनू पास होते
हुए कुगति गाँव की ओर चला जाता है । इस कुंड में कमल खिलते हैं इसीलिए इसका नाम
कमल कुंड है । यहाँ तक जाने का रास्ता काफी दुर्गम है ।
कैसे पहुंचे :
सालाना
मणिमहेश यात्रा हडसर नामक स्थान से शुरू होती है जो भरमौर से लगभग 15 किलोमीटर, चम्बा से लगभग 82
किलोमीटर और पठानकोट से लगभग 220 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पंजाब में पठानकोट
मणिमहेश-कैलास यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है जो दिल्ली-उधमपुर मुख्य
रेलमार्ग पर है। निकटतम हवाई अड्डा कांगड़ा है। हडसर हिमाचल राज्य परिवहन की बसों
द्वारा भली भांति जुड़ा हुआ है। पड़ोसी राज्यों व दिल्ली से भी चम्बा तक की सीधी
बस सेवा सुलभ है।
यात्रा अवधि :
मणिमहेश की खोज व धार्मिक रूप से तीर्थ यात्रा
की शुरूवात करने का श्रेय योगी चरपटनाथ को जाता है। इन्होने ही इस जगह को जाना तथा
सभी को इसके महत्व के बारे में बतलाया तभी से दो सप्ताह तक चलने वाली यह यात्रा श्रीकृष्ण
जन्माष्टमी से श्रीराधाष्टमी के मध्य तक प्रति वर्ष आयोजित की जाती है। इस यात्रा
के दो मुख्य स्नान हैं । कृष्णाष्टमी वाले पवित्र स्नान को जोगिया नौण कहा जाता है क्योंकि इस दिन योगी, महात्मा, साधु-संत व पैदल आने वाले भद्रवाही श्रद्धालु स्नान करते है,
जबकि राधाष्टमी वाले दिन के स्नान को बड़ा नौण कहा जाता है। इसे गृहस्थों के लिए शुभ माना जाता है।
वैसे
मेरे अनुभव से यात्रियों को कृष्णाष्टमी और राधाष्टमी के स्नान वाले दिनों में यात्रा से बचना चाहिये ,इन
दिनों खूब भीड़ होती है । यदि भीड़ से बिलकुल बचना हो तो आधिकारिक यात्रा अवधि शुरू
होने से पहले या समाप्त होने के बाद ही जाना चाहिये । धन्छो ,गौरीकुंड और कैलाश
कुंड पर खाने और रुकने की व्यवस्था मई से सितम्बर तक रहती है । स्थानीय लोगों की
इन जगहों पर एक दो दुकाने मिल जाती है ।
ट्रैकिंग
पैदल
मार्ग भी शिव के पर्वतीय स्थानों के साथ जुड़ी हुई शर्त है। कैलाश, आदि कैलाश या मणिमहेश कैलाश, केदार ,अमरनाथ -सभी
दुर्गम बर्फीले स्थानों पर हैं। इसलिए यहां जाने वालों के लिए एक न्यूनतम सेहत तो
चाहिए ही। जरूरी गरम कपड़े व दवाएं भी हमेशा साथ होनी चाहिए। मणिमहेश झील के लिए
सालाना यात्रा के अलावा भी जाया जा सकता है। मई, सितंबर व अक्टूबर का समय इसके लिए उपयुक्त है। रोमांच के शौकीनों के लिए
धर्मशाला व अन्य जगहों से कई ट्रैकिंग रास्ते भी मणिमहेश झील के लिए खोज निकाले गए हैं।
स्थान
|
समुंदर तल से ऊंचाई (मीटर)
|
हडसर
|
2320
|
धणछो
|
3000
|
गौरीकुंड
|
3950
|
कैलाश कुंड (मणिमहेश झील)
|
4110
|
कमल कुंड
|
4600
|
आखिर में भगवान भोले नाथ की इस स्तुति के साथ ही मैं अपनी इस यादगार यात्रा को विश्राम देता हूँ .मिलते हैं जल्दी ही किसी दूसरे यात्रा संस्मरणों के साथ ।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्
।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
( जो कर्पूर जैसे
गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं,
संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण
करते हैं, वे भगवान शिव, माता
भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।)
धन्छो |
कैलाश कुंड |
मणिमहेश कैलाश |
कमल कुंड -चित्र इन्टरनेट से . |
कमल कुंड -चित्र इन्टरनेट से . |
गौरी कुंड |
Congrats for completion of this post. Good description. Jai Ho Shiv & Shiva Ji Ki💐💐
ReplyDeleteThanks my Dear for inspiration and continuous encouragement.
Deleteबधाई हो इस अति महत्वपूर्ण यात्रा के लिए । हमे इंतजार रहेगा अगली रोमांचक यात्रा का जब तक के लिए हर हर महादेव 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद दर्शन कौर जी । हर हर महादेव ।।
Deleteसम्पूर्ण जानकारी मणि महेश जी की सुंदर रचना सहगल साहब जय भोले की
ReplyDeleteसम्पूर्ण जानकारी मणि महेश जी की सुंदर रचना सहगल साहब जय भोले की
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद जी ।जय भोले की ।।
Deleteधन्यवाद सहगल साहब, as usual सटीक और विस्तृत वर्णन गज़ब के फोटुओं सहित ।
ReplyDeleteसभी भविष्य के तीर्थ यात्रियों के लिए एक मार्गदर्शक का काम करेगी आपकी ये पोस्ट ।
बम बम भोले
हर हर महादेव
धन्यवाद संजय कौशिक जी .बम बम भोले
Deleteनीले रंग की किरणों का कोई विशेष कारण है क्या?
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी .शायद ऐसा सूरज की बर्फ पर पड़ने से होने वाले Reflection के कारण होता होगा .
Deletecongratulations on completion of your such a valuable post. This significant post of yours has inspired me enough to plan my next solo trek to Manimahesh.Awesome photography indeed.
ReplyDeleteThanks again for sharing such beautiful experiences and details.
simmi
धन्यवाद सिम्मी जी .एक ब्लोगर के लिये इससे बढ़ कर ख़ुशी क्या होगी कि उसका ब्लॉग पढ़ कर किसी की वहां जाने की इच्छा हो जाये .मेरा लिखना सफल हुआ .
Deleteदेखे बाबा कब बुलाते है हमें ...
ReplyDeleteबढ़िया एवं रोचक जानकारी
धन्यवाद भाई जी ।💐
ReplyDeleteMai apki yatra series padh nahi pai thee par aaj ki post me aapne poori jankari de di apko thanks
ReplyDeleteThanks Mrinal Sharma ji.
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति .
ReplyDeleteThanks Pawan Ji. Keep visiting.
DeleteNice informative post.
ReplyDeleteThanks Ajay.
Deleteबहुत सुंदर शब्दो में संपूर्ण जानकारी वाली पोस्ट है ये आपकी नरेश जी....ये पोस्ट भविष्य में मणिमहेश की यात्रा पर निकलने वालों के लिए सच्चे मार्गदर्शक का कार्य करेगी.....जय भोले की...
ReplyDeleteThanks Tyagi Ji...Jai Bhole ki.
Deleteबहुत ही उपयोगी जानकारी दे दी आपने अपनी आखिरी पोस्ट में ! एक बहुत ही सुन्दर और शक्ति से भरे हुए स्थल की सम्पूर्ण यात्रा कराने के लिए धन्यवाद सहगल साब !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी.
Deleteनरेश भाई यह पोस्ट आपकी वाकई गजब है क्योकी मनीमहेश यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी आपने दी है। मणीमहेश यात्रा पर जाने वाले भक्तो के लिए यह पोस्ट बहुत उपयोगी रहेगी।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन त्यागी जी
Deletevery informative post
ReplyDeleteधन्यवाद तिवारी जी .
Deleteबहुत बढिया सहगल साहब
ReplyDeleteधनयवाद अनिल भाई .
Deleteशानदार जानकारी, बढ़िया लेख और स्टनिंग फोटो
ReplyDeleteधन्यवाद रोहित जी .
Deleteइस जानकारी के बाद कुछ और रेफेर करने की जरूरत ही नहीं है.....बढ़िया विस्तृत जानकारी सहगल साहब
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई .
Deleteबहूत शानदार जानकारी ।। दिल मे इच्छा है मणि महेश जाने का । देखते है कब बुलावा आता है ।
ReplyDeleteधन्यवाद सुजीत पाण्डेय जी .
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