Friday 12 July 2019

Famous temples in Varanasi


वाराणसी के प्रसिद्ध मंदिर :
बाबा विश्वनाथ और माँ अन्नपूर्णा के दर्शन और नाव से काशी के घाटों पर घूमते-2 दोपहर के 1 बज गए थे । इसके बाद हम वाराणसी के अन्य प्रमुख मंदिरों में घूमना चाहते थे और चूँकि अधिकतर मंदिर दोपहर को बंद हो जाते हैं तो हमारी कोशिश थी बंद होने से पहले कम से कम एक –दो मंदिर तो देख ही लें । वैसे तो काशी में इस समय लगभग 1500 मंदिर हैं, जिनमें से बहुतों की परंपरा इतिहास के विविध कालों से जुड़ी हुई है। इनमें से कुछ जैसे विश्वनाथ, संकटमोचन, काल भैरव, विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित नया विश्वनाथ मंदिर ,तुलसी मानस और दुर्गा माता के मंदिर भारत भर में प्रसिद्ध हैं।

त्रिदेव मंदिर
सबसे पहले हम मृत्युंजय महादेव मंदिर गए । यह मंदिर विश्वनाथ मंदिर की उत्तर दिशा में काल भैरव मंदिर के पास ही है । मंदिर बंद होने में कुछ ही समय था , हमारे दर्शन करने के बाद ही मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए । इसके बाद हम नजदीक ही स्तिथ काल भैरव मंदिर में दर्शन के लिए चले गए । दोनों मंदिर विश्वेषरगंज के मैदागिन चौराहे के पास हैं । मृत्युंजय महादेव मंदिर चौराहे से उत्तर की तरफ और चौराहे के दक्षिण की तरफ तंग गलियों से गुजरते हुए एक गली में कालभैरव का मंदिर हैं । कालभैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है । दोपहर का समय होने के कारण यहाँ बिलकुल भीड़ नहीं थी । बड़े आराम से दर्शन किये और फिर रिक्शा से वापिस गोधोलिया आ गये । खाना खाने के बाद एक auto से बनारस विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित नया विश्वनाथ मंदिर देखने चले गए। ऑटो वाले ने हमें गेट पर उतार दिया । विश्वविद्यालय के गेट से फिर रिक्शा लिया और मंदिर पहुँच गए । मंदिर काफी विशाल एवं भव्य बना हुआ है। मंदिर के आस पास भी काफी हरियाली है । लगभग एक  घन्टे यहाँ रुकने के बाद हम यहाँ से वापिस आ गए ।

बाहर गेट के पास एक चाय वाले के पास चाय पकोड़े का सेवन किया और फिर पैदल ही गलियां घूमते हुए संकट मोचन मंदिर पहुँच गए । हनुमान जी को समर्पित संकट मोचन मंदिर काशी का एक बहुत ही प्रसिद्ध एवं सिद्ध स्थल है । कुछ समय पहले यहाँ बम धमाके भी हुए थे । उसके बाद से यहाँ सुरक्षा व्यवस्था बड़ी सख्त की हुई है। यहाँ फूल और प्रसाद के अलावा अन्दर कुछ भी ले जाने की मनाही है । यहाँ भगवान हनुमान जी की बहुत प्राचीन मूर्ति है । लगभग आधे घंटे के बाद हम यहाँ से थोड़ी ही दुरी पर स्तिथ तुलसी मानस मंदिर चले गए । यह मंदिर दो मंजिला बना हुआ है और मंदिर की दीवारों पर रामचरित मानस की सभी चौपाईयां लिखी हुई हैं। यहाँ से थोड़ा आगे ही दुर्गा माता का मंदिर हैं । जल्दी से वहाँ दर्शन किये और फिर एक ऑटो से दशाश्वमेध घाट पर वापिस आ गये । यहाँ माँ गंगा की शाम की भव्य आरती की पूरी तैयारी हो चुकी थी और गंगा आरती की झलक पाने के लिए घाट श्रद्धालुओं से भरे हुए थे । बहुत से लोग नावों में सवार होकर भी आरती का आनंद लेने के लिए तैयार थे । हमने भी घाट पर अपने लिए जगह बनायीं और गंगा आरती में शामिल हुए । यहाँ गंगा आरती में शामिल होना सचमुच में एक अलौकिक अनुभव था ।
गंगा आरती पूर्ण होने के बाद हम भी अपने ठिकाने को चल दिए । आज काफी भाग-दौड़ रही इसलिए अब काफी थकावट हो रही थी । एक ढाबे से खाना पैक करवा कर हम अपने कमरे पर चले गए।

अब कुछ जानकारी यहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में :

मृत्युंजय महादेव मंदिर :
काशी में भगवान शिव के विभिन्न नामों से स्थापित महत्वपूर्ण शिवलिंगों में मृत्युंजय महादेव का भी स्थान है। धार्मिक आस्था के केन्द्र में भगवान शिव काशी के सर्वोच्च संचालक हैं। इस प्राचीन शहर में बाबा विश्वनाथ के बाद मृत्युंजय महादेव की भी दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन पूजन करने आते हैं। कहा जाता है कि मृत्यंजय महादेव के दर्शन से अकाल मृत्यु नहीं होती है। मान्यता के अनुसार मृत्युंजय महादेव स्वयंभू शिवलिंग हैं। वर्तमान में जिस स्थान पर मृत्युंजय महादेव का मंदिर स्थित है वहां प्राचीन काल में वन था। जंगल के बीच भक्त मृत्युंजय महादेव के दर्शन पूजन करने आते थे। बाद में भक्तों के सहयोग से वर्तमान भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। विशाल मंदिर परिसर में घुसते ही बायीं ओर मृत्युंजय महादेव हैं। इनका दर्शन सड़क से भी किया जा सकता है क्योंकि गर्भगृह में लगी खिड़कियों से मृत्युंजय महादेव को आसनी से देखा जा सकता है। इस मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व पर बड़ा आयोजन होता है।

काल भैरव : भगवान शिव की इस नगरी काशी के व्यवस्था संचालन की जिम्मेदारी उनके गण सम्भाले हुए हैं। उनके गण भैरव हैं जिनकी संख्या 64 है एवं इनके मुखिया काल भैरव हैं। काल भैरव को भगवान शिव का ही अंश माना गया है। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। बिना इनकी अनुमति के कोई काशी में नहीं रह सकता। मान्यता के अनुसार शिव के सातवें घेरे में बाबा काल भैरव है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार अपनी वर्चस्वता साबित करने के लिए ब्रह्मा एवं विष्णु भगवान शिव की निंदा करने लगे। जिससे शिव जी अति क्रोधित हो गये। भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न भैरव ने अपने बांयें हाथ की अंगुली एवं दाहिने पैर के अंगूठे के नाखून से ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काट दिया। जिससे भैरव पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया। ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव ने भैरव को एक उपाय बताया। उन्होंने भैरव को ब्रह्माजी के कटे कपाल को धारण कर तीनों लोकों का भ्रमण करने को कहा। ब्रह्महत्या की वजह से भैरव काले पड गये। भ्रमण करते हुए जब काल भैरव काशी की सीमा में पहुंचे इस दौरान उनका पीछा कर रही ब्रह्महत्या काशी की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकी। ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने पर कालभैरव प्रसन्न हो गये और तभी से काशी की रक्षा मे लग गये।

बड़े से मंदिर परिसर में बाबा की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। माना जाता है कि मार्ग शीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सायंकाल बाबा कालभैरव उत्पन्न हुए हैं। इस दिन को बाबा के जन्मोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान बाबा की प्रतिमा का कई प्रकार के सुगन्धित फूलों से आकर्षक ढंग का श्रृंगार किया जाता है। इसी दिन को ही भैरवाष्टमी भी कहते हैं और इनकी वार्षिक यात्रा भी होती है। एक पैर पर खड़े बाबा कालभैरव काशी के दण्डाधिकारी हैं। प्रत्येक मंगलवार को बाबा कालभैरव के दर्शन-पूजन का विशेष विधान है। इस दिन काफी संख्या में भक्त दर्शन करने बाबा दरबार में पहुंचते हैं। वाराणसी में नियुक्त होने वाले तमाम बड़े प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारी सर्वप्रथम बाबा विश्वनाथ एवं काल भैरव का दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं। कालभैरव का मंदिर प्रातःकाल 5 से दोपहर डेढ़ बजे तक एवं सायंकाल साढ़े 4 से रात साढ़े 9 बजे तक खुला रहता है। माना गया है कि बिना कालभैरव के दर्शन के बाबा विश्वनाथ के दर्शन-पूजन का फल प्राप्त नही होता है।

दुर्गा मंदिर वाराणसी में जहां हर गली मोहल्ले में शिव मंदिर स्थित हैं वहीं इस पावन भूमि पर कई देवी मंदिरों का भी बड़ा महात्म्य है। जिनके दरबार में भक्त अपना मत्था टेकते हैं। काशी के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से एक दुर्गा मां का मंदिर दुर्गाकुण्ड के पास स्थित है। गाढ़े लाल रंग के इस मंदिर में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 17600 में रानी भवानी ने कराया था। मान्यता के अनुसार शुम्भ।निशुम्भ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने थक कर दुर्गाकुण्ड स्थित मंदिर में ही विश्राम किया था। मां दुर्गा का यह मंदिर नागर शैली में निर्मित किया गया है। मुख्य मंदिर के चारो ओर भव्य बरामदे का निर्माण बाजीराव पेशवा द्वितीय ने कराया था। कहा जाता है कि मंदिर के मण्डप को भी बाजीराव ने ही बनवाया था। जबकि मंदिर से सटे विशाल कुण्ड का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। मुख्य मंदिर के चारों ओर बने बड़े से बरामदे में नियमित रूप से श्रद्धालु बैठकर मां का जाप करते रहते हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए दो द्वार है। मुख्य द्वार ठीक मां के गर्भगृह के सामने है। वहीं गर्भगृह के बायीं ओर छोटा सा द्वार है। मंदिर में स्थित भद्रकाली मंदिर के पास यज्ञकुण्ड है। जहां नियमित रूप से यज्ञ होता है। मां दुर्गा के इस मंदिर में नवरात्र में दर्शन के लिए दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है। मां दुर्गा का यह प्रसिद्ध मंदिर प्रातःकाल 4 से रात 10 बजे तक खुला रहता है। जबकि आरती सुबह साढ़े 5 बजे एवं रात्रि साढ़े 9 बजे मन्त्रोच्चारण के बीच सम्पन्न होती है।

नये विश्‍वनाथ मंदिर: शिव की नगरी काशी में महादेव साक्षात वास करते हैं। यहां बाबा विश्वनाथ के दो मंदिर बेहद खास हैं। पहला विश्वनाथ मंदिर जो 12 ज्योतिर्लिंगों में नौवां स्थान रखता है, वहीं दूसरा जिसे नया विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर काशी विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित है। इस मंदिर की स्‍थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी, पंडित जी ने ही बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय को स्‍थापित किया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। 252 फीट ऊंचे इस श्राइन की नींव मार्च, 1931 में रखी गई थी और इसे पूरा होने में लगभग तीन दशक लग गए थे। यह पूरा मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है जो हु-ब-हु असली विश्‍वनाथ मंदिर की कॉपी है। असली विश्‍वनाथ मंदिर भी काशी में ही स्थित है, जिसे मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर ने नष्‍ट कर दिया था।  नया विश्‍वनाथ मंदिर एक बड़ा परिसर है। इस परिसर में सात मंदिर है जिनमें कई देवी - देवताओं की मूर्तियां स्‍थापित की गई है। मंदिर के ग्राउंड फ्लोर में भगवान शिव को समर्पित मंदिर है जबकि पहले फ्लोर में लक्ष्‍मी नारायण और दुर्गा मां का मंदिर है।  इस मंदिर की अनूठी विशेषता, सफेद संगमरमर से बना लंबा शिखर है। मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है। मंदिर की भीतरी दीवारों में गीता और अन्‍य महत्‍वपूर्ण धर्मग्रन्‍थों के श्‍लोक व विचार उत्‍कीर्ण किए गए है।

संकटमोचन मंदिर : काशी प्रवास के दौरान रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने आराध्य हनुमान जी के कई मंदिरों की स्थापना की। उनके द्वारा स्थापित हनुमान मंदिरों में से एक संकटमोचन मंदिर भक्ति की शक्ति का अदभुत प्रमाण देता है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को देखकर ऐसा आभास होता है जेसै साक्षात हनुमान जी विराजमान हैं।

मान्यता के अनुसार तुलसीघाट पर स्थित पीपल के पेड़ पर रहने वाले पिचास से एक दिन तुलसीदास का सामना हो गया। उस पिचाश ने तुलसीदास को हनुमानघाट पर होने वाले रामकथा में श्रोता के रूप में प्रतिदिन आने वाले कुष्ठी ब्राह्मण के बारे में बताया। इसके बाद तुलसीदास जी प्रतिदिन उस ब्राह्मण का पीछा करने लगे। अन्ततः एक दिन उस ब्राह्मण ने तुलसीदास जी को अपना दर्शन हनुमान जी के रूप में दिया। जिस स्थान पर तुलसीदास जी को हनुमान जी का दर्शन हुआ था उसी जगह उन्होंने हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर संकटमोचन का नाम दिया। साढ़े आठ एकड़ भूमि पर फैला संकटमोचन मंदिर परिसर हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित है। दुर्गाकुण्ड से लंका जाने वाले मार्ग पर करीब 3 सौ मीटर आगे बढ़ने पर दाहिनी ओर कुछ कदम की दूरी पर ही मंदिर का विशाल मुख्य द्वार है। मुख्य द्वार से मंदिर का फासला करीब 50 मीटर का है। मुख्य मंदिर में हनुमान जी की सिन्दूरी रंग की अद्वितीय मूर्ति स्थापित है। माना जाता है कि यह हनुमान जी की जागृत मूर्ति है। गर्भगृह की दीवारों पर लिपटे सिन्दूर को लोग अपने माथे पर प्रसाद स्वरूप लगाते हैं। गर्भगृह में ही दीवार पर नरसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित है। हनुमान मंदिर के ठीक सामने एक कुंआ भी है जिसके पीछे राम जानकी का मंदिर है। श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन के उपरांत राम जानकी का भी आशीर्वाद लेते हैं। मंदिर में हनुमान जी की पूजा नियत समय पर प्रतिदिन आयोजित होती है। पट खुलने के साथ ही आरती भोर में 4 बजे घण्ट-घड़ियाल नगाड़ों और हनुमान चालीसा के साथ होती है जबकि संध्या आरती रात नौ बजे सम्पन्न होती है। आरती की खास बात यह है कि सबसे पहले मंदिर में स्थापित नरसिंह भगवान की आरती होती है। मौसम के अनुसार आरती के समय में आमूलचूल परिवर्तन भी हो जाता है। दिन में 12 से 3 बजे तक मंदिर का कपाट बंद रहता है।

तुलसी मानस मन्दिर काशी के आधुनिक मंदिरों में एक बहुत ही मनोरम मन्दिर है। यह मन्दिर वाराणसी कैन्ट से लगभग पाँच कि॰ मि॰ दुर्गा मन्दिर के समीप में है। इस मन्दिर को सेठ रतन लाल सुरेका ने बनवाया था। पूरी तरह संगमरमर से बने इस मंदिर का उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा सन॒ 1964 में किया गया।इस मन्दिर के मध्य मे श्री राम, माता जानकी, लक्ष्मणजी एवं हनुमानजी विराजमान है। इनके एक ओर माता अन्नपूर्णा एवं शिवजी तथा दूसरी तरफ सत्यनारायणजी का मन्दिर है। इस मन्दिर के सम्पूर्ण दीवार पर रामचरितमानस लिखा गया है। इसके दूसरी मंजिल पर संत तुलसी दास जी विराजमान है, साथ ही इसी मंजिल पर स्वचालित श्री राम एवं कृष्ण लीला होती है। इस मन्दिर के चारो तरफ बहुत सुहावना घास (लान) एवं रंगीन फुहारा है, जो बहुत ही मनमोहक है। कहा जाता है कि इस स्थान पर तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की थी। यही कारण है कि इसे तुलसी मानस मंदिर कहा जाता है। यहां मधुर स्वर में संगीतमय रामचरितमानस संकीर्तन गुंजायमान रहता है ।


आज की पोस्ट में इतना ही . अगली पोस्ट में आपको सारनाथ लेकर चलेंगे ।


काल भैरव मंदिर  
काल भैरव मंदिर 


काल भैरव मंदिर 
 




विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित नया विश्वनाथ मंदिर

पंडित मदन मोहन मालवीय 



हाथ से पेंटिंग बनाते छात्र 



नया विश्वनाथ मंदिर 

नया विश्वनाथ मंदिर 




नकलची बन्दर 
हाथ से बनायीं पेंटिंग्स 

दुर्गा मंदिर -पिक्चर गूगल से 


तुलसी मानस मंदिर 



माँ गंगा आरती 

माँ गंगा आरती 

माँ गंगा आरती 







20 comments:

  1. Pardeep AggarwalJuly 23, 2019 2:43 pm

    Nice post. Good information.

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    1. धन्यवाद परदीप अगरवाल जी .

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  2. वाराणसी के प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए आपका साधुवाद. कभी जाना हुआ तो आपका ये लेख मार्गदर्शक का काम करेगा .

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    1. धन्यवाद अजय भाई .

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  3. Nice post with beautiful picture and descriptions. Thanks for sharing.

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    1. धन्यवाद राज साहब .

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  4. Sangeeta BalodiJuly 26, 2019 10:50 am

    बेहतरीन पोस्ट . आनंद आ गया पढ़कर .

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  5. भैया अगर आप अभी भी वाराणसी में हैं तो भारत माता मंदिर , सिगरा जरूर जाएं यह सम्पूर्ण भारत मे एक ही मंदिर है

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    1. धन्यवाद जी . अगली बार बनारस गए तो यहाँ भी अवश्य जायेंगे .

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  6. Vikas ChourasiaJuly 27, 2019 11:05 am

    Lalta Ghat par Nepali Mandir bhi khajuraho ka mini sculpture hai hidden treasure bhi hai Varanasi ka.

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    1. धन्यवाद जी . अगली बार बनारस गए तो यहाँ भी अवश्य जायेंगे .

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  8. बढ़िया जानकारी ! इनमें से कुछ देखे हैं कुछ नहीं देखे ! जो नहीं देखे वो कभी अगली बार मौका मिलेगा तब देखेंगे ! शानदार प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद योगी जी । सुना है वहां ब तो काफी कुछ सुधार भी हो चूका है ।

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  9. बढ़िया यात्रा करा दी।
    बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने इस पोस्ट में।

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  10. प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में विस्तृत जानकारी

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