यमुनोत्री – गंगोत्री
यात्रा (Yamunotri Temple)
यमुनोत्री यात्रा
पार्ट 2 : बड़कोट – यमुनोत्री – बड़कोट
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा किस
तरह सुबह 6 बजे घर से निकल कर , बस के लिए भाग दौड़ और फिर सीट के लिए नोक-झोंक के
बाद आखिरकार शाम 6 बजे बड़कोट पहुँच गया। बड़कोट ,दिल्ली यमुनोत्री हाईवे पर एक छोटा नगर है ।
मुख्य बाज़ार इसी सड़क के दोनों तरफ बना है । इसी सड़क पर एक जगह बस स्टॉप है, कोई
अलग से बस स्टैंड नहीं है। मैं बस से उतर कर सीधा आगे की तरफ चला गया और टैक्सी
स्टैंड पर पहुँच गया । वहाँ चार पाँच जीप खड़ी थी । मालूम हुआ कि जानकी चट्टी के लिए शेयर्ड जीप यहीं से जाएगी । यमुनोत्री
जाने के लिए सड़क मार्ग जानकी-चट्टी तक ही है । उससे आगे लगभग 6 किलोमीटर का ट्रेक
है ।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheKBnU058XspD0SkMXD4oZWRnXJeBKfuWLD_qCpQcBYUtC7FOgAJTLIibLDpSxcDLTsENUaAMa6XK6zP4d82otO6kWNSUzncyux277kvGEY8aUWOoiC_C8OzLE6GiGG2WMHSkk4vK8FJ51/s640/DSCN0080.JPG) |
यमुनोत्री मंदिर |
वहीँ खड़े एक ड्राईवर से मैंने पूछा ,जानकी-चट्टी जीप कब जायेगी ? जबाब मिला
कि जब पूरी सवारी भर जाएगी । इससे पहले वाली जीप को जानकी-चट्टी गए हुए आधा घंटा
हो चूका था लेकिन तब भी यहाँ मेरे अलावा कोई सवारी नहीं थी । मुझसे ड्राईवर ने कहा
अब इस समय कोई सवारी नहीं मिलेगी , आप यहाँ होटल में कमरा लेकर रुक जाओ ,सुबह 7
बजे आ जाना ,सुबह मैं ही आपको मिलूंगा, अब मेरी गाड़ी का नम्बर है और सबसे पहले
मेरी ही जीप जाएगी । यह सुनकर मुझे बड़ी निराशा हुई ,यहाँ रात रुकने का मतलब –कल का
सारा प्रोग्राम बिगड़ जायेगा । कल सुबह भी जीप पूरी भरने के बाद ही चलेगी । आठ –साढ़े
आठ यहीं बज सकते हैं और जानकी-चट्टी पहुँचने में सुबह के 10 बज जायेंगे ।
मेरा प्रोग्राम के
अनुसार आज मुझे जानकी-चट्टी पहुँचना था । कल
सुबह यमुनोत्री आना-जाना (11 किमी ट्रेक) , दोपहर को बड़कोट वापसी और शाम तक
उत्तरकाशी पहुँचना । बड़कोट से उत्तरकाशी के लिए शाम 4 बजे आखिरी बस है । मैं उससे
पहले बडकोट वापिस आना चाहता था । इन जीपों का मुझे भरोसा नहीं था ,पूरी भरेंगी तो
चलेंगी अन्यथा नहीं। आज यहाँ रुकने से मेरा सारा प्रोग्राम बिगड़ता दिख रहा था, कल
बहुत भागदौड़ हो जाएगी । सड़क के साथ ही ऊपर पहली मंजिल पर टैक्सी यूनियन का ऑफिस था
वहाँ जाकर पता किया। वहाँ भी वही जबाब मिला ,कम से कम 8 सवारी होगी तो गाड़ी जाएगी
या आप 8 सवारी का किराया दो । जानकी-चट्टी
यहाँ से लगभग 45 किमी दूर है और किराया 100 रूपये प्रति सवारी । अब मैं
पूरी गाड़ी का किराया तो देने से रहा ,चुपचाप नीचे आ गया । अब तक एक सवारी और आ
चुकी थी उसे भी जानकी-चट्टी जाना था । वो वहीँ किसी होटल में काम करता था ।
थोड़ी देर दिल्ली के तीन युवक वहाँ पहुंचे उन्होंने भी यमुनोत्री जाना था । वे
देहरादून के सीधे रास्ते की जगह ऋषिकेश चम्बा धरासू होते हुए यहाँ पहुँचे थे। अब
हमारे पाँच सवारी होने के बाद भी जीप वाले ने जाने से मना कर दिया । हमने उसे 8 सवारी का किराया भी ऑफर कर दिया लेकिन वो जाने को तैयार नही
था । शाम के सात बजे चुके थे और दिन ढलना शुरू हो चुका था । हम सभी परेशान थे और
रात यहाँ रुकने की किसी की भी इच्छा नहीं थी ।
थोड़ी देर बाद दूसरा ड्राइवर बोला आप उसे 10 सवारियों का किराया यानी
1000 रुपये दो तो वो चला जायेगा । नही तो सुबह ही जाना पड़ेगा । हमने आपस में सलाह
की और हाँ कर दी । ड्राइवर ने गाड़ी खोल दी और हमें बैठने को कह कर कहीं चल पड़ा ।
हम सबने अपना सामान सेट किया और गाड़ी में बैठ गए लेकिन ड्राइवर का कहीं अता पता
नही था । जब 15 मिनट बीत गए तो हम गाड़ी से उतर गए और ड्राइवर को खोजने लगे । वो तो
नही मिला उसका दूसरा साथी हमारे पास आया और बोला कि ड्राइवर ने जाने से मना कर
दिया है । हम बहुत निराश हुए उससे ही कोई दूसरी गाड़ी के बारे में पूछा । उसने
बताया कि अब अँधेरा हो चुका है तो इस समय कोई नही जाएगा । यदि आपको जाना ही है तो
मैं चल सकता हूँ लेकिन 1500 रुपये लगेंगे । ये लोग हमारी मजबूरी का पूरा फायदा उठा
रहे थे. पहले 800 माँगे , फिर 1000 , हम तैयार थे तो 1500 माँगने लगे । 5 सवारी और तीन
गुना किराया । मज़बूरी में हमें ये भी मंज़ूर
था तो हाँ कह दी । कोई भी रात यहाँ रुककर कल सुबह तक का इंतजार करने को
तैयार नहीं था । एक मिनट में ही दूसरी गाड़ी आ गयी । एकदम नई बोलेरो , सीटों से अभी प्लास्टिक की पन्नी भी नहीं उतरी थी। हम सभी गाड़ी में समान सहित
सवार हो गए। दो पीछे वाली सीट पर ,दो बीच मे और मैं आगे ड्राइवर के साथ । ठीक
7:30 बजे हम बड़कोट से जानकी चट्टी के लिए निकल पड़े।
पूरे अंधेरे के बीच सुनसान सड़क पर गाड़ी भागी जा
रही थी । इक्का-दुक्का वाहन ही सड़क
पर आता-जाता मिल रहा था । गाड़ी में “भक्त के बस में है भगवान” भजन चल रहा था
और मैं उसे सुनने में तल्लीन था । लगभग एक घंटे में सयाना चट्टी ,राना चट्टी और हनुमान चट्टी
निकल चुके थे । पिछली सभी सवारी
सोई पड़ी थी तभी अचानक एक मोड़ पर ड्राइवर ने ब्रेक लगा दी । मैंने पूछा क्या हुआ तो
ड्राइवर ने आगे सड़क की तरफ इशारा किया ; थोड़ी दूरी पर
सड़क पर एक जानवर खड़ा था, उसका मुँह गाड़ी की तरफ था और उसकी दो आँखे
चमकती दिखाई दे रही थी । ड्राइवर ने कहा देखो तेंदुआ है . इतने में वो दो तीन कदम
गाड़ी की तरफ चला , ड्राईवर ने जोर से हॉर्न बजाया तो वो तेज़ी से घूमा और नीचे की
तरफ अंधेरे में लुप्त हो गया । अभी तक मैंने इन्हें पिंजरों में ही देखा था आज
अचानक एकदम सामने पाया । पहाड़ी इलाकों में रात के अंधेरे में अक़्सर जंगली जानवर
सड़क पर आ जाते हैं। इसमें कुछ असामान्य नही है। ये सब कुछ इतना अचानक हुआ कि फ़ोटो
लेने का मौका छोडो, इसका ध्यान भी नहीं आया लेकिन थोड़ी घबराहट जरूर हो गयी । पीछे
वाले अभी भी आराम से घोड़े बेचकर सो रहे थे। रात नौ बजे के लगभग हम जानकी चट्टी
पहुंच गए । पार्किंग में जहाँ गाड़ी रुकी वहीं सामने ही नीचे एक भोजनालय था और ऊपर
होटल के कमरे । इन्ही कमरों में हमे 500 रुपये में 5 बेड वाला एक कमरा मिल गया और दिल्ली
वालों के कहने पर मैं उनके साथ ही रुक गया
। ऊपर कमरे पर सारा सामान वगैरह रखकर थोड़ी देर में सब नीचे आ गए और चूल्हे के पास ही बैठकर खाना खाया और फिर कमरे
पर जाकर सो गए ।
रात को सोने से पहले
ही बारिश शुरू हो गयी थी जो सारी रात चलती रही। कमरे के सामने पार्किंग के दूसरी
तरफ यमुना जी बह रही थी । पूरी रात बारिश और नदी के बहने का काफी शोर होता रहा । सुबह
सब जल्दी निकलना चाहते थे इसलिये सब 5 से पहले ही उठ गए थे। 6 बजे से पहले ही सब
तैयार हो चुके थे। नीचे वाली दुकान भी खुल
चुकी थी उससे चाय बनाने को बोल दिया । कमरे से सबसे पहले मैं अपना बैग लेकर निकला
और मैंने अपना बैग नीचे वाली दुकान पर रख
दिया । दिल्ली वाले लड़कों का डील डौल देखकर लग रहा था की वे धीरे चलेंगे और मैं
उनकी वेट नहीं करना चाहता था । मुझे आज रात को उत्तरकाशी पहुँचना था लेकिन उनको
कोई जल्दी नहीं थी क्यूंकि उन्होंने यहीं से वापिसी करनी थी । मेरे बाद दिल्ली वाले
दो लड़के भी नीचे आ गये और मेरा बैग नीचे देखकर बोले आप भी बैग कमरे में रखो यहाँ
क्यूँ रखा है । मैंने उन्हें बताया कि मुझे जल्दी जाकर, जल्दी वापिस उतरना है आप
शायद आराम से चलो। लड़कों ने जबाब दिया कि उन्हें मुझसे भी ज्यादा जल्दी है और
उन्हें आज रात को देहरादून पहुँचना है । उन्होंने ये कहते हुए कि ‘वे सब मुझसे तेज़
चलने वाले हैं’ मेरा बैग उठाकर फिर कमरे में रख दिया ।
बस यहीं मैं भावनाओं
में बह गया और गलती हो गयी ।
चाय के साथ बिस्कुट
खाने के बाद हम लोग यात्रा पर निकल लिए। जानकी चट्टी (ऊँचाई 1650 मीटर ) की गलियों
से होते हुए 10 मिनट में चेक पोस्ट पर पहुँच गए । यहाँ यात्रा पर जाने वाले
यात्रियों की एंट्री की जाती है लेकिन अभी इस समय यहाँ कोई भी नहीं था । चेक पोस्ट
से यमुनोत्री मंदिर की दुरी 5 किमी है । शुरू में हलकी चढ़ाई हैं लेकिन यहीं दिल्ली
वाले लड़कों का दम फुल गया । पहले तो मैं उनके लिए रुकता रहा फिर उन्हें ऊपर
मिलूंगा कहकर अपनी स्पीड से आगे निकल गया । शुरू के दो किलोमीटर यमुना जी घाटी में
दायें तरफ बहती है और फिर एक पुल से इसे पार करके हम नदी के बायीं तरफ आ जाते हैं
यहाँ से चढ़ाई काफी तीखी है ,लगातार कई तीखे मोड़ है । रास्ते में राम मंदिर ,भैरव
मंदिर भी पड़ते हैं । मैं लगभग पौने 9 बजे यमुनोत्री मंदिर पहुँच गया । हलकी हलकी
बारिश लगातार जारी थी और मौसम में काफी ठंडक हो गयी थी । मैं एक दुकान में बैठ कर
आराम करने लगा । आधा घंटा आराम करने के बाद भी वे लड़के जब नहीं पहुँचे तो मैं ऊपर
मंदिर में चला गया । पहले गरम पानी में स्नान किया और फिर मंदिर में दर्शन करके आ गया
। तब तक दिल्ली वाले लड़के भी वहाँ पहुँच गए । उन्होंने भी स्नान कर दर्शन कर लिये
और फिर हमने चूल्हे के पास ही बैठकर चाय के साथ गर्म परांठो का नाश्ता किया । इससे
शरीर को गर्मी भी मिली और गीले कपडे भी सुख गए ।
इन दिल्ली वालों के
चक्कर में मैं कम से कम एक घंटा लेट हो चूका था ।
10:30 बजे हमने
वापसी शुरू की , अब मैंने उनसे कमरे की चाबी ले ली और कहा मैं पहले पहुँच गया तो
आपका इंतजार करूंगा । मैं तेज़ी से नीचे उतरा और 12 बजे कमरे पर पहुँच गया । जब
चाबी से कमरे का ताला खोलने लगा लेकिन ताला खुल ही नहीं रहा था । मुझे लगा शायद
उन्होंने दूसरी चाबी दे दी, होटल वाले को
बुलाया उसने कहा चाबी तो यही है फिर उसने भी बहुत कोशिश की लेकिन ताला नहीं खुला
,वो दूसरी चाबी ले आया तब जाकर बड़ी मुश्किल से ताला खुला । मैंने पहले अपने कपडे बदले
जो बारिश के कारण कुछ भीग गए थे और मुझे ठण्ड लग रही थी । कपडे बदलने के बाद अपना
बैग सेट किया और चलने की तैयारी कर ली । तब तक वे लड़के भी आ गये उन्होंने भी अपना
अपना सामान समेटा और हम टैक्सी स्टैंड की तरफ चल दिए । हल्की बारिश अभी भी जारी थी।
ठीक एक बजे हम चारों
गाड़ी में बैठ चुके थे लेकिन वो समस्या जो कल थी, आज भी थी । सवारी पूरी होगी तो
गाड़ी चलेगी । थोड़ी देर बाद दो अंग्रेज और एक लोकल सवारी आ गयी । कुल 7 सवारी हो
चुकी थी फिर भी वो गाड़ी नही चला रहा था । जब सभी ने उस पर जोर डाला तो वो 2 बजे के
बाद वहाँ से चला । मैंने उसे शुरू में ही बता दिया कि मैंने 4 बजे वाली उत्तरकाशी
के लिए बस पकड़नी है । उसने जबाब दिया आराम से
मिल जाएगी । रास्ते मे पड़ने वाले हर गाँव से सवारी चढ़ती उतरती रही । सामान भी कभी छत
पर रखता , फिर उतारता ,काफी समय लग
रहा था । मुझे लग रहा था आज भी बस के साथ आँख मिचौली खेलनी पड़ेगी। कल तो बस मिल
गयी थी लेकिन आज ये पक्का छुड़वायेगा । साढ़े तीन बज चुके थे और अभी भी हम बड़कोट से
14-15 किमी दूर थे। फिर एक गाँव मे गाड़ी रोककर दूसरे ड्राइवर से बात करने लगा ।
मुझे बहुत गुस्सा आया ,मैंने उसे साफ कह
दिया यदि मेरी बस छूट गयी तो मैं तुम्हें इसका किराया नही दूंगा । बाकी सवारी भी
मेरा साथ देने लगी । उसके बाद ड्राइवर ने तेज़ गाड़ी चलाई और रास्ते मे कहीं नही
रोकी । बड़कोट से डेढ़ किलोमीटर यमुनोत्री की तरफ एक तिराहा है,इसे धरासू बेंड बोलते
हैं और यही से उत्तरकाशी की सड़क कटती है । जैसे ही हम उस तिराहे पर पहुँचे सामने
से बस आ रही थी ।
हमारी जीप कर ड्राइवर ने बस के ड्राइवर को इशारा करके बस रुकवा दी । मेंने
गाड़ी से उतरकर उसे 100 रुपए दिए और बस में सवार हो गया । आज यदि एक मिनट भी लेट हो
जाता तो बस तिराहे को क्रॉस कर जाती और फिर मुझे बस न मिलती । बस में बैठकर सकून की
साँस ली । मेरी इस यात्रा का पहला पड़ाव खत्म हो चुका था और गंगोत्री की यात्रा
शुरू हो चुकी थी ।
यमुनोत्री : यमुनोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 3291 मीटर की ऊंचाई पर एक
दुर्गम स्थान पर स्थित है इसकी गिनती उत्तराखंड के चार धाम में की जाती है। मंदिर
के कपाट अक्षय तृतीया को खुलते है एवम यम द्वतीय को बंद होते है यमुनोत्री मंदिर
के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा की शुरुआत हो जाती है। मंदिर में माता की
मूर्ति काले संगमरमर की बनी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना सूर्य की
पुत्री तथा यम और शनि की बहन है। यह देवी विश्व के कल्याण के लिए अवतरित हुई ।
पहले यह हिमालय के कालिन्द पर्वत पर अवतरित हुई।
इसलिए कालिंदी कहलायी । यमुनोत्री
को यमुना नदी का उदगम स्थल माना जाता है। यहां पहुंचने के लिए 6 किलोमीटर की पैदल
यात्रा भी करनी पड़ती है। यहां यमुना माता का मंदिर है जिसका निर्माण 1855 में
गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह ने करवाया था।
यहां पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता बड़कोट और देहरादून से होकर निकलता है। दूसरा
रास्ता गंगोत्री मार्ग के पड़ाव धरासू से बड़कोट की तरफ जाकर है । बड़कोट से आगे जानकी
चट्टी तक बस/जीप द्वारा यात्रा होती है।
जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर पैदल चलकर यमुनोत्री पहुंचा जाता है। जानकी चट्टी से
पिठ्टू, खच्चर या पालकी के जरिए
यमुनोत्री मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यमुनोत्री तक गाड़ी से जाने के लिए कोई रोड
नहीं बना है। मंदिर सुबह 6 से शाम 8:30 तक खुला रहता है ।
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trek and Yamuna go alongside |
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whole Trek is cemented |
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Lush green trek |
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Steep trek |
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Yamuna river |
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distance mentioned |
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shed for the rest |
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Rainy weather |
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Surroundings |
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Add caption |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiesxeeFS-tt_Ef53mkkgRxzCNcJhKRdZMJi0Snn7nCKmU1e-kx_HZ1tJTnSlt7k3B1eZkNWkCaOZ-gYtWCEirhm1E06g3EHjPbAViH-BxpjUFlD_7bl5I7wShEoFVLuf_el4eNq27crlmA/s640/DSCN0053.JPG) |
Pandit ji waiting for pilgrims |
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Yamunotri temple |
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beyond Yamunotri -towards Saptrishi |
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Dilli wale room mate |
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Dilli wale room mate |
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Parking area visible from Hotel Room |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqlLUWyK0F8_9tDmc6TttMhAufjxHqOr6PARl_SDVe000T-3rjgJnRDOdnj-AZovvtKq0QBosU_WI8_t3WxVI2xDxhmFmFhuXX62-_-09yyoO7n2yyZlrZQLKdgcdu8dzmMwJsbGBYwFn2/s640/IMG_20140511_115839.jpg) |
distance from forest check post |
बहुत सुंदर प्रस्तुति तेंदुआ भी दिख गया वाह वाह 😍😍😍👍👍
ReplyDeleteधन्यवाद विजया तुली जी .स्नेह बनाये रखें .
Deleteमन मोह लेने वाली तस्वीरें और सूंदर यात्रा वर्णन !! अभी तक यहाँ जाने का मौका नहीं मिल पाया !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी . बढ़िया जगह है जल्दी ही घूम आइये .
Deleteरोचक विवरण एवम सुन्दर तस्वीरें .घर बैठे ही आपके साथ यमुनोत्री मंदिर के दर्शन कर लिए .धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद अजय कुमार जी .
Deleteबहुत खूब । फोटो भी बहुत सुन्दर है ।
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश कुमार जी .
Deleteबहुत़ ही सुंदर प्रस्तुति भाई जी
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील मित्तल जी .
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-09-2018) को "स्लेट और तख्ती" (चर्चा अंक-3087) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी .
Deleteबढ़िया वर्णन सहगल साहब । सच मे ये ड्राइवर लोग बिल्कुल ब्लैकमेल ही करते हैं और फिर अतिथि को भगवान बताते हैं । खैर, रोमांचक रही यात्रा आपकी चाहे तेंदुआ दर्शन हो या बस का मार्जिन पे मिलना ��
ReplyDeleteधन्यवाद कौशिक जी. ड्राईवर के बारे में सही कहा . नारे केवल कागजो के लिए ही होते हैं मौका मिलने पर छोड़ते नहीं .
Deleteसहगल जी,...... बहुत शानदार ...सीधे और सरल शब्दों में वर्णन.... ... आपने ...घर बैठे ही यमुनोत्री जी की यात्रा करा दी....... बहुत बढ़िया... अगले भाग की प्रतीक्षा में....
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल मुद्गल जी .सम्वाद बनाये रखिये .
DeleteVery well narrated & interesting post with beautiful pictures.
ReplyDeleteधन्यवाद जी .
DeleteVery Nice post with beautiful pictures . Thanks for sharing.
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव कुमार जी .
DeleteNice post .Jai Maa Yamuna .
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी .
Deleteरोचक यात्रा वृतांत ! इस वर्ष मई के महीने में मैं भी गया था बहुत ही सुखद यात्रा रही ! जय यमुना मैया...❤❤❤❤❤🌹🌹🌹🌹🌹
ReplyDeleteधन्यवाद अजय त्रिपाठी जी । ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।💐💐
Deleteबहुत ही सुन्दर पृस्तुति. मजा आ गया.
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील गुप्ता जी .सम्वाद बनायें रखें .
DeleteYatra ka bada hi dilchasp varnan, maza aa gaya
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा कुकरेती जी .
Deleteजय मां यमुना
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई ।जय यमुना माँ 💐
Deleteबढ़िया जानकारी सहगल जी, लेकिन पता नहीं क्यों इस लेख में हड़बड़ी लग रही है । ट्रेक के बारे में बहुत जल्दी खत्म हो गया थोड़ा विस्तार से लिखना था जिसकेजिसके लिए आप जाने जाते हो ।
ReplyDeleteपहले तो बहुत बहुत धन्यवाद समय निकाल कर पढ़ने के लिए । ट्रेक छोटा है और किये हुए चार साल हो गए । अब ज्यादा याद भी नही 😜😜😜 ।अन्यथा लेने का सवाल ही नही 🙏💐💐
Deleteकेदारनाथ गई पर समयाभाव में गंगोत्री यमुनोत्री नहीं जा सकी ।आपके माध्यम से दृश्यावलोकन हो गया ।यात्रा वर्णन भी मनोरंजक रहा । बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteधन्यवाद राजकुमारी ठाकुर जी .
Deleteतेंदुआ रास्ते मे दिख गया। माँ यमुना जी के दर्शन हो गए। बस भी मिस नही हुई। बढ़िया यात्रा रही
ReplyDeleteसमय निकाल कर पोस्ट पढ़ने और कमेंट करने के लिए सचिन त्यागी जी आपका धन्यवाद.
Deleteसूंदर यात्रा वर्णन .जय माँ यमुना जी
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ साहब .जय माँ यमुना
Deleteमजा आ गया पढ़ कर जय गंगोत्री माँ 🙏🙏 साथ साथ तेंदुए का दिखना,गजब संजोग,👍
ReplyDeleteधन्यवाद जी । जय गंगोत्री माँ ।
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