सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर ( Somnath Jyotirling Temple )
पिछली पोस्ट में आप पढ़ चुके हैं कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद हम
गोपी तालाब और भेट द्वारका गए ।वहाँ से दोपहर तक वापिस द्वारका लौट आये और शाम को
द्वारका के स्थानीय मंदिरों में दर्शन किये और फिर रात की ट्रेन से सोमनाथ के लिए
रवाना हो गए। अब उससे आगे ....
द्वारका से सोमनाथ के लिए एक ही ट्रेन है जो द्वारका से रात 8:30 चल कर अगले
दिन सुबह 5:00 बजे सोमनाथ पहुँच जाती है । सोमनाथ इस रूट पर आखिरी रेलवे स्टेशन है
। हमारी ट्रेन समय से पहले ही सोमनाथ पहुँच गयी थी । बाहर अभी दिन का उजाला नहीं
हुआ था, थोडा अँधेरा ही था । वैसे भी भारत के धुर पश्चिमी किनारे पर होने के कारण यहाँ
सूर्योदय लेट ही होता है । सोमनाथ स्टेशन के पूरे प्लेटफ़ॉर्म पर मछली से भरे हुए
बड़े बड़े डिब्बे पड़े हुए थे । जिसके कारण रेलवे स्टेशन पर मछली की जबरदस्त दुर्गंध
थी। हम जल्दी से स्टेशन से बाहर निकले और हमें कई गेस्ट हाउस वालों ने ‘कमरा चाहिए
–कमरा चाहिए ‘ कहते हुए घेर लिया। बड़ी मुश्किल से उनसे पीछा छुड़ाया । एक पंडित जी
भी अपनी बाइक पर घूमते हुए अपना कमरा देने के लिए ग्राहक खोज रहे थे, अब वो चिपक
गए । बोले कमरा देख लो ,पसंद आये तो लेना , नहीं तो मत लेना । हमने एक रिक्सा किया
और उस पंडित के पीछे पीछे उसके घर पहुँच गए । उसने अपने घर के ही दो कमरे यात्रियों
के लिए छोड़े हुए थे । कमरा ठीक ठाक था । ज्यादा अच्छा भी नहीं और बुरा भी नहीं । कमरा
मंदिर के काफी नजदीक था और हमें शाम तक ही चाहिए था इसलिए हमने वही पसंद कर लिया।
किराया भी शायद 400 रूपये था ।
सोमनाथ मंदिर |
थोड़ी देर विश्राम करने के बाद स्नान आदि नित्यकर्मो से निवृत हो हम तैयार होकर
मंदिर पहुंच गए। मंदिर विशाल परिसर में बना हुआ है । मुख्य गेट से प्रवेश करने के बाद
कुछ ही देर में मुख्य गर्भ-गृह में पहुँच गए । मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं थी इसलिए
बड़े आराम से दर्शन किये और गर्भ-गृह से बाहर आ गए । मेरी बेटी ने दोबारा जाने को
कहा तो एक बार फिर आराम से भोले नाथ के दर्शन किये । मंदिर बेहद खूबसूरती से सजाया
हुआ था और यहाँ साफ सफ़ाई भी जबरदस्त थी । मन्दिर की परिक्रमा में भी सुन्दर बगीचे
के साथ कई छोटे -2 मंदिर बने हुए हैं जिनमे द्वादस ज्योतिर्लिंग के प्रतिरूप भी
हैं । सभी मंदिरों को आराम से देखने के बाद काफी देर मंदिर में ही रुके और अरब
सागर से उठकर आने वाली बड़ी बड़ी लहरों को मंदिर की दीवारों से टकराते हुए देखते रहे
।
मंदिर परिसर से बाहर आकर ,पास ही स्तिथ अहिल्या बाई द्वारा बनवाये गए सोमनाथ
मंदिर गए और फिर नाश्ता करने के बाद मार्किट की तरफ घुमने निकल गए । थोड़ी देर बाद
जब धुप काफी तेज़ हो गयी तो थक-हार कर कमरे पर लौट आये। दोपहर को कमरे पर ही आराम
किया । शाम के समय एक ऑटो रिक्सा से सोमनाथ में बने अन्य दर्शनीय स्थल और छोटे
मंदिर देखने चले गए और फिर भालका तीर्थ और सोमेश्वर महादेव जैसे स्थान देखते हुए
शाम को वेरावल पहुँच गए जहाँ से शाम को हमें अहमदाबाद के लिए ट्रेन पकड़नी थी ।
अब जानकारी सोमनाथ मंदिर के बारे में :-
सोमनाथ मंदिर भारत के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन
में स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में
से सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है। आस्था व भक्ति का केंद्र श्री सोमनाथ आदि ज्योतिर्लिंग माना
जाता है, जिसके दर्शन, पूजन से भव बाधा से मुक्ति मिलती है और
मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान और दर्शनीय स्थल है। वर्तमान सौराष्ट्र
में श्री सोमनाथ महादेव का विशाल भव्य मनोहारी मंदिर स्थित है, जो लंबे-चौड़े परिसर से घिरा है। मंदिर की
बनावट और दीवारों पर की गई शिल्पकारी उत्कृष्ट है। इसके पीछे समुद्र तट होने के
कारण यहां की छटा देखते ही बनती है।
अनादि काल से जिस स्थान पर श्री सोमनाथ मंदिर की स्थिति थी, वहीं पर सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा नए सोमनाथ
मंदिर ‘कैलाश महामेरु प्रसाद’
का निर्माण पूर्ण हुआ। 15 नवम्बर 1947 को भारत के उप-प्रधानमंत्री व गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई
पटेल ने मंदिर निर्माण की घोषणा की थी। सन् 1951 में सोमनाथ मंदिर बनकर तैयार हुआ। सोमनाथ महादेव की प्राण
प्रतिष्ठा का समय सुनिश्चित होने पर 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद के कर कमलों से
सोमनाथ महादेव की पुन: प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। गर्भ गृह में शिवलिंग लगभग 5
फुट ऊंचा और परिधि 10 फुट है। सरदार पटेल के सहयोग से ही यहाँ सोमनाथ ट्रस्ट बना और जामनगर के
महाराजा दिग्विजय सिंह ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष बने । सोमनाथ की प्रतिष्ठा होने के
बाद जामनगर की राजमाता ने भी अपने दिवंगत पति की स्मृति में बाकि का मंदिर निर्माण
कराया । नए सोमनाथ मंदिर का समग्र निर्माण पूरा होने के बाद 1 दिसम्बर 1995 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने
विधि-विधान से इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार मंदिर निर्माण के समय सभी मंदिरों में
शिलालेख लगाया जाता है, जिसमें मंदिर की
ऐतिहासिक, धार्मिक विरुदावलि अंकित
रहती है। यहां भी विद्वान पंडित श्री जयकृष्ण हरि कृष्ण देव द्वारा रचित मंगल सोम
स्तवराज संस्कृत व हिंदी में लगाया गया। सोम स्तवराज स्रोत में सोमनाथ मंदिर का
विगत दो हजार वर्षों का पुरातन इतिहास है। साथ ही द्वापर युग के अंतिम चरण से
मंदिर निर्माण तक का पूरा इतिहास स्पष्ट किया गया है।
मंदिर के दक्षिण द्वार (प्रमुख दरवाजा) के समीप अखंड ज्योति स्तंभ प्रकाशित हो
रही है। दक्षिण परिक्रमा पथ के पास अम्बाजी एवं उत्तर पथ के पास त्रिपुर सुंदरी
माता विराजमान हैं। सुंदर नंदी के पास गणेश जी और हनुमान जी विराजे हैं। बाहर
परिसर में पश्चिम की ओर ‘ध्वनि और चित्र’
प्रसारण देखने की गैलरी है। द्वादश
ज्योतिर्लिंगों व अन्य लघु मंदिरों की पंक्ति है। यहां हनुमान जी का प्राचीन मंदिर,
हमीर जी की डेरी, कर्पदी विनायक का प्राचीन मंदिर, दक्षिण की तरफ समुद्र अवलोकन के लिए स्थान है। परिसर द्वार
के निकट हनुमान व भैरव विराजमान हैं। परिसर के बाहर पश्चिम, उत्तर में महारानी अहिल्याबाई द्वारा सन् 1782 ई. में निर्मित सोमनाथ मंदिर है, जहां अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति व काशी
विश्वनाथ विराजमान हैं। पास में अघोरेश्वर भैरवेश्वर, महाकाली देवी दुर्गा जी के मंदिर हैं। प्रभाष पाटन में श्री
कृष्ण बलराम एवं यादव तथा सूर्यवंशी,
चंद्रवंशी राजवंशों की स्मृतियां विद्यमान हैं।
महाविष्णु मंदिर प्रभास गांव में सोमनाथ के पश्चिम में है।
श्री सोमनाथ के पूर्व-उत्तर में समुद्र के समीप ‘ब्रह्मकुंड’ है, जहां श्री ब्रह्मेश्वर महादेव का मंदिर है।
समुद्र के समीप ही योगेश्वर, बाघेश्वर व
रत्नेश्रवर मंदिर हैं। समुद्र की ओर दुर्ग की दीवार में हनुमान मंदिर है। श्री
सोमनाथ मंदिर परिसर के उत्तर में गोपाल जी की घुड़ सवार सैनिक प्रतिमा चौराहे के
बीच में ऊंचे आधार पर है, जिसके
पश्चिम-उत्तर में गौरी कुंड, गौरी मंदिर व
तपोवन गौरी, नागेश्वर मंदिर
आदि हैं। उत्तर-पूर्व में तीन नदियां हिरण्या, कपिला और सरस्वती ‘त्रिवेणी संगम’ करती हुई समुद्र में महासंगम कर विलीन हो जाती
हैं। यह भी आकर्षण का केंद्र है। यहां त्रिवेणी घाट है। इस त्रिवेणी घाट पर स्नान
का विशेष महत्व है। श्री सोमनाथ का मेला हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा
तक लगता है। श्रावण माह में प्रतिदिन भीड़ रहती है, परंतु सोमवार को भारी भीड़ रहती है। श्री सोमनाथ जी के
मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य श्री सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार
द्वारा ट्रस्ट को भूमि, बगीचा आदि देकर
आय का प्रबंधन किया गया है। यज्ञ, रुद्राभिषेक पूजा,
विधान वगैरह विद्वान पंडितों के द्वारा सम्पन्न
होता है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पौराणिक कथा:
यहां के ज्योतिर्लिंग की कथा का पुराणों में इस प्रकार से वर्णन है-
दक्ष प्रजापति की देवी सती के अलावा सत्ताइस कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह
चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल
रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत
अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति
ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय
पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने कुद्ध होकर उन्हें 'क्षयग्रस्त' हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव
तत्काल क्षयग्रस्त हो गए। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का
उनका सारा कार्य रूक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और
चिंतित थे। चंद्रमा की प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके
उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा-
'चंद्रमा अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र
प्रभासक्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान् शिव की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य
ही इनका शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमक्त हो जाएंगे।
उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान् की आराधना का सारा कार्य पूरा
किया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे
प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने
कहा- 'चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो
होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी। कृष्णपक्ष
में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष
में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा
को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।' चंद्रमा को मिलने वाले इस
वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं
में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत् करने लगे।
शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान् से
प्रार्थना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहाँ
निवास करें। भगवान् शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप
में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे। अतः इस ज्योतिर्लिंग को
सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन,
पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते
हैं। वे भगवान् शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष
का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। उनके लौकिक-पारलौकिक सारे कृत्य
स्वयमेव सफल हो जाते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर
स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह
तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है और इसका उल्लेख
स्कंदपुराणम, श्रीमद्भागवत गीता, शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव
की महिमा का उल्लेख है।
मंदिर का इतिहास: यह लिंग शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला
ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार आक्रमणकारियों ने इस मंदिर
पर 6 बार आक्रमण किया। इसके बाद भी इस मंदिर का वर्तमान अस्तित्व इसके
पुनर्निर्माण के प्रयास और सांप्रदायिक सद्भावना का ही परिचायक है। सातवीं बार यह
मंदिर कैलाश महामेरु प्रसाद शैली में बनाया गया है। इसके निर्माण कार्य से सरदार
वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं। यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा
शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है।
इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह
समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है। यह हमारे प्राचीन
ज्ञान व सूझबूझ का अद्भुत साक्ष्य माना जाता है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण
महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था।
मंदिर समय सारणी : मंदिर के पट प्रात: 6 बजे से रात्रि 9.00
बजे तक खुले रहते हैं। मंदिर प्रांगण में रात
साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। भगवान सोमनाथ की
आरती प्रात: 7.00 बजे, मध्यान्ह 12.00 बजे और संध्या 7.00 बजे होती है
।
निकटतम रेलवे स्टेशन - सोमनाथ रेलवे स्टेशन भी है और बस अड्डा भी परंतु यहां से
6 किलोमीटर दूर वेरावल रेलवे स्टेशन का जुड़ाव सभी स्थानों से है। अहमदाबाद से
सोमनाथ लगभग 400 कि.मी. दूर है।
निकटतम हवाई अड्डा - सोमनाथ का नजदीकी हवाई अड्डा केशोद जिला जूनागढ़ है जो
सोमनाथ मंदिर से लगभग 55 कि.मी. दूर है। जूनागढ़ से रेलमार्ग द्वारा सोमनाथ 85
कि.मी. है। दीव, राजकोट, अहमदाबाद, वड़ोदरा नजदीक
पड़ने वाले अन्य हवाई अड्डा हैं।
इस पोस्ट में अभी इतना ही । अगली पोस्ट में आपको अहमदाबाद ले चलेंगे ।
इस सीरीज की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें ।
श्री सोमनाथ |
मंदिर के सामने |
श्री सोमनाथ |
अहिल्या बाई द्वारा मिर्मित सोमनाथ |
श्री सोमनाथ |
त्रिवेणी संगम |
कपिला नदी |
हरिन्या नदी |
हरिन्या नदी |
इसी पेड़ के निचे श्री कृष्ण ने प्राण त्यागे थे |
बढिया जानकारी, सोमनाथ मंदिर की यादें ताजा हो गई। सुन्दर चित्र और बेहतरीन व्यवस्थित लेखन����
ReplyDeleteधन्यवाद प्रकाश मिश्रा जी .
Deleteबढिया जानकारी, सोमनाथ मंदिर की यादें ताजा हो गई। सुन्दर चित्र और बेहतरीन व्यवस्थित लेखन����
ReplyDeleteधन्यवाद फिर से :)
Deleteसुंदर वर्णन , अलोकिक
ReplyDeleteधन्यवाद भट्ट साहब .
Deleteमोहक चित्रों के साथ जानकारी भी । बढ़िया वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद चौहान साहब .
DeleteNice Post!! I really appreciated with you, Thank you for sharing your info with us.
ReplyDeletethanks Fred.
Deleteवाह कमाल की सचित्र जानकारी ✍️💝✍️💝
ReplyDeleteधन्यवाद विजया तुली जी .
Deleteअच्छी जानकारी,सर सोमनाथ में अगर रात को रुकना हो तो सोमनाथ ट्रस्ट के गेस्ट हाउस ह जो बहुत ही किफायती रेट पर उपलब्ध होते ह,जिसमे AC रूम 950 में और नॉन AC 700 और एक इनका पुराना गेस्ट हाउस भी ह वह पर 250 रुपये का कमरा ह ,पर असुविधा से बचने के लिये ON LINE ही बुक करना चहाय,अगर बच्चे साथ नही ह तो यह ऑटो ना करके पैदल ही घूमना चहाय क्योकि सारे देखने की जगह 3 किलोमीटर के अंदर ही ह और ओटो वाला उनके 400 से 500 चार्ज करता ह,यक जगह तो 10 से 15 मंदिर यक ही एक दिवार के भीतर ही ह लेकिन ओटो वाला उनको 15 गिनती करता ह,
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक जी जानकारी देने के किये . मुझे भी यही लगा की यहाँ लोकल में आराम से पैदल घुमा जा सकता है . लेकिन गर्मी का मौसम और बच्चे साथ होने के कारन ऑटो लेना ही ठीक रहा .
DeleteSehgal Sahib Thank you . We are lucky to see Ancient Mandir Somnath and First Jyotirling from here.
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल मिश्रा जी .
Deleteबहुत ही बढ़िया लेख .हर हर महादेव
ReplyDeleteधन्यवाद शरद .
Deleteमैं तो अकेले चला गया था यहां . वैसे शांत और खूबसूरत नज़ारे हैं यहां के.
ReplyDeleteधन्यवाद चंद्रेश जी .आपने सही कहा शांत और खूबसूरत नज़ारे हैं यहां के.
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-10-2018) को "प्यार से पुकार लो" (चर्चा अंक-3136) (चर्चा अंक-3122) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Nice post having all required information with beautiful photographs. Thanks for sharing.
ReplyDeleteJai Somnath.
धन्यवाद राज़ जी .
Deleteजय़ महादेव। बहुत ही उम्दा फोटोग्राफी .
ReplyDeleteThanks Sunil Mittal jee.
Deleteवेरावल स्टेशन की जानकारी बहुत काम की है ...अगर सोमनाथ की ट्रेन न मिले ..या जगह न मिले तो वेरावल से जाया जा सकता है ..जय भोलेनाथ ..जय सोमनाथ
ReplyDeleteधन्यवाद योगी सारस्वत जी. जय भोलेनाथ, जय सोमनाथ.
Deleteखूबसूरत नज़ारे
ReplyDeleteThanks Sanjay Bhaskar jee
Deleteजबरदस्त लेखन खूबसूरत नज़ारे,यही दोनो जगह जाना है बहुत ही जल्दी🙏🙏
ReplyDeleteThanks Didi..
Deleteसोमनाथ ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को 17 बार नष्ट किया गया था।
ReplyDeleteगुजरात यात्रा: एक रंगीन और सांस्कृतिक अनुभव का सफर। यह ब्लॉग गुजरात की सुंदरता, ऐतिहासिक स्थलों, और स्वादिष्ट स्थानीय खाद्य से भरपूर है। यहाँ की अनूठी मिश्रितता और समृद्धि का अहसास करें।
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