रुक्मिणी देवी मंदिर, गोपी तालाब और बेट-द्वारका ( Rukmini Devi Temple, Gopi Talab and Bet Dwarka )
अगले दिन सुबह जल्दी से तैयार होकर , आठ बजे से पहले ही हम भद्रकाली
चौक पहुँच गए । बस में कुछ सवारियाँ पहले ही आ चुकी थी । कुछ ही देर में जब सभी
लोग आ गए तो बस चल पड़ी । आज ये हमें रुक्मणि मंदिर , नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गोपी तालाब तथा बेट द्वारका लेकर जाने वाली थी । शहर से थोड़ा बाहर निकलते ही
पहला पड़ाव आ गया । बस का परिचालक - गाइड और निर्देशक दोनों का काम कर रहा था ।
उसने बताया कि हम रुक्मणी देवी मंदिर पहुँच चुके हैं । उसने हमें मंदिर में जल्दी से
जाकर दर्शन करने और आधे घंटे में बस पर वापिस आने को कहा और फिर बस से नीचे उतर
कर, सभी सवारियों के साथ गाइड के रूप में मंदिर की तरफ चल दिया । हमारी बस के साथ
ही दो तीन बसें और वहाँ पहुँच जाने से मंदिर में एकदम से भीड़ बढ़ गयी थी फिर भी लगभग
आधे घंटे में दर्शन के बाद हम लोग वापिस बस में आ गए ।
रुक्मिणी देवी मंदिर – ( Rukmini Devi Temple , Dwarka )
रुक्मिणी देवी मंदिर |
रुक्मिणी देवी मंदिर भगवान कृष्ण की प्रमुख पत्नी रुक्मिणी
को समर्पित है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।
मंदिर द्वारका से बाहरी ओर लगभग 2 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर की
दीवारों पर हाथी, घोड़े, देव और मानव मूर्तियाँ की
नक्काशी की गई है। देवी मंदिर में पानी का दान करना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
वर्तमान मंदिर का अस्तित्व 12 वीं शताब्दी की संरचना माना जाता है।एक प्रसिद्ध
पौराणिक कथा के अनुसार– एक बार भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी
दुर्वासा ऋषि को द्वारका आमंत्रित करने के लिए गए। दुर्वासा ने भगवान तथा उनकी
पत्नी स्वयं अपने कन्धों पर रथ उठाकर उन्हें वहां ले जाएँ। दंपत्ति खुशी खुशी इसके
लिए तैयार हो गए और उन्होंने चलना शुरू किया। रास्ते में रुक्मिणी को प्यास लगी और
गंगा का पवित्र पानी प्राप्त करने के लिए कृष्ण ने धरती पर लाठी मारी। परन्तु
दुर्वासा ऋषि को पानी की पेशकश किये बिना ही रुक्मिणी ने पानी पी लिए जिसके कारण
दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होंने रुक्मिणी को शाप दिया कि वह अपने पति से
बिछुड़ जाएगी। साथ ही यह भी कहा कि जिस जगह गंगा प्रकट की है, वह स्थान बंजर हो जाएगा। इसके बाद दोनों 12 साल तक अलग रहे। जहां रुक्मणीजी
रहीं, वहां उन्होंने 12 साल भगवान विष्णु की तपस्या की। तपस्या से
प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने रुक्मणीजी को शाप मुक्त किया। दुर्वासा ऋषि के शाप
के कारण ही यहां जल का दान किया जाता है। कहते हैं यहां जल दान करने से पितरों को
जल की प्राप्ति होती है और उनको मुक्ति मिलती है।
मंदिर में दर्शन समय : 5:00 AM - 12:00 PM, 4:00 - 9:00 PM
रुक्मिणी देवी मंदिर में दर्शन के बाद बस का अगला पड़ाव
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग था । नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के मूल स्थान को लेकर
इतिहासकारों और विद्वानों में मतभेद रहा है । कुछ लोग द्वारका के पास बने नागेश्वर
ज्योतिर्लिंग को असली मानते हैं और कुछ उत्तराखंड में जागेश्वर धाम को ही असली
ज्योतिर्लिंग मानते हैं । वैसे मैं इन दोनों स्थानों पर जा चूका हूँ इसलिए इस विषय
पर ज्यादा कुछ कहने का कोई फायदा नहीं । नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में मैं
अगली पोस्ट में अलग से विस्तार से लिखूंगा ।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में दर्शन के बाद हमारा अगला पड़ाव था
गोपी तालाब । यहाँ के बारे में हमारे गाइड पहले ही ने बतला दिया था कि हमें बस से
उतरकर सीधा गोपी तालाब पर जाना है जो सामने की दिशा में कुछ ही दूरी पर है । उन्होंने बतलाया की यहाँ पर स्थानीय लोगों ने पैसा चढ़वाने के लिये अपने निजी
मन्दिर बना रखे हैं और हम उनके चक्कर में
पड़कर समय ख़राब न करें । यहाँ
भी बस के 20 मिनट ही रुकने की बात कही गयी l हमने जल्दी से जाकर गोपी तालाब के दर्शन किये और
शरीर पर जल के
छींटे छिड़के । गोपी तालाब के पास गोपी तालाब की मिटटी बेचने की कई दुकाने हैं । यहाँ से थोड़ी से खरीददारी करने के बाद हम वापिस अपनी बस में आ गये।
गोपी तालाब ( Gopi
Talaab): द्वारका से 22 किलोमीटर आगे गोपी-तालाब पड़ता है। यहां आस-पास की जमीन पीली
है। तालाब के अन्दर से भी पीले रंग की ही मिट्टी निकलती है। इस मिट्टी को वे
गोपीचन्दन कहते है। गोपी तालाब के आसपास मोर बहुत होते है। कहते हैं यहीं पर
अर्जुन का गाण्डीव असफल हो गया था । उसके बारे में कथा है की
भगवान् कृष्ण ने अपनी सभी रानियों को द्वारका से बाहर सुरक्षित ले जाने का भार
अर्जुन को सौंपा था । अर्जुन को महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने
और अपने पास गाण्डीव धनुष होने पर अहंकार हो गया था l यहाँ काबा जाति के आदिवासी लोगों ने अर्जुन पर हमला करके गोपियों को लुट लिया । अर्जुन गाण्डीव के होते हुए हुए भी कुछ ण कर सका । लुटेरों के डर से रानियाँ तालाब में डूबकर मर गयी । उस तालाब को इसलिये आज भी गोपी तालाब कहते हैं l
गोपी तालाब के बाद हमारा अगला और आखिरी पड़ाव बेट द्वारका का
था । सुबह लगभग 10:30 बजे हम यहाँ पहुँच गए थे । यहाँ बस दो घंटे रुकने वाली थी । बेट
द्वारका मुख्य भूमि से दूर ,ओखा बंदरगाह के पास स्तिथ एक छोटे से टापू पर है । यहाँ
जाने के लिए ओखा के समुंदरी घाट से फेरी के द्वारा जाया जाता है। फेरी से बेट
द्वारका पहुँचने में लगभग आधा घंटा लग जाता है । यह समुद्री सफ़र बड़ा ही रोमांचक
होता है । फेरी से उतरने के बाद लगभग 10 मिनट के पैदल सफ़र के बाद मुख्य मंदिर में
पहुँच जाते हैं । इसके लिए वहाँ ऑटो भी मिल जाते हैं ।
बेट द्वारका वह स्थान है जहाँ द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का महल यहीं पर
हुआ करता । भेट का मतलब मुलाकात और उपहार भी होता है। इस नगरी का नाम इन्हीं दो
बातों के कारण भेट पड़ा। गोमती द्वारका से यह स्थान 35 किलोमीटर दूर स्थित है। इस
मंदिर में कृष्ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है। मान्यता है कि द्वारका
यात्रा का पूरा फल तभी मिलता है जब आप भेट द्वारका की यात्रा करते हैं। । द्वारका
के न्यायाधीश भगवान कृष्ण ही थे। सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए
थे तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे। इसलिए यहां आज भी चावल दान करने की
परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में चावल दान देने से भक्त कई जन्मो तक गरीब
नहीं होते।
बेट-द्वारका ( Bet Dwarka ) ही वह जगह है, जहां भगवान कृष्ण
ने अपने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी। बेट-द्वारका के टापू का पूरब की तरफ का
जो कोना है, उस पर हनुमानजी का बहुत
बड़ा मन्दिर है। इसीलिए इस ऊंचे टीले को हनुमान जी का टीला कहते है । आगे बढ़ने पर
गोमती-द्वारका की तरह ही एक बहुत बड़ी चारदीवारी यहां भी है। इस घेरे के भीतर पांच
बड़े-बड़े महल है। ये दुमंजिले और तिमंजले है। पहला और सबसे बड़ा महल श्रीकृष्ण का
महल है। इसके दक्षिण में सत्यभामा और जाम्बवती के महल है। उत्तर में रूक्मिणी और
राधा जी के महल है। इन पांचों महलों की सजावट ऐसी है कि आंखें चकाचौंध हो जाती
हैं। इन मन्दिरों के दरवाजों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान कृष्ण और
उनकी मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर भी चांदी मढ़ी हुई है। मूर्तियों का सिंगार
बड़ा ही कीमती है। हीरे, मोती और सोने के
गहने उनको पहनाये गए हैं और जरी के कपड़ों से उन सबको सजाया गया है।
बेट द्वारका में दर्शन के बाद हम लोग फेरी द्वारा वापिस लौट आये और अपनी बस के
पास पहुँच गए। अभी तक बस के कुछ यात्री नहीं लौटे थे। तब तक वहाँ स्थानीय लोगों
द्वारा बेचीं जा रही लस्सी पी । लस्सी बहुत
स्वादिष्ट थी। थोड़ी देर में बस के
सभी यात्री आ गए और हमने वापसी की यात्रा शुरू कर दी और दोपहर ढेड बजे वापिस
द्वारका पहुँच गए । दोपहर के समय धुप काफी तेज़ थी इसलिए बस से उतरकर घूमना छोड़ हमने
एक दुकान से खाना पैक करवाया और सीधा अपने रूम पर चले गए। खाना खाकर शाम तक आराम
किया और फिर शाम को द्वारका के स्थानीय मंदिरों में घुमने का मन बनाया । फोन करके
ऑटो वाले को गेस्ट हाउस ही बुलवा लिया । चूँकि रात को हमें द्वारका से सोमनाथ के
लिए ट्रेन पकड़नी थी इसलिये ऑटो वाले से स्थानीय मंदिरों में घुमाने के बाद रेलवे
स्टेशन छोड़ने का तय कर लिया और अपना सारा सामान लेकर मंदिरों में घूमने चले गए ।
यहाँ छोटे बड़े कई
मंदिर हैं जिनमे ब्रह्मकुमारी मंदिर ,
गीता मंदिर , स्वामी नारायण मंदिर , बड्केश्वर महादेव , कमलेश्वर महादेव ,गायत्री
शक्ति पीठ आदि मुख्य हैं । इनमे से स्वामी नारायण मंदिर सबसे खूबसूरत बना हुआ है और
यहाँ यात्रियों के रहने के लिए कमरे भी बने हुए हैं । बड्केश्वर महादेव एकदम सागर
तट पर बना है और इसलिए इसकी शानदार लोकेशन है ।यहाँ से सूर्यास्त का बेहद हसीं नज़ारा
देखने को मिलता है । हमने भी यहाँ सूर्यास्त का आनंद उठाया और फ़िर ऑटो द्वारा रात
आठ बजे तक रेलवे स्टेशन पहुँच गए । यहाँ से हमारा अगला गंतव्य सोमनाथ था।
अभी बस इतना ही । जल्दी मिलते हैं नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की अगली पोस्ट में , तक
तक आप यहाँ की तस्वीरें देखिये ।।
रुक्मिणी देवी मंदिर |
रुक्मिणी देवी मंदिर |
गोपी तालाब |
बेट-द्वारका की ओर |
धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी .
ReplyDeleteनई जानकारी सभी चित्र सुंदर हैं
ReplyDeleteधन्यवाद निरुपमा शर्मा जी .
Deleteगजब की यात्रा रही खूबसूरत फोटोज,,
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी . जाट द्वारकादिश की .
DeleteBeautifully described informative post. Wonderful pictures.
ReplyDeleteTHANKS DEAR.
Deleteदोस्ती का मिसाल कृष्ण-सुदामा की जय हो
ReplyDeleteधन्यवाद पंकज मिश्रा जी .
Deleteजय हो
ReplyDeleteद्वारकाधीश भगवान की जय .
धन्यवाद जी .जय हो .
Deleteसुन्दर चित्रों से सजी बेहतरीन पोस्ट . ..राकेश गुप्ता
ReplyDeleteधन्यवाद .जय श्री कृष्णा .
Deleteबढ़िया जानकारी .सुन्दर और मनभावन चित्र .जय द्वारकाधीश
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी .जय द्वारकाधीश
Deleteसुंदर फोटोज़ से सुसज्जित उम्दा पोस्ट ।
ReplyDeleteधन्यवाद रज साहब .जय द्वारकाधीश
Deleteशानदार प्रस्तुति के साथ फोटोग्राफी भी गजब। अद्भुत और अविस्मरणीय नजारों से परिपूर्ण ब्लॉग पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील मित्तल जी . संवाद बनाये रखिये .
Deleteआपके माध्यम से हमारी यात्रा भी हो गई ।
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
धन्यवाद सुशिल जी .जय श्री कृष्ण
Deleteबेट द्वारका ..बहुत सुना है ..आज देख भी लिया ..जल्दी ही जाने का सोचा है हमने भी ..देखे कब वक्त आता है
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी. सुन्दर रमणीक जगह है .अवश्य जाना .
DeleteBeautiful pictures! I would never imagine having this kind of experience in India. Thank you for sharing your experience!
ReplyDeleteim just reaching out because i recently published .“No one appreciates the very special genius of your conversation as the
ReplyDeletedog does.
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