यमुनोत्री – गंगोत्री
यात्रा ( Gangotri Yatra )
गंगोत्री यात्रा -1
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि सुबह 6 बजे जानकी
चट्टी से निकल कर ट्रेक करते हुए 9 बजे यमुनोत्री पहुँच गए। मंदिर में दर्शन के
बाद जानकी चट्टी वापसी की ,वहाँ से जीप द्वारा बडकोट वापिस आये और फ़िर शाम चार बजे
बडकोट से उत्तरकाशी की बस पकड ली। अब उससे आगे …..
बडकोट से उत्तरकाशी
का रास्ता बेहद खूबसूरत है । कोटद्वार वाले रास्ते की याद आ गयी । सड़क के दोनों
तरफ चीड़ का घना जंगल है । जब सड़क के किनारे लम्बे- लम्बे चीड़ के पेड़ खड़े हों तो ये
एक सुन्दर मनभावन दृश्य तो उत्पन्न करते ही हैं , खाई और सड़क के बीच में एक दीवार
का काम करते हुए मन में एक सुरक्षा का भाव भी कराते हैं। रास्ते में कई छोटे -2
गाँव पड़ते हैं , शाम का समय था , नौकरी पेशा लोग छुट्टी के बाद बस का इंतजार करते हुए खड़े
मिलते । बस सभी जगह रूकती , कुछ सवारी चढ़ती , कुछ उतरती बस फिर आगे अपनी मंजिल की
और चल पड़ती । सफ़र बढ़िया कट रहा था लेकिन धरासू पहुंचकर मेरे साथ एक मजेदार-यादगार किस्सा
घटित हुआ ।
हर्षिल और भगीरथी |
आज दोपहर 1 बजे मैं बड़कोट
के लिए शेयर्ड जीप में बैठ गया था ,शाम चार बजे तक जीप में ही रहा । बड़कोट पहुँचकर
जीप से उतरते ही बस मे सवार हो गया और अब बस में बैठे हुए भी एक घंटा बीत चूका था ।
इधर मुझे लघुशंका का प्रेशर बन रहा था । रास्ते मे बस जहाँ भी रूकती ,कहीं भी हलके
होने की जगह न होती । गाँव में सवारी पहले ही खड़ी होती और इधर प्रेशर काफी बढ़ चूका
था । मैंने बस कंडक्टर से कहीं ऐसी जगह बस रोकने को कहा जहाँ आबादी न हो । बस कंडक्टर
बोला यदि बहुत ही आपातकालीन स्तिथि है तो अभी रुकवा देता हूँ नहीं तो 10-15 मिनट
में धरासू आने वाला है ,वहाँ बस भी 5 मिनट रुकेगी और उधर जगह भी है । मैंने
कहा ठीक है धरासू ही हल्के हो लेंगे । 15-20 मिनट में धरासू बेंड आ गया । बस
रुकी और मुझे कंडक्टर ने इशारा किया और मैं नीचे उतर गया । बस के रुकने से लगभग
100 फिट पीछे सड़क की एक तरफ अस्थायी शौचालय बना हुआ था । मैं भागकर वहाँ गया और
रिलैक्स होने लगा । 2-3 मिनट बाद जब लघुशंका से निवृत होकर बाहर आया तो सामने बस
नहीं थी । मुझे लगा शायद बस मोड़ से आगे खड़ी होगी , भागकर वहाँ पहुंचा और वहाँ खड़े
एक रेहड़ी वाले से बस के बारे में पूछा तो उसने बताया बस तो चली गयी । मोड़ के दूसरी
तरफ देखा तो बस जा रही थी । बस तो गयी मेरा बैग भी गया। मुझे बहुत गुस्सा आया और
समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ ?? लेकिन मेरा मन अन्दर ही अन्दर कंडक्टर के सभी नजदीकी
रिश्तेदारों को बार-बार याद कर रहा था ।
बस से साथ ये मेरी आँख मिचोली कल से चल रही थी । पहले दो बार बस छूटते -2 मिली
और आज मिली हुई बस भी छूट गयी ।
बस 300 -400 मीटर
आगे जा चुकी थी । दो लड़के बाइक पर बस की दिशा में ही जा रहे थे । वो मेरी स्तिथि
समझ चुके थे ,मैंने उनसे बाइक भगाकर बस रुकवाने को कहा और मैं भी उधर की तरफ भागा।
लेकिन बाइक के बस के पास पहुँचने से पहले ही बस रुक गयी । कंडक्टर दरवाजे से बाहर
आया और मुझे बुलाने लगा । मैं तो पहले ही उस तरफ भाग रहा था ,थोड़ी देर में बस तक
पहुँच गया । खामखाँ आधा किलोमीटर की दौड़ लगवा दी। मैंने वहाँ जाते ही कंडक्टर पर गुस्सा
निकाला लेकिन वो शांत रहा । बोला “ भाई जी गलती हो गयी, मुझे तुम्हारा याद ही नहीं
रहा । ये तो जो सवारी यहाँ से बैठी है उसने आपका बैग सीट पर रखा हुआ देखकर मुझसे
पूछा की ये बैग किसका है , तो मुझे आपकी याद आई ” उसकी साफगोई के बाद मैं ज्यादा
कुछ कर भी नहीं सकता था. अंत भला सो भला ।
धरासू मोड़ से लेकर उतरकाशी तक बीच-बीच में काफी ख़राब रास्ता है ,2013 में आई
आपदा के निशान अभी तक मौजूद थे. बस धीरे धीरे हिचकोले खाते शाम 7 बजे के करीब
उत्तरकाशी पहुँच गयी । बस से उतर कर पहले सुबह गंगोत्री जाने के लिए बस का समय पता
किया । मालूम हुआ कि सुबह 6 बजे बस जाएगी । इसके बाद कमरे की तलाश शुरू की । बस
स्टैंड से थोड़ा पहले एक पेट्रोल पंप हैं उसके सामने ही एक गेस्ट हाऊस में एक कमरा
पसन्द आ गया ,किराया शायद 400 रुपये था । कमरे में सामान रख पहले थोड़ा आराम किया
फिर नहाकर बाहर खाना खाने चला गया । गेस्ट हाउस के पास ही एक भोजनालय था, ज्यादा
दूर नही जाना पड़ा । खाना खाकर कमरे पर लौट आया और सुबह 5 बजे उठने का अलार्म लगाकर
सो गया ।
सुबह समय से उठकर जल्दी से तैयार हो गया और फिर बाहर आकर चाय के साथ बिस्कुट
का नाश्ता किया और बस स्टैंड की तरफ चल दिया । बस पहले से तैयार खडी थी और
सवारियों से पूरी भरी हुई थी । काफी लोग बस में खड़े भी थे। भीड़ देखकर एक बार तो
मन में शेयर्ड जीप में चलने का ख्याल आया लेकिन जब यह ध्यान आया कि जीप बिना भरे नहीं
जाएगी तो मैं बस में ही सवार हो गया। बस ठीक 6:00 बजे उत्तरकाशी से चल पड़ी , बस
में बैठी सवारियों से ही मालूम हुआ कि इसकी सीटें काउंटर से पहले भी बुक हो जाती
हैं और बहुत सी सवारियों ने कल रात को ही सीटें बुक करा ली थी । अगर मुझे मालूम
होता तो कल रात जब मैं उत्तरकाशी पहुंचा था, तभी गंगोत्री की सीट बुक करवा लेता ।
थोड़ी देर बाद जब कंडक्टर टिकट काटने आया तो मैंने उससे गंगोत्री की टिकट मांगी ;
उसने मुझे टिकट देते हुए एक सीट की तरफ इशारा करते हुए कहा कि उस सीट पर जो सवारी
बैठी है वह आधे घंटे बाद आगे गाँव में उतर जाएगी तब आप उस सीट पर बैठ जाना। असल
में इस बस में गंगोत्री जाने वाली सवारियाँ कम थी और रास्ते में पड़ने वाले गाँवो की
ज्यादा ।
उत्तरकाशी से निकलने के बाद काफी दूर तक सड़क और भागीरथी के साथ साथ काफी आश्रम बने हुए हैं। यहाँ से 5 किलोमीटर की दूरी पर सबसे पहले गंगोरी
गाँव आता है । उससे आगे नेताला , गोरसाली और भटवारी । बस जहाँ भी रूकती ,बस का परिचालक वहाँ की डाक
किसी दुकान में रख आता । ये बस सवारियों के साथ-2 डाक को भी अपने गंतव्य तक पहुंचा
रही थी । इन दूर दराज के गाँवो को लिए बस सेवा एक बेहतरीन कड़ी का काम करती है । भटवारी
से आगे बायीं तरफ एक मार्ग बरसु गांव की ओर जाता है। दयारा बुग्याल की चढ़ाई बरसू से ही शुरू
होती है। दयारा बुग्याल उत्तराखंड के सुन्दरतम बुग्यालों में से एक है और यहाँ
बहुत से लोग विंटर ट्रेक के लिए भी आते हैं । भटवारी तक सड़क बीच-बीच में से काफी
खराब थी और अधिकतर जगह सिंगल लेन सड़क की थी। रास्ते में एक जगह काफी लैंडस्लाइड हो
रखी थी, वहां रूककर काफी देर रुक कर रास्ता साफ होने की इंतजार करना पड़ा जब JCB
ने आकर रास्ता साफ किया तो आगे की यात्रा शुरू
की।
उत्तरकाशी से लगभग 47 किलोमीटर की दूरी
पर गंगनानी स्थित है । यह लगभग उत्तरकाशी और गंगोत्री के मध्य में पड़ता है और इस
मार्ग का प्रमुख पड़ाव है। गंगोत्री आने- जाने वाले यहाँ ब्रेक के लिए रुकते हैं ।
हमारी बस भी यहाँ चाय ब्रेक के लिए रुकी । गंगवानी से आगे भागीरथी सड़क से दूर हो
जाती है और फिर हर्षिल में ही मिलती है । गंगनानी से आगे सुक्खी टॉप ,सुनगर झाला
और फिर हर्षिल आता है। जैसे जैसे हम गंगोत्री की ओर बढ़ रहे थे आसपास की सुंदरता
भी बढ़ती जा रही थी। कुछ देर बाद हम हर्षिल घाटी पहुंच गए। हर्षिल घाटी से पहले भागीरथी
पर बना पुल काफी जर्जर स्थिति में था वहां पुल पार करने से पहले सुरक्षाकर्मियों
ने सभी सवारियों को बस से उतरकर पैदल पुल पार करने को कहा । हर्षिल के पास भागीरथी घाटी
काफी खुली और बड़ी है और यहाँ भागीरथी लगभग आधा किलोमीटर चौड़ाई में बहती है।
हर्षिल : उत्तराखंड शहर
में, समुद्र तल से करीबन 2620
मीटर की उंचाई पर गंगोत्री हाईवे से लगा हर्षिल नाम का एक छोटा सा गाँव स्थित है। यह
उत्तरकाशी से 72 किलोमीटर दूर और गंगोत्रीधाम से करीब 25 किलोमीटर पहले भागीरथी
नदी के तट पर बसा है। ऐसा माना जाता है कि सतयुग में, भगवान विष्णु ने पत्थर की शिला का रूप लेकर नदियों के क्रोध
को सोख लिया था । इसलिए इस गाँव का नाम 'हरसिल' या 'हरिशिला' पड़ गया। इसके अलावा ऐसा माना जाता है कि उस समय से ही इन
नदियों की उग्रता कम हो गयी। हर्षिल में प्रकृति ने बेशुमार सौंदर्य बिखेरा है ।
हर्षिल में आपकों चारों ओर फूल,
देवदार के घने जंगल, हिमाच्छादित चोटियां और पहाड़ों पर पसरे हिमनद दिखेंगे । इन सबके साथ शांत
होकर बहती गंगा भागीरथी आपको अलग ही अहसास कराएगी। हर्षिल में सैनिक छावनी भी है।
गंगा भागीरथी के तट पर बसे हर्षिल के छोटे से भू-भाग में नदी-नालों, जल-प्रपातों की भरमार है। देवदार के सघन वृक्षों की शीतल छांव गंगोत्री जाने
वाले हर यात्री को यहां खींच लाती है। जीवन में कम से कम एक बार तो हर्षिल की यात्रा
बनती ही है।
ईस्ट इंडिया कंपनी का कर्मचारी फेडरिक विल्सन हर्षिल की खूबसूरती पर इतना फिदा
हुआ कि यहीं का होकर रह गया। उस समय ब्रिटिश सरकार को भारत में रेलवे लाइनों के निर्माण के लिये अच्छी गुणवक्ता वाली लकड़ियों की आवश्यकता थी। विल्सन ने इस
अवसर का फायदा उठाते हुए देवदार के पेड़ अवैध रूप से काट – काट कर बेचने लगे। उन्होंने इस व्यापार से खूब पैसा कमाया और यहां खूबसूरत बंगला बनाया, जिसे लोग दशकों तक विल्सन हाउस के नाम से जानते
थे। हालिया वर्षों में एक अग्निकांड के कारण यह बंगला जल गया। उसकी जगह अब वन
विभाग ने गेस्ट हाऊस बनाया है। विल्सन की देन हर्षिल के सेब अपनी एक अलग पहचान
रखते हैं।
हिंदी फिल्मों के शोमैन राजकपूर एक बार गंगोत्री आए तो हर्षिल की खूबसूरती ने उन्हें इतना अभिभूत किया कि उन्होंने इस पर एक फिल्म ही बना डाली। राम तेरी गंगा मैली नाम की इस फिल्म में अधिकांश दृश्य हर्षिल व उसके आसपास के क्षेत्रों में फिल्माए गए हैं। हर्षिल में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर्षिल से बमुश्किल एक किलोमीटर दूरी पर स्थित बगोरी जाने के लिए नौ पुल पार करने होते हैं।
हिंदी फिल्मों के शोमैन राजकपूर एक बार गंगोत्री आए तो हर्षिल की खूबसूरती ने उन्हें इतना अभिभूत किया कि उन्होंने इस पर एक फिल्म ही बना डाली। राम तेरी गंगा मैली नाम की इस फिल्म में अधिकांश दृश्य हर्षिल व उसके आसपास के क्षेत्रों में फिल्माए गए हैं। हर्षिल में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर्षिल से बमुश्किल एक किलोमीटर दूरी पर स्थित बगोरी जाने के लिए नौ पुल पार करने होते हैं।
हमरी बस के परिचालक को हर्षिल में कुछ सामान देना था इसलिए हमारी बस वहाँ भी
10 मिनट रुकी । हर्षिल से आगे गंगोत्री तक खड़ी चढ़ाई है। सड़क के दोनों तरफ देवदार
का घना जंगल है । हमारी बस बगोटी ,धराली ,लंका
और भैरों घाटी होते हुए लगभग 12 बजे गंगोत्री पहुँच गयी ।
अगली पोस्ट में आपको गंगोत्री धाम के दर्शन करवाएंगे और उत्तरकाशी स्तिथ काशी विशवनाथ
के मंदिर भी ले चलेंगे तक तक यहाँ की
तस्वीरें देखिये ।
हर्षिल |
हर्षिल |
Bhagirthi in HARSHIL |
Bhagirthi in HARSHIL |
Bhagirthi in HARSHIL |
Bhairon Ghati |
गंगवानी में चाय ब्रेक |
सुन्दर घाटी |
landslide के कारण लगा जाम |
ट्रैफिक जाम |
हर्षिल से पहले पुल |
कमजोर पुल -शायद अब नया बन चूका हो |
पैदल यात्री बस की इंतजार करते |
हर्षिल |
खूबसूरत वर्णन पढ़ते पढ़ते मैं तो उन दिनों को याद करने लगी जब हम मस्ती मस्ती मैं चार धाम कर आये,,,बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी .घुमने के दौरान की हुई मस्ती यादें बनकर अमर हो जाती है .
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-09-2018) को "क्या हो गया है" (चर्चा अंक-3092 ) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आभार राधा तिवारी जी .
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 11/09/2018 की बुलेटिन, स्वामी विवेकानंद के एतिहासिक संबोधन की १२५ वीं वर्षगांठ “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार मिश्रा जी ।💐💐💐
Deleteयात्रा बढ़िया चल रही हैं।बस छूटने पर गहरा आगाध लगा होगा
ReplyDeleteWow ये कॉमेंट तो छप गया ☺
Deleteधन्यवाद बुआ जी । 🙏,आपका प्रयास सफल रहा इस बार। अच्छा लगा ।💐💐
Deleteहर हर गंगे
ReplyDeleteहर हर गंगे अनिल शर्मा जी ।💐💐
Deleteवाह सर ह्र्षिल की खूबसूरती तो सच में लाजवाब है कोई वहां एक रात रुककर तो देखे
ReplyDeleteविल्सन चोर का कुछ ज्यादा महीमामंडन कर दिये आप सर जी 😄
धन्यवाद अनुराग जी ।ब्लॉग पर आपका स्वागत है । अब पोस्ट को एडिट कर विल्सन का दूसरा रूप भी लिख दिया है । 💐💐👍
Deleteबहुत खूबसूरत वर्णन
ReplyDeleteसहगल जी , मेरा गंगोत्री का प्रोग्राम था अगस्त के दूसरे हफ्ते में पर परिस्थितियों के अधीन , न जा सका
पर जो साथ वाले होकर आए तो बयाँ किये किं भारी बारिश से रास्ते तकलीफदेह हो गये खैर अब अगले साल इंतेज़ार
धन्यवाद खन्ना साहब । बारिश के मौसम में रिस्क रहता ही है । अब चले जाओ ,साफ मौसम मिलेगा 🙏💐.
Deleteवाह सहगल साहब, बड़े सही समय पर पोस्ट आया है , 2 अक्तूबर को मैं भी पहुंच रहा हूँ ।
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश कुमार जी 🙏💐 .
Deleteऐसी ही सम विसम स्थिति पढ़ के अच्छा अनुभव मिलता हैं। आपकी यात्रा मज़ेदार तो हो ही जाती हैं।
ReplyDeleteजी सही कहा आपने अनित कुमार जी । ऐसी ही स्थितियों से यादगार यादें बन जाती हैं । पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद ।💐💐
DeleteVery nicely written Sehgal ji.
ReplyDeleteधन्यवाद सैनी साहब 💐💐.
Deleteवआआह नरेश जी, बहुत बढ़िया लिखा हमेशा की ही तरह ��
ReplyDeleteफोटोज भी खूब हैं और खूब भी हैं ��
धन्यवाद पाहवा जी 🙏. आज आप भी पोस्ट पर पहुँच ही गये ।💐💐
Deleteअच्छा यात्रा वर्णन और साथ मे सुंदर फ़ोटो भी।
ReplyDeleteआपके साथ बस वाला किस्सा घटा लेकिन अंत भला तो सब भला। 100/100
उत्साह वर्धन के लिए बहुत धन्यवाद सचिन भाई 🙏💐.
Deleteआपकी ये यात्रा बहुत अच्छी रही .. हर्षिल के बारे अच्छी जानकारी दी .. अभी तक केवल नाम ही पता था ....
ReplyDeleteचित्र भी बहुत अच्छे रहे
समय निकाल कर पोस्ट पढ़ने और कमेंट करने के लिए धन्यवाद रितेश गुप्ता जी .
Deleteहर्षिल वास्तव में बहुत सुंदर है।
ReplyDeleteसमय निकाल कर पोस्ट पढ़ने और कमेंट करने के लिए अनुराग जी आपका धन्यवाद.
DeleteBahut badhiya... esa laga Hum sath hi chal rahe h
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराग माथुर जी .
DeleteAs usual, good description with lot of very beautiful pictures. Now , Harshil is in my wish list as you have mentioned .. .."one should go there in life time."😃
ReplyDeleteतारीफ के लये धन्यवाद श्रीमती जी . हर्षिल के बारे तो मैंने ऐसे ही लिख दिया आप सीरियस न हों . अब भला मैं मजाक भी नहीं कर सकता !! ;)
Deleteबिल्कुल सही पकड़े जी आप, अब तो कम से कम हर्षिल आपका एक बार तो जरूर जाना बनता है । सहगल साहब का एक एक फोटो हर्षिल की सुंदरता की गवाही दे रहा है । आप दोनों की साझी यात्रा वर्णन का इंतज़ार रहेगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय कौशिक जी . अब सपरिवार जाने का प्रोग्राम बनाना ही पड़ेगा .
DeleteVery nice description and photographs as well.We are also planning to visit there in month end. Waiting for your next thread of travel.
ReplyDeleteRegards
Niranjan
धन्यवाद निरंजन प्रजापति जी .अगली पोस्ट आज पब्लिश हो गयी है .
Deleteहरसिल का वर्णन आपने बहुत खूब किया है सच में हर्षल अपने आप में स्वर्ग से कम नहीं हैअगले लेख का इंतजार
ReplyDeleteधन्यवाद नरेंदर जी .अगली पोस्ट भी लिख दी है .
Deleteबहुत अच्छा वर्णन किया, मैं अभी उत्तराखंड में केवल उत्तरकाशी जिले में नहीं गया अब जाने का मन करने लगा।
ReplyDeleteधन्यवाद अनजान महोदय . उत्तरकाशी काफी सुन्दर जगह है और भारत की दो सबसे बड़ी नदियों का उद्गम स्थल भी
Deleteहमेशा की तरह मज़ेदार। अगर कोई मित्र साथ होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती।
ReplyDeleteसही फ़रमाया अनित जी आपने, पर कई बार अकेले ही यात्रा करनी पड़ती है
Deleteबढ़िया सहगल साब .शानदार यात्रा चल रही है और नज़ारे बहुत खूबसूरत हैं .हर्षिल तो है ही सूंदर उसकी और क्या तारीफ की जाय .चलते रहिये
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .
DeleteSuch an amazing post,enjoy to read this article,like the way you write, informative post, keep posting.
ReplyDeleteBest Hotels of Mussoorie near Mall Road
बहुत अच्छा लिखते है। हमें ब्लॉग लेख बहुत पसंद आते है। हमारा लेख भी पढ़ सकते है। गंगोत्री धाम के बारें में
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