एकम्बरनाथर मंदिर ( एकाम्बरेश्वर मंदिर )
वरदराज
पेरुमाल मंदिर में दर्शन के बाद
हम एक ऑटो रिक्शा से कामाक्षी अम्मान मंदिर पहुँच गए , लेकिन अभी मंदिर खुलने का
समय नहीं हुआ था इसलिए मंदिर के प्रवेश द्वार अभी बंद ही थे । मालूम हुआ कि शाम को
चार बजे ही मंदिर के द्वार खुलेंगे, उससे पहले किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं
है। अब आधा घंटा यहाँ रूककर कर इंतजार करने से बेहतर था कि हम एकम्बरनाथ मंदिर
चलें जाएँ और वापसी में यहाँ दर्शन करें । कामाक्षी अम्मान मंदिर से एकम्बरनाथर
मंदिर की दुरी मुश्किल से एक किलोमीटर है । आप चाहे तो यहाँ से पैदल भी जा सकते
हैं । रास्ते में ही श्रीकाची कामकोटी मठ भी है।
मंदिर का पनोरोमिक व्यू |
थोड़ी ही देर में हम एकम्बरनाथर मंदिर पहुँच गए । मंदिर के प्रवेश द्वार खुले
थे । 5 रूपये एंट्रेंस फ़ीस और 15 रूपये (शायद ) कैमरे की पर्ची कटवाकर हम मंदिर के
अन्दर चले गए । मंदिर का गर्भ गृह अभी बंद था; तब तक मैंने समय का सदुपयोग करते
हुए मंदिर की काफी तस्वीरें ली । मंदिर काफी विशाल क्षेत्र (23 एकड़ ) में
बना हुआ है और काफी भव्य भी है । ठीक चार बजे मंदिर गर्भ गृह के कपाट खोल दिए गए।
इस समय तक काफी भीड़ जमा हो चुकी थी लेकिन अच्छी व्यवस्था होने के कारण ज्यादा देर
नहीं लगी और जल्दी ही हमने भगवान भोले नाथ के दर्शन कर लिए । मंदिर का गर्भ गृह
काफी लम्बा बना हुआ है और ऐसा माना जाता है कि यहाँ मौजूद शिवलिंग स्वयं माता
पार्वती का बनाया हुआ है । दर्शनों के बाद थोड़ी देर और यहाँ रुकने के बाद हम ऑटो
से वापिस कामाक्षी देवी मंदिर पहुँच गए।
अब कुछ जानकारी एकाम्बरनाथर मंदिर के बारे में :
एकम्बरनाथर मंदिर (Lord
Ekambaranathar Temple) : तमिलनाडु राज्य
के कांचीपुरम शहर में स्थित भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसे एकम्बरेश्वर
मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर उन मंदिरो में सम्मिलित हैं जो की
पञ्च तत्वों को समर्पित माने गये हैं। विशेष रूप से यह मंदिर पञ्च तत्व के पृथ्वी
भाग को समर्पित हैं। बाकी चार मंदिर तिरुवनाइकवल जम्बकेश्वरा (जल), चिदम्बरम नटराजर (गगन), तिरुवन्नामलाई अरुणाचलेशवरम (आग) और कलाहस्ति
नथर (हवा) का प्रतिनिधित्व करते है।
एकम्बरनाथ मन्दिर शहर के उतरी भाग मे है। इस मंदिर का निर्माण काल 7 वीं शताब्दी में माना
जाता हैं। सर्व प्रथम मन्दिर को पल्लवों
ने बनवाया था । 10 वीं सदी में चोल राजाओं द्वारा मन्दिर का नवर्निर्माण कराया गया
और 15 वीं सदी में विजयनगर के सम्राटों द्वारा राजगोपुरम सहित बड़े पैमाने पे
विस्तार कार्य संपादित किये गये। तंजावूर के नायकों का भी काफी योगदान रहा है।
11 खंड़ों में बना एकम्बरनाथर मंदिर दक्षिण भारत के सबसे ऊँचे मंदिरों में से
एक है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यहाँ की मूर्तियाँ है। एकम्बरनाथर मंदिर में बना 1000 स्तम्भों का मंडप भी काफी लोकप्रिय है। यह मन्दिर यहाँ अपूर्व श्रद्धा का केन्द्र है। यह
मन्दिर 23 एकड़ में बनाया गया था लेकिन वर्तमान में यह लगभग 40 एकड़ में फैला हुआ है। इसके मुख्य गोपुरम (प्रवेश द्वार ) की ऊँचाई 194 फीट है जो दक्षिण भारत के सबसे ऊँचे गोपुरम मे
से एक है । इस कारण यह गोपुरम एक अलग श्रेणी में रखा जाता है। प्राचीन 63 शैव भक्तों (नायनार) ने भी इस मन्दिर की गौरव
गाथा अपनी रचनाओं में की है। यहाँ स्थित 108 शिव मंदिरों में भी यह अग्रणी है मंदिर
में माँ पार्वती को गोवारीदेवी अम्मन के रूप में दर्शाया गया है।
मन्दिर के अहाते में गणेश जी का छोटा मन्दिर और एक तालाब भी है। दूसरे कई छोटे
छोटे मन्दिर भी बने हैं। मुख्य मन्दिर के
सामने एक बड़ा सा मंडप है। मंडप के अन्दर नंदी जी विराजमान हैं। मन्दिर प्रवेश के
लिए 5 रूपये का शुल्क लगता है और कैमरे के लिए 15 या 20 रूपये का । गर्भ गृह को
छोड़कर मंदिर में कहीं भी फोटोग्राफी पर प्रतिबंध नहीं है। विदेशियों के लिए भी मन्दिर
प्रवेश पर कोई रोक टोक नहीं है परिक्रमा पथ के रुप में बहुत ही चौड़ा गलियारा बना
हुआ है । इसमें 1000 विशाल खम्बे
बने हैं। दीवार के बगल से ही 1008 शिव लिंगों की कतार है। मन्दिर के पीछे एक जगह
एक चबूतरा और मन्दिर बना है जहाँ एक आम का
पेड़ है। इस पेड़ की शाखाओं में अलग अलग स्वाद के फल लगते हैं। मन्दिर
के अहाते में ही मंडप युक्त तालाब है जिसे शिव गंगा तीर्थम कहते हैं।
नव ग्रहों के मंडप भी है इस में सभी गृह अपने अपने वाहनों पर आरूढ़ हैं। अन्दर
ही एक विष्णु का मन्दिर भी है जिसे वैष्णवों के 108 दिव्य स्थलों में
एक माना जाता है । बताया गया कि यहाँ माघ
माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली सप्तमी (रथ सप्तमी) के दिन गर्भ गृह में स्थित
शिव लिंग पर सूर्य की किरणें सीधी पड़़ती है।
मंदिर मे एक बहुत प्राचीन आम का पेड़ है जो लगभग 3500 से 4000 वर्ष पुराना माना
जाता है। इस पेड़ की हर शाखा पर अलग-अलग रंग के आम लगते है और इनका स्वाद भी अलग
अलग है। किवदंती है कि एक बार माता पार्वती ने शिव जी को प्राप्त करने के लिए बेगवती
नदी के किनारे इसी आम के पेड़ के नीचे मिटटी या बालू से ही एक शिवलिंग बना कर घोर तपस्या
करनी शरू कर दी । जब शिव ने ध्यान
पर पार्वती जी को तपस्या करते हए देखा तो महादेव ने माता पार्वती की परीक्षा लेने
के उद्देश्य से अपनी जटा के गंगा जल से सब
जगह पानी पानी कर दिया। जल के तेज गति से पूजा मे बाधा पड़ने लगी तो माता पार्वती
ने उस शिवलिंग जिसकी वह पूजा कर रही थी उसे गले लगा लिया जिसे से शिव लिंग को कोई
नुकसान न हो। भगवान शंकर जी यह सब देख कर बहुत खुश हए और माता पार्वती को दर्शन
दिये। शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने को कहा तो माता पार्वती ने विवाह की
इच्छा व्यक्त की। महादेव ने माता पार्वती से विवाह कर लिया।
आज भी मंदिर के अंदर वह आम का पेड़ हरा भरा देखा जा सकता है। माता पार्वती और
शिव जी को समर्पित यह मंदिर अब एकाम्बरेश्वर के नाम से जाना जाता हैं। माता
पार्वती द्वारा निर्मित शिवलिंग ही यहाँ स्थापित है और कहा जाता है कि उस पर माता पार्वती
के हाथ के निशान बने हुए हैं ।
मंदिर में सुबह 5:30 बजे से रात 10 बजे तक छह दैनिक अनुष्ठान किये जाते हैं, और पूरे वर्ष में
कुल बारह वार्षिक त्यौहार मनाये जाते हैं। तमिल महीने पंगुनी (मार्च-अप्रैल) में मनाये जाने वाला पंगुनी
उथिराम उत्सव इस मंदिर और कस्बे
का प्रमुख त्यौहार हैं।
कैसे पहुंचे – मंदिर कांचीपुरम बस स्टैंड से 2 किलोमीटर और कांचीपुरम
रेलवे स्टेशन से बिलकुल नजदीक है। मंदिर चेन्नई –कांचीपुरम मार्ग पर ही स्तिथ है ।
दर्शन समय - मंदिर सुबह 6 से 12 बजे तक और शाम को 4 से आठ बजे तक खुला रहता है।
कहाँ ठहरें : कांचीपुरम में रुकने के लिए हर बज़ट के लिए काफी होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध
हैं ।
अगली पोस्ट में आपको
कांचीपुरम के कामाक्षी देवी मंदिर
में लेकर लेकर चलेंगे, तब तक आप यहाँ की कुछ
तस्वीरें देखिये ।
इस यात्रा के पिछले भाग
पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं ।
भाग 6 : वरदराज
पेरुमाल मंदिर, कांचीपुरम
प्रवेश द्वार से पहले |
राजा गोपुरम |
मंदिर शिखर |
गर्भ गृह के सामने |
मंदिर तालाब -शिव गंगा तीर्थम |
शिव गंगा तीर्थम |
मंडपम |
मंडपम |
गर्भ गृह का शिखर |
4 बजे की दर्शन की समय सीमा के पालन में कितने एडजस्टमेंट करने पड़ते है....बढ़िया मंदिर....कांचीपुरम के मंदिर बहुत अच्छे है....
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई .निस्संदेह कांचीपुरम के मंदिर बहुत अच्छे है.
Deleteशानदार तस्वीरें एवं बढ़िया जानकारी .
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी .
Deleteबढ़िया सम्पूर्ण पोस्ट .पञ्च तत्वों को समर्पित मंदिरों के बारे में पहली बार सुना .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी .
Deleteदक्षिण भारत मे यदि जगह के हिसाब से देखा जाए तो बहुत लंबे चौड़े जमीन पर इन मंदिरों के निमार्ण किया गया है । आपके एकम्बरेश्वर मन्दिर की यात्रा वर्णन बहुत अच्छा लगा , देखने ली ललक चित्रो के माध्यम से कुछ हद तक दूर भी हुई ।
ReplyDeleteकुल मिलाकर जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट
धन्यवाद रीतेश गुप्ता जी .
Deleteफोटो तो शानदार हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद हरेंदर भाई .
Deleteबहुत अच्छी यात्रा दक्षिण भारत की .फ़ोटो भी खूबसूरत .
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता दी .
Deleteउम्दा पोस्ट और बेहतरीन तस्वीरें।
ReplyDeleteधन्यवाद जी .
Deleteदक्षिण भारत के मंदिर कुछ अलग से ही लगते हैं
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी .आपकी बात से पूर्णत सहमत .
Deleteमाता पार्वती द्वारा निर्मित शिवलिंग ही यहाँ स्थापित है और कहा जाता है कि उस पर माता पार्वती के हाथ के निशान बने हुए हैं । आस्था और विश्वास ऐसी बातें हैं जिन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता लेकिन फिर भी कुछ संदेह तो उत्पन्न होता है !! खैर उस विषय पर नहीं जाऊँगा !! जिस फोटो में मंदिर के शिखर पर कबूतर बैठे हैं वो जबरदस्त लगा
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .यूँ ही उत्साहवर्धन करते रहें .
Deleteबेहतरीन पोस्ट .शानदार तस्वीरें .
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ साहब .
Deleteखूप छान माहीती
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी
very nice information