रात को हम जल्दी सो गये थे तो सुबह आँख भी जल्दी खुल गयी, लेकिन बाहर ठण्ड बहुत थी तो इसीलिए
चुपचाप रज़ाई में दुबके रहे । जिस जगह मैँ सोया हुआ था उसके पास ही एक खिड़की थी
जिसके पल्लों के सुराख में से ठंडी हवा अंदर आ रही थी । उसी सुराख से बाहर पूरा
अँधेरा भी दिख रहा था । मैं थोड़ी रोशनी के इंतजार में था ताकि उठकर बाहर बुग्याल
में घूम सकूँ । लगभग 5:30 बजे जब बाहर हल्की रोशनी हो गयी तो मैं उठकर कमरे से बाहर
आ गया ,बाकी अभी सब सो रहे थे । बाहर का दृश्य बड़ा मनमोहक था । कल शाम को बादल
होने से हम कोई भी चोटी नही देख पाए थे लेकिन इस समय सभी चोटियाँ दिख रही थी। मैँ
दोबारा कमरे में गया और अपना कैमरा उठा लाया लेकिन अभी रोशनी पर्याप्त न होने के
कारण फ़ोटो साफ नही आ रही थी ।
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गोल्डन चौखम्बा
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मैं सामने की तरफ धार के साथ साथ चलता हुआ सबसे ऊंची जगह पर पहुँच गया । यहीँ
से कल्पेश्वर से आने वाले मार्ग आ रहा है और यहाँ से कल्पेश्वर लगभग 28 किमी दूर
है । मैं वहाँ अकेला खड़े सूर्योदय के इंतज़ार करने लगा । पूर्व की तरफ आसमान धीरे
धीरे रंग बदलने लगा ,मैं समझ गया कि अरुण देव आने वाले हैं । मैं उनके स्वागत को तैयार था । सूर्य
देव मां नंदा देवी चोटी के बायीं और से लालिमा बिखेर रहे थे । ये लालिमा जब पश्चिम
दिशा में चौखम्बा की बर्फ़ से ढ़की चोटीयों पर पड़ी तो सभी चोटियाँ सोने की तरह दमकने
लगी । मैं कभी सूर्योदय की फोटो खींचता तो कभी उलटी दिशा में चौखम्बा की । दोनों
तरफ शानदार नज़ारा देखकर मैं पगला सा गया । मैं कमरे से 200 -250 मीटर दूर था ।
सामने कमरे से पहले सुखविन्दर बाहर निकला और मुझे दूर खड़े देखकर मेरी तरफ आने लगा
। उसके बाद गौरव और सागर भी मेरे पास आ गए । सुशील भी उठ चुका था लेकिन वो कमरे के
बाहर ही खड़ा रहा , शायद यहाँ भी रात को हरी मिर्च न मिलने से काफी नाराज था ।😜😜
दोनों बंगाली बाबू भी कमरे के बाहर सुशील के साथ बैठे थे । हम भी फोटोग्राफी
के थोड़ी देर बाद वहीँ आ गए । अभी तक छानी वाला सो रहा था । उसे उठाकर चाय बनाने को
कहा और थोड़ा गर्म पानी भी मांग लिया । जब तक चाय बन कर आती सभी लोग दैनिक क्रियाओं
में व्यस्त हो गए, गरम पानी से हाथ -मुंह धो कर सबने चाय पी । अभी नाश्ता तैयार
होने में यहाँ काफी समय लगना था इसलिए
नाश्ता आगे पंचगंगा में करने का फैसला लिया और अपने- अपने बैग उठा कर हम लगभग सुबह
7:00 बजे आगे के सफ़र पर चल दिए । दोनों बंगाली दादा हम से आधा घंटा पहले ही जा
चुके थे । पनार से आगे का रास्ता धार के साथ-साथ ही है ,ज्यादातर हल्की चढ़ाई है
जो लगातार पितृधार तक है लेकिन बीच बीच में कहीं चढ़ाई कठिन भी है । पनार (3480
मीटर) से पितृधार (3800 मीटर) की दूरी 3 किलोमीटर है. पितृधार से थोड़ा पहले ही सामने
की तरफ केदारनाथ की चोटी के दर्शन होते हैं ,उससे बायीं तरफ एक अन्य बर्फ से ढंकी
चोटी दिख रही थी जिसका नाम मुझे मालूम नहीं था लेकिन बाद में मेरे मित्र अमित
तिवारी ने फोटो देखकर इसका नाम कैरी बताया। अमित तिवारी जी जबरदस्त ट्रैकर हैं और उत्तराखंड की चोटियों
के अच्छे जानकार भी ।
इससे थोड़ा आगे चलने पर हम पितृधार पहुँच गए . पनार से रुद्रनाथ जाने वाले रास्ते में यह जगह सबसे ऊँची है ,यहां से चढ़ाई लगभग खत्म हो जाती है ,आगे पंचगंगा तक थोड़ा नीचे उतरना पड़ता है । धार पर होने के कारण यहाँ बड़ी ठंडी हवा चल रही थी । यहाँ पितृधार में भी कुछ पत्थरों को जोड़कर एक मंदिर बना हुआ था, जिस पर रंग
बिरंगी झंडियाँ लहरा रही थी .यहां स्थानीय लोग अपने पितरों और इष्ट देवता की पूजा
करते हैं. जैसा कि नाम से ही लगता है कि पितृ-धार पहाड़ी की धार पर हैं ।पितृ-धार में
हमें कुछ लोग रुद्रनाथ से वापस आते हुए मिले, यह लोग रात को रुद्रनाथ में ही रुके हुए थे और सुबह
उठकर दर्शन के बाद वापिस पनार की तरफ जा रहे थे । ज्यादा ठंडी हवा होने से हम यहां
ज्यादा देर नहीं रुके और आगे पंचगंगा की ओर चल दिए । यहां से पंचगंगा तक हल्की
हल्की उतराई है ।
पंचगंगा (3700 मीटर) की पितृ-धार से दूरी 2 किलोमीटर है । पंचगंगा भी एक बड़ा सा
बुग्याल ही है इसमें बनी छानी दूर से ही दिखने लगती है, थोड़ी ही देर में हम यहाँ पहुंच
गए । यहां भी रुद्रनाथ से आने वाले कुछ यात्री रुके हुए थे जिनमे अधिकतर बंगाली थे
। जो दो लोग हमारे साथ कल रात पनार में रुके थे, वे भी इसी ग्रुप के थे । अब जब वे
मिल गए तो सब मिलकर खूब हो हल्ला कर रहे थे जो हमारे सिर के ऊपर जे जा रहा था । खैर
,पंचगंगा पहुंचकर हमने नाश्ते का ऑर्डर दिया और जब तक आलू के पराठे बनकर तैयार
होते हम सब बाहर धूप में ही लेट गए । नाश्ते में एक-एक आलू का परांठा खा और एक कप गर्म
चाय पी सभी आगे रुद्रनाथ की ओर चल दिए । यहां से रुद्रनाथ (3600 मीटर) की दूरी
मात्र 3 किलोमीटर है, रास्ता भी कभी उतराई और कभी चढ़ाई, कभी पचास मीटर नीचे और
कभी पचास मीटर ऊपर की ओर । सारा रास्ता इसी तरह से है ।
मंदिर से लगभग एक किलो मीटर पहले लोहे के सरिए को मोड़कर रुद्रनाथ द्वार बनाया
हुआ है ,जिसे देव दर्शनी कहते हैं । यहां से भगवान रुद्रनाथ मंदिर के पहले दर्शन
होते हैं । हम जल्दी से मंदिर की ओर चल रहे थे, दोनों बंगाली बाबू हम से काफी पीछे
हो गए थे । हम लगभग 11:30 बजे रुद्रनाथ मंदिर पहुंच गए, वहाँ हमारे अलावा मंदिर के दो-तीन पुजारी थे और कोई
नहीं था, हमने बड़े आराम से दर्शन किए और काफी देर वहीं बैठे रहे । हमसे थोड़ी देर
बाद ही दोनों बंगाली दादा भी वहां पहुँच गए ।रुद्रनाथ
मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ
में की जाती है। यहां
विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है।
यहां शिवजी गर्दन टेढे किए हुए हैं। माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ
मूर्ति स्वयंभू है यानी अपने आप प्रकट हुई है। इसकी गहराई का भी पता नहीं
है। मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी
विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी
के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं। मंदिर के पास ही एक रसोई है जहाँ भगवान
रुद्रनाथ को भोग लगाने की तैयारी चल रही थी । पुजारी जी ने बताया कि 12:00 बजे भोग लगाने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे और
फिर शाम को 4 बजे ही कपाट खुलेंगे । थोड़ी देर बाद पुजारी जी और उनके सहयोगी भगवान
को भोग लगाने के लिए भोजन ले आये और मंदिर में चले गए .उस समय किसी दुसरे का मंदिर
में प्रवेश वर्जित है . भोग लगाने के बाद मंदिर के कपाट शाम तक बंद कर दिए गए इस
सारी प्रकिर्या के दौरान हम मंदिर के बाहर ही खड़े रहे और फिर कपाट बंद होने के बाद
वापस चल दिए ।
आज रुद्रनाथ के दर्शन के साथ ही मेरी पंच केदार यात्रा पूर्ण हो गई । आज से 2 साल पहले तक मुझे पंचकेदार के बारे में
मालूम भी नहीं था । 2015 में मालूम हुआ कि केदारनाथ के अलावा और भी चार केदार है । केदारनाथ
जी तो मैं 2011 में जा चुका था, बाकी चार केदार का पता चला तो मन में यहां
जाने की इच्छा भी जोर मारने लगी । 2015 में तुंगनाथ की यात्रा की, 2016 में मध्यमहेश्वर की और अब 2017 में कल्पेश्वर महादेव और रुद्रनाथ के
दर्शनों का प्रोग्राम बन गया .यह सब भोलेनाथ की कृपा से ही पूरा हो पाया ।
अब लगे हाथ आप पञ्च केदार की कहानी भी सुन लो ।
उत्तराखण्ड में पांच केदार हैं, जो पंच-केदार के नाम से विश्वविख्यात
हैं। ये क्रमानुसार इस तरह हैं –केदारनाथ, मद्महेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर । ऐसा माना जाता
है की इन मंदिरो का निर्माण पाण्डवों
द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण
पाण्डवों से रुष्ट थे। शिव पुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पाण्डव जब
स्व-गौत्र हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे तो महर्षि वेद व्यास ने उन्हें तप
करके शिवजी को प्रसन्न करने को कहा कि वो ही उनको इस पाप से मुक्ति दिलवा सकते
हैं। पाण्डव शिवजी को खोजते हुए यहाँ तक आ पहुंचे, लेकिन शिवजी पाण्डवों से रुष्ट होने के
कारण उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे।
गुप्तकाशी के जंगलों में शिवजी ने महिष (बैल) का रूप धारण कर लिया और
बाकी जानवरों के साथ चरने लगे। लेकिन पाण्डवों ने शिवजी को पहचान लिया। उनसे बचने
के लिए महिष रूपी शिवजी केदार पर्वत की ओर चल दिए और धरती में अंतर्ध्यान होने लगे लेकिन महाबली भीम
ने शिवजी को पीछे से पकड़ लिया लेकिन तब तक महिष का अगला भाग नेपाल के पशुपतिनाथ, मुख रुद्रनाथ, भुजाएं तुंगनाथ, जटाएं कल्पनाथ, नाभि मदमहेश्वर और पृष्ट भाग केदारनाथ
में ही रुक गया। शिवजी ने पाण्डवों से प्रसन्न होकर उनको स्व-गोत्र हत्या के पाप
से मुक्त कर दिया । बाद में इन सभी स्थानों पर पांडवों ने मंदिर बनवाये । पंच
केदारो में सबसे पहले केदारनाथ में जहाँ भगवान के पुष्ट भाग की पूजा की जाती है, वहीं
द्वितीय केदार मध्महेश्वर में भगवान
के मध्य भाग यानि नाभि की पूजा की जाती है । तृतीय केदार तुंगनाथ में भगवान की भुजाओं और
उदर की पूजा की जाती है जबकि चतुर्थ केदार यानि रुद्रनाथ में भगवान के मुख की पूजा
की जाती है। पंचम केदार कल्पेश्वर में शिव की जटाओं की पूजा की जाती हैं ।
अभी बस इतना ही ...बाकि अगले पार्ट में, तब तक आप यहाँ तक की
तस्वीरें देखिये ।
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं ।
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गोल्डन चौखम्बा |
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गोल्डन चौखम्बा |
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गोल्डन चौखम्बा |
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गोल्डन चौखम्बा |
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नंदी कुंड पीक |
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सूर्योदय |
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चौखम्बा |
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सूर्योदय |
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सूर्योदय |
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सूर्योदय |
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पनार |
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नीलकंठ |
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नंदी जैसी चट्टान |
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सागर ,गौरव ,सुशील और सुखविंदर |
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ये पता नहीं कौन सी चोटी है ..अमित भाई बताएँगे |
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केदारनाथ |
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कैरी |
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रुद्रनाथ के दूर दर्शन |
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पुजारी जी |
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नंदी महाराज |
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भगवान रुद्रनाथ |
वाह सहगल साहब जब सामने इतने नजारे हो तो होश किसे रहता है फ़ोटो हमेशा की तरह शानदार है ...सूर्य देव या अरुण देव,?....
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद .....सूर्य देव या अरुण देव . दोनों एक ही है .
Deleteअरुण सूर्य के सारथी को कहा जाता है ।
Deleteधन्यवाद पाण्डेय जी .
Deleteजय भोलेनाथ
ReplyDeleteजय भोले नाथ अनिल भाई .
Deleteशानदार भाई ji
ReplyDeleteधन्यवाद अजय भाई .
Deleteबहुत अच्छे नरेश भाई... आपने खूब यात्रा करवाई रुद्रनाथ जी की और बहुत ही खूबसूरत द्रश्य दिखाए.....
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश भाई .जय रुद्रनाथ .
DeleteCongratulations Sehgal Sahib . very well described about "Paanch Kedar. Totally speechless. After reading this post , dil garden garden ho gya . All Pictures are beautiful. .............But pictures of sun- rising , Golden cho-khamba & Kedar nath are mind blowing. Fantastic post. Thanks for sharing. ..Jai Rudernath Ji... 💐💐
ReplyDeleteMind blowing photos and description...
ReplyDeleteधन्यवाद तिवारी जी .
DeleteJnaaaaab...aaj bdi Khushi ho rhi hai ki main bhi uss lucky & lovely group ka hissa tha..har jagah bass aanand hi aanand mila ...... siwa hri mirch ke
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील भाई . आपको जल्दी ही हरी मिर्च मिलने वाली है . ;)
Deleteलाजवाब फोटोज। खुबसूरत वर्णन।
ReplyDeleteधन्यवाद रचना जी .
Deleteहरी मिर्ची वाले भाईसाहब को मिर्ची मिली या नही । बहुत ही बढ़िया वर्णन । जय भोलेनाथ
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी , समय आने पर साहब को मिर्ची मिलेगी भी, लगेगी भी .जय भोले नाथ .
DeleteWonderful Post ,amazing pictures...
ReplyDeleteThanks Sanjeev jee.
Deleteलाजवाब वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी ।
Deleteनरेश जी उम्दा चित्रों से सजा बढ़िया लेख, घर बैठे-2 ही पंच-केदार के दर्शन करवा दिए, मैं भी अभी तक सिर्फ केदारनाथ ही जा पाया हूँ, देखिये, अब आपकी पोस्ट पढने के बाद बाकि के केदार भी मेरी यात्रा सूची में शामिल हो गए है ! भोलेनाथ की कृपा बनी रही तो जल्द ही दर्शन करूँगा, तब तक आपके लेख से ही दर्शन का लाभ ले रहा हूँ !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई ।आप भी यहाँ जरूर जाएं ।सौंदर्य से भरपूर जगह है ।
Deleteअद्भुत दर्शन और एक आपके जैसा शिवभक्त जब पाँचों केदार पूरा करता है तो खुश होना स्वाभाविक है। बधाई मित्रवर नरेश सहगल जी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .जय भोले की .
Deleteवाह......
ReplyDeleteपंच केदार की यात्रा पूरी करने की बधाई नरेश जी।
रुद्रनाथ में एक शिला पर केदारनाथ मंदिर की आकृति उभरी है। स्पष्ट दिखाई देती है, उसकी फोटो नहीं खींची क्या ?
धन्यवाद बीनू भाई .पंच केदार की यात्रा पूर्ण होने में दोस्तों का भी सहयोग है .
Deleteपोस्ट पढी़, मजा आ गया, तस्वीरें बहुत सुंदर, रास्ता ऊंचाई और उतराई वाला था, बंगाली दादा को भी आपने पीछे छोड दिया, पंचकेदार दर्शन पूर्ण पर बधाई,
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई .
Deleteएक केदार के दर्शन तो आपने हमें भी करदिये सर जी धन्यवाद सूंदर पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक शर्मा जी .आपको ब्लाग पर सभी केदार के दर्शन मिल जायेंगे .
Deleteशानदार विवरण 👌इतनी मुश्किलो से ऊपर आना अपने आप में सुखद है ।मैं तो इतना चढ़ नही सकती ,पर तुमने मुझे यहां भी घुमा दिया👍
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी .जय भोले नाथ .
Deleteशानदार विवरण पंच केदार की यात्रा पूरी करने की बधाई नरेश जी !!
ReplyDeleteधन्यवाद भास्कर जी .
Delete