Previous part
गोबिंद घाट – श्रीनगर -ऋषिकेश
NEXT PART
गोबिंद घाट – श्रीनगर -ऋषिकेश
सुबह पाँच बजे, सड़क पर गाड़ीयों
की आवाज़ सुनकर नींद टुट गयी और जब हम उठकर बैठे तो देखा कि शुशील और सीटी भी हमारे
पास सो रहे थे। असल में रात में ज्यादा बारिश से उन पर बौछार पड़ने से वो जब भीगने
लगे तो हमें ढूढ़ते हुए यहाँ पहुँच गये और हमारे साथ सो गये थे। हम चारों उठकर
अपनी गाड़ी पर पहुँचे और बाकी सब साथियों और ड्राईवर को उठाया। अभी यहाँ कोई भी दुकान नहीं खुली थी इसलिये 10 मिनटों बाद ही
जोशीमठ की ओर निकल दिये और ड्राईवर को बोल दिया कि रास्तें में जो भी चाय की दुकान
खुली मिले वहीं गाड़ी रोक देना। जोशीमठ से पहले कोई भी दुकान खुली
नहीं मिली और हम जोशीमठ से भी आगे निकल गये और आखिरकार हमें एक जगह दो-तीन चाय की
दुकाने इकठ्ठी खुली मिल गयी। ड्राईवर ने गाड़ी को साइड में लगा दिया और हम गाड़ी से
बाहर निकले, जल्दी से चाय का आर्डर देकर, सभी लोग ब्रश वगैरह करने में वयस्त हो
गये। चाय व बिस्कुटों का नाश्ता करने के बाद फिर से रुद्रप्रयाग की ओर चल दिये।
पिपलाकोटी पहुँचकर ड्राईवर ने
गाड़ी को एक गाड़ी रिपेयर की दुकान के आगे रोक दिया और पूछने पर बताया कि गाड़ी की
ब्रेक में कुछ दिक्कत है और ठीक करवाना जरुरी है। दुकान वाले ने बताया कि गाड़ी ठीक
करने में आधा घंटा लग जायेगा। हम लोग आस-पास घुमते रहे और पहाड़ों की सुन्दरता को
निहारते रहे। गाड़ी ठीक होने के बाद फिर से रुद्रप्रयाग की ओर चल दिये। सभी लोग
काफ़ी थके हुए थे और रात को ठीक से सोये भी नहीं थे इसलिये सभी लोग गाड़ी में झपकियॉ
लेते रहे । बाहर काफ़ी गर्मी हो रही थी और उसके कारण हमें गाड़ी में भी गर्मी लग रही
थी। हमने ड्राईवर को बोल दिया कि रास्तें में कहीं भी झरना दिखे तो वहीं गाड़ी रोक
देना, अब नहाना जरुरी हो गया है। रुद्रप्रयाग से थोड़ा पहले ही एक झरना मिला और
वहीँ ड्राईवर ने गाड़ी रोक दी और इससे पहले कि हम अपना सामान खोलकर कपड़े निकाल कर नहाने
जाते , ड्राईवर जल्दी से नहाने चला गया और उसके आने के बाद गुप्ता जी को छोडकर ,हम
सब लोग भी नहाने को चल दिये। गुप्ता जी की आँखों में दर्द था जो हेमकुन्ड आने के
बाद से लगातार हो रहा था और जो शायद सुर्य की तीखी किरणों के बर्फ़ पर पड़ने के बाद
निकलने वाली चमक के कारण था।
अलक्नन्दा |
झरने के नीचे तसल्ली से नहाने के
बाद सभी लोग काफ़ी तरोताजा महसूस कर रहे थे। गाड़ी में बैठकर फिर से वापसी यात्रा
शुरु कर दी और थोड़ी ही देर में हम श्रीनगर पहुँच गये। श्रीनगर पहुँच कर वहाँ
मौजुद एक गुरुद्वारे में लंगर खाने का निश्चय किया। गुरुद्वारा काफ़ी विशाल है और
हेमकुन्ड आने-जाने वाले यात्रियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण विश्राम स्थल है।
गुरुद्वारे में बहुत से हेमकुन्ड यात्री थे, कुछ लोग दर्शन को जा रहे थे और कुछ
लोग दर्शन करने के बाद वापिस लौट रहे थे। हमने भी वहाँ लंगर छका (खाया) और फिर चाय
पी। लगभग तीन बज चुके थे और हम ऋषिकेश की ओर निकल दिये। रास्ते में एक बार
रुद्रप्रयाग में चाय के लिये गाड़ी रुक्वाई और फिर से यात्रा जारी
रखी।अब हम लोग ऋषिकेश में रात रुकने का प्रोग्राम बनाने
लगे। सीटी आज रात ही अम्बाला चलने को कहने लगा लेकिन इस बात को किसी का समर्थन
नहीं मिला क्योंकि मुझे,शुशील और सीटी को छोड़कर अन्य लोग पहली बार ऋषिकेश-हरिद्वार
आये थे और यहाँ घुमना चाहते थे और दूसरा कारण ड्राईवर भी सुबह 6 बजे से गाड़ी चला रहा था और उसका आराम करना भी जरुरी था और यदि आज ही अम्बाला
निकलते तो ड्राईवर को बिना रुके कम से कम पाँच-छ: घंटे और
गाड़ी चलानी पड़ती। इसीलिए यह निर्णय लिया गया कि आज रात को ऋषिकेश में उसी
जगह रुकेंगे जहाँ जाते हुए रुके थे और शाम को ऋषिकेश घूमने जायेंगे और यदि किसी को
जल्दी अम्बाला पहुँचना हो तो उसे ऋषिकेश बस- स्टैंड पर
उतार देंगे और वहाँ से वो बस पकड़ सकता है । ऐसा सुनकर किसी ने भी आज ही अम्बाला चलने की बात नही की। इस तरह बातचीत करते हुए लगभग छ: बजे हम ब्रह्मपुरी आश्रम पहुँच गये।
वहाँ जाकर कमरा लिया और सारा सामान कमरे पर रखकर गाड़ी में ऋषिकेश घुमने चले
गये।
“उत्तराखंड का प्रवेश द्वार, ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। हरिद्वार से मात्र 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऋषिकेश विश्व प्रसिद्ध एक योग केंद्र है। ऋषिकेन का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं ”।
ऋषिकेश पहुँच कर हम लक्ष्मण झुले की तरफ़ चले गये और वहाँ एक जगह गाड़ी को
पार्क करने के बाद ,शाम 7:30 तक गाड़ी पर वापिस आना निशचित करके , घुमने निकल गये।
गुप्ता जी हमारे साथ ऋषिकेश तो आये थे लेकिन घुमने नहीं
गये । उनकी आँखे दुखने लगी थी और वो चश्मा लगाकर गाड़ी में ही बैठे रहे। सीटी भी,कल
सुबह हरिद्वार में मिलने को कहकर, हरिद्वार में रहने वाली अपनी मौसी के घर चला गया।
हम लोग लक्ष्मण झुले को पार करके दुसरी तरफ़ गंगा किनारे बने आश्रमों और मन्दिरो में घुमने लगे।
ऋषिकेश,लक्ष्मण झूले व आसपास के मदिंरो की कुछ तस्वीरें
भारी बारिश से बहता पानी |
हनुमान मदिंर |
गगां जी |
गर्मी काफ़ी ज्यादा थी और लग रहा था कि
बारिश होगी। तभी अचानक आसमान काले-2 बादलों से भर गया और हम जल्दी से गाड़ी पर
वापिस जाने लगे और अभी लक्ष्मण झुले को पार ही किया था कि जोर से बारिश होने लगी, जिसको
जो सुरक्षित जगह मिली वो उसी तरफ़ भाग लिया। कुछ लोग किसी दुकान में रुक गये और कुछ
लोग किसी दूसरी जगह्। लगभग 40-45 मिनटों तक जम कर बारिश हुई और इसके कारण सारे शहर
का कचरा बहकर गंगा में जाते देखकर मन बहुत दुखी भी हुआ। जब बारिश थोड़ी हल्की हुई
तो गुप्ता जी के मोबाइल पर फोन करके गाड़ी वहीं बुला ली और भागकर गाड़ी में बैठ
गये और जब चलने लगे तो देखा कि शुशील गायब था,उसका मोबाइल भी बंद मिल रहा था। लगता
था वो बारिश से बचने के लिये किसी दुसरी जगह पर रुका हुआ था तब हम गाड़ी वहीं ले
गये जहाँ पहले ख़ड़ी की थी और उसका इन्तज़ार करने लगे और थोड़ी देर बाद शुशील गाड़ी पर
पहुँच गया। तब तक काफ़ी अन्धेरा हो चुका था और हम वापिस ब्रह्मपुरी आश्रम की तरफ़ चल दिये लेकिन शायद भाग्य को कुछ और मंजुर था।
ऋषिकेश और ब्रह्मपुरी आश्रम के बीच में भारी बारिश की वजह से एक जगह भू-स्खलन हो गया था और रास्ता बंद हो चुका
था।लगभग 100 फ़ीट सड़क पर पूरा पहाड़ी-मलबा बिखरा हुआ था जिसकी मोटाई पहाड़ी की तरफ़
3-4 फ़ीट से लेकर खाई की तरफ़ लगभग 1 फ़ीट तक थी। थोड़ी ही देर में दोनो तरफ़ वाहनों
की लम्बी कतारें लग गयी। हम लोग गाड़ी से उतरकर पैदल ही आगे भू-स्खलन वाले
स्थान की ओर चल दिये लेकिन गुप्ता जी हमारे साथ नहीं गये और वो
गाड़ी में ही बैठे रहे। हेमकुन्ड से आने वाले कुछ मोटरसाइकिल सवार नौजवान यात्रियों
ने ,खाई की तरफ़, सड़क से खुद मलबा हटाना शुरु कर
दिया ताकि उनके मोटरसाइकिल निकलने का रास्ता तैयार हो जाये।उनको
ऐसा करते देखकर बहुत से लोगों ने उनका साथ देना शुरु कर दिया और लगभग आधा
घंटे की मेहनत के बाद मोटरसाइकिल निकलने का रास्ता तैयार हो गया
लेकिन बड़ी गाड़ियाँ अभी भी निकल नहीं सकती थी। एक टाटा विग़ंर ने
निकलने कि कोशिश की और उसकी गाड़ी बीच में ही फ़ंस गयी। तब तक पुलिस भी वहाँ पहुँच
चुकी थी और मालूम हुआ कि जे-सी-बी थोड़ी ही देर में वहाँ पहुँचने वाली है। आधा घंटे बाद भी जब जे-सी-बी वहाँ नहीं पहुँची तो हमने पैदल ही ब्रह्मपुरी आश्रम चलने की सोची
जिसकी दुरी यहाँ से एक किलोमीटर से भी कम थी। हमने सोनु और सतीश को गाड़ी पर भेजा और कहा कि गुप्ता जी को बुला लाओ और ड्राईवर को बोल
देना कि जैसे ही रास्ता खुले वो गाड़ी लेकर आश्रम पर आ
जाये।
थोड़ी देर
बाद दोनों वापिस आ गये और बोले कि हमने आते-जाते हुए सभी गाड़ियाँ
देखी लेकिन हमें अपनी गाड़ी नहीं मिली। ऐसा सुनकर बाकी लोगों ने अन्दाजा लगाया कि गुप्ता
जी गाड़ी लेकर ऋषिकेश के किसी होटल में ठहरने के लिये चले गये होगें।मैं और
शुशील तटस्थ ही रहे क्योंकि वो हमसे पहले ही नाराज़ थे। वहां मोबाईल का नेटवर्क् भी
नहीं था कि उनसे बात हो सके। आखिरकार हम सबने अपने जुते उतार कर हाथ में पकड़ लिये और पैटं को घुटनो तक उपर करके मलबा
पार किया। मलबे के छोटे-2 नुकीले पत्थरों ने पैरों का बुरा हाल कर दिया था। थोड़ी
देर में हम रात लगभग
9:30 बजे आश्रम पर पहुँच गये। आश्रम पहुँच कर हाथ-पैर धोकर लंगर
में खाना खाया। हमारे खाना खाते ही रसोई-घर बंद हो गया और सफ़ाई शुरु हो गयी। हम भी
अपने कमरे में पहुँचकर लेट गये और आपस में बातचीत करने लगे।सभी लोग गुप्ता जी के ना मिलने से
हैरान थे, तभी अचानक गुप्ता जी ने कमरे में प्रवेश किया, और गुस्से से पूछा कि
मुझे वहाँ अकेला छोड़ कर क्यूँ आ गये? हमने उन्हे सब सच बता
दिया जिसे सुनकर वो सोनु और सतीश पर बरसे और उसके बाद शर्मा जी पर्। उनके सारे कपड़े कीचड़ से भरे थे और पूछ्ने पर बताया कि मलबा पार करते
हुए वो मलबे में गिर गये थे और बड़ी मुश्किल से यहाँ पहुचे हैं । उनहोंने सबसे बात
बन्द कर दी और कपड़े बद्लने के बाद भुखे ही सो गये क्योंकि तब तक रसोई-घर बंद हो
चुका था और सब सेवक भी सो गये थे।
NEXT PART
बढिया यात्रा है। पीपलकोटी है नरेश भाई पीपला नहीं। फ़ोटो अब मस्त लगने लगे है।
ReplyDeleteएक दिन में एक पोस्ट ही करो या एक दिन का अन्तराल रखा करो।
dhanyvad sandeep bhai.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteKailash Mansarovar Yatra 2015
ReplyDeleteKailash Mansarovar Yatra.
do not advertise here.
Delete