रुद्रनाथ यात्रा : रुद्रनाथ से कंडिया बुग्याल
रुद्रनाथ मंदिर (3590 मीटर) में भगवान शंकर के एकानन रूप में यानि मुख की
पूजा की जाती है, जबकि पंचानन रूप में संपूर्ण शरीर की पूजा
नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। यहाँ विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर
में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहाँ शिवजी गर्दन टेढे किए हुए हैं। मंदिर के अन्दर ही शिव-परिवार, सेषासन पर लेटे हुये विष्णु जी आदि कई दुर्लभ प्रतिमायें रखी हुई हैं। रुद्रनाथ के कपाट, परंपरा के अनुसार खुलते-बंद होते हैं। ठण्ड के मौसम में छह माह के लिए रुद्रनाथ जी गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है, जहां पर ठण्ड के मौसम के दौरान नीलकंठ महादेव जी की पूजा होती है।
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माँ नंदा देवी | |
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मंदिर के आस पास कुछ कुंड हैं जैसे सूर्य कुंड , चंद्र कुंड , तारा कुंड ,नारद कुंड और माना कुंड । तीन कुंड तो हमने भी देखे, काफी
छोटे थे बाकि दो शायद मंदिर के पीछे की तरफ हैं । मंदिर से थोड़ा सा पहले ही नारद
कुंड के पास एक छानी है जहां हमें कुछ सामान देना था । कल मौली खरक छानी के मालिक
ने कुछ सामान- शायद कुछ दवाई - दिया था, जो यहां पर छानी वाले को देना था । हमने पहले
उसका नाम कन्फर्म किया और फिर उसका सामान उसको दे दिया। इस छानी के पास शोचालय की
सुविधा भी थी। इसलिए यहाँ जब तक हमारे दो तीन साथी डाउनलोडिंग कम्पलीट करते तब तक
हमने छानी में चाय बनाने को बोल दिया। उसने चाय बढ़िया बनाई, चाय पी कर हमने भगवान
रुद्रनाथ को दूर से ही फिर प्रणाम किया और वापसी की राह पर चल दिए।
जब हम यहां से वापिस चले तो दोपहर के लगभग 12:15 बज चुके थे, अब सब तेजी से पंचगंगा की
ओर बढ़ रहे थे। यहां से बाएं तरफ नंदा देवी और त्रिशूल के बढ़िया दर्शन हो रहे थे ।
आसमान में काफी बादल आ चुके थे लेकिन कुछ चोटियों अभी भी दिख रही थी। मैं बार-बार
नंदा देवी और त्रिशूल की तस्वीरें खींच रहा था लेकिन मन नहीं भर रहा था। ठीक 1:45 बजे हम पंचगंगा आ पहुंचे. यहाँ पर छानी वाले
से मंडल जाने का रास्ता पूछा उसने हाथ से इशारा करके बता दिया कि इस तरफ से जाएगा
लेकिन वह हमें कहने लगा कि आपको अनुसूया पहुंचते-पहुंचते काफी रात हो जाएगी, आप पहुँच
नहीं पाओगे इसलिए आज आप यहीं रुक जाओ और कल सुबह जाना। लेकिन गौरव को कल रात तक घर
पहुँचना था इसलिये हम सब की चलने की इच्छा थी । उसने फिर कहा कि यहां से अनसूया
मंदिर 12- 13 किलोमीटर है, काफी समय लग जाएगा। लेकिन हम चलने की ठान चुके
थे। जब चलने लगे तो छानी वाले ने कहा, चलो चाय तो पीते जाओ लेकिन हमें यहाँ पर सुबह
पी हुई चाय का घटिया स्वाद अभी भी याद था इसलिए मना कर दिया और जल्दी से नेवला पास
की ओर चल दिए।
पंचगंगा से पनार की तरफ थोड़ा चलने पर
एक रास्ता बाईं तरफ ऊपर धार की तरफ जा रहा है इसी पर हमें चलना था। यह रास्ता भी ऊपर
जाकर दो हिस्सों में बंट रहा था एक सीधा आगे जा रहा था और एक दाहिने तरफ पंचगंगा
के ऊपर की तरफ जा रहा था। हम यहाँ से सीधा ऊपर की ओर चल पड़े, गौरव सबसे आगे था और
वह धार के काफी नजदीक पहुंच चुका था। हम सब उसके पीछे पीछे थे लेकिन हमें कंफ्यूजन
था किधर को जाएं. तभी मंडल से एक ग्रुप
आता हुआ दिखा वे बिल्कुल नेओला पास पर थे हमने उनको आवाज़ लगाई। उन्होंने हमें देख
लिया ,जब हम मंडल चिल्लाए तो उन्होंने हमें अपनी तरफ आने का इशारा कर दिया। हम
वापस मुड़कर उनकी तरफ चल पड़े, थोड़ा चलने पर हमें वह ग्रुप मिल गया, कुल 5 लोग थे और सभी बंगाल के। साथ में एक
स्थानीय गाइड भी था । उसने बताया कि यही रास्ता मंडल जाएगा, आप गलत जा रहे थे। हम
ठीक 2:10 पर नेओला पास ( 3828मीटर)
पहुंच गए थे। नेओला पास पंचगंगा से एक किलोमीटर से थोड़ा कम ही
है। नेओला पास पहुँचे तो धार पर होने के कारण
यहाँ बड़ी तेज हवा चल रही थी जिससे
वहाँ खड़े होना भी मुश्किल लग रहा था । धार के दूसरी तरफ एकदम तीखी ढलान है । यहाँ से
मंडल की ओर शुरू का सारा रास्ता लंबे- लंबे घास के झुंड में से ही है । तीखी ढलान
होने के कारण हम सब संभलते हुए तेजी से नीचे उतरने लगे।
थोड़ा और आगे बढ़े तो बादलों के एक बड़े समूह ने हमें घेर लिया। बादल इतने घने
थे कि हमें आसपास कुछ भी नहीं दिख रहा था। हम सिर्फ नीचे की तरफ रास्ते पर ध्यान
देकर उतरते गए । थोड़ा आगे चलने पर हमें एक महात्मा जी और दो अन्य लोग भी रुद्रनाथ
जाते हुए मिले बातचीत करने पर मालूम हुआ कि महात्मा जी अनुसूया देवी मंदिर के
पुजारी है और आज रूद्र नाथ जी के दर्शन करने जा रहे हैं।
एक घंटे से अधिक चलने के बाद हम 3:30 के करीब धनपाल बुग्याल (3404 मीटर )
पहुंच गए, जो नेओला पास से लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ एक छोटा सा बुग्याल
है, जहाँ पर कुछ विदेशी लोग टेंट लगाकर रुके हुए थे। हम बिना रुके यहाँ से आगे
बढ़ते हुए। यहाँ से लगभग डेढ़ किलोमीटर आगे हंसा बुग्याल (3154 मीटर) है, जो पहले
के मुकाबले काफी बड़ा है। यहाँ एक टूटी हुई झोपड़ी है, शायद पहले कभी यहाँ खाने
पीने की दुकान रही होगी । भेड़ों का एक बड़ा झुंड भी यहाँ चर रहा था और साथ में
तीन-चार झबरी कुत्ते भी उनकी रखवाली के लिए उनके साथ थे। कुत्ते हमें देखते ही
जोर-जोर से भोंकने लगे और रास्ते के पास जाकर खड़े हो गए। हम धीरे-धीरे से उनको
पुचकारते हुए उनके आगे से निकल गए। कुत्ते सावधानी से हमें देखते रहे लेकिन दूर ही
रहे । इस बुग्याल के खत्म होने के बाद ही घना जंगल शुरू हो जाता है थोड़ा और आगे
चलने पर हमें एक व्यक्ति आता हुआ मिला, उसने हमें बताया कि बुग्याल में जो भेड़
बकरियां चर रही है, वो मेरी ही है । मैं किसी
काम से नीचे गया था अब वापस वहीं जा रहा हूं। जब हमने उससे पूछा कि आगे पानी कहाँ मिलेगा
तो उसने बताया कि पीछे बुग्याल में जो टूटी झोपड़ी है उसमें पानी का पाइप है आप
पानी वहाँ से भर लेते । हमने बताया कि तुम्हारे कुत्ते हमें बुरी तरह भौंक रहे थे हम
तो उनसे बच कर आयें है तो उसने हँसते हुए बताया कि वह आपसे बिस्कुट मांग रहे थे आप
उन्हें बिस्कुट खिला देते तो वो सब चुप हो जाते और तुम्हें कुछ ना कहते हैं । ये
चीज नयी पता चली ! हमें क्या मालूम था वह बिस्कुट मांग रहे हैं, बिस्कुट तो थे
हमारे पास।
वापसी में जल्दबाजी में हमारी पानी की एक बोतल पंचगंगा में ही रह गई थी और अब सिर्फ
एक बोतल बची थी और अभी चलना बहुत दूर था । उसने बताया कि अब आगे पानी आपको कंडिया
बुग्याल से 1 किलोमीटर पहले मिलेगा, उससे पहले कोई पानी नहीं है । आप बिना रुके जल्दी से
उतर जाओ, अँधेरा होने से पहले ही बुग्याल पहुँचने की कोशिश करो । हम भी बिना रुके तेजी से नीचे उतर रहे थे, तीखी
ढलान थी तो गति भी तेज बनी हुई थी । पूरा घना जंगल था और हमें और कोई आता जाता भी नहीं मिला ।
बहुत जगह तो रास्ता भी नहीं दिख रहा था अंदाजा से ही चलना पड़ रहा था । कहीं जगह
रास्ते में पेड़ गिरे हुए थे, कभी पेड़ों के ऊपर से चढ़ कर चलना पड़ रहा था तो कई जगह
पेड़ों के नीचे से निकल कर। इस रास्ते से बहुत कम लोगों की आवाजाही होती है इसलिए
बारिश के बाद लम्बी लम्बी घास उग आने से बहुत सी जगह रास्ता दिखता ही नहीं है , ऐसे
में सही रास्ते पर चलने के लिए काफी दिमाग
खपाना पड़ता है ।
शाम के पाँच बज चुके थे लेकिन यह जंगल खत्म ही नहीं हो रहा था, हमें डर था कि
यदि दिन की रोशनी में जंगल पार ना किया तो काफी दिक्कत हो जाएगी और रास्ता ढूंढने
में बहुत परेशानी होगी इसलिए हम बड़ी तेजी से नीचे उतर रहे थे । आज भी सागर सबसे
पीछे चल रहा था , हमने गौरव को उसके साथ ही रखा था ताकि वह पीछे अकेला ना छूट जाए।
मैं, सुखविंदर और सुशील आगे थे। जब भी हम थोडा आगे बढ़ जाते तो रुक-कर उनको आवाज लगाते,
जब उनका जवाब आ जाता या वो हमें दिख जाते तो हम आगे चल पड़ते। इस तरह हम आगे पीछे
होकर भी एक दूसरे की रेंज में थे । काफी देर चलने के बाद हमें स्वच्छ पानी की धारा
मिल गई, सभी लोग बहुत प्यासे थे तो पहले सबने जी भर कर पानी पिया फिर अपनी बोतलें
भी भर ली। अब थोड़ा हौसला हो गया कि यहाँ से बुग्याल अब ज्यादा दूर नहीं है। पानी
पीने के बाद हम फिर से आगे की तरफ तेजी से चल पड़े। इस रास्ते में तीखी उतराई –चढ़ाई के साथ एक दिक्कत यह भी है कि काफी
कम आवाजाही होने के कारण पंचगंगा से लेकर कंडिया बुग्याल तक 10 किलोमीटर के रास्ते में खाने पीने को
कुछ भी नहीं है, कोई दुकान कोई छानी नहीं है।
शाम 5:40 पर हम कंडिया बुग्याल (2346 मीटर) पहुंच गए। पंचगंगा (3696मीटर ) से
हमें यहाँ पहुँचने में ठीक चार घंटे लगे और हम यहाँ तक तेजी से ,लगभग बिना रुके ही
आये ; यदि कहीं रुके भी तो एक दो मिनट के लिए खड़े-खड़े ही आराम किया। कंडिया बुग्याल रास्ते के हटकर , थोड़ी ऊंचाई पर
है आप ध्यान ना दो तो यह मिस भी हो सकता है। कंडिया बुग्याल देखकर हमें बड़ी खुशी
हुई क्योंकि एक मंजिल तो मिल ही गई। हम तीनों वहां रुक गए और गौरव और सागर के आने
की प्रतीक्षा करने लगे, डर था कहीं साइड से वे सीधा आगे ना निकल जाए। 5-7 मिनट बाद में वे भी आ गए और उनके आने के बाद हमने पांच Maggi का ऑर्डर दे दिया । थोड़ी देर में मैग्गी
बन के आ गई तो दुकान वाले को पाँच कप चाय
के लिए भी बोल दिया । जब तक मैग्गी निपटाई तब तक चाय बन कर आ गयी । खाने –पीने के
इस दौर में 35-40 मिनट लग गए और अब तक दिन ढल चूका था । कंडिया बुग्याल में छानी
वाले के साथ एक बाबा जी भी रुके हुए थे , उनके भगवा वस्त्र से हम समझ गए थे यह कोई
साधु-सन्यासी हैं । छानी वाले ने हमसे पूछा कि आप यहां रात रुकोगे या आगे जाओगे ? हमने कहा
कि हम रात को अनसूया जाएंगे, रुकेंगे नहीं। उसने कहा यदि आप जाओगे तो यह बाबा जी
भी आपके साथ चले जाएंगे, यह नीचे अत्री गुफा वाले बाबा है , अंधेरा हो रहा है
इसलिए अकेले नहीं जाना चाहते । आप जाओगे तो साथ चले जाएंगे और यदि आप लोगों को रात
को यहीं रुकना है तो बाबा जी भी यहीं रुक जाएंगे। असल में बाबाजी गुफा से यहाँ फोन
करने के लिए आए थे क्योंकि यहाँ फोन की कवरेज मिल जाती है, जहां बाबा जी रहते हैं
वहां गहराई होने से बिलकुल भी कवरेज नहीं है ।
छानी वाले की इच्छा थी की हम रात को उसके पास ही रुक जाएँ । वो रात रुकने के
लिए पहले प्रति व्यक्ति 150 रूपये मांग रहा था लेकिन बाद में सभी के 500 रूपये पर
भी तैयार हो गया था । हल्का अँधेरा शुरू हो चूका था और हम भी किमकर्तव्यविमूड की
स्तिथि में सोच रहे थे यहाँ रात रुकें या अँधेरे में ही अभी आगे जाएँ। यहाँ से
अनुसूया तीन किलोमीटर से थोड़ा सा अधिक है । पहले नदी तक नीचे उतरना है और फिर
दोबारा चढाई अनुसूया तक और रास्ता पूरा घने जंगल में सो होकर ही है । देखते हैं
क्या फाइनल होता है !!!!!!
अभी बस इतना ही ...बाकि अगले पार्ट में, तब तक आप यहाँ तक की
तस्वीरें देखिये ।
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं ।
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पञ्च चुली |
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माँ नंदा देवी |
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त्रिशूल |
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पञ्च गंगा की ओर |
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पञ्च गंगा की ओर |
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पञ्च गंगा की ओर |
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नेओला
पास |
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आपको रास्ता दिख रहा है क्या ? |
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इसके बीच से ही है रास्ता |
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लम्बी लम्बी घास के बीच से रास्ता |
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बस ऐसे ही आराम किया |
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धनपाल
बुग्याल |
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धनपाल
बुग्याल |
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पेड़ों के निचे से बैठकर निकलना पड़ा |
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कंडिया
बुग्याल |
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कंडिया
बुग्याल |
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कंडिया
बुग्याल |
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कंडिया
बुग्याल |
बहुत ही अच्छी पोस्ट सहगल साहब क्या उत्तराखण्ड में हर नदी के नाम के आगे गंगा है?
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई । गंगा में मिलने वाली छोटी छोटी नदियों के आगे गंगा लगा देते हैं
Delete।
बढ़िया सहगल जी... यात्रा रोमांचक दौर में चल रही है... | चित्र तो लाजबाब है आपके
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश जी ।💐💐💐
Deleteशानदार पोस्ट .जय भोले की .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय भाई
Deleteवाह भाई जी
ReplyDeleteस्वर्ग की सैर करा दी आपने ������������
धन्यवाद चौहान साहब 💐💐
ReplyDeleteAs usual , nice post. Om Namah Shivay.
ReplyDeleteअदभुद फोटो भाई जी 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद अजय भाई
Deleteजय भोलेनाथ...🙏
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई
DeleteAs usual , nice post. Om Namah Shivay.
ReplyDeleteThanks Dear.
Deleteअब वहां जाने से पहले मुझे कुत्ते की भाषा सीखनी पड़ेगी कि ये बिस्कुट मांग रहा है कि चाय पीने की इच्छा है इसकी :) बहुत बढ़िया सहगल जी , सरल और सार्थक पोस्ट !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .
Deleteखूबसूरत तस्वीरों से सजी एक संतुलित पोस्ट .चोटियों की तस्वीरें काफी सुन्दर आई हैं .जय भोले की
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ जी
Deleteनौला पास की उतराई कैसे भूली जा सकती है.... बहुत खूब नरेश जी।
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई .सही कहा ...नौला पास की उतराई कैसे भूली जा सकती है !!
Deleteउतराई के साथ-साथ बड़ी बड़ी घास ने कुछ देर तक परेशान जरूर किया और उस समय वे कुत्ते कम भेड़िये ज्यादा लग रहे थे... बाकी जंगल में रात को यूं चलना हमेशा याद रहेगा। बहुत ही अच्छा लिखा है सहगल जी।
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव भाई .सही कहा एक समय तो परेशानी होती है लेकिन उम्र भर की यादें बन जाती हैं .
Deleteभाई जी सस्पेन्स में डाल दिया आखिर में चलय अगले भाग में चलते ह फोटो बहुत ही सुंदर ह
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक जी ।
ReplyDeleteइतनी लंबी घास में रास्ता ढूढना यानी रुई में सुई ढूंढने के बराबर है नरेश फिर इस घास में सांप बिच्छू के होने का डर नही था क्या? उफ्फ्फ!बहुत कठिन है डगर पनघट की😊😊😊
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी .दिन का समय होने से लंबी घास में रास्ता खोजने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई .
Delete