Table of Contents for केदारनाथ, बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब यात्रा
भाग 3 : गौरीकुंड- केदारनाथ- गौरीकुंड
भाग 4 : गौरीकुंड- चोपटा- जोशीमठ- बद्रीनाथ
भाग 5 : बद्रीनाथ – गोबिंद घाट – घाघंरिया (गोबिंद धाम )
भाग 6 : घाघंरिया - हेमकुंड साहिब - गोबिंद घाट
भाग 7 : गोबिंद घाट – श्रीनगर -ऋषिकेश
भाग 8 : ऋषिकेश – हरिद्वार – अम्बाला
भाग 1 : अम्बाला- पोंटा साहिब - केम्पटी फॉल- ऋषिकेश
बहुत दिनों से केदारनाथ जाने की इच्छा थी। जुलाई 2010 में जब अमरनाथ यात्रा से
लौट रहे थे तभी कुछ मित्रों ने मुझसे कहा की यार सहगल अगले साल कहीं और का
प्रोग्राम बनाओ। मैंने
कहा चलो अगले साल उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा कर के आते हैं। जून में यमुनोत्री,गंगोत्री ,केदारनाथ और बद्रीनाथ
घूम आयेंगे और जुलाई में अमरनाथजी आ जायेंगे। साथियों ने कहा
की दो यात्रा साथ-साथ करना मुशकिल है इसलिए अगले वर्ष अमरनाथ को ड्राप कर देते हैं।
अमरनाथ यात्रा को ड्राप करना मुझे मंजूर नहीं था ।मैं अमरनाथ जी जरूर जाना चाहता
था । बातचीत आई गयी हो गयी ।
अप्रैल 2011 में फिर से बात शुरू हुई की कहाँ घुमने चलें । जब भी हम ग्रुप में जाते हैं तो घुमने-फिरने का प्रोग्राम बनाने, रास्ता व दिन
तय करने,गाड़ी बुक करने आदि की जिम्मेवारी मेरी होती है जिसे बाकी साथियों के साथ विचार विमर्श के बाद अंतिम रुप दे दिया जाता है। इस बार भी काफी विचार विमर्श के बाद यह तय हुआ की जून में उत्तराखंड चार धाम की यात्रा करेंगे और जुलाई में जिसे अमरनाथ जी जाना हो वो चला जाये । मैंने बाकी साथियों से पूछा की जो अमरनाथजी जाना चाहते हों मुझे बता दें ताकि मैं अपने साथ उनका भी रजिस्ट्रेशन करवा दूं । लेकिन सभी ने मना कर दिया । मैंने सोचा चलो पहले उत्तराखंड घूम आयें बाद मैं अमरनाथजी का सोचेंगे इसीलिए मैंने एक अन्य दोस्त को अमरनाथजी यात्रा के लिए दो रजिस्ट्रेशन फॉर्म लेने को बोल दिया ।11 जून 2011 का दिन उत्तराखंड चार धाम की यात्रा के लिए निश्चित किया गया। यात्रा के लिए कुल 8 लोग सेलेक्ट किये गए बाकी 2 -3 लोगो को विन्रमता से मना किया गया ।इन 8 लोगों में से हम चार सहकर्मी थे और दो मेरे बचपन के दोस्त बाकी दो हमारे जानकार थे । एक तवेरा गाड़ी 1 +9
सिटर यात्रा के लिए बुक कर ली गयी । हमने जून का महीना इसलिए चुना था क्योकि इन दिनों पहाडॊं में बारिश की संभावना बहुत कम होती है और भूस्खलन का खतरा भी ।
जिस ट्रेवल एजेंट से हमने गाड़ी बुक की थी उसने यात्रा से 5 -6 दिन पहले फोन पर बताया की उत्तराखंड में भारी बारिश की वजह से काफी भूस्खलन हुआ है और बद्रीनाथ और गंगोत्री के रास्ते बंद हो गए हैं एवं उसकी सभी गाड़ियाँ वहीँ फंसी हुई हैं ।यह समाचार सुनकर हम सब को बहुत चिंता होने लगी और अपना प्रोग्राम अनिश्चित लगने लगा । मैंने इन्टरनेट से बद्रीनाथ और गंगोत्री के कुछ प्रशाशिनिक टेलीफोन नंबर नोट किये और वहां बात की ।उनसे मालूम हुआ की रास्ते बंद तो हुए हैं लेकिन 1 -2 दिन में फिर से खुल जायेंगे। इस खबर से सभी साथियों को संतोष हुआ की यात्रा की उम्मीद अभी बाकी है ।लेकिन ट्रेवल एजेंट नखरे करने लगा कि रास्ते बहुत खराब हैं, मेरी गाड़ी अभी तक वापिस नहीं आई ,गंगोत्री नहीं जाऊँगा , आदि आदि । इसी कशमकश में 2 -3 दिन ओर निकल गए । यात्रा से 3 दिन पहले ट्रेवल एजेंट ने कहा की उसकी गाड़ियाँ वहीँ फंसी हुई हैं आपके जाने तक आ नहीं पाएंगी और जाने से मना कर दिया। बड़ी मुसीबत हो गयी ।क्योंकि जून -जुलाई के महीने में सीजन के कारण, एकदम से 8-10 दिन के लिए से गाड़ी बुक करना बड़ा मुश्किल है और मिलती भी है तो बहुत महंगी। हमारे साथ भी यही हुआ। बारिश की वजह से उत्तराखंड जाने को कोइ भी गाड़ी वाला तैयार नहीं हो रहा था ।बड़ी मुश्किल से दूसरे शहर से एक गाड़ी वाला तैयार हुआ वो भी सिर्फ बद्रीनाथ और केदारनाथ के लिए ।यमुनोत्री ,गंगोत्री का विचार त्यागना पड़ा ।
हमने सोचा की छुटियाँ तो ली ही हुई हैं और हम यमुनोत्री ,गंगोत्री जा नहीं रहे तो क्यों न हम वापसी में हेमकुंड साहेब चलें जो बद्रीनाथ के रास्ते में ही पड़ता है । हेमकुंड साहिब सिखों का एक पूजनीय स्थान है । सिखों के पूज्नीय स्थानों, गुरद्वारों के नामों के आगे साहिब लगा दिया जाता है जैसे हरिमंदर साहिब, हेमकुंड साहिब, आनंदपुर साहिब। गुरुद्वारा को भी कई लोग श्रधा से गुरुद्वारा साहिब कहते हैं। गुरु ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब कहा जाता है।ज्यादा श्रधा दिखानी हो तो साहिब जी भी कहा जाता है। तो दोस्तों आखिर में केदारनाथ,बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब का प्रोग्राम फाइनल हुआ । 11 जून 2011 को सुबह 7 बजे निकलने का तय हुआ।
चूंकि हम लोग ग्रुप में जा रहे थे इसलिये मुझे अब अपने सब साथियों का परिचय आपसे करवा देना चाहिए । इनमे से सिर्फ सतीश हमारे ग्रुप में नया था बाकी सब लोग पिछ्ली अमरनाथ यात्रा में साथ जा चुके थे।
संजीव शर्मा जी : हमारे वरिष्ठ सहकर्मी हैं ।शांत स्वभाव के तथा म्रृदू-भाषी।
अपने काम में काफी दक्ष, सज्जन, द्र्ढ़ निश्चयी एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी। मेरी तरह औसत दरजे के Tracker। मेरे साथ दो बार (2009,2010 ) अमरनाथ जा चुके है।
हरीश गुप्ता जी : मेरे सहकर्मी हैं । वे इस यात्रा के अधिकृत खजांची थे और स्वयं
भू प्रवक्ता भी। पूरी यात्रा में वे अपने परिचितों को फोन पर लगातार स्थिति
की पूरी जानकारी देते रहे और हम सबको पकाते रहे। वे इस यात्रा में समय-सारणी के स्वयं-भू
असफ़ल अध्यक्ष भी थे। कब खाना है, कब पीना है , कब सोना है , कब उठाना है, कब चलना है ,कब रुकना है आदि आदि। काफी बोलते हैं और ऊँचा बोलते हैं
लेकिन उनका दिल बच्चों की तरह निर्मल है। जहाँ एक बार चले जाएँ दुबारा नहीं जाते इसीलिए
हमारे साथ कभी अमरनाथ नहीं गए क्योंकि मेरे संपर्क में आने से पूर्व एक बार अमरनाथ
जी की यात्रा कर चुके हैं।
नरेश सरोहा : ये भी मेरे सहकर्मी हैं। देख्नने में डीले-डाले लगते हैं। धीरॆ- धीरॆ बोलते हैं और
धीरॆ- धीरॆ चलते हैं। पहाड़ों को देखते
ही बीमार हो जाते है। सभी बीमारियॉ जाग उठती हैं लेकिन फिर भी मेरे साथ 2 बार (2009,2010 ) अमरनाथ जा चुके हैं। ये हमारे अन्य सह-यात्री सोनू के जीजा जी हैं ।
राजीव @ सोनू : काफी एक्टिव है और ट्रैकिंग में काफी तेज। एक बार 2010 में हमारे साथ अमरनाथ जी
की यात्रा कर चुके हैं। नरेश सरोहा के साला साहेब। वैसे तो जीजा जी और साले में बहुत बनती है लेकिन पहाड़ पर चड़ते हुए बिलकुल नहीं बनती ।सोनू सबसे आगे चलने वाला और नरेश सबसे पीछे।
शतीश जी: सोनू के दोस्त थे ओर पेशे से व्यापारी । पहली बार हमारे साथ जा रहे थे। उनके बारे मे
ज्यादा जानकारी नहीं थी ,लेकिन धार्मिक पर्विती के लग रहे थे ।
शुशील मल्होत्रा: मेरे बचपन का और प्रिय दोस्त। फिट और एक्टिव, काफ़ी मनोरंजक पर्विती का। मेरे साथ बहुत यात्रा कर चुका है और अमरनाथ यात्रा का स्थाई साथी है ।हमारी आपस में काफी अच्छी समझ है ।एक दुसरे के मन की बहुत सी बातें हम बिना कहे समझ जाते हैं ।
स्वर्ण ऊर्फ़ सीटी : यह भी मेरे बचपन का दोस्त है। तीन बार छोड़कर अमरनाथ यात्रा का स्थाई साथी। काफ़ी कमीना आदमी है। कहीं भी जाना हो , आखिरी वक़्त तक ना मना करेगा ना
ही हाँ ।अगर हम मना कर दें तो ग्रह मंत्रालय से सिफ़ारिश करवा देगा। हाँ करने के
बाद सबसे लेट पहुँचगा, फिर नखरेबाजी। लेकिन हम भी कम थोड़े हैं ,उसके दोस्त है। सारे रास्ते में सभी
चुट्कलो का केन्द्र बिन्दू उसे ही बनाते हैं । वैसे तो इनका अपना बिजनस है लेकिन
यदि कभी गाड़ी को कोई पोलिस वाला रोक ले तो स्वर्ण @ सीटी जी तुरन्त हरियाणा पोलिस के जवान (ASI) बन कर अपना परिचय देतें हैं।
सभी साथियों के परिचय के बाद चलो फिर से यात्रा पर लौट्ते हैं।
हमारा पहली रात ऋषिकेश में रुकने का प्रोग्राम था जो अम्बाला से सीधे सिर्फ 200 किलोमीटर है। यानि की हमारे पास काफी समय था और इसलिए हमने रास्ते में जाते हुए पोंटा साहिब और मसूरी में केम्पटी फॉल जाने का निश्चय किया।इस रास्ते से ऋषिकेश 50 -60 किलोमीटर ज्यादा पड़ रहा था लेकिन दो महत्वपूर्ण स्थान भी कवर हो रहे थे ।सभी लोगों से कहा गया की पहले दिन का लंच घर से लेकर आयें ,इसके अलावा हमने काफी बिस्कुट और स्नैक रास्ते के लिए खरीद लिए ।और आखिरकार 11 जून 2011 , दिन शनिवार आ ही गया । सभी लोग तैयार होकर पहले से निश्चित स्थान पर मिलते रहे और गाड़ी में सवार होते गए lekiलेकिन अभी सीटी साहेब नहीं पहुचे थे । हमने गाड़ी को महेश नगर में रुकवा कर उसका इन्तज़ार
शुरु किया। हम पिछले एक घन्टे से उसे फोन कर रहे थे ताकि वो लेट ना हो जाये और अब तो उसने फोन उठाना भी बन्द कर दिया, घर पर फोन किया तो बताया कि
चले गये हैं, लेकिन गाड़ी पर नहीं पहुचे जबकि
सिर्फ़ 3-4 मिनट का रास्ता था । हमें ( मुझे और सुशील को ) मालूम था कि अभी वो
तैयार नहीं हुआ होगा क्योंकि वो हमारा बचपन से दोस्त है और हम उसकी रग रग से वाकिफ़
हैं। हम सबको काफ़ी गुस्सा आ रहा था, अरे
जब सात लोग एक आठवें की काफ़ी देर इन्तज़ार करेंगें तो गुस्सा आयेगा ही। हमने यह
निर्णय लिया कि यदि वो 8:30 तक नहीं आया तो हम उसे छोड़ कर चले जायेंगे और वो पठठा
पूरे 8:28 पर वहाँ पहुँच गया और वो भी अकेले नहीं ,साथ में अपने 9-10 साल के बेटे
को भी यात्रा के लिये ले आया। हम उसका स्वागत गालियों से करने को तैयार बैठे थे
लेकिन उसके बेटे के कारण वैसा ना कर पाये। लेकिन फिर भी उसका ‘यथायोग्य’ स्वागत
किया गया।
लगभग सुबह 8:30 पर हम अम्बाला से पोंटा साहिब के लिए निकल गए। अम्बाला से पोंटा साहिब की दुरी 100 किलोमीटर है और हम मौज मस्ती करते हुए 10 :30 तक पोंटा साहिब पहुँच गए ।
(पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के दक्षिण में एक सुंदर शहर है।राष्ट्रीय राजमार्ग 72 इस शहर के मध्य से चला जाता है।यह सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल और एक औद्योगिक शहर है। गुरुद्वारा पौंटा साहिब, पौंटा साहिब में प्रख्यात गुरुद्वारा है।सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की स्मृति में पौंटा साहिब के गुरुद्वारे को बनाया गया था। दशम ग्रंथ, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा यहीं लिखा गया था। इस तथ्य की वजह से इस गुरुद्वारे को विश्व भर में सिख धर्म के अनुयायियों के बीच ऐतिहासिक और बहुत ही उच्च धार्मिक महत्व प्राप्त है। )
ड्राईवर ने गाड़ी को गुरुद्वारे के बाहर पार्किंग में लगाया और हम लोग गुरुद्वारे में दर्शन को चले गए ।हम सभी लोग वहां पहली बार गए थे। गुरुद्वारा अंदर से बहुत सुंदर और सजाया हुआ था । वहां माथा टेकने के बाद हलवे का परशाद लिया और पिछली तरफ से बाहर निकले ।गुरुद्वारे के पिछली तरफ यमुना नदी बह रही थी । पूरा घुमने के बाद वापिस गाड़ी पर पहुँच गए । दो चार फोटो खीचने के बाद वापिस गाड़ी में सवार हो गए और अगले लक्ष्य की और चल दिए ।
पोंटा साहिब से बहार निकलते ही एक चाय की दुकान पर गाड़ी रोकी और चाय का आर्डर दिया । क्योंकि सुबह सब ने हल्का नाश्ता किया था और थोडी भूख भी लग रही थी इसलिए बैग से पैक किये हुए परांठे और आचार निकाला और सब शुरू हो गए ।ड्राईवर साहिब को भी परांठे खिलाये ।परांठो के साथ एक चाय कम पड़ गयी इसलिए एक-2 चाय और मंगाई गयी । पेट पूजा करने के बाद मसूरी के कैम्पटी फॉल की और चल दिए। पोंटा साहिब से कैम्पटी फॉल (मसूरी) की तरफ जाने के दो रास्ते हैं । पहला रास्ता NH -7 से हर्बतपुर, देहरादून से जाते हुए मसूरी पहुंचता है । मसूरी से 15 किलोमीटर आगे कैम्पटी फॉल है यानि की कुल दुरी लगभग 100 किलोमीटर । दूसरा रास्ता विकास नगर ,डाक पत्थर ,यमुना पुल होते हुए (SH -123
) सीधा केम्पटी फॉल पहुंचता है। यह दुरी लगभग 70 किलोमीटर है। यही रोड आगे मसूरी चली जाती है । क्योंकि दूसरा रास्ता छोटा था और हमारे लिए नया भी इसलिए हमने इसी रास्ते से जाने का निश्चित किया । गाड़ी शीघ्र ही मैदानी रास्ते को छोड़ कर पहाड़ी रास्ते पर पहुँच गयी और रास्ता धीरे-२ खतरनाक होता गया ।सड़क पर नाममात्र ट्रैफिक था और सड़क की हालत काफी ख़राब थी और कुछ जगह तो सड़क की चौडाई केवल एक गाड़ी के लिए ही थी । धीरे-२ चलते हुए आखिरकार, लगभग 2 बजे केम्पटी फॉल पहुँच गए ।
गाड़ी से उतर कर नीचे केम्पटी फॉल की और चल पड़े । इसके लिए लगभग 300 -400 मीटर नीचे उतरना पड़ता है। गर्मीयों की छुटियों के कारण वहां बहुत भीड़ थी । लोग झरने के नीचे नहाते हुए काफी मौज मस्ती कर रहे थे ।झरने के नीचे पानी को रोक कर 2 -2.5 फीट गहरी कृतिम झील बनाई हुई है जिसमे लोग अपने परिवार और साथियों के साथ खूब मस्ती कर रहे थे । हमारा मन भी नहाने को किया लेकिन हम अपना सारा सामान तो ऊपर गाड़ी में ही रखकर आये थे और ऊपर गाड़ी में जाने को कोई तैयार नहीं था , लेकिन इस समस्या का समाधान भी हमें वहीँ मिल गया । वहां कई दुकानदार नहाने के लिए कपडे किराये पर देते है हम सबने भी 10 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से हाफ पैन्ट किराये पर ली और झरने के नीचे नहाने के लिए झील में कूद पड़े ।
जून की गर्मी में ठंडे पानी का झरना , बताने की जरुरत नहीं कि कितनी मस्ती कि होगी ।काफी देर बाद थक कर बाहर निकले और चलने के लिए तैयार हो गए । मैं तो यहाँ पहले भी 3 बार आ चूका था लेकिन हम में से 5 लोग यहाँ पहली बार आये थे।कुछ फोटो के बाद हम लोग वापिस गाड़ी में पहुंचे और चल पड़े ।
थोड़ी दूर चलने के बाद एक अच्छी सी जगह देखकर खाने के लिए रुक गए । नहाने के बाद भूख भी अच्छी लगी हुई थी, सभी लोगों ने अपना-२ खाना निकाला और सबने कई तरह के खाने का आनंद लिया ।खाना खाने के बाद चाय पीने का काम भी निपटा लिया गया और जल्दी से मसूरी की तरफ चल दिए । मसूरी बस स्टैंड के पास काफी जबरदस्त ट्रैफिक जाम था और हमारी गाड़ी एक घंटे से ज्यादा इस में फ़सी रही । काफी मुश्किल से इस ट्रैफिक जाम से निकल कर देहरादून की तरफ निकल लिए और वहां पहुंचते-२ शाम हो गयी और अँधेरा होने लगा ।देहरादून से सीधा ऋषिकेश की सड़क पकड़ी और गाड़ी भगा ली । देवपर्याग की तरफ जाने वाली सड़क पर ऋषिकेश में लक्ष्मन झूले के पास पुलिस बैरियर है जहाँ रात 8 बजे गेट बंद कर दिया जाता है उससे आगे नहीं जाने दिया जाता । हम लोग लेट हो रहे थे और काफी कोशिश के बाद भी 8:45 पर ही वहां पहुंच सके ।
ऋषिकेश में लक्ष्मन झूले के पास पुलिस बैरियर से लगभग 4 किलोमीटर आगे महामंडलेश्वर स्वामी दया राम दास जी महाराज का ब्रह्मपुरी नाम से आश्रम है। हमारा वहीँ रुकने का प्रोग्राम था , लेकिन पुलिस वाले हमे आगे नहीं जाने दे रहे थे । मैं अपनी कंपनी का सरकारी पहचान पत्र साथ ले गया था । उन्हें वो कार्ड दिखाया और भरोसा दिया की हम ब्रह्मपुरी आश्रम ही जा रहे हैं ,उससे आगे नहीं जायेंगे । काफी विनती के बाद पुलिस ने हमे जाने दिया ।ब्रह्मपुरी आश्रम, जाते हुए सड़क के दायीं तरफ गंगा मैया के किनारे बना हुआ है । क्योंकि सड़क काफी उचाई पर है और आश्रम काफी नीचे, दिन की रौशनी में भी आश्रम सड़क से दिखता नहीं है सिर्फ एक साइन बोर्ड सड़क पर लगा हुआ है । अँधेरे की वजह से और दिक्कत हो रही थी । हम में से सिर्फ मैं ही पहले वहां एक बार आश्रम गया था इसलिए सभी मुझ पर चिल्ला रहे थे " अबे कहाँ ले कर आ गया है जंगल में। कहीं आश्रम दिख भी रहा है?" गाड़ी से उतर कर सड़क के किनारे कुछ लोकल लोग बैठे थे , उनसे पूछा, उन्होंने बताया की थोडा सा ही आगे है और इस तरह भटकते -२ , रात लगभग 9:00 बजे आश्रम पहुँच गए । महाराज जी आश्रम पर ही थे उनसे जाकर मिले ,अपना परिचय दिया और रुकने की विनती की । तुरंत ही हमें दो कमरे मिल गए और आदेश मिला की सामान कमरों में रखकर तुरंत खाना खाने के लिए पंगत में पहुँचो । हमें ज्यादा भूख नहीं थी क्योंकि लंच लेट ही किया था फिर भी परसाद समझकर खाना खाकर आये । कमरों से 40-50 सीढ़ी नीचे की तरफ़ गंगा मैया जी बड़े शांत भाव से बह रही थी ।हम सभी लोग स्नान करने के लिए वहां पहुंचे और सबने श्रदा-पूर्वक गंगा जी में जी भर कर स्नान किया ।मेरे ,शुशील और सीटी
के अलावा बाकी सभी लोगों का गंगा जी में स्नान का पहला अवसर था। स्नान के बाद हम सब कमरों में आये और थोड़ी देर में सो गए।
भाई वाह , फोटो तो बहुत अच्छी हैं ही पर इतनी अच्छी हिंदी में लिखे लेख कम ही पढने को मिलते है।
ReplyDeleteबहुत ख़ुशी होती है। इस बार भी क्या अमरनाथ जाने का इरादा है।
dhanyvad.
Deletenice post .
ReplyDeleteVery nice info given in this blog. We offer complete, cost effective and customized tour packages
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