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जंगल चट्टी पहुँचते – पहुँचते गुप्ता जी हाँफने लगे
और रुक रुक कर चलने लगे जिससे काफ़ी पीछे हो गये। असली समस्या जो यात्रियों को थकाती है वो होता है उनका सामान, यदि आपको दिन के दिन वापिस आना हो तो किसी भी सूरत में सामान को नहीं ढोना चाहिए। यदि आप एक रात ऊपर केदारनाथ में रुकते है तो
भी ज्यादा सामान नहीं ले जाना चाहिए। हम रुकते चलते रामबाडा जा पहुँचे। रामबाडा केदारनाथ यात्रा का मध्य विश्राम
स्थल है यहाँ तक आना यानि 14 किमी में से 7 किमी की यात्रा समाप्त हो गयी है। रामबाडा में थोड़ा रुकने और खाने-पीने के बाद हम आगे की यात्रा पर चल दिये। कई मोड चढने
के बाद हम गरुडचट्टी नाम की जगह जा पहुँचे। यहाँ से केदारनाथ
का सफ़र थोड़ा आसान शुरु हो जाता है।
भाग 3: गौरीकुंड- केदारनाथ- गौरीकुंड ( Kedarnath Yatra )
दूसरे
दिन सुबह अंधेरे में ही उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर और तप्त कुंड में स्नान कर
एक दुकान में चाय-नाश्ता किया। पिट्ठू लाद कर सूर्योदय से काफी पहले ही गौरी कुंड
से केदारनाथ को चल पडे। हमें दिन के दिन ही वापिस आना था यानी कि कुल 28 किलोमीटर चलना था। हममें से
अधिकतर एक महीने में 28 किलोमीटर चलने वाले थे। उजाला होने तक करीब 2 कि.मी. चढ़ाई
चढ़ ली थी। रास्ते में अन्य यात्री भी मिल रहे थे। शुरु में तो सभी एक साथ ही चल रहे थे लेकिन धीरे
– धीरे सभी आगे पिछे हो गये।
गुप्ता जी रोज सुबह 5-6 किलोमीटर की सैर करते हैं और काफ़ी व्यायाम भी इसीलिए गुप्ता जी सबसे आगे चल रहे थे और सरोहा जी सबसे पिछे। हम सब ने रामबाड़ा
मिलने का निश्चित किया था कि जो भी पहले वहाँ पहुँचेगा, रुक कर बाकी साथियों का
इन्तज़ार करेगा.
मंदाकिनी नदी |
मैं थोड़ा आराम करते हुए |
“ पैदल रास्ते के साथ-साथ
मंदाकिनी नदी शोर मचाती हुई हर पल आकर्षित करती है, जिसका स्वच्छ, धवल रूप और चंचल
गति यात्रियों को थकान महसूस नहीं होने देते। इसके साथ ही घना प्राकृतिक जंगल है,
जो पेड़-पोधों की विविध प्रजातियों से युक्त है। रास्ते में पड़ने वाले झरने रुकने
व एकटक निहारने को मजबूर कर देते हैं। गौरीकुंड से 3 किमी. पर जंगल-चट्टी है, जिसके
आगे रामबाड़ा व गरुड़चट्टी पड़ते हैं। ये चट्टियाँ यात्रियों के लिये विश्राम स्थल
हैं। यहाँ थोड़ा रुकिये, सुस्ताइये, चाय-पानी पीजिये, खाना खाइये और फिर नई
स्फूर्ति के साथ पुनः चल पड़िये। खाने-पीने की चीजें महंगे दाम पर मिलती हैं,
क्योंकि ढुलाई के कारण लागत बढ़ जाती है। स्थानीय खाद्य पदार्थों की उपलब्धता नहीं
के बराबर है, जबकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बनाये खाद्य व पेय पदार्थ खूब दिखते
हैं। पवित्रतम नदियों के किनारे यात्रियों को मिनरल वाटर खरीदते देखना आश्चर्यजनक
लगता है। यह उनकी मजबूरी है या शौक, पता नहीं ? छोटे खच्चरों की संख्या हजारों में
है। इससे भी बड़ा खतरा रहता है संकरे रास्ते पर इनकी भीड़भाड़ में टक्कर/ठोकर खाकर
गहरी खाई में गिरने का। दुर्घटनायें होती रहती हैं। धनवान यात्रियों के लिये
केदारनाथ के लिये हैलीकॉप्टर की सुविधा भी उपलब्ध है। गौरीकुंड से पैदल केदारनाथ
पहुंचने में जहाँ 7-8 घंटे लग जाते हैं, हैलीकॉप्टर से सिर्फ
25 मिनट ”।
गरुडचट्टी
यात्रियों को कई किमी दूर से दिखाई देती रहती है। थोड़ा आगे जाने पर एक बार फ़िर
साँस फुलाने वाली चढाई आ जाती है। इस चढाई के बाद केदारनाथ की आबादी शुरु होती
है। सुबह के 11 बजे जब मैं और शुशील वहाँ पहुँचे, सोनु और सतीश एक चाय की दुकान पर बैठे हमारा इन्तज़ार कर रहे
थे, वो हमसे 15-20 मिनट पहले ही वहाँ पहुँच गये थे। अब हम चारों, बाक़ी लोगो का इंतजार करने लगे और थोडी देर बाद सीटी अपने बेटे
के साथ पहुँच गया, फिर शर्मा जी, गुप्ता जी और सबसे आखिर में सरोहा जी। सबके एकठ्ठा होने के बाद
हमने चाय पी और मन्दिर की तरफ़ चल दिये। जिसका हम काफ़ी देर से इन्तजार कर रहे थे
वो बाबा केदार का मन्दिर हमारी आँखों के सामने था।
समुद्र
तल से 3,583
मी. की ऊँचाई पर स्थित केदारनाथ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है । मार्ग में
जगह-जगह छितरे बुग्याल,
साथ बहती कलकल नदियों का स्वर
आह्लादित करता है। उस पर जड़ी-बूटियों की सुगंध से भी तीर्थयात्री रूबरू होते हैं।
केदारनाथ
पहुँचकर सबसे पहले मंदिर के समीप हमने
अपने-अपने जूते एक दुकान पर रख दिये
वहाँ से पूजा के लिये प्रसाद
लिया। हाथ-मुँह धोकर सीधे मंदिर की ओर
चल पडे। पूजा सामग्री से सजी हुई दुकानों की लंबी कतारों के बीच संकरी, सीधी गली से मंदिर
की तरफ कदम बढ़ाये। मंदाकिनी के तट पर स्थित 10वीं से 12वीं शताब्दी ई. के बीच
निर्मित यह मंदिर बहुत भव्य लगता है। सुंदरता से तराशे हुए पत्थरों के कारण और
इससे भी बढ़कर हिमाच्छादित पर्वत शिखरों की पृष्ठभूमि के कारण। मई-जून में यहाँ
दर्शनार्थियों की लंबी कतारें होना आम बात है।
हम आधा घंटे लाइन में लगने के बाद लगभग 12 बजे मन्दिर के गर्भगृह में उपस्थित थे। मंदिर के गर्भ गृह में एक प्राकृतिक शिला है। इसे ही शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। तीर्थ-पुरोहित ने शिवलिंग में दिखने वाली माँ पार्वती और गणेशजी की आकृतियों की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित किया। पंडों की लोभ प्रवृति और आम तथा विशिष्ट दर्शनार्थियों के बीच भेदभाव केदारनाथ में भी नजर आया। लेकिन भगवान के दर्शन करके मैंने महसूस किया कि मैं अत्यन्त सौभाग्यशाली हूँ। हम सबने तसल्ली से पूजा की। इस तरह हमारा यह सफ़र मंजिल पर पहुँचा।
रास्ते में एक झरना |
बर्फ़ली चोटियाँ के नीचे दिखते रामबाड़े के बाजार |
मैं रामबाड़े के पास |
कल-कल बहती मंदाकिनी नदी |
केदारनाथ मन्दिर
केदारनाथ मन्दिर
केदारनाथ मन्दिर |
केदारनाथ मन्दिर |
“ केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड
राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में
केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार
में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह
के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस
मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय
द्वारा करवाया गया था। साथ ही यह भी प्रचलित है कि मंदिर का जीर्णोद्धार जगद्गुरु
आदि शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर के पृष्ठभाग में शंकराचार्य जी की समाधि है।
महिमा व इतिहास
केदारनाथ की बड़ी महिमा है।
उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का
बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के
दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और
केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन
मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।
इस मन्दिर की आयु के बारे में
कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण
तीर्थयात्रा रहा है।
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती
है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति
पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन
लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां
नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को
दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे।
दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।
भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले।
पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर
फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने
को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान
होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर
पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर
पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के
रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल
के रूप में अंतध्र्यान हुए, तो उनके धड से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब
वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि
मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री
केदारनाथ को पंचकेदारकहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
दर्शन का समय
केदारनाथ जी का मन्दिर आम
दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 6:00 बजे खुलता है।दोपहर तीन बजे विशेष पूजा ,सफ़ाई और
उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।पुन: शाम 5 बजे जनता के
दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है।पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत
श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है।रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर
ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से
ढँक जाती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला
जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक
संक्रान्ति से दो दिन पूर्व) बन्द हो जाता है और वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद
कपाट खुलता है।ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया
जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं”।
दर्शन करने के बाद लिया गया फ़ोटो |
बादलों से ढ़की हुई गरुडचट्टी |
दर्शन करने के बाद लिया गया फ़ोटो |
केदारनाथ
जी का दर्शन करने के बाद हमने वहाँ पर मौजूद कई भोजनालयों में से एक पर खाना खाया
और वापिस गौरी कुंड की ओर चल पडे । वापिस उतरते समय अभी हम केदार नाथ से निकले ही
थे कि मौसम खराब होना शुरू हो गया और बादलों के झूण्ड इधर उधर मँडराने लगे । जिस
जगह से हम उतर रहे थे वहाँ बादल काफ़ी कम थे लेकिन नीचे की ओर गरुडचट्टी बादलों के
कारण बिल्कुल दिखाई नहीं दे रही थी यानी की हम बादलों से भी ऊपर चल रहे थे। मुझे
हिन्दी फ़िल्म का वो गाना याद आ गया ‘आज मैं ऊपर , आसमान नीचे…’
। थोड़ी ही देर बाद
हम बादलों का सीना चीरते हुए गरुडचट्टी पहुँच गये और काफ़ी देर तक बादलों में चलने
के बाद तेजी से नीचे की ओर उतरते गये। थोड़ा और नीचे उतरने के बाद फिर से मौसम
साफ़ हो गया।
जै भोले की………
वैसे
तो पहाड़ों में उतरना व चढ़ना दोनों कठिन होता है लेकिन उतरते हुए साँस नहीं फूलता।
उतरते हुए, तेजी के कारण
घुटनों पर ज्यादा जोर पड़ता है और नस खिंचने की सम्भावना भी बड़ जाती है। यदि एक ही दिन चढ़ना व उतरना हो तो नस खिंचने की सम्भावना और
ज्यादा हो जाती है इसलिये मैं उतरते हुए ज्यादा सावधान रहता हुँ क्योंकि काफ़ी बार
अमर नाथ यात्रा में उतरते हुए मेरी टांगो की नस खींच चुकी है ।
इस
तरह आपस में बातचीत करते ,
आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का नज़ारा लेते हुए, सुन्दर घाटियों को निहारते हुए हम बिना
रुके तेजी से नीचे की ओर उतरते चले गये और लगभग शाम 7 बजे गौरी कुंड पहुँच गये।
अपने कमरे में पहुँच कर थोड़ी देर आराम किया और फिर हम सब गौरी कुंड (तप्त कुंड) में
नहाने गये। आराम से नहा धो कर वापिस कमरे पर आये। गरम पानी में नहाने के बाद थकान
काफ़ी कम हो गयी थी। नहाने के बाद सभी लोग कमरों में आराम कर रहे थे और मुझे अचानक
कँपकँपी महसूस होने लगी और मैं समझ गया कि ज्यादा थकावट के कारण बुखार चढ़ने वाला
है। मैं अपने कमरों के नीचे ही स्थित भोजनालयों में से एक पर खाना खाया और कमरे पर
आकर एक करोसिन की गोली खाकर सो गया। बाकी सब दोस्त भी थोड़ी देर में खाना खाकर आये
और अपने-2 कमरों में सो गये।
जै भोले की………
बहुत बढ़िया नरेश भाई, धीरे-धीरे गलतियाँ भी सुधरती जायेगी।
ReplyDeleteअरे हाँ फ़ोटो का साईज बड़ा करो, बड़े फ़ोटो अच्छे लगते है।
धन्यवाद संदीप भाई .फोटो का साइज़ बड़ा दिया है
ReplyDeleteअति सुन्दर... आपका ये यात्रा वृतान्त मेरे लिए कुछ ज्यादा ही ख़ास है। रामबाड़ा, गरुड़ चट्टी सब याद आ गया फिर से। और हाँ वो ज्यादा चलने के बाद कंपकंपी और बुखार आना तो मेरे साथ हर ट्रैक पर रोजाना होता है। :)
ReplyDeleteThanks Beenu Bhai jee.
Deletegood going..
ReplyDeleteTHANKS Sanjeev.
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