चोपता, तुंगनाथ, देवरिया ताल यात्रा-3 (चोपता –तुंगनाथ –चोपता )
यात्रा तिथि -03 अक्टूबर 2015
चोपता पंहुच कर एक ढाबे वाले से कमरा पता
किया । ढाबे के नीचे की तरफ 2 कमरे बने थे और अभी दोनों खाली थे । एक कमरा हमने
400 रूपये में ले लिया । ढाबे वाले ने बताया कि कल यहाँ बहुत भीड़ थी और रहने के
लिए जगह कम पड़ गयी थी और किराया भी डबल था । खैर हम अपना सामान कमरे में रखकर बिना
देर किये तुंगनाथ की और चल दिए । हमें चंद्रशिला भी जाना था तो इसलिए फ़िलहाल आराम
करने का विचार त्याग दिया ।
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सुन्दर बुग्याल
|
शुरू शुरू में तो रास्ते के आसपास काफी
पेड़ हैं लेकिन जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ने लगी इन पेड़ों की जगह छोटी छोटी झाड़ियों ने ले
ली । थोड़ा चलने पर ही बायीं तरफ एक छोटा सा बुग्याल है जहाँ रुकने के लिए काफी
टेंट लगे हुए थे । थोड़ा और आगे बढ़ने पर एक बड़ा बुग्याल आता है जो पहले से काफी बड़ा और खूबसूरत है । ऊपर से
नीचे की तरफ देखने पर बुग्याल और उसके किनारे पर लगे बुरांश के पेड़ खूबसूरत समां
बांध रहे थे।चोपता से तुंगनाथ की दुरी 3.5 किलोमीटर है , जहाँ चोपता की समुंदर ताल
से ऊंचाई 2680 मीटर है वहीँ
तुंगनाथ 3450 मीटर पर है,यानि प्रति किलोमीटर पर 220 मीटर की चढ़ाई । कठिन श्रेणी ही मानी जाएगी लेकिन पूरा रास्ता
पक्का बना है इसलिए तीखी चढाई ज्यादा महसूस नहीं होती है ।
जैसे जैसे ऊपर की ओर बढ़ रहे थे नज़ारे और
भी खूबसूरत होते जा रहे थे । सामने चौखम्बा दिख रहा था हालाँकि उस समय मुझे उसका
नाम मालूम नहीं था लेकिन देखने में ये काफी खूबसूरत लग रहा था । चौखम्बा के दायीं
तरफ़ काफी बादल थे जो धीरे धीरे चौखम्बा की तरफ ही बढ़ रहे थे ,इस लिये झट से दो –चार
फोटो खिंच डाली । उससे थोड़ी ही देर बाद चौखम्बा को बादलों ने घेर लिया और फिर
वापसी तक बादल ऐसे ही बने रहे ।
खड़ी चढाई और अधिक ऊँचाई होने के कारण सांस बार
बार फूल रहा था। थोड़ा रुकते आराम करते फिर चल पड़ते । पसीने भी बहुत आ रहे थे इसलिए
जैकेट तो हमने शुरू में ही उतार दी थी लेकिन जैसे जैसे ऊपर की ओर जा रहे थे हलकी
ठंडक बढ़ रही थी । इस तरह चलते रुकते लगभग 4 बजे हम तुंगनाथ पहुँच गए । हमें यहाँ
आने में लगभग दो घंटे लग गए । मंदिर से पहले खाने पीने की कुछ दुकाने है । रात्रि
विश्राम के लिये एक दो धर्मशाला भी है । यहाँ पहुंचकर सुखविन्दर ने कहा कि जोर से
भूख लगी है पहले कुछ खा लेते हैं। मैग्गी का आर्डर कर दिया गया लेकिन दुकानदार
पहले ही किसी और का आर्डर भुगता रहा था । थोड़ी देर बाद हमें भी मैग्गी मिल गयी साथ
ही चाय भी मंगा ली । खा पीकर, मैं पहले चंद्रशिला जाना चाहता था ताकि दिन ढलने से पहले वापिस तुंगनाथ आ जाएँ
लेकिन यहाँ सुखविंदर थोड़ी हिम्मत हार गया । उसका जाने का मन नहीं हो रहा था लेकिन
मैंने उसे बहला फुसला कर साथ चलने के लिये तैयार कर लिया ।
तुंगनाथ मंदिर से थोड़ा आगे जाकर उसके पीछे की
तरफ से होते हुए एक पतली सी पगडंडी चंद्रशिला की और चली जाती
है । जब हम चंद्रशिला
के लिये चले तो अचानक मौसम
ख़राब होने लगा। पहले कैमरे से ज़ूम करने पर चोटी पर चंद्रशिला दिख रही थी लेकिन
तेजी से वहां बादलों ने डेरा जमा लिया । बादलों का जमघट तेजी से नीचे की तरफ ही आ
रहा था और ऊपर की तरफ सब कुछ दिखना बंद हो चूका था । चंद्रशिला जाने का मुख्य
मकसद ही वहां से चारों तरफ के शानदार नज़ारे देखना था और जिस तरह से बादल घिर आये थे
ये असम्भव नज़र आ रहा था ।लेकिन मैंने रुकने की बजाए चलना ही बेहतर समझा चाहे बुझे
मन से ही सही । हम लगभग आधा किलोमीटर चल चुके थे। ऊपर से 8 -10 लोगो का एक समूह
नीचे की तरफ आ रहा था ।ये लोग
चंद्रशिला से आ रहे थे । उन्होंने
हमें बताया की ऊपर जाने का कोई फायदा नहीं । ऊपर घने बादल हैं और कुछ भी दिखायी
नहीं दे रहा। वे भी काफी देर तक ऊपर रुके हुए थे लेकिन बादलों के कारण कुछ न देख
पाए थे । इस समय तक बादल हमारे पास आ चुके थे। हमने भी भारी मन से वापिस जाना ही
बेहतर समझा । ठीक है - चंद्रशिला फिर कभी मिलेंगे
,सुन्दर नजारों के साथ।
नीचे तुंगनाथ में आकर दर्शन किये । थोड़ा
देर रुके और फिर नीचे की तरफ़ चल दिए । जहाँ पूर्व की तरफ घने बादल आये हुए थे वही
पश्चिम की तरफ आसमान एकदम साफ़ था । सूर्य देव अपनी यात्रा के बाद अपने लोक को लौट
रहे थे। थक कर अब तक काफी लाल हो चुके थे। दो चार फ़ोटो उनकी भी खींच ली ।अब तक
मौसम में काफी ठंडक आ गयी थी और हमें जैकेट में भी ठण्ड महसूस हो रही थी ।चोपता तक
वापसी में हमें मुश्किल से एक घंटा लगा और शाम 6 बजे तक अपने कमरे पर पहुँच गए ।
कमरे पर पहुँच कर थोड़ा खाया पिया । साथ
ही सर्दी और थकावट दूर करने की दो खुराक दवाई भी ले ली । काफी देर गपशप करने के
बाद लगभग 8 बजे खाना खाने के लिये ऊपर ढाबे पर गए ।
ऊपर सड़क पर इस समय काफी रौनक हो चुकी थी ।
लड़के –लड़कियों की टोलियाँ सड़क पर घूम रही थी । माल रोड जैसा नजारा हो चूका था। जो
लोग आस पास टेंटो में रुके हुए थे वे भी खाना खाने की लिये यहाँ आये हुए थे । ढाबे
पर भी काफी भीड़ थी। हम भी जाकर एक कोने में बैठ कर वेटर की प्रतीक्षा करने लगे ।
थोड़ी देर बाद वो आया । मैंने पूछा भैया कौन सी सब्ज़ी बनायीं है ?? वो बोला- साहब आज
घिया बनी हैं । जोर का झटका लगा !!!! ऐसा लगा जैसे किसी ने पूरे शरीर को सुन्न कर
दिया हो । दवाई का असर बेअसर हो गया . थोड़ी देर बाद संभला तो मैं भी जोर से बोला ..यहाँ भी घिया ??? क्यूँ मुझे
एडमिन समझ रखा है क्या !!! जो घिया खिलाओगे । बेचारा वेटर हमारी ओर देखकर सोच रहा
था ऐसा क्या कह दिया मैंने ? फ़िर मैं हँसते हुए धीरे से बोला य़ार ये बताओ
दाल कोण सी बनायीं है जबाब मिला चने और राजमा मिक्स है। ठीक है दो प्लेट दाल और
रोटी भिजवा दो ।
खाना खाने के बाद थोड़ी देर सड़क पर घुमकर
नजारों का आनंद लिया फिर कमरे पर जाकर सो गए ।
तुंगनाथ महत्व : उत्तराखण्ड में पांच केदार हैं, जो
पंच-केदार के नाम से विश्वविख्यात हैं। ये क्रमानुसार इस तरह हैं –केदारनाथ, मद्महेश्वर,
तुंगनाथ, रुद्रनाथ
और कल्पेश्वर । ऐसा माना जाता है की इन मंदिरो का निर्माण पाण्डवों द्वारा
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण
पाण्डवों से रुष्ट थे। शिव पुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पाण्डव जब
स्व-गौत्र हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे तो महर्षि वेद व्यास ने उन्हें तप
करके शिवजी को प्रसन्न करने को कहा कि वो ही उनको इस पाप से मुक्ति दिलवा सकते
हैं। पाण्डव शिवजी को खोजते हुए यहाँ तक आ पहुंचे, लेकिन शिवजी पाण्डवों से रुष्ट होने के
कारण उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे।
गुप्तकाशी के जंगलों में शिवजी ने महिष (बैल) का रूप धारण कर लिया और
बाकी जानवरों के साथ चरने लगे। लेकिन पाण्डवों ने शिवजी को पहचान लिया। उनसे बचने
के लिए महिष रूपी शिवजी केदार पर्वत की ओर चल दिए और धरती में अंतर्ध्यान होने लगे लेकिन महाबली भीम
ने शिवजी को पीछे से पकड़ लिया। लेकिन तब तक महिष का अगला भाग नेपाल के पशुपतिनाथ, मुख
रुद्रनाथ, भुजाएं
तुंगनाथ, जटाएं
कल्पनाथ, नाभि
मदमहेश्वर और पृष्ट भाग केदारनाथ में ही रुक गया। शिवजी ने पाण्डवों से प्रसन्न
होकर उनको स्व-गोत्र हत्या के पाप से मुक्त कर दिया । बाद में इन सभी स्थानों पर
पांडवों ने मंदिर बनवाये ।
पंच केदारो में सबसे पहले केदारनाथ में
जहाँ भगवान के पुष्ट भाग की पूजा की जाती है, वहीं
द्वितीय केदार मध्महेश्वर में भगवान
के मध्य भाग यानि नाभि की पूजा की जाती है । तृतीय केदार तुंगनाथ में भगवान की भुजाओं और
उदर की पूजा की जाती है जबकि चतुर्थ केदार यानि रुद्रनाथ में भगवान के मुख की पूजा
की जाती है। पंचम केदार कल्पेश्वर में शिव की जटाओं की पूजा की जाती हैं ।
तुंगनाथ उत्तराखण्ड के गढ़वाल के
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पर्वत है । तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ
मंदिर, जो
3,460 मीटर
की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर 1000 वर्ष पुराना माना जाता है। बारह से
चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये क्षेत्र गढ़वाल हिमालय के सबसे सुंदर स्थानों
में से एक है। जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की
सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक
फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने योग्य होती है।
इसीलिए अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करने में भी नहीं हिचकते। सबसे
विशेष बात ये है कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र में ये अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा
बुग्यालों की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानि यह असाधारण क्षेत्र
श्रद्धालुओं और पर्यटकों की साधारण पहुंच में है।
आज की पोस्ट में इतना ही । अगली पोस्ट
में चलते हैं देवरिया ताल ।
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तुंगनाथ द्वार .यहीं से यात्रा शुरू होती है . |
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पहला बुग्याल |
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शानदार नज़ारे |
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तुंगनाथ की ओर जाता रास्ता |
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सुन्दर बुग्याल |
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सुन्दर बुग्याल |
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सुन्दर बुग्याल |
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चौखम्बा और दायीं तरफ से अतिक्रमण के लिये बढ़ते बादलों के समूह |
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शानदार चौखम्बा |
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थोड़ा आराम कर लें .जहाँ चोट लगी थी वहां हाथ पर पट्टी बंधी है |
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सुन्दर रास्ता |
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रास्ते की तस्वीर |
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रास्ते की तस्वीर |
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रास्ते की तस्वीर |
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चंद्रशिला को जाने वाला रास्ता |
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चंद्रशिला को जाती पतली
सी पगडंडी |
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सुखविंदर |
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चंद्रशिला की ओर .बादल काफी नीचे आ गए हैं |
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चंद्रशिला की ओर .पीछे बादल काफी नीचे आ गए हैं |
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बादल ही बादल |
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नंदी महाराज |
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एक और नंदी |
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पार्वती मंदिर |
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तुंगनाथ मंदिर |
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भैरव मंदिर |
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तुंगनाथ मंदिर |
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सुखविंदर |
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तुंगनाथ में .यहाँ भी बादल आ चुके हैं |
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वापसी के समय |
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वापसी के समय |
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ये महाशय एक बड़े से कैमरे के साथ तमिलनाडु से आये थे .यहाँ चिड़ियों की फोटो ले रहे थे |
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ये झंडी . नीचे से ऐसा लगता हैं की ये तुंगनाथ पर हैं .लेकिन यह मध्य पॉइंट है |
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बादलों से घिरा चौखम्बा |
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बादलों से घिरा चौखम्बा |
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सूर्यास्त |
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सूर्यास्त |
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सूर्यास्त |
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ReplyDeletePhotos bhaut hi shandar hai. Behtarin
ReplyDeleteधन्यवाद सनी जी .
Delete
ReplyDeleteचंदेर्शिला क्यों रह गया समझे सहगल साहब या समझाऊं ? चंदेर्शिला आपका बाबा ने हमारे साथ जाना लिखा था . अर्जी लगा दिया हैं जरूर करेंगे करेंगे “घुमक्कड़ी दिल से और मिलेंगे फिर से”
और वहां बाबा के चरणों में जाकर भी आपके एडमिन (सब जानते हैं घिया/तौरी भोगी एडमिन कौन है) को याद किया घिया के बहाने ही सही, धन्य हो गए एडमिन भी, ये भी बाबा कि किरपा ही मानी जाएगी.
तुंगनाथ बाबा कि भुजाओं का स्वरुप है शायद इसीलिए हाथ नहीं पकड़ा रहे, कुछ और समय है शायद अभी “अच्छे दिन आने में“, लेकिन विश्वाश है बाबा बुलाएँगे जरूर...
और रही बात पहले और बाद कि तो अब तो हम लाइन तौड़ चुके आप पहले काहे नहीं बताये, खैर जे मुद्दा भी हम तो उन्ही पर डाल देते हैं “होई सोई राम रची राखा”
बहत बढ़िया सरल और सुंदर पोस्ट सहगल साहब, as usual.... “दिल से”
सूर्यास्त के गज़ब फोटो सहगल साहब...तीनों एक से बढ़कर एक लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि बाकि कम अच्छे हैं.....
धन्यवाद कौशिक जी . चंद्रशिला जरूर चलेंगे और साथ चलेंगे .“घुमक्कड़ी दिल से और मिलेंगे फिर से”
Delete♥♥♥ से सुंदर फोटो।
ReplyDeleteसोच रहा हूं अपने साथ ले जाया करूं आपको जबरदस्ती😀😀
धन्यवाद अनिल जी .जबरदस्ती मतलब आना जाना खाना सब फ्री ..हा हा हा ..
Deleteवाह। क्या खूबसूरत नज़ारे है,बेहतरीन। वैसे थकान उतारने वाली दवाई का नाम भी लिखना चाहिए था आपको सहगल साहब, हा हा हा। बहुत सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद ओम भाई .वो खाने वाली दवाई थी पिछली पोस्ट में चोट लगी थी तो डाक्टर ने दवाई दी थी .भूल गए
Deleteनरेश जी बहुत बढिया लेख। जय बाबा तुंगनाथ की। चंद्शिला ना कर पाये कोई बात नही, जब बादल ही इतने थे तो जाकर करते भी क्या। फोटो बेहतरीन लगे।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन जी .चंद्रशिला जाने का मुख्य मकसद ही वहां से चारों तरफ के शानदार नज़ारे देखना था और जिस तरह से बादल घिर आये थे ये असम्भव नज़र आ रहा था
Deleteआपकी लेखनी की रोचकता क्रमशः बढ़ती ही जा रही है.....बेहतरीन यात्रा वर्णन.....विशेषतया पञ्च केदार का विस्तृत वर्णन.....और सूर्यास्त के नजारों का तो क्या कहना....आपके लिए गए चित्र सदैव ही सुन्दर होते हैं पर सूर्यास्त की pics लाजवाब हैं...
ReplyDeleteधन्यवाद डाक्टर साहिब .आप होंसला बढ़ाते रहिये .हम अच्छा लिखते रहेंगे .धन्यवाद फिर से .
Deleteसर्दी की दवाई क्या थी फोटो सुपर से भी ऊपर है
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई .खाने की दवाई थी पिछली पोस्ट में चोट लगी थी तो डाक्टर ने दवाई दी थी .लगता है भूल गए.
Deleteबढ़िया वृतान्त नरेश जी।
ReplyDeleteधन्यवाद बिनु जी . ऐसा लग रहा है की आपने पोस्ट पूरी नहीं पढ़ी .
Deleteबहुत सुंदर यात्रा वृतांत,इतनी खुबसूरत जगह भी घिया ...ये शुभ संकेत है हा हा हा |सभी फोटो बहुत सुंदर हैं ,चंद्रशिला लगता है साथ साथ ही होना है |जय बाबा तुंगनाथ |
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश जी .चंद्रशिला साथ ही चलेंगे.
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ReplyDeleteBrilliant post with lot of nice pictures. Interestingly, there's been some great narration about Punch Kedar that have biggest impact on a reader and possibly gain more followers. Writing skill is going to more effective that help make a good impression.Jai ho Gauri Shankar Ji Ki💐💐
ReplyDeleteThanks .Jai ho Gauri Shankar Ji Ki💐💐
Deleteबाकी तो सब ठीक है, पहले सर्दी और थकान दूर करने वाली दवाई का नाम बता दो, कभी हमारे भी काम आ जाए। 😃
ReplyDeleteधन्यवाद गुरु जी .आप से क्या पर्दा BP की दवाई थी . ;)
Deleteसुंदर यात्रा वृतांत,खुबसूरत फोटो और सूर्यास्त के तो गज़ब हैं .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी .
Deleteतारीफ़ करूँ क्या उसकी जिसने तुम्हे, ना ना आपको इतनी सुन्दर जगह पहुंचाया, जय तुंगनाथ!!
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी . जय तुंगनाथ.
Deleteinteresting log and beautiful fotos
ReplyDeleteधन्यवाद तिवारी जी .जय तुंगनाथ
Deleteनरेश जी
ReplyDeleteएक एक पल जी लेते है जब आपका यात्रा विवरण पढ़ते है ।
घिया वाले संवाद पर हंसी ही नहीं रुक रही ।
फ़ोटो एक से बढ़कर और भरपूर ।आम के आम और छिलके के भी दाम।
#घुम्मकड़ी दिल से
धन्यवाद किशन जी . जय तुंगनाथ.
Deleteनरेश जी
ReplyDeleteएक एक पल जी लेते है जब आपका यात्रा विवरण पढ़ते है ।
घिया वाले संवाद पर हंसी ही नहीं रुक रही ।
फ़ोटो एक से बढ़कर और भरपूर ।आम के आम और छिलके के भी दाम।
#घुम्मकड़ी दिल से
परमप्रिय नरेश जी, यह जानकर दिल को राहत मिली कि ये यात्रा काफी सरल और सुगम है अर्थात् मैं भी सोच सकता हूँ। कुछ महीने बैडमिंटन खेलता हूँ, मामला इस पार या उस पार जो भी होना हो, हो ही जाए।
ReplyDeleteपंचकेदार की जो कहानी आपने सुनाई वह रूपक है जैसा कि हमारी सभी धार्मिक कहानियों में होता है। इस कथा का कुछ न कुछ वैज्ञानिक मंतव्य भी अवश्य ही होगा। उत्तराखंड के मंत्री श्री धन सिंह रावत जी ने अपनी एक पुस्तक मुझे भेंट की है। देखता हूँ, उसमें कुछ और स्पष्टीकरण मिलता है क्या।
फोटो और विवरण तो जैसा कि सभी ने कहा है, बहुत सजीव और आकर्षक हैं ही। बधाई।
धन्यवाद सुशांत जी . निस्संदेह आप ये यात्रा कर सकते है .और इस कथा का कुछ वैज्ञानिक मंतव्य मालूम हो तो हमसे भी साँझा करे .
Deleteतुंगनाथ !! जय हो ! दिल्ली का कनाट प्लेस हो रहा है ! लेकिन हलके फुल्के घुमक्कड़ों -ट्रेकरों के लिए बहुत ही शानदार जगह है ! मैं गया नही कभी लेकिन जल्दी ही जाऊँगा जरूर !! बढ़िया लिखा सहगल साब
ReplyDeleteधन्यवाद किशन जी .सच में वीकेंड्स पर वहां पूरी भीड़ हो जाती है .
Deleteएडमिन के घिया प्रेम को दर्शाना बहुत अच्छा लगा...पञ्च केदार के बारे में पहली बार पढ़ा बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिक भाई .जय तुंगनाथ .
DeleteImpressive write up exceptionally beautiful pics
ReplyDeleteधन्यवाद निरुपमा जी ।
Deleteघिया से हार्ट के ब्लॉकेड खुलते हैं और ट्रैकर लंबे समय तक घूम सकते हैं । बढ़िया वृत्तांत है !
ReplyDeleteधन्यवाद मुनीष जी ।जय तुंगनाथ ।
Deleteनरेश जी.... सुंदर चित्रों के साथ बढ़िया और जानकारी युक्त लेख.
ReplyDeleteपढ़कर बहुत अच्छा लगा... | घिया वाला वाकई में हास्यप्रद लगा...
अब तो मेरी भी इच्छा है तुंगनाथ जाने की
जय तुंगनाथ बाबा की
धन्यवाद रितेश जी ।तुंगनाथ का अगला प्रोग्राम ग्रुप का ही बनाते हैं ।
Deleteजी जरुर ...
Deleteकहीं न कहीं एक अच्छा ब्लॉग मिल ही जाता है जहाँ आकर घुमक्कड़ मन तृप्त महसूस करता है। बस दिक्कत ये है कि आपका ब्लॉग पढ़ कर घुमक्कड़ी का कीड़ा कुलबुलाने लगा,,,
ReplyDeleteधन्यवाद तेज नारयण जी .संवाद बनाये रखिये .
Deleteशानदार प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण। जय़ महादेव
ReplyDeleteThanks Sunil Mittal ji .
Deletejai hoo... vaise ye sardi aur thkawat utarne wali dwai ka naam nhi btaya aapne...
ReplyDeleteThanks my dear . Aao baitho kabhi saath , batate hai fir.
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