चोपता, तुंगनाथ, देवरिया ताल यात्रा-2 (देवप्रयाग से चोपता )
यात्रा तिथि -03 अक्टूबर 2015
देवप्रयाग में जिस गेस्ट हाउस में हम ठहरे थे वो संगम के ठीक ऊपर काफी ऊंचाई पर बना हुआ है । रात को तो अँधेरा हो
जाने के कारण हम यहाँ से संगम देख नहीं पाए थे। । सुबह उठकर जब बाहर निकल कर देखा वहीँ से संगम दिख रहा था। अलकनंदा और भागीरथी
,दोनों नदियों काफी शोर करते हुए बह रही थी । मंद मंद बहती शीतल हवा के बीच आसपास
का नज़ारा बेहद हसीं लग रहा था ।
थोड़ी देर बाहर टहलने के बाद कमरे पर जाकर जल्दी से तैयार हो गए। अभी गेस्ट हाउस में दूध नहीं आया था तो चाय उपलब्ध नहीं थी इसलिए हम
6:30 ही बजे होटल से निकल लिये । चलने से पहले उनका नंबर ले लिया ताकि यदि
वापसी में यहाँ रुकने का प्रोग्राम बना तो पहले ही फोन
कर देंगे । बाहर निकल कर पहले एक चाय की दुकान से चाय पी और
फ़िर श्रीनगर की और चल पड़े । देवप्रयाग से श्रीनगर की दुरी 35
किलोमीटर है । सड़क शानदार बनी है , अधिक चढाई -उतराई
नहीं है । अलकनंदा के साथ साथ बलखाती सड़क पर दोनों बाइक
भागी जा रही थी, सुबह का समय होने के कारण सड़क पर ट्रैफिक भी नाममात्र ही था । इस समय काफी ठंडी हवा बह रही थी इसलिए थोड़ी ही देर बाद हमें बाइक रोककर
अपनी-अपनी जैकेट पहननी पड़ी ।
देवप्रयाग से श्रीनगर के बीच अलकनंदा के काफी खूबसूरत दृश्य देखने को
मिलते हैं । कई जगह तो अलकनंदा काफी चौड़ी घाटी बना कर बहती है । हम भी बार बार रूककर इन दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे । अपने वाहन पर होने का यह बड़ा फायदा रहता है की जहाँ भी दिल करे या जहाँ
भी अच्छा नज़ारा देखने को मिले तुरंत गाड़ी रोककर आप उन दृश्यों /पलों का आनंद ले
सकते हो। हम भी इन खूबसूरत नजारों का आनंद लेते हुए
श्रीनगर पहुँच गए । देवप्रयाग से श्रीनगर के बीच अलकनंदा काफी देर तक दायीं तरफ ही बहती है लेकिन श्रीनगर से थोड़ा पहले कीर्तिनगर के
पास एक पुल को पार करने के बाद सड़क दायीं तरफ हो जाती है और अलकनंदा बायीं तरफ । इससे आगे रुद्रप्रयाग
तक ये बायीं तरफ ही रहती हैं ।
हमें श्रीनगर पहुँचने में एक घंटे से भी ज्यादा
का समय लग गया । श्रीनगर पहुंचकर सबसे पहले नाश्ता करने के लिये किसी ढाबे की तलाश की गयी
। अब तक पेट में कूद रहे चूहों की आवाज मधुर संगीत से करूण वेदना में बदल चुकी थी। ढाबे की तलाश में समय नहीं लगा ,मुख्य सड़क पर ही
एक ढाबा मिल गया । दही के साथ आलू के तंदूरी परांठो का आर्डर
कर दिया गया । परांठे बेहद स्वादिस्ट थे, दही के साथ
खाने में मजा आ गया । परांठो के भक्षण के साथ, पेट के चूहे भी लम्बी
निद्रा में सो गए और हमें भी परम आनंद की अनुभूति हुई ।नाश्ते के बाद हमने अपनी यात्रा जारी रखी और
रुद्रप्रयाग की ओर चल दिए । श्रीनगर से रुद्रप्रयाग की दुरी 32 किलोमीटर है और सड़क भी अच्छी है सिर्फ़ एक दो जगह ही भू स्खलन
के कारण थोड़ा सा टुकड़ा खराब था। रुद्रप्रयाग से पहले ही हमने अपनी अपनी बाइक में
पेट्रोल डलवा लिया और टंकी फुल करवा ली ।
रुद्रप्रयाग
अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल है। मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों का संगम
अपने आप में एक अनोखी खूबसूरती है। इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो दो बहनें आपस
में एक दूसरे को गले लगा रहीं हो। पौराणिक
कथाओं के अनुसार, नारद मुनि ने अपनी
घोर तपस्या के फल के रूप में शिव जी से संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए वरदान माँगा था और भगवान
शिव ने यहाँ 'रुद्र' के अवतार में प्रकट होकर उन्हें अपने आशीर्वाद से
धन्य कर दिया था। यहाँ स्थित शिव और
जगदम्बा मंदिर प्रमुख धार्मिक स्थानों में से है। रुद्रप्रयाग से ही केदारनाथ जाने के लिये मार्ग अलग हो जाता है जबकि मुख्य
मार्ग बदरीनाथ चला जाता है ।
रुद्रप्रयाग शहर से ठीक पहले केदारनाथ जाने के लिये बायीं
तरफ से एक अलग रोड निकलती है ।जिसे रुद्रप्रयाग बाईपास रोड बोलते हैं । हमने अपनी
बाइक इसी तरफ मोड़ ली । इस मार्ग से जाने से संगम रास्ते में नहीं पड़ता । पहले अलकनंदा
और फिर मंदाकिनी पर बने पुलों को पार करके आप उखीमठ वाले मुख्य मार्ग पर पहुँच
जाते हो । इस सड़क पर कुछ मोड़ बेहद तीखे हैं और एकदम खड़ी चढाई –उतराई भी । इस सड़क पर हम बड़ी
सावधानी से चल रहे थे लेकिन फिर भी मुझसे इस सड़क पर एक हादसा हो गया ।
हुआ यूँ की अलकनंदा पर बने पुल से ठीक पहले तीखी उतराई है ।
मैं आगे चल रहा था और सुखविंदर मेरे पीछे पीछे । हम बाइक बहुत धीरे चला रहे थे
लेकिन ढलान होने के कारण बाइक को गति खुद ही मिल रही थी। उतराई के बाद तीखा मोड़ था
और मुडते ही अलकनंदा का पुल । सड़क के मोड़ पर बजरी गिरी हुई थी जो शायद सड़क निर्माण
के लिये लायी गयी होगी और सामने पुल पर से एक ट्रक आता दिख रहा था । उतराई के कारण
पहले ही मैंने हल्की ब्रेक दबा रखी थी ताकि स्पीड नियत्रण में रहे । ट्रक को पास
आता देखकर मैंने जोर से ब्रेक दबा दिए । बाइक तो रुक गयी लेकिन बजरी होने के कारण
पिछला पहिया तेजी से घूम गया, मेरे जूते भी बजरी के कारण जमीं पर पकड़ न बना सके और
बाइक अनियत्रिंत होकर गिर गयी ।
ये सब एकदम अचानक से हुआ । मेरी बाइक गिरती देख
सुखविंदर जो मुझसे थोड़ी पीछे चल रहा था वहीँ रुक गया। क्योंकि मेरी बाइक बहुत धीमी
थी इसलिए बाइक का या सामान का तो कुछ भी नहीं बिगड़ा लेकिन मेरी दायीं हथेली में
बजरी की नोक लगने से खून बहने लगा और थोड़ा दायाँ घुटना भी बजरी से छिल गया और वहां
भी काफी दर्द होने लगा । ट्रक वाला ये सब लाइव देख रहा था उसने वहीँ ट्रक रोक लिया
। उसका क्लीनर भागकर आया और मेरी बाइक को खड़ा किया ,तब तक सुखविंदर भी मेरे पास
पहुँच चूका था । मैंने भी अपनी पानी की बोतल निकालकर उससे अपने हाथ से खून धोया और
फिर जखम पर रुमाल बाँध कर आगे की और चल दिए ।
इस घटना से समय तो ख़राब हुआ ही , मेरा मूड भी काफी ख़राब हो
गया । पिछले 14-15 साल से बाइक चला रहा हूँ लेकिन भगवन की कृपा से ऐसा पहले कभी
नहीं हुआ । चोट दायें हाथ पर थी और हथेली में काफी पीड़ा होने से बाइक चलाने में भी
दिक्कत हो रही थी । अब मेरी नज़रें किसी केमिस्ट या डाक्टर की दुकान की तलाश में थी
। ये तलाश अगस्तमुनी में जाकर पूरी हुई । वहाँ डाक्टर और केमिस्ट दोनों एक ही
दुकान में थे ,यानि डाक्टर ने ही केमिस्ट की दुकान खोली हुई थी । एक नवयुवती और एक
लड़का दुकान में थे । सीधी सी बात है मुझे लड़की को ही दिखाना बनता था। उन्होंने
मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर बड़े आराम से देखा और बोली इस पर पट्टी करनी पड़ेगी ।
मेरे न करने की तो कोई सम्भावना ही नहीं थी ।उन्होंने पट्टी करवाने के लिये मुझे
लड़के के पास भेज दिया । जब वो जखम को साफ़ कर रहा था तो मुझे दर्द होने पर उसने कहा
तुम इधर मत देखो उस तरफ मुंह कर लो । मैंने भी उसका कहा मानकर युवती की तरफ मुंह
कर लिया । समय का पता भी नहीं चला कि कब उसने पट्टी कर दी। दवाई की तीन खुराक मेरे
हाथ में पकड़ा कर बोला 80 रूपये दे दो ।मैंने कहा यार तुम ज्यादा पैसे मांग रहे हो-
पट्टी और दवाई के ।वो बोला नहीं ठीक है तो मैंने भी मन में हिसाब लगाया और कहा चलो
ठीक है । दवाई की एक खुराक मैंने वहीँ ले ली और आगे की और चल दिए ।
अगस्तमुनी से
17 किलोमीटर आगे कुंड नाम से एक जगह है । रुद्रप्रयाग से यहाँ तक मन्दाकिनी नदी
सड़क के लगातार बायीं तरफ़ बह रही है। कहीं कहीं इसका फैलाव काफी बड़ा है लेकिन
अधिकतर जगह पर यह छोटी सी घाटी बनाकर ही बहती है । कुण्ड से बायीं तरफ मंदाकिनी पर पुल पार कर एक रास्ता
गुप्तकाशी होते हुए गौरीकुंड जाता है जहाँ से केदारनाथ की चढाई शुरू होती है ; सीधा रास्ता उखीमठ की तरफ चला जाता है । यहीं सड़क से सामने
की ओर बीच बीच में केदार पर्वत श्रृंखला नज़र आती रहती है । उखीमठ से पहले ही एक
चौक से सीधा रास्ता चोपता होते हुए चमोली की तरफ चला जाता है ; बायीं तरफ वाला रास्ता उखीमठ होते हुए उनियाना और
रांसी गाँव की तरफ़ चला जाता है । कुंड से चोपता की दुरी 29 किलोमीटर है ।
हमें कुंड
पहुँचते – पहुँचते 12 बज चुके थे । हमारा पहले के प्रोग्राम के अनुसार आज देवरिया
ताल जाना था वहां से चोपता जाकर तुंगनाथ जाते , लेकिन अब हम अपने प्रोग्राम से
लगभग दो घंटे लेट हो चुके थे । इसलिए अब सीधा चोपता जाने का निश्चय किया ताकि शाम
तक तुंगनाथ ,चंद्रशिला होकर रात को चोपता रुक सकें । उखीमठ से आगे चोपता तक का
रास्ता बेहद खूबसूरत है और लगातार चढाई है। जैसे जैसे ऊपर जा रहे थे हवा में ठंडक
बढ़ रही थी । सड़क के दोनों और घना जंगल है और इतना घना है कि बहुत सी जगह पर पर तो
सूर्य की रोशनी नीचे ही नहीं पहुँच पाती । सड़क पर भी दोनों तरफ काफी काई जमी हुई
थी और पेड़ों के तने भी काई से भरे हुए थे । बाइक को ध्यान से चला रहे थे । काई पर
पहिया जाते ही फिसलने का पूरा डर था इसलिए हम सड़क के बीच में ही चल रहे थे लेकिन
जैसे ही कोई बड़ी गाड़ी आती तो साइड में हो जाते । जिस जगह से सारी गाँव का रास्ता
मुड़ता है उससे थोड़ा पहले रूककर एक जगह चाय पी और वहां के नजारों का आनंद लेते रहे ।
कुंड से चोपता जाने में हमें पुरे दो घंटे लग गए और दोपहर ठीक दो बजे हम चोपता
पहुँच गए ।
आज की पोस्ट में
इतना ही ।बाकि अगली पोस्ट में .....
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गेस्ट हाउस से दिख रहा संगम |
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गेस्ट हाउस |
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अलकनंदा |
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अलकनंदा |
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सुखविंदर |
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अलकनंदा |
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अलकनंदा |
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अलकनंदा |
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अलकनंदा |
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कुंड में बन रहा एक अधुरा बांध |
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कुंड से दिखायी दे रहा पुल जिससे केदारनाथ जाते हैं |
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कुंड के पास एक झरना |
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मन्दाकिनी |
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मन्दाकिनी |
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दूर दे दिखती गुप्तकाशी |
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उखीमठ से चोपता के बीच |
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उखीमठ से चोपता के बीच |
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उखीमठ से चोपता के बीच |
आपको चोट लगना जितना दुखद रहा दवा मिलना उतना ही मज़ेदार। हा हा। मज़ा आ गया सहगल साहब
ReplyDeleteधन्यवाद ओम भाई .
Delete80 रुपये का हिसाब यहाँ समझाना चाहिए.
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई .80 रुपये का हिसाब दे दिया है .
Deleteबहुत बढ़िया सहगल साहब !
ReplyDeleteचोट के बावजूद मजेदार सफर .....
धन्यवाद पाण्डेय जी .
Deleteबहुत बढ़िया, यात्रा सही दिशा में जा रही है नरेश भाई !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई .
Deleteअब समझ आया बाइक गिरी क्यूँ,सब विधि का विधान हा हा |बाकि यात्रा का पूरा आनंद आ रहा है लग रहा है जैसे साथ ही हों |बहुत अच्छे |
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश जी .जिसने दर्द दिया है वो दवा भी देता है .
Deleteखूबसूरत चित्रो के साथ सुन्दर - मनमोहक लगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल जी .
Deleteअगली पोस्ट का इंतजार दिल से.....
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल जी.दिल से.....
Deleteबढ़िया रहा गिरना भी फायेदेमंद होता है कभी कभी वैसे ऐसा मेरे साथ क्यों नही होता है दिल से
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई .ऐसा प्री प्लान नहीं होता .
Deleteवाह ! शानदार चित्रों के साथ रोमांचक यात्रा विवरण दिल ❤ से ।
ReplyDeleteगिरने के बाद भी चलते रहे, यही है जिंदगी चलने का नाम ।
धन्यवाद रितेश जी .जीवन चलने का नाम .
Deleteनजर हटी दुर्धटना घटी ...पहाड़ो पर बहुत संभलकर बाईक चलाना चाहिए। क्योंकि एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ गहरी खाई होती है । 80 रु गए तो जाने दो आगे का किस्सा चलने दो ...दिल से 💓
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी दिल से .
Deleteभाई ऐसी पट्टी बांधने वाली मिले तो मेरी बाइक फिसलती ही रहे। भोत बढिया। 😃😃
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुदेव .
Deleteबढ़िया 'दिल से'
ReplyDeleteधन्यवाद प्रफुल्ल भाई .
Deleteरुद्रप्रयाग भी बहुत अच्छी जगह है , मैं रुका हूँ उधर ! चलो आगे चलते हैं !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .संवाद बनाये रखिये.
Deleteअलग अलग जगह से अलग अलग वेग के साथ आती नदियाँ और संगम में किस तरह से मिल कर एक हो जाती है देखने में बड़ा मजा आता है
ReplyDeleteधन्यवाद . सहमत संगम स्थल से नज़रे नहीं हटती .
Deleteदाग अच्छे होते है ये तो टीवी विज्ञापन में देखते है ।अब आपकी यात्रा लेख पढ़कर नया स्लोगन बनेगा दर्द कभी कभी अच्छे होते है ।
ReplyDeleteकई बार दूसरे की गलती की सजा भी चालक को भुगतनी पड़ती है ।
यात्रा विवरण सही चल रहा है । अलकनंदा और मन्दाकिनी की कहानी में थोडा और विस्तार से लिख सकते थे ।
#दिल से
धन्यवाद किशन जी .अलकनंदा और मन्दाकिनी के संगम पर आते हुए गया था तो वापसी में उस पर लिखने की पूरी कोशिश रहेगी .
Deleteदाग अच्छे होते है ये तो टीवी विज्ञापन में देखते है ।अब आपकी यात्रा लेख पढ़कर नया स्लोगन बनेगा दर्द कभी कभी अच्छे होते है ।
ReplyDeleteकई बार दूसरे की गलती की सजा भी चालक को भुगतनी पड़ती है ।
यात्रा विवरण सही चल रहा है । अलकनंदा और मन्दाकिनी की कहानी में थोडा और विस्तार से लिख सकते थे ।
#दिल से
bahut bvadhiya Alaknanda's fotos are mind blowing
ReplyDeleteधन्यवाद तिवारी जी .
Deleteबुआ जी के comment के साथ पूर्णतया सहमत ।वैसे पोस्ट शानदार और सभी फोटो भी खूबसूरत विशेषकर अलकनंदा की खूबसूरती को काफी अच्छा दर्शाया है । कुछ मीन -मेख निकाल कर लडके से दुबारा पट्टी करवा लेते, इसी बहाने वहां समय बिताने का और समय मिल जाता ।😃🙏 Om Namah Shivai
ReplyDeleteधन्यवाद . ओम नम: शिवाय .
Deleteबढ़िया यात्रा दिल से
ReplyDeleteधन्यवाद दिल से .
Deleteबढ़िया यात्रा दिल से
ReplyDeleteपहाड में बाईक से घूमने का मजा ही अलग है, सहगल साहब
ReplyDeleteधन्यवाद शशि चड्ढा जी .
Deleteबढ़िया और खूबसूरत सफर.....
ReplyDeleteचोट भी नुकसानदायक ना रही.....और आपने हमें एक तरीका भी बता दिया जिससे रोगी को दर्द महसूस ना हो.....धन्यवाद..😊
धन्यवाद त्यागी जी .सब भोले की कृपा है .
Deleteआपने इस पोस्ट में हमारी सलाह मान ली ये तो अच्छा किया पर मैंने ऐसा तो नहीं कहा था कि हमें हंसाने के लिए आप चोट खा लेना! पर वैसे यात्रा बहुत आनंददायक चल रही है। ऐसे ही लिखते चलिए।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशांत जी . आपको हंसाने के लिये चोट खाना कोई महंगा सौदा नहीं है .
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ReplyDeleteसुन्दर विवरण. चोट ने जरा मज़ा किरकिरा कर दिया लेकिन यात्रा के दौरान कुछ ऐसा न हो तो वो यात्रा याद नहीं रहती. फिर चोट के बाद मरहम भी लग गया था तो वो एव्री क्लाउड हैस सिल्वर लाइनिंग का चरित्रार्थ होना था.
ReplyDeleteधन्यवाद विकास की .संपर्क में बने रहिये .
Deleteसहगल साहब श्रीनगर से ऐसे ही मत निकल जाया कीजिये,वहाँ यूनिवर्सिटी के सामने कमलेश्वर महादेव मंदिर और श्रीनगर से 12 km आगे माँ धारी देवी के दर्शन भी कर लिया कीजिए, वैसे मज़ा आ रहा है।
ReplyDeleteधन्यवाद जी .माँ धारी देवी के दर्शन हो चुके हैं ,यूनिवर्सिटी के सामने कमलेश्वर महादेव मंदिर का मालूम नहीं था ,इसके भी दर्शन जरूर होंगे .
Deleteबढ़िया और सुन्दर विवरण.
ReplyDeleteधन्यवाद राजीव वर्मा जी .
Deleteaccha ji yesi bat hai kya,,kher mai jyada nahi bolungi,didi hun,
ReplyDeletesundar varnan,maja aa gaya
धन्यवाद दीदी . थोड़ी बहुत शरारत तो चलती है .
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