माता चिन्तपूर्णी मंदिर- छिन्नमस्तिका देवी ( Mata Chintpurni Temple)
बगुलामुखी मंदिर में दर्शन के बाद हम
सीधा माता चिंतपूर्णी के मंदिर की ओर चल दिये । माता चिंतपूर्णी का मंदिर यहाँ से
लगभग 35 किलोमीटर दूर है ।यही रोड आगे मुबारकपुर ,अम्ब होते हुए ऊना और नंगल की तरफ चली जाती है । बगुलामुखी से चिंतपूर्णी
जाते हुए रास्ते में ब्यास नदी भी मिलती है लेकिन उस समय सर्दी होने के कारण ब्यास
नदी में पानी काफी कम था । ब्यास नदी का पुल लगभग मध्य में पड़ता है यानि इस पुल से
बगलामुखी और माता चिंतपूर्णी के मंदिर लगभग बराबर दुरी पर ही होंगे ।
मन्दिर का गर्भ गृह |
एक घंटे की यात्रा के बाद हम माता चिंतपूर्णी
पहुँच गए । मंदिर के लिए मुख्य रोड से दायीं तरफ रास्ता जाता है । मंदिर से लगभग एक
किलोमीटर पहले काफी बड़ी पार्किंग बनी हुई है । पार्किंग में खड़ी सैंकड़ो कारें और
अनगिनत बाइक देखकर अंदाजा लग गया कि यहाँ भंयकर भीड़ मिलने वाली है ।फिर सोचा कि कोई
बात नहीं ,अब आयें हैं तो माँ के दर्शन करके ही जायेंगे । पार्किंग में गाड़ी खड़ी
करके मंदिर की तरफ चल दिए ।रास्ते में कई आलीशान होटल और भोजनालय खुले हुए हैं
यानि यहाँ रहने और खाने पीने की कोई समस्या नहीं है । मंदिर में दर्शनों के लिए
लगी लाइन बाज़ार तक पहुंची हुई थी ।हमने भी एक दुकान से प्रसाद लिया और लाइन में लग
गए । लाइन धीरे धीरे ख़िसक रही थी और लगभग आधे घंटे में हम बाज़ार से मंदिर परिसर में
प्रवेश कर गए ।यहाँ दर्शन के लिए सभी यात्रियों को पर्ची लेनी पड़ती है लेकिन इसके
लिए आपको किसी काउंटर में जाने की जरूरत नहीं है ।मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर एक
सेवादार आपको एक छोटी सी मशीन से पर्ची निकाल कर दे देगा। मुख्य मंदिर में प्रवेश से
पहले यह पर्ची चेक की जाती है। जैसे जैसे लाइन बढ़ रही थी उसी के साथ हम भी आगे जा
रहे थे । कभी सीड़ियाँ उतरनी पडती हैं और कभी चढ़नी पड़ती । आख़िरकार काफी इंतजार के
बाद हम गर्भ गृह के सामने पहुँच गए ।
मंदिर के मुख्य द्वार पर प्रवेश करते
ही सीधे हाथ पर आपको एक पत्थर दिखाई देता है । यह पत्थर माईदास का है। यही वह
स्थान है जहां पर माता ने भक्त माईदास को दर्शन दिये थे। भवन के मध्य में यानि गर्भ
गृह में माता पिण्डी रूप में दर्शन होते
हैं । दर्शन करने के बाद हमने मंदिर की परिक्रमा की । मंदिर के साथ ही में वट का
वृक्ष है जहां पर श्रद्धालु कच्ची मोली अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांध रहे
थे । आगे पश्चिम की तरफ़ एक अन्य बड़ का वृक्ष है जिसके अंदर भैरों और गणेश के
दर्शन होते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पर, पूरी छत पर और दीवारों के उपरी हिस्से
पर सोने की परत चढी हुई है जिससे यह मंदिर काफी भव्य लगता है ।
यदि मौसम साफ हो तो आप यहां से धौलाधर
पर्वत श्रेणी को देख सकते हैं। चूँकि जब हमने दर्शन किये उस समय अँधेरा हो चूका था
इसलिए इस समय कुछ भी नहीं दिख रहा था। मंदिर की सीढियों से उतरते वक्त उत्तर दिशा में
पानी का तालाब है। पंड़ित माईदास की समाधि भी तालाब के पश्चिम दिशा की ओर है।
पंड़ित माईदास द्वारा ही माता के इस पावन धाम की खोज की गई थी।
चिंतपूर्णी का मंदिर छिन्नमस्ता या छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन तंत्र
ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। 1 काली 2 तारा 3 षोड़षी 4
भुवनेश्वरी 5 छिन्नमस्ता 6 त्रिपुर भैरवी 7 धूमावती 8 बगलामुखी 9 मातंगी 10 कमला। माता
छिन्नमस्तिका दस महाविद्या में पाँचवी महाविद्या हैं। माँ चिंतपूर्णी देवी जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक है तथा मुख्य 7 में से एक है। माँ चिंतपूर्णी देवी
के दर्शनों के लिए वैसे तो पूरे भारत से भक्त आते है लेकिन यहाँ आने वालों में
लगभग तीन चौथाई लोग पंजाब के होते हैं ।पूरे
पंजाब प्रान्त में माँ चिंतपूर्णी की बहुत मान्यता है । उत्तर भारत में माता वैष्णो देवी के बाद सबसे
अधिक श्रद्धालु इसी धार्मिक स्थल पर आते हैं । 2016 में यहाँ 40 लाख से अधिक श्रद्धालु आए थे, यानि औसतन लगभग 10 हज़ार श्रद्धालु
प्रतिदिन । छुट्टी के दिनों और नवरात्रि के त्यौहार के दौरान और भी बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर
में आते है। उल्लेखनीय है कि यह मंदिर राज्य के सर्वाधिक संपन्न मंदिरों में से एक
है ।चिंतपूर्णी मंदिर में शरदीय और गृष्मऋतु नवरात्रि काफी धूमधाम से मनाये जाते
हैं। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि की
प्रत्येक रात्रि को यहां पर जागरण का आयोजन किया जाता है।
दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के लिए भोग के रूप में सूजी का हलवा, लड्डू बर्फी, खीर, बतासा, नारियल आदि लाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर ध्वज और लाल चूनरी माता को भेट स्वरूप प्रदान करते हैं। माता के भक्त मंदिर के अंदर निरंतर भजन कीर्तन करते रहते हैं। इन भजनो को सुनकर मंदिर में आने वाले भक्तो को दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है और कुछ पलो के लिए वह सब कुछ भूल कर अपने को देवी को समर्पित कर देते हैं।
मंदिर समय : गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे
तक है और सर्दियों में सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक का है। दोपहर 12 बजे से 12।30
तक भोग लगाया जाता है और 7।30 से 8।30 तक सांय आरती होती है।
मंदिर का इतिहास
और पौराणिक महत्व
“ भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से
एक चिंतपूर्णी शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है जिसके उत्तर में
पश्चिमी हिमालय और पूर्व में शिवालिक श्रेणी है जो पंजाब राज्य की सीमा पर है।
चिंतपूर्णी शक्तिपीठ में छिन्नमस्तिका देवी और छिन्नमस्ता देवी का मंदिर है।
चिंतपूर्णी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे
से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ती कथा एक ही
है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी
स्थलो पर देवी के अंग गिर थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे
उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नही किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नही
समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी। वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयीं। जहां
शिव का काफी अपमान किया गया। इसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयी।
जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल
कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड
को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अपने सुदर्शन चक्र से
51 भागो में बांट दिया। जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि
चिंतपूर्णी मे माता सती के चरण गिरे थे। इन्हें छिनमष्तिका देवी भी कहा जाता है।
चिंतपूर्णी देवी मंदिर के चारो और भगवान शंकर के मंदिर है।
चिंतपूर्णी में निवास करने वाली देवी
को छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है। मारकंडे पुराण के अनुसार, देवी चंडी ने राक्षसों को एक भीषण युद्ध में पराजित कर दिया था
परन्तु उनकी दो योगिनियां (जया और विजया) युद्ध समाप्त होने के पश्चात भी रक्त की
प्यासी थी, जया और विजया को शांत करने के लिए की देवी चंडी ने अपना सिर काट लिया
और उनकी खून प्यास बुझाई थी। इसलिए वो अपने काटे हुए सिर को अपने हाथो में पकडे
दिखाई देती है, उनकी गर्दन की धमनियों में से निकल रही रक्त की धाराओं को उनके दोनों
तरफ मौजूद दो नग्न योगिनियां पी रही हैं। छिन्नमस्ता (बिना सिर वाली देवी) एक
लौकिक शक्ति है जो ईमानदार और समर्पित योगियों को उनका मन भंग करने में मदद करती
है, जिसमे सभी पूर्वाग्रह विचारों, संलग्नक और
प्रति दृष्टिकोण शुद्ध दिव्य चेतना में सम्मिलित होते है। सिर को काटने का अर्थ है
मस्तिष्क को धड़ से अलग कारण होता है, जो चेतना की
स्वतंत्रता है।
कहा जाता है की प्राचीन काल में पंडित
माई दास, एक सारस्वत ब्राह्मण, ने छपरा गांव
में माता चिंतपूर्णी देवी के इस मंदिर की स्थापना की थी। समय के साथ इस स्थान का
नाम चिंतपूर्णी पड़ गया। उनके वंशज आज भी चिंतपूर्णी में रहते है और चिंतपूर्णी
मंदिर में की पूजा अर्चना आदि का आयोजन करते है। ये वंशज इस मंदिर के आधिकारिक
पुजारी है।
शिवजी करते हैं
माँ छिन्नमस्तिका देवी की रक्षा
पौराणिक परंपराओं के अनुसार, शिव (रूद्र महादेव) जी छिन्नमस्तिका देवी की रक्षा चारों दिशाओं से
करते है। ये चार शिव मंदिर निम्न है – पूर्व के
कालेश्वर महादेव, पश्चिम के नारायण महादेव, उत्तर के
मुचकुंद महादेव और दक्षिण के शिव बारी। ये सभी मंदिर चिंतपूर्णी मंदिर से बराबर की
दुरी पर स्थित है।
कैसे पहुंचे माँ चिंतपूर्णी देवी जी का मंदिर भारत का प्राचीन मंदिर है जो कि हिमाचल
प्रदेश और पंजाब राज्य की सीमा पर स्थित हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले, में स्थित है। चिंतपूर्णी मंदिर सोला सिग्ही श्रेणी की पहाड़ी पर
स्थित है। भरवाई गांव जो होशियारपुर-धर्मशिला रोड पर स्थित है वहा से चिंतपूर्णी 3
कि॰मी॰ की दूरी पर है। यह रोड राज्य मार्ग से जुड़ा हुआ है। पर्यटक अपने निजी
वाहनो से चिंतपूर्णी बस स्टैण्ड तक जा सकते हैं। बस स्टैण्ड चिंतपूर्णी मंदिर से 1.5
कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। चढाई का आधा रास्ता सीधा है और आधा सीढीदार है। नजदीकी रेलवे स्टेशन अम्ब (20), होशियारपुर (42) और ऊना(55) किलोमीटर है”
।
मेरी
तरफ से ,नवरात्रे के शुभ अवसर पर आपको माता के प्रसिद्ध मंदिरों में ले जाने और
दर्शन करवाने का यह एक छोटा सा प्रयास था । आशा है आपको यह पसंद आया होगा । इस यात्रा के
दो अन्य पड़ाव , बाबा बैजनाथ और धर्मशाला -मैकडोनल्डगंज पर जल्दी ही लिखूंगा मगर एक ब्रेक के बाद ।
तब
तक आप इस सीरीज की पिछली पोस्ट
पढ़ सकते हैं । इसके लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें ।
दूर दिखाई दे रहा एक अन्य मंदिर |
वट वृक्ष |
मंदिर साइड से |
मंदिर पीछे से |
माता पिंडी रूप में |
छिन्नमस्तिका देवी |
बहुत ही सुंदर लेख और बहुत ही शानदार यात्रा। करवाई आपने जय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद . जय माता दी.
Deleteबहुत बढ़िया लेख नरेश जी।
ReplyDeleteक्या गर्भगृह में अबभी चित्र लेने की स्वतंत्रता है जी???
धन्यवाद अक्षय .जय माता दी .भीड़ थी बहुत हमने तो चुपके से चित्र ले लिए थे .
DeleteBhut badiya prayaas. Jai Mata Di
ReplyDeleteजय माता दी .
ReplyDeleteनरेश जी आपने इन नवरात्रे में हमें घर बैठे ही माता के विभिन्न मंदिरों के दर्शन करवा दिए , धन्यवाद .जय माता दी .
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ जी ।
Deleteजय माता दी ।।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख
धन्यवाद सुजीत जी ।
Deleteबहुत बढ़िया सहगल साब ! हमने रात में इस मंदिर के दर्शन किये थे , लेकिन भीड़ बहुत थी !! मंदिर का ऐतिहासिक पहलु अच्छा है !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी ।हिमाचल में सबसे अधिक भीड़ इसी मंदिर में होती है ।
Deleteजय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी ।जय माता दी ।
Deleteबहुत खूब नरेश जय माता दी,,,आपकी पोस्ट पढ़ पढ़ कर मानो सभी जगह घूम आये
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी .
Deleteim just reaching out because i recently published .“No one appreciates the very special genius of your conversation as the
ReplyDeletedog does.
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