उत्तराखंड यात्रा : मंडल –चोपता – ओम्कारेश्वर मंदिर , उखीमठ
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मंडल पहुँचकर मैं, गौरव और सागर के साथ शेयर्ड जीप
में बैठकर सगर चला गया । वहां पहुँचकर गौरव और सागर ने अपना सामान गाड़ी से लिया और
अपनी बाइक से गोपेश्वर होते हुए अपने घर गाजियाबाद को निकल गए। उन्हें आज रात घर
पर पहुंचना था ताकि कल सुबह वो अपने ऑफिस जा सके । मैं अपनी कार लेकर मंडल वापिस आ
गया । अब आगे .........
जब मैं मंडल आकर होटल के कमरे में पहुँचा ,तब तक सुखविंदर और सुशील नहा कर
तैयार हो चुके थे। मैं भी जल्दी से तैयार हो गया और फिर सब अपना सामान लेकर नाश्ते
के लिए होटल वाले के ढाबे पर आ गये। उसे हरी मिर्च डालकर आलू के परांठे बनाने को
बोल दिया । आज सुशील बहुत खुश था उसे कई दिनों बाद हरी मिर्च खाने को मिलने वाली
थी । ढाबे वाले ने भी बढ़िया स्वादिष्ट परांठे बनाये ; लग ही नहीं रहा था हम
उत्तराखंड में किसी ढाबे पर नाश्ता कर रहे हैं । ऐसे लग रहा था जैसे हम किसी पंजाब
के ढाबे पर तंदूरी परांठे खा रहे हों । इस टूर का सबसे बढ़िया खाना यहीं खाया ।
खाना खाकर हम चोपता की तरफ चल दिए । हमारा आज का प्रोग्राम यहाँ से चोपता होते
हुए उखीमठ में ओम्कारेश्वर मंदिर में दर्शन करना और उसके बाद कालीमठ और त्रियुगी
नारायण (जितना हो सके ) होते हुए रात को श्रीनगर रुकना था। मंडल से चोपता लगभग 25
किमी दूर है । बढ़िया रास्ता बना है और लगभग सारा रास्ते घना जंगल ही है। एक घंटे
में हम चोपता पहुँच गए । थोड़ी देर यहाँ रुके । तुंगनाथ वाले रास्ते पर थोडा ऊपर गए
। दो साल पहले अपनी तुंगनाथ
यात्रा पर यहाँ जिस होटल में रुके थे , उस कमरे पर गए और फिर आगे उखीमठ की तरफ
चल दिए । एक छोटा ब्रेक दोगलबिट्टा में भी लिया । थोड़ा आगे चलने पर सड़क पर एक झरने
का काफी पानी थोड़ी ऊँचाई से गिर रहा था । गाड़ी दो दिनों से सगर में खड़ी रहने से
काफी गन्दी हो गयी थी। मैंने अपने साथियों से गाड़ी के सभी शीशे बंद करने को कहा और
गाड़ी को सीधा झरने के नीचे ले जाकर खड़ा कर दिया । दो मिनट से भी कम समय में गाड़ी
चकाचक साफ़ हो गयी और हम आगे उखीमठ की तरफ चल दिए ।
चोपता (2700 मीटर) से उखीमठ लगभग 35 किमी की दुरी पर, 1311 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और लगातार
उतराई है। उखीमठ से आगे 41 किमी की दूरी पर रुद्रप्रयाग है । ऐसा माना जाता है कि उषा (वनासुर की बेटी) और
अनिरुद्ध (भगवान कृष्ण के पौत्र) के विवाह को यहां संपन्न किया गया था। उषा के नाम के बाद इस स्थान को उषामठ के नाम से रखा गया था और अब उसे
उखीमठ कहा जाता है। यहाँ कई कलात्मक प्राचीन मंदिर हैं जो उषा, भगवान शिव, देवी पार्वती, अनिरुद्ध और मांडत को समर्पित हैं। उखीमठ मुख्य रूप से रावलों का निवास
है जो केदारनाथ के प्रमुख पुजारी (पंडित) हैं। शानदार
हिमालय की सीमाओं के हिम से ढक हुए शिखर उखीमठ से स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। उखीमठ से साफ मौसम के दिन पर केदारनाथ शिखर, चौखंबा और सुंदर घाटी के सुंदर दृश्य
देखा जा सकता हैं।
उखीमठ पहुंचकर हम रांसी वाली सड़क पर
चल पड़े जो उखीमठ के मेन बाज़ार से होते हुए जाती है । पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि
ओम्कारेश्वर मंदिर इस रोड पर नहीं है ,हमें कुंड की तरफ चलना है और थोड़ा आगे जो
सड़क दायीं तरफ जाते हुए मिले उसी सड़क पर आगे मंदिर स्तिथ है । थोड़ी ही देर में हम
मंदिर के पास पहुँच गए और गाड़ी एक साइड में खड़ी कर मंदिर में दर्शन के लिए चले गए।
ओम्कारेश्वर मंदिर देश के पुराने मंदिरों में से एक है और सर्दियों के महीनों (नवंबर
से अप्रैल) के दौरान केदारनाथ और मद्महेश्वर से भगवान
शिव की मूर्तियों (डोली) को इस मंदिर में लाया जाता है और छह माह तक उखीमठ के इसी
मंदिर में इनकी पूजा की जाती है। पाँच केदार में से दो केदार (प्रथम व् द्वितीय )
का शीतकालीन निवास इस मंदिर में होने से यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है । जो लोग
गर्मियों में तीखी चढ़ाई चढ़ केदारनाथ और मदमहेश्वर नहीं जा सकते, वे लोग सर्दियों
में अपने इष्ट देव के इस मंदिर में दर्शन कर सकते हैं । इसी तरह तृतीय केदार
तुंगनाथ जी के शीतकालीन दर्शन मक्कू मठ में और चतुर्थ केदार रुद्रनाथ जी के शीतकालीन
दर्शन गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में किये जा सकते हैं । पंचम केदार कल्पेश्वर के
कपाट पुरे साल खुले रहते हैं । भगवान शिव को मई के शुरू में उनके मूल मंदिरों में एक शोभा यात्रा के रूप में
वापस ले जाया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, सम्राट मन्धाता ने अपने आखिरी वर्षों में अपने साम्राज्य सहित सब कुछ छोड़ दिया और उखीमठ
के पास आया और एक पैर पर खड़े होने से 12 साल तक तपस्या की। अंत में भगवान शिव ‘ध्वनि’, ‘ओमकार’ के रूप में प्रकट हुए, और उन्हें आशीर्वाद दिया। उस दिन से इस जगह को ओमकेरेश्वर के नाम से जाना जाने लगा।
ओम्कारेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद हम कुंड होते हुए
गुप्तकाशी चले गए जहाँ से हमें कालीमठ जाना था । उसकी चर्चा हम अगली पोस्ट में
करेंगे तब तक आप यहाँ की तस्वीरें देखें ।
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं ।
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चोपता |
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चोपता |
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चोपता |
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चोपता |
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चोपता |
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चोपता |
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इसी होटल में पिछली यात्रा में रुके थे |
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चोपता |
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चोपता |
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तुंगनाथ द्वार |
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चोपता |
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चोपता |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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दोगलबिट्टा |
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ओम्कारेश्वर
मंदिर |
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ओम्कारेश्वर
मंदिर |
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ओम्कारेश्वर
मंदिर |
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ओम्कारेश्वर मंदिर |
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ओम्कारेश्वर
मंदिर |
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ओम्कारेश्वर मंदिर |
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ओम्कारेश्वर मंदिर द्वार |
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नंदी जी |
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नंदी जी |
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नंदी जी |
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ओम्कारेश्वर
मंदिर |
प्राकृतिक कार वाश झरने के नीचे,आलू पराठे और दोगलबिट्टा की तस्वीरें, कुल मिलाकर शानदार यात्रा। बढ़िया नरेशजी।
ReplyDeleteधन्यवाद रचना जी .ब्लाग पर आपका स्वागत है .
Deleteगाड़ी धोने का तरीका अच्छा लगा
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई .
Deleteइस बार हमें भी चोपता जाने का अवसर मिला।केदारों से सम्बंधित जो जानकारी आपने दी सहगल साहब उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।कुछ बातों से तो हम भी अनजान थे।
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश जी.कुछ समय पहले तक केदारों से सम्बंधित जानकारी से हम भी अंनजान ही थे .
Deleteसुन्दर यात्रा वर्णन फोटो सहित
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक शर्मा जी .
Deleteबहुत बढ़िया,सहगल साहब👌
ReplyDeleteधन्यवाद ॐ भाई जी .
Deleteबहुत सुंदर फोटो। बढिया पोस्ट ,गाडी धौने का आईडिया बढिया लगा
ReplyDeleteधन्यवाद त्यागी जी .
DeleteNice Post with a lot of beautiful pictures.I Came to know about Omkareshwar Temple in Ukhimath first time through this Post only.
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी .
Deleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteवर्णन मज़ा आ गया...
मेरी solo यात्रा भी याद आ गई
उखीमठ गोपेश्वर गुप्त काशी...और वहाँ से बद्रीनाथ जी।।।
पिक्चर भी सभी बढ़िया...जैसा लगा मैं 8 साल फ़्लैशबैक मे चली गई ...वहीँ खडी अपने roll कैमरा से फ़ोटो खिंच रही हूँ।।
रास्ते का आनंद uk के स्टेट बस से लिया था... तब ये सारी जगह इतनी भीड़ भाल वाली नहीं थी..पूरे रास्ते इकी दुकी प्राइवेट कार मुश्किल से मिलती थी...वैसे मैंने पट नही खुला था तब गई थी।
धन्यवाद ज्योति जी .प्राकतिक सुन्दरता में तो अभी भी कमी नहीं है .लेकिन अब भीड़ काफी बाद जाती है यहाँ पर .
Deleteपौराणिक कथा के अनुसार, सम्राट मन्धाता ने अपने आखिरी वर्षों में अपने साम्राज्य सहित सब कुछ छोड़ दिया और उखीमठ के पास आया और एक पैर पर खड़े होने से 12 साल तक तपस्या की। अंत में भगवान शिव ‘ध्वनि’, ‘ओमकार’ के रूप में प्रकट हुए, और उन्हें आशीर्वाद दिया। उस दिन से इस जगह को ओमकेरेश्वर के नाम से जाना जाने लगा। वाह ! बहुत सुन्दर परिचय !! चित्र भी एक से एक दमदार
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई जी .संवाद बनाये रखिये :)
DeleteNice post with lot of nice pictures .
ReplyDeleteधन्यवाद जी .
Deleteशानदार👌👌👌 चोपता की तस्वीरे देखकर नवम्बर में चोपता की ठंडी याद आ गई 😊
ReplyDeleteयात्रा अपने अंतिम पड़ाव में है आगे देखते हैं कहाँ ले जाते हो ☺
धन्यवाद बुआ जी .अगली पोस्ट में आपको कालीमठ में चलेंगे .सम्पर्क बनाये रखिये .
Deleteजय भोलेनाथ
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई .
Deleteजय भोलेनाथ !
ReplyDeleteजाने कब हम पर कृपा होगी । बहुत बढ़िया लिखा जी । भोले बाबा सदा आप पर कृपा बनाये रखे । वैसे झरने वाली फ़ोटो भी डालते तो हम भी इस तरीके को सीख लेते ।
धन्यवाद पाण्डेय जी . झरने की फोटो न ले सके क्योंकि उस समय हम गाड़ी में ही बैठे हुए थे .अब लग रहा है कि फोटो लेते तो अच्छा आता .
Deleteजय भोले नाथ .