घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद हम लोग बस से शिर्डी
चले गए । रात वहाँ रुके , मंदिर में साईं बाबा की समाधी देखी और अगले दिन सुबह शनि सिग्नापुर चले गये और वहाँ से घूमते घुमाते शाम तक औरंगाबाद शहर पहुँच गए । यहाँ हमारा
बारह ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर के दर्शन करने का
प्रोग्राम था। अगले दिन सुबह जल्दी से तैयार होकर औरंगाबाद बस स्टैंड पहुँच गए और
वहाँ से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने के लिए बस ले ली और लगभग एक घंटे की
यात्रा के बाद वहाँ पहुँच गए ।
Grishneshwar Jyotirling Temple |
महाराष्ट्र में औरंगाबाद से 35 किलोमीटर और दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर वेरुलगाँव के पास स्थित घृष्णेश्वर
महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे
घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की
प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई
होल्कर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश
ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है।
मंदिर गाँव के बाहर ही है और काफी प्राचीन है। सोमवार का दिन होने के बावजूद
यहाँ कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने ही एक छोटा सा बाज़ार
है जहाँ स्थानीय लोग पूजा सामग्री और अभिषेक के लिए अन्य सामान बेच रहे थे । बहुत
से गाँव वाले अपने बर्तनों में ही शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए कच्चा दूध भी बेच रहे
थे । हम भी दूध ,विल्व पत्र आदि लेकर मंदिर में प्रवेश कर गए । ज्यादा भीड़ न होने
के कारन कुछ ही देर में गर्भ गृह के सामने पहुँच गए । गर्भ गृह के सामने एक छोटा
सा बरामदा है जहाँ नंदी की एक प्राचीन प्रतिमा बनी हुई है । यहाँ मन्दिर के
गर्भ गृह में प्रवेश के लिए सभी पुरुषों को कमर के ऊपर के सभी वस्त्र उतारने
पड़ते हैं अन्यथा आप को बाहर से ही दर्शनों से काम चलाना पड़ता है। हम लोगों ने
भी अपनी शर्ट बनियान उतार कर बाहर रख दी और मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश कर गए । वहाँ
जाकर आराम से दर्शन किये और दुग्धाभिषेक किया और थोड़ी देर बाद मंदिर से बाहर आ गए ।
मंदिर में एक बड़ा सा प्रागंण है।
मंदिर से बाहर आने के बाद हम इसके दायीं तरफ स्तिथ संकल्पित समाधी मंदिर में
चले गए । यहाँ से हमने घृष्णेश्वर मंदिर के काफी फोटो भी लिए । यहाँ पास में ही
छत्रपति शिवाजी के पिता शाह जी महाराज की समाधी भी है जो रख रखाव के अभाव में
जीर्ण हो रही है । थोड़ी देर आस पास घुमने के बाद हमने वहाँ चाय और पकोड़ों का
नाश्ता किया और फ़िर वापसी की यात्रा शुरू कर दी ।वापसी में हम पास ही स्तिथ एलोरा
केव्स और दौलताबाद
किले में गए और शाम को औरंगाबाद
के बीबी के मकबरे पर भी , और फिर रात को औरंगाबाद स्टेशन पहुँच वापसी की
यात्रा शुरू कर दी ।
अब थोड़ी जानकारी घृष्णेश्वर मंदिर के बारे में और फिर यहाँ की तस्वीरें ........
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पौराणिक कथा:
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव अपने भक्तों के कल्याण के लिए पूरी धरती पर
जगह-जगह भ्रमण करते रहे हैं। अपने भक्तों की उपासना से अभिभोर होकर भगवान शिव ने
उन्हें दर्शन दिया और अपने भक्तों के अनुरोध पर अपने अंश रूपी शिवलिंग के रूप में
वहां सदा के लिए विराजमान हो गए। शिवलिंग के रूप में भगवान शिव जिन-जिन स्थानों पर
विराजमान हुए, उन्हें आज
प्रसिद्ध तीर्थस्थलों के रूप में महत्व दिया जाता है। वैसे तो धरती पर असंख्य
शिवलिंग स्थापित हैं लेकिन इनमें 12 शिवलिगों को
ज्योतिर्लिंग का विशेष दर्जा प्राप्त है। इन्हीं
ज्योतिर्लिंगों में द्वादशवें ज्योतिर्लिंग का नाम ‘घुश्मेश्वर’ है। इन्हें ‘घृष्णेश्वर’ और ‘घुसृणेश्वर’
के नाम से भी जाना जाता है।
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में पुराणों में यह कथा वर्णित है- दक्षिण देश में
देवगिरिपर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहता था।
उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था दोनों में परस्पर बहुत प्रेम था। किसी प्रकार का कोई
कष्ट उन्हें नहीं था। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। ज्योतिष-गणना से पता चला कि
सुदेहा के गर्भ से संतानोत्पत्ति हो ही नहीं सकती। सुदेहा संतान की बहुत ही इच्छुक
थी। उसने सुधर्मा से अपनी छोटी बहन से दूसरा विवाह करने का आग्रह किया।
पहले तो सुधर्मा को यह बात नहीं जँची। सुधर्मा ने द्वितीय विवाह से पूर्व अपनी
पत्नी को बहुत समझाया था कि तुम इस समय अपनी बहन से प्यार कर रही हो, इसलिए मेरा विवाह करा रही हो,
किन्तु जब इसे पुत्र
उत्पन्न होगा,तो तुम उससे ईर्ष्या करने लगोगी। सुदेहा ने
संकल्प लिया कि वह कभी भी अपनी बहन से ईर्ष्या नहीं करेगी। इसलिए सुधर्मा अपनी पत्नी का आग्रह टाल नहीं पाए और उसकी
छोटी बहन घुश्मा को ब्याह कर घर ले आए। विवाह के बाद घुश्मा एक दासी की तरह अपनी
बड़ी बहन की सेवा करती थी, तथा सुदेहा भी उससे अतिशय प्यार करती थी। घुश्मा
अत्यंत विनीत और सदाचारिणी स्त्री थी। वह भगवान् शिव की अनन्य भक्ता थी। प्रतिदिन
एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर हृदय की सच्ची निष्ठा के साथ उनका पूजन करती थी। पूजा करने के बाद
उन शिवलिंगों को समीप के तालाब में विसर्जित कर देती थी।
भगवान शिवजी की कृपा से थोड़े ही दिन बाद उसके गर्भ से अत्यंत सुंदर और स्वस्थ
बालक ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म से सुदेहा और घुश्मा दोनों के ही आनंद का पार न
रहा। दोनों के दिन बड़े आराम से बीत रहे थे। लेकिन न जाने कैसे थोड़े ही दिनों बाद
सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगी, मेरा तो इस घर में कुछ है नहीं, जो है सब कुछ
घुश्मा का है। मेरे पति पर भी उसने अधिकार जमा लिया, संतान भी उसी की है। यह
कुविचार धीरे-धीरे उसके मन में बढ़ने लगा। इधर घुश्मा का वह बालक भी बड़ा हो रहा
था। धीरे-धीरे वह जवान हो गया। उसका विवाह भी हो गया। अब तक सुधर्मा के मन का
कुविचार रूपी अंकुर एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। अंततः एक दिन उसने घुश्मा
के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला। उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब
में फेंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को विसर्जित करती थी।
सुबह होते ही सबको इस बात का पता लगा। पूरे घर में कुहराम मच गया। सुधर्मा और
उसकी पुत्रवधू दोनों सिर पीटकर फूट-फूटकर रोने लगे। लेकिन घुश्मा नित्य की भाँति
भगवान् शिव की आराधना में तल्लीन रही। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूजा समाप्त करने के
बाद वह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से
लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा।
वह सदा की भाँति आकर घुश्मा के चरणों पर गिर पड़ा। जैसे कहीं आस-पास से ही घूमकर आ रहा हो।
इसी समय भगवान् शिव भी वहाँ प्रकट
होकर घुश्मा से वर माँगने को कहने लगे। वह सुदेहा की घनौनी करतूत से अत्यंत
क्रुद्ध हो उठे थे। अपने त्रिशूल द्वारा उसका गला काटने को उद्यत दिखलाई दे रहे
थे। घुश्मा ने हाथ जोड़कर भगवान् शिव से कहा- 'प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी उस अभागिन बहन को
क्षमा कर दें। निश्चित ही उसने अत्यंत जघन्य पाप किया है किंतु आपकी दया से मुझे
मेरा पुत्र वापस मिल गया। अब आप उसे क्षमा करें और प्रभो! मेरी एक प्रार्थना और है, लोक-कल्याण के लिए आप इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास
करें।' घुश्मा की
प्रार्थना और वर-याचना से प्रसन्न महेश्वर शिव ने उससे कहा कि मैं सब लोगों को सुख
देने के लिए हमेशा यहाँ निवास करूँगा। मेरा ज्योतिर्लिंग ‘घुश्मेश’ के नाम से संसार
में प्रसिद्ध होगा। यह सरोवर भी शिवलिंग का आलय अर्थात् घर बन जाएगा और इसीलिए यह
संसार में शिवालय के नाम से प्रसिद्ध होगा। भगवान् शिव ने
उसकी ये दोनों बातें स्वीकार कर लीं। ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वह वहीं
निवास करने लगे। सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण वे यहाँ घुश्मेश्वर
महादेव के नाम से विख्यात हुए। घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा पुराणों में बहुत
विस्तार से वर्णित की गई है। इनका दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई है।
मंदिर की समय सारणी
:
मंदिर का समय ( प्रतिदिन
) –सुबह 5:00 से रात 8 बजे तक
कैसे पहुंचे:
दौलताबाद महाराष्ट्र के औरंगाबाद के बाहरी इलाके में स्थित है। श्री घुश्मेश्वर
ज्योतिर्लिंग औरंगाबाद से 35 किलोमीटर और दौलताबाद स्टेशन से लगभग 18 किलोमीटर दूर
स्थित है। दौलताबाद रेल और सड़क मार्ग से पूरे देश से जुड़ा हुआ है। यह
औरंगाबाद-एलोरा सड़क पर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 211 पर है। मनमाड से लगभग 100
किलोमीटर पर दौलताबाद स्टेशन पड़ता है।
दौलताबाद से आगे औरंगाबाद रेलवे-स्टेशन है। यहां से वेरूल जाने का अच्छा मोटरमार्ग
है, यहां से अनेक वाहन
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग तक के लिए चलते हैं। दौलताबाद से वेरूल का रास्ता मनोहारी
पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरता है। तो आप जब यहां जाएं तो इन प्राकृतिक झरोखों
का आनंद लेना ना भूलें।
पिछली पोस्ट के लिंक ..
Temple Dome |
Temple Dome |
Temple Dome |
Temple Dome |
Shahaji Raje Samadhi |
Shahaji Raje Samadhi |
बहुत बढ़िया वर्णन सहगल साहब, सोमवार का पावन दिन और भोले बाबा के एक ज्योतिर्लिंग के एक बार फिर से साक्षात सजीव दर्शन....
ReplyDeleteइस मन्दिर में जाने का सौभाग्य को मिल चुका लेकिन इस कथा का आपके माध्यम से ही पता चला... बढ़िया वर्णन सहित बढ़िया फोटो सहगल साहब......
धन्यवाद संजय कौशिक जी .आपका कमेंट देखकर एक लाइन याद आ गयी..भाई घने दिनों में आया :)
Deleteवाह खूबसूरत तस्वीरों के साथ बेहद सारगर्भित जानकारी
ReplyDeleteसुंदर लेखन ✍️✍️✍️✍️🌹कि बिना रुके पढ़ा यहां जाना बाकी है मेरा अब और भी जरूरी हो गया जाना
जय शिवशंकर
धन्यवाद विजया दी . आप भी अवश्य जाएँ साथ ही एलोरा केव्स हैं .वो भी जरूर देखना .
Deleteबहुत सुंदर वर्णन नरेश,मंदिरों की फ़ोटो तो हर कोई दिखा देगा लेकिन उनके पीछे की कहानी हर कोई नही लिखता,आपने लिखी हमने पढ़ी मजा आ गया,,,,,,,,जल्दी ही जाऊंगी
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता दी .जय भोले नाथ .
DeletePost written in a good manner with beautiful pictures. Ghushma 's story is interesting . I had already read this story in ' Shiv Puraan ' also. Hr Hr Mahadev
ReplyDeleteThanks my dear .You are always welcome. har har Mahadev.
Deleteबहुत अद्भुद ओर सुंदर ज्योतिर्लिंग। भोले भंडारी की कृपा सदा बनी रहे।
ReplyDeleteधन्यवाद महेश कटारिया जी .
Delete���� आपके सौजन्य से घर से ही सारे जोतिर्लिंगों का सौभाग्य मिल जाता है बाबा आपको सदैव चिरायु एबं निरोगी काया दे और कभी हमे भी दर्शन का भविष्य मे अपने साथ मौका दें.
ReplyDeleteधन्यवाद रविंदर भाई .भोले नाथ आपको भी जल्दी बुला लेंगे .
Deleteसुंदर तस्वीरों के साथ बढ़िया वर्णन. जय श्री घुश्मेश्वर .
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ साहब .
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-08-2018) को "स्वतन्त्रता का मन्त्र" (चर्चा अंक-3064) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
स्वतन्त्रतादिवस की पूर्वसंध्या पर
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आभार राधा तिवारी जी .
Deleteबहुत ही शानदार यात्रा रही .एक साथ तीन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करवा दिए इस यात्रा में आपने ..साधुवाद
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी .
DeleteNice post with good pictures.
ReplyDeleteThanks Fred.
Deleteबहुत बढ़िया नरेश जी। साथ ही सभी लिंक पे ब्लॉग देख आश्चर्यचकित हो गया। पूरे महाराष्ट्र के ही दर्शन करवा दिए आपने तो।
ReplyDeleteThanks Anit.
DeleteNice pictures,
ReplyDeleteDid you know ?
Manimahesh Kailash Peak is known to be the home of Lord Shiva.
बहुत बढ़िया सहगल साब ! पूरी यात्रा में आपके साथ चलता रहा हूँ और एक एक जरुरी जानकारी को नोट भी किया है। पूरी सीरीज ही उपयोगी रही
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .संवाद बनाये रखें .
DeleteHii there
ReplyDeleteNice blog
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Gangotri Temple in Uttarakhand
Thanks for sharing this great and informative post. I really like this awesome post. Thank you for share beautiful and wonderful pictures. Thanks for the effective information. If you have any requirements for Taxi Services in India then you can book through our website.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और आकर्षक जानकारी प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया है हार्दिक बधाई
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