सारनाथ
कल बनारस घूमने में काफी भाग दौड़ हुई थी। काशी विश्वनाथ से काल भैरव फिर BHU
,तुलसी मानस ,संकट मोचन ,वैष्णो माता मंदिर आदि-आदि और आखिर में रात को गँगा आरती ।
रात को कमरे पर वापिस आने और खा पीकर सोने में काफी लेट भी हो चुके थे इसलिए आज
सुबह हम सब आराम से उठे । आज शाम को हमारी अम्बाला के लिए वापसी की ट्रेन थी लेकिन
उससे पहले आज सुबह हम सारनाथ जाना चाहते थे। सारनाथ, बनारस से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर है । भगवान बुद्ध ने
अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था । यहाँ महात्मा बुद्ध को समर्पित कई मंदिर हैं जिन्हें
आप आधा दिन में आराम से घूम सकते हैं । सुबह नाश्ते का काम निपटा कर अपना सारा
सामान पैक किया ताकि बाद में वापिस आने पर समय न लगे । सारा सामान लेकर केयर टेकर
के पास जमा करवा दिया और रूम खाली कर दिया । गेस्ट हाउस से बाहर आकर सारनाथ जाने
के लिए एक ऑटो बुक कर लिया और लगभग आधे घंटे की यात्रा के बाद हम सारनाथ पहुँच गए ।
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भगवान बुद्ध |
बनारस के विपरीत सारनाथ काफी साफ और खुली जगह में है । यहाँ विदेशियों की
भरमार रहती है जिसमे से अधिकतर बौद्ध अनुयायी होते हैं । यहाँ कई देशों के नाम से
बुद्ध मंदिर बने हुए हैं । जैसे तिब्बती मंदिर ,थाई मंदिर ,श्रीलंका का मूलगंध कुटी विहार ,चाइना टेम्पल आदि । यहाँ पुरातत्व विभाग
का संग्रहालय और काफी बड़े क्षेत्र में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई से निकले उस
समय के अवशेष भी हैं । इन दोनों जगह पर प्रवेश शुल्क है , बाकि सभी स्थानों पर कोई
शुल्क नहीं है । यहाँ हम एक-एक कर कई मंदिरों में गए । सभी मंदिर बढ़िया बने हुए
हैं और पास- पास ही हैं। सभी जगह काफी शांत वातावरण था। मंदिरों में घूम कर जब हम थक गए तो कुछ हल्का खानपान किया और
फिर पुरातत्व विभाग द्वारा संचालित खुदाई क्षेत्र में पहुंच गए । यह काफी बड़े इलाक़े में फैला है और अच्छी तरह मेन्टेन है । इसी
के भीतर ही फूलों की शानदार क्यारियां बनायीं हुई है जिससे यह काफी सुन्दर दिखता
है। धमेख स्तूप (धर्मचक्र स्तूप) भी इसी के अन्दर बना हुआ है । यहाँ
हमने काफी समय बिताया । यहाँ से आने के बाद हम संग्रहालय देखने चले गए । खुदाई से
निकली हुई उस समय की सभी धरोहर संग्रहालय में रखी हुई है ।
संग्रहालय से बाहर आकर हमने वापसी की राह पकड़ी । एक ऑटो रिक्सा वाले से पहले
गेस्ट हाउस चलने और फिर वहां से सामान लेकर रेलवे स्टेशन चलने का तय कर लिया।
हमारी वापसी की ट्रेन भी काफी लेट चल रही थी तो हमें भी कोई ज्यादा जल्दी नहीं थी ।
दोपहर का भोजन करके शाम 4 बजे तक हम वाराणसी स्टेशन पर पहुँच गए । शाम 6 बजे ट्रेन
आई और अम्बाला के लिए रवाना हो गए ।
अब कुछ जानकारी सारनाथ और यहाँ के प्रसिद्ध स्थानो के बारे में -
सारनाथ, बनारस से लगभग 13
किलोमीटर की दूरी पर उत्तर- पूर्व दिशा में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है। यह
स्थान बौद्ध और जैन धर्म के तीर्थ यात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है। ज्ञान प्राप्ति
के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था जिसे "धर्म चक्र
प्रवर्तन" का नाम दिया जाता है और जो बौद्ध मत के प्रचार-प्रसार का आरंभ था। इसके
बाद संघ की स्थापना यहीं हुयी थी और इसीलिए यह बौद्ध धर्म के चार सबसे प्रमुख
तीर्थों में से एक है। यहाँ के बौद्ध मठ ध्यान करने के लिये उत्तम स्थल हैं। यह
स्थान बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है (अन्य तीन हैं: लुम्बिनी,
बोधगया और कुशीनगर)। इसके साथ ही सारनाथ को जैन
धर्म एवं हिन्दू धर्म में भी महत्व प्राप्त है। जैन ग्रन्थों में इसे 'सिंहपुर' कहा गया है और माना जाता है कि जैन धर्म के ग्यारहवें
तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म यहाँ से थोड़ी दूर पर हुआ था। यहां पर सारंगनाथ
महादेव का मन्दिर भी है जहां सावन के महीने में हिन्दुओं का मेला लगता है।
सारनाथ की प्रसिद्धि की सबसे बड़ी वजह यहां स्थित डीयर पार्क है, जहां गौतम बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था। पहले बौद्ध संघ की स्थापना भी यहीं
की गई थी। सारनाथ में ही महान भारतीय सम्राट अशोक ने कई स्तूप बनवाए थे। उन्होंने
यहां प्रसिद्ध अशोक स्तंभ का भी निर्माण करवाया, जिनमें से अब कुछ ही शेष
बचे हैं। इन स्तंभों पर बने चार शेर आज भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। वहीं स्तंभ के
चक्र को राष्ट्रीय ध्वज में देखा जा सकता है। 1907 से यहां कई खुदाई की गई हैं।
इसमें कई प्राचीन स्मारक और ढांचे मिले, जिससे उत्तर भारत में
बौद्ध धर्म के आरंभ और विकास का पता चलता है।
सारनाथ में अशोक का चतुर्मुख सिंहस्तम्भ, भगवान बुद्ध का मन्दिर, धामेख स्तूप, चौखन्डी स्तूप, राजकीय संग्राहलय,
जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, मूलंगधकुटी और नवीन विहार इत्यादि दर्शनीय हैं। भारत का राष्ट्रीय चिह्न यहीं
के अशोक स्तंभ के मुकुट की द्विविमीय अनुकृति है। मुहम्मद गोरी ने सारनाथ के पूजा
स्थलों को नष्ट कर दिया था। सन १९०५ में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई का काम
प्रारम्भ किया। उसी समय बौद्ध धर्म के अनुयायों और इतिहास के विद्वानों का ध्यान
इधर गया। आज सारनाथ बौद्ध
पंथ के मुख्य स्थलों में से एक है,
जो दुनिया भर से
अनुयायियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
भगवान बुद्ध के समय इस क्षेत्र को हिरणों के रहने वाले घने जंगल के कारण इसे
ऋषिपट्टन या इसिपटन और मृगदावा कहा जाता था। अपने शासनकाल में सम्राट अशोक भगवान बुद्ध
के प्रेम और शांति के संदेश का प्रचार प्रसार करने सारनाथ आए और यहाँ ईसा पूर्व 249 में एक स्तूप का निर्माण करवाया। शहर
मठ, स्तूप और एक संग्रहालय के साथ सुशोभित है।
हिरन पार्क के परिसर में सम्राट अशोक द्वारा बनवाया हुआ 249 ईसा पूर्व का
धम्मेक स्तूप है, साथ ही तीसरी से ग्यारहवीं सदी के बीच के
बनवाये हुए अन्य स्थापत्य भी हैं।
धमेख स्तूप (धर्मचक्र स्तूप) यह स्तूप एक ठोस गोलाकार बुर्ज की भाँति है। इसका व्यास 28.35
मीटर (93 फुट) और ऊँचाई 39.01 मीटर (143 फुट) 11.20 मीटर तक इसका घेरा सुंदर
अलंकृत शिलापट्टों से आच्छादित है। इसका यह आच्छादन कला की दृष्टि से अत्यंत सुंदर
एवं आकर्षक है। अलंकरणों में मुख्य रूप से स्वस्तिक, नन्द्यावर्त सदृश विविध
आकृतियाँ और फूल-पत्ती के कटाव की बेलें हैं। इस प्रकार के वल्लरी प्रधान अलंकरण
बनाने में गुप्तकाल के शिल्पी पारंगत थे। इस स्तूप की नींव अशोक के समय में पड़ी।
इसका विस्तार कुषाण-काल में हुआ,
लेकिन गुप्तकाल में यह
पूर्णत: तैयार हुआ। यह साक्ष्य पत्थरों की सजावट और उन पर गुप्त लिपि में अंकित
चिन्हों से निश्चित होता है। निचले हिस्से के पत्थर गुप्त मूल की मनोहर पुष्प
नक्काशियों से सुशोभित है। धमेक स्तूप सबसे अधिक आकर्षण वाले स्थलों में से एक है
क्योंकि यह भगवान बुद्ध के द्वारा अपने पाँच शिष्यों के पहले धर्मोपदेश की
पुण्यस्मृति में बनाया गया था।
चौखंडी स्तूप ईंट की एक विशाल मीनार है, जिसका वर्गाकार
भवन अष्टकोणीय टॉवर से घिरा हुआ है। गुप्त अवधि के दौरान चौथी से छठी शताब्दी के
बीच स्तूप बना था। यह स्थल बौद्ध भक्तों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि भगवान
बुद्ध ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने पहले पाँच शिष्यों से यहाँ मिले थे।
पुरातत्व संग्रहालय यहाँ प्रदर्शित दुर्लभ वस्तुओं के माध्यम से पुरातात्विक
संग्रहालय में पर्यटक 3 शताब्दी ईसा
पूर्व से 12 वीं शताब्दी ईसा
पूर्व से सम्बंधित वस्तुऐं देख सकते हैं। संग्रहालय में बड़ी संख्या में मूर्तियाँ,
कलाकृतियाँ, देवी तारा की प्रतिमा,बोधिसत्व और भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक का प्रतिष्ठित
सिंहस्तम्भ संरक्षित हैं।
मूलगंध कुटी विहार : यह उल्लेखनीय है कि श्रीलंकाई बौद्ध संत श्री अंगारिका
धर्मपाल ने सारनाथ के लगभग सभी बौद्ध स्थलों को पुनर्जीवित किया और भारत में महा
बोधी सोसाइटी की स्थापना की। सोसाइटी ने मूल मूलगंध कुटी विहार की पुण्य स्मृति
में नई मूलगंध कुटी विहार मंदिर का निर्माण किया जिसके खंडहर पुरातत्व विभाग के
खुदाई स्थल में देखे जा सकते हैं। पहले धर्मोपदेश प्रचार करने की मुद्रा में भगवान
बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा की यहाँ पूजी जाती है। भगवान बुद्ध के अवशेष यहाँ रखे है
जो हर साल बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बाहर लाये जाते है। मंदिर की अंदरूनी दीवारों
को जापानी कलाकार कोसेट्सु नोसु द्वारा निर्मित सुंदर भित्तिचित्रों से सजाया गया
है जो बुद्ध के जन्म से महापरिनिर्वाण की प्राप्ति तक का जीवन प्रदर्शित करते हैं।
आप यहाँ बोधी वृक्ष देख सकते है, जो अनुराधापुरम
(श्रीलंका) के बोधी वृक्ष की एक शाखा से लगाया गया था।
तिब्बती मंदिर अपने थांगका चित्रों और शाक्यमुनि बुद्ध की सुंदर प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध
है।
सारंगनाथ मंदिर: भगवान शिव को समर्पित इस प्राचीन मंदिर में एक ही अर्घ में
दो शिवलिंग हैं। यह श्रावण माह (जुलाई-अगस्त) के दौरान जारी रहने वाले अपने भव्य
मेले के लिए प्रसिद्ध है। इसके पास में विशाल सारंगनाथ कुंड है।
उत्खनन पुरातत्व स्थल: पुरातत्व स्थल प्राचीन काल की भव्यता को दर्शाता है। यहाँ
मौर्य काल की संरचनाओं, अशोक स्तम्भ, स्मारक, अवशेष, मठों के दर्शन
किए जा सकते है।
थाई मंदिर : हरे भरे बागों के बीच में स्थापित शानदार हीनयान बुद्ध मंदिर का निर्माण1993
में सारनाथ देखने आये थाई गणमान्य व्यक्तियों द्वारा किया गया था। यहाँ भगवानबुद्ध
की प्रतिमा भूमिस्पर्श मुद्रा में है।
सारनाथ में कई बौद्ध ढांचे और स्मारक हैं। इनमें से कई ईसा पूर्व दूसरी
शताब्दी के हैं। यह गांव बौद्ध तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण है।
इसके अलावा यहां इतिहासकार और पुरातत्वविद् भी आते हैं, जो यहां के स्मारकों और ढांचों पर अंकित प्रचीन लिपि का
अध्ययन करते हैं और उन्हें सुलझाते हैं। डीयर पार्क भी बड़ी संख्या में पर्यटकों
का अपनी ओर खींचता है। यही वह जगह है जहां गौतम बुद्ध ने पहला उपदेश दिया था। इतना
ही नहीं, डीयर पार्क में स्थित
धमेख स्तूप वो जगह है, जहां पर गौतम
बुद्ध ने ‘आर्य अष्टांग मार्ग’
का संदेश दिया था। सारनाथ में कई स्तूप हैं।
इन्हीं में से एक है चौखंडी स्तूप, जहां बुद्ध की
हड्डियां रखी गई हैं। पुरातात्विक और खुदाई के क्षेत्र में जमीन से कई प्रचीन
स्मारक निकलीं हैं, जिनमें से अशोक
स्तंभ भी एक है।
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धमेख स्तूप (धर्मचक्र
स्तूप) |
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धमेख स्तूप (धर्मचक्र
स्तूप) |
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मूलगंध कुटी विहार |
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मूलगंध कुटी विहार |
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मूलगंध कुटी विहार |
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Chinese Temple |
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Chinese Temple |
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Chinese Temple |
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Chinese Temple |
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थाई मंदिर |
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Japanese Temple |
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Japanese Temple |
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Japanese Temple |
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Japanese Temple |
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Japanese Temple |
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Japanese Temple |
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Japanese Temple |
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धमेख स्तूप (धर्मचक्र
स्तूप) |
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Japanese Temple |
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Sushil and Swarn -My colleagues |
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Varanasi Railway Station |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-08-2019) को "लेखक धनपत राय" (चर्चा अंक- 3415) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी ।
DeleteNice post Sir. Beautiful pictures and description.
ReplyDeleteधन्यवाद रजत गुप्ता जी 🙏
Deleteसारनाथ की अच्छी जानकारी ..सुन्दर चित्रों के साथ .
ReplyDelete- अजय गोयल
धन्यवाद अजय गोएल जी 🙏
Deleteइस बार बनारस जाने का विचार है जरूर यहां भी हो कर आएंगे.और तुमारी फोटोज गजब की हैं .
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी ।
Deleteवाह ,शानदार चित्रण एवं वर्णन .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी ।🙏
Deleteबढ़िया सहगल साब ! बहुत विस्तृत और सुन्दर वर्णन ! मैं भी जा चूका हूँ यहाँ 2015 में ! बढ़िया आलेख
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी 🙏
Deleteशानदार चित्रण
ReplyDeleteधन्यवाद संजय भास्कर जी ।
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