कांचीपुरम - वरदराज
पेरुमाल मंदिर
( Varadharaja Perumal Temple)
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की तिरुपति
बाला जी के दर्शन के बाद वापिस तिरुपति आकर हम लोग देवी
पद्मावती मंदिर में दर्शन करने चले गए । दर्शनों के बाद रात्रि 9 बजे के करीब हम
अपने कमरे पर वापिस पहुँच गए । अब आगे !!!
अगले दिन सुबह जल्दी से तैयार होकर लगभग 8:15 बजे तक तिरुपति के बस स्टैंड पर
पहुँच गए। यहाँ से आज हमें कांचीपुरम जाना था जहाँ दिन भर मंदिर देखने के बाद शाम
को कांचीपुरम से 40 किलोमीटर दूर चिंगालपट्टू रेलवे स्टेशन से हमें चेन्नई से आने
वाली रामेश्वरम की ट्रेन पकड़नी थी। वैसे ट्रेन में मेरी बुकिंग चेन्नई से ही थी
लेकिन चेन्नई जाकर वहाँ की बीच पर घूमने के बजाए मैंने भारत की सप्त पुरियों में
से एक सांस्कृतिक नगर कांचीपुरम जाना ज्यादा बेहतर समझा। तिरुपति से कांचीपुरम लगभग 110 किमी दूर है और हर 15 मिनट
में बस उपलब्ध है । हमें भी जल्दी ही कांचीपुरम की बस मिल गयी और हम अपनी मंजिल की
ओर रवाना हो गए ।
“ सप्तपुरी का अर्थ हिन्दू धर्म और भारत के 7 पवित्र शहरो से है।
पुराणानुसार ये सात नगर या तीर्थ जो मोक्षदायक कहे गये हैं। जिनमे अयोध्या (राम), मथुरा (कृष्णा), द्वारका (कृष्णा), वाराणसी (शिव), हरिद्वार
(विष्णु), उज्जैन (शिव) और कांचीपुरम (पार्वती) शामिल है।
ऋषियों के अनुसार सप्त पूरी के यह सात शहर सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के बावजूद
भारत की एकता को भी दर्शाते है।“
अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्तिका
पुरी द्वारावती चैव,सप्तैता मोक्षदायिका ।।
तिरुपति से कांचीपुरम जाने वाला मार्ग तो शुरू के 30-35 किलोमीटर तो चेन्नई
हाईवे से ही होकर गुजरता है । उससे आगे का रास्ता छोटे गाँवो और नगरों से होकर ही
है। पुरे सफ़र में बस की गति काफी धीमी रही और कांचीपुरम पहुँचते -2 दोपहर के लगभग 12
बज गए । कांचीपुरम बस स्टैंड पर बस से उतरते ही मंदिर घूमाने के लिए बहुत से ऑटो
वालों ने घेर लिया। 500 रूपये से लेकर 700 तक में सब तैयार थे । बड़ी मुश्किल से
उनसे पीछा छुड़ाया और एक- एक करके सभी मंदिरों में खुद ही घूमने का निश्चय किया ।
अब एक और दिक्कत सामने आई , मालूम हुआ की यहाँ सभी मंदिर दोपहर 12 बजे से शाम 4
बजे तक बंद रहते हैं । 4 बजे के बाद हमारे पास काफी कम समय बचने वाला था । वैसे कांचीपुरम
बस स्टैंड पहुचने से पहले बस एकाम्बरनाथ मन्दिर के पास से ही आती है , अगर हम वहीँ
उतर जाते तो वो मंदिर देख सकते थे । एकाम्बरनाथ मन्दिर दोपहर 12:30 तक खुला रहता
है ; लेकिन उस समय न तो हमें इस बारे में मालूम था , न ही वहाँ बस रुकी । हमें
अपने सामान को भी पहले कहीं जमा करवाना था, इस साथ लेकर घूमना बहुत मुश्किल था ।
अनिश्चय की स्तिथि में ही एक रेस्टोरेंट में चले गए । खाने के बाद दुकानदार से
अपना सामान कुछ घंटों के लिए वहीँ रखने का पूछा तो कुछ हिचक के बाद मालिक तैयार हो
गया। दुकानदार से बातचीत के बाद सबसे पहले
हमने विष्णु मंदिर जाने का निश्चय किया जो शहर से लगभग पांच किमी की दुरी पर है ।
100 रूपये में एक ऑटो बुक किया और मंदिर की और चल पड़े । चलते ही ऑटो वाला हमें साड़ियां
खरीदने के लिए बोलने लगा । हमने मना किया तो बोला न खरीदना ,देख लो ,
कांचीपुरम आये हो तो यहाँ की साड़ियाँ जरूर
देखो; पसंद आई तो ले लेना , आप नहीं पहनते को किसी को गिफ्ट कर देना। वैसे यहाँ के
अधिकतर ऑटो वाले को न तो हिंदी बोलनी आती है न ही इंग्लिश ,फिर भी तमिल-टूटी फूटी
इंग्लिश ,हिंदी के कुछ शब्दों और इशारों से अपनी बात समझा ही देते हैं । यहाँ सभी
ऑटो वाले मंदिर घूमाने से ज्यादा शॉपिंग करवाने में रूचि रखते हैं, सीधी सी बात है
उनको इस काम के लिए कमीशन भी मिलती है । हमारे ऑटो वाला भी हमें बार-बार कहने लगा ।
हमारे पास भी समय था ,सोचा मंदिर तो बंद होगा चलो साड़ियां देख लेते हैं । ऑटो वाला
एक शोरूम पर ले गया और बाहर बैठकर हमारा इंतजार करने लगा और हम बलि का बकरा बनने
के लिए अन्दर शोरूम में चले गए । अन्दर जाकर देखा तो शोरूम में मेरे जैसे कई बलि
के बकरे बैठे हुए थे। वैसे तो मेरी पत्नी साड़ी बहुत कम पहनती है फिर भी 3-4
साड़ियाँ पसंद करके पैक करवा ली और ख़ुशी से आकर ऑटो में बैठ गयी । वैसे शॉपिंग से
सभी स्त्रियाँ खुश होती हैं । ऑटो वाला भी खुश था और उसने थोड़ी ही देर में हमें वरदराज
पेरुमाल मंदिर (विष्णु मंदिर ) पहुँचा दिया । मंदिर में दर्शन तो बंद थे लेकिन
मुख्य दरवाजा खुला था । हम अन्दर जाकर आराम से फोटोग्राफी कर सकते थे और सारा
मंदिर घूम सकते थे ।
अब थोड़ी जानकारी कांचीपुरम और उसके मंदिरों के बारे में :-
कांचीपुरम भारत के तमिलनाडु राज्य का एक नगरमहापालिका
क्षेत्र है। इसे मन्दिरों का शहर कहा जाता है। यह कांचीपुरम् जिला का मुख्यालय भी
है। इसे पूर्व में कांची या काचीअम्पाठी भी कहते थे। कांचीपुरम ईसा की आरम्भिक
शताब्दियों में महत्त्वपूर्ण नगर था। सम्भवत: यह दक्षिण भारत का ही नहीं बल्कि
तमिलनाडु का सबसे बड़ा केन्द्र था। बुद्धघोष के समकालीन प्रसिद्ध भाष्यकार धर्मपाल
का जन्म स्थान यहीं था, इससे अनुमान किया जाता है कि यह बौद्धधर्मीय
जीवन का केन्द्र था। यहाँ के सुन्दरतम मन्दिरों की परम्परा इस बात को प्रमाणित
करती है कि यह स्थान दक्षिण भारत के धार्मिक क्रियाकलाप का अनेकों शताब्दियों तक
केन्द्र रहा है। कांचीपुरम 7वीं शताब्दी से लेकर 9वीं शताब्दी में पल्लव साम्राज्य
का ऐतिहासिक शहर व राजधानी हुआ करती थी। छ्ठी शताब्दी में पल्लवों के संरक्षण से
प्रारम्भ कर पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी तक विजयनगर के राजाओं के संरक्षणकाल
के मध्य 1000 वर्ष के द्रविड़ मन्दिर शिल्प के विकास को यहाँ एक ही स्थान पर देखा जा
सकता है। 'कैलाशनाथार मंदिर' इस कला के चरमोत्कर्ष का
उदाहरण है। एक दशाब्दी पीछे का बना 'वैकुण्ठ पेरुमल' इस कला के सौष्ठव का सूचक है। उपयुक्त दोनों
मन्दिर पल्लव नृपों के शिल्पकला प्रेम के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
कांची हरिहरात्मक पुरी है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं। कांची को
किसने और कब बसाया, यह कोई नहीं
जानता। लेकिन मंदिरों की ऐतिहासिकता के आधार पर इतिहासकार इसे ईसा पूर्व से
प्रारंभिक ईसा काल में बसाया गया मानते है क्योंकि यहाँ स्थित अनेक आकर्षक और
प्राचीन मंदिर यहाँ की ख़ूबसरती में चार चाँद लगाने के साथ पुरानी यादों को भी
ताज़ा कर देते हैं। चेन्नई से 45 मील
दक्षिण-पश्चिम में बेगावती नदी के किनारे स्थित कांचीपुरम के मशहूर मंदिरों में
वरदराज पेरुमाल मंदिर भगवान विष्णु के लिए, एकम्बरनाथर मंदिर भगवान शिव के पाँच रूपों में से एक को
समर्पित है। इसके अलावा, कामाक्षी अम्मान
मंदिर, कुमारकोट्टम, कच्छपेश्वर मंदिर, कैलाशनाथ मंदिर आदि भी मुख्य हैं। आज भी कांचीपुरम और उसके
आसपास लगभग 100 शानदार मंदिर हैं पर प्राचीन ज़माने में मंदिरों की संख्या क़रीब एक हज़ार थी।
कांचीपुरम सिल्क फैब्रिक और हाथ से बुनी रेशमी साड़ियों के लिए भी यह देश-दुनिया
में मशहूर है। बुनाई करने वाले उच्च क्वालिटी की सिल्क और शुद्ध सोने के तार इन
साड़ियों पर इस्तेमाल कर एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत साड़ियों का निर्माण करते हैं।
इसलिए इसे सिल्क सिटी भी कहते हैं। कुछ ख़रीदने की इच्छा हो तो इन सिल्क की
साड़ियों की शॉपिंग ज़रूर करें क्योंकि दूसरे शहरों के मुकाबले ये यहाँ उचित व कम
दामों में मिल जाती हैं।
वैसे तो कांचीपुरम शहर में छोटे बड़े कई मंदिर हैं जिनमे से कई काफी प्रसिद्ध
हैं लेकिन मुख्यतः चार ही हैं।
1.
वरदराज पेरुमल
मंदिर - भगवान विष्णु
2.
एकम्बरनाथर मंदिर
- भगवान शिव
3.
कामाक्षी अम्मान
मंदिर - देवी पार्वती
4.
कैलाशनाथार मंदिर - भगवान शिव
आज हम आपको वरदराज पेरुमाल मंदिर ले चलेंगे ।
वरदराज पेरुमल मंदिर :
दक्षिण में “पेरुमल” का प्रयोग वैष्णव पंथ से
जुड़ा है इसे भगवान विष्णु के लिए इस्तेमाल किया जाता है वरदराज पेरुमाल मंदिर तमिलनाडु राज्य के
कांचीपुरम शहर में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित है। कुल 23 एकड़ मे फैला यह
मंदिर विशालता में यह कांचीपुरम के एकंबरनाथ मंदिर के बाद दूसरे स्थान पर आता है। सन
1053 में चोलों ने वरदराज पेरुमाल
मंदिर को बनवाया था। कुलोत्तुंग प्रथम और उसके बेटे विक्रम चोल ( 1118- 1135) ने
इस मंदिर का पुनरुद्धार करवाया था। हालांकि विक्रम
चोल स्वयं शिव के अनन्य भक्त थे पर उन्होने वरदराज पेरुमाल मंदिर को विकसित करने
में बिना भेदभाव किये पूरी रूचि दिखाई। । 14 वीं शताब्दी में एक दीवार और गोपुरम
का निर्माण हुआ। वरदराज पेरुमाल मंदिर में भगवान विष्णु को देवराजस्वामी के रूप
में पूजा जाता है। मुख्य मंदिर में भगवान विष्णु की खड़ी प्रतिमा है जो पश्चिम की
ओर देख रहे हैं। भव्य और विशालकाय वरदराज पेरुमाल मंदिर कारीगरों की कला का
उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मन्दिर वैष्णवों के 108 दिव्य स्थलों में महत्वपूर्ण स्थान
रखता है।
विशाल कल्याण मंडपम - मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में है यहाँ सफेद
रंग का एक विशाल गोपुरम बना है। 7 मंजिले इस गोपुरम की ऊंचाई लगभग 130 फीट है लेकिन
यह पूर्व दिशा में बने गोपुरम से छोटा है। गोपुरम से अंदर प्रवेश करने के बाद
बायीं तरफ एक 100 स्तम्भों वाला एक हॉल है
जिसे कल्याण मंडपम कहा जाता है जिसमें एक से एक कलात्मक प्रतिमाओं की भरमार है । इसके छत के चारों
कोने पर एक ही शिला को तराश कर बनायी गयीं जंजीरें लटकी हुई है। ऐसी ही जंजीरें
कुछ छोटे परन्तु ऊँचे मंडपों में भी लगी हैं। इस हॉल को विजयनगर के राजाओं ने
बनवाया था। इस हाल के प्रत्येक स्तंभ पर शानदार नक्काशी की गई है। जिसमे अधिकतर
महाभारत और रामायण काल के चित्रों को उकेरा गया है । इन्हें देखकर आप अनुमान लगा
सकते हैं उस समय वास्तुकला कितनी समृद्ध रही होगी । भव्य और विशालकाय वरदराज पेरुमाल
मंदिर उस समय के दक्षिण भारतीय कारीगरों की कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंडपम
575 वर्ग मीटर में फैला हुआ है।
इस मंडप के पीछे एक तालाब है। विष्णु की 40 फीट लम्बी मूल प्रतिमा गूलर की
लकड़ी से बनी थी जो इस तालाब में दबाकर रखी गयी है। 40 वर्ष में एक बार उसे बाहर
निकाला जाता है। मुख्य मन्दिर/गर्भगृह एक टीले पर बना है जिसे हस्तगिरि कहा जाता
है। गर्भ गृह के दो तल हैं। भूतल
में नरसिंह हैं और ऊपर प्रथम तल में विष्णु की खड़ी प्रतिमा है। उनके चेहरे
की मुस्कुराहट देख् भक्त गण अभिभूत हो उठते है। एक अलग खंड के छत पर दो छिपकलियाँ
बनी हैं। एक रजत की और दूसरी स्वर्ण की।
लोग इन्हें छूते हैं और मान्यता है कि ऐसा करने पर उनके दुखों का निवारण
होता है। इनके पीछे भी कई मिथक हैं। नजदीक
ही लक्ष्मी जी (जिन्हें “पेरुन देवी थायार” संबोधित किया जाता है) एक अलग प्रकोष्ठ में विराजमान हैं।
सालाना उत्सव – सालाना गरुड़ोत्सव इस मंदिर का प्रमुख त्योहार है। हर साल
मई-जून में इसे काफी रंगीन व आकर्षक तरीके से मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर की
भव्य सजावट की जाती है। इस समय हज़ारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यह देश भर से
विष्णु भक्तों को बरबस अपनी ओर खींचता है। वहीं दिसंबर जनवरी के मध्य मंदिर में
वैकुंठ एकादशी मनाई जाती है। कई वैष्णव संतों ने वरदराज पेरूमल की स्तुतियां अपने
तमिल भजनों में गाई है।
कैसे पहुंचे –वरदराज पेरुमल मंदिर कांचीपुरम बस स्टैंड से 5 किलोमीटर और
कांचीपुरम रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर के आसपास छोटा सा
बाजार भी है।
दर्शन समय - मंदिर सुबह 6 से 12 बजे तक और शाम को 4 से आठ बजे तक खुला रहता है।
कहाँ ठहरें : कांचीपुरम में रुकने के लिए हर बज़ट के लिए काफी होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध
हैं ।
अगली पोस्ट में आपको कांचीपुरम
के एकम्बरनाथर मंदिर में लेकर लेकर चलेंगे तब तक आप यहाँ की कुछ तस्वीरें देखिये ।
इस यात्रा के पिछले भाग
पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं ।
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मंदिर का मुख्य गर्भ गृह |
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भगवान विष्णु का मंदिर है तो गरुड़ जी भी होंगे |
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मंदिर शिखर पर भगवान् विष्णु |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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तालाब में स्तिथ मंदिर |
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कल्याण मंडपम |
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मंदिर बंद था बरामदे में कैची गेट लगा था , कैमरे को कैची गेट से अन्दर डाल कर फुल ज़ूम द्वारा गर्भ गृह स्तिथ भगवान का चित्र |
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मंदिर शिखर पर मूर्तियों के ज़ूम से लिए हुए चित्र |
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मंदिर शिखर पर मूर्तियों के ज़ूम से लिए हुए चित्र |
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मंदिर शिखर पर मूर्तियों के ज़ूम से लिए हुए चित्र |
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मंदिर शिखर पर मूर्तियों के ज़ूम से लिए हुए चित्र |
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मंदिर शिखर पर मूर्तियों के ज़ूम से लिए हुए चित्र |
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मंदिर का तालाब |
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पूर्वी gopuram |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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कल्याण मंडपम |
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पश्चिमी गोपुरम |
जानकारी से भरी बढ़िया पोस्ट नरेश भाई . जय हो .
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी ..जय हो
Deleteकाफी नाम सुना है कांचीपुरम का । 3-4 साड़ियां कितने में खरीदी भाभी ने
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी . कल मैडम ने बताया की साड़ियाँ 3-4 नहीं सिर्फ तीन ही थी .चूँकि हमारी मैडम साड़ी बेहद कम पहनती हैं तो ज्यादा महगी नहीं ली .हाँ सिल्क की साड़ी मंहगी पड़ी थी कॉटन की साड़ी के मुकाबले .
Deleteसजीव चित्रों के साथ बेहद अच्छी जानकारी दी है आपने कांचीपुरम और वरदराज पेरुमाल मंदिर की .साधुवाद
ReplyDeleteधन्यवाद राज कुमार जी .
Deleteदक्षिण में अधिकतर मंदिर 12 से 4 बंद रहते है...कई बार प्लानिंग में इस वजह से दिक्कत हो जाती है...बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई . सही कहा दिन का आधा समय मंदिर बंद होने से प्लानिंग में दिक्कत हो जाती है.
Deleteधन्यवाद शास्त्री जी .
ReplyDeleteजब कोई पति किसी चीज को दिलाने में पत्नी से भी ज्यादा interest दिखाए, तो बेहद खुशी होती है,जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। बढ़िया वणिृत पोस्ट और मस्त फोटोज़। ..... Without pre- planning, it's really a surprising gift for me.
ReplyDeleteThanks dear.
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट और शानदार तस्वीरें .
ReplyDeleteThanks Ajay ji..
Deleteबेहद अच्छी जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद संजय भास्कर जी
Deleteद्रविड़ियन शैली में बने मंदिर बहूत आकर्षित करते हैं । उनमें बने भित्तिचित्र की तो बात ही क्या है , अद्भुत । बढ़िया वृतान्त लिखा है नरेश जी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई .
Deleteबेहतरीन पोस्ट .शानदार तस्वीरें .
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ साहब .
DeleteVery informative, thanks for posting such informative content. Expecting more from you.
ReplyDeleteChennai Matrimonial Services
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