नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर ( Nageshwar Jyotirling Temple )
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि रुक्मिणी देवी मंदिर,
गोपी तालाब और बेट-द्वारका के दर्शन के साथ हमने नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन भी किये थे । रुक्मिणी देवी मंदिर के बाद बस का दूसरा पड़ाव नागेश्वर ज्योतिर्लिंग ही था । पिछली पोस्ट में ही इसके बारे लिखता तो पोस्ट बहुत लम्बी हो जाती इसलिए इसे अलग से इस पोस्ट में लिख रहा हूँ ।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर में विशाल शिव मूर्ति
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भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारकापुरी से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव स्वयं नागेश्वर तथा देवी पार्वती नागेश्वरी के रूप में विराजमान है। इस मंदिर परिसर में बनी 82 फ़ीट ऊँची शिव प्रतिमा की अदभुत छटा देखते ही बनती है। ये मूर्ति काफी दूर से ही दिखाई देने लगती है । इस मंदिर का भवन भी काफी भव्य बना हुआ है । वर्तमान मंदिर भवन का निर्माण टी-सीरीज कंपनी के मालिक गुलशन कुमार ने करवाया था । परिसर में एक बड़ा सा हाल बना है जिसके एक तरफ प्राचीन ज्योतिर्लिंग स्थापित है । हाल के अन्दर ही चढावे के लिए पूजा सामग्री और प्रसाद के काउंटर बने हैं । अभिषेक के लिए भी बुकिंग काउंटर अन्दर पर ही है । अभिषेक के लिए पुरुषों का धोती पहनना आवश्यक है । अभिषेक की पर्ची कटवाकर आप कुछ सीड़ियाँ नीचे उतरकर प्राचीन गर्भ गृह में पहुंचकर अभिषेक कर सकते हैं । मंदिर का हाल काफी बड़ा, ऊँचा और भव्य बना हुआ है । सामान्य दिनों में मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं रहती, आप 15-20 मिनट में आराम से दर्शन कर बाहर आ सकते हैं । जितना अदभुत और अद्वितीय ये ज्योतिर्लिंग है उतनी ही अदभुत और अद्वितीय इसकी कथा भी है। आइये जानते हैं इस ज्योतिर्लिंग से जुडी कथा के बारे में..
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पौराणिक कथा बहुत समय पहले की बात है दारुका नाम की एक राक्षसी एक वन में रहती थी । पश्चिम समुद्र के किनारे सभी प्रकार की सम्पदाओं से भरपूर सोलह योजन विस्तार तक फैला उसका एक वन था, जिसमें वह निवास करती था। उसने देवी पार्वती की कठिन तपस्या कर उनसे वरदान प्राप्त किया था की वो जहाँ भी जायेगी अपने वन को अपने साथ ले कर जा सकती है। इसलिए दारूका जहाँ भी जाती थी, वृक्षों तथा विविध उपकरणों से सुसज्जित वह वनभूमि अपने विलास के लिए साथ-साथ ले जाती थी। दारुका अपने पति दारुक के साथ उस वन पर राज करती थी। दोनों बड़े ही क्रूर और निर्दयी थे। दोनों ने बहुत से राक्षसों को अपने साथ लेकर समाज में आतंक फैलाया हुआ था। वहां की जनता उनके अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी और उनके अत्याचारों से मुक्ति पाने के उद्देश्य से जनता ने महर्षि और्व की शरण में जाकर अपना कष्ट सुनाया। शरणागतों की रक्षा का धर्म पालन करते हुए महर्षि और्व ने उनकी याचना सुनी और उसके बाद उन्होंने राक्षसों को श्राप दिया की जब भी कोई राक्षस इस पृथ्वी पर प्राणियों की हिंसा और किसी धार्मिक कार्य में व्यवधान पहुचायेगा उसी समय वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठेगा।
जब दारुक और उसकी पत्नी को यह बात पता चली तो उन्होंने उस स्थान को छोड़ कर अपने वन के साथ समुद्र के बीच जाने का निश्चय कर लिया। और फ़िर माता पार्वती के वरदान का प्रयोग करते हुए वह सम्पूर्ण वन को लेकर निर्भयतापूर्वक समुद्र में निवास करने लगे । वहां पर भी उनके अत्याचार ख़त्म नहीं हुए। वहां के निरीह जानवरों और समुद्र में रहने वाले जीवों पर उनके क्रूर अत्याचार शुरू हो गए। साथ ही दारुक समुद्र में उसके वन के पास से गुजरने वाले नाविकों को कैद कर लेता था और उनपर अत्याचार करता था।
उसी काल में सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान् शिव का अनन्य भक्त था। वह निरन्तर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था। अपने सारे कार्य वह भगवान् शिव को अर्पित करके करता था। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था । उसे भगवान् शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरन्तर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे। एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सभी लोगों को बेड़ियों से बाँधकर उन्हें कारागार में बन्द कर दिया गया। राक्षस उन यात्रियों को बार-बार धमकाने लगे। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान् शिव की पूजा-आराधना करने लगा।
अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। उसने अपने बहुत से साथियों को भी शिव जी का भजन-पूजन सिखला दिया था। उसके सभी साथी ‘नम: शिवाय’ का जप करते थे तथा शिव जी का ध्यान भी करते थे। सुप्रिय परम भक्त था, इसलिए उसे शिव जी का दर्शन भी प्राप्त होता था। दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा। सुप्रिय उस समय भगवान् शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन- से उपद्रव और षड्यन्त्र करने की बातें सोच रहा है?' उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ। वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान् शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान् शिवजी इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे।
उसने कहा- देवेश्वर शिव! हमारी रक्षा करें, हमें इन दुष्ट राक्षसों से बचाइए। देव! आप ही हमारे सर्वस्व हैं, आप ही मेरे जीवन और प्राण हैं। इस प्रकार सुप्रिय वैश्य की प्रार्थना को सुनकर भगवान शिव तत्क्षण कालकोठरी के कोने में बने एक 'विवर' अर्थात् बिल से प्रकट हो गये और अपने भक्त की रक्षा करने के लिए दारुक और उसके साथी दैत्यों का वध करना शुरू कर दिया। ये सब जान कर दारुक की पत्नी दारुका ने देवी पार्वती की आराधना शुरू कर दी और उनसे अपने वंश की रक्षा करने को कहा। देवी पार्वती ने वहाँ प्रकट हो भगवान् शिव से दारुका के वंश को जीवन दान देने की विनती की। तब शिवजी ने कहा की इस युग के अंतिम चरण से यहाँ किसी भी राक्षस का वास नहीं होगा। शंकरजी ने उस समय सुप्रिय वैश्य का अपना एक पाशुपतास्त्र भी दिया और उसके बाद वे अन्तर्धान (लुप्त) हो गये। पाशुपतास्त्र (अस्त्र) प्राप्त करने के बाद सुप्रिय ने उसक बल से बाकी सभी राक्षसों का संहार कर डाला और अन्त में वह स्वयं शिवलोक को प्राप्त हुआ। ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान् शिव और देवी पार्वती वहीँ स्थापित हो गए और उस दिन से उन्हें नागेश्वर तथा नागेश्वरी के नाम से जाना जाने लगा।
दर्शन समय : सुबह 6:00 से दोपहर 12:30 और शाम 5:00 से रात 9:00 तक
कैसे पहुंचे : नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारकापुरी से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नागेश्वर के लिए जामनगर , अहमदाबाद और द्वारका से सीधी बसें मिलती है ।
नजदीकी रेलवे स्टेशन - द्वारका 17 किलोमीटर
नजदीकी एयरपोर्ट - जामनगर 137 किलोमीटर
इस पोस्ट में अभी इतना ही । अगली पोस्ट में आपको सोमनाथ ज्योतिर्लिंग ले चलेंगे ।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग |
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शिव मूर्ति |
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर द्वार |
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मंदिर परिसर |
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बरगद वृक्ष |
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भोलेनाथ की मूर्ति |
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भवन |
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शिव परिवार |
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शिवलिंग |
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग |
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नंदी महाराज |
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मंदिर हाल |
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मंदिर हाल |
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मंदिर हाल |
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अन्य मंदिर में भोले नाथ |
सहगल साहब इस नई जानकारी के लिए आपका �� से आभार । बहुत ही बढ़िया दर्शन करवाये आपने । ॐ नमः शिवाय ��
ReplyDeleteकौशिक जी बहुत धन्यवाद. ॐ नमः शिवाय.
Deleteसुंदर फोटोज़ से सुसज्जित उम्दा पोस्ट । जय भोले नाथ ।।
ReplyDeleteधन्यवाद अजय भाई .ॐ नमः शिवाय.
Deleteछोटा सा आलेख है। मगर जानकारी से भरपूर है। फोटो एकदम शानदार।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशांत सर .
Deleteबहुत ही सुन्दर .हर हर महादेव .
ReplyDeleteधन्यवाद शरद जी।
Deleteशानदार तस्वीरें .बढ़िया जानकारी . जय भोलनाथ
ReplyDeleteधन्यवाद राकेश जी ।
DeleteNice post with beautiful pictures.Om Hr Hr Mahadev.
ReplyDeleteThanks dear.💐💐
Deleteभाई मुझे भी २००8 में जाने का सुअवसर मिला था आज फ़िर से दर्शन करके मन प्रशन्न हो गया ।
ReplyDeleteधन्यवाद कृष्णा जी ।
Deleteइस ज्योतिर्लिंग को लेकर मतभेद है,नागेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के हिंगोली जिले औंढा नागनाथ जगह में स्थित है जो पांडव कालीन मंदिर है
ReplyDeleteजी ।कुछ जगह को लेकर मतभेद तो हैं । लेकिन महाराष्ट्र में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग नहो है ।इस बात में कोई मतभेद नही ।
Deleteनागेश्वर महादेव की यात्रा पढकर पुरानी यादें ताजा हो गई मैं भी 2011 में गुजरात गया था।
ReplyDeleteपौराणिक कथा के साथ बढिया लेख.
धन्यवाद प्रकाश मिश्रा जी .
Deleteशानदार तस्वीरें और बढ़िया जानकारी .
ReplyDeleteधन्यवाद राज साहब .
Deleteक्या बात ..बहुत खूब ..गुलशन कुमार का धार्मिक स्थलों के विकास में सहयोग को प्रशंसनीय कहा जाना चाहिए ...बेहतरीन आलेख नरेश जी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी सारस्वत साहब .
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