चोपता, तुंगनाथ,
देवरिया ताल यात्रा-1
यात्रा तिथि -02
अक्टूबर 2015 से 05 अक्टूबर 2015
काफी समय से मेरी तुंगनाथ और देवरिया ताल
जाने की इच्छा थी । वर्ष 2011 में जब केदारनाथ
जी और बद्रीनाथ
जी की यात्रा पर गया था तो केदारनाथ से बद्रीनाथ जाने के लिये, उखीमठ चोपता
होते हुए गोपेश्वर -चमोली जाने वाली सड़क से होकर ही गया था ।तब से इस जगह की
ख़ूबसूरती दिलो दिमाग में छाई हुई थी । उस समय मुझे तुंगनाथ के बारे में मालूम नहीं
था लेकिन जगह की ख़ूबसूरती से इतने प्रभावित हुए थे कि उखीमठ से चमोली के 70
किलोमीटर के रास्ते में ही हम तीन- चार जगह पर रुके थे । जब बाद में मालूम हुआ कि तुंगनाथ -देवरिया
ताल भी इधर ही हैं तभी से यहाँ फ़िर से जाने की इच्छा मन में बनी हुई थी ।
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देवप्रयाग
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इस
बारे में जब जानकारी इकठ्ठी की तो मालूम हुआ की वहां जाने के लिये रुद्रप्रयाग से आगे
दिक्कत हो सकती है । बस सर्विस इस तरफ ज्यादा नहीं है और शेयर्ड जीप का मेरा अनुभव
ज्यादा अच्छा नहीं है । ये गाड़ियाँ जब तक पूरी तरह से न भर जाएँ चलती नहीं है और
कम सवारी होने पर या तो जाने से मना कर देंगे या बहुत ज्यादा पैसे मांग लेते हैं ।
इस दिक्कत को देखते हुए मैंने अपने एक सह्कर्मी सुखविंदर सिंह के साथ बाइक पर चलने
का निश्चय किया । ये मेरी बाइक पर पहली लम्बी यात्रा (लगभग 800 किमी ) होने वाली
थी । इसके बाद तो मैं पराशर लेक और बिजली
महादेव की यात्रा पर भी बाइक से जा चूका हूँ ।
मेरे पास
2004 मोडल TVS विक्टर
और सुखविंदर के पास एक साल पुरानी स्पेलंडर थी। तय दिन- 2 अक्टूबर को सुबह सात बजे
मैं अम्बाला से निकल लिया । अम्बाला से 15 किमी आगे साहा के पास मुझे सुखविंदर भी
मिल गया । यहीं से हमने अपनी-अपनी बाइक की टंकी फुल करवा ली और आगे का सफ़र इकठ्ठे
शुरू किया । हमारा पहला लक्ष्य
ऋषिकेश पहुंचना था और उसके लिये हमने अम्बाला-जगाधरी –पोंटा साहिब –देहरादून वाला
मार्ग चुना । अम्बाला –जगाधरी मार्ग पर अधिक ट्रैफिक होने से हमने दोसड़का से टर्न
ले लिया और हम सडोरा –बिलासपुर –खिजराबाद होते हुए पोंटा साहिब पहुँच गए । अम्बाला
से पोंटा साहिब की दुरी लगभग 115 किलोमीटर है । हमें यहाँ पहुँचने में 10 बज गए । पोंटा
साहिब पहुँच कर पहला ब्रेक लिया । चाय के साथ हल्का नाश्ता लिया ।
सुखविंदर के हेलमेट में कुछ दिक्कत थी और उसका ग्लास
भी बदलवाना था तो पोंटा साहिब में
हेलमेट की दुकान की खोजबीन की गयी । दुकान मिलने के बाद हेलमेट ठीक करवाया गया और
नया ग्लास भी लगवा
दिया । लगभग 11:30 बजे हम पोंटा साहिब से
देहरादून की तरफ़ चल दिए । यहाँ से देहरादून के लिये दो मार्ग हैं ।पहला हर्बटपुर
होते हुए है । पोंटा साहिब- हर्बटपुर- देहरादून- ऋषिकेश नेशनल हाईवे । दूसरा सीधा
निकलता है और इसे शिमला बाईपास रोड भी बोलते हैं। इस पर ट्रैफिक कम है और हम इसी
से चल दिए लेकिन थोड़ी दूर चलने के बाद हमें महसूस हुआ की इस पर आकर गलती कर दी ।
इस मार्ग में गाँव बहुत हैं और हर गाँव के पास काफी स्पीड ब्रेकर । हर दो तीन
किलोमीटर के बाद बड़े बेढ़ंगे स्पीड ब्रेकर बने हुए हैं और इसलिए बाइक की स्पीड नहीं
बन पा रही थी। पोंटा साहिब से देहरादून तक की 55 किलोमीटर की दुरी तय करने में हमें
दो घंटे लग गए ।
देहरादून पहुंचकर
बिना रुके बाईपास रोड से ऋषिकेश की तरफ चलते रहे । यह रास्ता अच्छा बना हुआ है ।
लेकिन एयरपोर्ट तक सड़क पर फोर लेन का काम चालू होने से जगह जगह डायवर्सन बने हुए
थे । ये दिक्कत एयरपोर्ट तक ही हुई । उसके आगे मार्ग शानदार था और हम भी बिना रुके
ऋषिकेश की तरफ बढ़ते गए। ऋषिकेश पहुँचने पर नटराज चौक से बायीं तरफ हो लिये ।यहाँ
से मार्ग ओमकारानंद आश्रम होते हुए राम झूले से काफ़ी आगे निकलता है और बद्रीनाथ
वाले मुख्य मार्ग में मिल जाता है ।इस मार्ग से आप ऋषिकेश के ट्रैफिक से बच सकते
हो।
लक्ष्मण झुला चेक
पोस्ट से तीन किलोमीटर आगे ,सड़क के दायीं तरफ , राम मंदिर ,ब्रहम पूरी नाम से एक
आश्रम है । ब्रह्मपुरी आश्रम, गंगा मैया के किनारे
बना हुआ है ।यहाँ सड़क काफी ऊँचाई पर है और आश्रम काफी नीचे, दिन की रौशनी में भी आश्रम सड़क से दिखता नहीं है सिर्फ एक साइन बोर्ड सड़क
पर लगा हुआ है । मैं यहाँ पहले भी 3-4 बार जा चूका हूँ । मेरी इच्छा थी कि अब वहीं
रुक कर खाना खाया जाये और थोड़ा विश्राम भी
किया जाये क्योंकि पिछले चार घंटे से हम लगातार चल रहे थे । मुख्य सड़क से आश्रम के
लिये तीखी उतराई है । हम दोनों अपनी बाइक से आश्रम पहुँच गए । वहां पहुंचकर
कार्यालय में अपना परिचय दिया और हाल की तरफ चले गए । इस आश्रम के महंत महा
मंडलेश्वर स्वामी दया राम दास जी महाराज जी हैं ।
हम दोनों का खाना मेरे बैग में पैक था । खाना
निकाल कर खाना खाया ,तब तक आश्रम से चाय मिल गयी । चाय पीकर थोड़ा सुस्ताये । फिर
वहां के महंत महा मंडलेश्वर स्वामी दया राम दास जी महाराज जी के मिलने चले गए । पहले
थोड़ा यहाँ के बारे में बता देता हूँ । ये स्वामी दया राम दास जी कथा वाचक भी हैं
और रामायण का पाठ करते हैं। ये प्रति वर्ष अम्बाला के एक मंदिर में रामायण का नव
परायण पाठ करते हैं ( नौ दिनों में समाप्त होने वाला राम चरित मानस का पाठ नव
परायण पाठ कहलाता है ) और इस दौरान लोगों के घरों में सुन्दर कांड का पाठ भी करते
हैं। ये स्वामी जी हमारे घर सुन्दर कांड
पाठ के लिये 4-5 बार आ चुके हैं और इसलिए मेरी इनसे थोड़ी जान पहचान है ।जब हम स्वामी
जी को मिलने गए तो वो अपनी कुटिया में पाठ में तल्लीन थे तो उनको दूर से ही प्रणाम
कर अपनी यात्रा पर निकल लिये ।
हमें यहाँ लगभग एक
घंटा लग गया । अब तक शाम के साढ़े चार बज चुके थे इसलिए हम बिना और देर किये देव
प्रयाग की ओर चल दिए । हमें अपने शुरआती प्रोग्राम के अनुसार आज शाम तक श्रीनगर
पहुंचना था जो अब थोड़ा मुश्किल लग रह था । ऋषिकेश से 32 किमी आगे ब्यासी है । यहाँ
तक राफ्टिंग और अन्य एडवेंचर स्पोर्ट्स के काफी कैंप लगे हुए हैं ।जिस कारण ऋषिकेश
से लेकर ब्यासी तक काफी ट्रैफिक रहता है। यहाँ से आगे देवप्रयाग (35 किमी ) तक ट्रैफिक
कम हो जाता है। ब्यासी से देवप्रयाग तक काफी
खडी चडाई है तो बाइक
का पूरा जोर लगा । बाइक दुसरे गियर में ही चलानी पड़ी । गंगा नदी के साथ साथ
,हरियाली से भरपूर बलखाती सड़क पर बाइक चलाने का आनंद ही कुछ और है । हमारे देवप्रयाग पहुँचने से पहले ही अँधेरा होने
लगा तो हमने श्रीनगर जाने का विचार छोड़ देवप्रयाग में ही रुकने का मन बना लिया ।
देवप्रयाग से पहले ही सड़क पर एक दो होटल हैं ,हम
वहां बिना रुके आगे चले गए । देवप्रयाग के बाज़ार में कोई होटल नहीं दिखा तो आगे बढ़ते
रहे। भगीरथी का पुल पार करने के बाद यु टर्न लेकर आगे एक मोड़ पर बायीं तरफ एक गेस्ट
हाउस दिखा । वहां रुककर बातचीत की और एक कमरा ले लिया । ऑफ सीजन होने के कारण
मात्र 300 रूपये में कमरा मिल गया । जब खाने के बारे में पूछा तो उसने कहा अब खाना
बनाना मुश्किल है आपके अलावा यहाँ और कोई नहीं है ,खाने के लिये पीछे मार्किट जाना
पड़ेगा। हमारी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वापिस लौटकर खाना खाने जाएँ । वहीँ एक दुकान
से फ्रूट ले आये और फलाहार से ही रात के खाने-पीने का प्रबंध कर लिया ।
देवप्रयाग भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक नगर एवं
प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ श्री रघुनाथ जी का मंदिर है, जहाँ हिंदू तीर्थयात्री भारत के कोने कोने से आते हैं। देवप्रयाग अलकनंदा
और भागीरथी नदियों के संगम पर बसा है। इसी संगम स्थल के बाद दोनों नदियों की
सम्मिलित धारा 'गंगा' कहलाती है। प्राचीन हिंदू मंदिर के कारण इस
तीर्थस्थान का विशेष महत्व है। संगम पर होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही
इसका भी नामकरण हुआ है। देवप्रयाग समुद्र सतह से 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और
निकटवर्ती शहर ऋषिकेश से सड़क मार्ग द्वारा 70 किमी० पर है। यह स्थान उत्तराखण्ड
राज्य के पंच प्रयागों में से एक माना जाता है।
आज की पोस्ट में इतना
ही . अगली पोस्ट जल्दी ही .......
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आश्रम |
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आश्रम |
बढ़िया शुरुआत नरेश जी. अगले भाग की इंतजारी में.
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई .
Deleteवाह, यात्रा की शरूआत से ही इतने सुन्दर नज़ारे। बहुत बढ़िया सहगल साहब
ReplyDeleteधन्यवाद ओम भाई जी .
Deleteबहुत अच्छे, मैने देवप्रयाग में ये संगम नहीं देखा है ! वैसे संगम का दृश्य देख कर जाने का मन होने लगता है !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप जी .इस बार जाओ तो संगम जरूर देखना .
Deleteबहुत बढ़िया लेख मजा आ गया
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद जी .
Deleteमनभावन चित्रों के साथ बढ़िया लेख नरेश जी
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश जी .
DeleteNice Post.Beautiful pictures. Location of Ashram is very beautiful.
ReplyDeleteधन्यवाद राज जी ।
Deleteनरेश जी उत्राखंड के यात्रा वृतांत पढने मे बडा आनंद आता है, वही आनंद आपकी यात्रा में आ रहा है, अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा। सुखविंदर पाजी से एक बार मिल चुका हूं बडे ही दोस्ताना व्यक्तित्व वाले इंसान है।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई ।अगली पोस्ट जल्दी ही ।
Deleteभोत बढ़िया, बल्ले बल्ले।
ReplyDeleteधन्यवाद गुरु जी ।💐
Deleteशानदार शुरुआत ...
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी ।💐
Deleteबहुत बढिया साब.जी
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल जी ।
Deleteसहगल जी सचमुच यात्रा जितनी मजेदार थी आपकी लेखनी उससे भी सर्वोत्तम है।
ReplyDeleteधन्यवाद सुखविन्दर जी ।
Deleteप्रिय नरेश भाई ! अब तो आपकी लेखन शैली का मुरीद होने लगा हूं! ऐसा लगता है कि जैसे मैं भी आपके साथ ही यात्रा कर रहा हूं। विस्तृत जानकारी देकर आप अपने लेख को भविष्य के यात्रियों के लिये मार्गदर्शक बना देते हैं! बस, जैसे खाने के बाद कुछ मीठा चाहिये होता है, ऐसे ही कुछ थोड़ा सा हास्य डाल देते तो राम जी भली करते! पर चलो, कोई नी! अच्छी फोटुएं देख कर ही मन खुश हो गया।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशान्त जी ।अगली पोस्ट में मीठा परोसने की पूरी कोशिश रहेगी ।💐
Deleteबेहतरीन तस्वीरों के साथ साथ सरल और सहज शब्दों में वर्णित पोस्ट ।जय भोलेनाथ जी। Eagerly waiting for next.
ReplyDeleteधन्यवाद जी ।।💐
Deleteआपकी और सुख जी जोड़ी सही है ।ऐसे मित्र बहुत कम मिलते है ।यात्रा लेख सदैव की भाँति जानकारी युक्त है ।संगम का फ़ोटो मस्त लग रहा है । अगली मीठी पोस्ट का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद किशन जी.
Deleteदेवप्रयाग एक शांत और रमणीक स्थान तो है ही , संगम इसे और भी खूबसूरत बना देता है ! जय गंगा मैया
ReplyDeleteजी सहमत, संगम देवप्रयाग का एक बड़ा रमणीक स्थल है .जय गंगा मैया.
Deleteनरेश जी,बहुत आनन्द आ रहा है पढ़कर ,अभी हम भी इसी रास्ते से गुजरे हैं तो वो ही सब फिर से याद आ गया।वीर तुम बढे चलो।जय गंगे मैया।
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश जी .बड़े दिनों में आये हो ..स्वागत है .
Deleteबहुत अच्छा लेख,पढ़ कर मजा आया......आगामी लेख का इन्तजार रहेगा
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी. ब्लाग पर आपका स्वागत है .
Deleteपचास कमेंट पूरे 😃
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुदेव .
Deleteएक बढ़िया यात्रा का प्रारंभ, अब आगे की पोस्ट पढते हैं
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी .
Deletenice clicking
ReplyDeletethanks..
Deleteबहुत शानदार प्रस्तुति भाई जी
ReplyDeleteधन्यवाद विवेक जी। ब्लॉग पर आपका स्ववागत है।
Deleteब्लॉग पढ़ा, फोटो बहुत ही सुन्दर ली गयी हैं, आप ऐसे ही जानकारी बढ़ाते रहें और बांटते रहे, शुभकामनाओं सहित
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिंस ..
Deleteभाई जी आपकी पोस्ट पढने में बढ़िया भी बहुत लगी और जाने के लिए जानकारी भी उम्दा मिली
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील मित्तल जी . ब्लॉग पर आपका स्वागत है .
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