Saturday, 15 September 2018

Gangotri Yatra : Gangotri Dham and Vishwanath Temple Uttarkashi

                    यमुनोत्री – गंगोत्री यात्रा ( Gangotri Temple )

गंगोत्री यात्रा -2 :
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि सुबह 6 बजे उत्तरकाशी से बस पकड़ गंगोरी, भटवारी, गंगनानी और फिर हर्षिल ,लंका और भैरों घाटी होते हुए लगभग 6 घंटे की यात्रा के बाद मैं 12 बजे गंगोत्री पहुँच गया । अब उससे आगे ..

गंगोत्री पहुँचते ही बस के परिचालक ने घोषणा कर दी कि यही बस दोपहर 2:00 बजे यहाँ से उत्तरकाशी वापिस जाएगी जिसको वापिस जाना हो 2:00 बजे तक बस में सवार हो जाये । मंदिर में दर्शन और पूजा पाठ के लिए दो घंटे कम नहीं थे । बस पार्किंग से गंगोत्री का मंदिर लगभग 300 मीटर दूर है,10-12 फीट चौड़ा रास्ता है और रास्ते के दोनों तरफ एक छोटा सा बाजार है जहाँ खाने पीने की दुकाने और पूजा सामग्री का सामान मिलता है।

Gangotri Temple
इसी बाजार से गुजरते हुए मैं मंदिर पहुंच गया । मंदिर में भीड़ बिल्कुल नहीं थी इसी बस से आई हुई कुछ सवारियाँ थी या कुछ लोग तीन-चार प्राइवेट गाड़ियां से वहां पहुंचे थे । बड़े आराम से मंदिर में दर्शन किये और फिर नीचे घाट पर जाकर भगीरथी माँ के दर्शन किए । घाट के आस-पास काफी पंडित लोग पूजा अर्चना करवाने के लिए भक्तों की तलाश में थे और कई लोग उनसे घाट पर पूजा करवा भी रहे थे । मुझसे भी तीन-चार पंडितों ने पूछा लेकिन मैंने मना कर दिया । यहाँ भगीरथी काफी वेग से बह रही थी और इसका जल भी काफी साफ था। मौसम में काफी ठंडक थी और मेरी नहाने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी फिर भी मैंने पञ्च स्नान तो कर ही लिया । घाट की तरफ संकटमोचन गणेश जी का मंदिर है ,उसके साथ ही भागीरथ शिला है जहाँ भागीरथ ने गँगा को स्वर्ग से धरती पर लाने के लिए कड़ी तपस्या की थी । उसके बाद काफी देर घाट पर बैठे –बैठे भगीरथी के तेज़ बहाव को देखते देखते सोचता रहा कि कैसे गँगा स्वर्गलोक से धरती पर आई ।
चलो पहले, गंगा धरती पर कैसे पहुँची इसी की कहानी सुनाते हैं

पौराणिक कथा के अनुसार महाराजा सगर ने खुद को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए अश्‍वमेध यज्ञ का आयोजन किया था । इस खबर से देवराज इन्‍द्र को चिन्ता सताने लगी कि कहीं उनका सिंहासन न छिन जाए। इन्‍द्र ने यज्ञ के अश्‍व को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के एक पेड़ से बाँध दिया। जब महाराजा सगर को अश्‍व नहीं मिला तो उसने अपने 60 हजार बेटों को उसकी खोज में भेजा। उन्‍हें कपिल मुनि के आश्रम में वह अश्‍व मिला। वहां उन्होंने देखा कि कपिलमुनि आंखें बन्द किए ध्यानमुद्रा में बैठे हैं और ठीक उनके पास यज्ञ का वह घोड़ा बंधा हुआ है जिसे वह लंबे समय से खोज रहे थे। इस पर सभी मंदबुद्धि पुत्र क्रोध में कपिल मुनि को घोड़े का चोर समझकर उन्हें अपशब्द कहने लगे। उनके इस कुकृत्यों से कपिल मुनि की समाधि भंग हो गई। आंखें खुलती ही उन्होंने क्रोध में सभी राजकुमारों को अपने तेज से भस्म कर दिया। लेकिन इसकी सूचना राजा सगर को नहीं लगी ।

जब लंबा समय बीत गया तो राजा फिर से चिंतित हो गए। अब उन्होंने अपने तेजस्वी पौत्र अंशुमान को अपने पुत्रों तथा घोड़े का पता लगाने के लिए आदेश दिया। आज्ञा का पालन करते हुए अंशुमान उस रास्ते पर निकल पड़ा जो रास्ता उसके चाचाओं ने बनाया था। मार्ग में उसे जो भी पूजनीय ऋषि मुनि मिलते वह उनका सम्मानपूर्वक आदर-सत्कार करता। खोजते-खोजते वह कपिल आश्रम में जा पहुंचा।वहां का दृश्य देख वह बेहद आश्चर्यचकित हुआ। उसने देखा कि भूमि पर उसके साठ हजार चाचाओं के भस्म हुए शरीरों की राख पड़ी थी और पास ही यज्ञ का घोड़ा चर रहा था। यह देख वह निराश हो गया। वे सारे अन्तिम संस्‍कारों की धार्मिक क्रिया के बिना ही राख में बदल गए थे। इसलिए वे प्रेत के रूप में भटकने लगे। आयुष्‍मान ने कपिल मुनि से याचना की वे कोई ऐसा उपाय बताएँ जिससे उनके अन्तिम संस्‍कार की क्रियाएँ हो सकें ताकि वो प्रेत आत्‍मा से मुक्ति पाकर स्‍वर्ग में जगह पा सकें। मुनि ने कहा कि इनकी राख पर से गंगा प्रवाहित करने से इन्‍हें मुक्ति मिल जाएगी। गंगा को धरती पर लाने के लिए ब्रह्मा से प्रार्थना करनी होगी।
   
कई पीढि़यों बाद सगर के कुल के भगीरथ ने हजारों सालों तक कठोर तपस्‍या की। तपस्‍या से प्रसन्‍न  होकर ब्रह्मा ने गंगा को धरती पर उतारने की भगीरथ की मनोकामना पूरी कर दी। गंगा बहुत ही उद्दंड और शक्तिशाली नदी थी। वे यह तय करके स्‍वर्ग से उतरीं कि वे अपने प्रचण्‍ड वेग से धरती पर उतरेंगी और रास्‍ते में आने वाली सभी चीजों को बहा देंगी। शिव को गंगा के इस इरादे का अन्‍दाजा था इसीलिए उन्‍होंने गंगा को अपनी जटाओं में कैद कर लिया। 
  
भागीरथ ने तब शिव को मनाया और फिर उन्‍होंने गंगा को धीरे-धीरे अपनी जटाओं से आजाद किया। भगीरथ के इस तपस्या से शिव जी फिर से प्रसन्न हुए और आखिरकार गंगा जी को हिमालय पर्वत पर  छोड़ दिया। छूटते ही गंगा जी सात धाराओं में बंट गईं। इन धाराओं में से पहली तीन धाराएं पूर्व की ओर प्रवाहित हुईं, अन्य तीन धाराएं पश्चिम की ओर बहीं और आखिरी एवं सातवीं धारा महाराज भगीरथ के पीछे-पीछे चल पड़ी। भगीरथ जहाँ भी जाते वह धारा उनका पीछा करती और तब गंगा भगीरथी के नाम से धरती पर आईं। उन राख के ढेरों से गुजरते हुए गंगा ने जहनु मुनि के आश्रम को डुबो दिया। गुस्‍से में आकर मुनि ने गंगा को लील लिया। एक बार फिर भगीरथ को मुनि से गंगा को मुक्‍त करने हेतु प्रार्थना करनी पड़ी। इस तरह गंगा बाहर आईं और अब वो जाह्नवी कहलाईं। इस तरह से गंगा का धरती पर बहना शुरू हुआ और लोग अपने पाप धोने के लिए उसमें पवित्र डुबकी लगाने लगे।

जिस स्थान पर भगीरथ में तपस्या की थी और गँगा धरती पर आई थी वही जगह आज गंगोत्री धाम के नाम से जानी जाती है। गंगोत्री धाम उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी शहर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है। गंगोत्री मंदिर का इतिहास लगभग 700 वर्ष पुराना है किन्तु वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने करवाया था लेकिन रख रखाव के अभाव और मौसम की मार से मंदिर धीरे धीरे नष्ट होने लगा । बाद में 20वीं सदी में जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने इसका जीर्णोंद्वार करवाया। गंगा का उद्गम स्थल यहाँ से 18 किलोमीटर दूर गोमुख में है। पहले गोमुख गंगोत्री धाम के पास ही था लेकिन पर्यावरण में बदलाव के कारण गोमुख खिसकते-2 हुए 18 किलोमीटर पीछे चला गया और इसका खिसकना आज भी जारी है।

गंगोत्री धाम के कपाट खुलने-बंद होने की तिथि शिवरात्रि को घोषित की जाती है ।सामान्यत ये अक्षय तृतिया को खुलते हैं और भैया दूज को बंद हो जाते हैं।

घाट पर बैठे-बैठे जब 1 घंटे से भी अधिक समय हो गया तो उठकर एक बार फिर मंदिर में प्रणाम किया और वापस चल दिया । एक भोजनालय में जाकर खाना खाया और ठीक 2:00 बजे पार्किंग में बस के पास पहुँच गया। यहाँ आकर मालूम हुआ कि सबसे पहले मैं ही लौटकर आया हूँ । चालक और परिचालक बस के पास ही थे । उनसे गपशप करने लगा। उन्होंने बताया कि उत्तरकाशी से गंगोत्री के लिए दो बस चलती हैं । पहली  बस सुबह 6:00 बजे चलती है और 11:00 बजे गंगोत्री पहुंचती है। यही बस 2:00 बजे उत्तरकाशी के लिए वापस चल पड़ती है। दूसरी बस उत्तरकाशी से 12:00 बजे चलती है, शाम को 5:00 बजे के बाद गंगोत्री पहुंचती है और अगले दिन सुबह उत्तरकाशी वापस जाती है । उन्होंने ही बताया कि दूसरी बस का कुछ निश्चित नहीं है, यात्रा सीजन में तो चलती है लेकिन यात्रा कम होने पर या बंद हो जाने पर सिर्फ सुबह वाली ही बस गंगोत्री जाती है। हमारी बातचीत के दौरान ही बाकि सवारियाँ भी आनी शुरू हो गयी और लगभग सवा दो बजे बस गंगोत्री से उत्तरकाशी के लिए वापस चल पड़ी ।  
  
वापसी में बस ने जाने की अपेक्षा कम समय लिया और 7 बजे से पहले ही उत्तरकाशी पहुँच गयी । इस समय उत्तरकाशी में तेज बारिश हो रही थी । बस से उतर कर मैं भागकर अपने होटल चला गया जो यहाँ से पास ही था । अब मेरी इच्छा यहाँ के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर जाने की थी । कमरे पर सामान रखकर , होटल वाले से मंदिर जाने का रास्ता पूछा । उसने कहा कि आप जल्दी जाओ ,आरती का समय है ,आरती पूर्ण होते ही मंदिर बन्द हो जाएगा । बारिश अभी भी तेज थी । मेरे पास रेनकोट या छाता नही था , अगर बारिश बन्द होने का इंतज़ार करता तो मंदिर बन्द हो जाता । मैंने ज्यादा समय न खराब करते हुए मन्दिर की तरफ दौड़ लगा दी । मुझे दौड़ता देख ,न जाने कहाँ से एक कुत्ता भौंकते हुए  मेरे पीछे पड़ गया, मैं और तेज़ भागा और इससे पहले वो कोई नुकसान पहुंचा पाता मैं मन्दिर में प्रवेश कर चुका था । मंदिर में घंटा ध्वनि के साथ भगवान शिव की आरती चल रही थी , सिर्फ आठ दस स्थानीय लोग ही वहाँ थे । आरती के बाद मैंने मंदिर में भोले नाथ के दर्शन किये और फिर सामने पार्वती माता के मंदिर में दर्शन करके वापिस होटल लौट आया ।

विश्वनाथ मंदिर : विश्वनाथ मंदिर हिन्दू देवस्थानो में से सर्वाधिक सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है । यह मंदिर उत्तरकाशी के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है । उत्तरकाशी को प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था एवम् कालांतर में इस स्थान को उत्तरकाशीकहे जाने लगा । उत्तराखण्ड के काशी विश्वनाथ मंदिर की स्‍थापना परशुराम जी द्वारा की गई थी । विश्वनाथ मंदिर हिंदूओं के देव भगवान शिव को समर्पित है , तथा भक्त यहां मंत्रों का सस्वर पाठ हर समय सुन सकते हैं । विश्वनाथ मंदिर आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है । मान्यताओं के अनुसार लगभग पत्थरों के ढाँचे के रूप में इस मंदिर का निर्माण गढ़वाल नरेश प्रद्युम्न शाह ने करवाया था , बाद में उनके बेटे महाराजा सुदर्शन शाह की पत्नी महारानी कांति ने 1857 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था ।  विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में एक प्राचीन शिवलिंग भी उपस्थित है, जो कि 56 सेमी ऊंचा और दक्षिण की ओर झुका हुआ है । मंदिर परिसर में ही विश्वनाथ मंदिर के सामने माता सती को समर्पित शक्ति मंदिर हैं जिसके गर्भगृह में देवी पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है । यहां का मुख्य आकर्षण एक विशाल और भारी त्रिशूल है - जिसकी ऊंचाई में लगभग 26 फुट है जो देवी दुर्गा द्वारा शैतानों पर फेंका गया था। और साथ ही साथ भगवान साक्षी गोपाल और बाबा मार्कंदे को समर्पित मंदिर भी हैं । भगवाण शिव के वाहन नंदी बैलमंदिर के बाहरी कक्ष में उपस्थित है । इस मंदिर को कत्युरी शैली में बनाया गया है । ऐसी मान्यता है कि उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन का फल वाराणसी के काशी विश्वनाथ के बराबर है ।

होटल के साथ ही काशी विश्वनाथ बस सर्विस का काउंटर था , वहाँ से सुबह के लिए बस का समय  पूछा । मालूम हुआ कि सुबह 5:30 बजे ऋषिकेश के लिए पहली बस जाएगी । वहीँ एक भोजनालय से खाना खाकर होटल में कमरे पर आकर सुबह जल्दी उठने का अलार्म लगाकर सो गया ।

अगले दिन सुबह जल्दी से उठकर 5 बजे तक तैयार हो गया और बैग लेकर होटल से बाहर जाने लगा तो देखा होटल का मूख्य द्वार बंद था । असल में होटल के आगे एक दुकान में होटल का ऑफिस था  और पीछे होटल । होटल जाने का रास्ता ऑफिस से ही था । ऑफिस के बाहर एक शटर भी था जो शायद रात को बंद करते होंगे । अब सुबह इस समय वो शटर डाउन था और होटल वाला नदादर. उसका मोबाइल भी ऑफ आ रहा था । मैंने शटर अन्दर से खोलने की बहुत कोशिश की लेकिन नहीं खुला । इतने में एक और फॅमिली अपना कमरा चेक आउट कर बाहर जाने को आ गयी । अब हम दोनों ने जोर लगाया लेकिन परिणाम वही डाक के तीन पात। दुसरे व्यक्ति ने बताया की होटल का एक कर्मचारी नीचे कमरे में सोया है ,हमने उसको उठाया । उसने बताया कि ये  शटर ख़राब है और बाहर से ही खुलेगा । इस सारी प्रकिर्या में मेरा आधा घंटा ख़राब हो चूका था । मुझे आशंका थी कि अब पहली बस तो मिलने से रही। हम तीनो होटल की छत पर गए ताकि बाहर से किसी को शटर उठाने को कहें । इतनी सुबह बाहर, ऑफिस के पास कोई नहीं था। जो थे, वो भी दूर थे। हाँ लगभग पौने 6 बजे ऋषिकेश वाली बस जाते हुए जरूर दिख गयी। बस के जाते ही होटल वाले का एक जानकार सड़क पर दिखा । उसे लड़के ने आवाज लगायी, फिर उसने बाहर से और हम तीनो ने अन्दर से जोर लगाकर शटर उठा दिया ।

आज यात्रा के अंतिम चरण में बस मुझसे जीत गयी। दो बार ये बस छूटने से पहले मिल गयी , तीसरी बार बस छूटकर भी मिल गयी। इस बार मेरे समय पर होने के बावजूद बस छूट गयी और ये आँख मिचोली खतम हुई । अगली बस एक घंटे बाद जानी थी । तब तक चाय बिस्कुट निपटाए और फिर बस से दोपहर तक ऋषिकेश पहुँचा और वहाँ से शाम तक घर पहुँच गया।

इस प्रकार खट्टी मिट्ठी मधुर यादों के साथ यात्रा पूर्ण हुई । मिलते हैं जल्दी किसी नई यात्रा के साथ ।।
जय माँ यमुनोत्री , जय माँ गंगोत्री ।।           








घाट की तरफ़ 


गंगोत्री मंदिर साइड से 




भगीरथी घाट 






























पीली चोंच वाला कौआ

नमकीन डाली तो नीचे आ गया 

दाना चुगने कबूतर भी आ गए 




विश्वनाथ मंदिर

विश्वनाथ मंदिर 

विश्वनाथ मंदिर 

विश्वनाथ मंदिर  -इन्टरनेट से 

41 comments:

  1. मज़ेदार अनुभव के साथ आपकी यात्रा समाप्त हुई। पूरा यात्रा पढ़ के आनंद आ गया और जानकारी भी बहुत अच्छी दी है।

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    1. धन्यवाद अनित कुमार जी ।💐💐

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  2. वाह क्या शब्द है भाई बस मुझसे जीत गयी...एक दिन में गंगोत्री जाना आना दर्शन और विश्वनाथ के दर्शन...बढ़िया भाई

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    1. धन्यवाद प्रतीक भाई ।जय गंगा माँ ।

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  3. जय मां गंगे....

    गंगोत्री मंदिर के पास सूर्यकुंड,गौरीकुंड और पांडव गुफा भी दर्शनीय हैं...दोबारा जायें तो जरुर देखें।

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    1. धन्यवाद अनिल जी ।आपके सुझावों पर अवश्य अमल किया जाएगा ।,💐💐

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  4. अच्छी जानकारी और मनमोहक चित्रों से भरी बढ़िया पोस्ट .पूरी सीरीज बढ़िया रही .

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    1. धन्यवाद राज़ जी ।💐💐

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  5. Well narrated interesting post with beautiful pictures.

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  6. आभार शास्त्री जी ।🙏💐

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  7. माँ गंगा हम सभी की आदरणीय है। गंगोत्री मंदिर व विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर अच्छा महसूस हुआ। बाकी आपका यात्रा व्रतांत गज़ब था। खट्टी मीठी यादों से भरपूर यह यात्रा रही आपकी।

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    1. धन्यवाद सचिन त्यागी जी . लगातार उत्साहवर्धन के लिए बेहद धन्यवाद.

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  8. सुन्दर वर्णन और चित्र

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  9. Nice informative post with beautiful pictures.

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    1. धन्यवाद प्रदीप शर्मा जी..

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  10. जय़ माँ गंगे

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    1. धन्यवाद सुनील मित्तल जी . जय गंगे माँ .

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  11. बहुत अच्छी रही गंगोत्री यात्रा 👌

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    1. धन्यवाद बुआ जी .आशीर्वाद बनाये रखिये .

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  12. शानदार यात्रा का शानदार समापन ..जय माँ यमुनोत्री ..जय माँ गंगोत्री ..

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  13. very interesting,attractive & informative post... 👌congratulations

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    1. धन्यवाद सुशील मल्होत्रा जी .

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  14. भाई साहब, क्या एक दिन में उत्तर काशी से सुबह बस लेकर सायं तक भोजवासा या गोमुख पहुंचा जा सकता है? और सुबह गोमुख से चलकर रात तक बस से उत्तर काशी आया जा सकता है? कृपया करके बताये।

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    1. उत्तर काशी से सुबह बस लेकर सायं तक भोजवासा पहुंचना मुश्किल है . गंगोत्री में एक रात रुकना तबियत के लिए भी अच्छा है. आपका शरीर ऊँचाई के अनुकूल हो जायेगा .

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  15. रोचक रही यात्रा, जिसमे घुम्मकड़ी के सभी आवश्यक अवयव उपस्थित रहे 👌

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    1. धन्यवाद अवतार सिंह पाहवा जी .

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  16. बहुत ही सुंदर वर्णन ........! ! !

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    1. धन्यवाद राजबंश सिंह जी .

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  17. सुंदर वर्णन आपकी गंगोत्री यात्रा की,,,हम 2012 मैं जाकर आये,खूबसूरत रास्तों से होकर गंगोत्री धाम मैं अपने आप मैं यादगार है

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    1. धन्यवाद दीदी । जय गंगोत्री माँ

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  18. बहुत बढ़िया सहगल साब ...आपके माध्यम से हमने भी गंगोत्री के दर्शन कर लिए ..जय गंगा मैया

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  19. धन्यवाद योगी सारस्वत जी .जय गंगा मैया

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  20. Hii there
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  21. Thank you so much for this information ….I liked your blog very much it is very interesting and I learned many things from this blog which is helping me a lot.

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  22. बहुत अच्छी जानकारी साँझा की है। हमारा यह लेख भी पढ़ें गंगोत्री धाम के बारें में

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  23. You have really shared a very good thing see this also Gangotri Dham

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  24. Vah kya likhate hai Bhai ji aap bahot hi badhiya

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