बैजनाथ
मंदिर- हिमाचल प्रदेश
माँ
चामुंडा देवी के दर्शन के बाद मंदिर परिसर से बाहर आकर पहले सबने चाय पी ।
सुबह नाश्ते के बाद से हमने अभी तक चाय नही पी थी इसलिए चाय की तलब भी हो हो रही
थी । चाय पीने के बाद पार्किंग से गाड़ी निकाल कर बैजनाथ की ओर चल दिए । अब तक साढ़े
पांच बज चुके थे औऱ हल्का अंधेरा होने लगा था । चामुंडा से बैजनाथ तक सारा रास्ता
पहाड़ी ही है और मशहूर हिल स्टेशन पालमपुर
से होकर जाता है । पालमपुर अपने चाय के बागानों के लिए मशहूर है । इस पूरे रास्ते
मे धौलाधार के शानदार नज़ारे देखने को मिलते हैं । अब चूँकि अंधेरा हो चुका था इसलिए
इस समय हम बर्फ़ीली चोटियाँ नही देख पा रहे थे ।
चामुंडा देवी से बैजनाथ की दूरी 22 किलोमीटर है और हमें वहाँ पहुँचने में साढ़े 6 बज गए । सबसे
पहले हम बैजनाथ में मौजूद PWD के गेस्ट हाउस में गये ताकि वहाँ रहने के लिए
कमरा मिल सके । यहाँ का गेस्ट हाउस काफी बडा है लेकिन यहाँ के केअर टेकर ने बताया
कि सभी कमरे पहले से बुक हैं। काफी कोशिश की लेकिन सब नाकाम रही । यहाँ दाल न गलती
देख हम दूसरे किसी होटल में ठहरने के लिये यहाँ से बाहर आ गए । बाहर आकर होटल
खोजने से पहले सबने मंदिर चलने का निश्चय किया और गाड़ी सीधा मंदिर की तरफ़ भगा दी ।
शाम के 7 बज चुके थे और हमारे मंदिर में पहुंचते ही आरती शुरू हो गयी । मंदिर में
इस समय 10-12 लोग ही थे । आरती के बाद थोड़ी देर और वहां रुके और फिर वहाँ से आकर
होटल की तलाश करने लगे । बैजनाथ छोटा सा शहर है और रुकने के लिए 3-4 होटल ही है ।
बस स्टैंड के पास ही अंदर सड़क पर दो होटल आमने सामने बने है । अच्छे और साफ सुथरे
। पहले एक में मालूम किया ,वहाँ कोई रूम खाली नही था तो फिर उसके सामने
वाले ताज होटल में पता करने पर वहाँ 500 रुपये एक के हिसाब से दो कमरे मिल गए ।
कमरों में सामान रखने के बाद स्वर्ण और शुशील एक ढाबे से जाकर सबका खाना पैक करवा
लाये।खाना खाने के बाद थोड़ा टहलने निकल गए और फ़िर कमरे पर आकर सो गये ।
सुबह जल्दी से उठ , दैनिक किर्या से निपट ,नहा कर तैयार हुए और फिर से सीधा मंदिर में चले
गए और एक बार फिर से मंदिर में अच्छे से दर्शन किये । यह मंदिर पुरातत्व विभाग के
अंतर्गत है और इसकी अच्छी तरह से देख-रेख की जाती है.इसके आस पास एक छोटा सा सुन्दर
गार्डन भी बनाया हुआ है. मंदिर में काफी देर रुके और ढेर सारी तस्वीरें ली । यहाँ
शिवालय के आगे दो नंदी हैं ,एक बरामदे में बैठा हुआ और दूसरा प्रांगन में खड़ा हुआ-
मंदिर के बारे में आगे विस्तार से बताया है ।
मंदिर में दर्शन के बाद बाहर मार्किट की तरफ़ गए लेकिन अभी तक यहाँ की मार्किट
नही खुली थी इसलिए यहाँ से बिना नाश्ता किये ही धर्मशाला की तरफ चल दिये ।
बैजनाथ
मंदिर: हिमाचल प्रदेश की हिमाच्छादित धौलाधार पर्वत श्रृंखला के प्रांगण में
स्थित भव्य प्राचीन शिव मंदिर- बैजनाथ उत्तरी
भारत का आदिकाल से एक तीर्थ स्थल माना जाता है। यह प्राचीन शिव
मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ नामक एक कस्बे में स्थित है । यह
प्रसिद्ध शिव मंदिर पालमपुर के 'चामुंडा देवी मंदिर' से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बैजनाथ शिव मंदिर
दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है और भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है ।
यूं
तो वर्ष भर प्रदेश के देश-विदेश से हजारों की संख्या में पर्यटक इस प्राचीन मंदिर
में विद्यमान प्राचीन शिवलिंग के दर्शन के साथ-साथ इस क्षेत्र की प्राकृतिक सौदर्य
की छटा का भरपूर आनंद लेते है परन्तु शिवरात्रि एवं श्रवण मास में यह नगरी बम-बम
भोले के उदघोष से शिवमयी बन जाती है, प्रदेश सरकार द्वारा इस मंदिर में
कालातंर से मनाये जाने वाले शिवरात्री मेले के महत्व को देखते हुए इसे राज्य
स्तरीय मेले का दर्जा दिया गया है।
गौरतलब हैं कि यह ऐतिहासिक शिव मंदिर
प्राचीन शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना है जिसके भीतर भगवान शिव का
शिवलिंग अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान है तथा मंदिर के द्वार पर कलात्मक रूप
से बनी नंदी बैल की मृर्ति शिल्प कला का एक विशेष नमूना है श्रद्वालु शिंवलिंग को
पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर बिल पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर शिव भगवान को
प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते है, जबकि श्रवण के दौरान पड़ने वाले हर सोमवार को मंदिर में मेला लगता है।
स्थापत्य कला
अत्यंत आकर्षक सरंचना और निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने के रूप के इस मंदिर के
गर्भ-गृह में प्रवेश एक ड्योढ़ी से होता है, जिसके सामने एक बड़ा वर्गाकार मंडप बना है, और उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने
हैं। मंडप के अग्र भाग में चार स्तंभों पर टिका एक छोटा बरामदा है जिसमे एक छोटे
नंदी बैठे हुए हैं , जिसके सामने ही
पत्थर के छोटे मंदिर के नीचे खड़े हुए विशाल नंदी बैल की मूर्ति है। पूरा मंदिर एक
ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण और उत्तर में प्रवेश द्वार हैं। मंदिर की बाहरी
दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई
देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। बहुत सारे चित्र दीवारों में नक़्क़ाशी करके बनाये
गये हैं। बरामदे का बाहरी द्वार और गर्भ-गृह को जाता अंदरूनी द्वार अंत्यंत
सुंदरता और महत्व को दर्शाते अनगिनत चित्रों से भरा पड़ा है।
निर्माण काल
तैरहवीं शताब्दी में बने शिव मंदिर बैजनाथ अर्थात 'वैद्य+नाथ', जिसका अर्थ है- 'चिकित्सा अथवा ओषधियों का स्वामी', को 'वैद्य+नाथ' भी कहा जाता है।
मंदिर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के बिलकुल पास ही स्थित है। इसका पुराना
नाम 'कीरग्राम' था, परन्तु समय के साथ यह मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होता गया और ग्राम का नाम 'बैजनाथ' पड़ गया। एक जनश्रुति के अनुसार द्वापर युग में
पांडवों द्वारा अज्ञात वास के दौरान इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
इस मंदिर पर विदेशी आक्रमण भी हुए । महमूद गजनवी ने भारत के अन्य मंदिरों के
साथ बैजनाथ मंदिर को भी लूटा और क्षति पहुंचाई। सन 1540 ई। में शेरशाह सूरी की
सेना ने मंदिर को तोडा। क्षतिग्रस्त बैजनाथ मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार 1783-86 ई।
में महाराजा संसार चंद द्वितीय ने करवाया था। मंदिर की परिक्त्रमा के साथ किलेनुमा
छह फुट चौडी चारदीवारी बनी हुई है जिसे मंदिर और बैजनाथ के ग्रामवासियों की
सुरक्षा के लिए बनवाया गया था। यहां के कटोच वंश के राजाओं ने समय-समय पर मंदिर की
सुरक्षा का ध्यान रखा।
वर्ष 1905 में आए कांगडा के विनाशकारी भूकंप ने फिर से इस पूजा स्थल को क्षति
पहुंचाई थी जिसे पुरातत्व विभाग ने समय रहते संभालकर मरम्मत करा दी थी। इस मंदिर
के कई अवशेष आज भी धरती में धंसे हुए हैं। मंदिर में स्थित 8वीं शताब्दी के
शिलालेखों से प्रमाणित होता है कि तब से दो हजार वर्ष पहले भी यहां मंदिर था। यह
भी पता चलता है कि पांडव युग के इस शिव मंदिर का किसी प्राकृतिक आपदा के कारण
2500-3000 वर्ष पूर्व विनाश हो गया था। छठीं शताब्दी में हुए हमलों के पश्चात
आठवीं सदी में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। इस सदी में राजा लक्ष्मण चन्द्र के
राज्य में दो भाई- मन्युक व आहुक हुए जो व्यापारी थे। इन दोनों शिव भक्तों ने
शिवलिंगों के लिए मण्डप और ऊंचा मंदिर बनवाया। राजा और दोनों भाइयों ने मंदिर के
लिए भूमिदान किया और धन दिया। इस पुनर्निर्माण का समय शिलालेखों में वर्ष 804 दिया
गया है। समुद्रतल से लगभग चार हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के निर्माण को
देखकर भक्तगण चकित रह जाते हैं कि शताब्दियों पहले इस दुर्गम स्थान में ऐसे भव्य
पूजा स्थल का निर्माण कैसे हुआ। मंदिर के पीछे चंद्राकार पहाडियों और घने जंगलों
का नैसर्गिक सौंदर्य हिमाच्छाति धौलाधार पर्वत श्रृंखला की स्वर्गिक सुंदरता में
श्रृंगार का काम करता है। मंदिर के उत्तर-पश्चिम छोर पर बिनवा नदी बहती है,
जो की आगे चल कर ब्यास नदी में मिलती है। बिनवा
नदी हजारों वर्ष पहले हुई प्राकृतिक आपदा से पहले मंदिर के स्थान से दूसरी ओर बहती
थी। बैजनाथ का क्षेत्र भारत वर्ष में ही नहीं अपितु विश्व भर में हैंग ग्लाइडिंग
के लिए सबसे उत्तम स्थान माना जाता है।
धार्मिक आस्था का केंद्र:
बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण
स्थान रखता है। यह मंदिर साल भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी
संख्या को आकर्षित करता है। प्रार्थना हर दिन सुबह और शाम में की जाती है। इसके
अलावा विशेष अवसरों और उत्सवों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मकर संक्रांति,
महाशिवरात्रि, वैशाख संक्रांति, श्रावण सोमवार आदि पर्व भारी उत्साह और भव्यता के साथ मनाऐ जाते हैं। श्रावण
मास में पड़ने वाले हर सोमवार को मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता
है। श्रावण के सभी सोमवार को मेले के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर हर
वर्ष पांच दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाता है।
दशहरा उत्सव:
दशहरा का उत्सव, जो परंपरागत रूप
से रावण का पुतला जलाने के लिए मनाया जाता है, लेकिन यहाँ बैजनाथ में इसे रावण द्वारा की गई भगवान शिव की
तपस्या ओर भक्ति करने के लिए सम्मान के रूप में मनाया जाता है।
कैसे पहुँचें:
बैजनाथ तक पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चण्डीगढ़-ऊना होते हुए
रेलमार्ग, बस या निजी वाहन व टैक्सी
से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से पठानकोट और कांगड़ा ज़िले में गग्गल तक हवाई सेवा
भी उपलब्ध है।
आप इस सीरीज की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें ।
खड़े हुए नंदी |
मंदिर की दीवारों पर बनी हुई मूर्तियाँ |
मंदिर की दीवारों पर बनी हुई मूर्तियाँ |
मन्दिर साइड से |
मंदिर की दीवारों पर बनी हुई मूर्तियाँ |
मंदिर की दीवारों पर बनी हुई मूर्तियाँ |
बैठे हुए नंदी |
मंदिर के पास से दिखाई दे रही धौलाधार |
बहुत बढ़िया नरेश जी, मैं भी दो बार दर्शन कर चुकी हूं इस अदभुद मंदिर के ।बहुत ही सूंदर वर्णन किया अपने । बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिमा जी .
Deleteबहुत बढ़िया नरेश जी, मैं भी दो बार दर्शन कर चुकी हूं इस अदभुद मंदिर के ।बहुत ही सूंदर वर्णन किया अपने । बधाई
ReplyDeleteबहुत ही शानदार वर्णन है नरेश जी एवम सम्पूर्ण जानकारी कैसे जाए इतिहास भूगोल सब कुछ
ReplyDeleteपढ़ कद आंनद आ गया वाह🙏🌹🌹
धन्यवाद अजय भाई जी .
Deleteबहुत ही बढ़िया यात्रा वृत्तांत नरेश जी।
ReplyDeleteमनादिर की दीवारों पर मूर्तियों की नक्काशी ओर धौलाधार का दृश्य वाकई अप्रतिम हैं।
धन्यवाद अक्षय .
Deleteबहुत ही बढि़या वृत्तांत जी बहुत ही अच्छे से लिखा है आपने, मैं भी इसी साल मार्च में यहां गया था, बहुत ही सुन्दर जगह है, बड़ा मनोहारी और मनभावन है
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा जी.
Deleteआपके और सुरिंदर जी के हिम आच्छादित पहाड़ वाले चित्र बहुत सुंदर है....
DeleteNice Post with beautiful pictures. Thanks for sharing.
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी
Deleteअद्भुत स्थापत्य कला का शानदार चित्रण !! सुन्दर विवरण नरेश जी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई ।
Deleteबढि़या वृत्तांत..शानदार चित्रण
ReplyDeleteधन्यवाद राज कुमार जी .
DeleteNice article with beautiful collection of images. Manimahesh Kailash Peak is known to be the home of Lord Shiva in Himachal Pradesh.
ReplyDeleteTHANKS..
Deleteबहुत सुन्दर पोस्ट एवं चित्र . शाबाश
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता दीदी .
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